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कानून है ना!

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महिलाओं को दुश्वारियों से बचाने के लिए देश में तमाम कानून लागू हैं। गर्भ में पल रही कन्या भ्रूण से लेकर अपने ही घर में खुद असुरक्षित महसूस करने वालीं उसकी मां तक को सुरक्षित रखने के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। 'इंटरनैशनल डे फॉर द एलिमिनेशन ऑफ वॉयलेंस अगेंस्ट विमिन' के मौके पर एक्सपर्ट्स से बात कर इन कानूनों की जानकारी दे रहे हैं राजेश चौधरी...

एक्सपर्ट पैनल
जस्टिस आर. एस. सोढी (रिटायर्ड), दिल्ली हाई कोर्ट
रमेश गुप्ता, सीनियर एडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट
एम. एल. लाहोटी, सीनियर एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
नवीन शर्मा, एडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट
अमन सरीन, एडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट

जब गर्भ में कन्या
कन्या जब गर्भ में होती है तभी से उसे कानूनी संरक्षण प्राप्त है। 1996 में प्री-कंसेप्शन एंड प्रीनेटल डायग्नॉस्टिक्स टेक्नॉलजी (पीसी पीएनडीटी) ऐक्ट बनाया गया था। इसके तहत गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग परीक्षण कराना अपराध है। अगर कोई ऐसा करता है तो वह एक्ट की धारा-22 का उल्लंघन करता है। इसमें शामिल लोगों को दोषी पाए जाने पर 3 साल से 5 साल तक कैद की सजा दी जा सकती है।

जब अबॉर्शन के लिए हो जबर्दस्ती
महिला को अपने बच्चे को जन्म देने का अधिकार है और यह अधिकार कोई उससे छीन नहीं सकता। अगर कोई महिला गर्भवती है तो उसकी मर्जी के खिलाफ या उसे बताए बिना गर्भपात नहीं कराया जा सकता।

अगर कोई शख्स किसी गर्भवती महिला का जबरन अबॉर्शन कराता है या फिर धोखे से उसका ऑबर्शन कराता है तो ऐसे मामले में आईपीसी के तहत मामला बनता है। महिला की सहमति के बिना उसका अबॉर्शन नहीं कराया जा सकता। जबरन अबॉर्शन कराए जाने के मामले में सख्त कानून बनाए गए हैं।
अबॉर्शन तभी कराया जा सकता है जब गर्भ के कारण महिला की जिंदगी खतरे में हो। 1971 में एक अलग कानून बनाया गया और इसका नाम रखा गया मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिगनेंसी (एमटीपी) ऐक्ट। इसके तहत तमाम प्रावधान किए गए हैं। अगर गर्भ के कारण महिला की जान खतरे में हो या गर्भवती महिला की दिमागी और शारीरिक सेहत खतरे में हो या गर्भ में पल रहा बच्चा शारीरिक या मानसिक विकलांगता का शिकार हो तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर महिला मानसिक या फिर शारीरिक तौर पर सक्षम न हो कि वह बच्चे को गर्भ में पाल सके तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर महिला के साथ रेप हुआ हो और वह गर्भवती हो गई हो या फिर महिला के साथ ऐसे रिश्तेदार ने संबंध बनाए जो वर्जित संबंध में हों और महिला गर्भवती हो गई हो तो महिला का अबॉर्शन कराया जा सकता है। महिला अगर बालिग हो तो उसकी सहमित जरूरी है। अबॉर्शन भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त डॉक्टर ही करवा सकते हैं।

सजा
अगर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ उसका गर्भपात कराया जाता है तो ऐसे में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। आईपीसी की धारा-312 के मुताबिक अगर औरत के हित के लिए गर्भपात नहीं कराया गया हो तो ऐसे मामले में दोषियों के खिलाफ कानून में सख्त प्रावधान है। इस ऐक्ट के दायरे में वह महिला भी है जिसने बिना कारण गर्भपात कराया है। इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा हो सकती है।

धारा-313: अगर महिला की सहमति के बिना उसका गर्भपात करा दिया जाता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने वाले शख्स को 10 साल तक कैद या फिर उम्रकैद की सजा हो सकती है।
धारा 314: अगर गर्भपात कराए जाने के दौरान महिला की मौत हो जाए तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 10 साल तक कैद की सजा हो सकती है और अगर महिला की गर्भपात के लिए सहमति नहीं है और फिर उसकी मौत हो जाए तो दोषी पाए जाने वाले शख्स को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

जब घर में हो खतरा
महिलाओं को अपने पिता के घर से लेकर पति के घर तक में सुरक्षित रखने के लिए घरेलू हिंसा कानून के तहत तमाम प्रावधान किए गए हैं। अगर अपने घर में किसी महिला को शारीरिक, मानसिक या आर्थिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है तो वह घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत कर सकती है। इस कानूनी संरक्षण का दायरा विस्तृत है। मारपीट, गाली-गलौच से लेकर मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना तक इसमें शामिल है।

महिला अगर शादीशुदा है और पति के साथ ससुराल में है और उसके साथ हिंसा होती है या उसे प्रताड़ित किया जाता है तो वह ससुराल पक्ष की महिलाओं या पुरुषों के खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत कर सकती है। अगर महिला शादीशुदा नहीं है और पिता के घर में उसके साथ परिवार का कोई सदस्य हिंसक बर्ताव करता है या उसे प्रताड़ित करता है तो उसके खिलाफ भी वह शिकायत कर सकती है। अगर महिला को दिए जाने खर्चे को रोका जाए या उसकी सैलरी आदि कोई ले ले या फिर उसके व्यक्तिगत अकाउंट से जुड़ा एटीएम कार्ड और बैंक के दस्तावेज आदि परिवार से जुड़ा कोई सदस्य ले ले तो वह इसके खिलाफ शिकायत कर सकती है।

शिकायत और समाधान
महिला जहां रहती है या जहां उसके साथ घरेलू हिंसा की गई है या फिर जहां आरोपित रहते हैं, घरेलू हिंसा की शिकायत वहां की जा सकती है। ऐसे मामले में प्रोटेक्शन ऑफिसर अदालत के सामने इंसिडेंट रिपोर्ट पेश करता है और उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत आरोपित को समन जारी करता है। आरोपित का पक्ष सुनने के बाद अदालत अपना आदेश पारित करती है। इस दौरान अदालत आरोपित को महिला को उसी घर में रहने देने, गुजारा के लिए पैसा देने के लिए कह सकती है या फिर उसे किसी भी तरह की सुरक्षा देने का आदेश दे सकती है।

अगर अदालत महिला के हक में आदेश पारित करती है और आरोपित कोई दखल देता है तो घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रतिवादी पर मुकदमा चलाया जा सकता है। यह अपराध गैर-जमानती है। दोषी पाए जाने पर उसे एक साल तक कैद की सजा हो सकती है और 20 हजार रुपये तक जुर्माना भी।

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालीं महिलाओं को भी इस ऐक्ट के तहत प्रोटेक्शन मिला हुआ है। हालांकि सिर्फ उसी रिश्ते को लिव-इन रिलेशनशिप माना जा सकता है जिसमें स्त्री और पुरुष विवाह किए बिना पति-पत्नी की तरह रहते हैं। और हां, इसके लिए जरूरी है कि दोनों बालिग हों और दोनों शादी के लायक हों।

यदि दोनों में से कोई एक भी पहले से शादीशुदा होता है तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं कहा जाएगा। अगर दोनों में से कोई एक शादीशुदा है या फिर दोनों पहले से शादीशुदा हैं, लेकिन अपने-अपने पार्टनर से तलाक लेकर साथ-साथ रह रहे हैं तो उनके संबंध को लिव-इन माना जाएगा। जाहिर है, तय नियम के तहत लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को ही घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन मिला हुआ है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो वह उसके खिलाफ इस एक्ट के तहत शिकायत कर सकती है। ऐसे संबंध में रहते हुए उसे राइट टु शेल्टर यानी जब तक यह रिलेशनशिप कायम है, उसे जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता। लेकिन संबंध खत्म होने के बाद यह अधिकार खत्म हो जाता है। लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का भी अधिकार है। हालांकि पार्टनर की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में उसे अधिकार नहीं मिल सकता।
जब हो यौन उत्पीड़न
- आईपीसी की धाराओं के तहत रेप से लेकर छेड़छाड़ तक के मामले में महिलाओं को तमाम स्तर पर कानूनी संरक्षण दिया गया है। निर्भया कांड के बाद रेप लॉ को काफी सख्त बना दिया गया है।
- आईपीसी की धारा-375 के अनुसार, अगर किसी महिला के साथ कोई पुरुष जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो वह रेप होगा। महिला के साथ जबरन प्राकृतिक या अप्राकृतिक सेक्स संबंध बनाना रेप के दायरे में आता है। इसके अलावा महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में अगर पुरुष अपना प्राइवेट पार्ट डालता है तो वह भी रेप के दायरे में होगा। महिला के प्राइवेट पार्ट में कोई चीज डालना भी रेप है।
- महिला की सहमति के बिना बनाया गया सेक्स संबंध रेप है।
- महिला की उम्र अगर 18 साल से कम है और सेक्स संबंध बनाने में उसकी सहमति है तो भी वह रेप होगा। नाबालिग लड़की की सहमति को सहमति नहीं मानी जाएगी।
- अगर कोई शख्स ने किसी महिला को डरा कर सेक्स की सहमति ली हो तो भी वह सहमति नहीं मानी जाएगी।
- महिला ने अगर यह समझते हुए सहमति दी है कि आरोपी उसका पति है जबकि वह उसका पति नहीं है तो भी ऐसी सहमति से बनाया गया संबंध रेप होगा।
- सेक्स के लिए जब महिला की सहमति ली गई तब अगर उसकी दिमागी हालात ठीक नहीं हो या फिर उससे बेहोशी या नशे की हालत में सहमति ली गई हो या फिर उस हालत में संबंध बनाए गए हों तो वह सहमति सहमति नहीं मानी जाएगी।
- अगर कोई महिला किसी वजह से विरोध करने में असमर्थ हो तो इसका मतलब सहमति है, ऐसा नहीं माना जाएगा। साथ ही, अगर कोई महिला अपने पति से जूडिशल सेपरेशन के तहत अलग रह रही हो और उस दौरान पति उसके साथ जबरदस्ती करता है तो वह रेप होगा।

क्या है IPC में रेप की सजा
12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ रेप और गैंग रेप के मामले में दोषी के लिए फांसी की सजा तक का प्रावधान है। सीआरपीसी की धारा-309 के तहत प्रावधान किया गया है कि रेप से संबंधित मामले का ट्रायल दो महीने में पूरा किया जाएगा।
376: कम से कम 10 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा
376A: अगर रेप के कारण महिला मरणासन्न स्थिति में चली जाए तो दोषी को अधिकतम फांसी की सजा
376D: गैंग रेप के दोषियों के लिए कम से कम 20 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रभर के लिए जेल
376E: अगर कोई शख्स रेप के लिए पहले दोषी करार दिया गया हो और वह दोबारा अगर रेप या गैंग रेप के लिए दोषी पाया जाता है तो उसे उम्रकैद से लेकर फांसी तक की सजा

नाबालिग पत्नी को प्रोटेक्शन
18 साल से कम उम्र की पत्नी से संबंध बनाए जाने के मामले में अब रेप का केस दर्ज हो सकता है। नाबालिग पत्नी के साथ अगर पति संबंध बनाता है और पत्नी उसकी शिकायत करती है तो रेप का केस माना जाएगा। पत्नी अगर इसके लिए घटना के एक साल के भीतर शिकायत दे तो पति के खिलाफ मामला बनेगा। जहां तक बालिग पत्नी के साथ मैरिटल रेप का सवाल है तो इस मामले में अब भी सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी है।

क्या है छेड़छाड़ में सजा
निर्भया कांड के बाद 2013 में कानून में बदलाव हुआ। छेड़छाड़ के अपराध के लिए आईपीसी को नए सिरे से परिभाषित किया गया और इसका दायरा काफी बड़ा कर दिया गया।
354 A: सेक्शुअल नेचर का कॉन्टैक्ट करना, सेक्शुअल फेवर मांगना आदि छेड़छाड़ के दायरे में आएगा। इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा हो सकती है। अगर कोई शख्स किसी महिला पर सेक्शुअल कॉमेंट करता है तो एक साल तक कैद की सजा हो सकती है।
354 B: अगर कोई शख्स महिला की इज्जत से खेलता है, जबर्दस्ती करता है या फिर उसके कपड़े उतारता है या इसके लिए मजबूर करता है तो 3 साल से लेकर 7 साल तक कैद की सजा हो सकती है।
354 C: अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट ऐक्ट की फोटो खींचता है और उसे लोगों में फैलाता है तो ऐसे मामले में 1 साल से 3 साल तक की सजा का प्रावधान है। अगर वह दोबारा ऐसी हरकत करता है तो 3 साल से 7 साल तक कैद की सजा उसे हो सकती है। अगर कोई शख्स किसी महिला का जबरन पीछा करता है या संपर्क करने की कोशिश करता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 354 डी के तहत उसे 3 साल तक कैद की सजा हो सकती है।
जब दहेज मांगा जाए
दहेज निरोधक कानून की धारा-8 के अनुसार, दहेज देना और लेना दोनों ही संज्ञेय अपराध है। जुर्म साबित होने पर आरोपी को कम से कम 5 साल कैद का प्रावधान है। उस पर कम से कम 15,000 रुपये जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अगर लड़के वाले दहेज मांगते हैं तो शादी से पहले भी उन पर मुकदमा हो सकता है। जुर्म साबित होने पर 6 महीने से 2 साल तक कैद की सजा हो सकती है।
आईपीसी की धारा-498 ए के तहत दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करने पर पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। दहेज प्रताड़ना की शिकायत पर पुलिस 498 ए के साथ-साथ धारा-406 (अमानत में खयानत) का भी केस दर्ज करती है। लड़की का स्त्रीधन अगर उसके ससुरालियों ने अपने पास रख लिया है तो अमानत में खयानत का मामला बनता है।

उम्रकैद तक की सजा
दहेज प्रताड़ना का मामला गैर-जमानती है और यह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। दहेज हत्या मामला भी गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है और दोषी को कम के कम 7 साल और अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है। अमानत में खयानत के मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। यह मामला भी गैर जमानती है। शादी के 7 साल के अंदर अगर महिला की संदिग्ध हालात में मौत होती है तो पति और अन्य ससुरालियों पर दहेज हत्या का मामला चलेगा। इस मामले में दोषी को 7 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है।

जब ऑफिस में हो परेशानी
वर्कप्लेस पर महिलाएं सुरक्षित महसूस करें, इसके लिए भी कानून में व्यवस्था की गई है। सेक्शुअल हरैसमेंट को रोकने के लिए सेक्शुअल हरैसमेंट ऑफ विमिन एट वर्कप्लेस (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल) ऐक्ट 2013 बनाया गया था। पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर महिलाओं को प्रोटेक्ट करने के लिए विशाखा गाइडलाइंस बनाई गई थी, लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने 2013 में कानून बना दिया, जिसके तहत तमाम गाइडलाइंस तय की गई हैं।

इसके तहत एम्प्लॉयर की जिम्मेदारी है कि वह सेक्शुअल हरैसमेंट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे। यह अनुशासनात्मक से लेकर आपराधिक कार्रवाई तक हो सकती है। सेक्शुअल हरैसमेंट में शारीरिक छेड़छाड़, स्पर्श करना, सेक्शुअल फेवर की मांग, महिला सहकर्मी को पॉर्न दिखाना या अन्य आपत्तिजनक व्यवहार या फिर असहज करने वाले इशारे करना शामिल है। हर दफ्तर में एक इंटरनल कंप्लेंट कमिटी अनिवार्य है जिसकी चीफ महिला होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि कमिटी में महिलाओं की संख्या आधे से कम न हो। साल भर में कितनी शिकायतें आईं और क्या कार्रवाई हुई, इसके बारे में सरकार को रिपोर्ट जमा करानी होगी।

ऐसे मामले में इंटरनल कंप्लेंट कमिटी के सामने घटना के तीन महीने के भीतर शिकायत की जा सकती है। अगर घटना सिलसिलेवार तरीके से घट रही हो तो आखिरी घटना के बाद तीन महीने के अंदर शिकायत की जा सकती है। शिकायत के लिए 3 महीने की अवधि खत्म होने के बाद अगले तीन महीने भी दिए जा सकते हैं, यानी अधिकतम छह महीने तक का वक्त दिया जा सकता है।

मां बनने वाली कामकाजी महिला के अधिकार
महिला को मां बनने का अधिकार है। इस अधिकार से उसे वंचित नहीं किया जा सकता। अगर महिला गर्भवती है तो इस दौरान उसे नौकरी से नहीं निकाला जा सकता और न ही डिलिवरी के वक्त छुट्टी लेने पर सैलरी ही रोकी जा सकती है। नए कानून के अनुसार, मां बनने वाली कामकाजी महिला एम्प्लॉयर से 24 हफ्ते पेड लीव की हकदार है, यानी इस दौरान महिला को पूरी सैलरी और तय भत्ते दिए जाते रहेंगे। अबॉर्शन होने की हालत में भी उसे यह लाभ मिलेगा। मैटरनिटी लीव के दौरान महिला पर किसी तरह का आरोप लगाकर उसे नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। अगर एम्प्लॉयर पेड लीव से उसे वंचित करने की कोशिश करता है तो महिला इंसाफ पाने के लिए कोर्ट जा सकती है। इसके लिए दोषी को 1 साल तक कैद की सजा हो सकती है।

कहां करें शिकायत
- आईपीसी से संबंधित अपराध के मामले में महिला उसी थाने में शिकायत कर सकती है जहां उसके साथ अपराध हुआ है। अगर ससुराल में उसके साथ अपराध हुआ हो और महिला मायके या कहीं और चली गई हो तो मामले को वह जहां रहती वहीं के अदालत में केस ट्रांसफर करने की गुहार लगा सकती है।
- अगर महिला के साथ रेप या छेड़छाड़ हुई है तो वह सीधे थाने जाकर शिकायत कर सकती है। रेप और छेड़छाड़ के मामले संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं और ऐसे में पुलिस शिकायत पर केस दर्ज करने के लिए बाध्य है। अगर पुलिस केस दर्ज नहीं करती तो इलाके के मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत अर्जी दाखिल कर मजिस्ट्रेट कोर्ट में गुहार लगाई जा सकती है।
- दहेज प्रताड़ना के मामले में महिला थाने में भी शिकायत कर सकती है या फिर क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल जा सकती है।
- अगर ऑफिस में सेक्शुअल हरैसमेंट हुआ है तो फिर दफ्तर में बने इंटरनल कंप्लेंट कमिटी में शिकायत कर सकती है।
- महिला अगर घरेलू हिंसा की शिकार है तो वह इलाके में संबंधित मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दाखिल कर सकती है। मजिस्ट्रेट ऑफिसर नियुक्त करता है और वह महिला को सुरक्षा और अधिकार दिलाता है।
- अगर महिला को संपत्ति के अधिकार से वंचित किया जा रहा हो तो वह इसके लिए सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। महिला जहां रहती है (मायका, ससुराल, या कहीं और) वहीं के कोर्ट में शिकायत कर सकती है।
- किसी भी तरह के अन्याय के खिलाफ और अधिकार के लिए महिला चाहे तो राज्य महिला आयोग या राष्ट्रीय महिला आयोग का दरवाजा खटखटा सकती है। महिला आयोग के पास सिविल कोर्ट की तरह अधिकार हैं। वह दूसरी पार्टी को नोटिस जारी कर मामले में कार्रवाई कर सकता है या फिर मामले को संबंधित विभाग को रेफर कर सकता है।
- महिलाओं को फ्री लीगल ऐड दिए जाने का भी कानून में प्रावधान है। महिला चाहे किसी केस में आरोपित हो या पीड़िता, वह फ्री कानूनी मदद पाने की हकदार है। वह अदालत से गुहार लगा सकती है कि उसे मुफ्त में सरकारी खर्चे पर वकील चाहिए। फ्री लीगल ऐड के मामले में महिला की आर्थिक स्थिति भी नहीं देखी जाती।

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दिव्यांग के लिए 'उम्मीदों का आसमां', सरकार देती है इतनी सुविधाएं

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3 दिसंबर को 'इंटरनैशनल डे फॉर डिसेबल्ड पर्सन' है। लोगों के सफर को ज्यादा आसान बनाने के लिए एक्पर्ट्स से बात कर पूरी जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

सुविधाएं आने- जाने की
सरकार ने डिफरेंटली एबल्ड लोगों के लिए कई सुविधाएं दी हुई हैं। कई बार कम जानकारी की वजह से लोग सभी सुविधाओं का फायदा नहीं ले पाते, लेकिन जब सुविधाएं हैं तो उनका फायदा उठाना चाहिए।

ट्रेन में सुविधा
डिफरेंटली एबल्ड व्यक्ति एक अटैंडेंट के साथ रेल में रियायती दर पर टिकट खरीदकर यात्रा कर सकते हैं। डिफरेंटली एबल्ड के साथ में सफर कर रहा अटैंडेंट भी इन रियायतों का हकदार है।

मिलेगी ऐसे छूट
- सेकंड क्लास, स्लीपर, फर्स्ट क्लास, थर्ड एसी, एसी चेयरकार में 75%
- फर्स्ट एसी और सेकंड एसी में 50%
- राजधानी/शताब्दी गाड़ियों की थर्ड एसी और एसी चेयरकार में 25%
- एमएसटी और क्यूएसटी में 50%

कोई डेफ ऐंड म्यूट शख्स अगर किसी भी काम के लिए अकेले या किसी सहयोगी के साथ यात्रा कर रहा है तो:
- सेकंड क्लास, स्लीपर और फर्स्ट क्लास में 50%
- एमएसटी और क्यूएसटी में 50%

जरूरी कागजात
दृष्टिहीनों के लिए
आंखों के अस्पताल या डॉक्टर से (कम से कम एमबीबीएस) द्वारा जारी प्रमाणपत्र की कॉपी, जिसमें लिखा हो कि व्यक्ति पूरी तरह दृष्टिहीन है।

लोकोमोटर विकलांगता से पीड़ित
80% और उससे ज्यादा हाथ-पांव की कमियों से पीड़ित व्यक्ति इस श्रेणी में छूट पाने के हकदार हैं। इसके लिए चीफ मेडिकल ऑफिसर (सीएमओ) या सरकारी अस्पताल द्वारा गठित बोर्ड से जारी प्रमाणपत्र चाहिए।

वीलचेयर्स की मदद
ऐसे लोग जिनके पैर काम नहीं करते या पैरों में ताकत कम है, उनके लिए वीलचेयर किसी वरदान से कम नहीं। आजकल तो ऐसी वीलचेयर भी आ गई हैं, जो आपको सीधे खड़ा कर सकते हैं। हालांकि उनकी कीमत ज्यादा होती है। अब तो ऐसी सुविधा हो गई है कि आप वीलचेयर में अपनी जरूरत के हिसाब से बदलाव भी करवा सकते हैं।

वीलचेयर का चुनाव करते समय किन बातों का रखें ध्यान
1. उपयोग करने वाले में कितनी ताकत है
2. स्टोरेज कपैसिटी
3. कितना उपयोग करना है?
4. शरीर का कौन-सा अंग दिक्कत में है
5. किस तरह के एरिया में उपयोग करना है
6. बजट

कितने तरह की वीलचेयर
मैनुअल
यह वीलचेयर दुनियाभर में सबसे ज्यादा उपयोग में लाई जाती है। इसे अमूमन वे लोग उपयोग करते हैं जिनके शरीर के ऊपरी भाग, खासकर हाथों में ताकत होती है। इसे पुश रिम की मदद से चलाया जाता है इसलिए इसे चलाने के लिए हाथों में पर्याप्त ताकत होनी चाहिए। यह दो तरह की होती है: फोल्डिंग फ्रेम वीलचेयर और रिजिड फ्रेम। इसे खुद नहीं चला सकते, किसी की मदद लेनी पड़ती है। इनका उपयोग ज्यादातर एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, हॉस्पिटल, सुपर मार्केट आदि जगहों पर होता है।

