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Channel: जस्ट जिंदगी : संडे एनबीटी, Sunday NBT | NavBharat Times विचार मंच
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कुछ घुमक्कड़ी हो जाए

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समर वकेशंस मई-जून में होती हैं। उस दौरान फैमिली या दोस्तों के साथ ट्रिप पर जाना है तो प्लानिंग और बुकिंग के लिए यही सबसे सही समय है। अडवांस प्लानिंग और बुकिंग से आप न सिर्फ बेहतर डील पा सकते हैं, बल्कि लास्ट मिनट की भागदौड़ से भी बच सकते हैं। एक्सपर्ट्स से पूछकर बेहतर समर वकेशंस प्लानिंग से जुड़ी तमाम जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंहः

एक्सपर्ट्स पैनल

नीरज शर्मा, चीफ पीआरओ, नॉर्दन रेलवे

अतुल बोकरिया जैन, ट्रैवल एक्सर्पट

राहुल कुमार, ट्रैवल एक्सपर्ट

कहां है जाना

सबसे पहले यह तय करें कि आप घूमने कहां जाना चाहते हैं, मसलन आपकी प्रायॉरिटी में सुकून से कुछ लम्हे बिताना है या आप कुछ एडवेंचर और फन करना चाहते हैं या फिर गर्मियों में फैमिली के साथ हिल स्टेशन की ठंडी हवाओं का लुत्फ लेना चाहते हैं। साथ ही, यह भी देखें कि आप कितने दिन का ट्रिप बनाना चाहते हैं। इन दोनों बातों के अलावा आप अपना बजट भी फिक्स कर लें।

कैसे जाना है

अब बारी आती है कि जाना कैसे है? अभी तय कर लें कि आप फ्लाइट से जाएंगे, ट्रेन से, बस से या फिर अपनी कार से। समय से रिजर्वेशन कराएंगे, तभी रेल में सीटें मिल पाएंगी तो एयर फेयर भी कम लगेगा। वैसे, ट्रैवलिंग के तीनों मोड के अपने फायदे और नुकसान हैं।

प्लेन से ट्रैवल

लंबी दूरी के लिए हमेशा फ्लाइट लेना बेहतर रहता है। बहुत सारी फ्लाइट्स स्पेशल पैकेज देती हैं। पहले बुक कराने से आपको अच्छा डिस्काउंट भी मिलता है। आप अग्रीगेटर साइट्स जैसे कि makemytrip, goibibo, yatra आदि से तमाम फ्लाइट्स को कंपेयर करके भी बेहतर डील पा सकते हैं। एयर इंडिया की वेबसाइट airindia.com पर Special Offers के तहत Air India Holidays सेक्शन में जाकर भी आप हॉलिडे बुक करा सकते हैं। ये तमाम साइट्स और दूसरी भी बहुत सारी वेबसाइट्स फ्लाइट के साथ-साथ होटल से लेकर कैब तक घर बैठे बुक कराने की सुविधा देती हैं। इसके अलावा, सस्ते ऑफर पर भी निगाह रखें। मसलन आजकल एयरएशिया का डिस्काउंट ऑफर चल रहा है। इसके तहत कंपनी 26 मार्च तक बुक कराने पर दिल्ली, कोच्ची, पुणे, बेंगलुरू, गोवा, हैदराबाद आदि का एक साइड का टिकट कुल 1399 रुपये में ऑफर कर रही है। ये टिकट 31 अगस्त तक वैलिड होंगे। इसी तरह कंपनी बैंकॉक और क्वालालंपुर जैसे विदेशी टूरिस्ट स्पॉटों के लिए 50 फीसदी तक डिस्काउंट दे रही है। ट्रैवल डेट सितंबर 2017 तक है।

ट्रेन से सफर

सुविधा के लिहाज से ट्रेन का जवाब नहीं। बच्चों को खासकर ट्रेन में ट्रैवल करना बहुत पसंद आता है। रेलवे में बुकिंग के लिए सबसे बेहतर है ऑनलाइन बुकिंग कराना। irctc.co.in या erail.in पर जाकर ऑनलाइन बुकिंग करा सकते हैं। यहां आपको ट्रेनों के बारे में पूरी जानकारी के साथ-साथ सीटों की उपलब्धता के बारे में भी पता चलता है। याद रखें कि स्लीपर वाली ज्यादातर ट्रेनों के लिए 120 दिन यानी 4 महीने पहले बुकिंग खुल जाती है। हालांकि कई ट्रेनों में बुकिंग 30 दिन पहले भी शुरू होती है। ये ट्रेन हैं, जिनमें सुविधा जुड़ा होता है या जो छोटी दूरी के एक शहर को दूसरे से जोड़ती हैं। कई दर्शनीय स्थलों के लिए चलने वाली रेलगाड़ियों की बुकिंग 30 दिन पहले ही शुरू होती है। रेलवे टूरिस्टों के लिए कई तरह के पैकेज निकालता है, जैसे कि कई धार्मिक जगहों को जोड़ने वाली आस्था सर्किट टूरिस्ट ट्रेन। यह तिरुपति, कन्याकुमारी, त्रिरुअनंतपुरम, रामेश्वरम, मदुरै जैसी अहम धार्मिक जगहों को कवर करती है। यह पैकेज करीब 10 हजार रुपये का होता है। रेलवे की साइट से ही फ्लाइट से लेकर कार तक और होटल तक बुक करा सकते हैं।

आप वेबसाइट Ticketdate की मदद ले सकते हैं, जो किसी भी ट्रेन में एडवांस बुकिंग शुरू होने की तारीख के बारे में बताती है।

इन ट्रेनों में होता है 30 दिन पहले रिजर्वेशन

- ताज एक्सप्रेस

- हिमालयन क्वीन एक्सप्रेस

- वाराणसी-लखनऊ इंटरसिटी

- शान-ए-पंजाब एक्सप्रेस

- नई दिल्ली-श्रीगंगानगर इंटरसिटी

- नई दिल्ली-बठिंडा एक्सप्रेस

- आगरा इंटरसिटी

- अमृतसर इंटरसिटी

- नई दिल्ली-जालंधर एक्सप्रेस

- दिल्ली-कोटद्वार गढ़वाल एक्सप्रेस

- लखनऊ-इलाहाबाद इंटरसिटी

- गंगा गोमती लखनऊ-इलाहाबाद एक्सप्रेस

- बरेली-नई दिल्ली इंटरसिटी

- दिल्ली-बठिंडा किसान एक्सप्रेस

- अंबाला-श्रीगंगानगर इंटरसिटी

- हरिद्वार-श्रीगंगानगर एक्सप्रेस

-गोमती एक्सप्रेस

समर स्पेशल ट्रेनें

रेलवे समर वेकेशंस को ध्यान में रखते हुए सभी बड़े शहरों से स्पेशल ट्रेन भी चलाता है। इनकी पूरी जानकारी irctc.co.in से मिल सकती है।

रेलवे का ऐप

रेलवे की बुकिंग आप ऐप से भी कर सकते हैं। IRCTC Rail Connect ऐप को आप अपने मोबाइल में डाउनलोड कर लें। यह ऐप एंड्रॉयड के लिए है और फ्री है।

हेल्पलाइन

रेलवे से सफर के दौरान बिजली, पानी, लाइट, डॉक्टर जैसी मदद के लिए 138 और सिक्योरिटी संबंधी शिकायत के लिए 182 पर कॉल करें।

ऐसे पाएं ट्रेन टिकट

कई बार आपकी पसंद की ट्रेन में फटाफट टिकट फुल हो जाती हैं। ऐसे में आप पहले से तैयारी करके रखें तो आसानी से टिकट बुक करा सकते हैं:

- ऑनलाइन टिकट बुक करने के लिए अपने कंप्यूटर या लैपटॉप में टिकट बुक करने से पहले नोटपैड की फाइल खोल कर रखें। उसमें बुकिंग से जुड़ी सारी जानकारी भर लें ताकि फॉर्म भरते वक्त आपको ज्यादा टाइम न लगे। आप कॉपी-पेस्ट का सहारा लेकर फटाफट फॉर्म भर सकते हैं।

- irctc की साइट पर पैसेंजर लिस्ट सेव करके रखने का ऑप्शन भी है। यह मास्टर लिस्ट, ट्रैवल लिस्ट के जरिए मुमकिन है और आप इसे जरूरत के हिसाब से बदल भी सकते हैं।

- ऑनलाइन बुकिंग शुरू होने से करीब 15 मिनट पहले आप लॉग-इन कर लें। फिर जरूरी जानकारी भर कर तैयार हो जाएं। जैसे आईआरसीटीसी के फॉर्म में सोर्स, डेस्टिनेशन, यात्रा की तारीख, क्लास आदि भर लें। अब आप बुक करने वाले ऑप्शन पर कई बार क्लिक करें ताकि जैसे ही ऑप्शन खुले आपका टिकट बुक हो जाए।

