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पहले साइबर सेक्स फिर ब्लैकमेलिंग, बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक हो रहे शिकार

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एक्सपर्ट्स पैनल
मदन एम. ओबेरॉय, सीनियर पुलिस ऑफिसर
पवन दुग्गल, साइबर क्राइम एक्सपर्ट
डॉ. जितेंद्र नागपाल, सीनियर साइकायट्रिस्ट
डॉ. अंजलि छाबड़िया, सीनियर साइकायट्रिस्ट
डॉ. दीपक रहेजा, सीनियर साइकायट्रिस्ट

बस एक भूल और जिंदगी बेजार हो जाती है। यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं बल्कि साइबर क्राइम के शिकार हुए लोगों की हकीकत है। आजकल सोशल मीडिया पर सेक्स, एंटरटेनमेंट, एक्साइटमेंट और धोखाधड़ी का धंधा जोरों पर है। इंटरनेट पर ऐसी भूल न करें। अगर गलती हो भी जाए तो उससे निपटने के तरीके क्या हो सकते हैं, एक्सपर्ट्स से बात कर पूरी जानकारी दे रही हैं अनु जैन रोहतगी...

34 साल की रीमा (बदला हुआ नाम), एक मल्टी नैशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर हैं। शादीशुदा हैं और 10 साल का बेटा भी है। पति का बड़ा बिजनस है और काम के सिलसिले में अक्सर बाहर रहता है। पैसों की कमी बिल्कुल नहीं है। रीमा को भी ऑफिस के काम के लिए बाहर जाना पड़ता है इसलिए घर नौकर-चाकर के भरोसे चल रहा है। रीमा काम के साथ-साथ मौज-मस्ती के लिए भी पूरा समय निकाल लेती हैं। वीकेंड पार्टी या फिर फेसबुक चैटिंग में गुजर जाता है। एक दिन अचानक रीमा की जिंदगी में जैसे भूचाल आ जाता है। उसे एक मेल आता है और उसका टाइटल भी कुछ चौकाने वाला होता है। Read the mail and act wisely (मेल पढ़ो और समझदारी से काम करो)। रीमा उत्सुक होकर मेल खोलती है, तो उसके होश उड़ जाते हैं। मेल में रीमा की कुछ बिना कपड़ों के फोटो हैं। साथ में लिखा है 5 लाख रुपये चाहिए, नहीं तो ये फोटो तुम्हारे पति को भेज दी जाएंगी। कुछ समय पहले ही रीमा ने अपने एक नए फेसबुक फ्रेंड के दबाव में और शराब के नशे में उत्तेजित होकर फेसबुक पर चैट के दौरान अपने कपड़े उतार दिए थे। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि चैट के दौरान उसकी बिना कपड़ों के फोटो को खींची जाएगी और उसे ब्लैकमेल किया जाएगा। शर्म में डूबी रीमा बहुत डर गई और किसी को बताए बिना ही पहली बार 5 लाख और दूसरी बार 3 लाख रुपये देकर अपनी जान छुड़ाई। इस बात को काफी समय हो चुका है, लेकिन अभी तक रीमा डर के साये में जी रही है। एक साइकायट्रिस्ट के पास उसकी अभी तक काउंसलिंग चल रही है।

28 साल के रवि (बदला हुआ नाम) दिल्ली में अकेले रहता है। अच्छी जॉब है। परिवार से दूर होने के कारण रात का समय फेसबुक, वाट्सअप चैट पर ही गुजरता है। कई वट्सऐप दोस्त भी बन गए हैं। लेकिन फेसबुक की यह दोस्ती एक दिन रवि को बहुत भारी पड़ गई। फेसबुक नोटिफिकेशन चेक करते समय अचानक एक सुंदर लड़की का चेहरा सामने आकर रवि से दोस्ती की पेशकश करता है। अकेले रह रहे रवि की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई। दो-तीन दिन लगातार देर रात तक बातें होती रहीं और दोस्ती प्यार में भी बदल गई। एक दिन लड़की ने रवि के सामने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। उसने रवि को भी ऐसा करने पर उकसाया। लड़की का जुनून रवि के सिर पर सवार था और उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए। कब, कैसे उसने लड़की की अदाओं पर रीझ कर मैस्टरबेशन भी कर लिया। अगले ही दिन रवि की सारी खुमारी उतर गई, जब चैट पर उस लड़की के बजाय उसे एक लड़के ने संबोधित किया और धमकाया कि उसके पास मैस्टरबेशन करते हुए रवि की सेक्स रिकॉर्डिंग है।

अगर 10 लाख रुपये नहीं मिले तो वह विडियो उसके परिवार और दोस्तों को भेज दिया जाएगा। घबराए रवि ने तुंरत चैट बंद कर ली और फेसबुक अकाउंट ही डिलीट कर दिया। लेकिन यह उस गलती का हल तो नहीं था जो रवि कर चुका था। अगले दिन रवि को एक मेल मिलता है जिस पर लिखा होता है वॉच एंड डिसाइड (देखो और फैसला करो) मेल में एक क्लिपिंग में रवि की मैस्टरबेशन करते हुए की 2 मिनट की विडियो थी। रवि बहुत घबरा चुका था, लेकिन उसने समझदारी से काम लिया और ये बात अपने एक वकील दोस्त से शेयर कर ली। वकील ने उसे फौरन पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने की सलाह दी और फेसबुक को इसकी जानकारी देकर, ब्लैकमेल करने वाले की पहचान देने का ईमेल लिखा। इसका असर यह हुआ कि पकड़े जाने के डर से ब्लैकमेलिंग करने वालों ने मेल भेजना बंद कर दिया और रवि की जान में जान आई। साथ ही उसे एक अच्छा सबक भी मिला।

25 साल की नेहा के मामले में उसे मजा चखाने, बदनाम करने के लिए, उसके ही साथ काम करने वाले एक सहयोगी ने बाकायदा उसके कंप्यूटर को हैक करके उसकी कुछ गंदी फुटेज का विडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। बात यह थी कि नेहा ने अपने सहयोगी के शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था, इससे नाराज होकर उसने नेहा को बदनाम करने की ठान ली। नेहा के बारे में उसने घर के नौकरों और कुछ करीबी सहेलियों से जानकारी ली। पता चला कि नेहा अपने कमरे में बिना कपड़ों के घूमती है और उसका कंप्यूटर-वेबकैम 24 घंटे चालू रहता है। बस उसने नेहा के कंप्यूटर को हैक करके, रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। लगभग डेढ़ घंटे का विडियो बनाया और 5 मिनट की फुटेज नेहा को भेज दी। नेहा का मामला फिलहाल कोर्ट में चल रहा है।


ब्लैकमेलिंग के ऐसे मामलों को सेक्सटॉर्शन (sextortion) के नाम से जाना जाता है और इसके शिकार लोगों की संख्या विदेशों में तो थी ही, अब अपने देश में भी तेजी से बढ़ रही है। आज की मॉडर्न लाइफ में इंटरनेट चैटिंग एक जुनून, एक जरूरत, एक स्टाइल बनती जा रही है। चैंटिंग के दौरान पता ही नहीं चलता कि आप कब-कैसे दूसरे आदमी से एकदम खुल जाते हैं, उससे हर बात शेयर करने लगते हैं। जब पता चलता है तो बहुत देर हो चुकी होती है।

इसी बात का फायदा कुछ साइबर क्राइम में ऐक्टिव गैंग उठा रहे हैं। इनका धंधा ही सेक्सटॉर्शन के जरिए लोगों को फंसाना और पैसा कमाना है। सेक्सटॉर्शन के शिकार लोगों की कोई उम्र सीमा नहीं है। एक तरफ जहां इसमें स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियां शिकार होती हैं, वहीं कई बार 50-55 साल तक के लोग भी लड़कियों से दोस्ती, उनसे संबंध बनाने के चक्कर में सेक्सटॉर्शन का शिकार बन रहे हैं।

बदनामी और शर्म के चलते ऐसे मामले पुलिस के पास बहुत कम पहुंचते हैं, लेकिन कई बार साइकायट्रिस्ट के पास पहुंच जाते हैं। बदनामी, शर्म, ग्लानि के चलते ऐसे लोग डिप्रेशन, घबराहट, काम में मन न लगना, नींद न आना और कई साइकोसोमैटिक (मानसिक बीमारी के कारण शारीरिक बीमारी हो जाना) बीमारियों का शिकार बनकर एक्सपर्ट के पास पहुंचते हैं। वहां भी बहुत मुश्किल से ही कोई बात सामने आती है। साइकायट्रिस्ट कई-कई काउंसलिंग के बाद ही सच्ची बात सामने आती है। साइकायट्रिस्ट के पास अमूमन दो तरह के मामलों में लोग सलाह या इलाज कराने के लिए आ रहे हैं। पहले वे मामले हैं, जो सेक्सटॉर्शन का शिकार हो चुके हैं और अब डिप्रेशन, नींद न आना जैसी बीमारियों का शिकार बन चुके हैं। दूसरा ग्रुप ऐसे लोगों का है जो नशे, पागलपन में वेब चैट के दौरान सेक्स गतिविधियां कर चुके हैं या अपने किसी दोस्त को अपनी बोल्ड तस्वीर शेयर कर चुके हैं। उन्हें अब रह-रहकर फोटो, विडियो लीक होने, ब्लैकमेलिंग का शिकार होने का डर सता रहा है। हालांकि, उनकी वेब पर फ्रेंडशिप कायम है, लेकिन एक डर के साथ। ऐसे लोग डर, घबराहट के साथ मदद लेने पहुंचते हैं कि अगर कुछ उलटा-सीधा हो गया तो वह क्या करे?

क्या है सेक्सटॉर्शन
स्पाई कैमरे या मोबाइल या वेब कैम के जरिए किसी की सेक्स गतिविधि को रिकॉर्ड करना या किसी की बिना कपड़ों की तस्वीरों को शूट करके उसके जरिए ब्लैकमेल करने को सेक्सटॉर्शन कहा जाता है। सेक्सटॉर्शन के ऐसे मामले पिछले दो-तीन बरसों से ही सामने आ रहे हैं। अहम बात यह भी है कि दूसरे ब्लैकमेलिंग के मामलों की तरह ऐसे केसों की रिपोर्टिंग भी बहुत कम है। पिछले एक-दो बरसों में कुछ लोग हिम्मत करके पुलिस, वकील और डॉक्टरों के पास मदद के लिए पहुंच रहे हैं और पता चलने लगा कि है सेक्सटॉर्शन के इस तरीके से लोगों को ठगा जा रहा है।

कैसे फंसाते हैं
इस काम में ऐक्टिव कुछ ग्रुप फेसबुक, स्काइप या किसी दूसरे माध्यम का इस्तेमाल करके अपने शिकार को फंसाते हैं। पहले ये इंटरनेट पर अपनी नकली पहचान बनाते हैं। फिर खूबसूरत लड़के-लड़कियों को हनी ट्रैप की तरह इस्तेमाल करके अपने शिकार से दोस्ती करवाते हैं। उन्हें बहुत करीब आने, दोस्ती बढ़ाने के लिए उकसाते हैं। धीरे-धीरे अपने शिकार को वेबकैम के सामने सेक्सुअल ऐक्ट करने, कपड़े बदलने और उतारने के लिए उकसाते हैं। हैरानी की बात तो यही है कि ज्यादातर लोग इनके चंगुल में फंस जाते हैं। यही कारण है कि इनके शिकार लोगों की संख्या बढ़ रही है। अपने शिकार को फंसाने के लिए इन्हें 10 दिनों से लेकर कई महीनों का समय लग जाता है। ज्यादातर गैंग बहुत ही प्रफेशनल तरीके से काम करते हैं। टारगेट की माली हालत, परिवार, मैरिटल स्टेट्स, शौक आदि की जानकारियां जुटाई जाती हैं। पता चलने पर कि लड़का या लड़की पैसेवाला है। दिलफेंक है, करीबी दोस्त बनाने पर यकीन करता है, तभी उनको टारगेट किया जाता है और पूरा समय लगाया जाता है। जानकारों के मुताबिक इस समय इस काम में लगे 80 फीसदी इंटरनैशनल गैंग ऐक्टिव हैं, जबकि देसी गैंग की संख्या 20 फीसदी होगी।

क्या हैं सेक्सटॉर्शन के तरीके
इस समय सबसे ज्यादा फेसबुक के जरिए लोगों को फंसाया जा रहा है। इसके बाद स्काइप, लिंक्ड-इन, स्नैपचैट, इंस्टाग्रैम का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

नेट पर दोस्ती: पहले दोनों की रजामंदी से वेबकैम के सामने कपड़े बदलने, सेक्सुअल ऐक्ट करने का सिलसिला शुरू हो जाता है और बाद में यही एपिसोड ब्लैकमेलिंग में बदल जाता है।

कंप्यूटर हैकिंग: कंप्यूटर हैक करके भी सेक्सटॉर्शन के बहुत मामले सामने आए हैं, लेकिन इस क्राइम को ज्यादातर बहुत ही प्रफेशनल लोग करते हैं। सफल हो गए तो बहुत ही मोटी रकम उगाही जाती है। इसके शिकार वही लोग बनते हैं, जो बहुत ज्यादा अपना समय वेब कैम के सामने गुजरते हैं। उसके सामने ही कपड़ें बदल लेते हैं या कोई सेक्सुअल ऐक्ट करते हैं। हैकर लगातार आपके कंप्यूटर का विडियो रिकॉर्डिंग करते हैं और जब भी कोई बिना कपड़ों के वीडियो या फोटो हाथ लगती है, सेक्सटॉर्शन शुरू कर देते हैं।

सिस्टम में बिना कपड़ों की तस्वीरें
हैकर उन लोगों के भी कंप्यूटर हैक करते हैं, जो फन या एक्साइटमेंट में अपना ही सेक्स विडियो या बोल्ड तस्वीरें सिस्टम में डाल देते हैं। उनका सिस्टम हैक करके उनसे उगाही के मामले भी सामने आ रहे हैं।

फोटो की मॉर्फिंग

कई बार आपकी फोटो को मॉर्फ करके आपका फेस किसी और लड़की या लड़के के शरीर पर फिट कर दिया जाता है, जिसने कपड़े नहीं पहने होते। यह काम इतनी बखूबी होता है कि मॉर्फ फोटो के जरिए ही सेक्सटॉर्शन शुरू हो जाता है।

स्नैपचैट का खेल
आजकल स्नैपचैट का काफी क्रेज है। खासकर स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वालों के बीच ज्यादा है। इसे भी सेक्सटॉर्शन के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया गया है। जानकारों के मुताबिक यंग लड़के-लड़कियां अपनी बोल्ड तस्वीरें एक मेसेज के जरिए एक-दूसरे को भेजते हैं। यह मेसेज अपने आप ही 10 सेकंड में डिलीट हो जाता है। भेजने वाला फन में यह काम करता है, लेकिन कुछ सॉफ्टवेयर ऐसे भी आ गए हैं जिनकी मदद से भेजी गई तस्वीरों को 10 सेकंड में सेव कर लिया जाता है और फिर ब्लैकमेलिंग शुरू हो जाती है।

किन कारणों से सेक्सटॉर्शन

इसके तीन अहम कारण है:
1. सबसे बड़ा कारण है पैसे की उगाही। जानकार बताते हैं कुछ इंटरनैशनल गैंग बहुत ज्यादा ऐक्टिव होकर काम कर रहे हैं, उनका सिर्फ एक ही मकसद है पैसे कमाना। इसके लिए वे कंप्यूटर हैकिंग से लेकर नेट फ्रेंडशिप के जरिए अलग-अलग देशों के लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। इनका शिकार बनने वालों में टीनएजर के साथ विवाहित महिलाओं की संख्या ज्यादा है। अमीर, शादीशुदा या परिवार से दूर रहने वाले पुरुष भी इनके टारगेट पर रहते हैं। ये लोग 60-70 साल के लोगों को भी अपना शिकार बनाने के लिए ढूंढते हैं।
2. किसी को मजा चखाने, बदला लेने, किसी की इमेज को खराब करने के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा है। कई लोग व्यक्तिगत रूप से किसी से बदला लेने के लिए भी यह काम करते हैं।

3. पीडोफिलिक (बच्चों के साथ संबंध बनाने वाला) भी यह काम कर रहे हैं। बच्चों को चैट पर आकर्षित करके, उनके बोल्ड विडियो, फोटो रिकॉर्ड कर लेते हैं और फिर बाद में उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करते हैं। यूएस और कई दूसरे देशों में ये मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। अब हमारे देश में भी इस जुर्म की शुरुआत हो चुकी है।

जब बन जाएं शिकार
1. सबसे पहले नजदीक के थाने या साइबर क्राइम सेल में इसकी रिपोर्ट करें।
2. अपने परिवार के किसी सदस्य को इसकी जानकारी जरूर दें। बताने में बहुत शर्म आएगी, लेकिन यह बहुत-सी परेशानियों से बचाएगा।
3. जिस आईडी का इस्तेमाल करके आपको ब्लैकमेल किया गया है, उसे तुरंत ब्लॉक कर दें।
4. अपने इंटरनेट एडमिन को फौरन सूचित करें और ब्लैकमेल करने वाले की आईडी के बारे में जानकरी हासिल करें। जैसे आप फेसबुक पर सेक्सटॉर्शन का शिकार बने हैं तो फेसबुक एडमिन को फौरन सूचित करें।
5. जिस प्लैटफॉर्म पर आपको शिकार बनाया गया है, उसको कुछ समय के लिए डीऐक्टिवेट कर दें।
6. यह बात ध्यान रखें कि आप जितना डरेंगे, उतना ही आपको डराया जाएगा।
7. आपने ब्लैकमेल करनेवाले से जो भी चैट किया है, उसका स्क्रीन शॉट ले लें।
8. अगर आपने ब्लैकमेलिंग के लिए ऑनलाइन पेमंट किया है, तो पेमंट कहां गया है, उसे देखकर पुलिस को जानकारी दें।
9. ब्लैकमेलर के जरिए दी गई किसी भी जानकारी का पूरा रिकॉर्ड रखें। जैसे कि स्काइप की नाम, आईडी, फेसबुक यूआरएल, वेस्टर्न यूनियन या मनीग्राम का मनी ट्रांसफर कंट्रोल नंबर।

क्या ना करें
1. कभी भी चुप ना बैठें। यह मत सोचें कि एक बार पैसा देकर बच जाएंगे। हो सकता है और डिमांड आनी शुरू हो जाए। आपसे गलती हुई है, इसलिए उसका सामना करें। आत्मविश्वास के साथ लड़ें।
2. कभी भी किसी रिकॉर्डिंग, बातचीत, मेल को डिलीट न करें। दरअसल, ये लिंक्स आगे चलकर पुलिस के काम आती हैं।
3. कभी भी डिमांड करने वाले से सीधी बात ना करें। फोन पर बात न करें। इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलता है।
4. ज्यादातर साइबर गैंग फोटो या सेक्स रिकॉर्डिंग्स की क्लिपिंग भेजने के लिए मेल का इस्तेमाल करते हैं, कोशिश करें, उसे बार-बार ना देखें। आप परेशान होंगे।
5. पैसा बिलकुल ना दें। एक बार अगर दे दिया तो भी डिमांड आ सकती है। इतना ही नहीं, यह भी मुमकिन है कि ब्लैकमेलर पैसा लेने के बाद भी आपकी सेक्स विडियो वायरल कर दे।

स्कूल-कॉलेज के बच्चे शिकार

चिंता की बात यह है कि ऐसे मामलों में स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले यंग लड़के-लड़कियां भी शिकार हो रहे हैं। कुछ फेसबुक पर चैट के दौरान हनी ट्रैप का शिकार हो रहे हैं तो कुछ बच्चे वेब कैम के जरिए। ये पीडोफिलिक के भी संपर्क में आ रहे हैं और शिकार होते हैं। हैरानी की बात है कि काउंसलर, साइकायट्रिस्ट के पास आने वाले ऐसे मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं, जहां 12 से 19 साल के बच्चे फन, फैशन, दिखावे, प्यार में या बेवकूफी में अपनी बोल्ड तस्वीरें या विडियो अपने दोस्तों को शेयर करते हैं और बाद सेक्सटॉर्शन का शिकार होते हैं।
16 साल की सविता (बदला हुआ नाम है) का अपने स्कूल में पढ़ने वाले एक लड़के से अफेयर हो गया। लड़के ने सविता को प्यार का वास्ता देकर कम कपड़ों में फोटो भेजने के लिए मना लिया। उसी फोटो को, उस लड़के ने अपने एक दोस्त के साथ शेयर कर दिया। बस उसके दोस्त के शैतानी दिमाग ने सविता को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। पहले थोड़े-बहुत पैसों की मांग शुरू की, लेकिन बाद में उसने अपने साथ संबंध बनाने के लिए सविता पर दबाव डालना शुरू कर दिया। परेशान सविता धीरे-धीरे डिप्रेशन में जाने लगी, स्कूल जाने से कतराने लगी, हंसमुख स्वभाव की सविता बहुत उदास रहने लगी। पैरंट्स को लगा कुछ गड़बड़ है और उसे काउंसलिंग के लिए एक्सपर्ट के पास ले गए। एक-दो नहीं बल्कि 6 सिटिंग के बाद कविता कुछ खुली और डॉक्टर को बताया। पूरा वाकया सुनकर पैरंट्स के होश उड़ गए। स्कूल में प्रिंसिपल को इसकी जानकारी दी गई और दोनों लड़कों के खिलाफ सख्त कारवाई हुई। स्कूल-कॉलेजों में सेक्सटॉर्शन के ऐसे मामले कुछ ज्यादा आ रहे हैं।

कैसे पहचानें पैरंट्स
-बच्चा बहुत ज्यादा समय इंटरनेट पर बिताता है, रात में कुछ ज्यादा।
-उसके कमरे का दरवाजा हमेशा बंद रहता है या वह अकेले कोने में बैठना पसंद करता है।
-दरवाजे पर दस्तक देकर अंदर आने पर जोर देता है।
-अपोजिट सेक्स के साथ दोस्ती करने के लिए हमेशा इच्छुक रहता है।
-इंटरनेट पर दोस्तों की लिस्ट काफी लंबी है।
-कई बार डिप्रेशन के शिकार बच्चे भी गलत चीजों में फंस जाते हैं, इसलिए बच्चे की इस बीमारी को गंभीरता से लें।
- स्कूल जाने से कतराने लगा है।
-दोस्तों-परिवार से कटने लगा है।
- भूख कम हो गई है या बहुत ज्यादा खाने लगा है।
-बच्चा अगर रियल जिंदगी से ज्यादा रील जिंदगी में यकीन करने लगा है।
-किसी लड़के या लड़की से ब्रेकअप हो चुका है। इमोशनल ट्रॉमा में चल रहा हो।
ये ऐसी बातें हैं, जो बच्चे को सेक्सटॉर्शन में फंसने के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराती हैं। इसलिए पैरंट्स के लिए यह जरूरी है कि वे अपने बच्चों पर नजर रखें।

कैसे बचाएं बच्चों को
-इंटरनेट चाहे कंप्यूटर पर उपलब्ध हो या फोन पर, उसकी समयसीमा जरूर बना दें। बच्चे अमूमन इसे मानते नहीं, लेकिन यह जरूरी है।
-बच्चों के सामने पैरंट्स भी सोशल मीडिया पर ज्यादा ऐक्टव न रहें। इससे बच्चों के सामने सही उदाहरण पेश होगा।
-बच्चों को समझाएं कि इंटरनेट पर 3000 दोस्त बनाने के बजाय असल जिंदगी में तीन अच्छे दोस्त बनाना बड़ी उपलब्धि है। ऐसे दोस्त ही वक्त पर काम आते हैं।
-बच्चा अगर लगातार चैट करता है तो कभी-कभी उसके बारे में जानकारी लें। मसलन कौन दोस्त बना है, कहां रहता है, परिवार में कौन-कौन है? उस दोस्त तक भी यह जानकारी पहुंचाएं कि आप उसके बारे में थोड़ा-बहुत जानते हैं।
-बच्चों के साथ दोस्ताना बने रहिए। उनमें हर छोटी-बड़ी बात शेयर करने की आदत डालें, इसके लिए आपको समय निकालना होगा।
-बच्चों को सेक्सटॉर्शन के बारे में जरूर जानकारी दें।
- उनके सोशल मीडिया अकाउंट में से मोबाइल नंबर, ईमेल आदि की जानकारी हटवा दें।

क्या ना करें
1. गुस्सा करना: गैजेट्स का इस्तेमाल कम या सीमित करने के लिए बच्चा नहीं मान रहा है तो गुस्सा न करें, डांट बिल्कुल न लगाएं। इससे बच्चा विद्रोह कर सकता है और फिर छुपकर वही काम करेगा।
2. बातचीत बंद करना: उसके साथ बातचीत के जरिए ही संवाद कायम रखें। इसमें समय लगेगा लेकिन वह आपकी बात माने लेगा।
3. मोबाइल छीनना: गुस्से में आकर उसका मोबाइल फोन न छीनें। इंटरनेट कनेक्शन न कटवाएं। इससे वह इंटरनेट का इस्तेमाल बाहर कर लेगा, जो ज्यादा खतरनाक है।
4. गलती को फैलाना: बच्चे की किसी गलती का पता लग गया है तो उसकी गलती का ढिंढोरा नहीं पीटें। इससे पहले से ही परेशान, ग्लानि में डूबे बच्चे का आत्मविश्वास टूट सकता है। वह डिप्रेशन में जा सकता है। कोई गलत कदम उठा सकता है। बच्चे की मदद करें। उसे यकीन दिलाएं कि हर समस्या, परेशानी में आप उसके साथ ही खड़े हैं। बच्चे की समस्या का हल ढूंढ़ने की कोशिश करें।
5. चुप बैठ जाना: बच्चा अगर सेक्सटॉर्शन का शिकार हो गया है तो चुप बिल्कुल न बैठें। स्कूल से नाम कटवाने के बजाय या कहीं दूर भेजने के बजाय प्रिंसिपल, संबंधित अधिकारियों से शिकायत करें। वह कॉलेज में है तो पुलिस, संबंधित एक्सपर्ट, एजेंसियों की फौरन मदद लें। याद रखें आप अगर चुप बैठ गए तो बदमाश का साहस और बढ़ेगा। आज उसने आपके बच्चे को शिकार बनाया है, कल किसी और को बनाएगा। इस बढ़ती हुई चेन को तोड़ना बहुत जरूरी है।

सेक्सटॉर्शन से निपटने के लिए कानून
1. सबसे पहले आईटी ऐक्ट के तहत मामला दर्ज होता है।
2. क्योंकि यह क्राइम पैसा के लिए होता है, इसलिए आईपीसी की धारा 384 लागू होगी।
3. धारा 292 अश्लीलता से संबंधित है, जिसके तहत मामला दर्ज हो सकता है।
4. इसके अलावा धारा 67, 67ए, बी के तहत भी मामला दर्ज हो सकता है।
5. शिकायतकर्ता अगर महिला है तो 'इंडिसेंट रिप्रजेंटेशन ऑफ वुमन' ऐक्ट का भी पुलिस इस्तेमाल कर सकती है।
6. यदि आप पुलिस में नहीं जाना चाहते और क्रिमिनल केस नहीं चाहते तो सिविल केस दर्ज कर सकते हैं। इसमें नेट ऐडमिन तक को नोटिस भिजवाकर जानकारी मांगी जा सकती है।

बढ़ रहे हैं इंटरनेट मिसयूज के मामले
माइक्रोसॉफ्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार 77 प्रतिशत भारतीय किसी-न-किसी रूप में साइबर क्राइम मिसयूज के शिकार हुए हैं, इनमें साइबर बुलिंग, ट्रॉलिंग, ऑनलाइन सेक्स संबंधित मेसेज भेजना, तंग करना, सेक्सटॉर्शन जैसे अपराध शामिल हैं। इस स्टडी का मकसद लोगों को साइबर क्राइम के बढ़ते खतरों से जागरूक करने और उनसे सावधान रहने के लिए की गई थी।


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बारिश में कार न हो जाए बे-कार

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ऑटो एक्सपर्ट्स: टूटू धवन, अशोक राजन गुप्ता, रनोजॉय मुकेरजी

मॉनसून यूं तो मौज और मजे का मौसम है, लेकिन इससे दिक्कतें भी कम नहीं होतीं। इस मौसम में अपने स्वास्थ्य के साथ गाड़ी की सेहत का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है। नहीं तो बरसात के ठहरे पानी में आपकी गाड़ी अटक सकती है। बारिश में अपनी कार की देखभाल के लिए एक्सपर्ट्स से बात कर जरूरी टिप्स बता रहे हैं नरेश तनेजा

...तो बारिश में गाड़ी नहीं होगी पानी-पानी
बरसात के मौमस में गाड़ियों का मिजाज कुछ अलग सा रहता है। घर से निकलने के बाद अगर तेज बारिश होने लगे तो सड़क पर फंसने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में मॉनसून की तैयारी पहले से करके रखना अक्लमंदी की बात है। गाड़ी अगर सड़क पर फंस गई तो लेने के देने पड़ सकते हैं। पूरे का पूरा प्रोग्राम चौपट हो सकता है, लेकिन अगर आप कुछ बातों पर गौर फरमाएंगे तो बारिश में भीगने के बाद भी गाड़ी सर्दी-जुकाम से मुक्त रहेगी।

अच्छे टायर्स तो गाड़ी बोले चीयर्स

बरसात में सफर पर निकलने से पहले गाड़ी के टायरों को चेक कर लें। यह मुमकिन है कि टायर्स की रबड़ पूरी तरह घिस गई हो। अगर टायरों पर रबड़ की धारियां नजर न आ रही हों तो समझ लीजिए कि टायर घिसे हुए हैं और ये सड़क पर चलने लायक नहीं हैं। बारिश में इन टायरों के साथ गाड़ी चलाने से ज्यादा परेशानी खड़ी हो सकती है क्योंकि सड़कें गीली होती हैं। इससे गाड़ी में ब्रेक कम लगेगी और ब्रेक लगने के बाद भी गाड़ी के फिसलने का खतरा बना रहेगा। ऐसे में बेहतर है कि टायर बदल लें।

ब्रेक्स- बोले तो गाड़ी की लगाम टाइट
गाड़ी में ब्रेक्स की अहम भूमिका होती है। बारिश के दिनों में तो इनकी अहमियत और भी बढ़ जाती है। कार में आगे और पीछे ब्रेक ड्रम्स होते हैं। आगे के ड्रम्स में ब्रेक पैड्स और पिछले में ब्रेक शूज होते हैं। बेहतर होगा कि दोनों की जांच करा लें कि उनमें लगा लेदर ठीक से काम कर रहा है या नहीं और उसकी पकड़ ठीक से बन रही है या नहीं। देखें कि उसे रिपेयर कराना है या बदलना है। मॉनसून में गाड़ी की स्पीड पर काबू रखें, नहीं तो कभी भी एक्सिडेंट के हालात पैदा हो सकते हैं। इसके लिए आगे वाली गाड़ी से पर्याप्त गैप बनाकर चलें।

बैटरी बम-बम और गाड़ी टनाटन
बारिश का सीजन शुरू होते ही बैटरी की स्थिति और उसकी ग्रैविटी जरूर जांच लें। बैटरी की स्थिति अच्छी नहीं है और आप बरसते पानी में कहीं फंस गए तो गाड़ी आगे ले जाने में भारी समस्या हो सकती है। दरअसल, बारिशों में बैटरी के टर्मिनलों के ऊपर सफेद-सा डीकम्पोजिंग मटीरियल उभर आता है। इससे स्टार्टिंग की समस्या हो सकती है। किसी भी वजह से बैटरी में स्टार्टिंग की समस्या है तो बदलवा लें या फिर किसी मिकेनिक को दिखाएं।

बैटरी की कीमतें
कर की बैटरियां बाज़ार में एक्साइड, एमरॉन आदि ब्रैंड के नाम से आती हैं।
मिडल सेग्मेंट की कार के लिए: "3,200 से 4,500
मिडल सेग्मेंट, पुरानी बैटरी देने पर: "3,200 से 3,500
हायर सेग्मेंट कार की बैटरी: "6,500 से 15,000

गहरे पानी में टायर न हांक
गाड़ी ऐसी जगह ले जाने से बचें, जहां पर पानी में गाड़ी के टायर पूरी तरह डूब जाएं। इसके बाद ही पानी में गाड़ी लें जाएं। फिर भी मुमकिन है कि एयर-फिल्टर के जरिए पानी इंजन में घुसकर उसे जाम कर देगा। इतना ही नहीं, इस तरह गाड़ी खराब होने से रिपयेर का खर्चा भी काफी हो जाएगा। ऐसी जगहों पर साइलेंसर के रास्ते भी पानी अंदर जाकर गाड़ी को बंद कर देता है। हां, जहां आधे टायरों तक पानी हो, वहां धीरे-धीरे गाड़ी निकाली जा सकती है।

ये हैं आपकी गाड़ी के संकटमोचक

इंजन का इंश्योरेंस भी: जब भी गाड़ी का इंश्योरेंस कराएं तो इंजन का भी इंश्योरेंस करवा लें। ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता कि आजकल इंश्योरेंस कंपनियां सिर्फ गाड़ी के इंजन का इंश्योरेंस भी करती हैं। हालांकि इसके लिए प्रीमियम जरूर कुछ बढ़ जाता है, लेकिन इंजन का नुकसान होने पर मरम्मत का खर्च मिल जाता है।

वॉटर लीकेज: तेज बारिश में कार के विंडो और दरवाजों के गैप से पानी लीक होकर अंदर आता है। इसलिए यह जरूरी है कि विंडो के वेदर-स्ट्रिप्स को बदल लें। दरवाजों में रबड़ की फिटिंग्स वाले गोले की जांच करवाएं। ऐसे ही डिगी की लीकेज की जांच भी करा लें।

स्टेपनी बोले, मैं हूं न: स्टेपनी में हमेशा अच्छा टायर ही रखें। कई लोग घिसा हुआ टायर इसके लिए रखते हैं, जिससे जरूरत के वक्त टायर चाहकर भी आपका साथ नहीं दे पाता।

टूल्स को मत भूल: गाड़ी में जैक, हैंडल, पाना आदि टूल्स प्रॉपर होने चाहिए ताकि ज़रूरत के वक्त इनका सही ढंग से उपयोग हो सके।

फर्स्ट एड किट जरूरी: कभी-कभी ऐसे हालात बन जाते हैं कि सफर के दौरान चोट लग जाती है। उस वक्त रुई, पट्टी या टिंचर-स्प्रिट आदि की ज़रूरत होती है।

लाइट रिफ्लेक्टर कराए मौजूदगी का अहसास बारिश से विजिबिलिटी घट जाती है। ऐसे में लाइट रिफ्लेक्टर जरूरी है। गाड़ी खराब होने की दशा में इसे गाड़ी की छत पर रखने से दूर आते-जाते वाहनों को इसकी चमक से पता चल जाता है कि सामने कोई गाड़ी खड़ी है।
साथ ही हैड लाइटों और पीछे की लाइटों को साफ करना चाहिए ताकि गाड़ी चलते वक्त सामने साफ दिखता रहे।

मड-फ्लैप से कीचड़ को स्लैप: गाड़ी के मड-फ्लैप को सही रखें। टूटे-फूटे मड-फ्लैप से सड़क और गड्ढों का पानी उड़कर न सिर्फ गाड़ी की बॉडी को कीचड़ और गाद से भर देता है, बल्कि मड-फ्लैप न होने से टायरों से उड़ता गंदा पानी और कीचड़ आसपास लोगों पर भी जा पड़ता है।

साइलेंसर:
ध्यान रखें कि बारिश और जंग से साइलेंसर के बीच वाले हिस्से या उसके अंदर छेद न हों जाए। इससे नुकसान हो सकता है।

खाना रखें साथ में : आप कभी भारी बरसात की वजह से ट्रैफिक जैम में फंस जाएं तो ऐसे में जरूरी है कि कार में खाने-पीने का कुछ सामान साथ में रखा जाए।

जरूरी है खुशबू: एसी के वेंट्स में मिट्टी आदि जम जाने से बैक्टीरिया पनप जाता है और बदबू आती है। एसी के ब्लोअर वेंट्स में परफ्यूम डाल सकते हैं।

क्लच का सच: बारिशों में क्लच को दुरुस्त करवाकर रखें। अगर गाड़ी का क्लच अच्छी तरह काम कर रहा हो तो पानी या कीचड़ में फंस जाने पर भी गियर्स गाड़ी को पूरी पावर के साथ आसानी से बाहर निकाल देते हैं।

सावधानी की रोशनी: गाड़ी में हैजर्ड लाइट्स इंडिकेटर्स होते हैं, जिनसे इमरजेंसी में दूसरी गाड़ियों को संकेत देते हैं।