मोटराइज्ड
यह इलेक्ट्रिसिटी से चलती है। इसमें बैटरी और इलेक्ट्रिक मोटर लगे होते हैं। एक बार बैट्री फुल चार्ज हो जाए तो इससे 15 किमी तक आसानी से चल सकते हैं।

इनके अलावा भी कई दूसरे तरह के वीलचेयर मिलते हैं। मसलन, मोबिलिटी स्कूटर, स्पोर्ट्स वीलचेयर, रीक्लाइनिंग वीलचेयर, बीच वीलचेयर, स्टेयर क्लाइंबिंग वील चेयर आदि। Sageindia कई तरह के वीलचेयर बनाती है। इसके अलावा Invacare Corp., OttoBock Healthcare जैसे कई नाम मार्केट में मौजूद हैं। इनके बारे में पूरी जानकारी आप गूगल पर इन्हीं नामों से सर्च कर देख सकते हैं।

खास है बैसाखी
सर्जिकल स्टोर्स में अमूमन दो तरह की बैसाखी मिलती हैं:
1. अंडर आर्म क्रच: इसकी जरूरत उन लोगों को होती है जिनका एक पैर तो ठीक होता है, लेकिन दूसरे पैर में ताकत बिल्कुल भी नहीं होती।
कीमत: करीब 1200 रुपये
2. एल्बो क्रच: यह उन लोगों के लिए उपयोगी है जिनकी दोनों टांगों में काफी कम ताकत होती है।
कीमत: करीब 1100 रुपये

इस बैसाखी को सहारे की नहीं है जरूरत
IIT दिल्ली के कुछ इंजिनियर्स एक खास तरह की बैसाखी पर काम कर रहे हैं। इन्हें आईआईटी और केंद्र सरकार ने फंड उपलब्ध कराया है। इसका नाम है 'फ्लैक्सक्रच'। अगले साल अप्रैल या मई तक सर्जिकल स्टोर्स में ये उलब्ध हो जाएंगी। इनकी कीमत 1600 रुपये है। सामान्य बैसाखी की लाइफ जहां 2 से 3 महीने की होती है, वहीं इसकी 8 महीने की होती है।
इसकी खूबियां
- खड़ा होने के लिए किसी सहारे की जरूरत नहीं
- आमतौर पर उपलब्ध बैसाखी से 4 गुना ज्यादा मजबूत
- चलते वक्त 20 फीसदी तक कम शॉक
- पकड़ काफी बेहतर
ज्यादा जानकारी के लिए: flexmotiv.com देखें।
नोट: प्लेस और क्वॉलिटी के हिसाब से कीमत में अंतर हो सकता है।

जयपुर फुट
प्रोस्थेटिक फुट के मामले में यह दुनियाभर में फेमस है। यह संस्था कृत्रिम पैर बनाकर देती है ताकि लोग चल-फिर सकें। डिफरेंटली एबल्ड लोगों के लिए यह संस्था पिछले चार दशकों से भी ज्यादा समय से काम कर रही है। अगर आप जरूरतमंद हैं तो इसके केंद्र पर जाएं और कुछ ही दिनों में अपने लिए प्रोस्थेटिक फुट मुफ्त में पाएं। ज्यादा जानकारी के लिए jaipurfoot.org पर विजिट करें। यहां इसके नजदीकी केंद्र के बारे में भी आपको जानकारी मिल जाएगी।

एजुकेशन
देश में विजुअली चैलेंज्ड लोगों के लिए दो तरह का स्कूलिंग सिस्टम मौजूद है। हालांकि इनमें सामान्य स्कूलों की तरह ही पढ़ाई होती है। आमतौर पर नर्सरी या क्लास वन में ऐडमिशन में परेशानी नहीं होती, लेकिन क्लास 6 या उससे ऊपर के क्लास में ऐडमिशन चाहते हैं तो थोड़ी दिक्कत होती है। दरअसल, ये स्कूल उन बच्चों को ज्यादा तरजीह देते हैं जिन्हें ब्रेल अच्छे से आती है ताकि क्लास में बच्चे टीचर द्वारा बताई गई बातों को सही ढंग से नोट कर सकें।

स्पेशल स्कूल: जैसे ब्लाइंड स्कूल, नैब स्कूल आदि। इस तरह के स्कूल दिल्ली, मुंबई समेत देश के तमाम शहरों में मिल जाएंगे। यहां पर सिर्फ उन्हीं बच्चों को ऐडमिशन दिया जाता है, जिन्हें देखने में समस्या होती है।

सामान्य स्कूल: इसे इंटिग्रेटिड एजुकेशन सिस्टम भी कह सकते हैं। इस व्यवस्था में विजुअली चैलेंज्ड बच्चों को सामान्य बच्चे के साथ पढ़ना होता है। कई जानकार इस व्यवस्था को अलग से ब्लाइंड स्कूल शुरू करने से बेहतर मानते हैं क्योंकि इससे डिफरेंटली एबल्ड बच्चे का विकास बेहतर तरीके से होता है। बच्चों में आत्मविश्वास के साथ सोसाइटी के मैनर्स भी डिवेलप होते हैं। इसकी सबसे बड़ी चुनौती है डिफरेंटली एबल्ड बच्चों के लिए अलग टीचर्स, बुक्स आदि की व्यवस्था करना। देश में कई स्कूल ऐसे हैं, जहां इस तरह की व्यवस्था है।

वैसे तो देश के हर राज्य में स्पेशल स्कूल और सामान्य स्कूल मौजूद हैं जहां पर ऐसे बच्चों को पढ़ाया जा सकता है, लेकिन कुछ स्कूल तो काफी अच्छे हैं। यहां पर कुछ बेहतरीन स्कूल से जुड़ने के लिए वेबसाइट्स दी जा रही हैं ताकि पूरी जानकारी मिल सके:
nivh.gov.in
nabindia.org
blindrelief.org
(नोट: इनके अलावा भी कई स्कूल मौजूद हैं, जहां बच्चों को पढ़ा सकते हैं।)

स्किल डिवेलपिंग सेंटर्स
कई स्पेशल स्कूलों में डिफरेंटली एबल्ड बच्चों के लिए स्किल डिवेलपमेंट सेंटर्स भी चलाए जा रहे हैं। यहां बच्चों को अंग्रेजी और विदेशी भाषाएं सिखाई जाती हैं तो कैंडल बनाना, सिलाई-बुनाई आदि की ट्रेनिंग भी दी जाती है। दिल्ली, यूपी और हरियाणा में ऐसे तमाम स्कूल हैं। इनमें ब्लाइंड रिलीफ संस्थान और एनआईएचएफ इंस्टिट्यूट, देहरादून का नाम अहम है।

जॉब में भी आरक्षण
डिफरेंटली एबल्ड लोगों को हर स्तर पर केंद्र सरकार की नौकरी में 3 फीसदी रिजर्वेशन मिलता है। इसका फायदा उठाने के लिए जॉब का फॉर्म भरते वक्त खास कैटिगरी के बारे में आपको बताना होगा और जरूरत पड़ने पर सर्टिफिकेट भी पेश करना होगा।

लाइब्रेरी और ई-बुक भी मददगार
विजुअली चैलेंज्ड लोगों के लिए अब पढ़ने के लिए कई तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। खास लाइब्रेरी और ई-बुक इनमें प्रमुख हैं।

टॉकिंग बुक लाइब्रेरी: इनसे जुड़ने के लिए मेंबरशिप लेनी पड़ती है। मेंबरशिप चार्ज अमूमन काफी कम होता है। कुछ जगहों पर तो लाइफटाइम मेंबरशिप 100 रुपये में ही मिल जाती है। इन लाइब्रेरी से बुक्स को पेन ड्राइव या किसी अन्य डिवाइस में डाउनलोड कर ले जा सकते हैं। दिल्ली में ऐसी लाइब्रेरी आपको डीयू, नैब आरके पुरम और ब्लाइंड रिलीफ असोसिएशन आदि संस्थानों में उपलब्ध है। देहरादून में नैशनल टॉकिंग बुक लाइब्रेरी है। यह भारत सरकार की संस्था है। ये बुक्स daisy फॉर्मेट में बनते हैं। इन्हें सुनने के लिए AMIS सॉफ्टवेयर उपलब्ध है। इस सॉफ्टवेयर को आप daisy.org से फ्री में डाउनलोड कर सकते हैं। इन बुक्स को सुनने के लिए इसके अलावा भी कई तरह की डिवाइस उपलब्ध हैं। PLEXTALK इनमें से एक है। इसकी कीमत लगभग 11-15 हजार रुपये है। यह उनके लिए अच्छा है, जिनके पास लैपटॉप या कंप्यूटर नहीं है। इसकी खासियत है यह एमपी थ्री और ई-टेक्स्ट को भी पढ़कर सुनाता है। यह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं को पढ़ सकता है। इनके अलावा एक नाम ANGEL का भी है।

ई-बुक
विजुअली चैलेंज्ड स्टूडेंट्स के लिए ई-बुक के ऑप्शन टॉकिंग बुक लाइब्रेरी में उपलब्ध होते हैं। इनके अलावा library.daisyindia.org पर हजारों की संख्या में ई-बुक्स फ्री में उपलब्ध हैं। अगर यहां उपलब्ध किताब के अलावा भी आपको कोई किताब चाहिए तो इस साइट पर अपनी मांग भी लिख सकते हैं। इसके अलावा यूएसएस से संचालित वेबसाइट bookshare.org पर भी हजारों की संख्या में ई-बुक उपलब्ध हैं। Kindle app भी एक ऑप्शन है जो Amazon.com पर उपलब्ध है। यह एंड्रॉयड और आईओएस दोनों के लिए बना है।

डिफरेंटली एबल्ड लोगों के लिए बिजनस लोन
पढ़ाई करने के बाद कुछ लोग जॉब करते हैं तो कई लोग खुद का बिजनस करना चाहते हैं। डिफरेंटली एबल्ड लोगों को आसानी से बिजनेस करने के लिए लोन मिल सकता है। सरकार ने इसके लिए नैशनल हैंडिकैप्ड फाइनैंस ऐंड डिवेलपमेंट (NHFDC) का गठन किया है। अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए इससे लोन लेना बेहतर विकल्प है।

लोन के लिए योग्यता
- भारत का नागरिक हो।
- आवेदक का डिफरेंटली एबल्ड के पैमाने पर खरा उतरना जरूरी है।
- उम्र 18 से 60 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
- आवेदक की वार्षिक आय शहरी क्षेत्रों के लिए 5 लाख रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 3 लाख रुपये से कम हो।
- आवेदक के पास उस बिजनेस से संबंधित योग्यता / विशेषज्ञता होनी चाहिए।
- इनकम टैक्स, इंश्योरेंस, फाइनैंशल प्लैनिंग, पेंशन, लोन आदि के पूरे पेपर्स तैयार होने चाहिए।

कितना लोन
छोटा बिजनस (सर्विस/ ट्रेडिंग सेक्टर) शुरू करने के लिए: 3 लाख रुपये तक
छोटी इंडस्ट्री लगाने के लिए: 5 लाख रुपये तक
एजुकेशन/ट्रेनिंग सेंटर्स आदि शुरू करने के लिए: 10 लाख रुपये तक
कृषि कार्य करने के लिए: 5 लाख रुपये

कैसे करें अप्लाई
- आवेदक संबंधित विभाग के बताए हुए फॉर्मेट में ही अप्लाई करेंगे। 3 लाख रुपये तक के बिजनस प्रपोज़ल को राज्य सरकार का संबंधित विभाग या बैंक मंजूर करेगा।
- 3 लाख रुपये से ज्यादा का लोन नैशनल हैंडिकैप्ड फाइनैंस एंड डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएचएफडीसी) सीधे तौर पर पास करता है।
- आवेदक लोन के लिए पंजाब ऐंड सिंध बैंक या ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की ब्रांच में भी सीधे ऐप्लिकेशन जमा करा सकते हैं।

ज्यादा जानकारी के लिए
नैशनल हैंडिकैप्ड फाइनैंस ऐंड डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन
(मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस ऐंड एंपावरमेंट)
रेड क्रॉस भवन, सेक्टर 12, फरीदाबाद-121007
फोन: 0129 2287512] 2287513, 2226910
ईमेल: nhfdc97@gmail.com

इंदिरा गांधी नैशनल डिसेबिलिटी पेंशन स्कीम (आईजीएनडीपीएएस)
अगर कोई डिफरेंटली एबल्ड गरीबी रेखा के नीचे है और उसके पास बीपीएल कार्ड है तो वह 300 रुपये प्रति महीने पेंशन पाने का हकदार है।

डिफरेंटली एबल्ड लोगों को इनकम टैक्स बेनिफिट
- सरकार इनकम टैक्स में अतिरिक्त छूट देती है।
- सेक्शन 80DD और 80U के तहत यह फायदा मिलता है।
- दो तरह की छूट मिलती है। अगर किसी को 40 से 80 फीसदी डिसेबिलिटी है तो उसे डिसेबल माना जाएगा। इस मामले में टैक्सेबल इनकम में 75,000 रुपये तक छूट मिलती है।
- अगर व्यक्ति 80 फीसदी से ज्यादा डिसेबल है तो सरकार उसे गंभीर रूप से डिसेबल मानती है। इसमें टैक्सेबल इनकम में 1,25,000 रुपये तक छूट मिलती है।

स्कॉलरशिप
केंद्र सरकार डिफरेंटली एबल्ड लोगों को छह तरह की स्कॉलरशिप देती है। ज्यादा जानकारी के लिए disabilityaffairs.gov.in देख सकते हैं।

खेल में भी पहचान
आजकल डिफरेंटली एबल्ड लोगों की दिलचस्पी स्पोर्ट्स में काफी बढ़ रही है। अगर जज्बा हो तो डिफरेंटली एबल्ड खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल सकते हैं। इसके लिए उन्हें पैरालिंपिक कमिटी से जुड़ना होगा। यहां पर शॉटपुट, एथलेटिक्स, स्विमिंग, पावरलिफ्टिंग समेत कई तरह के स्पोर्ट्स होते हैं। हालांकि राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने के लिए आपमें उस खेल के लिए पैशन और हुनर सबसे जरूरी है। साथ ही आपने जिला और राज्य स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई हो।

हेड ऑफिस का पता:
पैरालिंपिक कमिटी ऑफ इंडिया
जैसलमेर हाउस, 26, मानसिंह रोड, नई दिल्ली-110011
फोन नंबर: 91-11-23075126
ईमेल: hopcidelhi@yahoo.com
वेबसाइट: www.paralympicindia.org.in

यहां से भी लें मदद
Wheeling Happiness
नॉन प्रॉफिट आर्गेनाइजेशन
गुड़गांव, हरियाणा
पता: सेक्टर 28, गुरुग्राम, हरियाणा
फोन: 098733 41190
वेबसाइट: www.wheelinghappiness.org

वील चेयर क्रिकेट
वैसे तो इस क्रिकेट को बीसीसीआई ने मान्यता नहीं दी है, लेकिन पिछले साल बंग्लादेश के साथ जब भारत की वील चेयर टीम क्रिकेट टूर्नामेंट खेली तो पूर्व भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर ने टीम की आर्थिक रूप से मदद की थी। इस साल भारतीय टीम ने दुबई में पाकिस्तान को 3-0 से हराकर टूर्नामेंट जीता था। यह कोई आम क्रिकेट जैसा नहीं होता। इसमें खिलाड़ी को वील चेयर पर बैठकर ही बैटिंग, बॉलिंग, फील्डिंग, कीपिंग करनी पड़ती है। अगर बैटिंग करते समय आपके पैर जमीन को छू गए तो 5 रन कम हो जाएंगे। इतना ही नहीं साथ में यूरिन का बैग भी रखना पड़ता है। फिर भी जज्बा कम नहीं होता। अच्छी बात यह है कि देश के कई कॉर्पोरेट हाउसेस इसके लिए मदद कर रहे हैं और आगे आ रहे हैं।

इसके कई विडियो यू-ट्यूब पर उपलब्ध हैं। आप इन्हें wheelchair cricket के नाम से सर्च कर सकते हैं।

पोलियो करेक्टिव सर्जरी
अनु जैन रोहतगी
पोलियो हाथ, छाती, पांवों और अन्य अंगों की मांसपेशियों को नाकाम बना देता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह मरीज के पैरों पर असर डालता है। मरीज की एक या दोनों टांगें पतली और छोटी रह जाती हैं और वह सहारा लेकर या लंगड़ा कर चलने को मजबूर होता है। कई मामलों में तो मरीज़ चल भी नहीं पाता। ऐसे मरीजों के लिए ILIZAROV सर्जरी काफी सफल सबित हुई है। इस सर्जरी में मरीज के छोटे पांवों को लंबा और टेढ़े पांवों को काफी हद तक सीधा कर दिया जाता है। इस तकनीक में मरीज की हड्डियों में तार डाले जाते है और फिर हड्डी को काटकर उसमें रिंग फिक्स किए जाते हैं। हर रोज उस रिंग को घुमाकर हड्डियों को एक मिलीमीटर तक खींच कर लंबा किया जाता है। एक बार सर्जन सर्जरी करके इन सब चीजों को फिक्स कर देता है। फिर उसकी निगरानी में रोजाना मरीज के पांव पर लगे रिंग एक मिलीमीटर तक घुमाए जाते हैं। 10 से 15 दिनों तक ये काम डॉक्टर की निगरानी में होता है और फिर मरीज को ट्रेनिंग दी जाती है कि वह घर में किस तरह से रिंग को घुमाए। इस तकनीक से मरीज के पांव की लंबाई 4 से 6 इंच तक लंबी की जा सकती है और टेढ़ा पांव पूरी तरह-से सीधा हो जाता है। ये सर्जरी थोड़ी महंगी है, सरकारी अस्पतालों में इसका खर्च 50 से 60 हजार रुपये के बीच आता है, वहीं प्राइवेट हॉस्पिटल्स में इसका खर्च 2-3 लाख रुपये के बीच आ सकता है।

नोट: दिल्ली में सेंट स्टीफेंस हॉस्पिटल में एक वार्ड सिर्फ पोलियो पेशंट के लिए है। यहां ऑपरेशन कराने पर अमूमन कोई खर्च नहीं होता।
पता: सेंट स्टीफंस हॉस्पिटल
तीस हजारी, दिल्ली-110054
फोन नंबर: 011-23966021 - 27, 23977930, 23957977

यहां बनाएं रिश्ते
दिव्यांगों के लिए रिश्ते ढूंढना पैरंट्स के लिए काफी परेशानी भरा होता है। इसका समाधान तलाशा है Inclov स्टार्टअप ने। उसका Inclov ऐप दिव्यांगों के रिश्ते बनवाने में काफी मददगार है। Inclov के को-फाउंडर शंकर श्रीनिवासन ने बताया कि देशभर के दिव्यांग या तो खुद अपने लिए जीवनसाथी की तलाश करते हैं या उनके पैरंट्स। उन्होंने बताया कि Inclov ऐप गूगल प्ले स्टोर और iOS से फ्री में डाउनलोड किया जा सकता है।
नोट: इनके अलावा कई और भी ऐप्स और वेबसाइट्स हैं।

रोल मॉडल
जगविंदर सिंह: लोग कहते हैं कि इंसान अपनी किस्मत अपने हाथों से लिखता है, लेकिन जगविंदर ने अपनी किस्मत अपने पैरों से लिखी है। पटियाला के रहने वाले जगविंदर के दोनों हाथ जन्म से ही नहीं हैं, लेकिन लोग तब आश्चर्य करते हैं जब उन्हें पता चलता है कि वह प्रफेशनल साइकलिस्ट हैं और साइकलिंग में उन्होंने स्टेट और नैशनल लेवल पर कई खिताब जीते हैं। साइकलिंग के अलावा जगविंदर ड्रॉइंग टीचर भी हैं और बच्चों को ड्रॉइंग सिखाते हैं। अपने पैरों से चित्र खींचने वाले जगविंदर ने इस क्षेत्र में भी अपना लोहा मनवाया है और कई प्रतियोगिताएं जीती हैं।

मानसी नयना जोशी: एक साइंटिस्ट के घर पैदा हुईं मानसी ने 2010 में मुंबई यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजिनियरिंग की ड्रिग्री हासिल की। सुनहरा भविष्य उनका इंतजार कर रहा था, लेकिन अगले ही साल यानी 2011 में एक रोड ऐक्सिडेंट में उन्होंने अपना बायां पैर गंवा दिया। लेकिन मानसी की जिंदगी थमी नहीं, बल्कि उसने एक नया मोड़ ले लिया। उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया और 2015 में पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप के मिक्स्ड डबल्स में सिल्वर मेडल जीतने का कारनामा किया। इंटरनैशनल पैरा शटलर होने के अलावा मानसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर और स्टोरीटेलर भी हैं।

राजीव विराट: कभी फुटबॉल के मैदान पर अपने कौशल से साथियों को हैरान कर देने वाले राजीव विराट आज वीलचेयर पर हैं। 16 साल की उम्र में उन्हें मल्टिपल स्केलेरोसिस नाम की बीमारी ने जकड़ा और 19 के होते-होते वह पूरी तरह से वीलचेयर पर आ गए। राजीव बताते हैं, ‘निराशा ने मुझे कुछ पल के लिए घेरा, लेकिन फिर मैं बहादुर बन गया। निराशा आज मेरे आस-पास भी नहीं है। वीलचेयर पर होने के बावजूद मैं आज अपने पैरों पर खड़ा हूं।’ कई मैराथन के विजेता राजीव इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में पिछले दस सालों से वीलचेयर स्कील्स इंस्ट्रक्टर के तौर पर काम करते हैं।

प्रशांत कर्माकर: सिर्फ एक हाथ के साथ जन्मे प्रशांत कर्माकर पैरा एशियन गेम्स के स्विमिंग इवेंट में मेडल जीतने वाले पहले भारतीय ऐथलीट हैं। उन्होंने 2014 इंचियोन गेम्स में दो ब्रॉन्ज जीते। लगातार 16 सालों तक नैशनल चैंपियन रहे प्रशांत को 2011 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 2015 में उन्हें मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स अवॉर्ड मिला।

मेजर डी. पी. सिंह: कारगिल के युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए मेजर डी. पी. सिंह ने अपना एक पैर गंवा दिया, लेकिन उनकी जिंदादिली को आंच तक नहीं आई। उन्होंने नकली टांग के सहारे दौड़ना शुरू किया और भारत के पहले ‘ब्लेड रनर’ के रूप में अपनी एक नई पहचान बनाई। कई मैराथन में भाग ले चुके सिंह आज उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो अपनी छोटी-मोटी परेशानियों की वजह से हार मान लेते हैं।

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DL घर भूल गए हैं तो भी नहीं कटेगा चालान, जानें सारे नियम

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सड़क पर गाड़ी चलाते समय कई लोग ट्रैफिक रूल तोड़ देते हैं। कई बार लोगों के पास जरूरी दस्तावेज नहीं होते हैं ऐसे में उनका चालान कटता है। क्या आपको इन चालान के बारे में सबकुछ पता है? सड़क पर गाड़ी चलाते समय कई लोग ट्रैफिक रूल तोड़ देते हैं। कई बार लोगों के पास जरूरी दस्तावेज नहीं होते हैं ऐसे में उनका चालान कटता है। क्या आपको इन चालान के बारे में सबकुछ पता है?