- पैसेंजर डिटेल्स पेज पर आप ज्यादा समय न बिताएं। जानकारों के अनुसार, साइट पर कम समय बिताने वाले लोगों को आसान कैप्चा कोड मिलता जबकि ज्यादा समय बिता चुके लोगों को कठिन कोड मिलता है। कैप्चा की बात इसलिए अहम है क्योंकि करीब 60 फीसदी लोग कैप्चा कोड पहली बार में सही नहीं भर पाते। ऐसे में इसे गौर से भरें।

- बुकिंग कराते हुए आपकी इंटरनेट स्पीड अच्छी होनी चाहिए। आप कम-से-कम 2 Mbps स्पीड का इंटरनेट कनेक्शन रखें। साथ ही, जब टिकट बुक कर रहे हैं तब सुनिश्चित करें कि एक ही साइट पर काम हो रहा हो। कई टैब न खुले हों।

बस से सफर

आजकल तमाम लग्जरी और वॉल्वो बसें छोटी और लंबी दूरी के लिए उपलब्ध हैं। ये काफी सुविधाजनक होती हैं। redbus.com, shatabditravels.co.in, volvoluxurybuses.com, theluxurybuses.com आदि से आप इन बसों की बुकिंग करा सकते हैं।

कार ट्रिप

अगर आप छुट्टी बिताने के लिए 6-8 घंटों की दूरी पर जाना चाहते हैं तो कार से भी जा सकते हैं। इससे आप एयर या ट्रेन या बस का टिकट बुक कराने के झंझट से बच जाते हैं और आपको एडवांस में बुकिंग की जरूरत नहीं होती। कार से जाते हुए आप कुछ बातों का ध्यान रखें मसलन छोटी कार है तो 4 से ज्यादा लोग न हों और दो लोग ड्राइव करनेवाले हों तो बेहतर है। कार सर्विस करा लें। इसमें एसी से लेकर कूलेंट तक की सही जांच करा लें। एक सही स्टप्नी जरूर रखें। निकलने से पहले टायर में हवा चेक करा लें और टंकी फुल करा लें। साथ ही, पानी का बंदोबस्त भी कर लें। अगर ड्राइविंग से बचना चाहते हैं तो किराये पर कार ले सकते हैं। यह आमतौर पर 12-15 रुपये प्रति किमी चार्ज करते हैं।

बुक कराएं रूम

oyorooms और goibibo जैसी साइट्स आपको कम रेट में अच्छी रिहायश मुहैया कराती हैं। इनकी खासियत यह है कि कई छोटे गेस्ट हाउस और होटल आदि भी इनके पास लिस्टेड होते हैं। ऐसे में इनके पास कम रेट में भी अच्छे कमरे मिल जाते हैं। makemytrip, yatra, trivago जैसी तमाम एग्रिगेटर साइट्स अक्सर काफी अच्छी डील ऑफर करती हैं। वहां से होटल रूम बुक कराने पर कई बार 50 फीसदी तक डिस्काउंट मिल जाता है। इसके अलावा आप होम स्टे (airbnb) का ऑप्शन भी अपना सकते हैं। इनकी जानकारी भी आपको इंटरनेट से मिल जाएगी। होम स्टे यूं तो पूरी तरह सेफ है लेकिन फिर भी आमतौर पर फैमिली के साथ लोग इस ऑप्शन को ज्यादा नहीं अपनाते। होम स्टे अक्सर ग्रुप में ट्रैवल करने वाले युवा अपनाते हैं।

बच्चों हों जब साथ

- छुट्टियों की प्लानिंग करते वक्त बच्चों को भी उसमें शामिल करें। उनकी पसंद की जगह पूछें और बजट के बारे में डिस्कस करें।

- बच्चों को साथ लेकर जा रहे हैं तो रास्ते में उनके खेलने के लिए गेम्स आदि रखें, ताकि उनका मन लगा रहे और वे आपको तंग न करें।

- ऐसी जगह बुक कराए, जहां बच्चों के लिए वक्त बिताने का अच्छा जरिया हो, मसलन स्वीमिंग पूल और गेम्स जोन हो। बच्चों को इन जगहों पर बड़ा मजा आता है।

- छुट्टियों में बच्चों के साथ वक्त बिताएं। उनके साथ गेम्स खेलें।

- पानी और खाने का सामान जरूर साथ लेकर चलें। बच्चे अक्सर लंबे ट्रैवल में बोर हो जाते हैं। तब वे कुछ-न-कुछ खाने को मांगते हैं।

ऐसे बनेगा बेस्ट ट्रिप

- किसी टूरिस्ट स्पॉट पर ऑफ सीजन में जाना ज्यादा फायदेमंद रहता है। यह सस्ता तो पड़ता ही है, साथ ही आप भीड़ से भी बच जाते हैं। इसी तरह वीकएंड के बजाय वीकडेज पर छुट्टियां प्लान करें। इस दौरान फ्लाइट से लेकर होटल तक के रेट कम होते हैं।

- बहुत पॉपुलर टूरिस्ट स्पॉट के बजाय उसके आसपास के कम चर्चित टूरिस्ट स्पॉट पर जाना बेहतर है, जैसे कि शिमला के बजाय करीब 45 किमी दूर स्थित चायल जा सकते हैं। इससे पैसा भी कम खर्च होगा और भीड़ से भी बच जाएंगे।

- महंगे रेजॉर्ट के बजाय किसी सिंपल और अच्छे से रेजॉर्ट में ठहर सकते हैं। इससे फालतू पैसा नहीं लगेगा। वैसे भी, छुट्टियों का मकसद फैमिली के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताना होना चाहिए, न कि फिजूलखर्ची।

- बुकिंग कराते हुए दूसरे एजेंट्स या वेबसाइट्स से भी रेट जरूर लें। इनमें जो सबसे कम रेट पर ट्रिप दे, उसे ही चुनें।

- ग्रुप में घूमने का प्लान बनाना बेहतर है। एक फैमिली को और साथ ले लें। शेयरिंग की वजह से यह करीब 40 फीसदी तक सस्ता पड़ता है, साथ ही सिक्योरिटी भी ज्यादा होती है।

- जब भी घूमने जाएं, पैकिंग हल्की रखें। अगर दो-तीन बैग हैं तो सभी के कपड़े और बाकी सामान सभी बैग्स में बांटकर रखें। इससे एकाध बैग के चोरी होने या खोने पर दूसरे बैग में सबका कुछ सामान बच रह सकेगा। पैकिंग की प्लानिंग के लिए travelschecklist.com और eaglecreek.com जैसी वेबसाइट्स की भी हेल्प ले सकते हैं।

- ट्रैवल में अपने पैसों को हमेशा अलग-अलग करके रखें ताकि चोरी आदि होने पर कुछ पैसे आपके पास जरूर हों। पासपोर्ट, लाइसेंस, आईडी कार्ड जैसे जरूरी कागजात संभाल कर रखें।

- डेस्टिनेशन पर पहुंचने के बाद एयरपोर्ट से रिजॉर्ट आदि के लिए कैब पहले ही बुक कर लें तो बेहतर है। makemycab.co, mytaxi.com जैसी साइट्स के अलावा बाकी बड़ी ट्रैवल एजेंसियां भी इसमें मददगार साबित हो सकती हैं। हालांकि ये महंगी पड़ती हैं। पैसा बचाने चाहते हैं तो एयरपोर्ट या स्टेशन से निकलकर ओला, उबर की सर्विस लेना ज्यादा फायदेमंद है।

- जहां आप घूमने जाएं, जरूरी नहीं कि वहां से परिवार और दोस्तों के लिए कोई गिफ्ट लेकर ही आएं। अक्सर टूरिस्ट प्लेस पर चीजें महंगी मिलती हैं। इससे पैकिंग में जगह भी कम पड़ जाती है।

- अगर किसी वजह से बजट नहीं बन पा रहा तो परेशान न हों। आप फैमिली के साथ लॉन्ग ड्राइव या पास में रहनेवाले रिश्तेदारों के यहां भी जा सकते हैं।

अच्छी डील्स यहां पाएं

- tripadvisor.com

- trivago.com

- yatra.com

- makemytrip.com

- goibibo.com

- oyorooms.com

- expedia.co.in

- farecompare.com

- roomwale.com

- ezeego1.com

- lastminutetravel.com

- hotels.com

- myguesthouse.com

- couponcodesindia.net

बेस्ट टूरिस्ट स्पॉट

शांति और सुकून के लिए

तवांग

कहां: अरुणाचल प्रदेश में, गुवाहाटी (असम) से 413 किमी दूर

माथेरान

कहां: महाराष्ट्र में, मुंबई से 100 किमी दूर

हॉर्सले हिल्स

कहां: आंध्र प्रदेश में, तिरुपति से 144 किमी दूर

बिनसर

कहां: उत्तराखंड में, अल्मोड़ा से 26 किमी दूर

लैंसडाउन

कहां: उत्तराखंड में, कोटद्वार से 41 किमी दूर

धनौल्टी

कहां: उत्तराखंड में, मसूरी से 24 किमी दूर

हिल स्टेशन

पहलगाम

कहां: जम्मू-कश्मीर में, अनंतनाग हेडक्वॉर्टर से 45 किमी दूर

गुलमर्ग

कहां: जम्मू-कश्मीर में, श्रीनगर से 57 किमी दूर

लद्दाख

कहां: जम्मू-कश्मीर में

पटनी टॉप

कहां: जम्मू से 112 किमी दूर जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर

शिमला

कहां: हिमाचल प्रदेश में, चंडीगढ़ से 100 किमी दूर

चैल

कहां: हिमाचल प्रदेश में, शिमला से 49 किमी दूर

कसौली

कहां: हिमाचल प्रदेश में, कालका से 35 किमी दूर

धर्मशाला

कहां: हिमाचल प्रदेश में, पठानकोट से 80 किमी दूर

मनाली

कहां: हिमाचल प्रदेश में, शिमला से 250 किमी दूर

नैनीताल और रानीखेत

कहां: उत्तराखंड में

मुन्नार

कहां: केरल के इदुक्की जिले में

कलिम्पोंग

कहां: प. बंगाल में, दार्जिलिंग से 51 किमी दूर

दार्जिलिंग

कहां: प. बंगाल में, सिलिगुड़ी से 100 किमी दूर

शिलॉन्ग

कहां: मेघालय में, गुवाहाटी (असम) से 110 किमी दूर

सापूतारा

कहां: गुजरात में, नासिक से 80 किमी दूर

पंचगनी

कहां: महाराष्ट्र में, पुणे से 100 किमी दूर

पचमढ़ी

कहां: मध्य प्रदेश में पिपरिया से 47 किमी दूर

ऊटी

कहां: तमिलनाडु में, कोयंबटूर से 105 किमी दूर

कूर्ग

कहां: कर्नाटक में, मैसूर से 120 किमी दूर

एडवेंचर के लिए

गंगोत्री

कहां: उत्तराखंड में, उत्तरकाशी से 105 किमी दूर

ऋषिकेश

कहां: उत्तराखंड में, हरिद्वार से 25 किमी दूर

हर की दून

कहां: उत्तराखंड के यमुनोत्री जिले में

सरपास

कहां: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती वैली में

डंडेली बीच

कहां: गोवा से 125 किमी दूर, कर्नाटक में

कोडाईकनाल

कहां: तमिलनाडु में मदुरै से 120 किमी दूर

गांव के सोंधे अहसास के लिए

कॉर्बेट विलेज

कहां: उत्तराखंड में नैनीताल से पहले

रंगभंग विलेज

कहां: प. बंगाल में दार्जिलिंग पुलबाजार से 11 किमी दूर

बारामती अग्रीटूरिज़म सेंटर

कहां: महाराष्ट्र में, पुणे से 75 किमी दूर

गुरेज और तुलैल घाटी

कहां: जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर से 130 किमी दूर

हेल्थ और स्पा के लिए

मालाबार हाउस

कहां: केरल में, फोर्ट कोचीन के हेरिटेज जोन में

स्पाइस विलेज

कहां: केरल में, पेरियार वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी के पास

ताज गार्डन रिट्रीट

कहां: केरल के कुमाराकोम में

आनंदा स्पा

कहां: उत्तराखंड में, ऋषिकेश से 45 किमी दूर

बीच यानी समुद्र तटों के लिए

गोवा, अंडमान, केरल और लक्षदीप के बीच काफी पॉपुलर हैं। लेकिन गर्मियों में बीच पर उमस ज्यादा होती है, इसलिए इन्हें इस सीजन के लिए अच्छा टूरिस्ट स्पॉट नहीं माना जाता।

विदेश यात्रा की पूरी जानकारी के लिए पढ़ें: nbt.in/foreigntrip

देश भर में घूमने की बेहतरीन जगहों के लिए पढ़ें: nbt.in/nbttravel


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जब बिगड़ जाए ब्रेन!

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पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 'मन की बात' प्रोग्राम में मानसिक रोगों पर चर्चा की। इसके अगले ही दिन संसद ने मेंटल हेल्थ केयर बिल 2016 को मंजूरी दे दी। बेशक मानसिक रोग लाइलाज नहीं हैं। सही इलाज और काउंसलिंग के जरिए इन समस्याओं से बाहर निकला जा सकता है। एक्सपर्ट्स से बात करके पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रसन्न प्रांजल:

एक्सपर्ट्स पैनल

डॉ. निमेष जी. देसाई, डायरेक्टर, IHBAS

डॉ. समीर पारिख, डायरेक्टर ऑफ मेंटल हेल्थ, फोर्टिस हेल्थकेयर

अरुणा ब्रूटा, सीनियर सायकॉलजिस्ट

योगी अमृत राज, योग गुरु

हाजीपुर (बिहार) के 25 साल के राकेश शाह गंभीर मानसिक रोगी थे। रांची के मेंटल हॉस्पिटल में लगातार तीन साल के इलाज के बाद आज वह पूरी तरह सेहतमंद हैं। तीन साल के इलाज में उन्हें सिर्फ दो महीने हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा, बाकी समय वह रेग्युलर चेकअप और काउंसलिंग कराते थे। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और परिवार के धीरज ने उन्हें फिर से एक नई जिंदगी दी। आज वह पूरी तरह से हेल्दी लाइफ जी रहे हैं और पुराने दिनों को याद भी नहीं करना चाहते।

उत्तराखंड के घनश्याम रावत को 27 साल की उम्र में सिजोफ्रीनिया हुआ था। शुरुआत में वह इलाज के लिए तैयार नहीं हो रहे थे, इसलिए परिवारवाले काफी परेशान थे। काफी समझाने के बाद वह डॉक्टर से दिखाने के लिए तैयार हुए तो इस बात पर अड़ गए कि हॉस्पिटल नहीं जाएंगे। आखिरकार परिवारवालों ने एक सायकायट्रिस्ट को उन्हें घर आकर देखने के लिए राजी कर लिया। डॉक्टर ने उनकी काउंसिलिंग की और वह इलाज में सहयोग करने के लिए राजी हो गए। उनका इलाज बेंगलुरु स्थित निमहंस में शुरू हुआ। कुछ महीनों के इलाज के बाद वह सामान्य जिंदगी जीने लगे। अब 32 साल के घनश्याम पूरी तरह से सेहतमंद हैं और नॉर्मल जिंदगी जी रहे हैं। ऐसे ढेरों उदाहरण हैं। आमतौर पर 90 फीसदी मामलों में बीमारी का इलाज हो जाता है। इहबास, निमहंस समेत देश के तमाम मेंटल हॉस्पिटलों से मरीज बिल्कुल ठीक होकर सामान्य जिंदगी जी रहे हैं।

दरअसल, मानसिक रोगों में सिजोफ्रीनिया बहुत कॉमन है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसका इलाज मुमकिन है। इसका मरीज असमान्य व्यवहार करता है, भ्रम की स्थिति में जीता है और उसे ऐसी बातें सुनाई देती हैं जो दूसरों को नहीं सुनाई देतीं। वह उन चीजों को वास्तविक मान लेता है जो असल में होती ही नहीं हैं। ऐसा शख्स असलियत और काल्पनिक घटनाओं में फर्क नहीं कर पाता। खुद को और अपनी हरकतों को सही मानता है जबकि वे गलत होते हैं। उसे लगता है कि दूसरे लोग उस पर कंट्रोल रखना चाहते हैं, उनकी पर्सनल लाइफ में दखल देना चाहते हैं या उसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। ऐसा शख्स आसपास की दुनिया से पूरी तरह से अलग-थलग हो जाता है और मेडिकल हेल्प लेने से भी इनकार कर देता है। कई बार वह खुद या दूसरों के प्रति हिंसक भी हो जाता है। इससे पीड़ित अक्सर डिप्रेशन या दूसरी मानसिक बीमारियों से भी पीड़ित हो जाता है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, इससे ग्रस्त व्यक्ति को पागल या इनसेन नहीं कह सक सकते। इसकी बजाय गंभीर रूप से मानसिक बीमार या गंभीर मानसिक रोगी कहना सही है।

लक्षण

- अजीबोगरीब बर्ताव, उलटी-सीधी बातें करना

- जो वास्तव में है ही नहीं, उसे सच मानना

- काफी कम या बहुत ज्यादा बोलना

- आंखों का मूवमेंट बिल्कुल अलग होना

- अपने घर के सभी दरवाजे और खिड़कियों को बंद कर लेना

- मन में डर कि कोई उसे या उसके परिवार के सदस्यों को मारने की कोशिश कर रहा है

- दबे-सहमे रहना या काफी आक्रामक हो जाना

- बात-बात पर गुस्सा होना

- गुस्से में तोड़-फोड़ और मारपीट करना

- बेवजह जोर-जोर से हंसना या रोना

- आत्महत्या की कोशिश करना

- सामान्य स्थिति के उलट प्रतिक्रिया, मसलन जब सभी लोग दुखी हैं तो जोर-जोर से हंसना