गाड़ी को जिताएं जंग से
बारिश से पहले गाड़ी के निचले हिस्सों में ऐंटी-रस्ट कोटिंग करा लेनी चाहिए। "1500-3,000 हजार तक के खर्च में गाड़ी की चेसिस, बॉडी और साइलेंसर जैसे निचले पार्ट्स जंग लगने से बच जाते हैं। एक बार की कोटिंग तकरीबन तीन साल तक चल जाती है। कार की अंडर-चेसिस या नीचे की बॉडी और दरवाजों को जंग से बचाने के लिए की जाने वाली केमिकल की स्पेशल कोटिंग को ऐंटी-रस्ट कोटिंग कहा जाता है। इसे गाड़ी के नीचे की चेसिस के पार्ट्स पर स्प्रे के रूप में किया जाता है।

कितने सावन बाद कराएं: एक बार कराने के बाद ऐंटी-रस्ट कोटिंग का असर तीन साल तक कायम रहता है। उसके बाद ही इसे दोबारा कराने की जरूरत पड़ती है।

कोटिंग करने का तौर-तरीका: ऐंटी-रस्ट कोटिंग में केमिकल का स्प्रे गाड़ी के नीचे की चेसिस पर किया जाता है। कोटिंग करने वाली कंपनियां इस पर वॉरंटी भी देती हैं। जब भी आपकी गाड़ी वर्कशॉप में सर्विस या चेकअप के लिए जाती है तो कोटिंग की जांच जरूर की जाती है। कहीं से भी ऐंटी-रस्ट कोटिंग की परत खराब होने या कमजोर पड़ती दिखाई देने पर वे नई कोटिंग फ्री करके देती हैं। बस, वर्कशॉप में आपको बताना होता है कि आपकी गाड़ी कोटिंग के लिए वॉरंटी पीरियड में है। वहीं चेसिस को जंग से बचने के लिए उस पर रबड़ की कोटिंग भी कराई जा सकती है।

कोटिंग के खर्चे: ऐंटी-रस्ट कोटिंग पर तकरीबन 1,500 से 3,000 रुपये तक का खर्च आता है। कोटिंग करने में 2 से 3 घंटे तक का समय लग जाता है।

जिंदगी बड़ी और लंबी: ऐंटी-रस्ट कोटिंग से गाड़ी के पेंट या अन्य हिस्से-पुर्जों को किसी तरह का नुकसान नहीं होता, बल्कि गाड़ी की लाइफ और ज्यादा बढ़ जाती है।

कहां से कराएं: ऐंटी-रस्ट कोटिंग हमेशा अथॉराइज्ड वर्कशॉप से कराना ही मुफीद रहता है। ये कोटिंग पर वॉरंटी भी देते हैं। बाहर से कराने पर संभव है कि खर्चे कम हों, लेकिन शायद वहां आपको वॉरंटी न मिले। वहीं, वर्कशॉप में सर्विस के समय ही इसका दोबारा चेकअप हो जाने से आपके समय की बचत होती है और आपकी अलग से भागदौड़ नहीं होती। ऐंटी-रस्ट कोटिंग अथॉराइज्ड वर्कशॉप से कराने पर एक फायदा यह होता है कि दूसरे राज्यों में जाने पर अगर गाड़ी की कोटिंग को कोई नुकसान होता है तो अंडर-वॉरंटी होने पर आप उसका बिल दिखाकर स्थानीय वर्कशॉप में चेकअप या दोबारा कोटिंग करा सकते हैं।

...तो गाड़ी सेहतमंद
जब गाड़ी सर्विस के लिए वर्कशॉप में जाए तो कोटिंग के अंडर-वारंटी होने की सूचना देकर री-चेक करा लेना चाहिए। अक्सर ऐसा होता है कि चलने के दौरान कंकड़-पत्थरों वाली टूटी-फूटी और गड्ढों वाली सड़कों पर गाड़ी चलाने से गाड़ी के निचले हिस्सों पर चोट और रगड़ लगती रहती है। इससे ऐंटी रस्ट कोटिंग कमजोर पड़ सकती है। वर्कशॉप में जाने पर री-चेक करा लेने से कोटिंग अच्छी बनी रहेगी।

कोटिंग के फायदे
बारिशों में अक्सर गाड़ी का बरसत के पानी और पानी से भरे रास्तों से आना-जाना होता है। इससे कार के निचले हिस्से गीले होते रहते हैं। नतीजतन इन हिस्सों में जंग लगने का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसे में गाड़ी में ऐंटी-रस्ट कोटिंग करा लेने से नुकसान से बचा जा सकता है। ऐसी कोटिंग कराने के निम्न फायदे हैं:

-चेसिस को नुकसान नहीं होता, जिससे जल्दी खराब होने से उसका बचाव होता है।
-ऐंटी-रस्ट कोटिंग से गाड़ी की लाइफ बढ़ती है। गाड़ी साफ और सेफ भी बनी रहती है।
-चेसिस और गाड़ी का ओवरऑल मेंटनेंस कॉस्ट कम हो जाता है।
-ऐंटी-रस्ट कोटिंग गाड़ी के दरवाजों और डिगी के अंदरूनी चैनल्स या हिस्सों
में भी की जाती है इससे इन हिस्सों में भी जंग का खतरा नहीं होता।

वाइपर्स हैं गाड़ी के फाइटर्स
बारिश में गाड़ी ले जा रहे हों तो वाइपर्स की स्थिति भी ठीक होनी चाहिए। अगर वाइपर्स गाड़ी के स्क्रीन को ठीक से साफ नहीं कर पा रहे हों तो तेज बारिश में एक्सिडेंट का खतरा बना रहेगा। वाइपर्स धारी जैसे निशान छोड़ते हैं या घूमते वक्त आवाज करते हैं तो इसका सीधा-सा मतलब है कि खराब हो चुके हैं। इन्हें चेंज करने की
जरूरत है।

वाइपर्स की देखभाल
मॉनसून में वाइपर्स गाड़ी के लिए बेहद अहम हो जाते हैं। इस दौरान वाइपर्स का बार-बार इस्तेमाल करना पड़ता है। इसलिए इनकी खास देखभाल की ज़रूरत भी होती है। बारिश में गाड़ी की विंड-स्क्रीन साफ बनी रहे और ड्राइविंग में परेशानी न हो इसके लिए वाइपर्स की समय-समय पर जांच करते रहें। टूटा-फूटा या खराब होने पर इन्हें तुरंत बदल देना चाहिए ताकि ड्राइविंग करते वक्त परेशानी न हो। आजकल की गाड़ियों में वाइपर सिस्टम बेहतर तरीके से बनाए जाते हैं, जिनमें मेंटनेंस की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती। जैसे-जैसे गाड़ी पुरानी होने लगती है, वाइपर के पूरे सिस्टम को समय-समय पर जांच कराते रहने की जरूरत पड़ती है ताकि पता चलता रहे कि यह ठीक से लूब्रिकेटिड हैं या नहीं, वाइपर सिस्टम से जुड़े वॉटर के कंटेनर या बोटल में विंड-स्क्रीन को साफ करने के लिए पूरा पानी मौजूद है या नहीं।

कितने सावन बाद: खराब या मौसम की कड़ी दशाओं में जहां कि तापमान बहुत ज्यादा रहता है या धूलभरे हालात रहते हैं, वापइर्स को बार-बार बदलवाना पड़ता है। पुराने और खराब वाइपर्स विंड-स्क्रीन को पूरा साफ कर नहीं पाते, उल्टे ये विंड-स्क्रीन पर स्क्रेचेस डालकर खराब कर देते हैं। बाजार में आजकल वाइपर्स के कई ब्रांड मिल जाते हैं। वाइपर्स खरीदते समय सावधानी बरतनी चाहिए। अच्छे ब्रांड के वाइपर्स थोड़े महंगे जरूर हो सकते हैं, लेकिन वे सफाई का काम अच्छी तरह से करते हैं और चलते भी ज्यादा समय तक हैं क्योंकि इनका निर्माण मॉडर्न तकनीक और अच्छे मटीरियल से किया जाता है।

जानी, हम मुड़ सकते हैं, टूटते नहीं: अगर आप एक अच्छे और जाने-माने ब्रांड के वाइपर्स खरीदते हैं तो समझ लीजिए कि आपकी एक बड़ी चिंता मिट ही गई। हां, खरीदते समय वाइपर्स के रबर्स की लचक को जांच लें। अच्छे वाइपर्स में रबड़ नरम और लचीला होना चाहिए। यहां तक कि पूरी तरह मोड़ देने पर भी टूटना नहीं चाहिए। यही इसकी सबसे बड़ी पहचान है।

पहले पानी, फिर रवानी: ध्यान रखने की बात यह है कि जब भी वाइपर्स का इस्तेमाल करना हो, उससे पहले विंड स्क्रीन गीला करें। इसके लिए वाइपर्स घुमाने से पहले पानी का स्प्रे कर लेना चाहिए। बारिश होने पर विंड-स्क्रीन को पहले थोड़ा गीला हो जाने दें। उसके बाद ही वाइपर्स का इस्तेमाल शुरू करें।

चलो अब बदल डालो रबड़:
वाइपर्स के रबड़ कितने दिन चलेंगे, निश्चित तौर पर ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन ज्यादा गर्मी और खराब मौसम वाले हालातों में उन्हें जल्दी बदलवाते रहना चाहिए। वाइपर्स रबड़ कब बदलवाने हैं, इसका पता लगाना भी आसान है। जब विंड-स्क्रीन पानी छिड़कने और गीला करने के बाद भी वाइपर्स उसे पूरी तरह साफ न कर पाएं, उस पर पानी या मिट्टी की धारियां दिखाई देती रहे तो समझ लेना चाहिए कि अब वाइपर्स के रबड़ बदल देने का समय आ गया है।

सुबह से शाम, वाइपर्स करेंगे काम इसके लिए सबसे जरूरी है कि वाइपर्स और उसके वॉटर कंटेनर समेत पूरे वाइपर-सिस्टम की जांच और सर्विस समय-समय पर होती रहे। बोनट के नीचे वाइपर सिस्टम से जुड़े वॉटर कंटेनर या बोटल को भरते वक्त अगर उसमें ग्लास-क्लीनर या लिक्विड क्लीनर के एक-दो ढक्कन मिला दिए जाएं तो विंड-स्क्रीन को अच्छी तरह साफ करने और उसे स्क्रेचेस से बचाए रखने में काफी मदद मिलती है। वाइपर्स के ठीक से काम करने में उसके एंगल या वाइपर ब्लेड्स का सही होना भी जरूरी है। वाइपर ब्लेड्स ठीक तरह से विंड-स्क्रीन पर इस तरह एडजस्ट होना चाहिए कि वे एक कोने से दूसरे कोने तक विंड-स्क्रीन को पूरी तरह टच करते रहें।

हम हैं अच्छे वाइपर्स: अच्छे वाइपर ब्लेड या रबड़ बनाने वाली कुछ कंपनियों में बॉस्च (Bosch), सिंडिकेट (Syndicate), हैला (Hella) और जर्मन एसडब्ल्यूएस (German SWS) के नाम लिए जा सकते हैं। इनके अलावा भी दूसरी कंपनियों के अच्छे वाइपर्स मार्केट में उपलब्ध हैं।

ऐंटी-स्क्रेचिंग कोटिंग: बरसात के मौसम में अगर आप वाइपर नहीं चलाना चाहते तो कार की अगली विंड-स्क्रीन पर ऐंटी-स्क्रेचिंग कोटिंग कराना एक अच्छा उपाय है।

बात ऑटोमैटिक वाइपर्स की
आजकल ऐसे सेंसेटिव वाइपर्स आते हैं जो बारिश शुरू होते ही अपने आप काम करना शुरू कर देते हैं। ज्यादातर महंगी और कुछेक सस्ती गाड़ियों में भी ऐसे वाइपर्स लगे होते हैं। जैसे ही विंड-स्क्रीन पर पानी पड़ता है, वे काम करना शुरू कर देते हैं। इसके लिए वाइपर सिस्टम को ऑटोमैटिक मोड में रखना पड़ता है। ऐसे वाइपर्स की स्पीड भी विंड-स्क्रीन पर पड़ती पानी की बौछारों के अनुसार अपने-आप घटती-बढ़ती रहती है। ऑटोमैटिक वाइपर्स का फायदा यह भी है कि ये बिना जरूरत के काम नहीं करते। आम वाइपर्स को जब हम ऑफ करना भूल जाते हैं या ये गलती से बिना बारिश के भी ऑन हो जाते हैं। सूखी अवस्था में ही विंड-स्क्रीन को रब करने लग जाते हैं, जिससे उस पर स्क्रेच उभर आते हैं। ऑटोमैटिक सिस्टम में वाइपर्स सूखी विंड-स्क्रीन पर काम करना शुरू ही नहीं करते।
क्या नई-पुरानी सभी गाड़ियों में ऑटोमैटिक वाइपर: ऑटोमैटिक वाइपर्स सिस्टम इनबिल्ट होता है। आप इसे बाहर से नहीं लगा सकते।

...ताकि बारिश में न लगे बिजली का झटका

एक्सपर्ट: 1. संतराम, अडिशनल जीएम (सेफ्टी), TPDDL
2. पंकज वार्ष्णेय, असिस्टेंट मैनेजर, TPDDL
3. चंद्रप्रकाश कामत, पीआरओ, BSES

बारिश के कारण कई बार घर की दीवारों में भी करंट आ जाता है। यही नहीं बिजली से चलने वाले उपकरण भी कभी-कभी शॉक मारने लगते हैं। राजेश भारती कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं, ताकि आप झटके से बच सकें:
ये हैं करंट लगने के मुख्य कारण
बिजली का कोई भी उपकरण प्रयोग करते समय नंगे पैर होना
वायरिंग का कहीं से कटा-फटा होना
बिजली उपकरणों में खराबी होना
अर्थिंग नहीं होना और अगर है तो उसका सही से न लगे होना
कहीं से पानी की लीकेज या सीलन आना
गीले स्विच या सॉकेट को छूना

ऐसे बचें शॉक से

1. घर की सीलन करें दूर
सबसे पहले तो जहां वायरिंग करानी है, वहां ऐसी व्यवस्था करें ताकि सीलन न आए। अगर सीलन आ रही है या पानी टपकता है, तो वॉटर प्रूफिंग करा लें।
2. वायरिंग कराते समय हरे रंग के तार से अर्थिंग जरूर लगवाएं।
3. वॉटर प्रूफ रहे जोड़
वायरिंग के दौरान कोशिश करें कि बीच में कहीं भी जोड़ न आए। अगर जोड़ आना जरूरी हो, तो उसे किसी टेप या अन्य से इस प्रकार कसकर बांधें की वह वॉटर प्रूफ हो जाए।
4. घरों में किसी भी प्रकार के झटके से बचने के लिए वायरिंग के दौरान MCB, MCCB, RCCB और ELCB का प्रयोग जरूर करें।
5. नहीं लगेगा झटका
आप जहां भी वायरिंग करा रहे हैं, वहां अर्थिंग जरूर कराएं। यह अर्थिंग आपको बिजली के उस झटके से बचाती है, जो बारिश के मौसम में बिजली के उपकरणों के धातु वाले हिस्से में कभी भी आ जाता है। इसे लीकेज करंट भी कहते हैं।

ऐसे काम करती है अर्थिंग
दरअसल, जब बिजली के किसी भी उपकरण की बाहरी सतह पर करंट आ जाता है, तो यह कई बार काफी महंगा पड़ जाता है। इससे बचने के लिए हरे रंग का एक तार होता है, जो बिजली के बोर्ड से होकर जमीन से जुड़ा होता है। ऐसा ही एक तार बिजली के उपकरण जैसे फ्रिज, प्रेस आदि में लगा होता है। जैसे ही उपकरण की धातु वाली सतह पर करंट आता है, वह बोर्ड में लगे हरे तार से होते हुए जमीन के अंदर चला जाता है। इससे उस उपकरण का प्रयोग करने वाले को िबजली का झटका नहीं लगता। कॉपर की इस तरह अर्थिंग कराने में करीब 10 हजार रुपये का खर्चा आता है।

ऐसे होती है अर्थिंग
जहां अर्थिंग करनी हो, वहां पानी के लेवल तक गड्ढा करते हैं। गड्ढा ठीक उसी प्रकार होता है, जैसे हम पानी की बोरिंग के लिए करते हैं।
इसके बाद इसमें कॉपर की वायर डालते हैं। यहां ध्यान रहे कि वायर किसी प्लास्टिक की पाइप से होकर गुजारा गया हो। पाइप में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर छेद होने चाहिए। यह ध्यान रहे कि पाइप के नीचे वाले हिस्से को थोड़ा तिरछा रखना है।
वायर और प्लास्टिक की पाइप आपस में कस कर बंधी हों।
इसके बाद गड्ढे में करीब 10 किलो कोयला और 10 किलो नमक डाल देना चाहिए।
आपको पहले थोड़ा नमक, फिर उसके ऊपर थोड़ा कोयला और फिर से नमक और फिर से कोयला ऐसे करके परत बनानी है।
आधा नमक और कोयला डालने के बाद में आपको इसके ऊपर हल्का हल्का पानी डालना है ताकि नमक और कोयला अच्छे से जम जाए। फिर ऐसे ही करते जाएं और बाद में गड्ढे में मिट्टी भर दें।
पाइप को थोड़ा सा बाहर रख कर उसमें पानी डालें और उसे पूरा भर दें और फिर उसके चारों तरफ ईंट और सीमेंट से पक्का कर दें।
पाइप में पानी भरने के बाद इस गड्ढे को ढंक दें। आपका अर्थिंग वायर तैयार है।
वायर का दूसरा सिरा वायरिंग के मुख्य बोर्ड से कनेक्ट कर देते हैं, जो बाकी सभी पॉइंट्स से जुड़ा रहता है।
अर्थिंग के फायदे
अर्थिंग हमारे इलेक्ट्रिकल उपकरण को लीकेज करंट से बचाता है, जिससे हमें बिजली का झटका नहीं लगता।
बारिश के समय गिरने वाली आसमानी बिजली से भी बचाता है।
ये सावधानियां हैं जरूरी
अर्थिंग के दौरान किसी इलेक्ट्रिशन का सलाह लेना ना भूलें।

ऐसे चेक करें अर्थिंग
सॉकेट में तीन सुराख होते हैंं। सबसे ऊपर वाला जो मोटा सुराख होता है वह अर्थिंग के लिए होता है और नीचे लेफ्ट साइड पर जो सुराख होता है वह फेज वायर का है। दो तारों के साथ बल्ब लें और इन्हीं दोनों सुराखों में एक-एक तार डालकर स्विच ऑन करें। अगर बल्ब जल जाए, तो समझ लेना चाहिए कि अर्थिंग वाय

इन बातों का भी रखें ध्यान
बिजली का काम करते समय हमेशा ही स्विच बोर्ड की बिजली की सप्लाई बंद रखें और हाथों पर दस्तानों का इस्तेमाल करें।
किसी भी उपकरण के पेच को ढीला न छोड़ें। नहीं तो आपके स्विच बोर्ड में शॉर्ट सर्किट हो सकता है।
घर की वायरिंग कराने के बाद ठेकेदार से उसका एक नक्शा ले लें। अगर भविष्य में आपको किसी भी प्रकार की मरम्मत की जरूरत पड़े, तो दिक्कत नहीं होगी।
ब्रांडेड तारों और स्विच का उपयोग करें।
घर के बाहर भी जरूरी है सावधानियां
बिजली के खंभों और सब-स्टेशनों की जाली पर कभी न चढ़ें।
बिजली के सब-स्टेशन, ट्रांसफॉर्मर, आदि उचित दूरी पर रखें।
बिजली के उपकरणों के आसपास पानी जमा हो ताे उधर न जाएं।

क्या करें बिजली का झटका लगने पर
सबसे पहले वायर को अलग करने की कोशिश करें।
पावर ऑफ कर दें या डिवाइस अलग निकाल लें। अगर ऐसा करना संभव नहीं है, तो सूखी लकड़ी के स्टूल पर खड़े होकर किसी लकड़ी की छड़ी से व्यक्ति को अलग करें।
आदमी को रिकवरी पोजिशन में लेटा दें। इस पोजिशन में व्यक्ति किसी एक करवट में होता है। उसका एक हाथ सिर के नीचे और दूसरा आगे की तरफ होता है और उसका एक पैर सीधा होता है और दूसरा मुड़ा हुआ होता है। ठोड़ी उठाकर जांच लें कि वह सांस ले रहा है या नहीं।
बेहतर उपचार के लिए उसे किसी डॉक्टर के पास लेकर जाएं।


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नई दिल्ली
उम्र कम दिखे, यह ख्वाहिश अमूमन सभी की होती है। इसके लिए लोग जतन भी करते हैं। ऐसी ही एक कोशिश है कॉस्मेटिक सर्जरी। झुर्रियों से लेकर लकीरों और पेट से लेकर नाक तक सभी में करेक्शन का काम इस सर्जरी से किया जाता है। चेहरे-मोहरे में सुधार की ऐसी गुंजाइश बिना सर्जरी के भी मुमकिन है। सुधार की ऐसी कोशिशों के क्या साइड इफेक्ट भी हैं? एक्सपर्ट्स से बात कर पूरी जानकारी दे रही हैं अनु जैन रोहतगी...

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. पी एस भंडारी
डिपार्टमेंट हेड, कॉस्मेटिक सर्जरी, एलएनजेपी हॉस्पिटल
डॉ. दीपाली भारद्वाज
हेड, सेंटर फॉर स्किन एंड हेयर
डॉ. मनीष सिंघल
डिपार्टमेंट हेड, प्लास्टिक सर्जरी, एम्स
डॉ. विवेक कुमार
सीनियर कंसल्टेंट, कॉस्मेटिक सर्जरी, गंगाराम हॉस्पिटल
डॉ. सुनील चौधरी
डिपार्टमेंट हेड, कॉस्मेटिक एंड प्लास्टिक सर्जरी, मैक्स हॉस्पिटल

- खुद को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारना एक तनावमुक्त जीवन देता है। हर उम्र एक अलग तरह की खूबसूरती लेकर आती है। इसका आनंद लें।
- तुम खूबसूरत दिखो क्योंकि तुम खुद से प्यार करते हो। पर दूसरों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए खूबसूरत बने रहना चाहते
हो तो यह गलत है।
- मन में सवाल उठता है कि आखिर अच्छा दिखने में बुराई क्या है? बुराई नहीं है लेकिन आप कितना समय उसमें लगा रहे हैं, यह सोचना जरूरी है।

केस 1: ऐसे बच गईं रिया
17 साल की रिया (बदला हुआ नाम) सुंदर हैं। उनकी लंबाई मॉडलों वाली है। इसका फायदा उन्हें मॉडलिंग में प्रवेश के साथ मिला, लेकिन रिया का ब्रेस्ट छोटा है, यह उनके करियर में भी बाधा बन रही थी। कई ड्रेस उन पर सूट ही नहीं करते थे। इसी कारण रिया ने ब्रेस्ट एन्हैन्स्मन्ट करवाने की ठान ली। पैरंट्स ने बहुत मना किया, लेकिन रिया नहीं मानीं। आखिरकार पैरंट्स ने एक जाने-माने कॉस्मेटिक सर्जन से सलाह ली। सर्जन ने सर्जरी करने से मना कर दिया। कहा, उम्र कम है। इस उम्र में शरीर का सही विकास नहीं हो पाता। जब 20 साल की हो जाओगी, तब आना। रिया समझ गईं। उनकी किस्मत अच्छी थी कि उन्हें एक अच्छा डॉक्टर मिला था।

केस 2: डिप्रेशन से निकल गए राकेश
29 साल का राकेश (बदला हुआ नाम) डिप्रेशन में थे। जॉब अच्छी थी। घर में भी कोई समस्या नहीं थी, लेकिन राकेश के सिर के आगे के बाल झड़ने लगे थे। राकेश को लगने लगा कि उनकी शादी नहीं हो पाएगी। एक जानकार ने अच्छे कॉस्मेटिक सर्जन से सलाह लेने को कहा। राकेश के पैरंट्स जब सर्जन से मिले तो सर्जन ने हेयर ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दी और भरोसा दिलाया कि 3 महीने में बाल पहले जैसे दिखने लगेंगे। राकेश की काउंसलिंग शुरू हो गई और वह डिप्रेशन से बाहर आ गए। हेयर ट्रांसप्लांट के बाद उनकी नई जिंदगी शुरू हो गई। हकीकत है कि कॉस्मेटिक सर्जरी बहुत से लोगों के लिए एक वरदान भी है, लेकिन जरूरी है कि अच्छे सर्जन का चुनाव करें।


राइनोप्लास्टी
नाक को सही शेप देने के लिए यह सर्जरी कराई जाती है। अमूमन इस सर्जरी में तीन तरह की बिगड़ी हुई नाक को शेप में लाया जाता है।
1. चेहरे पर नाक बहुत बड़ी है
2. नाक चपटी है या नथूने चौड़े हैं
3. नाक बहुत लंबी है या ऊपर से नाक की हड्डी उभरी हुई है।

सर्जरी कितनी लंबी: अमूमन नाक का आकार ट्राएंगलर होता है, इसलिए यह मुश्किल सर्जरी मानी जाती है। इसमें दो से चार घंटे तक लग सकते हैं। अगर सर्जन ज्यादा समय ले रहा है तो समझिए, वह एक कुशल सर्जन है। नाक की बारीक से बारीक कमी को दूर करने के लिए सर्जन पूरा समय लेते हैं। वैसे तो यह एक ओपीडी सर्जरी है, लेकिन कई मामलों में मरीज को एक दिन अस्पताल में रुकना पड़ सकता है।
उम्र: 20 साल के बाद

सर्जरी के बाद सावधानियां
- पहले दो-तीन घंटे पेशंट को पूरा आराम करने की सलाह दी जाती है।
- पेशंट को सोते समय सिर ऊपर रखना चाहिए।
- नाक पर पट्टी होती है, इसलिए मुंह से सांस लेना होता है।
- सर्जरी के समय आगे बटन वाले कपड़े ही पहनें ताकि उतारने में आसानी हो।
- ब्रश करते समय पूरी सावधानी बरतें और धीरे-धीरे करें।
- बातचीत कम करें।
- सॉलिड से ज्यादा लिक्विड डाइट लें।
- सर्जरी के चार हफ्ते बाद तक पेशंट को भारी सामान उठाने से मना किया जाता है। इससे ब्लीडिंग होने का खतरा रहता है।
- ज्यादा धूप में जाने से बचें।
इस सर्जरी के तीन से चार हफ्ते के बाद नाक से अच्छी तरह से सांस ली जा सकती है। लगभग 20 फीसदी मामलों मे नाक में आई हुई सूजन खत्म होने में एक साल तक का समय लग जाता है।

रिस्क फैक्टर
- स्थाई तौर पर सर्जरी के निशान रह सकते हैं।
- कभी-कभी नाक से ब्लीडिंग मुमकिन है।
- सांस लेने में समस्या आ सकती है।
- साइनस की समस्या बढ़ सकती है।

...तो रिस्क कम
- सबसे पहले एक अच्छे सर्जन के पास जाएं।
- सर्जरी के बाद डॉक्टर की बातों पर जरूर अमल करें।
- कुछ दिनों तक भारी सामान ना उठाएं, इससे ब्लीडिग होने की आशंका है।
- घाव पर खुजली न करें।
खर्च 1.25 से 2.5 लाख

फेसलिफ्ट: चेहरे की झुर्रियों को हटाने की सर्जरी
इसे चेहरे को जवां रखने के लिए किया जाता है। इसमें कान के पीछे छेद करके, फेस की स्किन को खींच कर वहां टक कर देते हैं और खिंची हुई त्वचा को काट दिया जाता है। इस सर्जरी को करने में 2 से 3 घंटे का समय लगता है और यह 8 से 10 साल तक साथ देती है। आंखों के आसपास, गालों, ठोडी या मुंह के आसपास लटकी स्किन को टाइट करने के लिए यह सर्जरी की जाती है।

सावधानियां
- लगभग 7-10 दिनों तक झुके नहीं
- भारी वजन न उठाएं
- कुछ दिनों तक एक्सरसाइज से बचें
- खांसते समय और छींकते समय पूरी सावधानी बरतें।

रिस्क फैक्टर
- कई पेशंट दर्द की शिकायत करते हैं।
- चेहरे पर सूजन आ सकती है।
- कभी-कभी ब्लीडिंग या इंफेक्शन की आशंका रहती है।
खर्च 2 से 3 लाख

ब्लेफारोप्लास्टी
आईब्रो लिफ्ट करवाने के लिए भी छोटी-सी सर्जरी की जाती है। आंखों के नीचे या ऊपर की लटकी हुई त्वचा को टाइट किया जाता है और पेशंट को यंग लुक दिया जाता है। जमे हुए फैट या लटकी हुई स्किन को बहुत ही सलीके से बाहर किया जाता है।

सावधानियां
- कुछ दिनों तक आंखों को बिल्कुल न रगड़ें।
- धूप से बचें।
- दो हफ्ते तक लैंस न लगाएं।

रिस्क फैक्टर
- आंखें ड्राई हो सकती हैं।
- सूरज की रोशनी या चमकीली लाइट से संवेदनशील हो
सकती हैं।
- आंखों की रोशनी में फर्क पड़ सकता है।
खर्च 70 हजार से 1.25 लाख

ब्रेस्ट एन्हैन्स्मन्ट: ब्रेस्ट को सही आकार देने की सर्जरी
इस सर्जरी का दूसरा नाम ब्रेस्ट ऑग्मेंटेशन सर्जरी भी है। यह सर्जरी महिलाओं में खासी लोकप्रिय है। इसमें ब्रेस्ट को टाइट करके या बड़ा करके सही आकार दिया जाता है।
फैट ट्रांसफर ब्रेस्ट ऑग्मेन्टेशन: इसमें महिला के शरीर के ऐसे हिस्से से फैट सेल्स को निकाला जाता है, जहां पहले से ही ज्यादा मात्रा में फैट मौजूद हों। ब्रेस्ट में इन फैट सेल्स को इंजेक्शन 'कैनूला' के जरिए पहुंचाया जाता है। एक बार में 300 से 400ml फैट सेल्स डाल सकते हैं। आजकल ज्यादातर महिलाओं में इसी तरीके से ब्रेस्ट को सही आकार दिया जाता है।

रिस्क फैक्टर
- कभी-कभी ब्रेस्ट में डाले गए फैट को शरीर के द्वारा उपयोग में लाने की स्थिति बनती है। इससे साइज में फिर से कमी हो सकती है।
- कई बार ब्रेस्ट में गांठ होने का भी खतरा रहता है। इससे ब्रेस्ट कैंसर का भ्रम हो सकता है। टेस्ट करवा कर भ्रम दूर करना जरूरी है।
- जरूरत पड़ने पर यह प्रक्रिया दो-तीन महीने बाद दोहराई जा सकती है।
- कुछ क्लिनिक या हॉस्पिटल में ब्रेस्ट में एक हजार मिलीमीटर से ज्यादा फैट सेल्स डाल दिए जाते हैं। यह ठीक नहीं है। सर्जरी करवाने से पहले यह साफ-साफ पूछ लें कि ब्रेस्ट में कितने फैट सेल्स डाले जा रहे हैं।
- जिन महिलाओं के शरीर में फैट की मात्रा पहले से ही कम हो उनके लिए यह सर्जरी मुफीद नहीं है, लेकिन ऐसी महिलाओं को निराश होने की जरूरत नहीं है। उनके लिए 'सिलकन इम्प्लांट्स' का ऑप्शन है।
खर्च 70 हजार से 1.25 लाख

सिलिकॉन इम्प्लांट्स: ब्रेस्ट को आकर्षक बनाने की सर्जरी
इस सर्जरी में दो-तीन घंटे का समय लगता है। इसमें सिलिकॉन पैड्स लगाए जाते हैं। ब्रेस्ट को क्या आकार देना है और आपकी जरूरत क्या है इसके मुताबिक बांहों के नीचे या ब्रेस्ट की निप्पल के आसपास एक कट लगाकर सिलिकॉन को चेस्ट मसल्स के ऊपर या नीचे फिट किया जाता है। यह सर्जरी 7-8 साल तक ब्रेस्ट को सही आकार में रखती है। पूरी जिंदगी के लिए नहीं है।

सर्जरी के बाद सावधानियां
- दो-तीन महीने तक वजन न उठाने की सलाह दी जाती है।
- कुछ समय तक सपोर्ट ब्रा पहनना जरूरी होता है।
- दवाओं का सेवन जरूर करें। दवाएं दर्द कम करने और इंफेक्शन से लड़ने में मदद करती है।
- डॉक्टर की सलाह पर ही नहाएं।
- सूजन हो तो घबराएं नहीं, यह धीरे-धीरे चली जाती है। अगर इससे बहुत परेशानी महसूस हो तो डॉक्टर से मिलें।

रिस्क फैक्टर
- ब्रेस्ट में दर्द हो सकता है।
- निशान रह सकता है।
- इंफेक्शन और ब्लीडिंग का खतरा रहता है।
- कुछ मामलों में शरीर की ओर से इम्प्लांट रिजेक्शन का खतरा रहता है।
- कभी-कभी इम्प्लांट लीक होने या फटने का भी खतरा होता है।
- हर दो-तीन साल बाद ब्रेस्ट की एमआरआई करवानी चाहिए, जिससे इम्प्लांट की स्थिति का सही पता चल सके।
खर्च 2 से 2.5 लाख

लिपोसक्शन: कुछ अंगों से ज्यादा चर्बी हटाने की सर्जरी
एक बात बहुत साफ है कि यह सर्जरी मोटापा कम करने के लिए नहीं बल्कि पेट, बाजू, जांघों, कमर आदि पर जमा फालतू फैट को कम करने के लिए की जाती है। इस सर्जरी के लिए वही लड़कियां फिट हैं जिनका वजन तो ठीक है, लेकिन फैट जमा होने से कोई अंग थुलथुल दिखता है। लड़कों में चेस्ट पर एक्स्ट्रा ब्रेस्ट ग्रोथ को कम करने के लिए भी यह सर्जरी की जाती है।

सर्जरी के बाद सावधानियां
- कम-से-कम एक दिन कार न चलाएं।
- चार-पांच दिनों तक एक्सरसाइज से बचें।
- डॉक्टर की सलाह पर ही एक्सरसाइज शुरू करें।
- खूब पानी पिएं, जिससे शरीर में फैट सेल्स निकलने के बाद पानी की कमी न हो।
- डॉक्टरों की सलाह के अनुसार 3 से 7 दिनों तक प्रेशर गारमेंट्स (इससे अंग शेप में रहते हैं।) जरूर पहनें।

रिस्क फैक्टर
- सर्जरी वाली जगह पर खरोंच हो सकती है, जो कई हफ्ते बाद जाती है।
- सूजन जाने में छह हफ्ते का समय लग सकता है।
- नसों में खून का थक्का जम सकता है, जिससे कुछ परेशानी हो सकती है। कुछ दर्द भी रह सकता है।
- त्वचा लटक सकती है। ब्लीडिंग भी हो जाती है।
- निशान रह जाते हैं।
- स्किन का रंग बदल सकता है।
खर्च 1.25 से 2 लाख

स्वैट ग्लैंड रिमूवल: पसीने की समस्या से निजात के लिए सर्जरी
जिन लोगों के पसीने से बहुत बदबू आती है और इसकी वजह से इंफेक्शन रहता है। डॉक्टर सर्जरी को जरिए उन पेशंट के स्वैट ग्लैंड्स को निकाल देते हैं, लेकिन यह सर्जरी बहुत कम की जाती है। आजकल 'बोटॉक्स' के जरिए पसीने की समस्या को काफी कम किया जाता है।
खर्च 70 हजार से 1.25 लाख

कॉस्मेटिक सर्जरी कराने से पहले
- सर्जरी से कम-से-कम एक सप्ताह पहले से हेल्दी डाइट लें। इससे घाव जल्दी भरता है।
- फल-सब्जियां, अनाज के साथ प्रोटीन (दूध, दही, अंडे आदि) युक्त भोजन करें।
- कई बार डॉक्टर सप्लिमेंट लेने की सलाह भी देते हैं, जिसमें विटामिन सी और विटामिन ए खासतौर पर दिया जाता है।
- बेहतर होगा कि सर्जरी से कम-से-कम दो हफ्ते पहले स्मोकिंग और शराब छोड़ दें।
- जो लोग होम्योपैथी की दवा या किसी हर्ब का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें अपने डॉक्टर को इसे बारे में जरूर जानकारी देनी चाहिए। कई बार ये चीजें एनीसथीसिया के असर में रुकावट डालती हैं।
- महिलाओं को गर्भनिरोधक दवा न लेने की सलाह दी जाती है। प्रेग्नेंट और दूध पिलाने वाली महिलाएं सर्जरी न कराएं।
- अगर सर्जन को लगता है कि सर्जरी की जरूरत नहीं है तो काउंसलिंग करके उन्हें मना कर दिया जाता है।