12वीं के बोर्ड एग्जाम्सः टॉपर्स के टॉप टिप्स

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लोकेश के. भारती
12वीं बोर्ड की परीक्षा नजदीक है। ऐसे में तैयारी को वॉर लेवल पर लाने का वक्त आ चुका है। आपकी तैयारी दनादन होती रहे, इसके लिए हमने 2018 के 7 टॉपर्स से बात की। 98% से लेकर 99.6% अंक हासिल करने वाले ये टॉपर्स दे रहे आपको टॉपर बनने के टिप्स। बोर्ड परीक्षा की तैयारियों की तकनीक और ज्यादा से ज्यादा अंक पाने की कारगर रणनीति के बारे में उन्होंने विस्तार से हमें बताया:

बोर्ड की तैयारी लॉन्ग टर्म या शॉर्ट टर्म?
तैयारी के लिए शॉर्ट टर्म जैसी कोई चीज नहीं होती। ज्यादा अंक के लिए तीन अहम बातें हैं:

हर दिन पढ़ाई: यह मुमकिन नहीं है कि सालभर किसी ने कुछ भी पढ़ाई नहीं की और 2 महीने पढ़कर 98% मार्क्स पा ले। अगर आप स्कूल में साल भर 60% मार्क्स लाते रहे हैं तो 2 महीने की रात-दिन पढ़ाई से 80 या 90% तक पहुंच सकते हैं, लेकिन 98% पाने के लिए आपको साल भर हर दिन पढ़ना पड़ेगा। सोमवार की पढ़ाई को मंगलवार पर नहीं डाल सकते क्योंकि मंगलवार की पढ़ाई भी उसमें अलग से जुड़ जाएगी और इसी तरह होम वर्क के पहाड़ बनते चले जाएंगे। इसलिए लगातार पढ़ना ही सबसे अच्छा और सरल रास्ता है।

सेल्फ स्टडी: स्कूल और कोचिंग में कुछ भी पढ़ा दे, कितना भी पढ़ा दे और कैसे भी पढ़ा दे, अगर हम खुद से नहीं पढ़ेंगे तो कुछ नहीं होगा। अच्छे मार्क्स के लिए सेल्फ स्टडी सबसे बेहतर है।

स्मार्ट वर्क: जरूरी यह नहीं है कि दूसरों को दिखाने के लिए 18 से 20 घंटे की पढ़ाई करें। महीने में एक-दो दिन ही आप 18 घंटे पढ़ सकते हैं। हर दिन यह मुमकिन नहीं है। ऐसे में आप जितना भी पढ़ें, सही ढंग से और कूल माइंड से पढ़ें, यह जरूरी है। हमेशा लिखकर और समझकर पढ़ें।

कितने घंटे की पढ़ाई?
इस मुद्दे पर टॉपर्स की राय कुछ हद तक बंटी हुई है। इसे हम सब्जेक्ट वाइज समझ सकते हैं।

कॉमर्स के स्कोरर:
आयुष: मैंने पूरे साल हर दिन 8-10 घंटे की पढ़ाई भी नहीं की। स्कूल के अलावा हर दिन 2 घंटे पढ़ता था मैं, लेकिन इन 2 घंटो में दुनिया-जहां से कटकर सिर्फ और सिर्फ पढ़ता था। दरअसल, लगातार पढ़ने के बहुत फायदे हैं। बोर्ड से लगभग 45 दिन पहले मैंने अपनी रणनीति बदल दी। मैंने रिविजन की जो प्लैनिंग की थी, उसमें 30 दिन तक मैंने 6 घंटे पढ़ाई के लिए तय किए, बाकी के 15 दिनों के लिए मैंने कुछ भी निश्चित नहीं किया। जब जो मन किया, उसकी पढ़ाई कर ली। मैं अच्छी स्थिति में इसलिए था क्योंकि मैंने पूरे साल एक दिन की भी पूढ़ाई दूसरे दिन पर नहीं डाली। जिस दिन जितनी पढ़ाई निश्चित की थी, उसे तारीख बदलने से पहले मैंने खत्म किया। मैंने ट्यूशन नहीं लिया। पूरी पढ़ाई स्कूल की मदद से खुद ही की।

विक्रमादित्य: मैंने बोर्ड का बहुत ज्यादा स्ट्रेस कभी नहीं लिया। वैसे, जब बोर्ड शुरू होने में कुछ ही दिन बचे थे तो कुछ टेंशन हुआ, लेकिन जब आप लगातार पढ़ाई करते हो तो परेशानी नहीं होती। मैंने क्लास नोट्स पर यकीन किया। अपने कंटेंट पर ज्यादा ध्यान दिया। मैंने भी शुरू से ही हर दिन 2 से 3 घंटे की पढ़ाई की। हां, रिविजन पर खूब सारा टाइम मैंने लगाया।

किताबें: सभी सब्जेक्ट्स के लिए क्लास नोट्स, एनसीईआरटी के दोनों पार्ट और एग्जेम्पलर
इनके अलावा: बीएसटी-सुभाष डे, अकाउंट्स- टी एस ग्रेवाल, मैक्रो इकनॉमिक्स: सचदेवा
मैथ्स: आर डी शर्मा, एनसीईआरटी
सुझाव: अकाउंट्स और इकनॉमिक्स सब्जेक्ट के लिए एनसीईआरटी की बुक के अलावा रेफ्रेंस बुक की भी जरूरत पड़ेगी।

साइंस के स्कोरर:
सिद्धांत: मुझे साइंस में हमेशा से दिलचस्पी रही है। बाकी सब्जेक्ट पर मेरा ध्यान ही नहीं जाता। 12वीं ही नहीं, मैंने तो 11वीं में भी हर दिन 7 घंटे की पढ़ाई की थी। साइंस में करियर बनाने के लिए मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। जब बोर्ड पेपर्स में दो महीने का वक्त बचा था तो पढ़ने का समय 2 से 3 घंटे और बढ़ गए थे।

उत्कर्ष: साइंस वालों को ज्यादा पढ़ना पड़ता है। मैं तो शुरू से ही 7 से 8 घंटे की पढ़ाई कर रहा था। जब बोर्ड एग्जाम्स नजदीक आए तो मैंने इसे और बढ़ा दिया। तब 12 से 14 घंटे तक पढ़ता था मैं।

क्षितिज: मैं 9वीं से ही 6 से 7 घंटे की पढ़ाई कर रहा था। 11वीं में आकर यह और भी बढ़ गया। 12वीं में तो स्कूल, कोचिंग के अलावा सेल्फ स्टडी भी अहम था। ऐसे में मैं पढ़ता ही रहता था, खेलने पर भी ध्यान नहीं जाता था।

ह्यूमेनिटीज के स्कोरर:
अनुष्का और शिवानी: दोनों मानती हैँ कि अच्छे अंक से आत्मविश्वास जगता है। ऐसे में दोनों ही बोर्ड में बहुत अच्छा करना चाहती थी। स्कूल के अलावा जो भी वक्त मिलता था, उसमें बस पढ़ाई करती थीं। यह 6 से 10 घंटा या इससे भी ज्यादा हो जाता था। उन्होंने बताया कि उनके दो पेपर लगातार हो गए थे तो वे एक पेपर देकर आईं और फिर पूरी रात जगकर रिविजन में लगीं रहीं। उन्होंने बताया कि ह्यूमेनिटीज में ज्यादा लिखना भी पड़ता है, इसलिए आपकी तैयारी पूरी होनी चाहिए।

बेहतर इंग्लिश से ही मिलेंगे बेहतर मार्क्स
आपके सब्जेक्ट्स चाहे कोई भी हों, अच्छी इंग्लिश के बिना अच्छे मार्क्स नहीं आ सकते। बेहतर अंक पाने के लिए बेहतर इंग्लिश जरूरी है ताकि आप जो जानते हैं, उसे सही से समझाकर पेपर लिख सकें। वैसे भी इंग्लिश इकलौता ऐसा सब्जेक्ट है जिसे सभी स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। इसमें ज्यादा मार्क्स पाना हमेशा से ही चुनौती रही है। वैसे, अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो मुश्किल आसान हो जाती है।
- इंग्लिश की तैयारी के लिए टेक्स्ट बुक के अलावा टेस्ट पेपर्स काफी अहम होते हैं। इसलिए टेस्ट पेपर्स जरूर हल करें।

एग्जाम हॉल में इंग्लिश का खास ध्यान:
1. अमूमन माना जाता है कि जवाब में एक लाइन की इंट्रो जरूर दें। इनके अलावा, ज्यादा नंबर वाले सवाल के जवाब में तीन चीजें जरूर होनी चाहिए: काउज, इफेक्ट और सजेशन। यानी ये तीन पैरा तो जरूरी है, इसके अलावा आप जो लिख पाएं।
2. जवाब के लिए सामान्य शब्दों का उपयोग ही करें। अगर पैराग्राफ राइटिंग कर रहे हों तो भी।
3. जो भी लिखें, वे आपके टैक्स्ट बुक से चुने हुए शब्दों और तथ्यों से संबंधित जरूर हों।
4. हेडिंग जरूर दें या कोई अहम बात हो तो उन्हें अंडरलाइन जरूर करें।

एग्जाम हॉल में दूसरे सब्जेक्ट्स के लिए काम की बात क्या हैं?
मंत्र जरूर याद रखें: ' पेपर जल्दी में करो, जल्दबाजी में नहीं। ' मतलब सीधा-सा है। हॉल में पेपर जल्दी लिखकर खत्म करें, लेकिन ऐसे नहीं कि गलती कर दें।
- 15 मिनट सवाल पढ़ने के लिए दिए जाते हैं। उनका उपयोग जरूर करें। किसे पहले हल करना है और किसे बाद में इसका निर्धारण कर क्वेश्चन पेपर पर नंबरिंग भी कर सकते हैं।
- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने किस सवाल को पहले बनाया और किसे बाद में। हां, यह कोशिश जरूर हो कि एक सेक्शन के सारे सवाल एक साथ ही हल किए जाएं।
- हाथ में क्वेश्चन पेपर हो तो जवाब के बारे में पहले अपने दिमाग में विजुअली जरूर सोच लें। यह नहीं कि कुछ सोचा ही नहीं, बस लिखना ही शुरू कर दिया।
- हर बड़े सवाल को हल करने से पहले 2 मिनट का वक्त लगा सकते हैं, जिसमें आप उस सवाल के लिए पूरी योजना बना सकते हैं।
- रिविजन के लिए टाइम जरूर निकाल लें। यह रिविजन हर सवाल के जवाब के बाद भी कर सकते हैं या फिर पूरा पेपर लिखने के बाद। इससे छोटी गलतियां, जिनसे नंबर कम हो सकते हैं, दूर हो जाएंगी। आयुष ने बताया कि अगर उन्होंने रिविजन नहीं किया होता तो उसके अंक 95% से भी कम हो जाते।
- साइंस या मैथ्स के पेपर में तो रिविजन बेहद जरूरी है। कई बार जवाब में आप यूनिट लिखना छोड़ देते हैं, इससे जवाब सही होने के बाद भी अंक कट जाते हैं।
- साइंस, मैथ्स या अकाउंट्स के पेपर लिख रहे हों तो दूसरे पेज पर जाते समय कुछ खास बातों का ख्याल रखें। कई बार सवाल हल करते हुए एक पेज से दूसरे पेज पर जाकर हम कोई स्टेप ही मिस कर देते हैं। ऐसे में हमेशा पिछले पेज पर जाकर जरूर देखें कि आपने कहीं स्टेप मिस तो नहीं किया।
- लैंग्वेज या ह्यूमेनिटीज के पेपर में हेडिंग जरूर दें। हेडिंग को कैपिटल लेटर्स में भी लिख सकते हैं। उन्हें अंडरलाइन तो जरूर कर दें।
- जल्दी लिखने के चक्कर में लिखावट बिगड़ जाए तो परेशान न हों, यह जरूर ध्यान रखें कि आपने जो लिखा है उसे जांचने वाला पढ़ सकता है।
- आपके उत्तर में जो भी अहम शब्द या पॉइंट हैं, उन्हें पेंसिल से अंडरलाइन कर दें।
- रफ वर्क हमेशा लास्ट पेज पर करें।

क्या बोर्ड की तैयारी में मोबाइल बाधा है?
इस पर ज्यादातर टॉपर्स का जवाब है कि ऐसा नहीं है। हां, मोबाइल अगर आपकी पढ़ाई में बाधा बन रहा है तो बिल्कुल आपको उससे दूर रहना चाहिए। कुछ टॉपर्स ने साफ कहा कि तैयारी के दौरान उनका मोबाइल से बिल्कुल भी सरोकार नहीं था तो कुछ ने कहा कि मोबाइल का यूज उन्होंने पढ़ाई के लिए किया, न कि सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहने के लिए। इनमें से सिर्फ एक टॉपर ही कुछ हद तक सोशल मीडिया पर ऐक्टिव थे। टॉपर्स का कहना है कि यह पैरंट्स से ज्यादा खुद का फैसला होना चाहिए कि मोबाइल का उपयोग हमें करना है या नहीं। वैसे, जहां तक इन टॉपर्स की बात है तो ज्यादातर को मोबाइल 12वीं के बाद यानी कॉलेज में ही मिला।

खेल के पिच पर पढ़ाई की बात मुमकिन है?
हमारे टॉपर्स में से 5 ऐसे थे, जिन्होंने बोर्ड की तैयारी के दौरान खेल से अपना सरोकार कम ही रखा। हां, बॉडी को ऐक्टिव रखने के लिए कभी-कभी लॉन टेनिस या टेबल टेनिस में उन्होंने रुचि जरूर दिखाई। क्षितिज ने बताया कि वह मेडिटेशन और वॉकिंग करते थे। वहीं, सिद्धांत ने बताया कि वह हर दिन योग करते थे। शिवानी और विक्रमादित्य ने कहा कि वे क्रिकेट खेलते रहे, लेकिन यह सब दिसंबर तक ही चला, उसके बाद बिल्कुल भी नहीं। चोट की आशंका जिसमें ज्यादा हो, उस खेल से दूरी रखने की हिदायत सभी ने दी।

क्या पढ़ाई के दौरान लाइट म्यूजिक सुन सकते हैं?
सभी टॉपर्स ने एकसुर में यह बात कही कि म्यूजिक के साथ पढ़ाई मुमकिन नहीं है। इससे पढ़ाई डिस्टर्ब होती है। इससे आपका प्रयास और ध्यान दोनों बंट जाता है। हां, पढ़ाई से जब मन उब जाए तो गाना सुनें या फिल्म देख लें। अनुष्का का कहना है कि वह एक दिन में बस एक टीवी शो देखती थी।

पढ़ाई से कितनी देर पर ब्रेक लें?
इसके लिए कोई निश्चित अवधि नहीं हो सकती। लगातार पढ़ाई के दौरान अमूमन आपको खुद महसूस होता है कि ब्रेक कब लेना है। यह 2 घंटे के बाद भी हो सकता है या 4 घंटे बाद भी। वैसे, ज्यादातर टॉपर्स ने कहा कि जब आप पढ़ने बैठें तो यह निश्चित कर लें कि इस चैप्टर या टॉपिक को याद करने या हल करने के बाद ही मैं ब्रेक लूंगा, यानी लक्ष्य निर्धारित कर ब्रेक तय करें। इससे पढ़ाई में आपका आत्मविश्वास भी जगता है।

बोर्ड की तैयारियों के अंतिम दौर में खाना-पीना कैसा रखें?
घर का खाना ही सबसे बेहतर है। अगर आप बाहर का खाना खाते हैं या फिर ज्यादा जंक फूड खाते हैं तो तबीयत खराब हो सकती है। अगर बोर्ड एग्जाम के करीब आपकी तबीयत बिगड़ जाती है तो पढ़ाई का बड़ा नुकसान हो सकता है।

बोर्ड की तैयारियों में क्या है टेस्ट पेपर्स का रोल?
टाइम मैनेजमेंट के लिए इससे ज्यादा हेल्पफुल दूसरा कुछ नहीं हो सकता। एग्जाम हॉल में यही अनुभव आपके काम आता है। तैयारी में इसका रोल सबसे अहम है। हालांकि इसके लिए यह जरूरी है कि आपके बेसिक्स क्लियर हों। इसके बाद जब आप टेस्ट पेपर्स सॉल्व करेंगे तो आत्मविश्वास भी जगेगा। यह ध्यान रखना जरूरी है कि टेस्ट पेपर्स उसी फॉर्मेट में हों, जैसे बोर्ड एग्जाम में मिलते हैं। टॉपर्स ने कहा कि बेहतर होगा कि ऐसे टेस्ट पेपर्स से प्रैक्टिस करें जिनमें सवाल इंग्लिश और हिंदी दोनों में हों। दरअसल, बोर्ड एग्जाम देते समय जब आप अचानक से एक साथ हिंदी और अंग्रेजी में सवाल देखते हैं तो अजीब-सा महसूस हो सकता है। पहले से ही आप अगर ऐसे पेपर्स देख चुके होंगे तो आपको अजीब नहीं लगेगा।

ग्रुप स्टडी से कोई फायदा होता है?
नहीं। सभी टॉपर्स ने एकसुर में ग्रुप स्टडी को नकार दिया। उनका कहना था कि ग्रुप में पढ़ाई बिल्कुल भी नहीं होती। पढ़ाई के अलावा सारी चीजें होती हैं। सुपर मंत्र: अगर कोई ग्रुप में आपके साथ पढ़ना चाहता है तो बेशरम बन जाओ और उससे कन्नी काट लो। हां, नोट्स का आदान-प्रदान मुमकिन है।

क्रश का क्या करें?
टॉपर्स ने कहा कि जब आपको अच्छे अंक लाने हैं तो इन सभी बातों पर ध्यान नहीं जाता। अगर किसी से गहरी दोस्ती है तो बोर्ड एग्जाम तक दूरी बना लें। अगर सामने वाला नहीं समझ रहा है तो उससे पूरी तरह से कट जाएं। हां, प्यार-मोहब्बत में होने वाली दिक्कतों को हैंडल कर सकते हैं तो परेशानी नहीं है, नहीं तो इसे बाय-बाय करना ही बेहतर है।

क्या दोस्तों का चुनाव भी सोच कर करें?
यह मुमकिन नहीं है। दोस्ती में कभी चुनाव नहीं होता। हां, पैरंट्स को यह लगता है कि कम अंक लाने वाले बच्चों से दोस्ती से पढ़ाई भी डिस्टर्ब हो जाती है, जबकि यह बिल्कुल भी सच नहीं है। यह तो और भी अच्छा है कि आपके दोस्तों के ग्रुप में अलग-अलग तरह के बच्चे हों।

ओएमआरसीट पर ध्यान देना कितना जरूरी?
एग्जाम हॉल में अगर आपने ओएमआर शीट भरने में गलती की तो यह मुमकिन है कि रिजल्ट आने में परेशानी हो। इसलिए इसकी प्रैक्टिस भी पहले ही कर लें।

नोट्स बनाएं या नहीं?
इस बात का फैसला व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। कॉमर्स वाले टॉपर्स का कहना था कि उन्होंने नोट्स बनाने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, वहीं साइंस वालों ने फिजिक्स और केमिस्ट्री के की-पॉइंट्स एक कॉपी में बना लिए थे और उन्हें रिवाइज करते थे। ह्यूमेनिटीज वालों ने कहा कि उन्होंने नोट्स बनाए थे। दरअसल, ह्यूमेनिटीज वालों को जवाब विस्तार से लिखने पड़ते हैं, इसलिए नोट्स उनके लिए जरूरी है।

क्या बचे हुए दो महीनों में तैयारी हो सकती है?
असंभव तो कुछ भी नहीं है। इसका जवाब हां में दिया जा सकता है, लेकिन यहां यह ध्यान रखना होगा कि अगर आपकी तैयारी 30 फीसदी है तो रात-दिन लगकर आप उसे 60 या 70 फीसदी तक पहुंचा सकते हैं। अगर आपको 50% अंक मिलते रहे हैं तो उसे बढ़ाकर आप 85% या उससे ऊपर भी पहुंचा सकते हैं। एक टॉपर ने अपने बैच के एक ऐसे ही लड़के के बारे में बताया। उस लड़के को पूरे साल स्कूल एग्जाम्स में 55 से 57 फीसदी अंक ही मिले थे। उसने दो महीने जी-जान लगाकर तैयारी की और बोर्ड में 87% अंक मिले। इसलिए अगर दिल से कोशिश की जाए और सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दिया जाए तो यह मुमकिन है।

दो महीने में तैयारी के लिए क्या करें:
1. सबसे पहले अगर बेसिक्स में प्रॉब्लम है तो उन्हें दूर करें। इसके लिए क्लास टीचर, ट्यूशन टीचर, कोचिंग, सीनियर्स, जिससे भी मदद मिले, जरूर लें।
2. किसी से क्लास नोट्स लें। इसमें फ्रेंड्स के अलावा क्लास टीचर आपकी मदद कर सकते हैं।
3. हर दिन पढ़ाई भी करें और रिवाइज भी।
4. आखिरी के 10 से 15 दिनों में टेस्ट पेपर को भी सॉल्व करें।
5. जैसे-जैसे तैयारी आगे बढ़ेगी, आत्मविश्वास भी जगेगा।

क्या प्री-बोर्ड के सवाल टफ होने चाहिए?

टॉपर्स ने कहा कि यह सच है कि प्री-बोर्ड के सवाल काफी टफ पूछे जाते हैं। इसके पीछे की वजह यह मानी जाती है कि प्री-बोर्ड में अच्छा करने के बाद बोर्ड में अगर टफ सवाल भी आएंगे तो परेशानी नहीं होगी। यह काफी हद तक सच भी है, लेकिन एक सचाई यह भी है कि बोर्ड में टफ सवालों के साथ सरल सवाल भी पूछे जाते हैं। इसलिए प्री-बोर्ड में अगर दोनों तरह के सवाल पूछे जाएं तो बेहतर होगा।

क्या तैयारियों के अंतिम दौर में क्रैश कोर्स और ट्यूशन मददगार हैं?
ये दोनों मददगार हैं, लेकिन इन पर पूरी तरह निर्भर रहना सही फैसला नहीं है। जब तक आप खुद से नहीं लगेंगे, अच्छे अंक नहीं मिल सकते। बोर्ड एग्जाम की तैयारी अगर आपने 12वीं में पहुंचने के साथ ही जोरशोर से शुरू कर दी थी तो अब बचे हुए 2 महीनों में खुद से पढ़ना सही रहेगा। अगर परेशानी ज्यादा है तो ट्यूशन ले सकते हैं। क्रैश कोर्स उनके लिए है जिन्होंने सालभर काफी कम पढ़ाई की है और जल्दी से पास होने लायक तैयारी करना चाहते हैं। वैसे, क्रैश कोर्स भी कितने मददगार होगा, यह आपकी पढ़ाई पर ही निर्भर करेगा।

क्या टॉपर बनने की प्लैनिंग हो सकती है?
टॉपर्स ने इस सवाल का जवाब 'न' में दिया। सभी ने साफ तौर पर कहा कि उन्हें अच्छे अंक आएंगे यह तो पता था, लेकिन यह बिल्कुल पता नहीं था कि कोई रैंक भी आएगी। अनुष्का ने बताया कि जब बोर्ड के पेपर हो गए तो उनके पापा ने पूछा था कि कैसा रहा? अनुष्का का जवाब था: अच्छा तो गया है, लेकिन पता नहीं कितना आएगा!