कारण

- दिमाग में केमिकल्स का असंतुलन

- जेनेटिक वजहें, यानी परिवार में किसी और को यह बीमारी हो

- प्रेग्नेंसी में मां को पूरा पोषण न मिलना या बहुत ज्यादा तनाव में रहना

- ड्रग्स और शराब का बहुत ज्यादा सेवन करना

- हर वक्त निगेटिव सोच रखना

- लगातार काम में लगे रहना, बेचैन रहना

- पूरी नींद न लेना

इलाज

यह लाइलाज बीमारी नहीं है। अगर समय रहते बीमारी की पहचान हो जाती है तो इसका इलाज पूरी तरह से मुमकिन है। बीमारी गंभीर होने पर ठीक होने में थोड़ा वक्त लग सकता है। वैसे तो लक्षणों और अवस्था के आधार पर दवा और थेरपी दी जाती है, लेकिन आमतौर पर ऐसे मरीजों को एंटी-सायकोटिक या मनोरोग निरोधी दवाएं दी जाती हैं। कुछ मामलों में इलेक्ट्रो कन्वल्सिव थेरपी (ईसीटी) यानी इलेक्ट्रिक शॉक के जरिए भी इलाज किया जाता है। दवाओं का असर होनेक और मरीज के कुछ ठीक होने के साथ ही सायकायट्रिस्ट का काम शुरू होता है। रेग्युलर काउंसलिंग और बेहतरीन पारिवारिक माहौल देने पर काफी जल्दी मरीज में सुधार दिखने लगता है। दरअसल, बाकी बीमारियों की तरह इसे भी एक बीमारी समझकर वक्त पर इलाज की जरूरत है।

इलाज का तरीका- पहले और अब

निमहंस और इहबास जैसे कुछेक अस्पतालों में मनोरोगियों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा रही है। हालांकि छोटे अस्पतालों और कुछ दूसरी जगहों पर अभी तक गंभीर मनोरोगियों का इलाज गलत तरीके से किया जा रहा था, जैसे कि उन्हें जंजीरों में जकड़ कर रखना, इलेक्ट्रिक शॉक देना आदि। लेकिन अब मेंटल हेल्थ केयर बिल 2016 ने इन सब तरीकों पर पाबंदी लगा दी है। अब समाज की मुख्यधारा के साथ जोड़कर इनके इलाज और रिहैबिलिटेशन पर फोकस किया जाएगा। इस बिल की गाइडलाइंस के अनुसार ही अब इलाज होगा। बिल में इलेक्ट्रिक शॉक को अमानवीय माना गया है। नाबालिगों को यह थेरपी नहीं दी जाएगी। जरूरत पड़ने पर अडल्ट्स को अनीस्थिसिया देकर यह थेरपी दी जा सकती है। अब मनोरोगियों का इलाज पूरी तरह से मेडिसिन और काउंसलिंग पर आधारित होगा।

योग भी है असरदार

योग से सिजोफ्रीनिया और तमाम तरह के मनोरोगों का इलाज संभव है। शरीर, मन और आत्मा को चुस्त-दुरुस्त रखने और इसके कारणों को दूर करने में योग काफी कारगर है। आसन, प्राणायाम और ध्यान के जरिए इन समस्याओं से निपटने में मदद मिलती है। रोजाना 30 मिनट योगासन, 15 मिनट प्राणायाम और 15 मिनट ध्यान लगाएं। भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम, कपालभाति प्राणायाम और सर्वांगासन, हलासन, शीर्षासन, सूर्य नमस्कार, शवासन, वज्रासन आसन खासतौर पर फायदेमंद हैं। इसके अलावा, पंचकर्म क्रिया की भी मदद ली जाती है। इससे शरीर की सफाई होती है और सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है।

नोट: ये सभी आसन और प्राणायाम किसी एक्सपर्ट योग गुरु की सलाह पर ही करें।

परिवार व समाज की भूमिका अहम

एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस बीमारी से निपटने में परिवार और दोस्तों की काफी अहम भूमिका है। परिवार और दोस्तों को मिल कर मरीजों के साथ इमोशनल रिश्ते मजबूत करने चाहिए। कभी भी मरीज को अकेलेपन का अहसास नहीं होने देना चाहिए क्योंकि बीमारी होने के पीछे अकेलापन एक अहम कारण होता है। साथ ही, मरीज को यह अहसास न होने दें कि वह असामान्य है। उससे दिल को पसंद आने वालीं बातें करें और नेगेटिव बातें तो बिल्कुल न करें। चाहे मरीज का अपने दिमाग पर पूरी तरह कंट्रोल न हो, तब भी उसके अनुभवों के बारे में उससे बातचीत करते रहना चाहिए। अगर वह किसी ऐसी बात के लिए कह रहा है जो आपको वास्तविक नहीं लगता तो भी आप उसे डांटें नहीं या उसके साथ मारपीट न करें। उसके साथ प्रेम से पेश आएं और उसे समझने की कोशिश करें। अपने इलाके में अगर कोई सपोर्ट ग्रुप हो तो उसकी मदद लेने की कोशिश करें। शुरुआती लक्षणों को देखकर रोगी को सायकायट्रिस्ट या साइकॉलजिस्ट के पास ले जाएं।

सायकायट्रिक यानी मनोचिकित्सक एक डॉक्टर होता है और वह मेडिकल साइंस का जानकर होता है। मेडिसिन और साइकोथेरपी की सलाह सायकायट्रिक ही देते हैं। सायकॉलजिस्ट मनोवैज्ञानिक होते हैं और मनुष्यों के व्यवहार के विशेषज्ञ होते हैं। सायकॉलजी में डिग्री हासिल करने वाले सायकॉलजिस्ट बनते हैं। ये मनुष्यों के हाव-भाव देखकर और उनसे बातचीत कर उनकी परेशानियों को समझने का काम करते हैं। आमतौर पर सायकॉलॉजिस्ट काउंसलिंग का काम करते हैं।

परिवार के अलावा समाज भी ऐसे रोगियों को ठीक करने में अहम भूमिका निभा सकता है। अक्सर मनोरोगियों के साथ सामाजिक भेदभाव किए जाते हैं। समाज को मानना होगा कि दूसरी बीमारियों की तरह यह भी एक बीमारी है और इसे बीमारी के रूप में ही देखना चाहिए। जैसे दूसरी बीमारियां दवाओं से ठीक हो सकती हैं, वैसे ही मनोरोगी भी मेडिसिन और बेहतरीन माहौल मिलने पर जल्दी ही ठीक हो सकते हैं। समाज का सबसे बड़ा कर्तव्य तो यह है कि कभी भी किसी भी मनोरोगी को उसके मुंह पर मनोरोगी न बोलें। यह उस व्यक्ति को काफी दुख पहुंचाता है जो गंभीर मानसिक विकार से ग्रस्त है। ऐसे व्यक्तियों को सहानुभूति और प्यार की जरूरत होती है न कि नफरत और दुत्कार की। ऐसे में समाज को ऐसे लोगों के प्रति नजरिया बदलने की जरूरत होती है।

चंद अहम सवाल और जवाब

मानसिक रोगी को किस डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए? अगर मरीज हॉस्पिटल न जाना चाहे तो क्या उपाय है?

सबसे पहले मरीज को सायकायट्रिस्ट के पास ले जाना चाहिए। इसके बाद सायकॉलजिस्ट के पास। मरीज को प्यार से समझाते हुए डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। उससे कभी भी यह न कहें कि वह मानसिक रूप से बीमार है और उसे इलाज की जरूरत है। नए बिल के अनुसार, किसी मरीज के साथ जबरदस्ती नहीं की जा सकती। साउथ इंडिया और दिल्ली में पायलट प्रोजेक्ट के तहत 'मोबाइल मेंटल हेल्थ यूनिट' पर भी काम चल रहा है। यह मरीजों के घर तक पहुंचकर उन्हें मेडिकल हेल्प देने का काम करेगी। ऐसे में जो मरीज काबू में नहीं है, उन्हें घर पर ही फर्स्ट ऐड मिल जाएगा। उम्मीद है कि बहुत जल्द यह सेवा देश के सभी शहरों में शुरू हो जाएगी।

क्या बीमारी की जांच के लिए एमआरआई या सीटी स्कैन भी किया जाता है?

इसके लिए एमआरआई या सीटी स्कैन नहीं होता बल्कि मानसिक जांच और ऑब्जर्वेशन के जरिए सायकॉलजिस्ट मरीज की बीमारी का पता लगाते हैं।

क्या हर मामले में हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ता है?

बहुत गंभीर मामलों में ही हॉस्पिटल में एडमिट किया जाता है। ज्यादातर मामलों में एडमिट होने की जरूरत नहीं होती। घर में रहकर भी इसका इलाज हो सकता है।

क्या मरीज को शॉक ट्रीटमेंट देना जरूरी है?

ऐसा नहीं है। सभी अच्छे हॉस्पिटल में दवाओं और काउंसलिंग के जरिए ही इलाज किया जाता है। मेंटल हेल्थ केयर बिल 2016 के अनुसार अब बहुत जरूरी होने पर ही शॉक दिया जाएगा और वह भी अनीस्थिसिया का उपयोग करके।

क्या यह लाइलाज भी होता है?