सर्जरी के बिना भी बनें सुंदर

थर्मीटाइट: फैट कम करने की तकनीक
इसमें खास मशीन की मदद से फैट सेल्स को पिघलाया जाता है। इसमें गर्म सूई की मदद ली जाती है। पिघला हुआ फैट यूरीन के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है, लेकिन थर्मीटाइट की एक सीमा है। इसमें एक समय में 40 से 100ml फैट ही निकल पाता है। इसलिए यह प्रसीजर डबल चिन, गालों और बाजू पर जमा कम फैट निकालने के लिए ही ज्यादातर इस्तेमाल होता है। यह एक ओपोडी प्रोसेस है और बहुत कम समय में हो जाता है। अच्छे डॉक्टर इसे करने में 20 से 25 मिनट का समय लेते हैं।

रिस्क फैक्टर
- पेशंट को सुन्नपन का अहसास होता है जो 6 से 8 हफ्ते में जाता है। nसूजन आ सकती है।
- कभी-कभी गर्म सूई से त्वचा जल सकती है।
खर्च 60 से 90 हजार

कूल स्कल्पटिंग: सेल्स को फ्रीज करने की तकनीक
इसमें एक्सपर्ट एक डिवाइस की मदद से स्किन के अंदर के फैट सेल्स को फ्रीज करके खत्म कर देता है। एक बार नष्ट होने के बाद फैट सेल्स को लिवर अपने आप शरीर के बाहर यूरीन के जरिए निकाल देता है। इस प्रोसेस से एक बार में उस एरिया के 20-25 फीसदी फैट सेल खत्म हो जाते हैं।

रिस्क फैक्टर
- फ्रीज वाली जगह का लाल हो जाना
- चुभन होना नमनस होना
खर्च 1.50 से 1.75 लाख

फिलर: फटाफट स्किन टाइट की तकनीक
आजकल कई ऐसे फिलर उपलब्ध हैं, जो स्किन टाइटनिंग, एंटी एजिंग, लकीरें भरने, चेहरे पर दबे किसी भी अंग को उभारने में सक्षम हैं। सबसे अहम है कि इसका रिजल्ट कुछ ही मिनटों में आ जाता है।
इसमें एक प्रकार के केमिकल को स्किन के अंदर इंजेक्शन की मदद से डाला जाता है। फिलर होठों को आकार देने यानी लिप एन्हैन्स्मन्ट के लिए बहुत कारगर है। नाक के आसपास बनी लकीरों को भरने के लिए इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। इसके अलावा आंखों के नीचे बने गड्ढों को भरने के लिए फिलर का इस्तेमाल हो रहा है। नाक अगर थोड़ी बैठी है तो फिलर की मदद से उसे उभारा जा सकता है। यह भी एक ओपीडी प्रोसेस है। काम के अनुसार डॉक्टरों को 30 मिनट से 60 मिनट लगता है। इसका असर 6 महीने से 1 साल तक रहता है।

रिस्क फैक्टर
- चूंकि इसमें भी स्किन के अंदर केमिकल डाला जाता है, इससे इन्फेक्शन का खतरा हो सकता है।
- एलर्जी हो सकती है।
- कई बार स्किन में छोटे-छोटे उभार हो जाते हैं।
खर्च 25 से 50 हजार

बोटोक्स: झुर्रियां, लकीरें घटाने की तकनीक
बिना ऑपरेशन के चेहरे की लकीरों को हटाने की यह बहुत ही पॉप्युलर तकनीक है। बोटॉक्स ज्यादातर आंखों के आसपास आई झुर्रियों और माथे पर बन रही लकीरों को हटाता है। इसमें आंखों के आसपास बोटॉक्स का इंजेक्शन दिया जाता है। इसके जरिए मांसपेशियों को रिलेक्स कर दिया जाता है। इसका असर ज्यादा से ज्यादा एक साल तक रहता है।

रिस्क फैक्टर
- जहां इंजेक्शन दिया जाता है, वहां की मांसपेशियों के कमजोर होने का खतरा रहता है।
- सूजन, खरोंच के निशान और दर्द भी हो
सकता है।
- सिर या गर्दन में दर्द, चक्कर आने की शिकायत हो सकती है।
खर्च 10 से 30 हजार

हाइफू: चेहरे को चमकाने की तकनीक
हाइफू का पूरा नाम 'हाई इंटेंसिटी फोकस्ड अल्ट्रासाउंड' है। यह बिल्कुल नई तकनीक है। इसमें अल्ट्रासाउंड एनर्जी से चेहरे के बीमार और खराब टिश्यू को खत्म कर दिया जाता है। टूटे-फूटे कोलेजन लेयर की मरम्मत की जाती है। इसे सर्जरी किए बिना किया गया कारगर फेस लिफ्ट भी कहा जाता है। यह कई तरह से चेहरे पर काम करता है। फेस की झुर्रियां हटाकर स्किन को टाइट करती है। डबल चिन खत्म करती है। चेहरे पर एजिंग खत्म करके चेहरे को चमकदार और यंग बनाती है। इसको करने में 2-3 घंटे का समय
लगता है। इसका असर 5 से 7 दिन में दिखना शुरू होता है और असर लगभग एक से डेढ़ साल तक रहता है।

साइड इफेक्ट
- चेहरे पर लालीपन का आना
- खुजली की शिकायत
- सूजन होना
- स्किन की संवेदनशीलता खत्म हो सकती है, लेकिन ये सभी शिकायत चार-पांच दिन में खत्म हो जाती है।
- इसके अलावा स्किन एलर्जी, इंफेक्शन या चेहरे की मांसपेशियों से संबंधित कुछ परेशानी हो सकती है।
खर्च 30 हजार से 1.50 लाख

घटिया सामान से सावधान
कोई भी प्रसीजर करवाने के लिए अच्छे डॉक्टर का चयन करें। नेट पर प्रसीजर से जुड़ी तमाम जानकारी और डॉक्टर के भी रिव्यू पढ़ें। प्रसीजर की कीमत के बारे में जानकारी जरूर लें। कोई आपको काफी कम कीमत में महंगा प्रसीजर करवाने का ऑफर दे रहा है तो सावधान हो जाएं। आजकल चाइनीज चीजों का बहुत बोलबाला है, जिनकी क्वॉलिटी अमूमन अच्छी नहीं होती। इनमें रिस्क भी बहुत ज्यादा है। प्रसीजर करवाने से पहले जान लें कि डॉक्टर कौन-सी तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है और इस्तेमाल किए जाने वाले तमाम सामान सही हों। इसके लिए सही जगह और सही डॉक्टर का चुनाव करें। अमूमन बड़े और नामी जगहों पर सामान का पूरा ध्यान रखा जाता है।

किस डॉक्टर से कौन-सा प्रसीजर
अगर आपको कोई सर्जरी करानी है तो आपको सर्जन के पास जाना होगा। एमबीबीएस के बाद तीन साल की MS (मास्टर ऑफ सर्जरी) की डिग्री होती है। इसके बाद यदि प्लास्टिक सर्जन बनना है तो तीन साल की MCh या डिप्लोमैट ऑफ नैशनल बोर्ड (DNB) की डिग्री लेनी होती है, लेकिन आजकल कॉस्मेटिक सर्जरी का ज़माना है। ज्यादातर प्लास्टिक सर्जन इस स्पेशलाइज्ड सर्जरी को और अच्छी तरह से करने के लिए एक दो महीने का अपडेटेड कोर्स कर लेते हैं। जिस सर्जन के पास MCH या डिप्लोमैट ऑफ नैशनल बोर्ड की डिग्री है, वह कॉस्मेटिक सर्जरी के योग्य है। इसलिए सर्जरी करवाते समय इन डिग्री को ज़रूर देखें। यदि आपको बालों के गिरने की समस्या है, स्किन से संबंधित कोई समस्या है, जैसे स्किन में दाग है, स्किन जल गई या कोई इंफेक्शन है तो डर्मेटॉलजिस्ट के पास जाना होगा।

कहां करें शिकायत
कॉस्मेटिक सर्जरी कराने के बाद असंतुष्ट होने या कुछ गड़बड़ी होने पर आप अपने प्रदेश की मेडिकल काउंसिल से संपर्क करें।

उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल
5, सर्वपल्ली मॉल एवेन्यू रोड,
लखनऊ: 226001
www.upmedicalcouncil.org

दिल्ली मेडिकल काउंसिल
कमरा नं. 308A, थर्ड फ्लोर, एेडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, बहादुर शाह जफर मार्ग, नई दिल्ली: 110002
www.delhimedicalcouncil.org

हरियाणा मेडिकल काउंसिल
कमरा नं. 46, सिविल हॉस्पिटल,
सेक्टर- 6, पंचकूला, हरियाणा
www.haryanahealth.nic.in

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सांस लेना आता है?

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नई दिल्ली
हम जिंदगी में हर चीज पर ध्यान देते हैं, पर सांस पर नहीं। वजह, हमें लगता है कि सांस अपने आप आ जाएगी। सांस आ भी जाती है लेकिन जो अपने आप आती है, वह पूरी नहीं होती। हमें कोशिश करके सही ढंग से सांस लेने की आदत डालनी चाहिए। सांस लेने का क्या है सही तरीका और इसके क्या हैं फायदे, एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह...

एक्सपर्ट्स पैनल
अरुण कुमार, योगाचार्य
डॉ. डी. भट्टाचार्य, हेड, पल्मनॉलजी डिपार्टमेंट, ILBS
सिद्धार्थ प्रकाश, टीचर, आर्ट ऑफ लिविंग

केस 1
शक्ति सिंह दिल्ली की तरफ से रणजी में खेलते थे। एक मैच में उन्होंने 30 ओवर गेंदबाजी की और 8 विकेट अपने नाम किए। हर कोई शक्ति सिंह का स्टैमिना और एनर्जी देखकर हैरान था क्योंकि आमतौर पर कोई फास्ट बॉलर एक मैच में 10 ओवर तक ही बॉलिंग करता है। पूछने पर शक्ति ने अपनी इस अनोखी परफॉर्मेंस के लिए यौगिक ब्रीदिंग को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि जब भी मुमकिन हुआ, मैंने खुद को याद दिलाया कि मुझे गहरी, लंबी और धीमी सांस लेनी है।

केस 2
60 साल के नरेश मोहन रोजाना मंदिर जाते थे। उस मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 100 सीढ़ियां चढ़नी होती थीं। नरेश को इन सीढ़ियों को चढ़ने में बहुत दिक्कत होती थी। फिर उन्होंने एक योग गुरु से सांस लेने का सही तरीका सीखा। इसका सीधा फायदा यह हुआ कि नरेश आसानी से मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे। इससे न सिर्फ उनकी कार्यक्षमता बढ़ी, बल्कि वह पहले से ज्यादा शांत और खुश भी रहने लगे।

सांस पर ध्यान देना क्यों जरूरी
सांस हमारी जिंदगी की सबसे अहम चीज है। दुनिया में आने के पहले लम्हे से लेकर दुनिया को अलविदा कहने के आखिरी लम्हे तक सांस ही है, जो लगातार चलती है लेकिन सबसे ज्यादा हम इसे ही नजरअंदाज करते हैं। अगर हम सही तरीके से सांस लेना सीख लें तो समझो जिंदगी की सबसे अहम चीज हमने सीख ली।


क्षमता से कम लेते हैं सांस
हमारे शरीर में अरबों सेल्स होते हैं। ये सारे सेल्स मिलकर मेटाबॉलिक ऐक्टिविटी करते रहते हैं। इसके लिए इन्हें ऑक्सिजन की जरूरत होती है। ऑक्सिजन सेल्स की ऐक्टिविटी के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में बदलती है। यह कार्बन डाइऑक्साइड अगर थोड़ी मात्रा में भी अंदर रह जाए तो सेल्स को नुकसान पहुंचाती है। अगर हम ढंग से सांस नहीं लेते तो ऐसा ही होता है। हम औसतन हर सांस में करीब आधा लीटर हवा ही लेते हैं। इसका मतलब हुआ कि हम अपने लंग्स की क्षमता का 15-20 फीसदी ही इस्तेमाल करते हैं। सांस लेने का सही तरीका सीखकर हम अपने लंग्स की क्षमता के 70-75 फीसदी तक सांस ले सकते हैं। लंग्स का 20 फीसदी हिस्सा हवा से हमेशा भरा रहता है।

कितनी तरह की ब्रीदिंग
सांस लेने के लिए कई तरीके होते हैं। अपनी समझ के लिए हम इन्हें मोटे तौर पर 3 कैटिगरी में बांट सकते हैं:

कॉलर बोन ब्रीदिंग: इसे आम बोलचाल की भाषा में हाई सोसायटी ब्रीदिंग भी कहते हैं। इसमें अपर चेस्ट से ही सांस ली जाती है, यानी खुलकर सांस नहीं ली जाती।

थोरेसिक या कोस्टल ब्रीदिंग: इसे आम भाषा में मिडल क्लास ब्रीदिंग कहते हैं। इसमें सेंट्रल हिस्से यानी चेस्ट का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।

अब्डॉमिनल ब्रीदिंग: इसे लोअर क्लास ब्रीदिंग भी कह सकते हैं। इसमें ज्यादातर सीने से नीचे के हिस्से से सांस ली जाती है।

सांस लेने के तीनों तरीका को जोड़कर अगर सांस लेते हैं तो वही सांस लेने का सही तरीका है। यानी सांस लेते हुए चेस्ट, डायफ्राम और अब्डेमन का इस्तेमाल होना चाहिए। इसे यौगिक ब्रीदिंग भी कहते हैं।

सांस लेने का सही तरीका
अब हम सही तरीके से सांस ले रहे हैं या नहीं, इसे कैसे पहचानें? इससे पहचाने का आसान-सा तरीका है। अभी आप सांस भरें और देखें कि आपका पेट अंदर जा रहा है या बाहर। कमर सीधी करके बैठें। फिर पेट पर हाथ रखें। सांस लेने और निकालने के साथ पेट भी बाहर और अंदर जाएगा। अगर आप लेटकर चेक करना चाहते हैं तो पेट पर कोई किताब रख लें। किताब के ऊपर-नीचे जाने से सांस का अंदाजा लगा सकते हैं।


अगर सांस भरते वक्त पेट बाहर जाए तो आप ठीक तरीके से सांस ले रहे हैं। अगर पेट अंदर जाए तो गलत। इसी तरह सांस निकालते हुए पेट अंदर की तरफ जाना चाहिए। इसका सीधा-सा फंडा है। जब सांस लेते हैं तो लंग्स फैलते हैं, बिल्कुल उसी तरह जैसे कि हवा भरे जाने पर बैलून फैलता है। सांस बाहर निकालते हैं तो लंग्स सिकुड़ते हैं, वैसे ही जैसे हवा निकलने पर बैलून सिकुड़ जाता है। वैसे, जब तक सांस लेने का सही तरीका मालूम न हो या फिर इस पर गौर न करें तो ज्यादातर लोगों का पेट सांस लेते हुए अंदर आता है और छोड़ते हुए बाहर। ऐसा तनाव की वजह से होता है। ऐसे में चेस्ट टाइट होती है और डायफ्राम कड़क होकर ऊपर हो जाता है। इससे पेट बाहर को जाता है। यह गलत तरीका है। इससे लंग्स और हार्ट पर दबाव पड़ता है।

अब सवाल है कि जब सांस लंग्स से लेते हैं तो पेट अंदर या बाहर क्यों जाता है? इसका जवाब है कि पेट और लंग्स के बीच होता है डायफ्राम। जब लंग्स पर दबाव पड़ता है तो डायफ्राम पर भी दबाव होता है और उसका प्रेशर पेट पर पड़ता है। यही वजह है कि लंग्स से सांस लेने या निकालने पर पेट बाहर और अंदर होता है।

सही तरीके से सांस लेने की आदत ऐसे डालें
शुरू में सांस लेने का सही तरीका याद नहीं रहता तो बेहतर है कि अलार्म लगाकर हर आधे घंटे में अपनी सांस पर गौर करें और 3-4 मिनट के लिए सही तरीके से सांस लेने की प्रैक्टिस भी करें। अगर आप 3-4 महीने तक लगातार ऐसा कर पाते हैं तो सही तरीके से सांस लेना आपकी आदत में शुमार हो जाएगा और तब सही तरीके से सांस लेने के लिए अलग-से कोशिश नहीं करनी पड़ेगी।

सही सांस लेने का फॉर्म्युला (SSLD)
S (Smooth): सांस आराम से लें। सांस लेते हुए आवाज नहीं आनी चाहिए। सांस आराम से लेना इसलिए जरूरी है क्योंकि जोर से सांस लेने से फ्रिक्शन (घिसाव) होता है और फालतू एनर्जी खर्च होती है।

S (Slow): सांस धीमी रफ्तार से लें। जल्दबाजी न करें। सांस लेते हुए ध्यान दें कि सांस लेते वक्त पेट बाहर आए और चेस्ट पूरा खुले।

L (Long): सांस लेने की अवधि लंबी हो। कोशिश करें कि जितनी देर में सांस अंदर लें, उससे करीब डेढ़ गुना टाइम में सांस बाहर निकालें।

D (Deep): सांस गहरी होनी चाहिए। ऐसा महसूस होना चाहिए कि सांस पेट के बिल्कुल अंदर से आ रही है।

नोट: खुद को मजबूर न करें। आराम से जितना हो सके, उतना ही करें क्योंकि जिस तरह ज्यादा प्रेशर से बलून फट जाता है, उसी तरह ज्यादा दबाव लंग्स के लिए नुकसानदेह हो सकता है।


एक मिनट में कितनी बार सांस लें
वैसे तो ऐसा कोई नियम नहीं है कि एक मिनट में कितनी बार सांस लेना चाहिए लेकिन मोटे तौर पर एक सांस 4 पल्स रेट के बराबर होती है। यानी किसी भी नॉर्मल शख्स का पल्स रेट एक मिनट में करीब 72 होता है। ऐसे में उसकी सांस एक मिनट में 15-18 हो सकती है। हालांकि खिलाड़ी या ज्यादा फिजिकल मेहनत करने वाले लोगों में यह संख्या 12-13 भी हो सकती है। खिलाड़ियों की सांस और पल्स कम होती हैं जबकि मोटे लोगों की ज्यादा। इसकी वजह यह है कि खिलाड़ी या जिम जाने वाले लोग रेग्युलर तौर पर फिजिकल एक्सरसाइज ज्यादा करते हैं, जिससे धीरे-धीरे उनका पल्स रेट कम हो जाता है। इसका फायदा यह होता है कि हमारे हार्ट को काम कम करना पड़ता है। इससे जरूरत के वक्त के लिए हार्ट के पास रिजर्व में एनर्जी बची रहती है। अगर किसी की सांस दर 12 से कम और 25 से ज्यादा है तो वह खतरनाक हो सकता है। हालांकि बुजुर्गों (65 साल से ज्यादा) में एक मिनट में 12 से 28 तक सांस नॉर्मल हैं।

तेज सांस लेने के नुकसान
- कम मात्रा में ऑक्सिजन शरीर में जाने से तनाव, पैनिक अटैक, अस्थमा, निमोनिया जैसी समस्याओं की आशंका

- हार्ट रेट का बढ़ना

- सांस का अटकना या सांस लेने में रुकावट होना

- मसल्स में क्रैंप्स पड़ना यानी अकड़न होना

- ब्लड प्रेशर का बढ़ना

- हीट और साउंड एनर्जी से पलूशन फैलना

- शरीर पर फालतू तनाव पड़ना

- ऑक्सिजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान ढंग से नहीं हो पाना

धीमी और गहरी सांस लेने के फायदे
- दिल और फेफड़ों की गतिविधियां बेहतर होना। ब्लड प्रेशर कम होना।

- एंडॉर्फिन हॉर्मोंस निकलना, जो पेनकिलर का काम करते हैं।

- खून का दौरा बेहतर होना, जिससे शरीर से टॉक्सिंस यानी जहरीले तत्व निकलते हैं।

- शरीर में ज्यादा ऑक्सिजन का जाना, जिससे एनर्जी लेवल बेहतर होता है।

- मन का शांत होना, गुस्सा और एंग्जाइटी कम होना।

- शरीर में एल्कलाइन लेवल बेहतर होना।

- मन पर बेहतर कंट्रोल होना।

- कंसंट्रेशन और मेमरी का भी अच्छी होना।

- नर्वस सिस्टम का बेहतर होना।

- पाचन अच्छा होना।

- पॉश्चर का सुधरना।

सांस में कौन-कौन सी गैस लेते हैं हम
नाइट्रोजन: 78 %

ऑक्सिजन: 21%

अरगॉन: 0.9 %

कार्बन डाइऑक्साइड: 0.03 %

औसतन कितनी सांस लेते हैं हम
एक मिनट: 12 से 20

एक घंटा: 720 से 1200

एक दिन: 17,280 से 28,800

एक महीना: 5,18,400 से 8,64,000

एक साल: 63,07,200 से 1,05,12,000


सांस से जुड़ी रोचक जानकारी
11000 लीटर: औसतन हवा रोजाना लेता है एक शख्स

2 मिनट तक: रोक सकते हैं सांस औसतन

22 मिनट: सबसे देर तक सांस रोकने का वर्ल्ड रेकॉर्ड

यह रेकॉर्ड 39 साल के स्टिग सेवेरिनसेन (Stig Severinsen) के नाम है। डेनमार्क के रहने वाले स्टिग ने यह रेकॉर्ड पानी के नीचे रहकर बनाया।

ज्यादा जानकारी के लिए
वेबसाइट्स
care2.com: यहां सांस लेने के फायदों से लेकर सांस लेने की सही तकनीक तक पर अच्छी जानकारी दी गई है।

health.com: दौड़ने के दौरान, मेडिटेशन में, तनाव में कैसे सांस लेनी चाहिए, जान सकते हैं इस वेबसाइट से।

विडियो
y2u.be/ldNnKVGxabA: सांस लेने का सही तरीका जानें, 2 मिनट के इस विडियो से।

y2u.be/8Y8FGnDxDG4: प्राणायाम के दौरान सांस कैसे लें, यह देखें 2 मिनट के इस विडियो में।

मोबाइल ऐप
Saagra: सांस लेने की सही तकनीक सिखाता है यह ऐप। इसमें मदद करने के लिए कई तरह का म्यूजिक भी स्टोर है इसमें।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड, iOS
The Breathing App: सही तरीके से ब्रीदिंग सिखाने के बाद यह ऐप इस पर भी निगाह रखता है कि आप ढंग से सांस ले रहे हैं या नहीं।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड


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ऐ जिंदगी, गले लगा ले...

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उनके पास पैसा, शोहरत, कामयाबी यानी वह सबकुछ था, जो किसी की भी हसरत हो सकती है, फिर चाहे आध्यात्मिक गुरु भय्यूजी महाराज हों या सिलेब्रिटी शेफ एंथनी बॉर्डियन या फिर पुलिस अधिकारी राजेश साहनी। वे जिस मुकाम पर पहुंचे, वहां कम ही लोग पहुंच पाते हैं, फिर भी उन्होंने जिंदगी से मुंह मोड़ लिया। दरअसल, सबकुछ होते हुए भी उदासी/हताशा या डिप्रेशन का दौर कई बार इस कदर घेर लेता है कि इंसान जिंदगी से बेजार हो जाता है। अगर हमारे आसपास ऐसा कोई हो जो डिप्रेशन के दौर से गुजर रहा हो तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने करीबियों को डिप्रेशन से बाहर निकालें। हम कैसे कर सकते हैं मदद, एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह...


एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. निमेष जी. देसाई, डायरेक्टर, इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलायड साइंसेज (इहबास)
डॉ. समीर पारिख, डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ, फोर्टिस हॉस्पिटल
डॉ. सोनिया लाल गुप्ता, कंसल्टंट न्यूरॉलजिस्ट, मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स
डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, सीनियर पीडियाट्रिशन
डॉ. मीनाक्षी मनचंदा, सीनियर सायकायट्रिस्ट, एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़
सुनील सिंह, जाने-माने योग गुरू


मॉली (बदला हुआ नाम) तीन साल की थी। उसके पैरंट्स का हाल में तलाक हुआ था। इसके बाद से मॉली के बर्ताव में कई तरह के बदलाव हुए। उसने खाना खाना छोड़ दिया। दोस्तों के साथ खेलना छोड़ दिया। वह गुमसुम रहने लगी। यहां तक कि मां से एक-दो बार बोल दिया कि भगवान मुझे अपने पास बुला लें। इतनी छोटी बच्ची के मुंह से ऐसी बात सुनकर मां परेशान हो गई और वह उसे लेकर पीडियाट्रिशन के पास पहुंची। जांच में डॉक्टर इस नतीजे पर पहुंचा कि मम्मी-पापा के तलाक की वजह से मॉली को डिप्रेशन हो गया था। काउंसलिंग और दवाओं के बाद मॉली ठीक हो गई।

आकर्षक व्यक्तित्व के नलिन (बदला हुआ नाम) अच्छी कंपनी में काम करते थे। 30 साल के नलिन अचानक उदास रहने लगे। उनका मन किसी काम में नहीं लगता। उन्होंने अपने लुक पर ध्यान देना भी बंद कर दिया। धीरे-धीरे ऑफिस से भी बार-बार छुट्टी करने लगे। बड़े भाई ने बहुत पूछा लेकिन कुछ पता नहीं चला। तब वह नलिन को लेकर सायकायट्रिस्ट के पास गए। 2-3 मुलाकात के बाद नलिन ने बताया कि उनकी गर्लफ्रेंड थी, जिससे वह दो साल पहले अलग हुए थे। उन्हें लगता था कि वह आगे बढ़ गए हैं, लेकिन वह उसे भुला नहीं पाए और धीरे-धीरे डिप्रेशन में आ गए। बहरहाल, काउंसलिंग, दवा और घरवालों की मदद से नलिन जल्द ही इस दौर से निकल आए। ये दोनों ही मामले डिप्रेशन के हैं। डिप्रेशन ऐसी बीमारी है, जो कभी भी, किसी को भी हो सकती है। यहां तक कि 3 साल के बच्चे से लेकर 90 साल के बुजुर्ग तक को।

उदासी और डिप्रेशन में फर्क

उदासी और डिप्रेशन के बीच फर्क जानना जरूरी है। उदास तो हम सभी होते हैं और लगभग रोज होते हैं लेकिन फिर जल्द ही नॉर्मल हो जाते हैं, लेकिन उदासी अगर लंबे समय (कम-से-कम दो हफ्ते) तक चलती रहे और इसका असर हमारी रोजाना की जिंदगी पर पड़ने लगे तो यह डिप्रेशन बन जाती है। दरअसल, यह न्यूरो से जुड़ा एक डिसऑर्डर है, जोकि दिमाग के उस हिस्से में बदलाव आने पर होता है, जोकि मूड को कंट्रोल करता है। इसकी चपेट में कोई भी आ सकता है। माना जाता है कि 5 में से 1 अडल्ट जिंदगी में एक बार डिप्रेशन का शिकार जरूर होते हैं। वैसे बड़े ही नहीं, बच्चे भी डिप्रेशन का शिकार होते हैं, खासकर पैरंट्स के बीच झगड़ा होने, स्कूल रिजल्ट खराब आने या फिर किसी खास दोस्त के साथ दोस्ती टूटने पर। ऐसे में पैरंट्स का रोल है कि वे अगर बच्चे को हफ्ते भर तक गुमसुम या परेशान देखें तो साइकॉलजिस्ट के पास जरूर लेकर जाएं।

कैसे पहचानें डिप्रेशन को

जिस शख्स को डिप्रेशन होता है, वह अक्सर इसे पहचान नहीं पाता। अगर पहचान भी लेता है तो स्वीकार नहीं करना चाहता। ऐसे में मरीज के करीबियों की जिम्मेदारी है कि वे लक्षण देखकर बीमारी को पहचानें। ऐसे कुछ लक्षण हो सकते हैं:

1. सायकलॉजिकल
- अक्सर उदास या परेशान रहना
- निगेटिव बातें करना
- खुद को कोसते रहना
- किसी से मिलने से बचना
- खुशी के मौकों पर भी दुखी रहना
- चिढ़कर या झल्लाकर जवाब देना
- सजना-संवरना बंद कर देना


2. बायलॉजिकल
- खूब सोना या बिल्कुल न सोना
- खाने की इच्छा न होना या बहुत ज्यादा खाना


3. फिजिकल
- लगातार ज्यादा थकान रहना
- वजन अचानक बढ़ जाना या तेजी से कम हो जाना
- सिरदर्द और बदन दर्द की शिकायत करना

ये हो सकती हैं वजहें
- किसी करीबी की मौत या बिछुड़ जाना
- नौकरी छूटना या कारोबार, पैसे-जायदाद का नुकसान
- रिटायरमेंट के बाद खुद को बेकार समझना
- किसी काम में उम्मीद मुताबिक नतीजा न मिलना
- पैसे का बहुत नुकसान या कर्ज में दब जाना
- भविष्य के प्रति अनिश्चितता
- किसी बड़ी बीमारी या मौत की आशंका
- जिनेटिक यानी जीन्स में कोई गड़बड़ी
- फैमिली में किसी को यह बीमारी होना
- हॉर्मोन्स में बदलाव (डिलिवरी या मिनोपॉज के बाद)
- रिजल्ट खराब आना
- ब्रेकअप होना

कब और किस डॉक्टर के पास जाएं

अगर किसी को 10-15 दिन तक उदासी का दौर बना रहता है तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। जिस तरह ब्लड प्रेशर, थायरॉइड या फिर दूसरी बीमारियों के इलाज के लिए डॉक्टर की जरूरत पड़ती है, उसी तरह डिप्रेशन के लिए भी डॉक्टर से मदद लेना जरूरी है। इसके लिए साइकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट से मिल सकते हैं। अगर बीमारी बहुत बढ़ी नहीं है तो साइकॉलजिस्ट से मिलने की सलाह दी जाती है और काउंसलिंग काफी होती है। साइकॉलजिस्ट मरीज को दवा नहीं दे सकते। उनका काम मरीज की काउंसलिंग का होता है। बीमारी बढ़ जाए तो सायकायट्रिस्ट की मदद लेनी पड़ती है। सायकायट्रिस्ट काउंसलिंग के साथ-साथ मरीज को दवाएं भी देता है। इनके पास एमबीबीएस डिग्री के अलावा सायकायट्री में स्पेशलाइजेशन भी होता है।

क्या कर सकते हैं आप

आपके किसी करीबी को डिप्रेशन है तो डॉक्टर को दिखाने के अलावा आपकी भी जिम्मेदारी है कि आप उसे इस स्थिति से बाहर निकालें। इसके लिए आप ये काम कर सकते हैं:

1. मानें, उसे है बीमारी

जिस तरह बुखार, पेटदर्द या दूसरी बीमारियों में इलाज की जरूरत है, वैसे ही डिप्रेशन में भी इलाज बहुत जरूरी है। आप यह न सोचें कि इसकी तो आदत ही है मुंह फुलाए रखने की या दूसरों को परेशान करने की। स्वीकार करें कि वह बीमार है और उसे इलाज के साथ-साथ आपकी मदद की भी जरूरत है। जिस तरह चिकनगुनिया के दर्द को हम महीनों बाद भी मानते हैं कि दर्द हो सकता है, उसी तरह डिप्रेशन को भी बीमारी मानना जरूरी है।

2. उसकी बात सुनें

मरीज की बातें सुनें। उसकी भावनाओं को समझें। वह जो भी बोलना चाहे, उसे बोलने दें बिना कोई टिप्पणी किए। न उसे सलाह दें, न ही जबरन खुश करने की कोशिश करें। आपको बस उसके मन की बात सुननी है। अगर वह किसी से नाराज है या उसके बारे में भला-बुरा कह रहा है और बेशक आपको यह बात पसंद नहीं है तो भी उसे टोकें नहीं। अगर किसी ब्रेकअप वगैरह की वजह से उसकी यह स्थिति हुई है तो भी उसके एक्स के बारे में कोई गलत बात न करें। उसे मन की बात निकालने का मौका दें। उसकी बात सुनें। हालांकि अक्सर ऐसा होता है कि डिप्रेशन का मरीज शुरू में अपने मन की बात किसी से नहीं करना चाहता। उसके मन को खोलना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में आप जबरन उसे कुरेदें नहीं। इधर-उधर की बातें करें। किसी और के जिक्र के बहाने उसकी समस्या पर बात करें जैसे कि मेरी एक फ्रेंड है, जिसके दोस्त ने उसे धोखा दे दिया था। फिर उसने कैसे खुद को संभाला आदि। धीरे-धीरे वह अपने मन की बात कहने लगेगा।

3. आराम से बात करें

मरीज को गुस्सा ज्यादा आता है। वह बात-बात पर गुस्सा करता है या नाराज हो जाता है। ऐसे में आपको अपना संयम बनाए रखना है। यह न हो कि आप झुंझलाने लगें कि एक तो मैं इसका साथ दे रहा हूं या मदद कर रहा हूं और यह मुझसे ही नाराज हो रहा है। दरअसल, पीड़ित को तो पता भी नहीं होता कि आप उसकी मदद कर रहे हैं। वह चीखे-चिल्लाए तो भी आप ऊंची आवाज में बात न करें। यहां तक कि अगर वह आप पर कुछ उठाकर मारने की कोशिश करे तो भी आप खुद को कंट्रोल में रखें। खुद को समझाएं कि वह बीमारी में ऐसा कर रहा है। हां, एक लक्ष्मण रेखा जरूर तय करें। मसलन प्यार से समझाएं कि इस तरह मारपीट या गाली-गलौच अच्छी बात नहीं है। आप प्यार से बात करेंगे तो धीरे-धीरे उसका मन शांत हो जाएगा। साथ ही, उसे किसी काम के लिए मजबूर न करें मसलन यह खा लो, चलो बाहर चलते हैं, किसी से बात क्यों नहीं करते आदि। इस तरह के वाक्य न बोलें।

4. उसका भरोसा जीतें

डिप्रेशन के दौरान मरीज अक्सर पूछता है कि मेरे साथ ही इतना बुरा क्यों होता? ऐसे में आप उसका हाथ थाम कर बोलें कि वह अकेला नहीं है। ऐसा कभी-न-कभी हर किसी के साथ होता है। बातों-बातों में उसे बताएं कि वह दुनिया का पहला शख्स नहीं है, जिसके साथ ऐसा हुआ है या जिसे कोई छोड़कर गया है। ऐसे ब्रेकअप के किस्सों से दुनिया भरी पड़ी हैं। अगर कोई उदाहरण आसपास मौजूद हो और वह सामान्य जिंदगी जी रहा हो तो उससे मिलवा भी दें। अगर वह फोन, चैट या मेसेज से एक्स पार्टनर को परेशान करता है तो उसे ऐसा करने से रोकें क्योंकि इसका कोई फायदा नहीं है। अगर वह बदला लेने की बात करे तो भी समझाएं कि इसका कोई फायदा नहीं है। बदला किसी बात का हल नहीं है। इससे दूसरे के साथ-साथ अपना भी नुकसान होता है। उसे उम्मीद की किरण दिखाएं।

5. तारीफ करें

उसकी खुलकर तारीफ करें। कहें कि तुम फाइटर हो, तुमने बहुत अच्छा किया। तुममें इस बीमारी से लड़ने की क्षमता है। अपने बारे में अच्छी बातें सुनकर उसका खुद पर विश्वास बढ़ेगा। इसके अलावा, वह जो काम करें उसकी भी तारीफ करें जैसे कि अगर उसने खाने के लिए कुछ बनाया या फिर कोई पेंटिंग की तो जरूर बताएं कि यह बहुत अच्छा बना है। तारीफ से उसके मन में उत्साह का संचार होगा।

6. एक्सपर्ट की मदद लें

अगर तमाम कोशिशों के बाद भी मरीज की उदासी कम नहीं हो रही है और यह दौर 10-15 दिन तक जारी रहता है तो एक्सपर्ट की मदद लें। काउंसलर से लेकर सायकॉलजिस्ट और सायकायट्रिस्ट तक, इसमें मदद कर सकते हैं। जरूरत पड़ने पर दवाएं भी दी जाती हैं। यह न सोचें कि इसकी तो आदत है ऐसे ही परेशान रहने की। एक्सपर्ट की मदद से आप अपने करीबी को जल्द ही इस स्थिति से बाहर निकाल लेंगे। कई बार ऐसा भी होता है कि वह आपसे कुछ बातें शेयर नहीं करना चाहता लेकिन काउंसलर या साइकॉलजिस्ट से कर लेता है। हां, एक्सपर्ट के पास ले जाने से पहले उसे बता दें और इसके लिए तैयार करें।