शानदार अंक पाने के 5 सूत्र क्या हैं?
1. हर दिन पढ़ाई और खुद पर भरोसा
2. टीचर्स का सम्मान
3. टेस्ट पेपर्स सॉल्व करना
4. एग्जाम हॉल में टेंशन फ्री रहना
5. एग्जाम हॉल में रिविजन जरूर करें

प्रैक्टिकल की तैयारी कैसे करें?
यह अहम होता है। ऐसे में इसकी तैयारी भी दिसंबर तक पूरी कर लेनी चाहिए। इंटरव्यू में कुछ भी पूछा जा सकता है, इसलिए बार-बार पढ़ाई करनी चाहिए। सिलेबस जरूर कंप्लीट हों। CBSE की साइट cbse.nic.in इस मामले में काफी मददगार है।

आपका स्वभाव आपको टॉपर बनाता है
इस पर क्षितिज ने एक दिलचस्प कहानी सुनाई। उसने कहा कि जहां वह कोचिंग करते थे, उनके साथ एक दूसरा लड़का भी था। कोचिंग में टेस्ट के दौरान उसकी रैंकिंग ऑल इंडिया लेवल पर 15 से 60 के बीच रहती थी। ज्यादातर टीचर्स और स्टूडेंट्स को लगता था कि आईआईटी में उस लड़के की रैंकिंग 100 के अंदर तो आ ही जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दरअसल, उसे घमंड हो गया था कि वह पढ़ने में बैच के दूसरे बच्चों से बहुत तेज है, उसकी बातों से भी ऐसा ही महसूस होता था। हुआ यह कि आईआईटी एग्जाम में जब शुरू के दो-तीन सवाल उससे हल नहीं हुए तो वह बहुत ज्यादा दबाव में आ गया और पेपर खराब कर बैठा। नतीजा यह हुआ कि उसकी रैंकिंग 3000 के भी पार चली गई।
तो सबक यह है कि खूब पढ़ना-लिखना तो जरूरी है ही, आपका स्वाभाव, आपका व्यवहार भी यह तय करता है कि आप टॉपर्स होंगे या नहीं। विनम्र बने रहना आपको टॉपर बना सकता है।

कॉम्पिटिशन के बारे में कहां से करें पता?
www.univariety.com
www.careers360.com
http://www.careerguidanceindia.com/
इनके अलावा जब आप किसी कोचिंग में पढ़ते हैं तो वे भी आपको अपडेट देते रहते हैं।

आयुष, सिद्धांत, विक्रमादित्य, क्षितिज, उत्कर्ष, अनुष्का और शिवानी (बाएं से दाएं)

सफलता के 7 सूत्रधार

Commerce
1. आयुष अग्रवाल
12th CBSE 2018
98.2% (डीपीएस, फरीदाबाद)
इकनॉमिक्स, मैथ्स, बीएसटी, अकांउटिंग, इंग्लिश
अब: SRCC से इकनॉमिक्स(ऑनर्स) कर रहे हैं
लक्ष्य: देश के बेहतरीन संस्थान से एमबीए

2. विक्रमादित्य त्यागी
12th CBSE 2018
98.6% (एमिटी इंटरनैशनल, नोएडा)
इकनॉमिक्स, मैथ्स, बीएसटी, अकांउटिंग, इंग्लिश
अब: SRCC से बीकॉम (ऑनर्स) कर रहे हैं
लक्ष्य: देश के बेहतरीन संस्थान से एमबीए

Science
3. सिद्धांत पांडा
12th CBSE 2018
98.4% (डीपीएस, आर के पुरम, नई दिल्ली)
विषय: फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स, कंप्यूटर साइंस, इंग्लिश
अब: कंप्यूटर इंजीनियरिंग, जॉर्जिया टेक यूनिवर्सिटी, USA
लक्ष्य: स्पेस साइंस में करियर बनाना

4. क्षितिज आनंद
12th CBSE 2018
99.4% (सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल, गाजियाबाद )
विषय: फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स, पेंटिंग, इंग्लिश
अब: IIT, खड़गपुर
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग
लक्ष्य: प्रसिद्ध ऑर्गेनाइजेशन CERN में काम करना

5. उत्कर्ष प्रकाश
12th CBSE 2018
98% (डीपीएस, गाजियाबाद)
सब्जेक्ट: फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स, इंग्लिश और इकनॉमिक्स
अब: IIT धारवाड़ में पढ़ रहे हैं
लक्ष्य: आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) में आगे बढ़ना।

Humanities
6. अनुष्का चंद्रा
12th CBSE 2018
99.6% (सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल, गाजियाबाद)
विषय: पॉलिटिकल साइंस, हिस्ट्री, इकनॉमिक्स, साइकॉलजी और इंग्लिश
अब: LSR से पॉलिटिकल साइंस से ग्रैजुएशन
लक्ष्य: UPSC क्रैक करना

7. शिवानी गोस्वामी
98.8% (सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल, गाजियाबाद)
12th CBSE 2018
विषय: पॉलिटिकल साइंस, हिस्ट्री, साइकॉलजी, जियो स्पेशल और इंग्लिश
अब: LSR से पॉलिटिक साइंस से ग्रैजुएशन
लक्ष्य: इंटरनैशनल रिलेशन पर काम करना

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बीमारी कुछ और हारी...

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'इंपेला हार्ट पंप' की मदद से देश में पहली बार प्रोटेक्टेड एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग प्रसीजर को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। डॉक्टर का दावा है कि यह डिवाइस हार्ट में ब्लॉकेज आदि को दूर करने के लिए वरदान साबित होने वाला है। आइए जानते हैं... 'इंपेला हार्ट पंप' की मदद से देश में पहली बार प्रोटेक्टेड एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग प्रसीजर को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। डॉक्टर का दावा है कि यह डिवाइस हार्ट में ब्लॉकेज आदि को दूर करने के लिए वरदान साबित होने वाला है। आइए जानते हैं...

हेल्‍थ कैलंडर : जैसा मौसम हो वैसा ही भोजन होना चाहिए

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वक्‍त की भागती रफ्तार के साथ कदमताल करने के लिए जरूरी है अच्‍छी सेहत और उसके लिए हमें कुछ खास बातों का ख्‍याल रखना चाहिए। आइए आपको बताते हैं कि क्‍या हैं वो खास चीजें? जिनका आपको रखना है ख्‍याल। वक्‍त की भागती रफ्तार के साथ कदमताल करने के लिए जरूरी है अच्‍छी सेहत और उसके लिए हमें कुछ खास बातों का ख्‍याल रखना चाहिए। आइए आपको बताते हैं कि क्‍या हैं वो खास चीजें? जिनका आपको रखना है ख्‍याल।

शरीर के हर दर्द के इलाज के बारे में जानिए सबकुछ

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हम अक्‍सर शरीर में होने वाले छोटे-मोटे दर्द को नजरअंदाज कर देते हैं या फिर पेन किलर खा लेते हैं। अगर आप भी ऐसा करते हैं तो ऐसा न करें, डॉक्‍टर के परामर्श के अनुसार ही दवा लें। ताकि भविष्‍य में होने वाली परेशानी से बच सकें। हम अक्‍सर शरीर में होने वाले छोटे-मोटे दर्द को नजरअंदाज कर देते हैं या फिर पेन किलर खा लेते हैं। अगर आप भी ऐसा करते हैं तो ऐसा न करें, डॉक्‍टर के परामर्श के अनुसार ही दवा लें। ताकि भविष्‍य में होने वाली परेशानी से बच सकें।

हेल्थ के लिए खतरनाक है ग्लूटन, जानें नुकसान से लेकर बचाव तक सबकुछ

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क्या आप जानते हैं कि ग्लूटन आपकी सेहत के लिए खतरनाक है? क्या आप जानते हैं कि ग्लूटन होता क्या है और यह क्यों खतरनाक है? आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ:क्या आप जानते हैं कि ग्लूटन आपकी सेहत के लिए खतरनाक है? क्या आप जानते हैं कि ग्लूटन होता क्या है और यह क्यों खतरनाक है? आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ:

बिना डॉक्टर की सलाह के दवा लेने की कभी न करें भूल, भुगतना पड़ सकता है बुरा अंजाम

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रोग के इलाज के लिए दवाओं का उपयोग किया जाता है, लेकिन अगर दवाओं के उपयोग में सजग न रहें तो ये दर्द बढ़ाने का भी काम कर सकती हैं। दवा के मामले में किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए, एक्सपर्ट से बात कर जानकारी दे रहे हैं प्रसन्न और लोकेश के. भारती

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
डॉ. सुरंजीत चटर्जी, इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट, अपोलो
डॉ. प्रसन्ना भट्ट सीनियर कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक्स
डॉ. आनंद के. पाण्डेय
एचओडी, कार्डियॉलजी, मैक्स हॉस्पिटल
डॉ. एम. वली इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट, सर गंगाराम
डॉ. वरुण वर्मा, सीनियर नेफ्रॉलजिस्ट, फोर्टिस हॉस्पिटल

32 साल के निरंजन शर्मा को जब भी सामान्य दर्द की शिकायत होती थी, वह पेन किलर ले लेते थे। बगैर किसी डॉक्टर की सलाह के वह लगातार 5-6 बरसों तक पेनकिलर लेते रहे। अचानक जब उनकी तबीयत काफी खराब हुई तो उन्हें हॉस्पिटल में ऐडमिट कराया गया। जांच के बाद पता चला कि किडनी में परेशानी है। डॉक्टरों ने बताया कि लंबे समय तक पेनकिलर खाने की वजह से उनकी किडनी पर बुरा असर पड़ा है। अब उनका इलाज चल रहा है, लेकिन बीमारी सामान्य दर्द से बड़ी हो गई है।

5 साल के आदित्य को दो साल पहले तेज बुखार हुआ था। उस समय डॉक्टर ने कोई दवा लिखी। बाद में जब भी उसे बुखार होता, पैरंट्स डॉक्टर से बगैर पूछे वही दवा उसे दे देते। एक बार बुखार आया तो ठीक ही नहीं हुआ, उलटे समस्या काफी बढ़ गई। डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह इन्फेक्शन से हु्ए बुखार की दवा ही हर बार दे रहे थे। बहरहाल, सही इलाज मिलने से किसी तरह आदित्य की जान तो बच गई, लेकिन गलत दवाओं के इस्तेमाल से वह मासूम कई गंभीर बीमारियों का शिकार हो गया। पैरंट्स की जेब पर भारी बोझ पड़ा, सो अलग।

25 साल के सनी को जब भी बुखार, सर्दी-जुकाम या कोई और परेशानी होती तो वह ऐंटीबायॉटिक ले लेते थे। कई बरसों तक वह लगातार ऐसा करते रहे। 2 साल पहले उनकी तबीयत काफी खराब हो गई। उन्हें घर के पास ही एक छोटे-से नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें काफी ऐंटीबायॉटिक दे दी। वहां उनकी हालत खराब होने लगी तो उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया। यहां इलाज के दौरान डॉक्टरों ने बताया कि जरूरत से ज्यादा ऐंटीबायॉटिक लेने से उनके शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजाोर हो गई है। ऐसे में लंबे इलाज के बाद वह सामान्य हो पाए।

ये तो महज कुछ उदाहरण हैं। ऐसे तमाम लोग आपको अपने आसपास मिल जाएंगे जिन्हें दवाओं के साइड इफेक्ट्स से गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ा है। अक्सर इससे लोग बड़ी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। दवाएं दर्द मिटाने और बीमारियों को दूर करने के लिए होती हैं, लेकिन बगैर डॉक्टर की सलाह के या सही मात्रा में न ली जाएं या फिर गलत दवाइयां ले ली जाएं तो ये बीमारियों को दूर करने की बजाय कई नई और गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती हैं। दवा लेने से पहले और इस्तेमाल करने के दौरान कुछ खास बातों का ध्यान रखकर आप खुद को दवाओें के साइड इफेक्ट्स से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं।



खुद ही न बनें डॉक्टर
सेल्फ मेडिकेशन अच्छी बात नहीं है। डॉक्टर भी बीमार पड़ने पर अक्सर दूसरे डॉक्टर की सलाह जरूर लेता है। आमतौर पर छोटी-मोटी शारीरिक परेशानी जैसे कि बुखार, पेट दर्द, उलटी, दस्त, सर्दी-जुकाम आदि होने पर लोग खुद या फिर किसी से पूछकर दवा ले लेते हैं। यहां तक कि लक्षण बताकर दवा की दुकान से भी दवा लेकर खा लेते हैं। बुखार के लिए पैरासिटामोल, दर्द के लिए कोई पेनकिलर, सर्दी-जुकाम के लिए ऐंटीबायॉटिक दवाओं का इस्तेमाल भारत में बेहद आम है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। सामान्य-सी नजर आने वाली बीमारी के पीछे ऐसे कारण हो सकते हैं जिनके बारे में आपको नहीं पता। जैसे सरदर्द थकावट या तनाव की वजह से भी हो सकती है, लेकिन यह ब्रेन हैमरेज से पहले की स्थिति भी हो सकता है। सीने में दर्द का हमेशा यह मतलब नहीं होता कि हार्ट अटैक ही होगा, यह गैस की परेशानी भी हो सकती है। पेट में दर्द कुछ गलत खाने-पीने से हो सकता है तो किडनी की समस्या होने पर भी हो सकता है या फिर पथरी की स्थिति में भी। ऐसे में समस्या की वजह जाने बगैर दवा के इस्तेमाल से फायदे से ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है। परेशानी किस वजह से हो रही है, इसके बारे में सही तरीके से कोई डॉक्टर ही बता सकता है इसलिए सबसे बेहतर है कि परेशानी चाहे छोटी ही क्यों न हो, हमेशा डॉक्टर से सलाह लेकर ही दवा लें। और हां, डॉक्टर भी क्वॉलिफाइड होना चाहिए।

संभलकर लें दवाइयां, नुकसान बहुत हैं
सर्दी-जुकाम या दस्त या जख्मों की स्थिति में डॉक्टर से बिना पूछे ऐंटीबायॉटिक न लें और डॉक्टर ने जितनी डोज़ बताई है, उतनी ही लें। न उससे ज्यादा, न कम। कोर्स बीच में छोड़ देने यानी पूरी डोज़ न लेने पर भी ऐंटीबायॉटिक शरीर के लिए काफी हानिकारक साबित हो सकती है। इससे आपकी इम्यूनिटी कम हो सकती है। शरीर के लिए उपयोगी बैक्टीरिया काम करना बंद कर सकते हैं। यहां एक बात ध्यान देने लायक है कि बॉडी की अपनी भी इम्यूनिटी होती है। इसलिए जब बीमार पड़ें तो फौरन ही ऐंटीबायॉटिक लेना शुरू न करें। शुरू में इंफेक्शन से लड़ने के लिए शरीर पर भरोसा करना चाहिए। जब शरीर इंफेक्शन से छुटकारा लेने में खुद सफल न हो पाए, तब ही डॉक्टर को भी ऐंटीबायॉटिक की सलाह देनी चाहिए।

ऐंटीबायॉटिक के नुकसान
- हमारे शरीर में खरबों बैक्टीरिया रहते हैं। अमूमन हमें इनसे परेशानी नहीं होती। हां, कभी-कभी ये शरीर के किसी खास भाग में पहुंच जाते हैं तो समस्या होती है।
- जब हम बार-बार ऐंटीबायॉटिक खाते हैं तो कई बैक्टीरिया इन ऐंटीबायॉटिक्स के लिए रेजिस्टेंस डिवेलर कर लेते हैं। फिर इन पर इस ऐंटीबायॉटिक का असर नहीं होता।
- ऐंटीबायॉटिक के अनियंत्रित उपयोग का ही परिणाम है कि एमॉक्सिलिसीन (Amoxicilline) भारत में अब बैक्टीरिया से फैलने वाले बीमारी में प्रभावी नहीं रहा जबकि पश्चिमी देशों में यह आज भी खूब कारगर है। हमारे देश में 40-50 साल पहले तक यह दवा खूब प्रभावी थी। यह तो एक उदाहरण है, कई दूसरी मेडिसिन का भी असर अब कम होने लगा है।

कौन लिखेगा ऐंटीबायॉटिक
जब भी डॉक्टर के पास जाएं तो ध्यान में रखें कि जो डॉक्टर जिस फील्ड का एक्सपर्ट है, वह उन्हीं रोगों के लिए ऐंटीबायॉटिक लिख सकता है। मसलन: ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर आंख, कान और गला से संबंधित इंफेक्शन के लिए ऐंटीबायॉटिक लिख सकते हैं। अगर किसी को किडनी से जुड़ा इंफेक्शन है तो उसके लिए नेफ्रॉलजिस्ट सही डॉक्टर है। टीबी इंफेक्शन के लिए टीबी के स्पेशलिस्ट डॉक्टर ही सही ऐंटीबायॉटिक्स लिख सकते हैं। वहीं विदेशों में और अपने देश के कुछ बड़े प्राइवेट अस्पतालों में पावरफुल ऐंटीबायॉटिक लिखने के लिए MBBS/ MD/ DM जैसी डिग्री वाले डॉक्टरों को ID (इंफेक्शंस डिजीज) एक्सपर्ट से इनकी अनुमति लेनी पड़ती है।
पेनकिलर का दर्द

पेनकिलर का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल घातक हो सकता है। एक अनुमान के मुताबिक एक हजार से ज्यादा पेनकिलर टैब्लेट खा चुके इंसान को किडनी की समस्या हो सकती है। पेनकिलर लगातार लेते रहने से किडनी और लिवर पर बुरा असर पड़ सकता है। कुछ मामलों में इस वजह से पेट में ब्लीडिंग भी हो सकती है। इससे लिवर में पैदा होने वाले एंजाइम को लेकर समस्या हो सकती है।

कफ सीरप से नींद और नशा
कफ और खांसी की स्थिति में लोग डॉक्टर से बिना पूछे कफ सीरप ले लेते हैं, इससे बचना चाहिए। ज्यादातर कफ सीरप में नींद लाने वाले पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसके ज्यादा इस्तेमाल से नींद और नशे जैसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। अमूमन कफ सीरप में 5 से 15 फीसदी तक अल्कोहल मौजूद रहता है। कई लोग इसे इतना लेते हैं कि एडिक्ट हो जाते हैं।

एसिडिटी की दवा भी घातक
एसिडिटी होने की स्थिति में कई तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इन दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल शरीर के अंदर जरूरी एसिड की मात्रा को कम कर सकता है। इससे खाना पचने में दिक्कत होती है और इम्यून सिस्टम के लिए भी समस्या पैदा हो सकती है।

बर्थ कंट्रोल पिल्स का पंगा
गर्भनिरोधक गोलियों को लंबे समय तक ज्यादा मात्रा और बार-बार लेने से समस्या हो सकती है। यहां तक कि कई बार इससे गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए खुद से ऐसी दवाइयां न लें। अगर डॉक्टदर के कहने पर ले रहे हैं तो समय-समय डॉक्टर से सलाह लेते रहें।

परेशानियों से बचाव के लिए क्या करें
मेडिसिन की डोज ज्यादा नहीं लें डॉक्टर जो डोज लेने के लिए कहे, उतनी ही मात्रा में दवा लें। ज्यादा मात्रा में दवा लेने का मतलब यह नहीं है कि आपकी परेशानी जल्द ठीक हो जाएगी, बल्कि नुकसान ज्यादा होगा। ज्यादा मात्रा में दवा का इस्तेमाल शरीर के लिए काफी नुकसानदेह है।

साइड इफेक्ट्स की रखें जानकारी
आप जो भी दवा लेते हैं, उसके साइड इफेक्ट के बारे में डॉक्टर से जरूर पता करें। इसकी जानकारी दवा के रैपर या बॉटल पर लिखी होती है। कुछ लोगों को कई मेडिसिन से एलर्जी होती है। ऐसे में सावधानी पूर्वक मेडिसिन का इस्तेमाल करना चाहिए। जब डॉक्टर के पास जाएं तो उन्हें बताएं कि आपको किन दवाओं से एलर्जी है।


क्या आप जानते हैं...
एक्सपायरी डेट का चक्कर
आमतौर पर दवा कंपनी एक्सपायरी डेट दवा के असल में खराब होने से कुछ पहले की प्रिंट करती है। ऐसे में अगर कभी आपने हाल ही (10 से 20 दिन) में एक्सपायर हुई कोई दवा गलती से खा ली है तो इसका आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने की कम आशंका होती है। लेकिन इंसुलिन जैसी जीवनरक्षक दवाएं एक्सपायरी डेट के बाद खाने पर जानलेवा भी साबित हो सकती हैं। कोशिश करें कि एक्सपायरी डेट वाली दवाओं का इस्तेमाल न करें। अगर गलती से कभी ऐसा हो जाए तो किसी भी तरह की परेशानी से बचने के लिए फौरन डॉक्टर से मिलें।

पैरासिटामोल सेफ,लेकिन...
पैरासिटामोल को बाकी मेडिसिन की तुलना में सबसे सेफ माना जाता है, लेकिन इस मेडिसिन की ओवरडोज भी मुसीबत का सबब बन सकती है। अमूमन ऐसी दवाओं पर डोज लिखी होती है, उसी के अनुसार इन्हें लें। 500mg से ज्यादा और दिनभर में 2000mg से ज्यादा मात्रा में पैरासिटामोल लेने पर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

कब माना जाए ओवरडोज
कोई भी मेडिसिन डॉक्टर के बताए समय या मात्रा से ज्यादा लेना ओवरडोज की कैटिगरी में आता है। उदाहरण के तौर पर अगर कोई दवा एक हफ्ते खाने के लिए दी गई है तो एक हफ्ते बाद उसे बंद कर देना चाहिए। अगर उसके बाद भी दो-तीन दिन या उससे ज्यादा दिनों तक जारी रखते हैं तो उसे ओवरडोज माना जाएगा। इसी तरह डॉक्टर जितनी मात्रा में मेडिसिन लेने को बोलें, उससे ज्यादा मात्रा में उसे न लें।

मेडिसिन के साइड इफेक्ट्स
- कब्ज
- पेट खराब होना, जी मिचलाना
- सिरदर्द
- चक्कर आना
- भूख न लगना
- डायरिया
- सिरदर्द
- चक्कर आना
- नींद न आना घबराहट और बेचैनी
- आलस और सुस्ती
- गला और मुंह सूखना
- सेक्शुअल प्रॉब्लम यानी
यौन समस्याएं

समझें शब्दावली
AC: खाने से पहले, PC: खाने के बाद
OD: दिन में एक बार BD/BDS: दिन में दो बार
TD/TDS: दिन में तीन बार
QD/QDS: दिन में चार बार
Tab: टैबलेट
Cap: कैप्सूल
Amp: इंजेक्शन रूप में
Ad Lib: जितनी जरूरत हो, उतना ही लें
G or Gm: ग्राम
Gtt: ड्रॉप्स
Mg: मिलिग्राम
Ml: मिलीलीटर
PO: मुंह से

साइड इफेक्ट्स हो रहे हैं, यह कैसे पता लगेगा?
आमतौर पर मेडिसिन के साइड इफेक्ट्स होने पर शरीर पर दाने निकल आते हैं। इसके अलावा, आलस और सुस्ती, डायरिया, गला-मुंह सूखना, घबराहट और बेचैनी जैसे लक्षण भी दवाओं के साइड इफेक्ट्स के हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में फौरन अपने डॉक्टर से मिलना सही होगा। यहां एक बात का और ध्यान रखें कि ऐसे लक्षण दूसरी बीमारियों के भी हो सकते हैं। इसलिए डॉक्टर की राय अहम है।


बच्चों के मामले में बरतें ज्यादा सावधानी
- बच्चे हों या बड़े, सभी में बीमारियों की सबसे बड़ी वजह वायरस होते हैं।
- सीधे कहें तो आम बीमारियों में 10 में से 7-8 मामले वायरस की ही देन होते हैं। मसलन, सर्दी, खांसी, बुखार आदि।
- आमतौर पर ऐसे में बच्चों को ऐंटीबायॉटिक देने का चलन है, लेकिन यह काम नहीं करता।
- दरअसल, अगर मामला वायरस का है तो ऐंटीबायॉटिक देने का कोई मतलब ही नहीं है। यह वायरस को खत्म नहीं कर सकता।
- डॉक्टर की सलाह है कि 3 साल से बड़े किसी बच्चे को बुखार हो गया है तो 2 से 3 दिनों तक पैरासिटामॉल दे सकते हैं।
- कुछ दवाइयों के लेबल पर उम्र और वजन के हिसाब से डोज लिखी होती है। इनका उपयोग हम अमूमन घरों में करते भी हैं, मसलन Crocin या Calpol, लेकिन डोज का ध्यान रखें। लेबल पर डोज लिखने का मतलब है कि लोग छोटी परेशानियों के लिए डॉक्टर के चक्कर कम लगाए। अगर बुखार 2-3 दिनों में ठीक नहीं हुआ तो डॉक्टर से जरूर मिलना चाहिए।
- अगर किसी दवाई पर डोज नहीं लिखी है तो इसका सीधा-सा मतलब है कि वह दवाई डॉक्टर से पूछकर ही लेनी चाहिए।
- अगर खांसी आदि है तो जरूरी नहीं कि दवाई ही दें। तुलसी पत्तों का रस और शहद मिलाकर दे सकते हैं या कोई अन्य प्रभावी घरेलू उपाय कर सकते हैं।
- अगर समस्या नवजात (एक से दो साल के बच्चे जो तकलीफ बता नहीं सकते) को है तो छोटी परेशानी में भी डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
- बच्चे जल्दी ठीक हो जाएं इसलिए कई डॉक्टर भी ऐंटीबायॉटिक खूब लिखते हैं। कई बार तो पैरंट्स खुद ही डॉक्टर पर ऐंटीबायॉटिक लिखने का दबाव बनाते हैं। यह सही नहीं है। बेवजह ऐंटीबायॉटिक का सेवन स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।