बीमारी के जल्दी पकड़ में आने और जल्दी इलाज शुरू होने पर काफी हद तक सुधार की गुंजाइश रहती है। अगर बीमारी काफी गंभीर हो और मरीज सही इलाज नहीं करा रहा या घर में अच्छा माहौल नहीं मिल रहा तो कुछ मामलों में मरीज का दुरुस्त होना मुश्किल हो जाता है।

यहां से मिल सकती है मदद

इहबास सहित दिल्ली, मुंबई और साउथ इंडिया के कई शहरों में रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाए जा रहे हैं। यहां उन मरीजों को रखा जाता है, जिन्हें उनके घरवाले अपनाने को तैयार नहीं होते। इनके अलावा बेघरों और गरीब मानसिक रोगियों को भी इलाज के बाद ऐसे केंद्रों में रखे जाने की सुविधा है। उन्हें अस्पताल से बाहर इन केंद्रों में घर जैसी सुविधा और माहौल दिया जाता है ताकि वे जल्द से जल्द ठीक हो सकें। इसके अलावा देश में कई एनजीओ हैं, जो मानसिक रोगियों के पुनर्वास में जुटे हैं:

केयरिंग फाउंडेशन

35, डिफेंस ऐन्क्लेव, विकास मार्ग, नई दिल्ली

फोन: 011-2251-4726-27, 2245-9714/16

संजीवनी सोसायटी ऑफ मेंटल हेल्थ

एच ब्लॉक नॉर्थ, डिफेंस कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे, नई दिल्ली

फोनः 011-4311-918/ 6862-222

अंजलि मेंटल हेल्थ राइट्स ऑर्गनाइजेशन

93/2, कंकुलिया रोड, बेनुबोन

कोलकाता, वेस्ट बंगाल

वेबसाइटः anjalimentalhealth.org

मानव फाउंडेशन

168, टायर हाउस, लैमिंगटन क्रॉस रोड, अलीभाई प्रेमजी मार्ग, ग्रांट रोड (ईस्ट), मुंबई

फोन: 022-80970-83518, 022-2300-8984

वेबसाइटः manavfoundation.org.in

श्रद्धा रिहैबिलिटेशन फाउंडेशन

बोरीवली, मुंबई

फोनः 022-2895-5020, 98205-68215/98670-56433

वेबसाइटः shraddharehabilitationfoundation.org

कहां करा सकते हैं इलाज

बेंगलुरु स्थित नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निमहंस) और दिल्ली के इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज (इहबास) में बेहतरीन इलाज मुमकिन है। इसके अलावा आगरा, तेजपुर, अमृतसर और रांची स्थित मेंटल हेल्थ सेंटर में भी इलाज उपलब्ध है। यहां पुराने मॉडल में सुधार कर इलाज के तौर-तरीकों को मरीजों के अनुकूल बनाया जा रहा है। देश भर में 45 शहरों में सरकारी मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल हैं, जहां पर मुफ्त में या नाममात्र की फीस पर बेहतरीन मेडिकल सुविधा उपलब्ध है।

प्रमुख हॉस्पिटल

नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज, बेंगलुरु

वेबसाइटः nimhans.ac.in

इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज, दिल्ली

वेबसाइटः ihbas.delhi.gov.in

इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड हॉस्पिटल, आगरा, यूपी

वेबसाइटः imhh.org.in

एलजीबी रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, तेजपुर, असम

वेबसाइटः lgbrimh.gov.in

सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ सायकायट्री, रांची, झारखंड

वेबसाइटः cipranchi.nic.in

इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, अमृतसर, पंजाब

वेबसाइटः imhamritsar.org

इंस्टिट्यूट ऑफ सायकायट्री एंड ह्यूमन बिहेवियर, पणजी, गोवा

वेबसाइटः iphb.goa.gov.in

स्टेट मेंटल हेल्थ इंस्टिट्यूट, पंडित बीडी शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज, रोहतक, हरियाणा

वेबसाइटः uhsr.ac.in

मेंटल हॉस्पिटल, इंदौर, मध्य प्रदेश

वेबसाइटः mentalhospitalindore.com

नोटः देश के अन्य 45 शहरों में भी सरकारी मेंटल हॉस्पिटल हैं।

काम के ऐप

Mental Health Recovery Guide

Improving your mental Health

Mental Disorders

काम की वेबसाइट्स

schizophrenia.com

medindia.net

world-schizophrenia.org

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ऑटिजम: हौले-हौले हो जाता है सुधार

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ऑटिज़म... अगर नाम से नहीं समझ आ रहा तो 'माई नेम इज खान' के शाहरुख खान या डेली सोप 'आपकी अंतरा' की अंतरा को याद करें। ये दोनों ही किरदार ऑटिज़म से पीड़ित दिखाए गए हैं। हमारे देश में करीब 1.8 करोड़ मरीज हैं ऑटिज़म के। दिक्कत यह है कि इसे दवाओं से भी पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन सही माहौल और देखभाल से राह काफी आसान हो जाती है। एक्सपर्ट्स से बात करते ऑटिज़म पर जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंहः

ऑटिज़म एक मानसिक बीमारी है, जिसे स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी कहते हैं। इसके लक्षण जन्म से या बचपन से ही दिखाई देने लगते हैं। जिन बच्चो में यह बीमारी होती है, उनका मानसिक विकास दूसरे बच्चों से बहुत धीमा होता है। उनका बर्ताव भी बाकी बच्चों से काफी अलग होता है। अक्सर पैरंट्स के लिए बहुत कम छोटे बच्चों में इस बीमारी के लक्षणों को पहचान पाना मुश्किल होता है। अक्सर 3 साल की उम्र या इसके बाद पैरंट्स का ध्यान इस ओर जाता है। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है और उसके बर्ताव में कुछ असमान्यताएं दिखाई देती हैं, तो इस बीमारी के बारे में पता लगता है।

इससे पीड़ित बच्चे में आमतौर पर बातचीत और कल्पना की कमी पाई जाती है। उसे अपने आसपास की चीजों को समझने और रिएक्ट करने में दिक्कत होती है। बच्चे को अपनी बात कहने के लिए सही शब्द नहीं मिलते। कई बार सही शब्द की तलाश में एक ही वाक्य को दोहराता रहता है। बच्चे के मन के भाव बहुत जल्दी बदलते रहते हैं। जो बच्चा अभी बहुत खुश दिख रहा था, वही थोड़ी देर में बहुत दुखी दिखाई देगा। वह मारपीट भी कर सकता है या खुद को नुकसान पहुंचा सकता है। शुरुआत में कई पैंरंट्स को लगता है कि बच्चा सुन नहीं सकता या फिर उसे एडीडी (अटेंशन डिफिसिएट डिसऑर्डर) है। बाद में पता लगता है कि वह ऑटिज़म से पीड़ित है।

क्या है वजह

डॉ. शांभवी सेठ, डिवेलपमेंटल पीडियाट्रिशन, बी. एल. कपूर हॉस्पिटल के अनुसार ऑटिज़म की वजह के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। जिनेटिक, हेवी मेटल्स का ज्यादा इस्तेमाल, मां की ज्यादा उम्र, उसका ज्यादा तनाव में रहना, डिलिवरी के वक्त बच्चे के दिमाग में ऑक्सिजन का न जाना जैसी वजहों को इसके पीछे माना जाता है। हालांकि इन पर भी अभी रिसर्च जारी है। अगर एक बच्चे में ऑटिज़म है तो दूसरे में भी बीमारी होने के चांस 10 फीसदी तक होते हैं।

क्या हैं लक्षण

- बच्चे का मानसिक विकास धीमा हो जाना, कभी-कभी शारीरिक भी

- बोलना देर से सीखना, आंख मिलाकर बात न करना

- दूसरों की बातचीत समझने में दिक्कत होना

- साइन लैंग्वेज को भी नहीं समझ पाना

- एक ही शब्द या वाक्य को बार-बार दोहराना

- अपनी दुनिया में खोए रहना

- आसपास के लोगों के प्रति उदासीन हो जाना

- किसी से ज्यादा बातचीत करना या घुलना-मिलना पसंद न करना

- अक्सर खुद को किसी-ना-किसी तरह नुकसान पहुंचाना

- बार-बार सिर या हाथ हिलाना, आवाजें निकालना या एक ही तरह का बर्ताव करना

- देर तक एक ही तरफ देखते रहना

- एक ही गाना, एक ही कलर, एक ही तरह का खाना आदि पसंद आना

- जरा-सा भी बदलाव होने पर बेचैन हो जाना

- कब्ज, पाचन संबंधी समस्या और नींद न आने जैसे लक्षण भी दिखना

ऐसे पहचानें बीमारी को

- बच्चे की गतिविधियों पर गौर करें। 6 महीने की उम्र के बाद बच्चे में मुस्कराना या दूसरे खुशी के हाव-भाव नहीं होना। 9 महीने की उम्र में या उसके बाद तक आवाज नहीं सुनना, मुस्कराना या चेहरे के दूसरे हाव-भाव पर प्रतिक्रिया नहीं करना। 12 महीने की उम्र तक इशारा करने, हाथ हिलाने पर कोई प्रतिक्रिया न करना। 16 महीने की उम्र में कोई भी शब्द नहीं बोलना। 24 महीने की उम्र में दो शब्दों वाले वाक्यांश ढंग से नहीं बोल पाना। इन सबसे ऑटिज़म का अंदाजा लगाया जा सकता है।