7. हॉबी क्लास जॉइन कराएं

बहुत जरूरी है कि डिप्रेशन के मरीज को उस काम में लगाएं, जो उसे पसंद है जैसे कि कुकिंग, गार्डनिंग, पेंटिंग आदि। डॉग आदि पालने से भी डिप्रेशन से निपटने में मदद मिलती है। वैसे, बेहतर है कि आप उसे कोई हॉबी क्लास जॉइन करा दें। हो सके तो खुद भी उसके साथ जॉइन करें ताकि उसे आपका साथ मिलता रहे और वह अकेला महसूस न करे।

8. एफएम बजाएं

पीड़ित के आसपास अच्छे मधुर गाने बजाएं। याद रखें, ये उदासी भरे न हों। एफएम इसमें काफी मदददगार साबित होता है क्योंकि वहां अक्सर जोश-खरोश वाले गाने बजते हैं और आरजे भी इसी मूड में रहते हैं। कॉमिडी फिल्में भी लगा सकते हैं। कॉमिडी फिल्में तनाव को कम करती हैं। आप अपने दोस्त के साथ मिलकर कॉमिडी फिल्म देखें तो मजा दोगुना हो जाएगा।

9. डाइट बेहतर बनाएं

चॉकलेट खाने को दें। इससे मूड अच्छा होता है। मूड को बेहतर बनाने वाली दूसरी चीजें डाइट में शामिल करें। न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खिलाएं जैसे कि ओट्स, गेहूं आदि अनाज, अंडे, दूध-दही, पनीर, हरी सब्जियां और फल। एंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिन-सी वाली चीजें जैसे कि ब्रोकली, सीताफल, पालक, अखरोट, किशमिश, शकरकंद, जामुन, ब्लूबेरी, कीवी, संतरा आदि को भी उसकी डाइट में शामिल करें। इसी तरह ओमेगा-थ्री से भरपूर चीजें फ्लैक्ससीड्स, नट्स, कनोला, सोयाबीन आदि भी खिलाएं। खाने की रंगीन चीजों जैसे कि गाजर, टमाटर, ब्लूबेरी, ऑरेंज आदि पर फोकस करें।

10. साथ-साथ करें कसरत


रिसर्च बताती हैं कि रेग्युलर वर्कआउट करने से वे हॉर्मोन (एंडॉर्फिन आदि) निकलते हैं तो जो मन को खुश करते हैं और डिप्रेशन दूर करते हैं। रोजाना 45-60 मिनट एक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए। आप खुद भी मरीज के साथ वॉक, जॉगिंग, स्वीमिंग और दूसरी एक्सरसाइज करें। आउटडोर गेम्स के जरिए भी तनाव दूर किया जा सकता है। साथ ही योग और प्राणायाम को भी रुटीन में शामिल करें। सूर्य प्राणायाम करें। यह अपने आप में संपूर्ण एक्सरसाइज है। ताड़ासन, कटिचक्रासन, भुजंगासन, धनुआसन, मंडूकासन आदि आसन भी कर सकते हैं। शवासन जरूर करें। इससे मन काफी रिलैक्स होता है। डीप ब्रीदिंग, कपालभाति और अनुलोम-विलोम से भी मदद मिलती है। 10 मिनट मेडिटेशन करें। माइंडफुल मेडिटेशन ट्राई कर सकते हैं। इसे कैसे करें, देखें: goo.gl/CbBgxy। 10 मिनट नंगे पांव हरी घास पर चलना चाहिए। तेल मालिश से भी डिप्रेशन में फायदा होता है।

क्या न करें

1. डांटें या दुत्कारें नहीं

अक्सर डिप्रेशन में मरीज आपकी बात नहीं मानता या फिर मरने-मारने की बातें करने लगता है। ऐसे में आप उसे डांटें बिल्कुल नहीं। न ही मनोबल तोड़ने वाली बातें करें कि तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता या फिर तुम्हारी खुद की बुलाई बीमारी है यह। इस तरह की बातें न करें। फिजूल सलाह भी न दें कि तुम ऐसा क्यों नहीं करते, वैसा क्यों नहीं करते आदि। मरीज को चैलेंज बिल्कुल न करें मसलन अगर वह कहता है कि मैं मर जाऊंगा तो आप यह न करें कि जाओ मर जाओ या ऐसा करके दिखाओ। उस पर गुस्सा करें और मारपीट तो बिल्कुल न करें। इससे उसका डिप्रेशन बढ़ जाएगा और वह खुद को और बेकार समझने लगेगा।

2. दोष न दें

डिप्रेशन में दवा और काउंसलिंग की तरह ही परिवार और दोस्तों का सही एटिट्यूड बहुत जरूरी है। मरीज को दोष बिल्कुल न दें। यह न कहें कि तुम्हारी वजह से ही ऐसा हुआ। तुम किसी की सुनते तो ऐसा नहीं होता या फिर तुम्हें लोगों की समझ नहीं है, तुम्हारे साथ ही ऐसा क्यों होता है आदि। जजमेंटल भी न बनें कि तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था आदि। तू खुश क्यों नहीं रहता, इससे बाहर क्यों नहीं निकलता आदि।

3. निगेटिव बातें न करें

आपको मरीज के सामने बेहद खुशगवार माहौल बनाकर रखना है। उसके सामने किसी भी तरह की निगेटिव बातें न करें। न यह कहें कि तुम किसी काम के नहीं हो, न ही यह कि तुम्हारी वजह से मेरा भी वक्त बेकार हो रहा है आदि। उसके साथ जोर-जबरदस्ती भी न करें। अगर वह कहीं जाना नहीं चाहता या कोई काम नहीं करना चाहता तो प्रेशर न डालें। उसे थोड़ा वक्त दें।

4. नशे का सहारा न लेने दें

परेशानी में कई बार लोग नशे का सहारा ढूंढते हैं। अपने करीबी को ऐसा बिल्कुल न करने दें। उसे शराब पीने और स्मोकिंग से रोकें। समझाएं कि नशा किसी समस्या का हल नहीं है। नशे में उसका साथ तो बिल्कुल न दें।

5. अकेला न छोड़ें

सबसे पहले मरीज को अकेला न छोड़ें। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि आप लगातार उसके साथ बने रहें और वह आपकी मौजूदगी से परेशान होने लगे लेकिन आप उस पर निगाह जरूर रखें ताकि वह कोई गलत कदम न उठा पाए। ध्यान रहे, अक्सर अकेले रहने के दौरान बीमार को नेगेटिव ख्याल आते हैं, इसलिए दोस्त और परिवार के बीच में रहना तनाव कम कर सकता है।

मिथ मंथन

बीमारी नहीं, आदत है यह
डिप्रेशन आदत नहीं है। यह न्यूरो से जुड़ी बीमारी है, जिसका इलाज दवाओं से मुमकिन है।

खुद ठीक हो जाएगी यह बीमारी
दूसरी बीमारियों की तरह इसका भी इलाज कराना जरूरी है। इलाज न कराने पर यह घातक हो सकता है।

पागलपन की बीमारी है डिप्रेशन
डिप्रेशन पागलपन बिल्कुल नहीं है। वक्त पर सही इलाज से यह पूरी तरह ठीक हो जाती है।

दवाओं की लत बन जाती है
डॉक्टर की सलाह से लें तो इसकी दवाएं पूरी तरह सेफ हैं और इनकी लत नहीं पड़ती। इनके साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं।

पूरी जिंदगी खानी पड़ती है दवाएं
ऐसा नहीं है। बीमारी दूर होने पर दवाएं बंद कर दी जाती हैं। हां, इसका इलाज कई बार लंबा चलता है।

इनसे होगी डिप्रेशन की आशंका कम

यूं तो डिप्रेशन के करीब आधे मामले जिनेटिक या फैमिली हिस्ट्रीवाले होते हैं और उन्हें रोकना मुमकिन नहीं है लेकिन छोटी-छोटी चीजें करके बाकी मामलों को रोका जा सकता है। ऐसी ही कुछ चीजें हो सकती हैं:

- आपके पास जो है, उसके लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करें। सोचें कि आपके पास जो कुछ है, उसे पाने के लिए बहुत-से लोग तरसते ही रहते हैं।
- दूसरों की मदद करें। इससे सुकून मिलता है। कोई आपके लिए कुछ करता है तो उसके लिए कृतज्ञता का भाव रखें।
- परिवार और दोस्तों के संपर्क में रहें। उनसे नियमित रूप से मिलते-जुलते रहें।
- मुस्कुराते रहें। किसी अनजान को देखकर भी मुस्कुराएं।
- इगो को हटाएं। I से Illness और We से Wellness आता है, अपनी जिंदगी में इस भाव को अपनाएं।
- रोजाना धूप में बैठने से डिप्रेशन के चांस कम हो जाते हैं।
- रात में पॉजिटिव चीजें सोचकर सोएं और सुबह भी उठकर सबसे पहले पॉजिटिव बातें ही सोचें।
- कोई हॉबी अपनाएं जैसे कि पेंटिंग, गार्डनिंग, कुकिंग या फिर कोई इंस्ट्रूमेंट बजाना।
- किसी भी तरह के नशे से दूर रहें। कोई लत भी न लगने दें, फिर चाहे वह मोबाइल गेम्स की ही लत क्यों न हो।
- किसी से कर्ज न लें। जितनी चादर है, उतने ही पैर पसारें।
- बच्चों के साथ खेलें। कुछ देर को खुद भी बच्चा बन जाएं।
- डॉग या दूसरा कोई पालतू जानवर पालें।

यहां से ले सकते हैं मदद

कई बार लोग अपने करीबियों को अपनी समस्या बताने के बजाय किसी अनजान से अपनी तकलीफ साझा करना पसंद करते हैं। अनजान के सामने मन का गुबार निकालना उन्हें ज्यादा आसान लगता है खासकर सामने बैठने के बजाय फोन पर। ऐसे में हेल्पलाइन की मदद ले सकते हैं। ऐसी कुछ हेल्पलाइन हैं:

संजीवनी (दिल्ली)
फोन (डिफेंस कॉलोनी): 011-2431-8883, 011-2686-4488
टाइम: सुबह 10 बजे से शाम 5:00 बजे तक (सोमवार से शुक्रवार तक)
कुतुब इंस्टिट्यूशन एरिया: 011-4109-2787, 4076-9002
टाइम: सुबह 10 बजे से शाम 7:30 बजे तक (सोमवार से शनिवार तक)

सुमैत्री (दिल्ली)
नंबर: 011-2338-9090
टाइम: दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक (सोमवार से शुक्रवार तक), सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक (शनिवार से रविवार तक)

आसरा (मुंबई)
नंबर: 022-2754-6669, 2754-6667
टाइम: चौबीसों घंटे, सातों दिन
नोट: ये हेल्पलाइन स्यूसाइड रोकने में काफी मददगार है और डिप्रेशन में भी फौरी राहत दिला सकती हैं लेकिन डिप्रेशन के लिए सही इलाज बहुत जरूरी है। इसका इलाज काफी आसान और सस्ता है। सरकारी अस्पतालों में तो इलाज फ्री है।

ऑनलाइन टेस्ट
डिप्रेशन की जांच के लिए डब्ल्यूएचओ का PSQ टेस्ट या BDI-II टेस्ट कर सकते हैं। ये टेस्ट आप फ्री में ऑनलाइन कर सकते हैं।


फेसबुक
फेसबुक भी अपने यूजर्स को मदद ऑफर कर रहा है। फेसबुक का कहना है कि अगर आपको किसी की पोस्ट से ऐसा लगता है कि वह डिप्रेशन में है तो आप फेसबुक को जानकारी दें। फेसबुक उस शख्स को मदद देगा। होम पेज के राइट में Help सेक्शन में जाकर Report A Problem को क्लिक करें। इसके अंदर Abusive Content में जाकर आप उस पोस्ट की जानकारी दे सकते हैं, जिससे उस शख्स के डिप्रेशन में होने या सूइसाइड करने की आशंका नजर आती है।

ज्यादा जानकारी के लिए

मोबाइल ऐप

Positive Thinking
यह ऐप आपको अपना नजरिया पॉजिटिव बनाए रखने में मदद करता है। जरूरत पड़ने पर यह आपको सलाह भी देता है।
कीमतः फ्री
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड, आईओएस

Headspace
यह ऐप आपको मेडिटेशन की ऐसी तकनीक सिखाता है, जिसकी मदद से आप ज्यादा खुशहाल और टेंशन-फ्री जिंदगी जी सकते हैं।
कीमत: फ्री
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड, आईओएस

यू-ट्यूब विडियो
y2u.be/chE00kGtg48
इस विडियो के जरिए आप जान सकते हैं डिप्रेशन से लड़ने के टिप्स।

y2u.be/z-IR48Mb3W0
डिप्रेशन क्या है, इस बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं इस विडियो से।

फेसबुक पेज

Defeat Depression
डिप्रेशन से निपटने में मददगार टिप्स और जानकारी से भरपूर पेज।

Anxiety and Depression Support
यह फेसबुक ग्रुप डिप्रेशन से लड़ने में आपकी मदद करता है।

मूवीज़
डियर जिंदगी (Dear Zindagi)
आलिया भट्ट और शाहरुख खान की यह फिल्म डिप्रेशन से पीड़ित एक युवती की कहानी है, जो सायकायट्रिस्ट की मदद से इस बीमारी से लड़ती है।
कहां देखें: यू-ट्यूब पर

It's a Wonderful Life (1946)
इसमें स्वर्ग से आया एक देवदूत धरती पर आकर एक परेशान बिजनेसमैन की मदद करता है और बताता है कि जिंदगी कितनी खूबसूरत है।
कहां देखें: यू-ट्यूब पर

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

जानें, आम के बारे में काम की ये खास बातें

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गर्मियों के मौसम में सबसे ज्यादा पसंद किया जानेवाला फल है आम। इसे आम और खास, सभी लोग बड़े शौक से खाते हैं। यह हमारी सेहत को दुरुस्त बनाए रखने में मददगार है। अगर आप बहुत ज्यादा और बेवक्त आम खाते हैं तो इससे आपकी सेहत को नुकसान भी पहुंच सकता है। आम से जुड़ी ऐसी ही कुछ जरूरी जानकारियां एक्सपर्ट्स से बात करके बता रही हैं कविता शर्मा...

आम की प्रचलित किस्में
माना जाता है कि पूरी दुनिया में आमों की 1500 से ज्यादा किस्में हैं, जिनमें 1000 किस्में भारत में उगाई जाती हैं। हर किस्म की अपनी ही अलग पहचान, महक और स्वाद होता है लेकिन उनमें भी कुछ बेहद प्रचलित किस्म हैं, जिन्हें बड़े शौक से खाया जाता है...

अल्फांसो: इस आम को आमों का राजा भी कहा जाता है। इसे मुख्य रूप से महाराष्ट्र में उगाया जाता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। बादामी, गुडू, और कगड़ी हापुस आदि इसी के नाम हैं। यह मीडियम साइज का तिरछापन लिए अंडाकार और संतरी पीला रंग का होता है। इसका गूदा मुलायम और रेशारहित होता है। यह अप्रैल से जून के बीच आता है। मार्केट रेट 150 से 200 रुपये किलो है।

सिंदूरी: यह आम आंध्रप्रदेश की पैदावार है। यह मध्यम आकार का अंडाकार आम है। इस आम का ऊपरी हिस्सा लाल और बाकी हरा रंग का होता है। इसे अप्रैल-मई के महीने में खरीदा जा सकता है। मार्केट रेट 100 से 120 रुपये किलो है।

सफेदा: यह खासतौर से आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु का है। इसे बैंगनपल्ली और बेनिशान नाम से भी जाना जाता है। यह आकार में बड़ा और थोड़ा मोटा होता है। इसका रंग सुनहरा पीला होता है। यह अप्रैल और मई के महीने में आता है। इसे आमतौर से मैंगो शेक बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मार्केट रेट 75 से 80 रुपये किलो होता है।

तोतापरी: यह मुख्य रूप से आंध्रप्रदेश का है। बाजार में यह मई में आता है। यह आकार में थोड़ा लंबा होता है। इसकी तोते की चोंच जैसी नोक निकली होती है। यह स्वाद में थोड़ा खट्टा होता है। माज़ा, स्लाइस, फ्रूटी आदि ड्रिंक्स बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। मार्केट रेट 55 रुपये किलो है।

केसर: यह गुजरात की प्रमुख किस्म है। मई के अंत में बाजारों में आसानी से यह उपलब्ध होती है। इसमें गूदा अधिक होता है और इसकी गुठली पतली होती है। खाने में बहुत मीठा और रसदार होता है। मार्केट रेट 50 से 60 रुपये किलो है।

दशहरी: यह यूपी का सबसे मशहूर आम है। यह साइज में मीडियम, लेकिन कुछ लंबा होता है। बिना कार्बाइड या मसाले से पके दशहरी आम का रंग हरा होता है। कैल्शियम कार्बाइड या अन्य किसी रसायन से पके दशहरी आम का रंग हरा और पीला मिक्स होता है। आम की यह किस्म देशभर में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली किस्म है। यह जून-जुलाई महीने में उपलब्ध होता है। यह खाने में मीठा और स्वाद से भरपूर होता है। मार्केट रेट 70 रुपये किलो है।

लंगड़ा: यह किस्म यूपी-बिहार में खूब पॉपुलर है। मध्य जून से जुलाई मध्य तक यह आता है। यह मीडियम अंडाकार साइज का होता है। इसका रंग हरा होता है और इसमें रेशे कम होते हैं। इसे ज्यादा दिन तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। इसका मार्केट रेट 70 रुपये किलो है।

चौसा: यह यूपी की फसल है। मुख्य रूप से जुलाई से अगस्त महीने में आता है। साइज में मीडियम अंडाकार और थोड़ा पतला होता है। इसका रंग पीला होता है। यह बेहद रसदार और मीठा होता है। मार्केट रेट 100 रुपये किलो है।

डिंगा: यह लखनऊ की प्रसिद्ध उपज है। यह आकार में थोड़ा छोटा अंडाकार और गोल्डन सुनहरे रंग का होता है। इस आम को आमतौर पर चूसकर खाया जाता है। जुलाई से अगस्त के बीच यह आता है। खाने में स्वादिष्ट मीठा और रेशेदार होता है। मार्केट रेट 50 रुपये किलो है।

फजली: यह आम सीजन का सबसे अंतिम आम होता है। लोग अगस्त तक इसका स्वाद लेते हैं। आम का सीजन जब खत्म हो जाता है तब यह आता है। मार्केट रेट 80 से 90 रुपये किलो है।

आम पकाने का तरीका
कच्चे आमों को सीधे किसानों से खरीदकर ट्रकों में मंडी पहुंचाया जाता है। वहां से रिटेलर कच्चे आमों की पेटियां खरीद लेता है और बाजार की मांग के हिसाब से आम को पका-पकाकर बेचता रहता है।

कैल्शियम कार्बाइड (Calcium Carbide)
भारत में ज्यादातर आम इसी के उपयोग से पकाए जाते हैं। कैल्शियम कार्बाइड (Calcium Carbide) से आम पकाना काफी आसान और सस्ता होता है। कार्बाइड को आम की पेटी में रखकर एक दिन के लिए छोड़ दिया जाता है और अगले ही दिन आम पककर तैयार हो जाते हैं। कार्बाइड सेहत के लिए हानिकारक है। यह फल के अंदर मौजूद नमी के साथ मिलकर एसिटीलीन (Acetylene) गैस बनाता है, जिससे फिर एसिटाइलिड (Acetylide) बनता है इससे कैंसर, दमा जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। फिलहाल दिल्ली के आजादपुर मंडी में कार्बाइड की खुली पुड़िया का चलन दो साल से बंद है।

चीनी पुड़िया (Ethephon)
आम पकाने के लिए आजकल इथेफोन (Ethephon) का इस्तेमाल किया जाता है। इसे चीन से मंगाया जाता है। यह सफेद रंग का पाउडर सैशे होता है। इस पुड़िया को हल्के गुनगुने पानी में डुबोकर आम की पेटी के बीच में रखकर छोड़ दिया जाता है। इससे निकलने वाली गैस से 18 से 20 घंटे के अंदर आम पककर तैयार हो जाते हैं। हालांकि इस प्रक्रिया में समय-सीमा का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है क्योंकि कम समय में अगर पुड़िया को पेटी से बाहर निकाल लिया जाता है तो आम कच्चे रह जाएंगे और ज्यादा समय के लिए पेटी में छोड़ दिया जाए तो ज्यादा पकने से उनके खराब होने और गलने की आशंका बढ़ जाती है।

राइपनिंग चैंबर
आम को पकाने का सबसे बेहतरीन तरीका राइपनिंग चैंबर का इस्तेमाल है। इसमें आम को चैंबर में रखकर एथिलीन गैस का कसंट्रेशन पावर 80 से 100 ppm तक रखा जाता है। इस दौरान कमरे का तापमान 18 डिग्री तक होना चाहिए। इस प्रक्रिया के तहत 12 से 18 घंटे के अंदर आम पककर तैयार हो जाते हैं। ऐसे पकने वाले आम स्वास्थ्य के लिए बिल्कुल हानिकारक नहीं होते। इन आमों का रंग दिखने में इतना आकर्षक होता है कि देखते ही इन्हें खाने का मन हो जाएगा। इस तरीके से पके आमों का इनका स्वाद भी बेहद ही लजीज होता है।

घर पर पकाएं आम
अगर आप फलों के राजा आम के शौकीन हैं, लेकिन कैल्शियम कार्बाइड से पके आम आपको डराते हैं तो आपके लिए मदर डेयरी हल लेकर आई है। मदर डेयरी के 'सफल' बूथों पर आजकल कच्चे आम की पेटियां मौजूद होती हैं, जिन्हें आप खुद पकाकर मीठा रसीला स्वाद ले सकते हैं। आप अपने इस पसंदीदा अखबार नवभारत टाइम्स की खबरों से कभी-कभार पक भी जाते होंगे।(SMILEY) इसी की मदद से आप आम भी पका सकते हैं। सबसे पहले आप आमों को साफ पानी में धोकर सुखा लें। फिर अखबार में एक-एक आम अलग-से अच्छी तरह से लपेटकर सामान्य तापमान पर किसी भी गत्ते के डिब्बे, बर्तन या जार में रख दें। 3 से 5 दिन में कच्चा आम पककर तैयार हो जाएगा, वह भी केमिकल का इस्तेमाल किए बिना। ध्यान रहे कि कमरे का तापमान कम-से-कम 20 से 22 डिग्री होना चाहिए। एसी वाले कमरे में इन्हें बिल्कुल न रखें। हालांकि इस प्रोसेस में पूरी पेटी में एक-दो आम खराब भी हो सकते हैं।

आम खरीदते हुए ध्यान रखें
बाजार में जब हम आम खरीदने जाते हैं तो अक्सर हमारे मन में सवाल उठता है कि आम मीठा होगा कि नहीं, सही तरह से पका है भी कि नहीं। सवाल यह भी रहता है कि आम को पकाने के जो अलग-अलग तरीके बाजार में उपलब्ध हैं उनकी पहचान आप किस तरह से कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि सही तरीके से पके आम की पहचान कैसे की जाए:

- देखें कि आम के ऊपर अम्लीय रस के दाग-धब्बे न हो।

- आम पर किसी रसायन के अलग-अलग सफेद या नीले निशान न हों।

- कई बार आम को इस तरह के केमिकल्स से पकाया जाता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। अगर आम पर समान रूप से सफेद पाउडर होगा तो वह प्राकृतिक तरीके से पका होगा। हालांकि इसे बहुत बारीकी से चेक करना पड़ेगा, लेकिन आप ऐसा करें क्योंकि हेल्थ के लिए यह बहुत जरूरी है।

- अमूमन आम को छूकर भी उसके पकने का अंदाजा लगाया जा सकता है। पका हुआ आम थोड़ा सॉफ्ट होता है। अधपका आम कहीं से सॉफ्ट और कहीं से ठोस होगा। जबकि कच्चा आम पूरा ही ठोस होगा।

- एक दूसरा तरीका यह है कि आप आम को बिल्कुल नीचे से अंगूठे से हल्का दबाकर देखें। पका हुआ आम छूने में सॉफ्ट लगेगा। इसके लिए आपको पूरे आम को दबाकर देखने की जरूरत नहीं है।

- राइपनिंग मेथड से पके आमों का रंग एक समान होगा क्योंकि यह एक समान तापमान में पकाए जाते हैं और यह खाने में काफी स्वादिष्ट और दिखने में बेहद खूबसूरत रंग के होते हैं।

पहचानें खतरनाक आम

- आम तो कैल्शियम कार्बाइड से पकाया गया है, इसका पता लगाना आसान नहीं है। फिर भी हम कुछ बातों का ध्यान रख सकते हैं:

- आम की ज्यादातर किस्मों के नेचरली पकने का सीजन मई-जून ही होता है। इसलिए इससे पहले बिल्कुल पीले आम कार्बाइड से पके ही हो सकते हैं। अप्रैल महीने में मिलने वाला आम अधिकतर इसी तरह से पकाया जाता है। हो सके तो अप्रैल से पहले आम खाने से परहेज करें।

- हर किस्म का आम अपनी खुशबू लिए होता है, लेकिन जबरदस्ती पकाए आम में खुशबू या तो होती नहीं है या बहुत कम होती है। आम को सूंघ कर पता लगा सकते हैं।

- प्राकृतिक तरीके से नहीं पकाए गए आम का छिलका तो पूरी तरह पीला होगा लेकिन अंदर से वह पूरी तरह से पका नहीं होगा। इस तरह से पके आम में सूखापन होगा और जूस भी कम होगा।

- अगर पीले आम पर कहीं-कहीं हरे धब्बे या झुर्रियां-सी नजर आएं या काटने पर अंदर कहीं-से लाल, कहीं-से हल्का पीला नजर आए तो समझ जाइए कि आम में घपला है।

- अगर पानी से भरी बाल्टी में डालने पर आम तैरने लगें या ऊपर आ जाएं तो समझें कि केमिकल से पकाए गए हैं।

डायबीटीज पेशंट्स और आम

आमतौर पर डायबीटीज के मरीजों को मीठी चीजें खाने के लिए मना किया जाता है। आम के सीजन में आम से परहेज रखना उनके लिए थोड़ा मुश्किल हो जाता है। ऐसे में जिन पेशट्ंस का शुगर लेवल थोड़ा कंट्रोल होता है, उन्हें टेस्ट के लिए डॉक्टर्स आम का एक छोटा पीस खाने की इजाजत देते हैं।

किस टाइम खाना ठीक होगा

टाइप-1 डायबीटीज पेशंट्स आम को एक स्नैक्स की तरह ले सकते हैं। आम को खाने के साथ खाने से परहेज करें। जब भी आम खाएं तो आधी चपाती कम खाएं। इससे आम और चपाती से मिलने वाली कार्बोहाइड्रेट की मात्रा का संतुलन ठीक बना रहेगा। दोपहर में खाने के बाद आप आम खा सकते हैं और ईवनिंग स्नैक्स में भी आम का सेवन किया जा सकता है।

टाइप-2 डायबीटीज के पेशंट्स को आम या मीठे फल नहीं खाने चाहिए।

आम के फायदे

आम में क्या ऐसी खासियत है कि इसे सभी फलों का राजा बना दिया गया है। दरअसल आम स्वादिष्ट होने के साथ-साथ बहुत ही गुणकारी फल है। इसमें मौजूद विटामिंस, बीटा कैरोटीन और फाइबर इसकी गुणवत्ता को और अधिक बढ़ा देते हैं। आइए जानते हैं आम खाने के फायदे:

बढ़ाता है इम्युनिटी: आम एक पोषक फल है। इससे हमारा इम्युनिटी सिस्टम ठीक बना रहता है। कई तरह के रोगों से लड़ने की क्षमता इससे बढ़ती है।

आंखों की रोशनी बढ़ाता है: आम में विटामिन ए की भरपूर मात्रा होने के कारण यह हमारी आंखों के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। तो आप अपने डेली रूटीन में आम को जरूर शामिल करें।

अपच के लिए अच्छा: यदि आप अपच की समस्या से परेशान हैं तो ऐसे में आम आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकता है। यह बिना पचे ही अवशोषित होने वाला फल है।

ऊर्जा बढ़ाने में सहायक: मीठा खाने के लिए अक्सर मना किया जाता है लेकिन मीठे फलों को खाने से सीधे एनर्जी मिलती है। इससे आपको जल्दी थकान भी महसूस नहीं होगी।

कभी भी खा सकते हैं आम

आम को आप सुबह नाश्ते में, दोपहर खाने के बाद या शाम को, किसी भी समय खा सकते हैं। आम के कोई साइड इफेक्ट्स नहीं है। लेकिन ध्यान रहे, आम में कार्बोहाइड्रेट ज्यादा मात्रा में होता है इसीलिए उसे कंट्रोल में रखने के लिए आपको अपनी एक्सट्रा डाइट को कंट्रोल में रखना होगा। आप सुबह परांठा भी खाएंगे और उसके साथ आम भी तो यह ठीक नहीं। इसे आपको बैलेंस करते हुए खाना होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो आपकी सेहत को नुकसान भी हो सकता है।

कैसे भी खा सकते हैं

आम को आप खाली पेट या खाने के बाद कैसे भी खा सकते हैं। खाते समय मात्रा का जरूर ध्यान रखें। कहा जाता है न कि अति हर चीज की बुरी होती है। इसीलिए अपनी डाइट का ख्याल रखते हुए आम खाएंगे तो यह आपके लिए फायदेमंद ही होगा।

पानी पी सकते हैं

आम खाने से पहले या बाद में पानी पी सकते हैं कि नहीं इसे लेकर लोगों में बहुत कन्फ्यूजन है। जवाब यह है कि आम खाने से पहले और बाद में, कभी भी आप पानी पी सकते हैं।

एलर्जी या पिंपल्स का रखें ध्यान

आम खाने से कुछ लोगों के चेहरे पर पिपंल्स या एलर्जी की समस्या हो जाती है। डॉक्टर्स का मानना है कि जिन केमिकल्स से आम को पकाया जाता है, उनके कारण एलर्जी हो जाती है। डायबीटीज के मरीजों में पिंपल्स होने की संभावना ज्यादा होती होती है। इससे बचने के लिए आम को अच्छी तरह धोकर और आम के ऊपरी हिस्से को काटकर हटा दें, फिर खाएं।

पिंपल्स हो जाएं तो क्या करें

- साफ-सफाई का ध्यान रखें।

- रुमाल से फेस को साफ करते रहें। गंदे हाथ से फुंसियों का न छुएं।

- सैफ्रामायसिन (Soframycin), फन्सिडीन(funcidin) एंटी-बायोटीक ट्यूब का इस्तेमाल करें।

मिथ मंथन

- डायबीटीज पेशंट्स को आम नहीं खाना चाहिए

आम में मीडियम लेवल का शुगर होता है। शुगर के अतिरिक्त भी आम में कई विटामिन्स और मिनरल्स होते हैं जो कि बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी माने जाते हैं। इसीलिए जिन लोगों का शुगर लेवल बहुत ज्यादा न हो वे हफ्ते में दो बार एक-एक आम खा सकते हैं। लेकिन इसके साथ ही वे एक्सरसाइज करना न भूलें।

- मोटापा बढ़ता है

मोटापे से ग्रसित लोगों को आमतौर पर मीठे से दूर रहने के लिए कहा जाता है। आम के लिए तो उन्हें खासकर मना किया जाता है। देखा जाए तो एक मीडियम साइज के आम में लगभग 44 कैलरी होती है। इसके साथ ही यह बेहद ही पौष्टिक फल है इसीलिए आप इसे खा सकते हैं कम मात्रा सुबह नाश्ते और शाम के स्नैक्स के वक्त आप इसे खाएं।

- आम खाने से फोड़े-फुंसी हो जाती हैं

अक्सर हम देखते हैं कि आम खाने के बाद चेहरे और हाथ पैरों पर फोड़े-फुंसियां निकलने लगती हैं। इसके लिए दो बातों का ख्याल रखना होगा। सबसे पहले तो आम को धोकर उसके ऊपरी हिस्से को पहले ही थोड़ा ज्यादा काट दें, जिससे कि ऊपर का जो अम्ल होगा, वह निकल जाएगा क्योंकि उससे भी कई बार फोड़े-फुंसी होने की संभावना होती है। ऐसा हमारी अपनी असावधानी या पर्सनल समस्या के कारण होता है।

यहां जाएं

इंटरनैशनल मैंगो फेस्टिवल

आम के बढ़ते क्रेज को देखते हुए दिल्ली सरकार की तरफ से 9 और 10 जुलाई को दिल्ली हाट जनकपुरी में इंटरनेशनल मैंगो फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है।

ज्यादा जानकारी के लिए

वेबसाइट्स

Aamrai.com: Online Mango Shopping Site

यहां से आप ऑर्गेनिक अल्फांजो आम ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

Drvgadmango.com: Famous for Devgad Alphanso

देवगढ़ के मशहूर आमों के शैकीन हैं तो इस वेबसाइट से ऑनलाइन हाफुस आम खरीद सकते हैं।

mango.org

यहां से आपको आम की क्वॉलिटी चेक करने से लेकर इससे जुड़ी तमाम जानकारियां मिल सकती हैं।

फेसबुक पेज

Mango Lovers

आम से बनने वाले अलग-अलग तरह के व्यंजन इस फेसबुक पेज पर आपको मिल जाएंगे।

The Mango Blog

यहां पर आपको आम से जुड़े लेटेस्ट प्रोग्राम और जानकारियां मिल जाएंगी।

Mango: The Royal fruit

इस ब्लॉग में आप आम की नई-नई फसलों और आम से संबंधित दिलचस्प तथ्यों के बारे में जान सकते हैं।


ऐसे पहचानें कि केमिकल से पकाए गए हैं आम
- अगर पानी से भरी बाल्टी में डालने पर आम तैरने लगें या ऊपर आ जाएं।

- आम अगर हल्का-सा हरापन लिए हुए हों और उन पर कुछ झुर्रियां-सी भी नजर आएं।

- काटने पर आम अगर कहीं-से लाल, कहीं-से हल्का पीला नजर आए। एक बराबर पका न हो।

ऐसे कम कर सकते हैं केमिकल का असर

- आम का ऊपरवाला हिस्सा हल्का-सा काट कर कुछ बूदें रस निकाल दें। फिर उन आमों को नमक मिले गुनगुने पानी में एक-दो घंटे के लिए छोड़ दें।

- किसी बड़े बर्तन में पानी भरकर उसमें 4 चम्मच बेकिंग सोडा डाल दें। 15 मिनट के लिए आम इसमें डुबो दें। अब साफ पानी से धोकर आमों को पोंछ लें।

- एक बर्तन में पानी भरकर उसमें 2-3 चम्मच हल्दी डाल दें। जब पानी ठंडा हो जाए तो उसमें आम डाल कर घंटा भर रखें। फिर साफ पानी से धोकर खाएं।

- किसी बड़े बर्तन में पानी भरकर उसमें 1 कप सफेद सिरका डाल दें। इसमें आम भिगोकर रखें और साफ पानी से धोकर इस्तेमाल करें।

- आमों को छिलका हटाकर खाएंगे तो केमिकल का असर काफी कम हो जाएगा।

एक्सपर्ट्स पैनल


डॉ. अनूप मिश्रा, चेयरमैन, फोर्टिस सीडॉक

डॉ. अमृता घोष, कंसल्टंट डायबीटॉलजिस्ट

रामरोशन शर्मा, प्रिंसिपल साइंटिस्ट, पूसा इंस्टिट्यूट

शांतनु भट्टाचार्य, बिजनेस हेड, सफल रिटेल

डॉ. सीमा गुलाटी, सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट

डॉ. गोविंद श्रीवास्तव, सीनियर स्किन एक्सपर्ट

तेजिंदर सिंह,

विजय दुआ

गोपाल

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ओ रसीला रे...