अहम सवाल और उनके जवाब
क्या कभी भी डॉक्टर की सलाह के बगैर दवा नहीं ले सकते?
बिल्कुल। अगर आसपास कोई बड़ा डॉक्टर न हो तो किसी नजदीकी डॉक्टर से प्राइमरी एडवाइस ले लें। ऐसा भी न हो तो होम्योपैथ या आयुर्वेद के डॉक्टर का सहारा ले सकते हैं।
जिस बीमारी की (बुखार, पेट खराब, खांसी, पेट दर्द) डॉक्टर ने एक बार दवा लिख दी है, क्या वह दोबारा इस्तेमाल नहीं कर सकते?
नहीं करनी चाहिए। बुखार कई तरह का होता है। वहीं पेटदर्द, सिर दर्द या दूसरी शारीरिक परेशानियों के भी कारण अलग-अलग हो सकते हैं। ऐसे में उस बीमारी के लिए पहले लिखी गई दवा लेने की गलती न करें।
क्या दवा दुकानदार से पूछकर दवा ली जा सकती है?
दवा दुकान वाले ने न मेडिकल की पढ़ाई की होती है और न ही वे बीमारियों और उनके इलाज के एक्सपर्ट होते हैं। लोगों को मेडिसिन देने की वजह से वह अनुमान या अनुभव के आधार पर दवा लेने की सलाह देता है, जो जानलेवा भी साबित हो सकता है। अमूमन ऐसा भी देखा गया है कि केमिस्ट किसी भी तरह की समस्या के लिए ऐंटीबायॉटिक दे देते हैं। इसलिए भी बचना जरूरी है।
दवा कब लेनी चाहिए, खाली पेट या खाने
के बाद?
डॉक्टर जिस समय दवा लेने की सलाह दें, उसी समय लेना बेहतर होगा। जिन दवा से पेट में तकलीफ हो सकती है, उन्हें खाना खाने के बाद लेने की सलाह दी जाती है। जिनका शरीर में फौरन घुलना फायदेमंद होता है, उन्हें खाली पेट लेने की सलाह दी जाती है, लेकिन इसके बारे में फैसला डॉक्टर ही कर सकते हैं।
क्या ऐंटीबायॉटिक और पेनकिलर बार-बार और लगातार लेने से सेक्स लाइफ पर कोई असर पड़ता है?
ऐंटीबायॉटिक और पेनकिलर बार-बार लेने से सीधे सेक्स लाइफ पर कोई असर नहीं होता। हां, यह मुमकिन है कि लगातार ऐंटीबायॉटिक्स लेने से कुछ वक्त के लिए कमजोरी महसूस हो। इस कमजोरी की वजह से कभी-कभी इंसान की सेक्स लाइफ पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। वैसे कुछ दवाइयां सेक्स लाइफ को डिस्टर्ब कर सकती हैं। इनमें बीपी की दवाइयां, मिर्गी के इलाज में दी जाने वाली दवाइयां, डिप्रेशन की दवाएं, ऐंटी एंड्रोजन (पुरुष हॉर्मोन कम करने वाली दवाइयां) खासतौर पर शामिल हैं। कभी-कभी कुछ आयुर्वेदिक दवाइयां भी इंसान की कामेच्छा पर विपरीत असर डाल सकती हैं।
दवा बिस्कुट खाकर ले सकते हैं?
कोशिश करनी चाहिए कि पूरा खाना खाने के बाद ही दवा लें। लेकिन अगर मरीज कुछ खाने में असमर्थ हो तो बिस्कुट या ब्रेड खाकर दवा ले सकते हैं।
दवा चाय के साथ ले सकते हैं?
कोई भी दवा लेने के लिए सादा पानी सबसे बेहतर विकल्प है। डॉक्टर अमूमन यह भी बता देते हैं कि दवा को सामान्य पानी या गुनगुने पानी के साथ लेना है। दरअसल, चाय या कॉफी जैसी चीजें दवा की घुलनशीलता को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए दवा इनके साथ लेने से बचें।

खाना खाने के कितनी देर या खाने से कितनी देर पहले लें दवा?
दवा लेने की दो स्थिति होती है: खाली पेट (एंप्टी स्टोमक) और खाना खाने के बाद। खाली पेट दवा लेने के लिए इसलिए कही जाती है, ताकि शरीर उसका अवशोषण सही ढंग से करे। अगर डॉक्टर ने किसी पेशंट को खाली पेट दवा लेने के लिए कहा है तो कम से कम 15 से 20 मिनट पहले दवा जरूर लें। जहां तक खाने के बाद की बात है तो जब पेट पूरा भरा हो उस समय दवा लेने से उसका पूरा अवशोषण नहीं हो पाता। इसलिए खाने और दवा लेने में आधा घंटा से एक घंटे का अंतर जरूर रखें। वैसे यहां ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि खाना और दवा लेने के अंतराल का निर्धारण डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही करें, साथ ही यह दवा किस तरह की है इस पर निर्भर करता है।

इन दवाओं के भी हैं साइड इफेक्ट्स
आयुर्वेदिक दवाएं
सामान्यतौर पर आयुर्वेदिक दवाओं को सबसे सेफ माना जाता है क्योंकि इसमें जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन जरूरत से ज्यादा मात्रा में लेने पर इनके भी साइड इफेक्ट्स हैं। आयुर्वेदिक दवाओं के ज्यादा इस्तेमाल पर सूजन, एलर्जी, पाचन तंत्र में परेशानी, लिवर और पेट को नुकसान जैसी कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

होम्योपैथिक दवाएं
लोगों में ऐसी धारणा है कि होम्योपैथिक दवाओं का साइड इफेक्ट नहीं होता, लेकिन डॉक्टर की तरफ से बताई गई समयसीमा से ज्यादा समय तक अगर इनका इस्तेमाल किया जाए तो इसके भी नुकसान हैं। दवा के नुकसान करने पर दाने निकल आते हैं। ऐसे लक्षण दिखने पर Nux V30 का इस्तेमाल करना फायदेमंद साबित हो सकता है, लेकिन इसके लिए भी डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

लंबे समय तक चलनेवाली दवाएं
किसी भी दवा को जरूरी न होने पर ज्यादा समय तक नहीं लेना चाहिए, लेकिन कैंसर, अर्थराइटिस, एड्स जैसी बीमारियों के होने पर मजबूरी में लंबे समय तक मेडिसिन लेनी पड़ सकती हैं। ये जीवनरक्षक दवाएं जान बचाने का काम तो करती है, लेकिन लंबे समय तक लेने पर इनके साइड इफेक्ट्स भी होते हैं। इनके इस्तेमाल के बाद अक्सर पेटदर्द, सरदर्द, चक्कर आना, जी मिचलाना, उलटी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा बाल उड़ने जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में आप डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं कि कैसे नुकसान को कम से कम किया जाए।

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वर्ल्ड कैंसर डे: कैंसर को करें किल, बचाव और इलाज की पूरी जानकारी

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कैंसर को करें किल
कैंसर का नाम पहले कभी-कभी सुनने को मिलता था, लेकिन अब बहुतों को यह अपने शिकंजे में ले रहा है। हालांकि अच्छी बात यह है कि अब इलाज पहले से ज्यादा सटीक, आसान और सस्ता हो गया है। एक्सपर्ट्स से बात करके कैंसर से बचाव और सही इलाज के बारे में जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह...

वर्ल्ड कैंसर डे 4 फरवरी
एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. ललित कुमार, प्रफेसर और हेड, मेडिकल ऑन्कोलजी, एम्स
डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलजी, धर्मशिला कैंसर हॉस्पिटल
डॉ. जी. बी. शर्मा, सीनियर कंसल्टंट, मेडिकल ऑन्कोलजी, ऐक्शन कैंसर हॉस्पिटल
डॉ. सुरेंद्र के. डबास, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलजी, बी. एल. कपूर हॉस्पिटल
डॉ. अभिषेक बंसल, कंसल्टंट, इंटरवेंशनल रेडियॉलजी, राजीव गांधी कैंसर हॉस्पिटल

क्या है कैंसर?
हमारे शरीर के सभी अंग सेल से बने होते हैं। ये सेल्स लगातार डिवाइड होते रहते हैं लेकिन कई बार ये बेकाबू होकर बंटने लगते हैं तो शरीर में गांठ (ट्यूमर) बन जाती है। यह गांठ 2 तरह की हो सकती हैं: बिनाइन और मैलिग्नेंट। बिनाइन गाठ खतरनाक नहीं होती, जबकि मैलिग्नेंट गांठ कैंसर में बदल जाती है।

कब जाएं डॉक्टर के पास
शरीर में कोई भी असामान्य लक्षण दिखने पर फौरन डॉक्टर को दिखाएं। ये लक्षण हो सकते हैं:
- अगर सोने और जागने का वक्त बदल गया हो
- मुंह खोलने, चबाने या निगलने में दिक्कत हो रही हो
- लगातार कब्ज रहती हो या 3 हफ्ते या ज्यादा से एसिडिटी लगातार बनी हुई हो (हर एसिडिटी कैंसर नहीं होती, पर यह एक लक्षण हो सकता है)
- 3 हफ्ते से ज्यादा लंबे समय से खांसी हो
- मुंह में या फिर शरीर में कहीं भी जख्म हो और 3 हफ्ते से ज्यादा वक्त से भरा नहीं हो
- बार-बार बुखार हो रहा हो या सभी इलाज के बाद भी बुखार 3 हफ्ते तक ठीक न हो रहा हो
- हीमोग्लोबिन यानी एचबी बेहद कम हो जाना
- शरीर में कहीं भी गांठ हो और वह बढ़ रही हो (दर्द न हो तो भी दिखाएं क्योंकि कैंसर में दर्द बहुत बाद की स्टेज में होता है)
- बलगम, पेशाब, शौच, इंटरकोर्स या पीरियड्स के बीच में बार-बार खून आना
- आवाज़ में बदलाव आ रहा हो, आवाज़ भारी हो रही हो
नोट: ये लक्षण दिखने के बाद भी 90 फीसदी चांस हैं कि कैंसर न हो लेकिन अगर कैंसर होगा तो शुरुआती स्टेज में बीमारी की जानकारी मिल जाए तो बेहतर इलाज मुमकिन है।
किस डॉक्टर को दिखाएं ?
शुरुआती जांच के लिए फैमिली डॉक्टर के पास भी जा सकते हैं लेकिन कैंसर का इलाज उसी डॉक्टर से कराएं, जिसके पास डीएम ऑन्कोलजी (जो एमडी के आगे की डिग्री है) या एम. सीएच. सर्जिकल ऑन्कोलजी (जोकि एमएस से आगे की डिग्री है) की डिग्री हो।

कितनी स्टेज होती हैं कैंसर की ?
कैंसर की 4 स्टेज होती हैं
स्टेज 1: यह शुरुआती स्टेज है और कैंसर जिस अंग का है, उसी में रहता है। साइज करीब 2 इंच तक होता है।
स्टेज 2: यह भी शुरुआती स्टेज है। कैंसर अगर उसी अंग में हो लेकिन साइज बढ़कर 5 इंच तक हो गया हो तो इस स्टेज का कैंसर कहलाएगा। स्टेज 1 और 2 में इलाज के बहुत अच्छे आसार होते हैं।
स्टेज 3: इसे इंटरमीडिएट स्टेज कहते हैं। इसमें कैंसर अंग विशेष से निकलकर आसपास के अंगों तक फैल जाता है। इलाज मुश्किल होता है लेकिन संभावनाएं रहती हैं।
स्टेज 4: शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल चुका है। ऐसे में आमतौर पर इलाज मुमकिन नहीं होता।

कैंसर का इलाज
कैंसर के इलाज में आमतौर पर 3 तरीके इस्तेमाल होते हैं: सर्जरी, कीमोथेरपी और रेडियोथेरपी लेकिन अब इंटरवेंशनल ऑन्कॉलजी का भी असर काफी अच्छा देखा जा रहा है।
1. सर्जरी: यह कैंसर का बेस्ट इलाज है। यह गलतफहमी है कि चाकू लगने से कैंसर फैलता है। सर्जरी में कामयाबी के आसार बहुत ज्यादा और रिस्क लगभग जीरो होता है।
2. कीमोथेरपी:इसमें मरीज को दवाएं दी जाती हैं, जो कैंसर सेल को मारती हैं। दिक्कत यह है कि ये कैंसर के साथ-साथ नॉर्मल सेल को भी मार देती हैं। इसके साइड इफेक्ट्स जैसे कि बाल झड़ना, उलटी होना, कमजोरी होना आदि भी काफी होते हैं। कीमोथेरपी 3-3 हफ्ते के अंतराल पर दी जाती है। कितनी कीमो दी जाएंगी, यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है।
3. रेडियोथेरपी:कैंसर के सेल मारने के लिए मशीन की मदद से ट्यूमर पर कंट्रोल्ड रेडिएशन डाला जाता है। एक दिन में करीब 15-20 मिनट लगते हैं और हफ्ते में 5 दिन तक रेडियोथेरपी की जाती है। इस थेरपी में कई बार मुंह का सूखना, डायरिया, स्किन का काला होना जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
4. इंटरवेंशनल ऑन्कॉलजी: इसमें बिना चीरा लगाए सूई की मदद से सीधे कैंसर में दवा डाली जाती है या उसे जला दिया जाता है। लिवर से जुड़े कैंसर में यह ज्यादा असरदार है।

कब कौन-सी थेरपी?
आमतौर पर स्टेज 1 और स्टेज 2 में सर्जरी की जाती है, जबकि स्टेज 3 और स्टेज 4 में सर्जरी, कीमो और रेडिएशन में से किन्हीं दो का कॉम्बिनेशन इस्तेमाल किया जाता है। कौन-से दो तरीके इस्तेमाल होंगे, यह मरीज की हालत देखकर डॉक्टर तय करते हैं।

मुमकिन है बचाव
1. तंबाकू-शराब से तौबा
पुरुषों में सबसे ज्यादा कैंसर मुंह, गले और फेफड़ों का कैंसर होता है। इन तीनों ही कैंसर की सबसे बड़ी वजह तंबाकू है, फिर चाहे बीड़ी-सिगरेट हो या गुटखा। स्मोकिंग से प्रोस्टेट, किडनी, ब्रेस्ट और सर्विक्स कैंसर के भी चांस बढ़ जाते हैं। पुरुषों में करीब 50 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की वजह तंबाकू होता है। अगर कोई शख्स 10 साल तक रोजाना 10-12 सिगरेट पीता है तो वह कैंसर का शिकार हो सकता है। अगर आपके आसपास कोई बीड़ी-सिगरेट पीता है तो उसका नुकसान आपको भी हो सकता है। ज्यादा शराब भी खतरनाक है। कोशिश करें कि इससे दूर रहें। कुछ स्टडी रोजाना एक पेग से ज्यादा तो खतरनाक मानती हैं तो कुछ जरा-सी मात्रा में शराब लेने को नुकसानदेह कहती हैं। ऐसे में तंबाकू और शराब से दूरी ही बेहतर है।

2. तनाव को टाटा

अगर आप तनाव में रहते हैं या फिर नाखुश रहते हैं तो शरीर से ऐसे केमिकल निकलते हैं, जो कैंसर की वजह बन सकते हैं। जिंदगी में पॉजिटिव सोच बनाए रखना बहुत जरूरी। एक-दो दिन के लिए दुखी रहने से फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर कुछ महीने या बरसों तक दुखी रहें या तनाव में रहें तो कैंसर की आशंका बढ़ती है। खुश रहने के अलावा रोजाना 6-7 घंटे की अच्छी नींद भी बहुत जरूरी है। ऐसा करने से शरीर कैंसर से लड़ने की क्षमता हासिल करता है।
3. पलूशन का ढूंढें सलूशन
2018 में दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में एक स्टडी की गई जिसमें पाया गया कि मार्च 2012 से जून 2018 के बीच अस्पताल में आनेवाले लंग कैंसर के कुल 150 मरीजों में से 76 स्मोकर और 74 नॉन-स्मोकर थे यानी 50 फीसदी मरीज वे थे, जो बीड़ी-सिगरेट नहीं पीते थे। इसकी एक बड़ी वजह दिल्ली-एनसीआर में बढ़ रहे एयर पलूशन को भी माना जा रहा है। ऐसे में कोशिश करें कि उन इलाकों से न गुजरें, जहां हेवी ट्रैफिक रहता है। सर्दियों में ज्यादा स्मॉग के समय बाहर निकलना हो तो N95 मास्क लगाएं। घर में हवा को साफ करने वाले पौधे जैसे कि मनी प्लांट, मदर-इन-लॉ टंग आदि लगाएं। घर के अंदर वर्टिकल गार्डन बनवाएं। इसके अलावा, प्लास्टिक के बर्तनों में खाने-पीने की चीजें गर्म करने से बचें। बार-बार गर्म करने से प्लास्टिक कंटेनर्स के केमिकल्स टूटकर खाने-पीने की चीजों में मिलने लगते हैं जो आगे जाकर कैंसर का कारण भी बन सकते हैं।

4. ऐक्टिव रहें, फिट रहें

रोजाना कम-से-कम 30-45 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें। कुछ और नहीं कर सकते तो तेज रफ्तार से सैर ही करें लेकिन ऐक्टिव रहें। हो सके तो घर से बाहर जाकर रोजाना 1 घंटा खेलें। दरअसल, अगर शरीर में फैट ज्यादा होता है तो फैट में मौजूद एंजाइम मेल हॉर्मोन को फीमेल हॉर्मोन एस्ट्रोजिन में बदल देते हैं। फीमेल हॉर्मोन ज्यादा बढ़ने पर ब्लड कैंसर, प्रोस्टेट, ब्रेस्ट कैंसर और सर्विक्स (यूटरस) कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। हाई कैलरी, प्रीजर्व्ड या जंक फूड, नॉन-वेज ज्यादा लेने से समस्या और बढ़ जाती है। पित्जा, बर्गर, चिप्स जैसे जंक और फैटी फूड ज्यादा खाने और फाइबर (सब्जियां, फल आदि) कम खाने से शरीर में टॉक्सिंस यानी जहरीले पदार्थ जमा हो जाते हैं। इसके अलावा, फसलों को उगाने में ज्यादा केमिकल खाद और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल, फल-सब्जियों ताजा दिखाने के लिए उन्हें रंग (फॉर्मेलिन) में रंगना, अदरक को एसिड में धोना, चिकन के जरिए हेवी मेटल्स का शरीर में पहुंचना आदि वजहों से शरीर में कैंसर की आशंका बढ़ रही है। बेहतर है कि ज्यादा-से-ज्यादा हरी सब्जियां और फल लें। इनमें फाइबर और एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं। एंटी-ऑक्सिडेंट बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा कर कैंसर सेल्स को मारने में मदद करते हैं।

5. इन्फेक्शन से बचें
हेपटाइटिस बी, हेपटाइटिस सी, एचपीवी जैसे इन्फेक्शन कैंसर की वजह सकते हैं। हेपटाइटिस सी के इन्फेक्शन से लिवर का कैंसर और एचपीवी से महिलाओं में सर्वाइकल और पुरुषों में मुंह का कैंसर हो सकता है। इनकी रोकथाम के लिए वैक्सीन भी लगवा सकते हैं। हेपटाइटिस बी की रोकथाम के लिए हेप्ट बी वैक्सीन और सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए एचपीवी वैक्सीन लगाई जाती है। हेपटाइटिस बी का टीका किसी भी उम्र में लगवा सकते हैं जबकि सर्वाइकल कैंसर का टीका सेक्स शुरू करने से पहले यानी करीब 8-18 साल की लड़कियों में लगवाना बेहतर है। हालांकि बाद में भी लगवा सकती हैं लेकिन अगर महिला सेक्सुअली ऐक्टिव है और वायरस पहले ही लपेटे में ले चुका हो तो वैक्सीन असर नहीं करेगी।

जल्दी पता लगाने के लिए कौन-से टेस्ट कराएं
हमारे देश में कैंसर के करीब 75-80 फीसदी मामले अडवांस स्टेज के होते हैं। इसकी दो बड़ी वजहें हैः पहली, लोगों को जानकारी कम होना और यह मानना कि उन्हें कैंसर नहीं हो सकता। दूसरी, डॉक्टरों का पूरी जांच किए बिना, दूसरी बीमारी समझ इलाज करते रहना। शुरुआती स्टेज में पता लग जाए तो कैंसर का इलाज मुमकिन है। इसके लिए कुछ बातों का ख्याल रखें।
ब्रेस्ट कैंसर के लिए
- सभी महिलाएं 30 साल की उम्र के बाद हर महीने खुद ब्रेस्ट की अच्छी तरह जांच करें। बेहतर है कि इसके लिए पीरियड्स शुरू होने से 7वां दिन तय करें। 40 साल की उम्र में डॉक्टर से जांच कराएं या मेमोग्राफी कराएं। गड़बड़ी नहीं है तो 2 साल में फिर कराएं। फैमिली हिस्ट्री है तो 20 साल की उम्र से ही खुद जांच करनी शुरू करें और 35 साल की उम्र में एमआरआई करा लें। दरअसल, कम उम्र में ब्रेस्ट ठोस होता है और ऐसे में मेमोग्राफी की बजाय एमआरआई कराना बेहतर है।
- अगर नानी, मां या बहन को ब्रेस्ट कैंसर हुआ है तो ब्रेस्ट कैंसर जीन टेस्ट (BRCA) करा लेना चाहिए। इसे किसी भी उम्र में करा सकते हैं। ब्रेका-1 में गड़बड़ी होने पर कैंसर की आशंका 80 फीसदी तक और ब्रेका-2 में गड़बड़ी होने पर आशंका 50 फीसदी तक बढ़ जाती है। ये दोनों टेस्ट करीब 26 हजार रुपये में हो जाते हैं और जिंदगी में एक ही बार कराने होते हैं। टेस्ट पॉजिटिव आता है तो डॉक्टर की सलाह से लाइफस्टाइल सुधार कर कैंसर की आशंका को कम किया जा सकता है। इसी टेस्ट से हॉलिवुड एक्ट्रेस एंजलिना जोली को कैंसर की आशंका का पता चला और उन्होंने अपने ब्रेस्ट को सर्जरी कर हटवा दिया। कुछ एक्सपर्ट उनके इस कदम को गलत भी मानते हैं।

सर्वाइकल कैंसर के लिए
शादी के तीन साल के बाद पेप स्मियर टेस्ट कराएं। 3 साल लगातार कराने के बाद हर 3 साल में एक बार कराएं।

मुंह-गले के कैंसर के लिए
पान-गुटखा खाते हैं या शराब-सिगरेट पीते हैं तो 30 साल के बाद हर साल एक बार ईएनटी स्पेशलिस्ट या फिर हेड/नेक सर्जन से अपने मुंह और गले की जांच करा लें।

लंग्स के कैंसर के लिए
अगर कोई 15-20 साल से स्मोक कर रहा है और खांसी भी है तो उसे फेफड़ों का सीटी स्कैन करा लेना चाहिए। अगर रिस्क नहीं है तो भी 40 साल की उम्र में एक बार फेफड़ों का एक्स-रे या सीटी स्कैन करा लेना चाहिए।