ऑटिज़म के मरीज को कैसे संभाले

अक्सर पैरंट्स के लिए ऑटिज़म ग्रस्त बच्चे को संभालना मुश्किल होता है। उन्हें समझ नहीं आता कि बच्चे के साथ कैसा बर्ताव करें। पैरंट्स को कुछ चीजों का ध्यान रखना चाहिएः

- सबसे पहले पैरंट्स स्वीकार कर लें कि हमारे बच्चे में कोई कमी है। हालांकि पैरंट्स के लिए अपने बच्चे की कमी या कमजोरी स्वीकार करना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन ऐसा करने से समस्याएं काफी कम हो जाती हैं।

- डॉ. संजीव बगई, सीनियर पीडियाट्रिशन के अनुसार बच्चे को हर समय डांटने की बजाय उसके दोस्त बनें। ऐसे बच्चों का सोशल सर्कल बहुत कम होता है और इनके दोस्तों की लिस्ट भी ज्यादा नहीं होती इसलिए इन्हें दोस्त की कमी कभी न खलने दें।

- ये बच्चे बहुत ज्यादा जिद करते हैं क्योंकि इन्हें अपने नफा-नुकसान की समझ नहीं होती। बच्चे की जिद से परेशान होकर आप चिड़चिड़े न बनें।

- बच्चों से पैरंटस को काफी ज्यादा उम्मीदें होती हैं, जबकि इन बच्चों को अपना रोजाना का छोटा-मोटा काम करने में भी दिक्कत होती है। इन बच्चों से उम्मीदें कम रखें तो बेहतर है।

- इन बच्चों में बर्ताव से जुड़ी काफी समस्याएं पाई जाती हैं। इन समस्याओं को दूर करने के लिए इन्हें प्यार से समझाएं। उसे खुद करके दिखाएं कि दूसरों के साथ बर्ताव कैसे करना चाहिए। दूसरे बच्चे कैसा बर्ताव करते हैं, यह उसे दिखाएं।

- एक समय में एक ही चीज पर फोकस करें। ये बच्चे धीरे-धीरे चीजों को समझते हैं, इसलिए इनके लिए एक चीज तय कर उस पर रेग्युलर काम कराएं। मसलन किसी तय जगह पर कैसा बर्ताव करना है आदि। एक चीज सिखाने के बाद उसमें बदलाव करने की कोशिश न करें। इससे बच्चे को समझने में दिक्कत होती है।

- छोटे-छोटे लक्ष्य तैयार करें। डॉक्टर की सलाह से बच्चे के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य तय करें। इन लक्ष्यों में रोजाना के छोटे-छोटे कामों को शामिल किया जाना चाहिए, जैसे ब्रश करना सिखाना, खाना खाना सिखाना आदि।

कैसे होता है इलाज

- डॉ. राजीव मेहता, कंसल्टंट सायकायट्रिस्ट, सर गंगाराम हॉस्पिटल का कहना है कि आमतौर पर कई तरह की थेरपी को मिलाकर बच्चे का इलाज किया जाता है इसलिए एक्सपटर्स की एक टीम मिलकर इलाज करती है। अगर बच्चा हाइपर ऐक्टिव है या सोने में दिक्कत है तो उसके लिए मेडिसिन दी जाती है। बोलना सिखाने के लिए स्पीच और लैंग्वेज थेरपी दी जाती है। इसके अलावा बिहेवियरल और ऑक्युपेशनल थेरपी यानी अपने आसपास के माहौल और चीजों से तालमेल बिठाने की थेरपी दी जाती है। इसके तरह बच्चे को रुटीन काम करना सिखाना, सही तरीके से बैठना-उठना, लोगों से मिलना आदि सिखाया जाता है। बच्चे का आईक्यू लेवल और दूसरी गतिविधियां देखकर एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि बच्चे को नॉर्मल स्कूल में पढ़ाएं या स्पेशल स्कूल में। वैसे, इनमें से करीब 30 फीसदी बच्चों को ही आईक्यू प्रॉब्लम होती है। बाकी बच्चों का आईक्यू ठीक होता है। बेहतर है कि स्कूल भी दूसरे बच्चों को स्पेशल बच्चों के प्रति सेंसटिव होने की ट्रेनिंग दें।

पैरंट्स की काउंसलिंग भी जरूरी

ऑटिज़म से पीड़ित बच्चे के साथ -साथ पैरंट्स की काउंसलिंग होना जरूरी है। अक्सर पैरंट्स स्वीकार नहीं कर पाते कि उनके बच्चे में कोई कमी है। साथ ही, ऐसे बच्चों के साथ किस तरह बर्ताव किया जाना चाहिए, यह जानकारी भी नहीं होती इसलिए पैरंट्स की काउंसलिंग जरूरी है। काउंसलर पैरंट्स को यह भी बताते हैं कि बच्चे में कितना सुधार मुमकिन है ताकि वे ज्यादा उम्मीदें न पालें। पैरंट्स को पेशंस बढ़ाने की भी सलाह दी जाती है।

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हॉट मौसम के कूल टिप्स

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तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है। जल्द ही गर्मियां पूरे जोरों पर होंगी। ऐसे में शुरू से ही थोड़ा ख्याल रखें तो गर्मियों के मौसम में होनेवाली दिक्कतों से बचाव मुमकिन है। जानते हैं गर्मियों की समस्याओं और उनके समाधान के बारे में

लू लगना

- तेज गर्मियों के दौरान लू लगना सबसे कॉमन समस्या है। लू लगने पर शरीर का तापमान अचानक से बहुत बढ़ जाता है। जब शरीर का तापमान कंट्रोल करने वाला सिस्टम (थर्मोस्टेट सिस्टम) शरीर को ठंडा रखने में नाकाम हो जाता है तो पानी किसी-न-किसी रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है। इससे शरीर की ठंडक कम हो जाती है और लू लग जाती है। लू लगने पर तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, उलटी और चक्कर आना, दस्त, सिरदर्द, शरीर टूटना, बार-बार मुंह सूखना, बार-बार प्यास लगना और कमजोरी जैसे लक्षण दिखते हैं। कभी-कभी बुखार, लो बीपी से लेकर ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक तक भी हो सकता है।

लू लगने से बचाव के लिए

- तेज गर्म हवाओं में बाहर जाने से बचें। नंगे बदन और नंगे पैर धूप में न निकलें।

- घर से बाहर जाते हुए शरीर को पूरी तरह ढकनेवाले हल्के रंग के ढीले कपड़े पहनें ताकि हवा लगती रहे।

- सूती कपड़े पहनें। सिंथेटिक, नायलॉन और पॉलिएस्टर के कपड़े न पहनें।

- खाली पेट बाहर न जाएं और ज्यादा देर भूखे रहने से बचें। घर से निकलने से पहले एक गिलास पानी, नींबू पानी, छाछ, आम पना, खस का शर्बत या नारियल पानी पिएं।

- धूप से बचने के लिए छाते का इस्तेमाल करें। इसके अलावा, धूप में सिर पर गीला या सादा कपड़ा रखकर चलें।

- चश्मा पहनकर बाहर जाएं। चेहरे को कपड़े से ढक लें।

- घर को ठंडा रखने की कोशिश करें। खस के पर्दे, कूलर, एसी आदि का इस्तेमाल करें।

... गर लग जाए लू

सबसे पहले मरीज को ठंडी और छायादार जगह में बिठाएं, कपड़े ढीले कर दें, पानी पिलाएं और ठंडा कपड़ा उसके शरीर पर रखें। शरीर के तापमान को कम करने की कोशिश करें। लू लगने पर ऐसा करना सबसे जरूरी है। लगातार लिक्विड चीजें पिलाएं, जैसे कि शिकंजी, छाछ, पतली लस्सी, जूस, इलेक्ट्रॉल आदि। साथ ही, हाथ-पैरों की हल्के हाथों से मालिश करें। तेल न लगाएं। गुलाब जल में रुई भिगोकर आंखों पर रखें। इन सबके बावजूद आराम न आए तो डॉक्टर के पास ले जाएं। लू लगने पर मरीज को बेल या दूसरी तरह के शर्बत और जौ का पानी दें। खिचड़ी, दलिया, सूप आदि दे सकते हैं। तले-भुने खाने से परहेज करें।

ये घरेलू नुस्खे आजमाएं

- छह छोटे चम्मच सौंफ का रस, दो बूंद पुदीने का रस और दो चम्मच ग्लूकोज पाउडर करीब एक-एक घंटे बाद देते रहें।