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हमने 'जस्ट जिंदगी' के पिछले अंक में आम पर खास पेज दिया था। इस बार हम लेकर आए हैं 7 रसीले फलों की खास जानकारी। दरअसल, गर्मियों में मिलने वाले तरबूज हो, मौसमी, जामुन या फिर हो आलूबुखारा, इन फलों के बारे में हम लोग कुछ न कुछ तो जरूर जानते हैं, लेकिन बहुत कुछ शायद नहीं जानते। यह काफी मुश्किल है कि लोग फलों के ढेर में से ताजे और पके हुए फल को पहचान लें। फलों की खास बातें और पहचान के जरूरी टिप्स मंडियों में जाकर और एक्सपर्ट्स से बात कर दे रहे हैं मुकुल

एक्सपर्ट्स पैनल:
रामरोशन शर्मा: प्रिंसिपल साइंटिस्ट, पूसा इंस्टिट्यूट

डॉ. सीमा गुलाटी: सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट

डॉ. अमृता घोष: कंसल्टंट डायबीटॉलजिस्ट

शांतनु भट्टाचार्जी: बिजनेस हेड, सफल रिटेल

राजकुमार भाटिया: आजादपुर ट्रेडर्स असोसिएशन लीडर

दुष्यंत सिंह चंदेल: प्रमुख फल व्यापारी

सुमेर सिंह सैनी: प्रमुख फल विक्रेता

रिंकू विज: प्रमुख फल व्यापारी

पवन छाबड़ा: प्रमुख फल व्यापारी

विजय तालरा: प्रमुख फल व्यापारी

सुमेर सिंह सैनी: प्रमुख फल व्यापारी


तरबूज: बड़ा और हरा
गर्मियों में गर्मी से राहत देने के लिए किसी फल का नाम सबसे पहले आता है तो वह है तरबूज। कभी मौसमी रहा तरबूज अब साल के 12 महीने मिलता है। अप्रैल से जून के बीच लोकल तरबूज मार्केट में आता है तो जुलाई से सितंबर कर्नाटक का तरबूज और अक्टूबर से नवंबर गुजरात का तरबूज मिलता है। दिसंबर से मार्च तक मिलने वाला तरबूज कर्नाटक और महाराष्ट्र से आता है। बेंगलुरू का तरबूज सबसे अच्छा माना जाता है। मार्केट में आजकल कई किस्म के तरबूज मिलते हैं। चलिए आपको बताते हैं, उनकी प्रमुख किस्मों के बारे में:

1. धारीवाला तरबूज: यह तरबूज हम सभी देखते आ रहे हैं। धारियां इस तरबूज की पहचान हैं। इसका रंग हरा होता है। हालांकि अब यह मार्केट से गायब होता जा रहा है क्योंकि यह आकार में काफी बड़ा होता है। इतने बड़े तरबूज की सेल कम हो गई है क्योंकि आजकल शहर में परिवार छोटे हो गए हैं। कीमत:

2. शुगर बेबी मेलन: आजकल यह मार्केट में ज्यादा देखा जा रहा है। इसका रंग गाढ़ा हरा होता है। इस पर कोई धारी नहीं होती। यह एक ही रंग का होता है। यह मॉनसून में भी मार्केट में मिलता है। आकार में छोटा होने के कारण इसकी डिमांड भी ज्यादा रहती है। इसका वजन डेढ़ से 3 किलो के बीच होता है जो 4-5 लोगों के परिवार के लिए काफी है। कीमत:

कैसे पहचानें

पूरे तरबूज को जगह-जगह से दबाकर देखें। अगर किसी जगह वह पिलपिला लगे तो वह अंदर से गला हुआ होगा। इसके अलावा लोग तरबूज को थपथपाकर भी उसकी क्वॉलिटी का अंदाजा लगाते हैं। हालांकि बहुत जानकार लोग ही इसकी पहचान कर पाते हैं। दुकानदार इसी तरह थपथपाकर तरबूज निकालकर देते हैं और ग्राहक को बेवकूफ बनाते हैं।

कैसा तरबूज न लें
लोग चेक करने के लिए तरबूज कटवाकर देखते हैं। कटा हुआ तरबूज कभी भी न लें। अगर आप कटा हुआ तरबूज लेते हैं तो आप उसे ज्यादा समय तक स्टोर करके नहीं रख सकते। आपको उसे जल्दी ही खत्म करना होगा।

न लें टेंशन
अक्सर कहा जाता है कि तरबूज में इंजेक्शन लगाकर उसे लाल बनाया जाता है या फिर मीठा किया जाता है। ऐसा नहीं है। यह अफवाह भर है। एशिया की सबसे बड़ी फल-सब्जी मंडी आजादपुर मंडी के फल विक्रेताओं का कहना है कि तरबूज में कुछ भी घोंपने वह सड़ जाएगा।

कैसे करें तरबूज स्टोर
1. तरबूज घर लाकर नमक के पानी में आधे घंटे तक डुबोकर रखें। ऐसा करने से उसके ऊपर के हानिकारक बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं।

2. अगर आप कमरे के तापमान पर तरबूज को रखेंगे तो वह करीब 1 हफ्ता चल सकता है।

3. खाने से दो घंटे पहले बिना काटे तरबूज को ठंडा करने के लिए उसे फ्रिज में रख सकते हैं। काटने के आधे घंटे बाद उसे खाकर खत्म कर दें।

4. बारिश के मौसम में तरबूज को 3-4 दिन से ज्यादा स्टोर नहीं करें। इस समय उसके खराब होने का खतरा ज्यादा रहता है।

डायबीटीज पेशंट्स रखें ध्यान
टाइप-1 और टाइप-2 दोनों ही तरह के डायबीटीज पेशंट्स यह ध्यान रखें कि ज्यादा मात्रा में तरबूज न खाएं। 1 दिन में आप 100 से 150 ग्राम तक तरबूज खा सकते हैं। जूस से पूरी तरह परहेज करें क्योंकि इससे तरबूज के रेशे आपके शरीर को नहीं मिल पाते।

कब और कैसे खाएं
1. आप अपने नाश्ते में तरबूज शामिल कर सकते हैं। लंच या डिनर के बाद इसे खाने से बचें क्योंकि खाली पेट हमारा शरीर फल के मिनरल्स को अच्छे से ग्रहण कर पाता है। खाने के बाद यह प्रक्रिया उतनी तेजी से काम नहीं करती।

2. तरबूज खाने के बाद पानी पीने को अक्सर मना किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि तरबूज में पहले ही पानी की पर्याप्त मात्रा रहती है।

सीखें तरबूज काटना
तरबूज को काटना भी एक कला है। आप कई तरीके से तरबूज काट कर उसका लुत्फ उठा सकते हैं। आप इस यूट्यूब लिंक पर जाकर तरबूज काटने के कई तरीके सीख सकते हैं: youtu.be/CT-1JfOaP2g

कहते हैं खरबूजा, खरबूजे को देखकर रंग बदलता है। क्या सच में ऐसा होता है? हकीकत जो भी हो, हम इसके पीछे नहीं जाते, लेकिन असली खरबूजा और तरबूज का रंग कैसा होता है, यह जानना काफी अहम है क्योंकि ‘जो दिखता है वही बिकता है’ को ध्यान में रखकर ही कई फल बेचने वाले इन फलों का रंग बदल देते हैं। हमें इन फलों में मेकअप वाले और असली में फर्क करना नहीं आता, इसलिए हमारी पहली पसंद मेकअप यानी केमिकल वाले फल ही होते हैं। गड़बड़ी की कहानी यहीं से शुरू होती है।

खरबूजा: मेरा टेस्ट अजूबा
आप खीरा दिल्ली के किसी सब्जी बाजार से खरीदें या फिर आंध्र प्रदेश के किसी मार्केट से, स्वाद में फर्क नहीं होगा, लेकिन खरबूजे के बारे में आप ऐसा नहीं कह सकते। खरबूजा अगर एक ही रंग का है तो भी आप दिल्ली से एनसीआर आ जाएं तो स्वाद में फर्क आ जाता है। यही इसकी खासियत है।

भारत में कहां-कहां
दुनियाभर में मिलने वाले फलों में खरबूजे की स्थिति 'परदादा' की है, यानी यह काफी पुराने समय से ही धरती पर उपलब्ध है। 'डिस्क्रिप्शन ऑफ मेलन' किताब में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। शुरुआत में यह एशिया और अफ्रीका में मिलता था, लेकिन आज इसकी मौजूदगी पूरी दुनिया में है। भारत में इसकी 10 वैरायटी ही बाजार में मिलती हैं। ये ज्यादातर पंजाब, तामिलनाडु, यूपी, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में उगते हैं।

खरबूजा कब करता है 'हलो'
साल के हर दिन आप चाहें तो खरबूजे को ‘हलो’ कह सकते हैं। देश में कई राज्यों के किसान इन्हें साल भर उगाते हैं। लेकिन खरबूजे का सबसे बेहतरीन समय अप्रैल से जुलाई है। इस समय आपको कम रेट पर, अच्छी वैरायटी के खरबूजे मिल जाएंगे।

रंग-रूप ऐसा कि...
कोई खरबूजा हरा दिखता है तो किसी का रंग पीला होता है। यह जरूरी नहीं कि पीला है तो गहरा पीला हो। खरबूजा हल्का पीला भी हो सकता है।

खुशबू ही मेरी पहचान
ऐसी कहावत है कि जिसे खरबूजे की खुशबू की पहचान नहीं, उसे इसका स्वाद भी पता नहीं होगा। खुशबू पता करने के लिए यह जरूरी है कि खरबूजा के उस भाग को नाक के नजदीक लाएं, जहां से खरबूजा अपने डंठल से जुड़ा रहता है। अगर पके हुए फल की खुशबू आ रही है तो समझें कि इसे अभी फ्रिज के हवाले नहीं किया गया है। अगर खुशबू नहीं आ रही है तो मान लें कि इसे फ्रिज की ठंडक में नहला-धुलाकर आपके सामने लाया गया है।

मैं वजनी हूं, तो अच्छा हूं
खरबूजे का वजन उसके अच्छे और पके होने का दूसरा संकेत है क्योंकि एक पका हुआ फल अपने आकार के हिसाब से भारी महसूस होगा। आप इस सोच में न रहें कि हल्का है तो दो किलो खरबूजे लेने पर तीन के बदले चार आ जाएंगे।

मेरी आवाज सुनो
खरबूज को कान के पास लाएं और इस पर धीरे-धीरे थपकी दें। पके हुए खरबूज के अंदर से खोखलेपन की धीमी आवाज निकलेगी जबकि कच्चे या कम पके हुए तरबूज से तेज आवाज निकलेगी।

मुझे चख लो
खरबूजे की खासियत है कि पूरी तरह से पकने के बाद इसके स्वाद में वैरायटी के हिसाब से फर्क आ जाता है। कोई खूब मीठा होता है तो कोई कम। इतना कम कि नाशपाती भी इसे चुनौती दे दे। किसी में पानी का टेस्ट भी ज्यादा आता है। जहां तरबूज को काटने के लिए आपको चाकू की जरूरत होती है, वहीं इसे काटने के लिए एक चम्मच ही काफी है। चम्मच के पिछले हिस्से से यह कट जाता है।

ऐसे खुलता हूं मैं
-सबसे पहले खरबूजे को सब्जी धोने वाले ब्रश से रगड़कर धो लें। लंबे समय तक जमीन पर रहने से मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया खरबूजे की ऊपरी सतह से चिपके रहते हैं। इसलिए इसे अच्छे से साफ करना जरूरी है।

-अगर टुकड़ों में नहीं खाना है तो इसे दो बराबर भागों में काट दें और बीज निकालकर चम्मच की मदद से खा लें।

-अगर टुकड़ों में काटकर खाना है तो सबसे पहले दो भागों में काट दें। फिर उन दो भागों को दो और भागों में काट दें। इसके बाद बने चार भागों को फिर से दो भागों में काट दें। अब एक खरबूजे के आठ भाग हो चुके हैं। इसके बाद इसकी बाहरी परत हटा दें। आप चाहें तो अपने सुविधानुसार इन आठ भागों को भी छोटी भागों में काट सकते हैं।

- फ्रिज में पके हुए खरबूजे रखें। दरअसल, इसे उस जगह रखना ज्यादा अच्छा है, जहां नमी ज्यादा हो।

ऐसे चट कर जाओ
-चीनी के साथ लोग इसे खूब खाते हैं।

-अखरोट, दूध और नारंगी के रस के साथ भी लोग खरबूजे को खूब पसंद करते हैं।

विडियो देखें, कैसे काटते हैं खरबूजा

https://tinyurl.com/ycm8ecxf

आड़ू: छोटा हूं, पर मीठा हूं
पहाड़ों पर उगने वाले खूबसूरत आड़ू की बात ही जुदा है। यह स्वाद में बेहद रसीला होता है। इसमें आयरन काफी मात्रा में पाया जाता है। आड़ू की मांग पिछले 2-3 बरसों में बढ़ी है। इसका सीजन मई के दूसरे हफ्ते से शुरू होता है और यह मध्य जुलाई तक चलता है। आड़ू मुख्य रूप से उत्तराखंड और हिमाचल से आता है। इसकी मुख्य 4 वैरायटी होती हैं:

1. रेड जोन: यह आड़ू की सबसे पहली और बेहतरीन वैरायटी है। यह आड़ू उत्तराखंड के रामगढ़ से आता है। इसका सीजन 15 मई से 15 जून तक रहता है। यह स्वाद में काफी मीठा होता है।

2. अलबेर्टा: यह हिमाचल प्रदेश के राजगढ़ से आता है। यह देखने में थोड़ा हरे और पीले रंग का होता है। यह वैरायटी 15 जून से जुलाई के पहले हफ्ते के बीच में आती है।

3. पैराडिलाइस: आड़ू की यह वैरायटी 1 से 15 जुलाई के बीच मार्केट में आती है। इस आड़ू में नीचे की तरफ चोंच होती है। स्वाद में यह भी मीठा होता है।

4. शरबती आड़ू: यह देखने में ऊपर से हरा होता है, लेकिन खाने में मीठा होता है। यह अप्रैल के आखिर से लेकर मई के पहले हफ्ते के दौरान आता है। यह पंजाब के बलाचौर से और मेरठ से आता है।

सख्त आड़ू ही लेना

1. सख्त आड़ू ज्यादा अच्छा होता है, यह ज्यादा दिनों तक चलता है।

2. ज्यादातर लोग मुलायम आड़ू खरीदते हैं, लेकिन वह जल्दी ही गल-सड़ जाता है।

3. आड़ू हमेशा मीडियम साइज का ही लें।

आड़ू खाने से पहले

1. इसे हमेशा खाने से पहले अच्छी तरह से धो लें, क्योंकि कई लोगों को आड़ू से खुजली की परेशानी हो जाती है।

2. आड़ू को खाने से पहले 10 मिनट गरम पानी में डुबो कर रखें। ऐसा करने से उसके बैक्टीरिया या दूसरी हानिकारक चीजें दूर हो जाती हैं।

3. इसे बिना धोए फ्रिज में रखना चाहिए।

4. कम पका हुआ आड़ू 7-8 दिन सामान्य तापमान पर रखा जा सकता है।

5. फ्रिज में 10 दिन तक आड़ू को स्टोर किया जा सकता है।

डायबीटीज पेशंट्स दें ध्यान
डायबीटीज के पेशंट्स 1 दिन में 2 से 3 आड़ू खा सकते हैं, लेकिन इसके साथ ही उन्हें अपनी एक्सरसाइज और डाइट का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसे ज्यादा मात्रा में खाना नुकसानदायक है। आप इसे दिन या शाम के वक्त स्नैक्स के रूप में ले सकते हैं।

अनार: साइज पर मत जाओ
अनार सेहत के लिए जानदार माना जाता है। भारत में अनार की बेल्ट राजस्थान से कर्नाटक तक फैली हुई है। महाराष्ट्र की अनार बेस्ट क्वॉलिटी की मानी जाती है। महाराष्ट्र में मालेगांव, शिरडी, पुणे के आसपास और शोलापुर तक अनार उगाया जाता है। राजस्थान के जोधपुर और गुजरात के लखानी, थराद और भुज में अनार की पैदावार होती है। अनार मार्केट में 12 महीने उपलब्ध होता है। 15 जून से दिसंबर तक महाराष्ट्र के अनार का सीजन होता है। फिर गुजरात, कुल्लू और अफगानिस्तान का अनार आता है।

अनार की वैरायटी:
1. मृदुला: यह अनार महाराष्ट्र का है। यह देखने में ‌‌भगवा रंग का होता है। इसके दाने मुलायम और गहरे लाल रंग के होते हैं। साइज में यह मीडियम से कुछ बड़े आकार का होता है।

2. अरक्ता: अनार की यह वैरायटी देखने में काफी लाल होती है। रंग खून जैसा होने के कारण अरक्ता कहते हैं। इसका स्वाद भी काफी मीठा होता है। इसके दाने हल्का गुलाबी रंग लिए होते हैं।

3. गणेश: इस अनार को ज्यादातर जूस वाले इस्तेमाल करते हैं। देखने में यह ऊपर से हल्का सफेद होता है और अंदर से लाल होता है। जूस निकालने के लिए यह काफी अच्छा माना जाता है।

4. कंधारी: यह अनार अफगानिस्तान के कंधार से आता है। कंधारी ऊपर से लाल रंग का होता है। स्वाद में यह खट्टा-मीठा होता है। इसका बीज कुछ सख्त होता है। यह दिवाली के 1 महीने पहले से उसके 1 महीने बाद तक मिलता है।

5. कुल्लू का अनार: यह वैरायटी कुल्लू से आती है। यह दो तरीके की होती है: बीज वाली और बिना बीज वाली। बीज वाली में बीज सख्त होता है और बिना बीज वाले में बीज होता तो है लेकिन नरम।

खरीदते समय दें ध्यान
1. अनार मीडियम साइज का लें। ज्यादातर लोग बड़े अनार की ओर आकर्षित होते हैं। आकार से अनार की क्वॉलिटी में कोई अंतर नहीं आता।

2. जो अनार देखने में थोड़ा सूखा लगे उसे खरीदें। अंदर से वह एकदम साफ निकलेगा।

कैसे खाएं
1. अगर आप अनार का जूस पी रहे हैं तो उसमें अनान्नास और मौसमी भी मिलाकर पिएं। अनार की तासीर गर्म होती है जो शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है।

2. डायबीटीज के पेशंट्स रोजाना एक छोटी कटोरी भर अनार के दाने खा सकते हैं। इसका जूस बिल्कुल न पिएं क्योंकि इससे शरीर में ग्लाइसेमिक इंडेक्स बढ़ जाता है। साथ ही अपनी दवाई और एक्सरसाइज पर भी खास ध्यान दें।

अनार है फायदेमंद

1. अनार में आयरन काफी मात्रा में होता है। डॉक्टर खून की कमी दूर करने के लिए अनार का जूस पीने या अनार खाने की सलाह देते हैं।

2. जो लोग अपने वजन को कंट्रोल करना चाहते हैं, वे इसे अपनी रेग्यलर डाइट में शामिल कर सकते हैं।

3. अनार सबसे सुरक्षित फल है। इसका छिलका काफी मोटा होता है जिसके कारण इसमें किसी भी प्रकार के केमिकल्स के अंदर जाने का अंदेशा कम ही होता है।

ऐसे करें स्टोर

अनार 7 दिन बिना फ्रिज के चल सकता है। फ्रिज में इसे 14 दिन तक स्टोर कर सकते हैं।


आलूबुखारा: रंग गाढ़ा और स्वाद चोखा
आलूबुखारा मार्केट में मई से जुलाई के बीच आता है। यह मुख्य रूप से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर से आता है। सभी का अपना अलग स्वाद होता है।

1. हिमाचल के रामपुर का आलूबुखारा मई में मार्केट में आना शुरू होता है।

2. उत्तराखंड (रामगढ़) के आलूबुखारों का सीजन 15 मई से 15 जून के बीच का होता है।

3. कुल्लू-मनाली से इनकी खेप 25 मई के बाद बाजार में आनी शुरू होती है और यह जून में खत्म हो जाती है।

4. जून के आखिर में जम्मू-कश्मीर का आलूबुखारा मार्केट में आता है और जुलाई तक यह रहता है।

खरीदते समय रखें ध्यान

1. थोड़ा सख्त ही खरीदें। मुलायम खरीदने से उनके जल्दी खराब होने का खतरा बढ़ जाता है।

2. रंग गाढ़ा होना चाहिए। गाढ़े रंग का फल ज्यादा मीठा होता है।

ऐसे करें स्टोर

1. अगर आलूबुखारा हरा है तो उसे फ्रिज में ना रखें। उसे बाहर ही रखें।

2. अगर उसका रंग गाढ़ा है तो ही उसे फ्रिज में रखें।

3. हरे पत्ते के साथ है तो बाहर रखें।

4. आलूबुखारा मोटा ही अच्छा माना जाता है। यह काफी स्वादिष्ट भी होता है।


जामुन: काला हूं, कमाल का हूं

काले जामुन के सभी गुण सफेद हैं, यानी इसे खाने से कभी नुकसान नहीं होता। इसका सीजन अप्रैल से शुरू होकर जुलाई तक चलता है। जामुन गुजरात के अहमदाबाद, जूनागढ़, पंजाब के लुधियाना, हरियाणा और यूपी के आगरा-कानपुर से आता है।

कैसे पहचानें

1. गुजरात वाले जामुन आकार में मोटे और लंबे होते हैं। इनकी खासियत है कि इनमें गुठली छोटी और गूदा ज्यादा होता है।

2. पंजाब के जामुन में गूदा और गुठली लगभग बराबर ही होती है। यह स्वाद में ज्यादा मीठा होता है।

3. आगरा और कानपुर का जामुन छोटा, गोल और स्वाद में थोड़ा खट्टा होता है।

खरीदते समय दें ध्यान

1. कुछ दुकानदार जामुन पर सरसों का तेल लगाकर बेचते हैं ताकि यह दिखने में एकदम साफ और चिकना लगे। ऐसे जामुन खरीदने से बचें। खरीदने से पहले उन्हें एक बार खाकर जरूर देख लें। तेल लगने से जामुन का स्वाद कसैला हो जाता है।

2. जामुन थोड़ा ठोस लें। ज्यादा मुलायम जामुन कम ही दिन टिक पाता है और गलना शुरू हो जाता है।

कैसे करें स्टोर

1. सामान्य तापमान पर रखा जामुन गर्मी के कारण जल्दी सड़ने लगता है। फ्रिज से बाहर यह 1 से 2 दिन चल सकता है।

2. फ्रिज में आप 4 या 5 दिन जामुन को स्टोर कर सकते हैं।

कीमत

इसकी रिटेल कीमत 80 से 150 रुपये किलो तक है।

नोट: फलों की कीमतें इलाके के हिसाब से कम या ज्यादा हो सकती हैं।



छोटी-छोटी चेरी
चेरी गर्मियों में मार्केट में आती है। इसका सीजन 10-15 मई से शुरू होकर 10-15 जुलाई तक चलता है। मार्केट में इसकी तीन वैरायटी आती हैं:

1. मखमली: चेरी की यह वैरायटी काले रंग की होती है। इसे घर लाने के बाद जल्दी खत्म करना ठीक रहता है क्योंकि इसके जल्दी खराब होने का खतरा रहता है।

2. मिश्री: यह चेरी हल्का लाल और पीला रंग लिए होती है। जैसा इसका नाम है वैसे ही यह खाने में भी ज्यादा मीठी होती है।

3. डबल: यह हल्का गुलाबी रंग लिए होती है।

कैसे करें स्टोर
चेरी को सिर्फ एक दिन के लिए फ्रिज के बाहर रख सकते हैं क्योंकि गर्मी में यह जल्दी खराब होती है। अगर आप इसका लुत्फ ज्यादा दिनों तक उठाना चाहते हैं तो फ्रिज में रखें। वहां यह आराम से 3 से 4 दिनों तक चल सकती है।

आई हो कहां से
चेरी भारत में मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में उगाई जाती है। जम्मू-कश्मीर की चेरी सबसे अच्छी मानी जाती हैं।

डायबीटीज पेशंट्स दें ध्यान
डायबीटीज के पेशंट्स को चेरी कम मात्रा में खानी चाहिए। चेरी में ग्लाइसेमिक इंडेक्स ज्यादा होता है। इसलिए एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 10 चेरी खा सकते हैं।


मौसमी: मौसमी नहीं, 12 महीने

मौसमी 12 महीने मार्केट में मिल जाती है। मौसमी एक पेड़ पर साल में दो बार उगती है। गर्मियों में यह अप्रैल से जून तक मिलती है। इसकी दूसरी फसल जुलाई से नवंबर तक भरपूर मात्रा में आती है। बचे हुए समय में यह दक्षिण भारत में मिलती है। यह महाराष्ट्र के औरंगाबाद और जालना, आंध्र प्रदेश के अनंतापुर और प्रकाशम, तेलंगाना के नालगोंडा और वारंगल जिलों में मुख्य रूप से उगाई जाती है।

कैसे पहचानें


1. आंध्र प्रदेश की मौसमी देखने में बिल्कुल साफ और सुंदर होती है। इसमें जूस ज्यादा मात्रा में होता है।

2. महाराष्ट्र की मौसमी की पहचान है कि उसमें ऊपर की तरफ, जहां इसे तोड़ा जाता है, वहां एक गोल चवन्नी जैसा आकार बना होता है। मिठास और न्यूट्रिशंस के लिहाज से यह ज्यादा अच्छी होती है। यह देखने में कुछ सख्त होती है। इसमें जूस कम होता है।

खरीदते समय ध्यान रखें कि मौसमी ज्यादा सख्त न हो। यह भी ध्यान रखें कि उसमें जूस की मात्रा ज्यादा हो। जिस साल बारिश कम होती है उस साल मौसमी का साइज कम हो जाता है।

फायदेमंद है मौसमी

1. मौसमी किसी भी बनावटी तरीके से नहीं पकाई जाती। इसे फंगस से बचाने के लिए स्प्रे का प्रयोग किया जाता है जिसका प्रभाव बारिश में भीगने से या घर पर धोने से खत्म हो जाता है।

2 डायबीटीज पेशंट्स 1 दिन में 1 मौसमी खा सकते हैं, लेकिन जूस न पिएं।

3. अन्य लोगों को भी मौसमी का जूस पीने की जगह मौसमी खाने को तरजीह देनी चाहिए। जूस से मौसमी के रेशे शरीर को नहीं मिल पाते।

कैसे करें स्टोर


1. गर्मियों में मौसमी को फ्रिज में रखें। यह 15 दिन फ्रिज में रखी जा सकती है। बाहर में करीब 10 दिन यह ठीक रहती है।

2. अक्टूबर के समय इसके गलने का अंदेशा ज्यादा रहता है, इसलिए उस समय इसे फ्रिज में ही रखें।

माल्टा
माल्टा मौसमी का ही दूसरा रूप है। अक्टूबर में जब मौसमी खत्म होने वाली होती है तब वह पीले रंग में आती है। तभी माल्टा शुरू होता है और वह हरे रंग में होता है। इसका सीजन अक्टूबर से दिसंबर तक होता है। यह हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में उगाया जाता है। रंग हरा होता है। माल्टा की कीमत 70 से 100 रुपये किलो के बीच होती है। इसमें विटामिन डी और एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं जो शरीर के लिए लाभदायक हैं।

कीनू
कीनू देखने में संतरे जैसा ही होता है। भारत में इस वैरायटी को 1954 में पंजाब एग्रीकल्चर के जे. सी. बक्शी लेकर आए। भारत में 90 के दशक से इसका प्रचलन ज्यादा बढ़ा। यह दिसंबर से अप्रैल के बीच आता है। श्री गंगानगर और अबोहर दुनिया के सबसे अच्छे कीनू उगाने के लिए मशहूर हैं। जूस की मात्रा ज्यादा होने और अच्छे स्वाद के कारण इसकी डिमांड बढ़ी है। कीनू विटामिन सी का एक अच्छा स्रोत है।

संतरा

संतरा साल में दो बार, जनवरी से अप्रैल और अगस्त से अक्टूबर के बीच आता है। जनवरी से अप्रैल वाला संतरा बेस्ट क्वॉलिटी का होता है। यह महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान के झालावाड़ में मुख्य रूप से उगाया जाता है। 1 पेड़ में 80 से 120 किलो तक संतरे आते हैं। पेड़ लगाने के चौथे साल में इसमें फल आता है। पेड़ की आयु 30 साल तक होती है।

रंगीन रोशन का चक्कर
वैसे तो रोशनी अंधेरा दूर करने के ही काम आती है, लेकिन कभी-कभी रंगीन रोशनी इसके उल्टा भी काम करती है। जब आप रात में मार्केट में फल-सब्जी आदि खरीदने जाते हैं तो ज्यादातर रेहड़ी और ठेले वाले अलग-अलग रंगों की रोशनी वाले बल्ब लगाकर रखते हैं। ये रंग आपको सब्जी की असलियत समझने के लिए नहीं, बल्कि हकीकत से दूर करने के लिए लगाए जाते हैं। इसलिए इन पर ध्यान देना जरूरी है। फल या हरी सब्जी है तो हरे रंग की बल्ब। लाल है तो लाल रंग की बल्ब से रोशनी फैलाकर आपकी आंखों को धोखा देने का पूरा इंतजाम होता है। जब आप कोई हरा फल हरे रंग की रोशन में देखेंगे तो वह और भी ज्यादा हरा दिखाई देगा। इससे कम हरा तरबूज भी खूब हरा नजर आएगा यानी ताजा दिखेगा। इसलिए यह जरूरी है कि हरे फल को सफेद रोशनी में देखें। आप इसके लिए अपने मोबाइल की टॉर्च या फिर बगल के किसी दूसरे दुकानदार की दूसरे रंग की रोशनी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे आपको उस फल की सच्चाई समझ में आ जाएगी।

ये वैक्सिंग है जरा हटके
फलों को चमकाने, ताजा रखने के लिए उसके ऊपर वैक्स की परत चढ़ाई जाती है, इसे वैक्सिंग कहा जाता है। फलों के ऊपर की जाने वैक्सिंग को लेकर ज्यादातर ग्राहक एक अजीब उलझन में रहते हैं। सेब को लेकर यह चिंता सबसे ज्यादा होती है। पूसा के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. राम रोशन शर्मा बताते हैं, फलों पर की जाने वाली वैक्सिंग हेल्थ के लिए नुकसानदेह नहीं होती। यह एडिबल वैक्स होती है। इस वैक्स का हेयर रिमूव करने वाली वैक्स से कोई संबंध नहीं है। फलों पर इस्तेमाल की जाने वाली वैक्स सब्जियों के ऊपर की नेचरल कोटिंग से बनाई जाती है। बी वैक्स का भी इसमें इस्तेमाल होता है। फलों पर एलोवेरा की कोटिंग भी की जाती है। नेचरल वैक्सिंग एफएसएसएआई द्वारा मान्यता प्राप्त है।

यह वैक्सिंग उन फलों पर की जाती है, जिनका छिलका कमजोर होता है और जिनके अंदर के पानी के सूखने का अंदेशा ज्यादा होता है। वैक्सिंग से फलों के असमय सूखने का खतरा नहीं रहता और वे ज्यादा समय तक चल पाते हैं। कीनू का छिलका पतला होता है और उसमें पानी की मात्रा ज्यादा होती है इसलिए उस पर वैक्सिंग की जाती है। माल्टा और मौसमी पर वैक्सिंग नहीं की जाती। अगर आप फिर भी सावधानी बरतना चाहते हैं तो वैक्सिंग किए हुए फलों को आप घर पर धो कर खा सकते हैं।

कैसे पकते हैं, कैसे आते हैं

1. गर्मी के अधिकतर फलों को पकाने का तरीका सुरक्षित है। हालांकि, आज भी छोटे पैमाने पर इनमें कुछ गड़बड़ियां की जाती हैं। तरबूज बेचने वाले 100 में से 3-4 तरबूजों में सेक्रिन का प्रयोग करते हैं। इससे तरबूज मीठा हो जाता है। यह हानिकारक भी होता है। जब कोई ग्राहक मीठा तरबूज मांगता है तो उसे वह तरबूज दे दिया जाता है लेकिन सभी तरबूजों में ऐसा करना मुमकिन नहीं है। सेक्रिन का प्रयोग न तो किसान करते हैं और न ही मंडी वाले। यह रिटेलर करते हैं।

2. आड़ू पर बारिश की बूंदों से आए दागों और फंगस हटाने के लिए मंडी में उन्हें डिटरजेंट से साफ किया जाता है। इससे आड़ू की चमक बढ़ जाती है और वह साफ दिखने लगता है लेकिन डिटरजेंट के प्रयोग से उसमें हानिकारक तत्व आ जाते हैं। इसलिए एकदम चमकदार दिख रहे आड़ू न खरीदें।

3. आलूबुखारा किसान थोड़ा कच्चा ही तोड़ते हैं। जहां यह उगता है, वहां की लोकल मंडियों में बॉक्स के अंदर कार्बाइड का प्रयोग किया जाता है। उसके बाद मार्केट आते-आते यह पकता है, जो कि हानिकारक होता है।

4. जामुन को पकाने के लिए कोई हानिकारक तरीका प्रयोग नहीं किया जाता। इसकी चमक बढ़ाने के लिए रेहड़ी वाले अक्सर तेल का प्रयोग करते हैं। इसकी पहचान का तरीका है कि ऐसे जामुनों पर पानी की बूंदें ओस की तरह रूकी रहती हैं। आप उसे खरीदने से बच सकते हैं।

5. चेरी तब तोड़ी जाती है, जब वह पकने की स्थिति में आने वाली होती है। किसान इन्हें तोड़कर बॉक्स में रख देते हैं। मार्केट तक आते-आते यह पूरी तरह पक जाती है। ऐसे में यह सुरक्षित होती है।

6. अनार भी बिल्कुल सुरक्षित तरीके से पकता है। इन्हें पकाने के लिए किसी प्रकार के आर्टिफिशल तरीके का इस्तेमाल नहीं होता।

7. मौसमी, किनू, माल्टा और संतरा सुरक्षित फल हैं। इसे पकाने या ताजा दिखाने के लिए कुछ यूज नहीं किया जाता।

मदर डेयरी का ‘सफल’ जो कि फल और सब्जियों की बिक्री करता है, का दावा है कि सभी फल एकदम सुरक्षित तरीके से ग्राहकों के लिए लाता है। सफल में आम, केले और पपीते के लिए राइपनिंग चैंबर हैं। अन्य फलों को किसी भी अन्य तरीके से नहीं पकाया जाता।

सफल के बिजनेस हेड शांतनु भट्टाचार्जी बताते हैं कि सफल में तरबूज यूपी के गजरौला, मुरादाबाद, आगरा और चंदौसी से आते हैं, वहीं खरबूजा पानीपत, सोनीपत और जयपुर से। आड़ू हिमाचल से और आलूबुखारा उत्तराखंड के रामगढ़ के किसानों से लिया जाता है। चेरी जम्मू-कश्मीर से आती है। मौसमी आंध्र प्रदेश, कीनू होशियारपुर, संतरा नागपुर से आता है। अनार मुख्य रूप से महाराष्ट्र से मंगाया जाता है।

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पहले साइबर सेक्स फिर ब्लैकमेलिंग, बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक हो रहे शिकार

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एक्सपर्ट्स पैनल
मदन एम. ओबेरॉय, सीनियर पुलिस ऑफिसर
पवन दुग्गल, साइबर क्राइम एक्सपर्ट
डॉ. जितेंद्र नागपाल, सीनियर साइकायट्रिस्ट
डॉ. अंजलि छाबड़िया, सीनियर साइकायट्रिस्ट
डॉ. दीपक रहेजा, सीनियर साइकायट्रिस्ट

बस एक भूल और जिंदगी बेजार हो जाती है। यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं बल्कि साइबर क्राइम के शिकार हुए लोगों की हकीकत है। आजकल सोशल मीडिया पर सेक्स, एंटरटेनमेंट, एक्साइटमेंट और धोखाधड़ी का धंधा जोरों पर है। इंटरनेट पर ऐसी भूल न करें। अगर गलती हो भी जाए तो उससे निपटने के तरीके क्या हो सकते हैं, एक्सपर्ट्स से बात कर पूरी जानकारी दे रही हैं अनु जैन रोहतगी...