प्रोस्टेट कैंसर के लिए
50 साल की उम्र में पुरुषों को पीएसए टेस्ट करा लेना चाहिए। हर 2 साल या डॉक्टर के बताए अनुसार रिपीट कराएं। अगर प्रोस्टेट कैंसर की फैमिली हिस्ट्री है या पेशाब संबंधी परेशानी है तो 40 साल की उम्र में ही यह टेस्ट करा लें।

कोलोन (आंत) कैंसर के लिए
अगर पॉटी में खून आ रहा है तो स्टूल ऑकल्ट ब्लड टेस्ट कराएं। कोई गड़बड़ी निकलने पर कोलोनोस्कोपी करा सकते हैं, जिससे कैंसर की जानकारी मिल जाती है।

इलाज में नया क्या
हाल के बरसों में कैंसर के इलाज में कई तकनीक आई हैं। इनमें खास हैं...
सर्जरी: अब बड़े अस्पतालों में रोबॉटिक सर्जरी की जाती है। यह थ्री-डायमेंशन सर्जरी है यानी इसमें लंबाई-चौड़ाई के साथ कट की गहराई भी नजर आती है। इसमें खून कम निकलता है और गलती की गुंजाइश भी कम होती है। रोबॉट में लगे कैमरों की मदद से सर्जरी ज्यादा सटीक हो पाती है। मरीज जल्दी घर जा सकता है। आम सर्जरी के मुकाबले इसमें एक-डेढ़ लाख रुपये ज्यादा खर्च आता है।

HIPEC: हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनिअल कीमोथेरपी को पेट, ओवरी और कोलोन के कैंसर में इस्तेमाल किया जाता ह। इसमें 42 डिग्री गर्म पानी के साथ कीमो दी जाती है जिससे कैंसर सेल ज्यादा तेजी से मरते हैं। इसके जरिए दवा सीधे सीधे ट्यूमर में डाली जाती है। इसका असर ज्यादा है और साइड इफेक्ट्स काफी कम हैं। आम कीमोथेरपी के मुकाबले इसमें एक-डेढ़ रुपये तक खर्च ज्यादा आता है।

टारगेटिड थेरपी: आम कीमो सारे सेल्स को मारती है जबकि टारगेटिड थेरपी में दवा सिर्फ कैंसर सेल्स को ही टारगेट करती है। लंग्स, किडनी और कोलोन कैंसर में यह खासकर असरदार है। यह टैब्लेट और इंजेक्शन, दोनों तरीकों से दी जाती है। कैंसर के प्रकार और स्टेज के अनुसार इसकी कीमत 5000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये प्रति महीना तक हो सकती है।

इम्यूनोथेरपी: इसमें दवा की मदद से कैंसर एंटीजन के खिलाफ एंटी-बॉडीज़ तैयार की जाती हैं। यह टारगेटिड थेरपी का ही एक हिस्सा है और स्टेज 4 के कैंसर में मरीज की उम्र बढ़ाने में मददगार है। एक बार कैंसर होने के बाद दोबारा होने से रोकने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। कैंसर के प्रकार और स्टेज के अनुसार इसका एक महीने का खर्च 20 हजार से लेकर 5 लाख रुपये तक हो सकता है।

पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट: पहले एक तरह के कैंसर के सभी मरीजों का एक जैसा इलाज किया जाता था, जबकि अब मरीज की स्थिति, दूसरी बीमारियों और किसी दवा के उस पर असर के अनुसार पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट भी तैयार किया जाता है। इसकी कीमत 30-60 हजार रुपये महीने पड़ती है।

जीन प्रोफाइलिंग: इसे जीन मैपिंग भी कहा जाता है। इसमें जीन्स की स्टडी की जाती है और देखा जाता है कि उस जीन की खराबी की आशंका कितनी है। ब्रेस्ट कैंसर होने की आंशका का पता लगाने के लिए किया जाने वाला ब्रेका टेस्ट जीन मैपिंग ही है। दूसरे कैंसरों के लिए जीन मैपिंग के अभी खास नतीजे नहीं आए हैं।

TACE और TARE थेरपी: ट्रांसआर्टिरियल कीमोएंबोलाइजेशन और ट्रांसआर्टिरियल रेडियोएंबोलाइजेशन, इंटरवेंशनल ऑन्कॉलजी ट्रीटमेंट की कैटिगरी में आते हैं। इन्हें खासतौर पर लिवर के कैंसर के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 3 सेंटीमीटर से बड़े ट्यूमर के लिए TACE और TARE तकनीक इस्तेमाल की जाती है। इसमें एंजियोग्राफी करके सीधे ट्यूमर के अंदर दवा डाली जाती है। इस तरह बिना सर्जरी के ट्यूमर खत्म हो जाता है। इसके साइड इफेक्ट्स भी काफी कम हैं। एक सीटिंग का खर्च करीब 1 लाख रुपये पड़ता है। आमतौर पर 1 या 2 सिटिंग की जरूरत होती है।
ट्यूमर एब्लेशन थेरपी: इसमें सूई डालकर रेडियोफ्रिक्वेंस या माइक्रोवेव किरणों की मदद से सीधे कैंसर को जला दिया जाता है। लंग्स, लिवर और किडनी के कैंसर में यह तकनीक ज्यादा असरदार है। एक सिटिंग की कीमत करीब 1 लाख रुपये होती है और आमतौर पर एक सिटिंग इलाज के लिए पर्याप्त होती है।

प्रोटॉन थेरपी: कैंसर सेल्स को खत्म करने के लिए किए जाने वाले रेडिएशन में अब प्रोटॉन का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है, जिसे प्रोटॉन थेरपी का नाम दिया गया है। यह तरीका ज्यादा सटीक तरीके से कैंसर सेल्स को खत्म करता है और साइड इफेक्ट भी कम हैं लेकिन इसकी कीमतें काफी ज्यादा हैं। इस पर करीब 20 लाख रुपये का खर्च आता है। अपने देश में यह तकनीक फिलहाल सिर्फ चेन्नै में अपोलो प्रोटोन कैंसर सेंटर में इस्तेमाल हो रही है।

टेस्ट
टोमोसिंथेसिस: कैंसर की पहचान के लिए टोमोसिंथेसिस (Tomosynthesis) तकनीक का सहारा लिया जाता है। टोमोसिंथेसिस में थ्री-डी पिक्चर आती है और कैंसर के बारे में बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है। इसकी कीमत करीब 10-12 हजार रुपये होती है।
लिक्विड बायोप्सी: अब ब्लड टेस्ट से भी कैंसर और उसके असर आदि का पता लगाया जा सकता है। अगर कैंसर सेल ब्लड में आ रहे हैं तो इससे पता लग सकता है। लंग कैंसर में ज्यादा फायदेमंद है। इसकी कीमत करीब 30 से 40 हजार रुपये होती है।

यह हक भी जरूरी
डॉ. ललित कुमार और डॉ. अंशुमान का कहना है कि अगर किसी मरीज का कैंसर चौथी स्टेज में पहुंच जाए और उसके ठीक होने की उम्मीद लगभग न हो तो जबरन कीमोथेरपी या दूसरे इलाज कराने के बजाय मरीज को आखिरी दिन शांति और सुकून से बिताने दें। यह अहम है कि उसके जितने दिन बचे हैं, वे अच्छे गुजरें। जबरन दवा देने के बजाय डॉक्टर मरीज के दर्द को कम करने की कोशिश करें। इस दौरान घरवाले भी मरीज की पसंद और खुशी का ख्याल रखें। इससे मरीज के आखिरी दिन सुकून से बीतेंगे और घरवालों पर भी पैसे का फिजूल बोझ नहीं पड़ेगा।

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रोज इतनी देर सेंकेंगे धूप तो शरीर के कई रोग हो जाएंगे दूर

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जब कोहरे की चादर में से सूरज की लाली दिखती है तो उसमें नहाने को जी करता है। दरअसल, धूप के बहुत फायदे हैं। वहीं धूप के साथ अगर शरीर की मालिश हो जाए तो क्या कहने, लेकिन धूप कितनी चाहिए, कब चाहिए, मालिश कैसे करें, कौन-सा तेल उपयोग करना है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स से बात कर दे रहे हैं नरेश तनेजाजब कोहरे की चादर में से सूरज की लाली दिखती है तो उसमें नहाने को जी करता है। दरअसल, धूप के बहुत फायदे हैं। वहीं धूप के साथ अगर शरीर की मालिश हो जाए तो क्या कहने, लेकिन धूप कितनी चाहिए, कब चाहिए, मालिश कैसे करें, कौन-सा तेल उपयोग करना है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स से बात कर दे रहे हैं नरेश तनेजा

टॉप 6 डाइटिशन से जानें, कैसे बनाए रखें खुद को फिट ऐंड हेल्दी

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खुद को फिट रखने के लिए लोग डाइटिशन की सलाह लेना पसंद करते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं कि डाइटिशन खुद कैसी डायट फॉलो करते हैं।खुद को फिट रखने के लिए लोग डाइटिशन की सलाह लेना पसंद करते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं कि डाइटिशन खुद कैसी डायट फॉलो करते हैं।

सुपरफूड, क्या खूब!

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सुपर फूड का फायदा तभी है, जब हम इन्हें बैलेंस्ड डाइट के साथ लें। ऐसा न हो कि इनके चक्कर में हम बैलेंस्ड डाइट न लें। साथ ही, आपके इलाके में जो फूड आइटम आसानी से उपलब्ध हैं, उन्हें ज्यादा लें। सुपर फूड बदल-बदल कर खाएं ताकि सभी का फायदा शरीर को मिल सके।सुपर फूड का फायदा तभी है, जब हम इन्हें बैलेंस्ड डाइट के साथ लें। ऐसा न हो कि इनके चक्कर में हम बैलेंस्ड डाइट न लें। साथ ही, आपके इलाके में जो फूड आइटम आसानी से उपलब्ध हैं, उन्हें ज्यादा लें। सुपर फूड बदल-बदल कर खाएं ताकि सभी का फायदा शरीर को मिल सके।

वुमन सेफ्टी: मोबाइल ऐप्स और डिवाइसेस

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महिलाएं सुरक्षित हों, इसके लिए जरूरी है कि वे खुद सजग और चौकस रहें, लेकिन ऐसे तमाम ऐप्स और हेल्पलाइन भी हैं जो बुरे वक्त में काम आते हैं। इसके अलावा बाजार में उपलब्ध छोटी डिवाइसेस भी सुरक्षा के मामले में महिलाओं के खूब काम आती हैं। जानकारी दे रही हैं दर्शनी प्रिय

केसः 1
अलर्ट बटन से मिली थी मदद

वेणी हरि बेहद निडर महिला हैं। वैसे तो इनका डेस्क जॉब है, लेकिन काम के सिलसिले में वह अक्सर ट्रैवल करती रहती हैं। एक बार ऑटो और बस स्ट्राइक की वजह से इन्हें काफी दूर पैदल चलकर घर जाना पड़ा। जब चलते हुए वह काफी दूर निकल गईं तो उन्हें महसूस हुआ कि एक शख्स उनका पीछा कर रहा है और अश्लील इशारे भी कर रहा है। अपने आसपास किसी को न देखकर पहले तो घबराईं, लेकिन फिर हिम्मत से काम लेते हुए झट से अपने मोबाइल पर 'अलर्ट बटन-की' दबा दी। नतीजा यह हुआ कि पुलिस फौरन ही मौके पर पहुंच गई और उनकी मदद की।

केस: 2
तेज हॉर्न ने बचाई जान
प्रीति पचौली आज की मॉडर्न महिला हैं और दिल्ली में अपना क्लिनिक चलाती हैं। एक बार देर रात काम से घर लौट रही थीं कि अचानक एक सुनसान रास्ते में, एक मोड़ पर कुछ लड़के बाइक पर शराब के नशे में पीछा करने लगे। उनकी कार की बोनट पर शराब की बोतलें फेंकी। इससे प्रीति कुछ डर गईं लेकिन फिर खुद को संभाल लिया। कार की स्पीड बढ़ाते हुए तेज-तेज हॉर्न बजाते हुए दूसरों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इसी बीच सेफ्टीपिन ऐप के जरिए मदद भी मांग ली।

अपराधी अब पहले से ज्यादा चालाक हो गए हैं। ऐसे में उनका मुकाबला करने के लिए आपको ज्यादा चालाक और अलर्ट बनने की जरूरत है। हमले या खतरे की स्थिति में महिलाओं को बचाने में सक्षम कई गैजट और डिवाइसेज भी अब बाजार में आ गए हैं, जिनकी पुख्ता जानकारी आपको संभावित खतरों से बचा सकती है और आप अपराधियों को सबक भी सिखा सकते हैं। गैजट फ्रेंडली बनकर आप अपराध के खिलाफ मजबूती से खड़े हो सकती हैं।

कारगर हैं सेफ्टी ऐप्स
अब लड़कियां अपनी सुरक्षा के लिए परिवार, पुलिस या प्रशासन पर निर्भर रहने की बजाए खुद पर ज्यादा भरोसा कर रही हैं। बिना किसी सहारे के खुद अपनी ताकत बनतीं महिलाओं को बाजार ने भी जमकर साथ दिया है। आज बाजार में कई तरह के सेफ्टी उपकरण उपलब्ध हैं, जिनका इस्तेमाल कर महिलाएं खुद को सुरक्षित रख सकती हैं। हम यहां कुछ ऐप्स की चर्चा कर रहे हैं।

My Safetypin
महिलाओं की सुरक्षा के मामले में सेफ्टीपिन एक बेहतर विकल्प है। इसे महिला सुरक्षा को ध्यान में रखकर खासतौर से डिजाइन किया गया है। यह बेसिक फीचर्स जैसे: जीपीएस ट्रैकिंग, जरूरी फोन नंबर, डायरेक्शन- टु-सेफ लोकेशन आदि से लैस है। यह ऐप यूजर्स को अनसेफ एरिया की जानकारी फौरन देता है। किसी भी खतरे की स्थिति में यह यूजर्स को सेफ लोकेशन के बारे में समय रहते पिन करता है। इसलिए इसका नाम सेफ्टीपिन है।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड
फ्री: हां

Raksha
यह ऐप खासा पॉप्युलर है। इसमें एक खास तरह का बटन होता है, जिसे दबाते ही अपनों तक खतरे का मेसेज फौरन पहुंच जाता है। वे मेसेज भेजने वाले का लोकेशन भी देख सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसके लिए जरूरी नहीं है कि आपका मोबाइल नेटवर्क काम कर रहा हो। जहां नेटवर्क उपलब्ध नहीं होता यह वहां भी काम करता है। इसके लिए सिर्फ इतना करना है कि 3 सेकंड के लिए वॉल्यूम-की को दबाकर रखना है।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड
फ्री: हां

Himmat Plus
महिलाओं की सुरक्षा के लिए दिल्ली पुलिस ने हिम्मत ऐप लॉन्च किया है। इसके लिए यूजर को दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर खुद को रजिस्टर करना होता है। इसकी खास बात यह है कि खतरे की स्थिति में यदि यूजर ऐप से अलर्ट भेजता है तो दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम में उसका लोकेशन, खतरे की जानकारी, उस समय का ऑडियो जैसी सूचनाएं पहुंच जाती हैं। ऐसे में पुलिस मदद मांगने वाले के पास तुरंत पहुंचती है।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड
फ्री: हां

Smart 24x7
विभिन्न राज्यों की पुलिस ने महिलाओं और बुजुर्गों की सेफ्टी को ध्यान में रखते हुए स्मार्ट 24x7 ऐप को हाथों-हाथ लिया है। इसमें यूजर को सिर्फ पैनिक बटन दबाकर सहायता लेनी होती है। किसी भी तरह के खतरे की स्थिति में यह ऐप तुरंत पैनिक अलर्ट पहले से फीड कॉन्टेक्ट नंबरों को देता है। यह न सिर्फ खतरे का संदेश भेजता है बल्कि पैनिक सिचुएशन की रिकॉर्डिंग और फोटो भी साझा करता है। इसका अपना कॉल सेंटर भी है जो यूजर के मूवमेंट को ट्रैक करता है।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड
फ्री: हां

Shake2Safety
यह ऐप इस्तेमाल के लिहाज से एकदम परफेक्ट है। इसमें अपने स्मार्टफोन को बस जोर से हिलाना होता है या पावर बटन को 4 बार जल्दी-जल्दी दबाना होता है। ऐसे में यह पहले से सेव्ड नंबरों पर खतरे का अलर्ट भेज देता है। इसकी खासियत यह है कि ऐप बिना इंटरनेट के और यहां तक कि मोबाइल स्क्रीन लॉक होने पर भी काम करता है। इस ऐप का इस्तेमाल दुर्घटना, फिजिकल असॉल्ट, रॉबरी या किसी प्राकृतिक आपदा के दौरान भी मदद मांगने के लिए किया जा सकता है।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड
फ्री: हां

Women Safety
यदि आप किसी असुरक्षित स्थान पर फंस गई हैं तो इस ऐप का सिर्फ एक बटन दबाकर खतरे की सूचना और लोकेशन डिटेल्स भेज सकती हैं। इसमें स्थिति की गंभीरता के आधार पर तीन रंगों (लाल, पीला और नारंगी) के बटन दिए गए हैं। लाल पैनिक के समय, हरा रंग स्टेटस अपडेट करने और नारंगी रंग एहतियात की स्थिति बताने के लिए है। अपनी जरूरत के अनुसार आप कोई भी बटन इस्तेमाल कर सकते हैं। यह ऐप पैनिक सिचुएशन में गूगल मैप के साथ लोकेशन की सारी डिटेल्स तो भेजता ही है, साथ ही फ्रंट और रियर कैमरा से पिक्चर खींचकर सीधे सर्वर पर अपलोड कर देता है।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड, फ्री: हां

सेफ्टी डिवाइस का साथ
महिलाओं को खतरे की स्थिति में मदद पहुंचाने के लिए कंपनियों ने सेफ्टी के लिए मार्केट में विभिन्न तरह की डिवाइसेज लॉन्च की हैं। इन्हें आसानी से कैरी किया जा सकता है। अकेले यात्रा करते समय, किसी सुनसान या अनजान इलाके में जाते समय आसानी से पर्स या कपड़ो में छिपाकर इन्हें ले जाया जा सकता है।

1. स्मार्ट ट्रैकिंग वॉच
यह किसी भी व्यक्ति की एकदम सही लोकेशन ट्रैक कर लेता है। इसे यूजर अपनी कलाई पर पहन सकता है। इस डिवाइस की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें मौजूद क्लाउड सर्विस के जरिए दुनिया के किसी भी हिस्से से चंद सेकंड में ही ट्रैक किया जा सकता है। इस घड़ी को सबसे पहले Yepzon कंपनी ने पेश किया था। पिछले कुछ समय में कई कंपनियों ने यह डिवाइस लॉन्च की है।
कीमत: 2 से 5 हजार रुपये

2. बचाएगी सीटी
एमजॉन ने प्रोजेक्ट 'रेप विसल' को पहले प्रोजेक्ट के तौर पर लॉन्च किया है। यह खास तरह की सीटी है जो एक चाबी के छल्ले की तरह दिखती है और खतरे की स्थिति में 120 डेसिबल तक का शोर पैदा कर सकती है ताकि लोगों का ध्यान खींच सके। इसकी खासियत यह है कि जब इसकी बैटरी खत्म हो जाती है तो यह आम सीटी की तरह भी काम आती है।
कीमत: 330 रुपये

3. पेपर स्प्रे पिस्टल
पेपर स्प्रे पिस्टल को कानूनी रूप से वैधता मिली हुई है। यह विमिन सेल्फ डिफेंस अप्लायंसेज में आता है। अन्य पेपर स्प्रे की तरह इसे सिर्फ आंखों पर ही मारने की जरूरत नहीं पड़ती। शरीर के किसी भी हिस्से पर छिड़कने से यह तेज खुजली पैदा करती है, जिससे अपराधी की पकड़ कुछ समय के लिए ढीली पड़ जाती है और शिकार खतरे से बच कर आसानी से निकल जाता है। इसे यूज करते समय ध्यान रखना पड़ता है कि इसे सिर्फ 2 बार छिड़कना है। लगातार छिड़कने से सिर्फ 6 सेकंड में पूरी बोतल खाली हो जाती है।
कीमत: 6,000 रुपये

4. सेफ्टी-टॉर्च
यह रीचार्जेबल टॉर्च महिलाओं के लिए एक अहम सुरक्षा कवच है। इसमें LED फ्लैश लाइट होती है जो अपराधी की आंखों को चकाचौंध कर देती है। जिस पर इसका यूज किया जाता है उसे कुछ समय तक कुछ साफ-साफ दिखाई नहीं देता। इस समय का उपयोग भागने या अपराधी को धराशायी करने में किया जा सकता है।
कीमत: 500 से 790 रुपये

5. सेफ्टी रॉड
बेहतरीन मानी जाने वाली यह डिवाइस हमलावर को दर्द वाले खतरनाक झटके देती है। इस रॉड की मदद से अपराधियों को मिनटों में धूल चटाई जा सकती है। इसे अपने पर्स या बैग में आसानी से रखा जा सकता है।
कीमत: 700 रुपये

6. खास डिवाइस वाला स्मार्ट पेंडेंट
यह कोई साधारण लॉकेट नहीं होता। गोल-सा दिखने वाला यह छोटा लॉकेट सेफर (SAFER) के नाम से ऐमजॉन पर उपलब्ध है। इसे मोबाइल से कनेक्ट किया जा सकता है। खतरे की हालत में इस लॉकेट पर लगी डिवाइस को बस दो बार दबाना होता है। खतरे की स्थिति में यह फौरन ही आपके परिवार और दोस्तों तक अलर्ट पहुंचा देता है।
कीमत: 1899 रुपये

7. लिपस्टिक जैसी फ्लैशलाइट
लिपस्टिक जैसी दिखने वाली 5 इंच लंबी यह सुरक्षा डिवाइस महिलाओं के लिए बेहद उपयोगी है। छोटे आकार की वजह से इसे आसानी से कहीं भी रखा जी सकती है। यह डिवाइस रिचार्जेबल बैटरी के साथ आती है। मुसीबत में आप अपराधी की आंखों पर फ्लैशलाइट मारकर बचकर निकल सकती हैं या मदद का जुगाड़ कर सकती है।
कीमत: 799 रुपये

8. काम का 'रिवॉल्वर'
अंडे के आकार की यह एक छोटी-सी डिवाइस 'रिवाल्वर' नाम से प्रचलित है। इसके बटन को 2 बार दबाने से यह तत्काल पहले से स्टोर नंबरों पर खतरे में होने का संदेश भेज देती है।
कीमत: 6545 रुपये

विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी हादसे के तीन फैक्टर्स होते हैं: अपराधी, शिकार और मौका। इनमें से अगर एक भी न हो तो हादसा नहीं होता। इनमें सबसे आसान, लेकिन जरूरी है मौका देने से बचना। इसके बाद आता है खुद को शिकार बनने से रोकना और अंतिम है अपराधी से निबटना। जानते हैं कि आप अपराधी को मौका देने और शिकार होने से कैसे बच सकती
हैं आप।

आंकड़ों के अनुसार ज्यादातर सेक्शुअल अटैक उन महिलाओं पर होते हैं, जिनकी बॉडी लैंग्वेज से कॉन्फिडेंस नहीं झलकता। अपराधी उन महिलाओं को शिकार ज्यादा बनाते हैं जो आसान टारगेट होती हैं। ऐसे में जब भी सड़क पर अकेली निकलें भरपूर आत्मविश्वास के साथ रहें। सिर झुकाकर चलने की बजाय सतर्क रहें और सामने देखते हुए चलें। अगर किसी इलाके या रास्ते के बारे में नहीं जानतीं तो भी अनजान लोगों के सामने इसे उजागर न करें।