- ताजे प्याज के रस को छाती पर मलने से भी लू का असर कम होता है।

- गर्मियों में प्याज को जेब में रखने से लू नहीं लगती क्योंकि उसमें पानी की मात्रा बहुत होती है। पानी न मिलने पर उसे ही चूस लें।

- कच्चे आम को भूनकर, पानी में मसलकर, छानकर उसमें स्वादानुसार चीनी और जीरा मिलाकर रोज लेने से लू लगने का खतरा कम हो जाता है।

- आंवले का चूर्ण एक ग्राम, मीठा सोडा आधा ग्राम और तीन ग्राम मिश्री सौंफ के रस के साथ मरीज को दें।

- पुदीने के करीब 30-40 पत्ते लेकर, दो ग्राम जीरा और दो लौंग को पीसकर आधे गिलास पानी में मिलाकर मरीज को हर चार घंटे बाद पिलाएं।

गर हो जाए बुखार

- तेज गर्मियों कभी-कभार बुखार की वजह भी बन सकती हैं। अगर बुखार 102 डिग्री तक है और कोई और खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। अगर इससे ज्यादा तापमान है तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। मरीज को एसी में रख सकते हैं, तो बहुत अच्छा है, नहीं तो पंखे में रखें। कई लोग बुखार होने पर चादर ओढ़कर लेट जाते हैं और सोचते हैं कि पसीना आने से बुखार कम हो जाएगा, लेकिन इस तरह चादर ओढ़कर लेटना सही नहीं है।

- मरीज को हर 6 घंटे में पैरासेटामॉल (Paracetamol) की एक गोली दे सकते हैं। यह मार्केट में क्रोसिन (crocin), कालपोल (calpol) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। दूसरी कोई गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें। दो दिन तक बुखार ठीक न हो तो मरीज को डॉक्टर के पास जरूर ले जाएं। मरीज को पूरा आराम करने दें, खासकर तेज बुखार में। आराम भी बुखार में इलाज का काम करता है।

पेट की गड़बड़ी

गर्मियों में खाने में किटाणु जल्दी पनपते हैं। ऐसे में खाना जल्दी खराब हो जाता है। खराब खाना या उलटा-सीधा खाने से गर्मियों में कई बार डायरिया यानी उलटी-दस्त की शिकायत भी होती है। लू लगने पर भी यह समस्या हो सकती है। डायरिया में अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं, लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां न हों, पर दस्त खूब हो रहे हों। डायरिया आमतौर पर 3 तरह का होता है :

वायरल

यह वायरस के जरिए ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है। पेट में मरोड़ के साथ लूज मोशंस और उलटी आती है। काफी कमजोरी भी महसूस होती है लेकिन यह ज्यादा खतरनाक नहीं होता।

इलाज: वायरल डायरिया में मरीज को ओआरएस का घोल या नमक और चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। उलटी रोकने के लिए डॉमपेरिडॉन (Domperidone) और लूज मोशंस रोकने के लिए रेसेसाडोट्रिल (Racecadotrill) ले सकते हैं। पेट में मरोड़ हैं तो मैफटल स्पास (Maflal spas) ले सकते हैं। 4 घंटे से पहले दोबारा टैब्लट न लें। एक दिन में उलटी या दस्त न रुकें तो डॉक्टर के पास ले जाएं।

बैक्टीरियल

इसमें तेज बुखार के अलावा पॉटी में पस या खून आता है।

इलाज: एंटी-बायॉटिक दवाएं दी जाती हैं। साथ में प्रोबायॉटिक्स भी देते हैं। दही प्रोबायॉटिक्स का बेहतरीन नेचरल सोर्स है। एंटी-बायोटिक डॉक्टर की सलाह के बिना न लें।

प्रोटोजोअल

इसमें भी बुखार के साथ पॉटी में पस या खून आता है।

इलाज: प्रोटोजोअल इन्फेक्शन में एंटी-अमेबिक दवा दी जाती है।

नोट: यह गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना-पानी नहीं देना चाहिए। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें, जैसे कि नारियल पानी, नींबू पानी (हल्का नमक और चीनी मिला), छाछ, लस्सी, दाल का पानी, ओआरएस का घोल, पतली खिचड़ी, दलिया आदि। सिर्फ तली-भुनी चीजों से मरीज को परहेज करना चाहिए।

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स्किन से जुड़ी समस्याएं

गर्मियों में स्किन की समस्याएं जैसे कि सनबर्न, टैनिंग, रैशेज, घमौरियां आदि बहुत परेशान करती हैं। जो लोग लगातार बैठे रहते हैं या घंटों बैठकर गाड़ी चलाते रहते हैं, उन्हें दिक्कतें ज्यादा आती हैं। गर्मियों की कॉमन स्किन प्रॉब्लम हैं:

सनबर्न और टैनिंग

गर्मियों में अक्सर सनबर्न (स्किन का झुलना) और टैनिंग (स्किन का रंग गहरा होना) का सामना करना पड़ता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, टैनिंग खराब चीज नहीं है इसलिए उसके लिए किसी तरह का उपाय करने की जरूरत नहीं है। सनबर्न और पिग्मेंटेशन (जगह-जगह धब्बे पड़ना) होने पर स्किन में जलन और खुजली होती है। यह समस्या गोरे लोगों को ज्यादा होती है। जो लोग सनबर्न होने के बाद भी धूप में घूमते रहते हैं, अगर वे पानी न पिएं तो उन्हें हीट स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है।

क्या करें: एसपीएफ 30 या उससे ज्यादा का सनस्क्रीन लोशन लगाएं। ढीले, पूरी बाजू के, हल्के रंग के कॉटन के कपड़े पहनें। बाहर जाते हुए छाते का इस्तेमाल जरूर करें। सुबह 10 बजे से शाम 3 बजे तक धूप में निकलने से बचें। खूब पानी पिएं। कैलेमाइन लोशन या ऐंटि-इन्फ्लेमेट्री यानी सूजन और जलन से राहत दिलानेवाले लोशन हाइड्रोकॉर्टिसोन (Hydrocortisone) लगा सकते हैं। यह जेनरिक नेम है और मार्केट में अलग-अलग ब्रैंड नेम से लोशन व क्रीम मिलते हैं। ज्यादा खुजली हो तो डॉक्टर एंटी-एलर्जिक गोली सिट्रिजिन (Cetirizine) खाने की सलाह देते हैं। यह भी जेनरिक नाम है। जब तक सनबर्न ठीक न हो, धूप से बचें। घरेलू उपाय भी आजमा सकते हैं। आधा कप दही में आधा नीबू निचोड़ कर अच्छी तरह मिला लें। फ्रिज में रख लें और रात को सोने से पहले क्रीम की तरह लगा लें। पांच मिनट बाद इसके ऊपर से हल्का मॉइस्चराइजर भी लगा सकते हैं। इससे काफी राहत मिलेगी।

रैशेज और घमौरियां

गर्मियों में पसीना निकलने से स्किन में ज्यादा मॉइस्चर रहता है, जिसमें कीटाणु (माइक्रोब्स) आसानी से पनपते हैं। इस दौरान ज्यादा काम करने से स्वैट ग्लैंड्स (पसीने की ग्रंथियां) ब्लॉक हो जाते हैं। ऐसा होने पर पसीना स्किन की अंदरुनी परत के अंदर जमा रह जाता है। रैशेज और घमौरियां ज्यादातर ऐसी जगहों पर होती हैं, जहां स्किन फोल्ड होती है, जैसे जांघ या बगल आदि। इसके अलावा पेट और कमर पर भी होती हैं। घमौरियां और रैशेज होने पर स्किन लाल पड़ जाती है और खुजली व जलन होती है। रैशेज से स्किन में दरारें-सी नजर आती हैं और स्किन सख्त हो जाती है, वहीं घमौरियों में लाल-लाल दाने निकल आते हैं। बाहर की स्किन की परत ब्लॉक होने पर दानेवाली घमौरियां निकलती हैं और इनमें खुजली होती है।

क्या करें: खुले, हल्के और हवादार कपड़े पहनें। टाइट और ऐसे कपड़े न पहनें जिनसे रंग निकलता हो। ध्यान रहे कि कपड़े धोते हुए उनमें साबुन न रहने पाए। ठंडे तापमान में रहें यानी एसी और कूलर में रहें। घमौरियों वाले हिस्से पर दिन में एकाध बार बर्फ लगा सकते हैं। साथ ही, घमौरियों पर कैलेमाइन (Calamine) लोशन लगाएं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं।