34 साल की रीमा (बदला हुआ नाम), एक मल्टी नैशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर हैं। शादीशुदा हैं और 10 साल का बेटा भी है। पति का बड़ा बिजनस है और काम के सिलसिले में अक्सर बाहर रहता है। पैसों की कमी बिल्कुल नहीं है। रीमा को भी ऑफिस के काम के लिए बाहर जाना पड़ता है इसलिए घर नौकर-चाकर के भरोसे चल रहा है। रीमा काम के साथ-साथ मौज-मस्ती के लिए भी पूरा समय निकाल लेती हैं। वीकेंड पार्टी या फिर फेसबुक चैटिंग में गुजर जाता है। एक दिन अचानक रीमा की जिंदगी में जैसे भूचाल आ जाता है। उसे एक मेल आता है और उसका टाइटल भी कुछ चौकाने वाला होता है। Read the mail and act wisely (मेल पढ़ो और समझदारी से काम करो)। रीमा उत्सुक होकर मेल खोलती है, तो उसके होश उड़ जाते हैं। मेल में रीमा की कुछ बिना कपड़ों के फोटो हैं। साथ में लिखा है 5 लाख रुपये चाहिए, नहीं तो ये फोटो तुम्हारे पति को भेज दी जाएंगी। कुछ समय पहले ही रीमा ने अपने एक नए फेसबुक फ्रेंड के दबाव में और शराब के नशे में उत्तेजित होकर फेसबुक पर चैट के दौरान अपने कपड़े उतार दिए थे। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि चैट के दौरान उसकी बिना कपड़ों के फोटो को खींची जाएगी और उसे ब्लैकमेल किया जाएगा। शर्म में डूबी रीमा बहुत डर गई और किसी को बताए बिना ही पहली बार 5 लाख और दूसरी बार 3 लाख रुपये देकर अपनी जान छुड़ाई। इस बात को काफी समय हो चुका है, लेकिन अभी तक रीमा डर के साये में जी रही है। एक साइकायट्रिस्ट के पास उसकी अभी तक काउंसलिंग चल रही है।

28 साल के रवि (बदला हुआ नाम) दिल्ली में अकेले रहता है। अच्छी जॉब है। परिवार से दूर होने के कारण रात का समय फेसबुक, वाट्सअप चैट पर ही गुजरता है। कई वट्सऐप दोस्त भी बन गए हैं। लेकिन फेसबुक की यह दोस्ती एक दिन रवि को बहुत भारी पड़ गई। फेसबुक नोटिफिकेशन चेक करते समय अचानक एक सुंदर लड़की का चेहरा सामने आकर रवि से दोस्ती की पेशकश करता है। अकेले रह रहे रवि की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई। दो-तीन दिन लगातार देर रात तक बातें होती रहीं और दोस्ती प्यार में भी बदल गई। एक दिन लड़की ने रवि के सामने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। उसने रवि को भी ऐसा करने पर उकसाया। लड़की का जुनून रवि के सिर पर सवार था और उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए। कब, कैसे उसने लड़की की अदाओं पर रीझ कर मैस्टरबेशन भी कर लिया। अगले ही दिन रवि की सारी खुमारी उतर गई, जब चैट पर उस लड़की के बजाय उसे एक लड़के ने संबोधित किया और धमकाया कि उसके पास मैस्टरबेशन करते हुए रवि की सेक्स रिकॉर्डिंग है।

अगर 10 लाख रुपये नहीं मिले तो वह विडियो उसके परिवार और दोस्तों को भेज दिया जाएगा। घबराए रवि ने तुंरत चैट बंद कर ली और फेसबुक अकाउंट ही डिलीट कर दिया। लेकिन यह उस गलती का हल तो नहीं था जो रवि कर चुका था। अगले दिन रवि को एक मेल मिलता है जिस पर लिखा होता है वॉच एंड डिसाइड (देखो और फैसला करो) मेल में एक क्लिपिंग में रवि की मैस्टरबेशन करते हुए की 2 मिनट की विडियो थी। रवि बहुत घबरा चुका था, लेकिन उसने समझदारी से काम लिया और ये बात अपने एक वकील दोस्त से शेयर कर ली। वकील ने उसे फौरन पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने की सलाह दी और फेसबुक को इसकी जानकारी देकर, ब्लैकमेल करने वाले की पहचान देने का ईमेल लिखा। इसका असर यह हुआ कि पकड़े जाने के डर से ब्लैकमेलिंग करने वालों ने मेल भेजना बंद कर दिया और रवि की जान में जान आई। साथ ही उसे एक अच्छा सबक भी मिला।

25 साल की नेहा के मामले में उसे मजा चखाने, बदनाम करने के लिए, उसके ही साथ काम करने वाले एक सहयोगी ने बाकायदा उसके कंप्यूटर को हैक करके उसकी कुछ गंदी फुटेज का विडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। बात यह थी कि नेहा ने अपने सहयोगी के शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था, इससे नाराज होकर उसने नेहा को बदनाम करने की ठान ली। नेहा के बारे में उसने घर के नौकरों और कुछ करीबी सहेलियों से जानकारी ली। पता चला कि नेहा अपने कमरे में बिना कपड़ों के घूमती है और उसका कंप्यूटर-वेबकैम 24 घंटे चालू रहता है। बस उसने नेहा के कंप्यूटर को हैक करके, रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। लगभग डेढ़ घंटे का विडियो बनाया और 5 मिनट की फुटेज नेहा को भेज दी। नेहा का मामला फिलहाल कोर्ट में चल रहा है।


ब्लैकमेलिंग के ऐसे मामलों को सेक्सटॉर्शन (sextortion) के नाम से जाना जाता है और इसके शिकार लोगों की संख्या विदेशों में तो थी ही, अब अपने देश में भी तेजी से बढ़ रही है। आज की मॉडर्न लाइफ में इंटरनेट चैटिंग एक जुनून, एक जरूरत, एक स्टाइल बनती जा रही है। चैंटिंग के दौरान पता ही नहीं चलता कि आप कब-कैसे दूसरे आदमी से एकदम खुल जाते हैं, उससे हर बात शेयर करने लगते हैं। जब पता चलता है तो बहुत देर हो चुकी होती है।

इसी बात का फायदा कुछ साइबर क्राइम में ऐक्टिव गैंग उठा रहे हैं। इनका धंधा ही सेक्सटॉर्शन के जरिए लोगों को फंसाना और पैसा कमाना है। सेक्सटॉर्शन के शिकार लोगों की कोई उम्र सीमा नहीं है। एक तरफ जहां इसमें स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियां शिकार होती हैं, वहीं कई बार 50-55 साल तक के लोग भी लड़कियों से दोस्ती, उनसे संबंध बनाने के चक्कर में सेक्सटॉर्शन का शिकार बन रहे हैं।

बदनामी और शर्म के चलते ऐसे मामले पुलिस के पास बहुत कम पहुंचते हैं, लेकिन कई बार साइकायट्रिस्ट के पास पहुंच जाते हैं। बदनामी, शर्म, ग्लानि के चलते ऐसे लोग डिप्रेशन, घबराहट, काम में मन न लगना, नींद न आना और कई साइकोसोमैटिक (मानसिक बीमारी के कारण शारीरिक बीमारी हो जाना) बीमारियों का शिकार बनकर एक्सपर्ट के पास पहुंचते हैं। वहां भी बहुत मुश्किल से ही कोई बात सामने आती है। साइकायट्रिस्ट कई-कई काउंसलिंग के बाद ही सच्ची बात सामने आती है। साइकायट्रिस्ट के पास अमूमन दो तरह के मामलों में लोग सलाह या इलाज कराने के लिए आ रहे हैं। पहले वे मामले हैं, जो सेक्सटॉर्शन का शिकार हो चुके हैं और अब डिप्रेशन, नींद न आना जैसी बीमारियों का शिकार बन चुके हैं। दूसरा ग्रुप ऐसे लोगों का है जो नशे, पागलपन में वेब चैट के दौरान सेक्स गतिविधियां कर चुके हैं या अपने किसी दोस्त को अपनी बोल्ड तस्वीर शेयर कर चुके हैं। उन्हें अब रह-रहकर फोटो, विडियो लीक होने, ब्लैकमेलिंग का शिकार होने का डर सता रहा है। हालांकि, उनकी वेब पर फ्रेंडशिप कायम है, लेकिन एक डर के साथ। ऐसे लोग डर, घबराहट के साथ मदद लेने पहुंचते हैं कि अगर कुछ उलटा-सीधा हो गया तो वह क्या करे?

क्या है सेक्सटॉर्शन
स्पाई कैमरे या मोबाइल या वेब कैम के जरिए किसी की सेक्स गतिविधि को रिकॉर्ड करना या किसी की बिना कपड़ों की तस्वीरों को शूट करके उसके जरिए ब्लैकमेल करने को सेक्सटॉर्शन कहा जाता है। सेक्सटॉर्शन के ऐसे मामले पिछले दो-तीन बरसों से ही सामने आ रहे हैं। अहम बात यह भी है कि दूसरे ब्लैकमेलिंग के मामलों की तरह ऐसे केसों की रिपोर्टिंग भी बहुत कम है। पिछले एक-दो बरसों में कुछ लोग हिम्मत करके पुलिस, वकील और डॉक्टरों के पास मदद के लिए पहुंच रहे हैं और पता चलने लगा कि है सेक्सटॉर्शन के इस तरीके से लोगों को ठगा जा रहा है।

कैसे फंसाते हैं
इस काम में ऐक्टिव कुछ ग्रुप फेसबुक, स्काइप या किसी दूसरे माध्यम का इस्तेमाल करके अपने शिकार को फंसाते हैं। पहले ये इंटरनेट पर अपनी नकली पहचान बनाते हैं। फिर खूबसूरत लड़के-लड़कियों को हनी ट्रैप की तरह इस्तेमाल करके अपने शिकार से दोस्ती करवाते हैं। उन्हें बहुत करीब आने, दोस्ती बढ़ाने के लिए उकसाते हैं। धीरे-धीरे अपने शिकार को वेबकैम के सामने सेक्सुअल ऐक्ट करने, कपड़े बदलने और उतारने के लिए उकसाते हैं। हैरानी की बात तो यही है कि ज्यादातर लोग इनके चंगुल में फंस जाते हैं। यही कारण है कि इनके शिकार लोगों की संख्या बढ़ रही है। अपने शिकार को फंसाने के लिए इन्हें 10 दिनों से लेकर कई महीनों का समय लग जाता है। ज्यादातर गैंग बहुत ही प्रफेशनल तरीके से काम करते हैं। टारगेट की माली हालत, परिवार, मैरिटल स्टेट्स, शौक आदि की जानकारियां जुटाई जाती हैं। पता चलने पर कि लड़का या लड़की पैसेवाला है। दिलफेंक है, करीबी दोस्त बनाने पर यकीन करता है, तभी उनको टारगेट किया जाता है और पूरा समय लगाया जाता है। जानकारों के मुताबिक इस समय इस काम में लगे 80 फीसदी इंटरनैशनल गैंग ऐक्टिव हैं, जबकि देसी गैंग की संख्या 20 फीसदी होगी।

क्या हैं सेक्सटॉर्शन के तरीके
इस समय सबसे ज्यादा फेसबुक के जरिए लोगों को फंसाया जा रहा है। इसके बाद स्काइप, लिंक्ड-इन, स्नैपचैट, इंस्टाग्रैम का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

नेट पर दोस्ती: पहले दोनों की रजामंदी से वेबकैम के सामने कपड़े बदलने, सेक्सुअल ऐक्ट करने का सिलसिला शुरू हो जाता है और बाद में यही एपिसोड ब्लैकमेलिंग में बदल जाता है।

कंप्यूटर हैकिंग: कंप्यूटर हैक करके भी सेक्सटॉर्शन के बहुत मामले सामने आए हैं, लेकिन इस क्राइम को ज्यादातर बहुत ही प्रफेशनल लोग करते हैं। सफल हो गए तो बहुत ही मोटी रकम उगाही जाती है। इसके शिकार वही लोग बनते हैं, जो बहुत ज्यादा अपना समय वेब कैम के सामने गुजरते हैं। उसके सामने ही कपड़ें बदल लेते हैं या कोई सेक्सुअल ऐक्ट करते हैं। हैकर लगातार आपके कंप्यूटर का विडियो रिकॉर्डिंग करते हैं और जब भी कोई बिना कपड़ों के वीडियो या फोटो हाथ लगती है, सेक्सटॉर्शन शुरू कर देते हैं।

सिस्टम में बिना कपड़ों की तस्वीरें
हैकर उन लोगों के भी कंप्यूटर हैक करते हैं, जो फन या एक्साइटमेंट में अपना ही सेक्स विडियो या बोल्ड तस्वीरें सिस्टम में डाल देते हैं। उनका सिस्टम हैक करके उनसे उगाही के मामले भी सामने आ रहे हैं।

फोटो की मॉर्फिंग

कई बार आपकी फोटो को मॉर्फ करके आपका फेस किसी और लड़की या लड़के के शरीर पर फिट कर दिया जाता है, जिसने कपड़े नहीं पहने होते। यह काम इतनी बखूबी होता है कि मॉर्फ फोटो के जरिए ही सेक्सटॉर्शन शुरू हो जाता है।

स्नैपचैट का खेल
आजकल स्नैपचैट का काफी क्रेज है। खासकर स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वालों के बीच ज्यादा है। इसे भी सेक्सटॉर्शन के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया गया है। जानकारों के मुताबिक यंग लड़के-लड़कियां अपनी बोल्ड तस्वीरें एक मेसेज के जरिए एक-दूसरे को भेजते हैं। यह मेसेज अपने आप ही 10 सेकंड में डिलीट हो जाता है। भेजने वाला फन में यह काम करता है, लेकिन कुछ सॉफ्टवेयर ऐसे भी आ गए हैं जिनकी मदद से भेजी गई तस्वीरों को 10 सेकंड में सेव कर लिया जाता है और फिर ब्लैकमेलिंग शुरू हो जाती है।

किन कारणों से सेक्सटॉर्शन

इसके तीन अहम कारण है:
1. सबसे बड़ा कारण है पैसे की उगाही। जानकार बताते हैं कुछ इंटरनैशनल गैंग बहुत ज्यादा ऐक्टिव होकर काम कर रहे हैं, उनका सिर्फ एक ही मकसद है पैसे कमाना। इसके लिए वे कंप्यूटर हैकिंग से लेकर नेट फ्रेंडशिप के जरिए अलग-अलग देशों के लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। इनका शिकार बनने वालों में टीनएजर के साथ विवाहित महिलाओं की संख्या ज्यादा है। अमीर, शादीशुदा या परिवार से दूर रहने वाले पुरुष भी इनके टारगेट पर रहते हैं। ये लोग 60-70 साल के लोगों को भी अपना शिकार बनाने के लिए ढूंढते हैं।
2. किसी को मजा चखाने, बदला लेने, किसी की इमेज को खराब करने के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा है। कई लोग व्यक्तिगत रूप से किसी से बदला लेने के लिए भी यह काम करते हैं।

3. पीडोफिलिक (बच्चों के साथ संबंध बनाने वाला) भी यह काम कर रहे हैं। बच्चों को चैट पर आकर्षित करके, उनके बोल्ड विडियो, फोटो रिकॉर्ड कर लेते हैं और फिर बाद में उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करते हैं। यूएस और कई दूसरे देशों में ये मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। अब हमारे देश में भी इस जुर्म की शुरुआत हो चुकी है।

जब बन जाएं शिकार
1. सबसे पहले नजदीक के थाने या साइबर क्राइम सेल में इसकी रिपोर्ट करें।
2. अपने परिवार के किसी सदस्य को इसकी जानकारी जरूर दें। बताने में बहुत शर्म आएगी, लेकिन यह बहुत-सी परेशानियों से बचाएगा।
3. जिस आईडी का इस्तेमाल करके आपको ब्लैकमेल किया गया है, उसे तुरंत ब्लॉक कर दें।
4. अपने इंटरनेट एडमिन को फौरन सूचित करें और ब्लैकमेल करने वाले की आईडी के बारे में जानकरी हासिल करें। जैसे आप फेसबुक पर सेक्सटॉर्शन का शिकार बने हैं तो फेसबुक एडमिन को फौरन सूचित करें।
5. जिस प्लैटफॉर्म पर आपको शिकार बनाया गया है, उसको कुछ समय के लिए डीऐक्टिवेट कर दें।
6. यह बात ध्यान रखें कि आप जितना डरेंगे, उतना ही आपको डराया जाएगा।
7. आपने ब्लैकमेल करनेवाले से जो भी चैट किया है, उसका स्क्रीन शॉट ले लें।
8. अगर आपने ब्लैकमेलिंग के लिए ऑनलाइन पेमंट किया है, तो पेमंट कहां गया है, उसे देखकर पुलिस को जानकारी दें।
9. ब्लैकमेलर के जरिए दी गई किसी भी जानकारी का पूरा रिकॉर्ड रखें। जैसे कि स्काइप की नाम, आईडी, फेसबुक यूआरएल, वेस्टर्न यूनियन या मनीग्राम का मनी ट्रांसफर कंट्रोल नंबर।

क्या ना करें
1. कभी भी चुप ना बैठें। यह मत सोचें कि एक बार पैसा देकर बच जाएंगे। हो सकता है और डिमांड आनी शुरू हो जाए। आपसे गलती हुई है, इसलिए उसका सामना करें। आत्मविश्वास के साथ लड़ें।
2. कभी भी किसी रिकॉर्डिंग, बातचीत, मेल को डिलीट न करें। दरअसल, ये लिंक्स आगे चलकर पुलिस के काम आती हैं।
3. कभी भी डिमांड करने वाले से सीधी बात ना करें। फोन पर बात न करें। इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलता है।
4. ज्यादातर साइबर गैंग फोटो या सेक्स रिकॉर्डिंग्स की क्लिपिंग भेजने के लिए मेल का इस्तेमाल करते हैं, कोशिश करें, उसे बार-बार ना देखें। आप परेशान होंगे।
5. पैसा बिलकुल ना दें। एक बार अगर दे दिया तो भी डिमांड आ सकती है। इतना ही नहीं, यह भी मुमकिन है कि ब्लैकमेलर पैसा लेने के बाद भी आपकी सेक्स विडियो वायरल कर दे।

स्कूल-कॉलेज के बच्चे शिकार

चिंता की बात यह है कि ऐसे मामलों में स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले यंग लड़के-लड़कियां भी शिकार हो रहे हैं। कुछ फेसबुक पर चैट के दौरान हनी ट्रैप का शिकार हो रहे हैं तो कुछ बच्चे वेब कैम के जरिए। ये पीडोफिलिक के भी संपर्क में आ रहे हैं और शिकार होते हैं। हैरानी की बात है कि काउंसलर, साइकायट्रिस्ट के पास आने वाले ऐसे मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं, जहां 12 से 19 साल के बच्चे फन, फैशन, दिखावे, प्यार में या बेवकूफी में अपनी बोल्ड तस्वीरें या विडियो अपने दोस्तों को शेयर करते हैं और बाद सेक्सटॉर्शन का शिकार होते हैं।
16 साल की सविता (बदला हुआ नाम है) का अपने स्कूल में पढ़ने वाले एक लड़के से अफेयर हो गया। लड़के ने सविता को प्यार का वास्ता देकर कम कपड़ों में फोटो भेजने के लिए मना लिया। उसी फोटो को, उस लड़के ने अपने एक दोस्त के साथ शेयर कर दिया। बस उसके दोस्त के शैतानी दिमाग ने सविता को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। पहले थोड़े-बहुत पैसों की मांग शुरू की, लेकिन बाद में उसने अपने साथ संबंध बनाने के लिए सविता पर दबाव डालना शुरू कर दिया। परेशान सविता धीरे-धीरे डिप्रेशन में जाने लगी, स्कूल जाने से कतराने लगी, हंसमुख स्वभाव की सविता बहुत उदास रहने लगी। पैरंट्स को लगा कुछ गड़बड़ है और उसे काउंसलिंग के लिए एक्सपर्ट के पास ले गए। एक-दो नहीं बल्कि 6 सिटिंग के बाद कविता कुछ खुली और डॉक्टर को बताया। पूरा वाकया सुनकर पैरंट्स के होश उड़ गए। स्कूल में प्रिंसिपल को इसकी जानकारी दी गई और दोनों लड़कों के खिलाफ सख्त कारवाई हुई। स्कूल-कॉलेजों में सेक्सटॉर्शन के ऐसे मामले कुछ ज्यादा आ रहे हैं।

कैसे पहचानें पैरंट्स
-बच्चा बहुत ज्यादा समय इंटरनेट पर बिताता है, रात में कुछ ज्यादा।
-उसके कमरे का दरवाजा हमेशा बंद रहता है या वह अकेले कोने में बैठना पसंद करता है।
-दरवाजे पर दस्तक देकर अंदर आने पर जोर देता है।
-अपोजिट सेक्स के साथ दोस्ती करने के लिए हमेशा इच्छुक रहता है।
-इंटरनेट पर दोस्तों की लिस्ट काफी लंबी है।
-कई बार डिप्रेशन के शिकार बच्चे भी गलत चीजों में फंस जाते हैं, इसलिए बच्चे की इस बीमारी को गंभीरता से लें।
- स्कूल जाने से कतराने लगा है।
-दोस्तों-परिवार से कटने लगा है।
- भूख कम हो गई है या बहुत ज्यादा खाने लगा है।
-बच्चा अगर रियल जिंदगी से ज्यादा रील जिंदगी में यकीन करने लगा है।
-किसी लड़के या लड़की से ब्रेकअप हो चुका है। इमोशनल ट्रॉमा में चल रहा हो।
ये ऐसी बातें हैं, जो बच्चे को सेक्सटॉर्शन में फंसने के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराती हैं। इसलिए पैरंट्स के लिए यह जरूरी है कि वे अपने बच्चों पर नजर रखें।

कैसे बचाएं बच्चों को
-इंटरनेट चाहे कंप्यूटर पर उपलब्ध हो या फोन पर, उसकी समयसीमा जरूर बना दें। बच्चे अमूमन इसे मानते नहीं, लेकिन यह जरूरी है।
-बच्चों के सामने पैरंट्स भी सोशल मीडिया पर ज्यादा ऐक्टव न रहें। इससे बच्चों के सामने सही उदाहरण पेश होगा।
-बच्चों को समझाएं कि इंटरनेट पर 3000 दोस्त बनाने के बजाय असल जिंदगी में तीन अच्छे दोस्त बनाना बड़ी उपलब्धि है। ऐसे दोस्त ही वक्त पर काम आते हैं।
-बच्चा अगर लगातार चैट करता है तो कभी-कभी उसके बारे में जानकारी लें। मसलन कौन दोस्त बना है, कहां रहता है, परिवार में कौन-कौन है? उस दोस्त तक भी यह जानकारी पहुंचाएं कि आप उसके बारे में थोड़ा-बहुत जानते हैं।
-बच्चों के साथ दोस्ताना बने रहिए। उनमें हर छोटी-बड़ी बात शेयर करने की आदत डालें, इसके लिए आपको समय निकालना होगा।
-बच्चों को सेक्सटॉर्शन के बारे में जरूर जानकारी दें।
- उनके सोशल मीडिया अकाउंट में से मोबाइल नंबर, ईमेल आदि की जानकारी हटवा दें।

क्या ना करें
1. गुस्सा करना: गैजेट्स का इस्तेमाल कम या सीमित करने के लिए बच्चा नहीं मान रहा है तो गुस्सा न करें, डांट बिल्कुल न लगाएं। इससे बच्चा विद्रोह कर सकता है और फिर छुपकर वही काम करेगा।
2. बातचीत बंद करना: उसके साथ बातचीत के जरिए ही संवाद कायम रखें। इसमें समय लगेगा लेकिन वह आपकी बात माने लेगा।
3. मोबाइल छीनना: गुस्से में आकर उसका मोबाइल फोन न छीनें। इंटरनेट कनेक्शन न कटवाएं। इससे वह इंटरनेट का इस्तेमाल बाहर कर लेगा, जो ज्यादा खतरनाक है।
4. गलती को फैलाना: बच्चे की किसी गलती का पता लग गया है तो उसकी गलती का ढिंढोरा नहीं पीटें। इससे पहले से ही परेशान, ग्लानि में डूबे बच्चे का आत्मविश्वास टूट सकता है। वह डिप्रेशन में जा सकता है। कोई गलत कदम उठा सकता है। बच्चे की मदद करें। उसे यकीन दिलाएं कि हर समस्या, परेशानी में आप उसके साथ ही खड़े हैं। बच्चे की समस्या का हल ढूंढ़ने की कोशिश करें।
5. चुप बैठ जाना: बच्चा अगर सेक्सटॉर्शन का शिकार हो गया है तो चुप बिल्कुल न बैठें। स्कूल से नाम कटवाने के बजाय या कहीं दूर भेजने के बजाय प्रिंसिपल, संबंधित अधिकारियों से शिकायत करें। वह कॉलेज में है तो पुलिस, संबंधित एक्सपर्ट, एजेंसियों की फौरन मदद लें। याद रखें आप अगर चुप बैठ गए तो बदमाश का साहस और बढ़ेगा। आज उसने आपके बच्चे को शिकार बनाया है, कल किसी और को बनाएगा। इस बढ़ती हुई चेन को तोड़ना बहुत जरूरी है।

सेक्सटॉर्शन से निपटने के लिए कानून
1. सबसे पहले आईटी ऐक्ट के तहत मामला दर्ज होता है।
2. क्योंकि यह क्राइम पैसा के लिए होता है, इसलिए आईपीसी की धारा 384 लागू होगी।
3. धारा 292 अश्लीलता से संबंधित है, जिसके तहत मामला दर्ज हो सकता है।
4. इसके अलावा धारा 67, 67ए, बी के तहत भी मामला दर्ज हो सकता है।
5. शिकायतकर्ता अगर महिला है तो 'इंडिसेंट रिप्रजेंटेशन ऑफ वुमन' ऐक्ट का भी पुलिस इस्तेमाल कर सकती है।
6. यदि आप पुलिस में नहीं जाना चाहते और क्रिमिनल केस नहीं चाहते तो सिविल केस दर्ज कर सकते हैं। इसमें नेट ऐडमिन तक को नोटिस भिजवाकर जानकारी मांगी जा सकती है।

बढ़ रहे हैं इंटरनेट मिसयूज के मामले
माइक्रोसॉफ्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार 77 प्रतिशत भारतीय किसी-न-किसी रूप में साइबर क्राइम मिसयूज के शिकार हुए हैं, इनमें साइबर बुलिंग, ट्रॉलिंग, ऑनलाइन सेक्स संबंधित मेसेज भेजना, तंग करना, सेक्सटॉर्शन जैसे अपराध शामिल हैं। इस स्टडी का मकसद लोगों को साइबर क्राइम के बढ़ते खतरों से जागरूक करने और उनसे सावधान रहने के लिए की गई थी।


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वर्ल्ड फटॉग्रफी डे स्पेशल: ऐसे पाएं परफेक्ट क्लिक

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मोबाइल आज सबके पास है तो कैमरा अब बेसिक मोबाइल फोन में भी है। ऐसे में फटॉग्रफी का शौक कोई महंगा शगल नहीं रहा। लेकिन सवाल है कि मोबाइल से बढ़िया फटॉग्रफी की कैसे जाए? एक्सपर्ट्स से बात करके फटॉग्रफी के बेहतरनी टिप्स दे रहे हैं ओम धीरज:

फटॉग्रफी जुनून, शौक, जरूरत, जरिया और न जाने कितनी भावनाओं को अपने अंदर समेटे रहता है। तभी तो जहां बेहतरीन दृश्य देखा, मोबाइल निकालकर उसे कैमरे में कैद कर लिया। वैसे भी टेक्नॉलजी के मामले में स्मार्ट हो रही दुनिया आजकल एक क्लिक पर सबकुछ कर बैठती है, जिसके बारे में कुछ बरसों पहले सिर्फ अंदाजा लगाया जाता था। मोबाइल कंपनियां भी आजकल स्मार्टफोन में फटॉग्रफी के इतने सारे फीचर्स देने लगी हैं कि लोग डीएसएलआर की जगह स्मार्टफोन को तरजीह देने लगे हैं।

बेसिक टर्म
मेगापिक्सल:
- कैमरा छोटे-छोटे डॉट के आधार पर तस्वीरें बनाता है। इन्हीं डॉट्स को पिक्सल कहा जाता है। 10 लाख पिक्सल को एक मेगापिक्सल कहा जाता है।
- मेगापिक्सल से कैमरे की इमेज क्वॉलिटी का पता चलता है। यानी जितने ज्यादा पिक्सल, उतनी बेहतर क्वॉलिटी। हालांकि बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि लेंस किस कंपनी का है।

इमेज सेंसर:
- लेंस में जो भी सूचनाएं आती हैं, वह इमेज सेंसर पर ही रेकॉर्ड होती हैं।
- कैमरे का इमेज सेंसर जितना बड़ा होगा, पिक्चर उतनी अच्छी आएगी।
- डीएसएलआर कैमरों में बड़ा सेंसर लगा होता है, जबकि स्मार्टफोन में छोटा। इसी कारण डीएसएलआर कैमरों की पिक्चर क्वॉलिटी शानदार होती है।

लेंस:
- लेंस एक तरह से कैमरे की आंख है। लेंस की क्वॉलिटी जितनी अच्छी होगी, आप उतनी बेहतर इमेज कैप्चर कर सकते हैं।

शटर स्पीड:
- शटर स्पीड उस समय को कहते हैं, जितने समय में लाइट कैमरे के अंदर इमेज सेंसर तक पहुंच सके। इसे प्रति सेकंड के आधार पर मापा जाता है।
- शटर स्पीड को ऑटो और मैनुअल आधार पर सेट किया जाता है।
- तेज रोशनी में शटर स्पीड तेज होगी, जबकि कम रोशनी में धीमी।
- फोटो खींचते समय ध्यान रखें कि शटर स्पीड 1/125, रुके हुए (स्टिल ऑब्जेक्ट) के लिए बेस्ट है। वहीं, 1/2000 की शटर स्पीड तेजी से मूव करती हुई किसी सब्जेक्ट की तस्वीर लेने के लिए बेहतर है।

अपर्चर:
- अपर्चर कैमरे के लेंस में लगा एक छेद होता है, जहां से लाइट कैमरे के अंदर जाती है। उसी लाइट की मदद से कैमरा किसी इमेज को कैप्चर करता है।
- अपर्चर का साइज f स्टॉप से मापा जाता है। अपर्चर के कुछ स्टैंडर्ड साइज हैं- f1.4, f2.8, f3.5, f5.6, f8, f11, f16 आदि।
- अपर्चर का f स्टॉप जितना कम होगा, अपर्चर का साइज उतना ज्यादा होगा और इसका साइज जितना बड़ा होगा, कैमरे के अंदर उतनी ही ज्यादा लाइट आएगी। इससे आपके द्वारा खींची गई फोटो साफ आती है।
- जब लाइट बहुत ज्यादा या बहुत कम होती है, उस समय अपर्चर सेट करना काफी अहम होता है।

आईएसओ:
- आईएसओ सेंसर की सेंसिटिविटी को बढ़ाता है। इसकी मदद से कैमरा कम रोशनी में भी बेहतर तस्वीर लेने में सक्षम हो जाता है।
- आईएसओ का इस्तेमाल ज्यादातर रात में किया जाता है और दिन के वक्त आईएसओ ऑटो मोड में रखा जाता है। अच्छी तस्वीर लेने के लिए इसका सही अजस्टमेंट बेहद जरूरी है।

फोकस:
- स्मार्टफोन और डीएसएलआर में ऑटोफोकस, फिक्स्ड फोकस और मैनुअल फोकस के फीचर होते हैं।
- ऑटोफोकस के दौरान स्क्रीन पर टच करना पड़ता है या अप, डाउन, लेफ्ट या राइट बटन से इसे अजस्ट करना पड़ता है। कैमरा उस सब्जेक्ट को स्पष्ट कर बैकग्राउंड को ब्लर कर देता है, जिससे तस्वीर साफ दिखती है।
- जब आप फिक्स्ड फोकस मोड में फोटो खींचते हैं तो स्क्रीन पर दिखने वाले सभी चीजों पर फोकस होता है और यूजर किसी एक ऑब्जेक्ट को ब्लर या फोकस नहीं कर सकता।
- आजकल 20 हजार से ज्यादा कीमत वाले स्मार्टफोन में पोस्ट फोकस जैसे फीचर भी हैं। इसमें आप फोटो कैप्चर करने के बाद भी सब्जेक्ट और बैकग्राउंड को ब्लर या फोकस कर सकते हैं।


फोटो खींचते समय इन बातों का ध्यान रखें:
1. लेंस हो चकाचक
आपका स्मार्टफोन ज्यादातर समय पॉकेट में होता है, जिससे अक्सर लेंस गंदा हो जाता है। मोबाइल को हाथ में पकड़े रहने से भी लेंस पर उंगलियों के निशान पड़ जाते हैं। इसलिए जब भी आप तस्वीर लें, पहले लेंस को एक साफ कपड़े से अच्छी तरह साफ करें ताकि तस्वीर ब्लर न दिखे।

2. न हटे फोकस
अगर सब्जेक्ट पर कैमरे का फोकस नहीं रहेगा तो फिर सही तस्वीर भी नहीं आएगी। अगर आपने फोटो क्लिक करने में जरा भी देर की तो फोकस सब्जेक्ट से हट जाएगा और तस्वीर धुंधली हो जाएगी।

3. मैनुअल सेटिंग लगाएगी बेड़ा पार
जब आप किसी सब्जेक्ट पर फोकस करते हैं तो आपके फोन का कैमरा फोकस पॉइंट की मदद से बैकग्राउंड या साइड की चीजों को एक्सपोज करने की कोशिश करता है। ऐसे में तस्वीर का कुछ हिस्सा काफी ब्राइट दिखता है और कुछ हिस्सा काफी डार्क, जो देखने में अच्छा नहीं लगता। ऐसे में मैनुअल सेटिंग में जाकर आईएसओ, अपर्चर और शटर स्पीड सेट करके पिक्चर क्वॉलिटी बेहतर की जा सकती है। दरअसल, ये ऑप्शन अधिकतर स्मार्टफोन में फिक्स होते हैं। आप उन्हें चेंज नहीं कर सकते। हालांकि महंगे स्मार्टफोन और डीएसएलआर कैमरे में इन्हें मैनुअली बदला जा सकता है।

4. जूम बराबर जूम
यहां दो ऑप्शन हैं: ऑप्टिकल और डिजिटल। ऑप्टिकल जूम ऑरिजिनल जूम है जबकि डिजिटल जूम फोटो को खींचकर बड़ा करने का प्रोसेस। अच्छी तस्वीर के लिए डिजिटल जूम पर भरोसा न करें और जितना हो सके, सब्जेक्ट के पास जाकर तस्वीर खींचें। इससे पिक्चर की क्वॉलिटी बेहतर आएगी।

5. जरूरत पर ही ऑन करें फ्लैश
यदि आप सोचते हैं कि फ्लैश ऑन करने पर ही फोटो क्वॉलिटी अच्छी आती है, तो आप गलत हैं। कई बार नैचरल लाइट में खींची गई तस्वीर अक्सर काफी अच्छी होती है। कम लाइट में तस्वीर लेनी है तो इसके लिए आप कैमरा सेटिंग में जाकर एक्सपोजर या आईएसओ को बढ़ा सकते है। हालांकि, इसकी भी सीमा है। कई बार जरूरत से ज्यादा आईएसओ बढ़ाने से भी तस्वीर में धुंधलापन आ जाता है। लाइट काफी कम है तो पोर्टेबल फ्लैश यानी बाहर से लाइट का जुगाड़ करें।

6. मैक्सिमम हो रेजॉल्यूशन
कोई कैमरा किसी इमेज की जितनी डीटेल को कैप्चर करता है, उसे ही रेजॉलूशन कहते हैं। स्मार्टफोन में कैमरे का रेजॉलूशन जितना ज्यादा होगा, उतनी बेहतर तस्वीरें खींची जा सकेंगी। सेटिंग में जाकर आप रेजॉलूशन बढ़ा सकते हैं। हालांकि, इसका जरूर ध्यान रखें कि ज्यादा रेजॉलूशन में खींची तस्वीर ज्यादा बड़े साइज में होती हैं। यह आपके मेमरी कार्ड का ज्यादा स्पेस लेगी।

7. एचडीआर करें ऑन
एचडीआर यानी हाई डाइनैमिक रेंज पिक्चर क्वॉलिटी को बेहतर करने के लिए होता है। यदि आप ज्यादा रोशनी या चमकीली तस्वीरों की फोटो ले रहे हों तो इस मोड को ऑन जरूर करें। इस मोड में कैमरा सब्जेक्ट के डार्क और ब्राइट एरिया के ज्यादा डिटेल्स कैप्चर करता है। अगर सब्जेक्ट डार्क और बैकग्राउंड चमक रहा हो तो आप एचडीआर मोड ऑन करें, आपका सब्जेक्ट निखरकर सामने आएगा।

समझें मोड का मूड
स्मार्टफोन के कैमरे की सेटिंग्स में कई मोड होते हैं, जिनकी मदद से आप बेहतर फोटो क्लिक कर सकते हैं। जानें, ये मोड किस तरह काम करते हैं:

ऑटोमैटिक मोड: इस मोड में कैमरा सब्जेक्ट और बैकग्राउंड के अनुसार लाइट, फोकस और कलर अजस्ट कर लेता है।
पोर्ट्रेट मोड: इस मोड में कैमरा सब्जेक्ट को फोकस कर लेता है और बाकी बैकग्राउंड को ब्लर कर देता है।
पैनोरमा मोड: पैनोरमा मोड के जरिए कैमरे के फ्रेम में आ रहे सीन्स से ज्यादा बड़ी तस्वीर ली जाती है। अगर आप वाइड ऐंगल वाली तस्वीरें लेना चाहते हैं तो यह मोड सिलेक्ट करें। आपकी स्क्रीन में एक बॉक्स बनकर आएगा। इसके साथ ही चारों तरफ तीर के निशान भी बने होंगे। आप जिस तरफ से भी फोटो लेना चाहते हैं, धीरे-धीरे उसी तरफ फोन घुमाते रहें। कैमरा एक-एक करके सारी तस्वीरें लेता रहेगा और बाद में इन तस्वीरों को एक साथ जोड़कर एक बड़ी इमेज बना देगा।
फेस और स्माइल डिटेक्शन: इसे ऑन करते ही कैमरा तस्वीर लेते समय ऑटोमैटिकली चेहरे पर फोकस कर उसे साफ व स्पष्ट कर देता है। वहीं, स्माइल डिटेक्शन में हंसते हुए चेहरे पर ऑटो फोकस हो जाता है।
नाइट मोड: यह मोड रात के समय तस्वीर लेने के लिए सही है। इसमें शटर स्पीड काफी स्लो हो जाती है ताकि लेंस के अंदर लाइट जाए और इमेज क्लियर दिखे। इसमें फ्लैश भी अहम रोल निभाता है।
बुके मोड: इस मोड में सब्जेक्ट पर फोकस करने के साथ ही बैकग्राउंड ब्लर हो जाता है। आईफोन 7+ में इस इफेक्ट को पोर्ट्रेट मोड कहा जाता है। यह 2x ऑप्टिकल जूम के साथ होता है।


फोटो खींचने के लिए आजमाएं अलग-अलग तरीके
पोजिशन बदलें: कई दफा पिक्चर लेते वक्त पोजिशन बदल लेने भर से बहुत अच्छे शॉट्स मिल जाते हैं।
बैकग्राउंड मस्ट: अगर आप बैकग्राउंड को प्रमुखता को दिखाना चाहते हैं तो सब्जेक्ट को एक कोने यानी साइड में ले जाइए। इससे देखने वाले की नजर बैकग्राइउंड पर तो जाएगी ही, आपका सब्जेक्ट भी बेहतर दिखेगा।
आज भी रंगीन है ब्लैक ऐंड वाइट: कई बार सब्जेक्ट के आसपास इतनी सारी चीजें होती हैं कि हमारा फोकस बंट जाता है। कई दफा बैकग्राउंड में इतने कलर होते हैं कि सब्जेक्ट से फोकस कम हो जाता है। ऐसे में आप ब्लैक ऐंड वाइट तस्वीर लेकर अनचाहे भटकाव से बच सकते हैं। फिर ब्लैक ऐंड वाइट तस्वीर का अलग मजा भी है।
लैंडस्केप मोड: अगर आप लैंडस्कैप मोड में किसी बच्चे या इंसान की तस्वीर लेना चाहते हैं तो कैमरे को बिल्कुल जमीन पर रखकर फोटो लें जिससे बैकग्राउंड में स्काई कलर दिखता हो तो आपका फोकस सब्जेक्ट पर ही रहेगा और बैकग्राउंड भी काफी अच्छा दिखेगा।
ज्यादा तस्वीर खींचें, सबसे बेहतर चुनें: अक्सर एक बार में अच्छी फोटो नहीं आती है। ऐसे में ज्यादा तस्वीर खींचें। इस दौरान, शटर-अपर्चर, आईएसओ, वाइट बैलेंस, फिल्टर या सपोर्टिंग ऐप की मदद लेते रहें। फिर एक समय आपको मनचाही तस्वीर मिल जाएगी, जिसे देखकर आप खुद की ही पीठ थपथपाने से खुद को रोक नहीं पाएंगे।

बड़े काम की हैं ये ट्रिक
अपर्चर फिक्स करना:
आजकल महंगे स्मार्टफोन्स में अपर्चर का खास जिक्र किया जाता है, मसलन f/2.0 या f/2.2 या कुछ ऐसा ही। f नंबर जितना कम रहेगा, कैमरे में उतनी ज्यादा रोशनी आएगी। जैसे डुअल कैमरा वाले फोन के प्राइमरी कैमरे में f/2.0 अपर्चर है और सेकंडरी कैमरे में f/3.5 अपर्चर है तो प्राइमरी कैमरे में ली गई तस्वीर ज्यादा ब्राइट दिखेगी।
इमेज स्टेबलाइजेशन: फटॉग्रफी के समय अगर आप ट्राइपॉड का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो हाथ के हिलने की संभावना ज्यादा रहती है। इससे पिक्चर की क्वॉलिटी खराब हो जाती है और तस्वीरें धुंधली दिखती हैं। ऐसे में इमेज स्टेबलाइजेशन बेहतर तस्वीर लेने में मदद करता है।
रेड आई रिडक्शन: फटॉग्रफी के दौरान फ्लैश लाइट में आंखें अक्सर लाल दिखती हैं। रेड आई रिडक्शन फीचर की मदद से इसे ठीक कर सकते हैं।
वाइट बैलेंस: वाइट बैलेंस भी कैमरे की एक अहम विशेषता है। दरअसल, अलग-अलग जगह पर रोशनी की मात्रा में अंतर होता है। वाइट बैलेंस फीचर की मदद से लाइट को अजस्ट किया जाता है। ऑटो, टंगस्टन, सनी क्लाउडी जैसे ऑप्शन वाइट बैलेंस फीचर में होते हैं। जब आप घर के अंदर से शूट करने के बाद बाहर शूट के लिए निकलते हैं, उस समय भी आपको वाइट बैलेंस करना चाहिए।

कुछ कॉमन सवालों के जवाब
सवाल: चलती-भागती चीजों को कैसे कैप्चर किया जाए?
उत्तर: इसके लिए आपको स्मार्टफोन की सेटिंग में जाकर उसकी शटर स्पीड बढ़ानी होगी। इस मोड में कई तस्वीरें एक साथ क्लिक होती हैं, ताकि आप उनमें से बेहतर चुन सकें। इसे बर्स्ट मोड भी कहते हैं।

प्रश्न: लॉन्ग शॉट किस तरह लिया जाए?
उत्तर: लॉन्ग शॉट कैप्चर करने के लिए कोशिश करें कि आपका फोन थोड़ी ऊंचाई पर हो। आप या तो अपना हाथ ऊपर करें या किसी ऊंची जगह पर चले जाएं। उसके बाद आप देखें कि आपके फोन के दायरे में कितना एरिया कैप्चर हो रहा है या आप कितना कैप्चर करना चाहते हैं। इसमें आपको कैमरे का रिजॉल्यूशन बढ़ाकर रखना होगा, जिससे जूम करने पर इमेज खराब न हो। अगर आपके फोन के कैमरे की क्वॉलिटी उतनी बेहतर नहीं है तो आप ऐंड्रॉयड फोन में FV-5 ऐप डाउनलोड करें। यह एक प्रफेशनल कैमरा ऐप है। इसकी मदद से आप सब्जेक्ट को मैनुअली सेट कर सकते हैं और आईएसओ, शटर स्पीड फिक्स कर और बेहतर लॉन्ग शॉट पा सकते हैं। जिस कैमरे में मैनुअल फीचर नहीं है, उसमें भी यह ऐप काम करता है।

प्रश्न: डुअल रियर कैमरा के फायदे क्या हैं?
उत्तर: आजकल बहुत से फोन डुअल रियर कैमरे से लैस हैं, यानी इसमें एक प्राइमरी और एक सेकंडरी कैमरा होता है।
- इसमें एक कैमरा से आप मनमाफिक तस्वीरें ले सकते हैं तो दूसरा कैमरा एक तरह से सपोर्टिंग हैंड होता है। इसकी मदद से आप प्राइमरी कैमरे से ली गई तस्वीर को और बेहतर कर सकते हैं और कुछ एक्सट्रा इफेक्ट्स डाल सकते हैं।
- प्राइमरी में ज्यादा और सेकंडरी में कम मेगापिक्सल्स होते हैं।
- सेकंडरी कैमरा वाइड ऐंगल, बुके इफेक्ट्स, ऑप्टिकल जूम, डेप्थ इन्फर्मेशन को बेहतर करता है और जब सॉफ्टवेयर की मदद से इसे मिक्स करते हैं तो आपको बेहतर तस्वीरें मिलती हैं, जो कि डीएसएलआर के लेवल की होती हैं।


बेहतर फोटो के लिए एडिटिंग
फोटो क्लिक करने के बाद भी इसे एडिटिंग के जरिए और बेहतर बनाया जा सकता है। इसके लिए कई सॉफ्टवेयर और ऐप की मदद ली जा सकती है। एडिटिंग में मुख्य रूप से ब्राइटनेस, शार्पनेस, फोकस, कलर अजस्टमेंट और कई दूसरी बातों का ध्यान रखना होता है। हम आपको ऐसे 5 सॉफ्टवेयर और ऐप के बारे में बता रहे हैं, जिनकी मदद से आप अपनी तस्वीरों को और बेहतर कर सकते हैं:
चंद बेहतरीन फोटो एडिटिंग सॉफ्टवेयर (पीसी के लिए)-
1. Adobe Photoshop CC
2. CyberLink PhotoDirector 8 Ultra (एक महीने का फ्री ट्रायल)
3. Apple Photos (Mac के लिए)
4. Corel PaintShop Pro (30 दिन के लिए फ्री ट्रायल)
5. Microsoft Photos (फ्री)

बेस्ट फ्री फोटो एडिटिंग ऐप (मोबाइल के लिए)-
1. Snapseed (साइज: 29 MB, एंड्रॉयड, आईपैड और आईफोन के लिए)
2. VSCO (साइज: 44 Mb, एंड्रॉयड और आईफोन के लिए)
3. Adobe Lightroom (साइज: 64 MB, एंड्रॉयड और आईफोन के लिए)
4. Pixlr Express (साइज: 31 MB, एंड्रॉयड और आईफोन के लिए)
5. Photo Editor by Aviary (साइज: 21 MB, एंड्रॉयड, विंडोज और आईफोन के लिए)

ये चीजें आएंगी काफी काम
मोबाइल लेंस और ट्राइपोड: स्मार्टफोन में ऑप्टिकल जूम ज्यादा नहीं होता है। इस कारण दूर की चीजों की फोटो सही नहीं आती है। ऐसे में कई कंपनियों ने सस्ते और महंगे मोबाइल लेंस का विकल्प मार्केट में पेश किया है। इसमें आप वाइड ऐंगल, फिश आई, मैक्रो, टेलिस्कोप लेंस, 8x या 12x ऑप्टिकल जूम लेंस देख सकते हैं। इसके अलावा, मोबाइल ट्राइपॉड और फोन होल्डर भी ले लें तो बेहतर रहेगा। इनकी कीमत 300 रुपये से लेकर 2000 रुपये तक हो सकती है।
पोर्टेबल मिनी एलईडी: यूजर के लिए पोर्टेबल मिनी एलईडी का ऑप्शन भी है, जो 3.5 एमएम जैक फ्लैश लाइट के साथ आता है। इसकी मदद से आप रात के वक्त अच्छी सेल्फी या रियर कैमरे से सामने की साफ तस्वीर खींच सकते हैं।

फोटो तो खींच ली, रखोगे कहां
स्मार्टफोन में स्पेस की समस्या से जरूर आप भी दो-चार हो रहे होंगे। बेहतर होगा कि इसके लिए ऑनलाइन स्पेस या ड्राइव का इस्तेमाल करें। तस्वीरें इंटरनेट पर सेव रहेंगी तो आसानी से जरूरत पड़ने पर निकाल और शेयर कर सकते हैं। इसके लिए इंटरनेट पर कई सुविधाएं मौजूद हैं:
गूगल फोटोज: गूगल ने लोगों की सुविधा के लिए एक फोटो गैलरी बनाई है। यहां यूजर आसानी से फोटो और विडियो फ्री में अपलोड कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर शेयर भी कर सकते हैं। यह आपके फोन का स्पेस नहीं लेता और आपके गूगल अकाउंट से जुड़ा होता है। अगर आपके पास गूगल अकाउंट है तो नए फोन की सेटिंग के समय ही फोन ने आपसे फोटो सिंक करने की परमिशन ले ली होगी। आप कंप्यूटर पर गूगल फोटोज में जाकर भी फोटो अपलोड कर सकते हैं। ऐंड्रॉयड और आईओएस दोनों के लिए यह ऐप है। यहां ध्यान रहे कि आपकी तस्वीरों का रेजॉल्यूशन 16 मेगापिक्सल और विडियो का 1080 पिक्सल से ज्यादा न हो।
इसी तरह कुछ और ऐप और सॉफ्टवेयर हैं, जहां फोटो सेव कर सकते हैं:
pixabay.com (इस नाम से ऐप भी है।)
unsplash.com
stocksnap.io
flickr.com
pexels.com

सेल्फी मैंने ले ली आज
सेल्फी के क्रेज को देखते हुए आजकल मोबाइल कंपनियां सेल्फी कैमरे पर काफी फोकस कर रही हैं। मार्केट में 25 मेगापिक्सल तक के फ्रंट कैमरे वाले स्मार्टफोन्स आ गए हैं। सेल्फी लेते वक्त अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए, तो आपकी सेल्फी बेस्ट और स्टाइलिश हो जाएगी:

ऑटो मोड में रखें सेटिंग: सेल्फी लेते वक्त सभी सेटिंग ऑटो मोड यानी बाई डिफॉल्ट रखें, इससे कैमरे को आप पर फोकस करना आसान हो जाएगा।
ग्रुप फटॉग्रफी से बचें: सेल्फी का मतलब ही होता है, खुद की फोटो खींचना। यदि ग्रुप सेल्फी भी करें, तो इस बात का ध्यान रखें कि फ्रेम में कम से कम लोग हों। तभी तस्वीर अच्छी आएगी।
खुद पर ही हो लाइट इफेक्ट: सेल्फी लेते समय यह बेहद जरूरी है कि लाइट आपके ऊपर पड़े, न कि बैकग्राउंड में।
कैमरा जूम से बचें: सेल्फी लेते वक्त आपका चेहरा कैमरे के बिल्कुल पास होता है। इसलिए जूम का इस्तेमाल कतई न करें।
रिलैक्स रहें: सेल्फी लेते समय बिल्कुल रिलैक्स रहें, नहीं तो तस्वीर खराब आएगी। चेहरे पर स्माइल दिखनी चाहिए।
साइड पोज दें, बेहतर दिखेंगे: सेल्फी के दौरान अक्सर आप सामने से फोटो खींचते हैं। इसकी बजाय कोशिश करें कि आप थोड़ा साइड पोज दें, यानी दाईं या बाईं ओर से फोटो लें। इससे तस्वीर और खिलकर आएगी और बिलकुल नैचरल दिखेगी।
कैमरे को देखें, मोबाइल को नहीं: सेल्फी में आपकी आंखों का अहम रोल होता है। इसलिए फोन को देखने की बजाय आप वहां देखें, जहां इसका कैमरा है। इससे आपकी तस्वीर परफेक्ट आएगी।
सेल्फी स्टिक का इस्तेमाल करें: अगर आप सेल्फी स्टिक की मदद से सेल्फी लेते हैं तो कैमरा आपसे थोड़ा दूर हो जाता है और आप बड़ी तस्वीर ले पाते हैं। इससे तस्वीर और बेहतर दिखती है।
बर्स्ट मोड भी विकल्प: कैमरे में बर्स्ट मोड एक फीचर होता है, जिसकी मदद से आप क्लिक बटन को देर तक दबाकर कई तस्वीरें खींच सकते हैं। मोबाइल सेल्फी के लिए यह फीचर भी बड़े काम का है, जिसमें आप बेहतर तस्वीर चुन सकते हैं।

10,000 तक की कीमत में बेस्ट कैमरा वाला फोन
honor 7C (डुअल कैमरे से लैस)
कीमत : ₹8,999 रुपये (3 जीबी रैम, 32 जीबी रॉम)
13 एमपी+2 एमपी डुअल प्राइमरी कैमरा
8 एमपी फ्रंट कैमरा
एलईडी फ्लैश

20,000 तक की रेंज में
Redmi Note 5 Pro
कीमत : अलग-अलग कलर में₹ 16,000 से 17,000 तक(4 जीबी रैम, 64 जीबी रॉम)
12 एमपी + 5 एमपी डुअल प्राइमरी कैमरा ( f/2.0 और f/2.2 अपर्चर के साथ)
20 एमपी फ्रंट कैमरा
एलईडी फ्लैश


फोटो पर ऐसे लिखें नाम
अगर आप किसी तस्वीर पर नाम लिखना चाहते हैं या कुछ लिखकर बर्थडे या शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं देना चाहते हैं तो यह बिल्कुल आसान है। आप गैलरी में जाकर तस्वीर पर टैप करें, आपको एडिट, सेंड, डिलीट और मोर जैसे ऑप्शंस दिखेंगे। एडिट ऑप्शन में जाने पर आपको Text ऑप्शन दिखेगा। इस पर क्लिक करने के बाद फोटो पर एक बॉक्स बनेगा, उस पर टैप करने से एक कीबोर्ड मिलेगा, जिसपर आप मनचाहे शब्द लिख सकते हैं। इसी तरह फोटो एडिटिंग ऐप पर आपको इमोजी, फिल्टर और कई ऑप्शंस दिखेंगे, जिसकी मदद से आप फोटो पर और कुछ इमोटिकॉन्स डाल सकते हैं।

पासपोर्ट साइज फोटो मिनटों में
कई दफा किसी जरूरी काम के लिए पासपोर्ट साइज फोटो की जरूरत पड़ जाती है। ऐसे में आपका स्मार्टफोन मददगार साबित हो सकता है। आप झट से तस्वीर खींचकर और Passport Size Photo ऐप (एंड्रॉयड और आईओएस) की मदद से मनचाही तस्वीर पा सकते हैं। इसमें आपको Print multiple copies का ऑप्शन मिलेगा। वैसे पासपोर्ट साइज तस्वीर खींचने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखेंगे तो आपको एडिटिंग में कम समय लगेगा। आप अगर सेल्फी ले रहे हैं तो आपको ऐप की मदद से फोटो को अजस्ट करना पड़ेगा। वहीं, अगर आपकी तस्वीर कोई दूसरा ले रहा है तो आप मोबाइल के कैमरे पर नजर रखें और इस दौरान आपकी आंखें और कंधा बिलकुल सीधा हो। इस दौरान बैकग्राउंड वाइट रहना चाहिए। एडिटिंग कर आप बेहतर क्वॉलिटी की तस्वीर पा सकते हैं। बाद में आप इसे ऑनलाइन ही पासपोर्ट, डीएल, पेन कार्ड या दूसरे काम में इस्तेमाल कर सकते हैं या स्टूडियो में जाकर प्रिंटआउट निकाल सकते हैं।

फोटो के लिए इंस्टाग्राम
इंस्टाग्राम फोटो और विडियो शेयरिंग वेबसाइट है। यहां आप दूसरी सोशल मीडिया साइट्स की तरह लॉग–इन कर आसानी से इसका हिस्सा बन सकते हैं और डेली ऐक्टिविटी से जुड़ी तस्वीरें और विडियो स्टोरी या पोस्ट फॉर्म में डाल सकते हैं। इंस्टाग्राम आजकल युवाओं के बीच सबसे ज्यादा पॉप्युलर है, जहां आप एंटरटेनमेंट, फटॉग्रफी कम्युनिटी, न्यूज चैनल-वेबसाइट्स, लाफ्टर कम्युनिटी से जुड़े लोगों को फॉलो कर सकते हैं और स्क्रीन को स्क्रॉल कर उनके पोस्ट देख सकते हैं। स्टोरी के रूप में विडियो या फोटो पोस्ट करते वक्त आपके सामने कई सारे ऑप्शंस होंगे, जिसकी मदद से आप इमोजी डाल सकते हैं, GIF फाइल बन सकते हैं, टेक्स्ट लिख सकते हैं।

क्या कहते हैं फोटोग्राफर

मोबाइल छोड़ो, कैमरा पकड़ो
मैं भी मोबाइल से तस्वीरें लेता हूं, लेकिन अगर कोई पूछे कि क्या ये फटॉग्रफी है तो मेरा जवाब होगा- बिल्कुल नहीं। मोबाइल से तस्वीरें खींची जाती हैं, उन्हें देखा नहीं जाता। जाने-माने फोटोग्राफर और फिल्म निर्देशक विल वांडर्स कहते हैं कि करोड़ों तस्वीरें खींची जा रही हैं, लेकिन उन्हें देख कौन रहा है। रुक कर, ठहर कर आप उन्हीं तस्वीरों को देखते हैं जो कैमरे से खींची गई हैं। कैमरा आपको ठहर कर आपके मानस पर एक तस्वीर उकेरने को मजबूर करता है, तब आप तस्वीर खींच पाते हैं। मोबाइल में तो सबकुछ कैमरा करता है, आपका दिमाग नहीं। जो तस्वीरें मोबाइल से खींची जा रही हैं, चाहे वे कितने ही मेगापिक्सल में हों और क्लियर हों, वे कभी भी कैमरे की आंखों से मुकाबला नहीं कर सकेंगी। यूथ को चाहिए कि फटॉग्रफी करनी है तो कैमरे को समय दें। सब्जेक्ट को समय दें। तभी अच्छी तस्वीर भी आएगी और फटॉग्रफी का आनंद भी।
(एक्सपर्ट-राजेश कुमार सिंह)

अहम है कैमरे के पीछे की गहरी आंख
फटॉग्रफी को लेकर जो चिंताएं मोबाइल कैमरों के आने के बाद पिछले कुछ बरसों में जताई जा रही हैं, वे गैरजरूरी लगती हैं। किसी भी कला को अगर बड़ी संख्या में लोग प्रैक्टिस करते हैं तो उससे कला का नुकसान नहीं, विकास होता है। फटॉग्रफी के पुराने तौर-तरीकों पर मोबाइल कैमरों ने बहुत सार्थक दबाव डाला है। मोबाइल कैमरे के जरिए आप एक कम देखी-पहचानी गई दुनिया से लोगों को रूबरू करा सकते हैं। इस तरह से देखें तो एक कला के रूप में मोबाइल फोन के जरिए फटॉग्रफी ज्यादा जनतांत्रिक हुई है। उससे नई सोच और रुचियों को प्रकट करने वाले लोग जुड़े हैं। हालांकि, यहां यह भी याद रखना चाहिए कि कैमरा- फिर चाहे वह मोबाइल का हो या पारंपरिक - अपने आप में कुछ नहीं। अहम है कैमरे के पीछे सक्रिय निगाह। बगैर एक गहरी और खोजी निगाह के आप एक तस्वीर लें या हजार, फर्क नहीं पड़ता।
(एक्सपर्ट-अनुराग वत्स)

जरूरी है लगातार प्रैक्टिस
कला अपने को महसूस-भर किए जाने के लिए कलाकार से बिना नागा रियाज़ मांगती है, वह चाहे जो भी कला हो। यह रियाज़ ही है, जो कलाकार को कला के असंख्य अनदेखे दरवाज़ों तक पहुंचाता है। फोटोग्राफर का इस बात को समझना ही उसे कलाकार बनने के रास्ते पर ले जा सकता है। जिसे खुसरो ‘जो डूबा तिन पार, खुसरो दरिया प्रेम का’ बता गए हैं। आप अगर इस राह पर चलना चाहते हैं, तो कम से कम तब, जब कैमरा हाथ में हो और आंखें लेंस के पीछे, सब भूल जाइए, साधना में डूब जाइए… और दीजिए प्रकृति को एकसार होने का अवसर। खुद और खुदी को भूलना जरूरी है, वह सीखने के लिए, जिसका किसी को पता ही नहीं है। और एक दफा जब आप का दिमाग यों डूबता है कि बाहर आने पर आप खुद की खींची तस्वीर को अपनी कृति मानने को तैयार नहीं हो पा रहे होते, आप Photo यानी रोशनी की Grapher, मतलब लकीरों का चित्रकार बन चुके होते हैं...और रियाज़ से बने ही रहते हैं।
(एक्सपर्ट-भरत तिवारी)

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अपनी गाड़ी को ऐसे बनाएं स्मार्ट कार

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सुहाने सफर की शुरुआत वैसे तो आपके मूड से होती है, लेकिन अगर कार की स्थिति अच्छी न हो तो सफर सफरिंग में बदल जाता है। कारों की स्थिति बेहतर बनाए रखने के लिए जहां इंजन को फिट रखना जरूरी है वहीं कुछ ऐसे टूल्स भी हैं, जिन्हें कार में लगा दें तो सफर सुहाना और शानदार बन जाता है। बी एस पाबला बता रहे हैं कारों को स्मार्ट कार बनाने के तरीके:

ये देते हैं मंजिल का पता
GPS नेविगेटर: अमूमन लोग जीपीआरएस और जीपीएस में अंतर नहीं कर पाते, जबकि दोनों में बहुत अंतर है। जीपीआरएस (जनरल पैकेट रेडियो सर्विस) मोबाइल पर चलने वाला इंटरनेट है।इसके लिए मोबाइल को जारी किए गए नंबर पर सुविधा लेनी होती है और यह तब तक ऐक्टिव रहती है जब तक संबंधित टावर से सिग्नल मिलता रहता है।

दूसरी ओर जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम का अहम प्रयोग नक्शा बनाने, जमीन का सर्वेक्षण करने, कमर्शल वर्क, वैज्ञानिक प्रयोग, बॉर्डर पर चौकसी रखने जैसे कार्यों के लिए होता है। टेक्नॉलजी के विस्तार के साथ ही अब यह सटीक रास्ता बताने वाला उपकरण भी बन गया है।


कैसे होता है काम
इसका काम सैटलाइट पर निर्भर करता है। अंतरिक्ष में लगातार घूम रहे उपग्रहों के द्वारा भेजे जाने वाले सिग्नल्स के आधार पर यह अपनी स्थिति का आकलन करता है। उपग्रह लगातार सिग्नल्स भेजते रहते हैं, रिसीवर हर सिग्नल का समय दर्ज करता है और उपग्रह से दूरी का हिसाब रखता है। इससे उपयोगकर्ता की सही स्थिति का पता चल जाता है। एक बार जीपीएस सिस्टम द्वारा अपनी भौगोलिक स्थिति की जानकारी होने के बाद, जीपीएस दूसरी जानकारियां जैसे कि स्पीड, एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी, सूर्यास्त और सूर्योदय के समय के बारे में भी जानकारी निकाल लेता है।

यह तो हुआ तकनीकी ज्ञान, अब बात की जाए जीपीएस नैविगेटर की। किसी नई जगह पर जाने से पहले वहां का नक्शा और संबंधित जानकारियां रखने के बावजूद कई बार सड़कों की भूल-भुलैया और गलियों के मायाजाल ऐसा उलझाते हैं कि समय और पैसा दोनों बर्बाद होता है। ऐसे में जीपीएस नैविगेटर काम आता है।

गली-कूचे का भी पता
गाड़ियों के लिए जीपीएस नैविगेटर सिस्टम बेहतर है। पूरे देश का नक्शा, गलियों तक की जानकारी इससे आपको मिल जाती है। सॉफ्टवेयर के सहारे आपकी भाषा में मंजिल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाता है।

भारत में MapMyIndia का एकाधिकार है। इसके लिए बस जीपीएस कनेक्टिविटी चाहिए, न कि इंटरनेट। टच स्क्रीन वाले एक सामान्य नैविगेटर को अपनी मंजिल का पता बताइए और यह उपकरण रास्ते भर बताता रहेगा-अब बाएं मुड़िए, 100 मीटर बाद दाएं मुड़िए आदि। इसके अलावा मेमरी चिप लगा कर गाने सुने जा सकते हैं, विडियो देखे जा सकते हैं, ब्लूटूथ की सुविधा से हैंड-फ्री मोबाइल कॉल का आनंद भी ले सकते हैं। 2GB की डिवाइस मेमरी के अलावा इसमें 8GB तक का माइक्रो एसडी कार्ड लगाया जा सकता है। इसके लिए वायरिंग में किसी तरह का बदलाव नहीं करना पड़ता। इसकी इनबिल्ट बैटरी अपने दम पर 5 घंटे तक इस नैविगेटर को सक्रिय रख सकती है। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर इसे Car Voice Navigator से सर्च कर सकते हैं।

ब्रैंड्स
MapmyIndia, Garmin, Primo, TomTom

कीमत : 2,500-15,000 रुपये

कार का ब्लैक-बॉक्स
डैशबोर्ड कैमरा और रिकॉर्डर: हवाई जहाज यदि दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो सबसे पहले उसका ब्लैक बॉक्स तलाशा जाता है जिससे अमूमन यह जानकारी मिल जाती है कि आखिर दुर्घटना हुई कैसे? ब्लैक-बॉक्स में उड़ान के पिछले 25 घंटों के दौरान विमान की गति, ऊंचाई, तापमान, वायु दबाव जैसे लगभग 50 मापदंडों का हिसाब रखा जाता है, जबकि क्रू केबिन में होने वाली आवाजों का 2 घंटे तक का रिकॉर्ड रहता है। ऐसा ही एक उपकरण कार में भी लगाया जा सकता है, जो कार के इग्निशन ऑन होते ही सामने की सड़क की विडियो रिकॉर्डिंग शुरू कर देता है। इग्निशन ऑफ करते ही विडियो रिकॉर्डिंग रुक जाती है। रात की मद्धिम रोशनी वाले सीन भी फिल्मा सकने वाली यह डिवाइस यदि दो कैमरों वाली हों तो ऑन रहने तक विंडस्क्रीन के आगे और अंदर, दोनों ओर की विडियो रिकॉर्डिंग यह करती रहती है।

...तो मुसीबत दूर
सड़क पर छोटी-छोटी अनहोनी कब भारी मुसीबत बन जाए कहा नहीं जा सकता। किसी तरह की छोटी-बड़ी दुर्घटना की स्थिति में विडियो रिकॉर्डिंग अपने बचाव में एक सबूत हो सकती है। यदि एक कैमरे वाला उपकरण हो तो वह सामने की ओर के 170 डिग्री के क्षेत्र की विडियो रिकॉर्डिंग करता है और अगर दोहरे कैमरे वाला हो तो बाहर के साथ-साथ अंदर की भी 140 डिग्री तक के क्षेत्र की रिकॉर्डिंग करते चलता है। बाजार से खरीद कर इसमें 32GB तक का माइक्रो एसडी कार्ड डालना होता है। इससे दोहरे कैमरे की ऑडियो-विडियो रिकॉर्डिंग लगभग 7 घंटे की जा सकती है। यदि मेमरी कार्ड भर जाए तो यह उपकरण पहले की रिकॉर्डिंग हटा कर उसके स्थान पर खुद ताजा रिकॉर्डिंग शुरू कर देता है। यानी इसमें अंतिम 7 घंटों का डेटा हमेशा मौजूद मिलता है। सिंगल कैमरे वाले उपकरण में यह समय 9 से 10 घंटे हो सकता है। विंडस्क्रीन पर अंदर की ओर यह बड़ी आसानी से फिट हो जाता है और इसके लिए वायरिंग में किसी काट-छांट की जरूरत नहीं होती।


इसमें खूबियां बहुत हैं, जैसे अगर खड़े वाहन को कोई टक्कर मार दे, हार्ड ब्रेक लगा कर चलते वाहन को एकाएक रोकना पड़े, स्पीड ब्रेकर पर उछलना, गड्ढे में गोता लगाना पड़े, इससे जुड़ी जानकारियां G-Sensor के सहारे इस 'ब्लैक-बॉक्स' में दर्ज हो जाती हैं। इससे सैटलाइट के द्वारा कार की सारी भौगोलिक स्थिति भी रिकॉर्ड होते रहती है, जिसे गूगल मैप्स पर सेकंड-दर-सेकंड देखा जा सकता है। वैसे तो इसी उपकरण में, रिकॉर्ड हुआ साधारण विडियो-ऑडियो दोबारा चला कर देख-सुन सकते हैं, लेकिन संवेदनशील डेटा तभी दिखेगा जब मेमरी कार्ड को निकाल कर कंप्यूटर से जोड़ा जाए। बीमा कंपनियां भी अब क्लेम देने में बेहद सतर्क रहती हैं। ऐसे में यह अब एक जरूरी उपकरण बनने लगा है। इसलिए इस डिवाइस को लगाना अब एक समझदारी का काम है। यह 'ब्लैक-बॉक्स' या कार डीवीआर या डैशबोर्ड कैमरा डिवाइस अपनी खूबियों के अनुसार ऑनलाइन मिल रही हैं। ऐसा नहीं है कि इसे बार-बार बदलना पड़ता है। एक बार लगाने पर हमेशा के लिए निश्चिंत हो जाइए। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर इसे Car Dashboard Camera शब्दों के साथ तलाशा जा सकता है।

ब्रैंड्स
Transcend, PanSim, Winomo, Overmal
कीमत : 2,000-50,000 रुपये


रहे हवा टाइट
प्रेशर मॉनिटर: हमारी कार कितनी भी महंगी हो बिना सही टायर और हवा के सही दबाव के महंगी कार भी बेकार है। कई बार चलती गाड़ी के टायर गर्म होकर फट जाते हैं। जब गाड़ी स्पीड में हो तो इससे जान पर बन आती है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए कार में टायर प्रेशर मॉनिटर का होना लग्जरी नहीं बल्कि सुरक्षा के लिए भी जरूरी है। टायर प्रेशर मॉनिटर एक सामान्य-सा यंत्र है। इसमें डिजिटल डिस्प्ले होता है जहां चारों टायर का प्रेशर अंकों में दिखाई देता रहता है।


टायरों में वॉल्स (जिससे हवा भरी जाती है।) के ऊपर जो कवर लगे होते हैं, उन्हें हटा कर वैसी ही शक्ल वाले चार ट्रांसमीटर टाइट करने होते हैं। इग्निशन ऑन करते ही आपको चारों टायर में हवा का दबाव कितना है, दिखना शुरू हो जाएगा। कुछ महंगे मॉडल कारों के टायर का तापमान भी डिस्प्ले में दिखता है। जब गाड़ी चल रही हो उस स्थिति में भी जानकारियां मिलती रहती हैं। किसी कारण टायर पंक्चर हो जाए या मामूली लीकेज भी हो तो तुरंत ही ऑडियो बीप अलर्ट करती है। फ्लैश करते अंक के सहारे आप देख सकते हैं कि कौन-सा टायर गड़बड़ाने वाला है। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर इसे TPMS शब्द के सहारे तलाशा जा सकता है

ब्रैंड्स
Blaupunkt, SenseAiry, TyreSafe, Schrader
कीमत: 4,500-20,000 रुपये


गाड़ी का जासूस
हेड-अप डिस्प्ले: इसे आजकल खूब पसंद किया जा रहा है। इससे कार से जुड़ी वे सारी तकनीकी जानकारियां ड्राइवर के सामने विंडशील्ड पर दिखाई देती हैं जो आमतौर पर इंस्ट्रूमेंट कंसोल पर नहीं पाई जा सकती। इस तकनीक से ड्राइवर को बार-बार इंस्ट्रूमेंट कंसोल को नीचे निगाह कर देखने की ज़रूरत नहीं होती और वह ध्यान पूरी तरह रोड पर रह सकता है।

इसमें गाड़ी की स्पीड कितनी है, फ्यूल कितना है जैसी जानकारियां मिल जाती हैं। लेकिन 100 किलोमीटर जाने में कितना लीटर फ्यूल लगेगा, इंजन चलाकर रखें तो हर घंटे कितना इंधन लगेगा, ओवर स्पीड अलार्म, बैटरी वोल्टेज, कूलेंट का तापमान, एयर प्रेशर, गियर अलार्म, गाड़ी को कब आराम की जरूरत है, जैसी जानकारी भी आपको मिल जाएगी।

हेड-अप डिस्प्ले को वाहन के OBD II पोर्ट में प्लग करना होता है, अलग से किसी तार की काट-छांट नहीं करनी होती। यह OBD II पोर्ट 16 पिन का एक छोटा-सा सॉकेट होता है जो आमतौर पर इंस्ट्रूमेंट कंसोल के नीचे भीतर की ओर स्टेयरिंग वील के आसपास होता है। आजकल लगभग सभी वाहनों में यह लगा हुआ मिलता है। बोलचाल की भाषा में कहा जाए तो यह वह सॉकेट है, जिसमें वर्कशॉप वाले लैपटॉप लगा कर गाड़ी की खराबी पता करते हैं। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर इसे Car HUD शब्दों के साथ तलाशा जा सकता है।