सड़क पर बरतें सावधानी
- चाहे कितनी भी मजबूरी क्यों न हो अनजान लोगों से लिफ्ट न लें। व्यस्त, लेकिन खतरनाक जगहों पर ट्रैफिक की उलटी दिशा में, यानी उस ओर चलें जिस ओर ट्रैफिक आपको सामने से आता दिखे। ऐसे में पीछे से हमला नहीं हो सकेगा। कई बार लड़कियां बाहर की तरफ बैग टांगकर चलती हैं। इससे बाइक वालों को छीना-झपटी का मौका मिल जाता है। थैला उस तरफ लटकाएं, जिधर फुटपाथ हो। सड़क पर रास्ता पूछने वाले कई मिलेंगे, लेकिन उससे दूरी बनाकर रखें। अगर कोई पीछा करता दिखता है तो जो भी घर सामने दिखे, उसकी कॉल बेल बजा दें और सारी स्थिति के बारे में बताएं। झिझकें बिल्कुल नहीं।

- किसी अनजान शहर में हों तो होटल के फ्रंट डेस्क के जरिए टैक्सी मंगाएं। ऐसे में आपके अलावा किसी और को भी जानकारी होगी कि गाड़ी कहां से आई है। स्टेशन या एयरपोर्ट पर ऑटो या टैक्सी प्री-पेड बूथ से लें तो बेहतर रहेगा।

- ऐसी बस में न चढ़ें, जिसमें सिर्फ ड्राइवर और कंडक्टर हों या फिर महज 4-5 लोग ही हों। जिस ऑटो में पहले से पैसेंजर बैठे हों, उसमें न बैठें। शेयर्ड कैब की सर्विस लें तो हमेशा सतर्क रहें।

- कैब या ऑटोवाले से भीड़वाले रास्तों पर ही चलने को कहें। रास्ता लंबा बेशक हो, लेकिन जाना-पहचाना होना चाहिए। साथ ही, अंधेरे वाली जगहों से बचें। अपराधी ज्यादातर ऐसी ही जगहों पर अपना शिकार तलाशते हैं, ताकि बचकर भागने में आसानी हो।

- गाड़ी में सेंट्रल लॉक लगाकर ड्राइव करें। एसी है तो हमेशा शीशे चढ़ाकर रखें।

- अपनी सोसाइटी में भी रात के वक्त बेसमेंट में कार पार्क करने से बचें। वहां मोबाइल काम करना बंद कर सकता है। ऐसे में गाड़ी ऐसी जगह पार्क करें, जहां भरपूर रोशनी हो।

- अगर सड़क पर गाड़ी खराब हो जाए तो पहले अपने घरवालों को अपनी स्थिति और लोकेशन के बारे में बताएं, फिर कार हेल्पलाइन वालों को फोन करें।

पार्टी के दौरान रहें सजग
अनजान लोगों से रहें दूर: अनजान लोगों के साथ नजदीकी न बढ़ाएं। डांस के दौरान लड़कों के ज्यादा करीब न जाएं, चाहे
वे आपके जानकार ही क्यों न हों।

शॉपिंग मॉल या बीच पर
शॉपिंग मॉल के ट्रायल रूप में कपड़े चेंज करते हुए आसपास गौर से देखें। कोई भी दरार या संदिग्ध कील या लाइट आदि दिखने पर कपड़े चेंज न करें। बीच पर कुछ सावधानी जरूरी है। स्विम सूट घर से या होटल से कपड़ों के नीचे पहनकर ही निकलें तो बेहतर है।

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हमेशा खुश रहने का तरीका है माइंडफुलनेस, जानें इस थेरपी के बारे में

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हमेशा खुश रहना चाहते हैं तो माइंडफुलनेस का तरीका बेस्ट है। जानें क्या है यह थेरपी और कैसे की जाती है। साथ ही यह भी जानें कि इससे क्या फायदा होता है।हमेशा खुश रहना चाहते हैं तो माइंडफुलनेस का तरीका बेस्ट है। जानें क्या है यह थेरपी और कैसे की जाती है। साथ ही यह भी जानें कि इससे क्या फायदा होता है।

World TB Day: अब टीबी को आसानी से कहें टाटा

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भरपूर नींद और हेल्दी खाना, यही तो है सेहत का खजाना

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उठने के बाद सबसे पहले एक गिलास सादा या गुनगुना पानी पिएं। इससे शरीर के विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं। एक गिलास पानी में आधा नीबू निचोड़ कर भी पी सकते हैं। जानें हेल्दी रहने के लिए कैसा हो आपका रुटीन।उठने के बाद सबसे पहले एक गिलास सादा या गुनगुना पानी पिएं। इससे शरीर के विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं। एक गिलास पानी में आधा नीबू निचोड़ कर भी पी सकते हैं। जानें हेल्दी रहने के लिए कैसा हो आपका रुटीन।

ब्रह्मांड के वे रहस्य जो आप नहीं जानते होंगे

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इसी हफ्ते गुरुवार को ब्लैक होल की पहली तस्वीर जारी हुई। यह ब्लैक होल हमारी धरती से करीब 30 लाख गुना बड़ा है। इससे विराट ब्रह्मांड की अनसुलझी गुत्थियां फिर से चर्चा में आ गई हैं। इन गुत्थियों को सुलझाने में अभी लंबा वक्त लग सकता है, लेकिन उम्मीद तो यही है कि एक दिन यह सुलझ जरूर जाएगी। यहां इस पर बात करते हुए पहले हम ब्रह्मांड यानी यूनिवर्स के बारे में अपनी बुनियादी समझ दोहरा लेते हैं और फिर इसके बारे में एक शीर्ष विज्ञानी से बातचीत करते हैं।इसी हफ्ते गुरुवार को ब्लैक होल की पहली तस्वीर जारी हुई। यह ब्लैक होल हमारी धरती से करीब 30 लाख गुना बड़ा है। इससे विराट ब्रह्मांड की अनसुलझी गुत्थियां फिर से चर्चा में आ गई हैं। इन गुत्थियों को सुलझाने में अभी लंबा वक्त लग सकता है, लेकिन उम्मीद तो यही है कि एक दिन यह सुलझ जरूर जाएगी। यहां इस पर बात करते हुए पहले हम ब्रह्मांड यानी यूनिवर्स के बारे में अपनी बुनियादी समझ दोहरा लेते हैं और फिर इसके बारे में एक शीर्ष विज्ञानी से बातचीत करते हैं।

लेने जा रहे हैं कॉलेज में ऐडमिशन, जान लें ये जरूरी बातें

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मार्च के बाद से ही यूनिवर्सिटीज और कॉलेज कैंपस गुलजार होने लगते हैं, लेकिन ऐडमिशन कोई आसान काम नहीं है। बेहतर कॉलेज और यूनिवर्सिटी की सीटें 98 फीसदी मार्क्स वाले लूट ले जाते हैं। ऐसे में बाकी स्टूडेंट्स के लिए दुविधा की स्थिति बन जाती है कि वे आखिर जाएं तो जाएं कहां! ऐसे में मजबूरी में कई बच्चे घटिया या जाली इंस्टिट्यूट के जाल में भी फंस जाते हैं। तो ऐडमिशन से पहले आखिर क्या देखें? एक्सपर्ट्स से बातकर जानकारी दे रही हैं दर्शनी प्रिय

देश में बेहतर सरकारी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या सीमित है। ऐसे में भारी संख्या में ग्रैजुएट और अंडरग्रैजुएट छात्रों को खपाने के लिए निजी संस्थानों और कॉलेजों की जरूरत लगातार बढ़ रही है। इसी वजह से देश में प्राइवेट और फर्जी संस्थानों की बाढ़-सी आ गई है। यहां एक बात यह भी बताना जरूरी है कि न तो सभी प्राइवेट संस्थान बेकार हैं और न ही सभी प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में खोट है। दिक्कत यह है कि क्वॉलिटी एजुकेशन के मामले में इनमें से ज्यादातर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। ये संस्थान छात्रों के करियर की समस्या को सुलझाने के बजाय उलझा देते हैं। मोटी फीस वसूलने और टॉप क्लास की सुविधा देने का वादा करने वाले इन संस्थानों की क्वॉलिटी पर सवाल उठते रहते हैं, बावजूद इसके बच्चे इनके जाल में फंस जाते हैं।

डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट के फर्क को समझेंः
सर्टिफिकेट-
अमूमन सर्टिफिकेट प्रोग्राम किसी खास प्रफेशनल फील्ड में स्किल बढ़ाने के लिए लिया जाता है। कुछ यूनिवर्सिटी ग्रैजुएट सर्टिफिकेट भी स्टूडेंट्स को ऑफर करती हैं।
अवधि: कुछ महीनों से लेकर 1 साल तक
कौन देता है: वोकेशनल और टेक्निकल स्कूल, कॉलेज आदि

डिप्लोमा-
यह काफी हद तक सर्टिफिकेट प्रोग्राम की तरह ही होता है। इसे किसी खास क्षेत्र में कोर्स पूरा होने पर दिया जाता है।
अवधि: 1 से 2 साल तक
कौन देता है: वोकेशनल और टेक्निकल स्कूल, कॉलेज और हॉस्पिटल

डिग्री-
डिग्री कई तरह की होती है। बैचरल डिग्री (3-6 साल) मास्टर्स डिग्री (2-4 साल) पीएचडी की डिग्री (4-5 साल) अकादमिक डिग्री कई साल की होती हैं। इसमें एसोसिएट (2 वर्ष), बैचलर (4 वर्ष), मास्टर(2 वर्ष), डॉक्टरल (4-5 वर्ष) की डिग्री होती हैं।
कौन देता है: मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी या उससे जुड़ा कॉलेज।

हायर एजुकेशन के संस्थान
सेंट्रल यूनिवर्सिटी: इन यूनिवर्सिटीज़ की स्थापना केंद्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा संसद में पारित ऐक्ट के आधार पर की जाती है।
डीम्ड यूनिवर्सिटी: डीम्ड यूनिवर्सिटी का स्टेटस उच्च शिक्षा देने वाले ऐसे संस्थानों को दिया जाता है जो किसी खास क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हों। यह मान्यता केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा यूजीसी ऐक्ट 1956 के सेक्शन 3 के तहत दी जाती है। इसके अंतर्गत ऐसे संस्थानों को यूनिवर्सिटी जैसे अधिकार मिल जाते हैं और ये डिग्री दे सकते हैं।
एफिलिएटेड इंस्टिट्यूट: ये किसी मान्यताप्राप्त यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध संस्थान/कॉलेज होते हैं और उस यूनिवर्सिटी के विभिन्न कोर्स संचालित करने का इनको अधिकार होता है। ये खुद न तो एग्जाम करा सकते हैं और न ही कोई डिग्री प्रदान कर सकते हैं।
रेकग्नाइज्ड यूनिवर्सिटी: भारत में किसी भी यूनिवर्सिटी को डिग्री प्रदान करने की अनुमति केंद्र सरकार द्वारा स्थापित यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (UGC) देता है। यूजीसी जिसे यह अनुमति देती है उसे रेकग्नाइज्ड यूनिवर्सिटी कहा जाता है।
रजिस्टर्ड संस्थान: सोसायटी ऐक्ट/एनजीओ ऐक्ट आदि के तहत पंजीकृत संस्थाओं को रजिस्टर्ड संस्थानों की श्रेणी में रखा जाता है। जरूरी नहीं कि इनके द्वारा संचालित कोर्स भी मान्यता प्राप्त होंगे ही।
प्राइवेट यूनिवर्सिटी: प्राइवेट यूनिवर्सिटी की शुरुआत राज्य विधानसभा द्वारा ऐक्ट पारित करने और यूजीसी द्वारा उसे गजट में शामिल करने के आधार पर हो सकती है। इनको यूजीसी द्वारा Establishment and Maintenance of standards in Private Universities Regulations 2003 द्वारा रेग्युलेट किया जाता है।

8 बातें एडमिशन से पहले पता करेंः
एक्रीडिटेशन

1. किसी भी संस्थान के एक्रीडिटेशन की जांच जरूर करें। सच तो यह है कि जॉब मार्केट में उसी डिग्री को मान्यता दी जाती है जो किसी मान्यताप्राप्त यूनिवर्सिटी या कॉलेज से हासिल की गई हो।

2. ग्रैजुएशन रेट
किसी भी यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट होने वाले छात्रों की संख्या का सही अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। इससे दाखिला संबंधी संभावना की जानकारी आपको मिल सकेगी।

3. रिटेंशन रेट
अगर किसी यूनिवर्सिटी की ऊंची रिटेंशन रेट है तो इसका सीधा-सा मतलब है कि वहां के बच्चे पढ़ाई से संतुष्ट हैं। यही वजह है कि नए क्लास में जाने पर यूनिवर्सिटी या कॉलेज नहीं बदल रहे हैं।

4. करियर पर ध्यान
यह इस बात को बताता है कि यूनिवर्सिटी में बच्चों के करियर को लेकर कितनी संजीदगी है। अगर काउंसलिंग की सुविधाएं, इंटरव्यू की तैयारी, रेज्यूमे रिव्यू और जॉब हंटिंग जैसी बातों पर भरपूर ध्यान दिया जाता है तो इसका मतलब है कि माहौल बेहतर है।

5. प्लेसमेंट
यह काफी अहम है। किसी यूनिवर्सिटी या कॉलेज का प्लेसमेंट रेकॉर्ड कैसा है, यहां वहां के पूर्व छात्रों या यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के जरिए पता कर सकते हैं। इसके अलावा, पिछले 5 बरसों का प्लेसमेंट रेकॉर्ड और इंटर्नशिप देने वाली कंपनियों की लिस्ट की जानकारी भी हासिल करें।

6. सोशल मीडिया
यूनिवर्सिटी या कॉलेज की वेबसाइट के अलावा सोशल मीडिया मौजूदगी पर भी ध्यान देना जरूरी है। यहां से आपको पता चलेगा कि कितने छात्र खुश हैं और कितने नाखुश। इसमें पूर्व छात्रों के टेस्टिमोनियल और इंटरनेट पर मौजूद फोरम बेहद मददगार होते हैं।

7. फैकल्टी
एडमिशन से पहले यह जरूर पता करें कि जिस सब्जेक्ट में आप एडमिशन ले रहे हैं, उसकी फैकल्टी कैसी है। अगर पढ़ाने वाले ढंग के नहीं मिले तो एडमिशन लेने का कोई मतलब नहीं है।

8. एजुकेशन लोन
किसी कॉलेज में एडमिशन लेने से पहले एजुकेशन लोन के बारे में पूछताछ करें। अमूमन एजुकेशन लोन सिर्फ उन्हीं कॉलेजों को दिया जाता है जो मान्यता प्राप्त होते हैं।

कैसे फंसते हैं स्टूडेंट्स
कई प्राइवेट संस्थान बाहरी चमक-दमक पर ज्यादा फोकस करते हैं जिसे देखकर स्टूडेंट्स फंस जाते हैं। यह वैसे ही है जैसे आप कोई फ्लैट खरीदने जाते हैं और डिवेलपर आपको एक मॉडल फ्लैट दिखाकर कहता है कि आपको जो फ्लैट आज से 3 साल बाद मिलेगा, वह इसी तरह का होगा और आप उस पर विश्वास कर लेते हैं। दरअसल, मॉडल फ्लैट को तैयार ही ऐसे किया जाता है कि लोगों की आंखें चौंधिया जाएं, लेकिन असलियत का पता तब चलती है जब 3 या 4 साल बाद आपको फ्लैट दिया जाता है। इसी तरह जब कोई कोर्स खत्म कर बाहर निकलता है तब पता चलता है कि वहां एडमिशन का फैसला सही रहा या गलत। अमूमन बाहरी चमक-दमक में फंस जाने वाले स्टूडेंट्स का भविष्य खतरे में ही रहता है।

बचना है जरूरी
एडमिशन लेने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है:
1. ब्रोशर देखकर और वादे पर भरोसा कर कभी भी एडमिशन का फैसला न करें। हमेशा फैक्ट चेक करें, प्लेसमेंट का पता लगाएं, सरकारी वेबसाइट्स का सहारा लें और उन पर ही यकीन करें।
2. सिर्फ कॉलेजों की टॉप रेटिंग या टॉप चार्ट देखकर ही तसल्ली न करें बल्कि बारीकी से इनकी जांच करे और हर कसौटी पर कसने के बाद ही एडमिशन के बारे में सोचें। इन संस्थानों की विश्वसनीयता की जांच के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और यूजीसी जैसी मान्य सरकारी निकायों ने कई पैरामीटर्स तय किए हैं। आपको भी इन पैरामीटर्स को देखना चाहिए और तभी एडमिशन के बारे में सोचना चाहिए।
3. कोई भी संस्थान मान्यता प्राप्त है या नहीं, यह सबसे बड़ा मुद्दा है। संभव है कि ऐसे संस्थान/ यूनिवर्सिटी/ कॉलेज जिनकी बिल्डिंग अच्छी हो और जो सौ फीसदी प्लेसमेंट का दावा करता हो, जहां के हॉस्टल्स भी शानदार हों, उन्हें सरकारी मान्यता ही नहीं मिली हो। बिना मान्यता प्राप्त संस्थान की सारी खासियतें बेकार हैं क्योंकि जब आप उस यूनिवर्सिटी या कॉलेज से डिग्री लेकर बाहर निकलेंगे तो उसकी कोई वैल्यू नहीं होगी। ऐसा भी मुमकिन है कि कॉलेज अपना दावा मजबूत करने के लिए कैंपस प्लेसमेंट भी करा दे, लेकिन तब भी वह डिग्री किसी काम का नहीं क्योंकि ऐसा देखा गया है कि गैरमान्यता प्राप्त कॉलेज या यूनिवर्सिटी में मिली हुई कैंपस प्लेसमेंट की लाइफ ज्यादा लंबी नहीं होती। अमूमन 4 से 6 महीनों में यहां के स्टूडेंट्स को यह कहकर निकाल दिया जाता है कि वे योग्य नहीं हैं। इसके बाद दूसरी कंपनियों में जॉब ढूंढना उनके लिए मुश्किल हो जाता है।
4. वहीं डीम्ड यूनिवर्सिटी सबसे ज्यादा गड़बड़ी दूसरी जगहों पर स्टडी सेंटर खोलने में करती है। संसद और विधानसभाओं के एक्ट द्वारा बनाई गई यूनिवर्सिटी ही दूसरे कॉलेज और इंस्टिट्यूट को कोर्स चलाने के लिए खुद से संबंद्ध कर मान्यता दे सकती है। डीम्ड यूनिवर्सिटी को अपने मेन कैंपस के अलावा दूसरे किसी कैंपस या संस्थान में कोर्स चलाने की इजाजत नहीं है।

डीम्ड यूनिवर्सिटी के लिए जरूरी बातें
- जिसे NAAC यानी National Assessment and Accreditation Council या NBA यानी National Board of Accreditation द्वारा लगातार दो साल के लिए उच्चतम ग्रेड दिया गया हो।
- जिसके पास रिसर्च और आधुनिक सूचना-संसाधनों वाला इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद हो।
- रिसर्च प्रोग्राम के साथ अंडर ग्रैजुएट और कम से कम 5 पोस्ट ग्रैजुएट डिपार्टमेंट का अस्तित्व हो।
- जिसके पास यूजीसी के मानकों के अनुसार पढ़ाई और रिसर्च के लिए क्वॉलिफाइड फैकल्टी हो।
- यूनिवर्सिटी का कोई डिस्टेंस एजुकेशन प्रोग्राम न हो।
- जिसके पास हॉस्टल, लाइब्रेरी आदि भी हो।
- यूजीसी नियमों के मुताबिक कैंपस के लिए पर्याप्त जगह हो।
- हर विभाग में सामान्य पाठ्यक्रमों के लिए कम से कम एक प्रफेसर, दो एसोसिएट प्रफेसर और 4 असिस्टेंट प्रफेसर स्थायी रूप से हों।
- यूनिवर्सिटी मानी गई संस्था के रूप में कम से कम 5 सालों से अस्तित्व में रही हो।

कुछ डीम्ड यूनिवर्सिटी हैं:
- जामिया हमदर्द, हमदर्द नगर, दिल्ली
- इंडियन एग्रिकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट, दिल्ली
- इंडियन लॉ इंस्टिट्यूट, दिल्ली
- इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरन ट्रेड, दिल्ली
- जेपी इंस्टिट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नॉलजी, नोएडा, यूपी
नोट: अगर कोई संस्थान डीम्ड यूनिवर्सिटी होने की बात करता है तो उसकी सचाई जांचने के लिए यूजीसी की वेबसाइट www.ugc.ac.in देख सकते हैं।

खुद ऐसे करें चेकिंग
अगर आप किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने जा रहे हैं और संस्थान या उसके चलाए जाने वाले कोर्स के बारे में क्रॉस चेक करना चाहते हैं तो इन पर निगरानी और कंट्रोल रखने वाले कुछ संस्थानों के नाम और वेबसाइट हम यहां दे रहे हैं। अगर संदेह फिर भी न मिटे तो इन वेबसाइट्स पर जरूरी कॉन्टैक्ट भी उपलब्ध होते हैं, जहां फोन कर आप पूरी जानकारी ले सकते हैं।

1. www.ugc.ac.in
बारहवीं के बाद की पढ़ाई के मामले में यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन) ही वह संस्था है और इसकी वेबसाइट वह जगह है, जहां आप पूरी जानकारी ले सकते हैं। जिस भी यूनिवर्सिटी या कॉलेज की बारे में जानकारी चाहिए, उसके बारे में पूरी जानकारी यहां मिल जाएगी। कोई भी संस्थान अगर डिग्री कोर्स करा रहा है और अगर वह असली है तो उसकी जानकारी इस वेबसाइट पर सर्च में नाम करने पर मिल जाएगी।

2. www.aicte-india.org
यह टेक्निकल एजुकेशन की मान्यता के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की परिषद है जो मानव संसाधन मंत्रालय के तहत काम करती है। कोई भी संस्थान जो इंजिनियरिंग, मैनेजमेंट आदि जैसे तकनीकी क्षेत्रों में डिग्री या डिप्लोमा देता हो, उसे एआईसीटीई से मान्यता लेना जरूरी होता है। यह अपने पैरामीटर्स के अनुसार भारतीय शिक्षा संस्थानों में पोस्ट ग्रैजुएशन और ग्रैजुएशन स्तर के कार्यक्रमों को मान्यता देती है। इसकी वेबसाइट www.aicte-india.org है। इस संस्था के तहत निम्न तरह की तकनीकी पढ़ाई आती है:
- इंजिनियरिंग
- टेक्नॉलजी
- मैनेजमेंट स्टडीज
- वोकेशनल एजुकेशन
- फार्मेसी
- आर्किटेक्चर
- होटेल मैनेजमेंट एंड कैटरिंग टेक्नॉलजी
- इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी
- टाउन एंड कंट्री प्लानिंग
- अप्लाइड आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स
ऊपर वाले कोर्सों में से किसी में अगर कोई संस्थान डिग्री या डिप्लोमा करा रहा है तो इस वेबसाइट पर जाकर सर्च में उसका नाम टाइप करने पर अगर उसके बारे में और उस कोर्स के बारे में जानकारी आती है तो वह असली है।

किसी संस्थान की कोई स्पेशलाइज्ड कोर्स मान्यता प्राप्त है या नहीं, नीचे दी गई उससे जुड़ी वेबसाइट पर जाकर सर्च में संस्थान का नाम डालें:
- टीचर्स एजुकेशन www.ncte-india.org
- लॉ www.barcouncilofindia.org
- डेंटल कोर्स www.dciindia.gov.in
- फार्मेसी www.pci.nic.in
- होम्योपैथी डिग्री www.cchindia.com
- यूनानी : www.ccimindia.org
- एग्रिकल्चर www.icar.org.in