ब्रैंड्स
Zorbs, Autocop, Autoloc, Torq
कीमत: 2,500-5,000
रुपये

सेफ्टी के लिए सुपर लॉक
सेंट्रल लॉकिंग सिस्टम: इसे गाड़ी की सुरक्षा के तौर पर देखा जा सकता है जोकि आपकी गाड़ी को चोरी या छेड़छाड़ की आशंकाओं से बचाता है। कार चलाते समय इससे दरवाजे लॉक रहते हैं और पार्किंग के बाद सेंट्रल लॉकिंग सिस्टम को की-रिंग जैसे छोटे से रिमोट के द्वारा ऑन किया जा सकता है। इसके बाद यदि कोई दरवाजे या बोनेट से छेड़खानी करता है तो हूटर की तेज आवाज निकलने लगती है। इससे कार चोरी होने की आशंका काफी कम हो जाती है। इसके अलावा यह खचाखच भरी पार्किंग में खड़ी आपकी कार को आसानी से खोजने में भी काफी मदद करता है।

इसकी फिटिंग के लिए वायरिंग में कुछ फेरबदल करना होता है, जिसके लिए ऑटो इलेक्ट्रिशन की सहायता लेनी चाहिए। वैसे तो यह सिस्टम लोकल मार्केट में भी मिल जाता है, लेकिन ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर इसे Car Central Locking शब्दों के सहारे सर्च कर सकते हैं। सेंट्रल लॉकिंग के साथ कई बार कुछ समस्याएं भी होती हैं, मसलन, यह कभी-कभी काम करना बंद कर देते हैं। मुसीबत तब और भी बढ़ जाती है जब कोई कार के अंदर हो और गेट बंद हो जाए। तकनीकी खराबी के अलावा इनके दूसरे कारण भी होते हैं। कई बार हम पुरानी बैटरी को लगातार इस्तेमाल करते रहते हैं। इससे बैटरी की वोल्टेज सप्लाई पर हमारा ध्यान नहीं जाता। इसके अलावा समय-समय पर मकैनिकल जॉइंट्स में ग्रीस आदि नहीं लगाते या रिमोट के सेल कमजोर पड़ जाने से भी लॉक नॉब जाम हो जाता है। अगर हम इन बातों का ध्यान रखें तो सेंट्रल लॉकिंग की परेशानी से बच सकते हैं। फिर भी अगर कार के अंदर फंस जाते हैं तो अलग-अलग दरवाजों के लॉक नॉब को खींच कर या उठा कर बाहर निकल सकते हैं। वहीं जब पावर विंडो भी जाम हो जाए तो सीट पर सिर टिकाए रखने के लिए दिए गए 'हेड रेस्ट' को निकाल कर उससे कांच तोड़ देना चाहिए।

ब्रैंड्स
Autocop, Guardian, Black Cat, Xenos
कीमत: 1,500-10,000 रुपये

तीसरी आंख का कमाल
रिवर्स पार्किंग कैमरा, सेंसर्स: इसकी मदद से कार चालक को ज्यादा भीड़भाड़ वाली जगहों पर गाड़ी पार्क करने में बड़ी मदद मिलती है। कार में पीछे की ओर बंपर में फिट होने वाले चार छोटे-छोटे सेंसर, कार पार्क करते समय डैशबोर्ड पर लगे छोटे से डिस्प्ले के सहारे कार के पीछे की स्थिति से अवगत कराते रहते हैं। लगभग डेढ़ मीटर की दूरी पर जब कोई खंभा, दीवार, इंसान या गाड़ी रह जाती है तो डिस्प्ले उससे दूरी और दिशा बताता है और बज़र बीप्स के साथ सतर्क करता है। इस पर एक बार के खर्च वाले सिस्टम की कीमत 700 रुपये से लेकर 3,000 रुपये हो सकती है।


इसे लगाने के लिए वायरिंग में कुछ बदलाव करना होता है। अडवांस्ड सिस्टम वाले पार्किंग असिस्टेंट में एक कैमरा भी होता है जो बीप्स के साथ पीछे का दृश्य दिखाता रहता है। रियर पार्किंग सेंसर / कैमरा की मदद से आप कार को बिना किसी तनाव के आसानी से पार्किंग में खड़ा कर सकते हैं। लोकल मार्केट के अलावा ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर इसे Car Parking Sensor शब्दों के साथ खोजा जा सकता है।

ब्रैंड्स
Woodman, Voyager, Autosun, Volga
कीमत: 400-2,000 रुपये


ये खिड़कियां
पावर विंडो: सिर्फ लग्जरी ही नहीं, बल्कि कार और उसके सवार की सुरक्षा के लिए भी अहम है। इसकी मदद से बिना किसी की सहायता से किसी परेशानी की स्थिति में विंडो के चारों शीशे एकसाथ ऊपर-नीचे किए जा सकते हैं। इन्हें लॉक भी कर सकते हैं। लोकल मार्केट में दो दरवाजों और चारों दरवाजों वाले सिस्टम के लिए अलग-अलग कीमत है। इस की फिटिंग कार असेसरीज वाले बखूबी कर सकते हैं।

ब्रैंड्स
Zorbes, Autocop, Autoloc, Torq
कीमत: 2,500-5,000 रुपये


सुपर संगीत
ऑडियो-विडियो: एंटरटेनमेंट के लिए तो अब सैकड़ों तरह के ऑप्शंस हैं, चाहें तो सीधा-सादा-सा कुछ सौ रुपये का ऑडियो प्लेयर लगवा लें या फिर एंड्रॉयड आधारित इंफोटेनमेंट! इंफोटेनमेंट वाले उपकरण में वॉयस नेविगेशन भी लगा रहता है। ब्लूटूथ के सहारे फोन कॉल करने/ रिसीव करने की सुविधा के साथ-साथ यूएसबी / मेमरी कार्ड संग विडियो देखने, गाने सुनने का मज़ा लिया जा सकता है। इसमें रेडियो तो रहता ही है। इनका खर्च भी कुछ सौ रुपये से लेकर कई हजार रुपये तक हो सकता है। फिटिंग के लिए ऑटो इलेक्ट्रिशन चाहिए।

ब्रैंड्स
Sony, Pioneer, JBL, Kenwood
कीमत: 5,000-50,000 रुपये


गाड़ी का पता यह देगा बता
GPS वीइकल ट्रैकर: कई बार इसे जीपीएस डिवाइस कह कर भी पुकारा जाता है। दरअसल, गाड़ी के चोरी हो जाने की स्थिति में यह टूल, वाहन मालिक को अपनी भौगोलिक स्थिति के बारे सटीक सूचना देता रहता है। इससे कम-से-कम समय में वाहन को फिर से ढूंढ लेना संभव हो जाता है। इस उपकरण को लगाने के बाद यदि आपने अपनी कार के लिए कोई लक्ष्मण रेखा खींच रखी है तो उस दायरे से बाहर जाते ही आपकी कार आपको मोबाइल पर SMS भेज कर या मोबाइल ऐप पर नोटिफिकेशन दे कर बताएगी कि उसे चुपके से कहीं बाहर ले जाया जा रहा। फिर चाहे उसे ले जाने वाला आपका मित्र हो या घर का कोई सदस्य। इसके अलावा यदि आपने अपने गाड़ी के लिए कोई रूट बना दिया है तो उस राह से अलग होते ही आपको एसएमएस द्वारा सूचना मिल जाएगी।

हालांकि अपनी गाड़ी की सारी जानकारी आप एक खास वेबसाइट पर संबंधित कंपनी द्वारा दी हुई आईडी-पासवर्ड द्वारा देख सकते हैं, लेकिन ऐंड्रॉयड आधारित मोबाइल पर संबंधित ऐप के साथ भी इस पर बखूबी निगाह रखी जा सकती है। किसी भी स्थानीय कार असेसरीज वाली दुकान पर यह मिल जाता है। करीब 6000 रुपये खर्च कर 11 X 2 X 6 सेंटीमीटर के आकार और 100 ग्राम वजन वाले इस टूल को किसी ऐसी जगह लगाना होता है, जहां आसानी से किसी की नजर न जाए। इस काम के लिए तीन तारों को अलग-अलग जगह जोड़ना होता है, जिसके लिए ऑटो इलेक्ट्रिशन की मदद ली जा सकती है।


गाड़ी चोरी हो जाने की स्थिति में इंटरनेट पर गूगल मैप्स से आप गाड़ी की लोकेशन तलाश सकते हैं। इग्निशन बंद होने (जैसे पार्किंग में) की स्थिति में गाड़ी को घसीट कर (क्रेन द्वारा) कोई ले जा रहा हो तो भी सूचना आपके रजिस्टर्ड मोबाइल पर मिल जाएगी। एडवांस्ड सिस्टम वाले कई तरह के टूल्स में कार का इग्निशन बंद / चालू करने, सेंट्रल लॉकिंग के द्वारा दरवाजे बंद करने, कार के अंदर / आसपास की बातचीत सुनने, जबरन दरवाजा खोले जाने, बोनेट खोले जाने जैसी सूचनाएं भी रजिस्टर्ड मोबाइल / ई-मेल पर प्राप्त की जा सकती हैं।
इसमें एक मोबाइल सिम लगता है जो सिस्टम में ही लगा हुआ मिलता है। सर्विस को जारी रखने के लिए सिम एक्टिवेट होने की तारीख से एक साल बाद इसका रिन्यूअल जरूरी है। रिन्यूअल पर लगभग 1000 रुपये का खर्च आता है।

यदि एक से ज्यादा गाड़ियां हों तो अलग-अलग डिवाइस लगा कर एक ही डैशबोर्ड पर सभी को देखा जा सकता है। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर इसे Car GPS Tracker शब्दों के साथ तलाशा जा सकता है। मॉडर्न टेक्नॉलजी अपनाए जाने के साथ GPS tracker में कई फंक्शन जोड़े जा चुके हैं। अब इनमें इग्निशन को बंद करने, सेंट्रल लॉक लगाने, कार के अंदर की बातचीत सुनने, एयर कंडीशनर का तापमान जानने जैसे कार्य भी शामिल हैं। गाड़ी को स्मार्ट बनाने में इस डिवाइस का रोल काफी अहम हो जाता है।

ब्रैंड्स
Autocop, LetsTrack, TrackMe, Lamrod
कीमत: 5,000-20,000 रुपये


मक्खन-सी ड्राइविंग
शॉक-ऑब्जर्वर: सब कुछ सही होते हुए भी अगर शॉक-ऑब्जर्वर हमारी पसंद से काम न करे तो खीझ स्वाभाविक है। देश में एक कंपनी ने थर्मोप्लास्टिक यूरेथन बफर पेश किया है जिसे अलग-अलग चारों शॉक-ऑब्जर्वर की कॉइल में लगाया जाता है। यदि चारों शॉक-ऑब्जर्वर सही हों तो इस बफर के लगाने के बाद कार का ग्राउंड क्लियरेंस करीब 3 से 6 सेंटीमीटर बढ़ जाता है। इससे घुमावदार मोड़ों पर गाड़ी की स्थिरता बनी रहती है और झटकों में भी कमी आती है। 2 साल रिप्लेसमेंट वाले इस बफर की कीमत अलग-अलग कार या एसयूवी मॉडल के अनुसार होती है। इसकी फिटिंग स्थानीय स्तर पर करवाई जा सकती है।

ब्रैंड्स
Rogerab, Indisuspension, Kashyap, Genting
कीमत: 7,000-औसतन

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World Coconut Day 2018: जहर तो नहीं, लेकिन अमृत भी नहीं

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एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. अनूप मिश्रा, चेयरमैन, फोर्टिस, सी-डॉक
डॉ. शिखा शर्मा, सीनियर न्यूट्री-डाइट एक्सपर्ट
डॉ. अंजलि हुड्डा, मेटाबॉलिक एक्सपर्ट
आर. पी. कोहली, डायेरक्टर, जीवो वेलनेस ग्रुप
सीमा गुलाटी, सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट
वसुंधरा सिंह, डायटिशन, एम्स

किसी भी शुभ काम में नारियल या खोपरा, सेहत के लिए नारियल पानी या नारियल की गिरी, खाने और लगाने के लिए नारियल तेल... यानी नारियल एक, फायदे अनेक। नारियल के अलग-अलग रूपों के फायदे और सीमाओं पर एक्सपर्ट्स से पूछकर जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह

1. नारियल तेल एक तरह से जहर है। इसमें सैचुरेटिड फैट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जोकि नलियों में जाकर खून का दौरा रोक सकता है। इससे दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
-कैरिन मिशेल्स, प्रफेसर, स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी

2. नारियल तेल में करीब 90 फीसदी सैचुरेटिड फैट है, जोकि बटर (65 फीसदी) या बीफ (40 फीसदी) से भी ज्यादा है। डायट में जरूरत से ज्यादा सैचुरेटिड फैट सेहत के लिए नुकसानदेह है क्योंकि इससे खून में एलडीएल यानी (बैड कोलेस्ट्रॉल) बढ़ जाता है, जोकि दिल की बीमारियों की आशंका बढ़ा देता है। लेकिन नारियल के बारे में एक अच्छी बात यह है कि यह एचडीएल (गुड कोलेस्ट्रॉल) को बढ़ाता है। इसकी वजह इसमें मौजूद लॉरिक एसिड है, जोकि दूसरे तेलों में कम मात्रा में पाया जाता है। एचडीएल बढ़ाने की क्षमता के कारण ही इसे दूसरे सैचुरेटिड फैट्स जैसा खराब नहीं माना जाता। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि यह ऑलिव या सोयाबीन ऑयल जैसे हेल्दी वेजिटेबल ऑयल जितना सा अच्छा है जोकि एलडीएल तो कम करते हैं साथ में एचडीएल को भी बढ़ाते हैं।
-वॉल्टर सी. विलेट, डिपार्टमेंट ऑफ न्यूट्रिशन, हॉर्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ

3. कुछ वक्त पहले एक रिसर्च की गई, जिसमें 50 से 75 साल के 94 लोगों को तीन ग्रुप में बांटा गया। इनमें किसी को भी डायबीटीज या दिल की बीमारी नहीं थी। अलग-अलग ग्रुप के लोगों को 4 हफ्ते तक एक ही तरह के तेल का सेवन करने को कहा गया। इसके बाद बटर खाने वालों के शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल 10 फीसदी बढ़ा पाया गया, लेकिन साथ ही गुड कोलेस्ट्रॉल भी 5 फीसदी बढ़ गया था। ऑलिव ऑयल (जैतून का तेल) लेने वालों में गुड और बैड, दोनों कोलेस्ट्रॉल की मात्रा थोड़ी कम हो गई। लेकिन नारियल तेल लेने वालों में गुड कोलेस्ट्रॉल लगभग 15 फीसदी तक बढ़ा पाया गया, जबकि बैड कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा था। इस रिसर्च का निचोड़ है कि नारियल तेल दिल के लिए अच्छा है। यह रिसर्च कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रफेसर के-टी खॉ और नीता फोरोही ने बीबीसी के लिए की थी।

नारियल तेल को लेकर दिए गए ये सारे बयान या रिसर्च एक-दूसरे के उलट हैं। ऐसे में नारियल तेल फायदेमंद है या नहीं, यह चर्चा का विषय बन गया है।

अच्छा है सेहत के लिए
- सैकड़ों बरसों से नारियल का इस्तेमाल हो रहा है, खासकर साउथ इंडिया में और वहां कभी सेहत को कोई ऐसा खतरा नजर नहीं आया।
(यह गुड कोलेस्ट्रॉल बढ़ाता है। साथ ही इसमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा जीरो है।)
- प्रफेसर कैरिन मिशेल्स ने नारियल तेल को जहर बताया है, उनका बयान किस रिसर्च पर आधारित है, यह साफ नहीं है। नारियल के नुकसान को लेकर अभी तक कोई भी बड़ी रिसर्च सामने नहीं आई है। जो रिसर्च हुई भी हैं, उनके प्रामाणिक होने का भी सबूत नहीं है। बेहतर है कि इस पर कंट्रोल्ड रिसर्च हो और रिसर्च एक बड़ी आबादी पर हो।


क्या होती है कंट्रोल्ड रिसर्च
- रिसर्च में एक जैसे पैरामीटर इस्तेमाल होते हैं यानी एक-सी उम्र के, एक जैसी सेहत वाले लोगों पर रिसर्च होती है।
- रिसर्च में शामिल लोगों को किसी तरह की सेहत की समस्या नहीं होती।
- रिसर्च में शामिल लोगों को यह जानकारी नहीं होती कि उन्हें क्या दिया जा रहा है ताकि कोई साइकॉलजिकल असर न पड़े।

बुरा है सेहत के वास्ते
- नारियल तेल में सैचुरेटिड फैट ज्यादा होता है, जोकि हमारी धमनियों में जम जाता है और दिल के लिए खतरनाक होता है।
- दिल की बीमारियों के लिए गुड कोलेस्ट्रॉल अहम नहीं है, बल्कि बैड कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना ज्यादा खतरनाक है।
- पिछले साल अमेरिकन हार्ट असोसिशन ने भी नारियल तेल को दिल के लिए खतरनाक मानते हुए एडवाइजरी जारी की थी।

जानें कोलेस्ट्रॉल और सैचुरेटिड फैट का कनेक्शन
कई बार लोग कोलेस्ट्रॉल और सैचुरेटिड फैट को एक ही समझ लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। दरअसल, कोलेस्ट्रॉल हमारे शरीर में बनता है या फिर जानवरों से हासिल खाने से मिलता है जैसे कि रेड मीट, अंडा, घी, मक्खन आदि। किसी भी प्लांट सोर्स (पेड़-पौधों से मिले तेल) में कोलेस्ट्रॉल नहीं होता। यही वजह है कि नारियल तेल में भी कोलेस्ट्रॉल नहीं होता, लेकिन इसमें सैचुरेटिड फैट बहुत ज्यादा होता है, जोकि कोलेस्ट्रॉल लेवल को बढ़ाता है। ऐसे में कोलेस्ट्रॉल और सैचुरेटिड फैट को अलग नहीं किया जा सकता। एक्सपर्ट्स के मुताबिक नारियल में जीरो कोलेस्ट्रॉल होना फायदेमंद है, लेकिन ज्यादा मात्रा में सैचुरेटिड फैट इसे नुकसानदेह बना सकता है।

निष्कर्षः नारियल तेल में सैचुरेटिड फैट की मात्रा करीब 90 फीसदी तक होती है। ऐसे में उसे दिल के लिए अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन उसमें मौजूद एंटी-ऑक्सिडेंट और लॉरिक एसिड गुड कोलेस्ट्रॉल और इम्युनिटी को बढ़ाने में मददगार माने जाते हैं। ऐसे में नारियल तेल थोड़ी मात्रा (एक छोटा चम्मच रोजाना) में ले सकते हैं। नारियल तेल लेते हैं तो दूसरे सैचुरेटिड फैट्स (मक्खन, रेड मीट आदि) से परहेज करें तो बेहतर है। हमारे रोजाना के खाने में 25-30 फीसदी तक फैट होना चाहिए, जिसमें से 6-7 फीसदी से ज्यादा सैचुरेटिड फैट नहीं होना चाहिए। बाकी हिस्सा गेहूं, चावल जैसे कार्बो और प्रोटीन का है।


नारियल तेल
नारियल तेल का इस्तेमाल कुकिंग के लिए ज्यादातर साउथ इंडिया में किया जाता है। हालांकि पिछले कुछ समय में कुछ बेकरी आइट्म्स के लिए सभी लोगों में नारियल तेल का इस्तेमाल बढ़ा है। फिर भी नॉर्थ इंडिया में नारियल तेल खाने से ज्यादा सिर में लगाने और मालिश में इस्तेमाल होता है। इसके कुछ फायदे हैं, तो कुछ नुकसान भी:

नारियल तेल (5 मि.ली., एक छोटा चम्मच)
कैलरी: 40
सैचुरेटिड फैट: 4 ग्राम (करीब 91 फीसदी)
अनसैचुरेटिड फैट: 0.3 ग्राम
कोलेस्ट्रॉल: 0 ग्राम
स्मोक पॉइंट: 175 डिग्री से.
(स्मोक पॉइंट: गर्मी का वह स्तर जिस पर तेल में से धुआं निकलने लगता है। समोसे, कचौड़ी, पूरी, भठूरे आदि करीब 200 डिग्री से. पर तले जाते हैं। इसी तरह इन कामों के लिए इसी के आसपास स्मोक पॉइंट वाले तेल इस्तेमाल करने चाहिए।)

फायदे
- इसमें मौजूद लॉरिक एसिड शरीर की इम्युनिटी और गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद करता है।
- नारियल तेल का मीडियम चेन ट्राइग्लाइसराइड (MCT) बच्चों में मिर्गी के दौरे कम करने में मददगार हो सकता है।
- कुछ स्टडीज़ में इसे एल्टशाइमर्स (बढ़ती उम्र में होनेवाली भूलने की बीमारी) में भी फायदेमंद पाया गया है।
- इसमें मौजूद फैटी एसिड्स जल्दी भूख नहीं लगने देते। ऐसे में यह वजन कम करने के इच्छुक लोगों के लिए अच्छा है।
- यह फंगल इन्फेक्शन से लड़ता है।
- यह एनर्जी का एक बे हतर सोर्स है। यह सीधा लिवर में जाता है और इसे फौरन एनर्जी पाने के लिए इसे इस्तेमाल कर सकते हैं।
- स्किन प्रॉब्लम में भी यह फायदेमंद है। कुछ कोस्मेटिक प्रॉडक्टस में भी इस्तेमाल किया जाता है।

नुकसान
- नारियल तेल में करीब 90 फीसदी तक सैचुरेटिड फैट होता है, जोकि हार्ट के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
- अगर कोई लंबे समय तक सिर्फ नारियल तेल का ही सेवन करता रहे तो खतरनाक हो सकता है।

नारियल तेल कितनी तरह का
मार्केट में मुख्य तौर पर वर्जिन और रिफाइंड, दो तरह का नारियल तेल मिलता है:
वर्जिन कोकोनट ऑयल: इसे कोल्ड कंप्रेस्ड ऑयल भी कहा जाता है। यह बेहद शुद्ध तेल होता है। इसे तैयार करते हुए गर्म नहीं किया जाता। इसमें अच्छी मात्रा में एंटी-ऑक्सिडेंट, विटामिन और मिनरल होते हैं, खासकर लॉरिक एसिड और विटामिन ई। इसमें ट्रांस फैटी एसिड्स नहीं होते, लेकिन समस्या यह है कि इसकी शेल्फ लाइफ कम (लगभग 18 महीने) है यानी यह लंबे समय तक नहीं चलता।

रिफाइंड कोकोनट ऑयल: बाकी रिफाइंड तेलों की तरह इसे भी रिफाइनिंग (Refining), ब्लीचिंग (‌Bleaching) और डी-ओडरिंग (Deodouring) की प्रक्रिया से गुजरना होता है। रिफाइनिंग में गंदगी अलग की जाती है। फिर रंग हल्का करने के लिए ब्लीचिंग की जाती है और आखिर में तेल की नैचरल गंध खत्म करने के लिए डी-ओडरिंग की जाती है। इस सारे प्रोसेस में तेल को गर्म किया जाता है और केमिकल भी मिलाए जाते हैं। इससे नारियल तेल के अच्छे गुण कम होते जाते हैं। इसे सेहत के लिए बहुत फायदेमंद नहीं माना जाता।

बरतें सावधानी
- हर तरह के तेल की हमारी रोजाना कुल लिमिट 3 चम्मच (15-20 मि. ली.) है। बेहतर यही होगा कि एक चम्मच कोकोनट ऑयल लें और 2 चम्मच बाकी तेल जैसे कि सरसों, सोयाबीन, कनोला, ऑलिव ऑयल आदि।
- एक सब्जी बनाने के लिए नारियल तेल इस्तेमाल करते हैं तो दूसरी सब्जी या डिश बनाने के लिए दूसरे ऑयल का इस्तेमाल करें।
- नारियल तेल इस्तेमाल करते हैं तो घी या बटर का इस्तेमाल न करें वरना खाने में सैचुरेटिड फैट की मात्रा काफी ज्यादा बढ़ जाएगी।
- नारियल तेल खाते हैं तो रेड मीट और अंडे का पीला हिस्सा कम खाएं क्योंकि उनमें भी सैचुरेटिड फैट की मात्रा ज्यादा होती है ।
- नारियल तेल खरीदते हैं तो वर्जिन कोकोनट ऑयल ही खरीदें। यह शुद्ध होता है।


पानी और गिरी फायदेमंद तो तेल नुकसानदेह कैसे?
कई लोग सवाल करते हैं कि जब नारियल पानी फायदेमंद है तो नारियल तेल क्यों नहीं? इसका जवाब देते हुए एक्सपर्ट कहते हैं कि इसे मछली के उदाहरण से समझ सकते हैं। फिश के लिवर का ऑयल (कॉड लिवर ऑयल) में विटामिन 'ए' ज्यादा मात्रा में होता है, जबकि उसकी हड्डियों और बॉडी में जो फैट होता है, उसमें ओमेगा 3 ज्यादा होता है। अब इसे यह नहीं कह सकते कि पूरी मछली में ओमेगा 3 ज्यादा मात्रा में होता है तो लिवर ऑयल में विटामिन 'ए' ज्यादा कैसे हो सकता है? इसी तरह, नारियल पानी फायदेमंद है तो जरूरी नहीं कि नारियल गिरी या तेल भी उतना ही फायदेमंद हो। दरअसल नारियल पानी तो करीब-करीब पानी ही होता है। गिरी में भी थोड़ा मॉइश्चर होता है लेकिन सूख जाने या उसका तेल निकालने पर उसमें सैचुरेटिड फैट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। यही वजह है कि नारियल तेल को ज्यादा मात्रा में नहीं लेना चाहिए।

दूसरे तेलों से तुलना
देसी घी
स्मोक पॉइंट: 252 डिग्री से.
खासियत: इसे पचाना आसान, कच्चा खाना बेहतर।
कमी: बेहद सीमित मात्रा में खाना चाहिए। डीप फ्राई करने के लिए ज्यादा मुफीद नहीं।

सरसों का तेल
स्मोक पॉइंट: 258 डिग्री से.
खासियत: सबसे अच्छे तेलों में से एक। ओमेगा 3 और ओमेगा 6 का रेश्यो काफी अच्छा। मालिश से लेकर कुकिंग तक के लिए बढ़िया।
कमी: करीब 20 फीसदी यूरेसिक एसिड, जोकि सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। मिलावट होने की आशंका ज्यादा।

कनोला ऑयल
स्मोक पॉइंट: 240 डिग्री से.
खासियत: सरसों का ही मॉडिफाइड रूप होने से सरसों तेल की सारी खासियतें इसमें भी। 19 मि.ली. रोजाना लेने से ओमेगा 3 की दिन भर की जरूरत पूरी हो जाती है। यूरेसिक एसिड न होना प्लस पॉइंट।
कमी: बहुत पॉपुलर नहीं। महंगा भी है।

ऑलिव ऑयल
स्मोक पॉइंट: 216 डिग्री से.
खासियत: मूफा अच्छी मात्रा में। ओमेगा 3 और 6 का रेश्यो भी ठीक।
कमी: कुकिंग के लिए बहुत अच्छा नहीं। ज्यादातर में पोमेस ऑयल ज्यादा और ओलिव ऑयल कम, जबकि यूरोप में पोमेस ऑयल को कुकिंग के लिए इस्तेमाल करने पर बैन है। कीमत भी ज्यादा।

सोयाबीन ऑयल
स्मोक पॉइंट: 232 डिग्री से.
खासियत: सैचुरेटिड फैट कम हैं और मूफा अच्छी मात्रा में मिलता है।
कमी: ओमेगा 3 काफी कम है और ओमेगा 3 और 6 का रेश्यो भी काफी कम है।

(नोट: यहां स्मोक पॉइंट ज्यादातर रिफाइंड तेलों का दिया गया है। यह कम-ज्यादा हो सकता है।)

नारियल पानी
हाल के दिनों में नारियल पानी या डाब का चलन काफी बढ़ा है। इसे सबसे नैचरल और बेहतरीन पेयों में माना जाता है।

नारियल पानी (250 मि.ली., एक कप)
कैलरी: 46
कार्बोहाइड्रेट: 8.9 ग्राम
सोडियम: 252 मिग्रा
पोटैशियम: 600 मिग्रा
प्रोटीन: 1.78 ग्राम
फाइबर: 2.6 ग्राम
विटामिन सी: 5.8 मिग्रा
कॉलेस्ट्रॉल: 0


फायदे
- यह एकदम शुद्ध ड्रिंक है, जिसमें किसी तरह की मिलावट नहीं होती।
- इसमें मौजूद इलेक्ट्रोलाइट (पोटैशियम, मैग्नीशियम आदि सॉल्ट) उसी अनुपात में हैं, जैसे हमारे शरीर में होते हैं।
- डी-हाइड्रेशन या दस्त आदि में नीबू-चीनी के घोल से भी ज्यादा फायदेमंद है नारियल पानी।
- इसमें मौजूद पोटैशियम और मैग्नीशियम ब्लड सर्कुलेशन, हार्ट से लेकर मसल्स आदि तक के लिए अच्छे हैं।
- यह एंटी-माइक्रोबियल है जिससे वजन कम करने, मुंहासे हटाने और इम्युनिटी बढ़ाने में मदद मिलती है।
- यह पेट में मौजूद कीड़ों को मारने का काम करता है।
- एक्सरसाइज या मेहनत का काम करने के बाद नारियल पानी पीना बहुत फायदेमंद है। यह पसीने से निकलने वाले सॉल्ट्स की भरपाई कर देता है।
- इसमें कुदरती मीठापन होता है, इसलिए डायबीटीज के मरीज भी ले सकते हैं।
- थकान होने पर भी इसे पीना फायदेमंद है क्योंकि यह एनर्जी का अच्छा सोर्स है। इसे पीकर तरोताजा भी हो जाते हैं।
- यह आसानी से पच जाता है इसलिए छोटे बच्चों को भी दे सकते हैं।
- शरीर को ठंडा रखता है। लू लगने पर मरीज को नारियल पानी देना काफी फायदेमंद है।
- यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन से लड़ने में मददगार हो सकता है।
- किडनी के स्टोन को निकालने में भी मददगार साबित हो सकता है।
- इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सिडेंट बढ़ती उम्र के असर को कम करते हैं।

नुकसान भी!
- डायलीसिस स्टेज पर पहुंच चुके किडनी के मरीजों, यानी जिन्हें डॉक्टर ने लिमिट में पानी पीने की सलाह दी है, उन्हें इससे परहेज करना चाहिए। ये मरीज नारियल पानी लेने से पहले अपने डॉक्टर/न्यूट्रिशनिस्ट से सलाह जरूर लें।
- लोग यह सोचकर खूब सारा नारियल पानी पीते हैं कि इसमें कैलरी नहीं होती, जबकि यह सही नहीं है क्योंकि एक कप (250 मि.ली.) नारियल पानी में करीब 45-50 कैलरी होती हैं। दिन भर में दो नारियल पानी तक ही लिमिट रहे तो बेहतर है।
- कुछ लोग कहते हैं कि यह संपूर्ण भोजन है, जोकि सही नहीं है। इसमें प्रोटीन कम मात्रा में होता है और फाइबर लगभग नहीं होता। पानी के साथ-साथ नीबू पानी, छाछ आदि तो भी अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए। इनके भी अपने फायदे हैं।
- नैचरल नारियल पानी ही पिएं, पैक्ड नारियल पानी फायदेमंद नहीं है। इसमें कई तरह की चीजें जैसे कि प्रीजर्वेटिव, शुगर, फ्लेवर आदि मिले होते हैं।

कब और कितना पिएं
- बेहतर है कि दिन भर में 2 कप नारियल पानी से ज्यादा न पिएं। वैसे नारियल पानी कभी भी पी सकते हैं। फिर भी खाली पेट पीना ज्यादा फायदेमंद है। साथ ही, दो भोजन के बीच स्नैक्स की तरह ले सकते हैं। खाने के साथ इसे न लें।

नारियल गिरी
नारियल की गिरी काफी लोग खाना पसंद करते हैं। बड़ी संख्या में लोग नारियल गिरी को प्रसाद के तौर पर चढ़ाते और बांटते भी हैं।

फायदे
- इसमें अच्छी मात्रा में फाइबर, विटामिन और मिनरल होते हैं।
- यह नेचरल एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल है।
- यह पाचन से जुड़ी गड़बड़ियों में फायदेमंद है क्योंकि फाइबर काफी ज्यादा है।
- दूध पिलाने वाली मांओं को फौरी एनर्जी की जरूरत होती है। उनके लिए बहुत फायदेमंद है।
- बढ़ते बच्चों के लिए भी अच्छी है।

नुकसान
- इसमें फैट बहुत ज्यादा होता है इसलिए वजन बढ़ने की आशंका होती है।
- सैचुरेटिड फैट ज्यादा होने से दिल के लिए खतरा बढ़ाती है यह।
- कम एक्सरसाइज करने या बैठ कर काम करने वाले लोग इसे कम मात्रा में और कभी-कभी लें।


गिरी या खोपरा, क्या बेहतर?
नारियल की गिरी में हल्का मॉइश्चर भी होता है, जबकि सूखे नारियल में तेल बहुत ज्यादा होता है। गिरी और खोपरा में फाइबर अच्छी मात्रा में होता है। फिर भी गिरी कम मात्रा में ही खानी चाहिए क्योंकि इसमें फैट काफी होता है। सूखा नारियल और भी कम मात्रा में खाना चाहिए क्योंकि इसमें सैचुरेटिड फैट काफी ज्यादा होता है। हां, मिठाइयों में स्वाद बढ़ाने के लिए कम मात्रा में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। दूध पिलाने वाली मांओं के लिए लड्डू आदि भी बना सकते हैं। हालांकि खोपरे की तासीर गर्म मानी जाती है इसलिए इसे गर्मियों में कम खाना चाहिए।

नारियल कैसा-कैसा
माना जाता है कि नारियल का इंग्लिश नाम 'कोकोनट' 16वीं सदी में पुर्तगाली नाविकों ने दिया। उन्होंने नारियल की तीन आंखों को देखा तो उसका नाम coco रख दिया क्योंकि यह देखने में इंसान के चेहरे से मिलता-जुलता था। coco का पुर्तगाली में मतलब होता है मुस्कुराता हुआ चेहरा। बाद में इसमें इंग्लिश का nut जोड़ दिया गया। वैसे, दुनिया भर में सबसे ज्यादा नारियल फिलीपींस में उगाते जाते हैं, दूसरे नंबर पर इंडोनेशिया और तीसरे पर भारत है। अपने देश में सबसे ज्यादा नारियल तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश में पैदा होता है यानी साउथ इंडिया नारियल का सबसे बड़ा उत्पादक है। यही वजह है कि साउथ में सबसे ज्यादा नारियल तेल इस्तेमाल किया जाता है।

नारियल की तीन स्टेज होती हैं:
1. कच्चा या पानी वाला नारियल: यह नारियल की शुरुआती स्टेज होती है। यह हरे रंग का होता है और इसके पानी को पीते हैं। इसे डाब या इंग्लिश में टेंडर कोकोनट कहा जाता है। पोलिनेशन के करीब 9 महीने बाद पानी वाला नारियल तैयार हो जाता है। कई बार इसमें पानी के अलावा हल्की मलाई भी होती है। इसे पीना बहुत फायदेमंद है।
2. गिरी वाला या जटा वाला नारियल: डाब के बाद गिरी वाला नारियल बनता है। यह ब्राउन कलर का होता है और इसमें खोल के अंदर गिरी बनती है। इसमें पानी की मात्रा काफी कम हो जाती है और फैट बढ़ जाता है। पोलिनेशन के करीब 12 महीनों में नारियल में गिरी तैयार हो जाती है। इसे पूजा, व्रत या दूसरे शुभ कामों आदि में भी इस्तेमाल किया जाता है। फैट की मात्रा बढ़ जाने से इसे कम मात्रा में खाने की सलाह दी जाती है।
3. सूखा नारियल या खोपरा: इसे गोला भी कहते हैं। यह नारियल की तीसरी स्टेज होती है। इसमें पानी नहीं होता। मुख्य रूप से यह तेल निकालने के लिए इस्तेमाल होता है। मिठाई आदि में भी स्वाद बढ़ाने के लिए इसे इस्तेमाल किया जाता है। इसमें फैट की मात्रा काफी ज्यादा होती है, इसलिए इसका सेवन कम ही करना चाहिए।

नारियल (मीडियम साइज) की तीनों स्टेज की न्यूट्रिशनल वैल्यू
पानी वाला नारियल
कैलरीः 15.3 किलो कैलरी
प्रोटीनः 0.26 ग्राम
फैटः 0.16 ग्राम

गिरी वाला नारियल
कैलरीः 409 किलो कैलरी
प्रोटीनः 3.84 ग्राम
फैटः 41.38 ग्राम
फाइबरः 10.42 ग्राम

सूखा नारियल
कैलरीः 624 किलो कैलरी
प्रोटीनः 7.27 ग्राम
फैटः 63.26 ग्राम
फाइबरः 15.88 ग्राम

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