डिस्टेंस लर्निंग/ पत्राचार से पढ़ाई के लिए क्या रखें ध्यान
पिछले चार दशकों में घर बैठे पढ़ाई का हमारे देश में खासा प्रसार हुआ है। इसकी शुरुआत सन 1982 में डॉ. भीमराव आम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी की स्थापना के साथ हुई थी। बाद में इंदिरा गांधी नैशनल ओपन यूनिवर्सिटी यानी इग्नू की शुरुआत से इसे ज्यादा बढ़ावा मिला। कोई भी ओपन यूनिवर्सिटी सामान्य, बिजनेस और टेक्निकल एजुकेशन आधारित डिग्री बांटने की पात्रता रखती हैं।

क्या है SOL: दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग दूरस्थ शिक्षा पद्धति से एजुकेशन देता है। यह कुछ विषयों में ही डिग्री जारी करता है, जिसमें बीए, बीकॉम, एमए, एमकॉम आदि शामिल है।

SOL और IGNOU में फर्क: एसओएल के माध्यम से आप बीए या बीकॉम की डिग्री हासिल कर सकते हैं जबकि इग्नू में कई तरह के कोर्स होते हैं। इग्नू साल में दो बार परीक्षा पास करने का मौका देता है, लेकिन एसओएल में साल में एक ही बार परीक्षा होती है।

कुछ प्रमुख मान्यता प्राप्त डिस्टेंस एजुकेशन इंस्टिट्यूट
1. नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी, पटना
2. वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी, कोटा
3. यशवंतराव चह्वाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी, नासिक
4. डॉ. बी. आर. आम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
5. इंदिरा गांधी नैशनल ओपन यूनिवर्सिटी, दिल्ली
6 स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग, दिल्ली

www.ugc.ac.in/deb पर जाकर खुद जांचें कि जिस डिस्टेंस एजुकेशन इंस्टिट्यूट में आप दाखिला ले रहे हैं, वह और उसका कोर्स मान्यता प्राप्त है कि नहीं।

www.knowyourcollege-gov.in- देशभर में फर्जी यूनिवर्सिटी का एक बड़ा जाल फैला हुआ है। वे कुछ इस तरह छात्रों को फर्जीवाड़े में फंसा रही हैं कि छात्रों को आसानी से उनकी जालसाजी का पता ही नहीं चलता। छात्रों की इस जाल से बचाने के लिए हाल ही में इस वेबपोर्टल को लॉन्च किया गया है। इस पर मान्यता प्राप्त कॉलेजों की जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती है।

31 मार्च 2019 तक देश में यूनिवर्सिटीज की कुल संख्या: 907
स्टेट यूनिवर्सिटीज: 399
डीम्ड यूनिवर्सिटीज: 126
सेंट्रल यूनिवर्सिटीज: 48
प्राइवेट यूनिवर्सिटीज: 334

लीगल एंगल
स्टूडेंट उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं, क्योंकि वे एजुकेशनल इंस्टिट्यूट को पैसे देकर उसकी सेवाएं लेते हैं। कोई भी छात्र शिक्षा संबंधी मुद्दों जैसे- टीचर का काफी दिनों तक अपॉइंट न होना, फैकल्टी की लगातार अनुपस्थिति, कॉलेज का रिलोकेशन आदि के लिए कंज्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के मुताबिक कोई भी शिक्षा संस्थान पूरे कोर्स की फीस एक साथ नहीं ले सकता। लेकिन अगर कोर्स एक सत्र या एक साल से ज्यादा का है तो ऐसे में संस्थान एक सत्र या एक साल की फीस एक साथ ले सकता है। अगर स्टूडेंट बीच में ही संस्थान छोड़ता है तो वाजिब कारण पर संस्थान अनुपातिक फीस काटकर बाकी की फीस स्टूडेंट को लौटाएगा। इस दौरान संस्थान स्टूडेंट के मूल सर्टिफिकेट नहीं रोक सकता। स्टूडेंट इन बातों के लिए कंस्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है:
- पढ़ाई की व्यवस्था सही न होना
- टीचरों की कमी होना
- सुविधाओं की कमी होना
- सिलेबस का समय पर शुरू न होना
- स्टडी मटैरियल न देना
- मूल प्रमाणपत्र देने से इनकार करना
- संस्थान के बारे में गलत तथा भ्रामक सूचना देना
- नौकरी का वादा करके उसे पूरा न करना
- कॉलेज छोड़ने पर फीस न लौटाना
- सभी सत्रों की फीस एक साथ मांगना

स्टूडेंट्स के साथ धोखाधड़ी के मामले में यूजीसी हस्तक्षेप करती है। वहीं डीम्ड यूनिवर्सिटी सबसे ज्यादा गड़बड़ी दूसरी जगहों पर अपने कैंपस या स्टडी सेंटर खोलने में करती है। इसके अलावा बिना मान्यता या इजाजत के डिपार्टमेंट भी खोले जाते हैं। स्टूडेंट को चाहिए कि किसी इंस्टिट्यूट की मान्यता या कोर्स के बारे में पता लगाने के लिए वे यूजीसी या एआईसीटीई और डीईबी की वेबसाइट पर जाकर जांच करें। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक अगर स्टूडेंट ने कोई भी कक्षा नहीं ली है तो ऐसी स्थिति में संबंधित संस्थान को सारे पैसे वापस करने होंगे। ऐसा न करने स्टूडेंट कंस्यूमर कोर्ट जा सकता है। कैसे जाएं और कहां जाएं- इसकी जानकारी के लिए 1800-11-400 पर फोन करें। nationalconsumerhelpline.in वेबसाइट पर भी जा सकते हैं।

पढ़ाई भारत में डिग्री विदेशी यूनिवर्सिटी की
देश में ऐसे कई प्राइवेट शिक्षा संस्थान हैं जो भारत में पढ़ाई कराने के बाद डिग्री किसी दूसरे देश की यूनिवर्सिटी की देते हैं। लेकिन बहुत बार इस डिग्री को भारत में मान्यता नहीं मिली होती। ऐसे में इस डिग्री के आधार पर देश में जॉब भी नहीं मिल पाती। दो साल की फास्ट ट्रैक की विदेशी डिग्री को यहां मान्यता नहीं हैं। किसे हैं, किसे नहीं है- यह जानने के लिए असोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटीज की वेबसाइट www.aiu.ac.in पर जाएं और वहां के इंफर्मेशन ब्रोशर फ्री में डाउनलोड करके पढ़ें।

विदेश में पढ़ाई
पिछले दिनों बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों को यूएस में हिरासत में ले लिया गया था। उन पर आरोप लगाया गया कि यूएस आने के लिए उन्होंने फर्जी यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। दूसरी ओर, स्टूडेंट्स का कहना था कि वे फर्जी यूनिवर्सिटी के जाल में फंस गए थे। ऐसे में जरूरी है कि अगर आप विदेश के किसी यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेना चाहते हैं तो सतर्क रहें। बेहतर होगा कि स्टूडेंट्स खुद इंटरनेट और एक्सपर्ट्स की मदद से सही विश्वविद्यालयों चुनें।

इन बातों का ध्यान रखें
- पता करें कि उस यूनिवर्सिटी के पास ऑपरेशनल कैंपस है या नहीं। ऐसा न हो कि वह किसी के घर से चल रही हो।
- फर्जी यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर अक्सर फैकल्टी की लिस्ट नहीं होती। एडमिशन से पहले यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर फैकल्टी की लिस्ट चेक करें।
- अगर किसी यूनिवर्सिटी के पास तय करिकुलम नहीं है तो आप एडमिशन कतई न लें।
- वीजा रैकेट में न फंसें। पे टु स्टे वीजा के लिए कभी भी हां न करें।
- याद रखें, स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम किसी यूनिवर्सिटी के जेनुइन होने की गारंटी नहीं है।
- यह पहले ही पता कर ले कि जिस देश में पढ़ने आप जा रहे हैं वहां पढ़ाई के साथ कमाने की इजाजत है या नहीं। काम करने संबंधी वीजा के नियम, रिसर्च की संभावनाएं, इंटरनेशनल स्टूडेंट्स सैटिस्फेक्शन इंडेक्स, रहने का खर्च आदि पहले पता कर लें।

ऐसे जांच करें
- आपने जो कॉलेज या इंस्टिट्यूट चुना है, वह फर्जी तो नहीं, यह चेक करने के लिए whed.net/home.php पर जाएं। यह वर्ल्ड हायर एजुकेशन डेटाबेस है। यहां दुनिया भर के तमाम प्रामाणिक कॉलेजों की लिस्ट है।
- अमेरिकी सरकार की वेबसाइट usa.gov/study-in-us पर जाएं। वहां से अमेरिका जाकर पढ़ाई करने के बारे में बेसिक और प्रामाणिक जानकारी मिल जाएगी।
- फिर आप जिस सब्जेक्ट की पढ़ाई करना चाहते हैं, वह कौन-कौन से कॉलेज और यूनिवर्सिटी में है, यह पता लगाएं। वह कॉलेज कैसा है, यह जानने की कोशिश करें। कॉलेज की वेबसाइट के अलावा उससे जुड़ी तमाम वेबसाइट्स पर जाएं। वहां के स्टूडेंट्स कहां-कहां काम कर रहे हैं, यह जानकारी हासिल करें। सभी कॉलेजों की एल्मनै (एल्युमिनाइज) असोसिएशन भी हैं, जो सोशल मीडिया (फेसबुक आदि) पर एक्टिव होती हैं। कॉलेज के बारे में उनके रिव्यू पढ़ें। कुछ निगेटिव कमेंट्स हैं तो उन पर खास ध्यान दें।
- यूएस में हर कॉलेज की रैंकिंग ऑनलाइन उपलब्ध है। usnews.com/best-colleges पर जाकर रैंकिंग चेक कर सकते हैं।

दाखिले से पहले परखें एक्सपर्ट्स पैनल
-देवेंद्र कुमार चौबे, प्रफेसर, इंडियन लैंग्वेज सेंटर, JNU
-प्रफेसर दरवेश गोपाल, राजनीति शास्त्र, IGNOU
-प्रफेसर गोपाल प्रधान, बी. आर. आम्बेडकर यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
-प्रेमलता, कंस्यूमर मामलों की जानकार
-रावी बीरबल, वकील, सुप्रीम कोर्ट
-आरती भल्ला, वकील, सुप्रीम कोर्ट

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World Immunization Week: बीमारियों के खिलाफ सुरक्षा कवच है वैक्सीन

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वैक्सीन यानी टीका बहुत-सी बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। हालांकि कुछ वैक्सीन को लेकर सवाल भी उठते रहते हैं कि इन्हें लगवाना चाहिए या नहीं या फिर कोई वैक्सीन नुकसान भी पहुंचा सकती है आदि। एक्सपर्ट्स से बात करते जरूरी टीकों के बारे में पूरी जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह-

सरकार ने देश भर में यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (UIP) चलाया हुआ है, जिसके तहत जन्म से लेकर 15 साल तक के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को अलग-अलग बीमारियों से बचाने के लिए वैक्सीन यानी टीके लगाए जाते हैं। सरकारी अस्पतालों में ये टीके मुफ्त लगाए जाते हैं। वैक्सीन प्राइवेट अस्पतालों में भी लगवा सकते हैं। वैसे, इस प्रोग्राम के अलावा भी डॉक्टर कुछ ऐसे टीके लगवाने की सलाह देते हैं, जो डब्ल्यूएचओ की लिस्ट में शामिल हैं। कुछ टीके कुछ खास इलाकों में होने वाली बीमारियों के अनुसार उन्हीं इलाकों में भी लगाए जाते हैं।

बेहद जरूरी टीके- (इसमें वे टीके आते हैं जो सरकारी प्रोग्राम या WHO की लिस्ट में शामिल हैं)

जन्म के फौरन बाद
BCG, OPV (पोलियो ड्रॉप्स), हेपटाइटिस बी
(टीबी, हेपटाइटिस बी और पोलियो से बचाव)
कीमत: `300-500, तीनों वैक्सीन मिलाकर

छठे हफ्ते (डेढ़ महीना) पर
DPT (डिप्थीरिया, टेटनस और काली खांसी से बचाव)
हेपटाइटिस बी (दूसरी डोज़) (हेपटाइटिस बी से बचाव)
एच इनफ्लुएंजा बी (मैनेंग्जाइटिस यानी दिमागी बुखार से बचाव)
कीमत: 5 बीमारियों (डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, हेपटाइटिस बी और मैनेंग्जाइटिस) के टीके को पैंटावेलेंट कहते हैं और पेनलेस वैक्सीन की कीमत 2400-2600 रुपये होती है, अगर पोलियो का इंजेक्शन भी साथ लेते हैं तो कीमत 2600-3900 रुपये तक हो सकती है। इन दिनों ज्यादातर पेंटावेलेंट ही लगाया जा रहा है।
रोटा वायरस (डायरिया से बचाव) कीमत: `650-1600, यह पिलाने वाली दवा है।
नीमोकॉकल (निमोनिया से बचाव) कीमत: `1500-3800

ढाई महीने पर
पेंटावेलेंट, पोलियो, रोटा वायरस, नीमोकॉकल
(डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, हेपटाइटिस, मैनेंग्जाइटिस, पोलियो और निमोनिया से बचाव)
कीमत: `4500-6500 तक, सभी वैक्सीन की

साढे़ तीन महीने पर
पेंटावेलेंट, पोलियो, रोटा वायरस, नीमोकॉकल
(डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनस, हेपटाइटिस, मैनेंग्जाइटिस, पोलियो और निमोनिया से बचाव)
कीमत: `4500-6500 तक, सभी वैक्सीन की

9वें महीने पर
MMR, विटामिन ए की ड्रॉप्स
(खसरा, कनफेड़ा, रुबैला से बचाव)
कीमत: `150-180

सवा से 2 साल

MMR, DPT बूस्टर, पोलियो बूस्टर, विटामिन ए ड्रॉप्स (खसरा, कनफेड़ा, रुबैला से बचाव)
कीमत: `300-500
नोट: बच्चे के 5 साल का होने तक हर छह महीने पर विटामिन ए की ड्रॉप्स पिलानी चाहिए।

24वें महीने (2 साल) पर
टाइफॉइड (टायफायड से बचाव)
कीमत: `1800 रुपये
नोट: यह वैक्सीन आमतौर पर तभी देना फायदेमंद है, जब बच्चा बाहर का खाना खाने लगता है। हालांकि टाइफॉइड मां से भी जा सकता है। कई बार डॉक्टर 9-10 महीने की उम्र में भी लगाते हैं।

5 साल पर
DPT लास्ट बूस्टर, पोलियो (लास्ट बूस्टर)
(डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनेस और पोलियो से बचाव)
कीमत: `20-30 `1100-1200 (पेनलेस)

9-15 साल के बीच
HPV (सर्वाइकल कैंसर से बचाव)
कीमत: `3000 प्रति डोज़, तीनों डोज़ जरूरी
नोट: इसे सेक्स शुरू करने की उम्र से पहले, करीब 11-12 साल की लड़कियों में लगवाना बेहतर है।
टिटनस (टेटनस से बचाव) कीमत: `100-200
नोट: DPT का कोर्स पूरा होने के बाद 10 और 15 साल की उम्र में इसे फिर से लगवाना चाहिए।

ध्यान दें-
-
मां का दूध बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाता है और कुदरती टीके का काम करता है। मम्स, मीजल्स जैसी कई बीमारियों से यह खासतौर पर बचाता है।
- 5 साल की उम्र तक अगर DPT का टीका मिस हो गया है तो फिर इसे लगवाना आमतौर पर जरूरी नहीं होता क्योंकि इसके बाद शरीर खुद ही इन बीमारियों के खिलाफ इम्युनिटी पैदा कर लेती है।

नोट- कुछ डॉक्टर चिकनपॉक्स से बचाव के लिए भी बच्चों में टीका लगवाते हैं, वहीं डॉ. संजय राय, मानते हैं कि इसकी जरूरत नहीं है। यह जानलेवा बीमारी नहीं है और एक बार होने के बाद दोबारा नहीं होती। वैसे भी यह महंगा टीका है और इसकी कीमत 1700-1800 रु होती है।

ये छह वैक्सीन हैं बड़ों के लिएः

ये टीके जरूरी-
HPV (सर्वाइकल कैंसर से बचाव)
कीमत:
`3000 प्रति डोज़, तीनों डोज़ जरूरी
- यह टीका फीमेल के लिए होता है। इसे 11-12 साल की लड़कियों में लगवाना चाहिए लेकिन 26 साल की उम्र तक महिलाएं इसे लगवा सकती हैं। हां, अगर महिला सेक्सुअली ऐक्टिव है और वायरस पहले ही लपेटे में ले चुका हो तो वैक्सीन असर नहीं करेगी। यह गार्डासिल (Gardasil) और सर्वरिक्स (Cervarix) नाम से मिलती है। गार्डासिल कैंसर करने वाले कुल 36 वायरस में से 4 और सर्वरिक्स 2 तरह के वायरस से बचाता है, जो सबसे कॉमन और खतरनाक हैं। जिन मरीजों की इम्युनिटी कमजोर हो या मल्टिपल पार्टनर हों, उन्हें भी यह टीका लगवाना चाहिए।

हेपटाइटिस बी (हेपटाइटिस से बचाव)
कीमत:
`200 तीनों डोज़ (सरकारी अस्पताल में) और `1000 (प्राइवेट अस्पताल में)
-बचपन में नहीं लगा तो इसे कभी भी लगवा सकते हैं लेकिन जितना जल्दी हो सके, लगवा लेना चाहिए। पहला इंजेक्शन लगने के बाद दूसरा अगले महीने और तीसरा छठे महीने लगना होता है।

नीमोकोकल (निमोनिया से बचाव)
-इसे किसी भी उम्र में लगवा सकते हैं लेकिन आमतौर पर हर 5 साल में लगवा लेना चाहिए। 65 से ज्यादा उम्र होने वाले, शुगर, कैंसर, दिल के मरीजों आदि को जरूर लगवाना चाहिए।

TT-1 और TT-2 (टेटनस से बचाव)
-ये दोनों टीके प्रेग्नेंसी में महिलाओं को लगाए जाते हैं। दोनों टीके शुरुआती दौर में लगाए जाते हैं। कीमत: `100-200 लगभग

ये टीके जरूरी नहीं
इन्फ्लुएंजा (स्वाइन फ्लू और कुछ दूसरे बुखारों से बचाव)
कीमत:
`1000-1200
-यह टीका 17 से लेकर 60 फीसदी तक असर करता है लेकिन आमतौर पर सबको इसे लगवाना जरूरी नहीं होता। हां, जिनकी इम्युनिटी कमजोर है जैसे कि डायबीटीज़, एचआईवी, दिल के मरीज आदि, उन्हें इसे लगवा लेना चाहिए। इसे हर साल अगस्त-सितंबर में लगवाएं क्योंकि हर साल इसके वायरस का स्ट्रेन बदल जाता है इसलिए जून-जुलाई में नई वैक्सीन आती है और उसे ही लगवाना फायदेमंद है।

हेपटाइटिस ए (पीलिया से बचाव)
कीमत: `1100 लगभग
-यह पीलिया से बचाता है लेकिन यह डब्ल्यूएचओ की वैक्सीनेशन की लिस्ट में नहीं है। आमतौर पर हम भारतीय पानी से पैदा होने वाली बीमारियों के प्रति 10 साल की उम्र तक इम्युनिटी पैदा कर लेते हैं। साथ ही, पीलिया अगर एक बार हो जाए तो दोबारा नहीं होता। ऐसे में यह टीका लगवाना जरूरी नहीं है।

नोट: यहां दी गईं कीमतें अनुमानित हैं, उनमें बदलाव मुमकिन है। ज्यादातर टीके सरकारी अस्पतालों में मुफ्त लगाए जाते हैं। कुछ टीकों को लेकर एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय है कि उन्हें लगाया जाना चाहिए या नहीं।

चंद अहम सवाल- जवाबः
टीका लगवाना खतरनाक तो नहीं?
टीका लगवाना खतरनाक नहीं है बल्कि टीका लगवाने से किसी भी बीमारी के होने के आसार 80-90 फीसदी तक कम हो जाते हैं। हां, अगर गैर-जरूरी टीके या फिर जरूरत से ज्यादा टीके लगवाने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा होने पर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। ऐसा भी मुमकिन है कि शरीर कन्फ्यूज हो जाए कि कौन-सी बाहरी चीज नुकसानदेह है और कौन-सी नहीं/ ऐसे में शरीर में ऑटो-इम्यून बीमारियां होने की आशंका बढ़ सकती है यानी शरीर के किसी अंग के सेल्स अपने ही खिलाफ जंग छेड़ दें। वैसे भी, अभी तक ज्यादातर टीकों के फायदों पर रिसर्च हुई है लेकिन इनसे हो सकने वाले नुकसान पर अभी रिसर्च जारी हैं। ऐसे में फालतू टीकों से बचना चाहिए।

जिंदा वायरस शरीर में डालना कितना सही?
कुछ टीकों में शरीर में डेड माइक्रोब्स (बैक्टीरिया या वायरस) डाला जाता है तो कुछ में जिंदा। BCG, पोलियो ड्रॉप्स, मीजल्स, रुबैला आदि की वैक्सीन में जिंदा माइक्रोब्स इस्तेमाल होते हैं तो DPT, हेपटाइटिस, पोलियो इंजेक्शन, टिटनस आदि में डेड माइक्रोब्स। ये माइक्रोब्स शरीर में जाकर कुदरती तौर पर एंटीबॉडी बनते हैं यानी शरीर पहचान कर लेता है कि यह बैक्टीरिया या वायरस खतरनाक है और उससे लड़ने के लिए खुद को पहले ही तैयार कर लेता है। जिन टीकों में जिंदा बैक्टीरिया या वायरस डाला जाता है, उसे भी पहले जेनिटिकली मॉडिफाइड करके इतना कमजोर कर दिया जाता है कि वह शरीर को बीमार नहीं कर सकता। यह शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और शरीर किसी बाहरी चीज के खिलाफ लड़ाई के लिए खुद को उसके अटैक करने से पहले ही तैयार कर लेता है। डेड माइब्रोब्स की मात्रा कम डाली जाती है इसलिए इनके टीके बार-बार लगवाने पड़ते हैं।

कोई टीका मिस हो जाए तो?
अगर कोई टीका मिस हो जाए तो अपने डॉक्टर से सलाह लें। हालांकि WHO की गाइडलाइंस कहती हैं कि एक डोज़ छूटने पर उसकी डोज़ साल भर के अंदर भी ले सकते हैं। पहली डोज़ से शरीर खुद को उस माइक्रोब के प्रति संवेदनशील करता है और शरीर की मेमरी में यह दर्ज हो जाता है कि यह पहले भी शरीर में आ चुका है। पूरा कोर्स दोबारा करने की जरूरत नहीं होती। फिर भी इस बारे में डॉक्टर से सलाह कर लेना बेहतर है।

पल्स पोलियो के तहत हर बार पोलियो ड्रॉप्स पीना जरूरी या नहीं?
अगर बच्चे के जन्म के समय, 6ठे, 10वें और 14वें हफ्ते के अलावा 16 से 24 महीने में बूस्टर डोज़ दिया जाता है तो पोलियो से सुरक्षा मिल जाती है लेकिन सरकार ने पूरे देश को पोलियो मुक्त करने के लिए 'पल्स पोलियो मिशन' चलाया हुआ है। उसकी कामयाबी के लिए जरूरी है कि हम बच्चों को पल्स पोलियो मिशन के दौरान हर बार पोलियो ड्रॉप्स पिलाएं ताकि हमारे देश के पूरे इन्वाइरनमेंट से पोलियों का वायरस पूरी तरह निकल सके।

एक्सपर्ट्स पैनल
-डॉ. विवेक गोस्वामी पीडियाट्रिशन, फोर्टिस हॉस्पिटल
- डॉ. हर्शल आर. साल्वे असिस्टेंट प्रफेसर, एम्स
- डॉ. उर्वशी प्रसाद झा सीनियर गाइनिकॉलजिस्ट और सर्जन
- डॉ. संजय राय प्रफेसर, कम्युनिटी मेडिसिन, एम्स

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