मुंहासे और दाने

गर्मियों में आमतौर पर नुकीले दाने निकलते हैं। वाइटहेड, ब्लैकहेड के अलावा पस वाले दाने भी हो सकते हैं। हालांकि यह समस्या बरसात में ज्यादा होती है। इसी तरह फोड़े-फुंसी और बाल तोड़ भी हो सकते हैं। असल में, जब कीटाणु स्किन के नीचे पहुंच जाते हैं और पस बनाना शुरू कर देते हैं तो यह समस्या हो जाती है। यह स्थिति काफी तकलीफदेह होती है। कई बार बुखार भी आ जाता है। आम धारणा है कि ऐसा आम खाने से होता है, लेकिन यह सही नहीं है। यह मॉइस्चर में पनपनेवाले बैक्टीरिया की वजह से होता है।

क्या करें: एंटी-बैक्टीरियल साबुन से दिन में दो बार नहाएं। शरीर को जितना मुमकिन हो, सूखा और फ्रेश रखें। नॉन-ऑयली और कूलिंग क्लींजर, फेसवॉश, लोशन और डियो यूज करें। एंटी-बायोटिक क्रीम लगाएं, जिनके जेनरिक नाम फ्यूसिडिक एसिड (Fusidic Acid) और म्यूपिरोसिन (Mupirocin) हैं। हरी सब्जियां, खासकर खीरा आदि खूब खाएं। चाय, कॉफी और तला-भुना कम खाएं। गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक, लहसुन, अजवाइन, मेथी आदि कम खाएं। इनसे ग्लैंड्स ऐक्टिव हो जाते हैं, जिससे कीटाणु जल्दी आ जाते हैं। ग्लैंड्स ज्यादा काम कर रहे हैं तो क्लाइंडेमाइसिन (Clindamycin) लोशन लगा सकते हैं। यह मार्केट में कई ब्रैंड नेम से मिलता है। इसके अलावा एंटी-एक्ने साबुन एक्नेएड (Acne-Aid), एक्नेक्स (Acnex), मेडसोप (Medsop) आदि भी यूज कर सकते हैं। ये ब्रैंड नेम हैं।

इन्फेक्शन

फंगल इन्फेक्शन: रिंग वर्म, यानी दाद-खाज की समस्या गर्मियों में बढ़ जाती है। इसमें गोल-गोल टेढ़े-मेढ़े रैशेज जैसे नजर आते हैं, रिंग की तरह। इनमें खुजली होती है और ये एक इंसान से दूसरे में भी फैल सकते हैं।

क्या करें: एंटी-फंगल क्रीम क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से ग्राइसोफुलविन (Griseofulvin) टैब्लेट ले सकते हैं। ये दोनों जेनरिक नेम हैं।

कॉन्टैक्ट एलर्जी: आर्टिफिशल जूलरी, बेल्ट, जूते आदि के अलावा जिन कपड़ों से रंग निकलता है, उनसे कई बार एलर्जी हो जाती है जिसे कॉन्टैक्ट एलर्जी कहा जाता है। जहां ये चीजें टच होती हैं, वहां एक लाल लाइन बन जाती है और दाने बन जाते हैं। इनमें काफी जलन होती है। अगर जूलरी आदि को लगातार पहनते रहेंगे तो बीमारी बढ़ जाएगी और उस जगह से पानी निकलना (एक्जिमा) शुरू हो जाएगा।

क्या करें: सबसे पहले उस चीज को हटा दें, जिससे एलर्जी है। उस पर हाइड्रोकोर्टिसोन लगाएं।

एथलीट्स फुट: जो लोग लगातार जूते पहने रहते हैं, उनके पैरों की उंगलियों के बीच की स्किन गल जाती है। समस्या बढ़ जाए तो इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है।

क्या करें: जूते उतार कर रखें और पैरों को हवा लगाएं। जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों पर पाउडर डाल लें। क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) क्रीम या पाउडर लगाएं।

शरीर की बदबू

पसीने में मॉइस्चर की वजह से गर्मियों में हमारे शरीर में बदबू आने लगती है। शरीर में मौजूद बैक्टीरिया हाइड्रोजन सल्फाइड बनाने लगते हैं, जिससे बदबू पैदा होती है। कई लोगों के पसीने में पीलापन भी आता है।

क्या करें: दिन में दो-तीन बार नहाएं। कूलिंग टेलकम पाउडर या एंटी-फंगल पाउडर यूज करें या कैलेमाइन लोशन लगाएं। एंटी-फंगल पाउडर मार्केट में माइकोडर्म (Mycoderm), अब्जॉर्ब (Abzorb), जिएजॉर्ब (Zeasorb) आदि ब्रैंड नेम से मिलता है। रोजाना साफ अंडरगारमेंट और जुराबें पहनें। डियो इस्तेमाल करें। इसके अलावा दिन में दो बार फिटकरी को हल्का गीला कर बॉडी फोल्ड्स पर लगा लें। इससे पसीना आना कम हो जाता है। एंटी-प्रॉस्पेरेंट लोशन या पाउडर लगा सकते हैं। इसका जेनरिक नाम एल्युमिनियम हाइड्रोक्साइड (Aluminium Hydroxide) है। इससे पसीना कम आएगा और बैक्टीरिया भी कम पनपेंगे।

सनस्क्रीन कितना फायदेमंद

गर्मियों में सनस्क्रीन लोशन या क्रीम की डिमांड बहुत बढ़ जाती है। सनस्क्रीन सूरज में निकलने से कम-से-कम 10-15 मिनट पहले लगाना चाहिए और अगर धूप में रहना है तो हर दो घंटे बाद फिर से लगाना चाहिए। बाहर नहीं जा रहे हैं और घर में ही रहना है तो सनस्क्रीन लगाना जरूरी नहीं है। बाहर जाते हुए सनस्क्रीन अच्छी मात्रा में लगाना चाहिए। सनस्क्रीन से पहले मॉइस्चराइजर लगा लें। सनस्क्रीन लगाकर धीरे-धीरे मुलायम हाथ से अच्छी तरह मालिश करें ताकि स्किन उसे सोख ले। स्वीमिंग करने जाएं तो पानी को रोकनेवाला (वॉटर रेजिटेंस) सनस्क्रीन लगाकर जाएं। जो लोग सन बाथ करते हैं, उन्हें भी सनस्क्रीन लगा लेना चाहिए, वरना सूरज की किरणें स्किन को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

कितना एसपीएफ जरूरी

एसपीएफ यानी सन प्रोटेक्शन फैक्टर को लेकर अक्सर लोगों को गलतफहमी होती है, मसलन ज्यादा-से-ज्यादा एसपीएफ का सनस्क्रीन लगना बेहतर है। असल में, हम भारतीयों की स्किन टाइप 3 और टाइप 4 कैटिगरी में आती है। बहुत गोरे लोगों की स्किन टाइप 1 व टाइप 2 होती है और बेहद काले (नीग्रो आदि) की टाइप 5 और 6 कैटिगरी में आती है। ऐसे में हम लोगों के लिए 30 एसपीएफ काफी है। सांवली स्किन वाले लोगों को भी 15-30 एसपीएफ का सनस्क्रीन यूज करना चाहिए। यह धारणा गलत है कि सांवले लोगों को सनस्क्रीन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बच्चों को पांच साल की उम्र से पहले सनस्क्रीन न लगाएं।

नोट: कुछ एक्सपर्ट सनस्क्रीन सिर्फ उन्हीं लोगों को लगाने की सलाह देते हैं, जिन्हें सूरज या धूप से एलर्जी होती है। वे कहते हैं कि आम लोगों को सनस्क्रीन लगाने की कोई जरूरत नहीं होती। सनस्क्रीन लगाने से विटामिन डी नहीं मिल पाता और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।

डियो कपड़ों पर लगाएं या स्किन पर

डियो या परफ्यूम लगाने से कोई नुकसान नहीं है। ये शरीर को ताजगी और खुशबू देते हैं। डियो और परफ्यूम को कपड़ों की बजाय सीधे स्किन पर लगाना बेहतर है क्योंकि तब इनका रिजल्ट बेहतर आता है, लेकिन करीब 5-7 इंच की दूरी से लगाएं। इसके अलावा, कपड़ों पर लगाने से उन पर दाग भी पड़ सकता है। ऐसे में जरूरी है कि हमेशा अच्छी क्वॉलिटी का डियो या परफ्यूम लगाएं ताकि स्किन को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे। आमतौर पर डियो और परफ्यूम एलर्जी नहीं करते, लेकिन जिन्हें एलर्जी है, उन्हें इनसे बचना चाहिए।

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गर्मियों का खान-पान

गर्मियों में शरीर के तापमान को कम रखने के लिए ठंडी चीजें खाना बेहतर है, मसलन जई, चावल, मूंग दाल, स्प्राउट्स आदि। ध्यान रखें कि खाना हल्का हो और उसमें फैट ज्यादा न हो। गर्मियों में भारी फूड आइटम आसानी से नहीं पचते। गर्मियों में हफ्ते में दो बार से ज्यादा नॉनवेज या अंडा न खाएं। इन्हें भी उबालकर या भाप में पकाकर खाएं। नॉनवेज में मछली या चिकन ले सकते हैं। मटन काफी हेवी होता है इसलिए उससे बचें। देसी घी, वनस्पति घी के अलावा सरसों का तेल और ऑलिव ऑयल भी कम खाएं। ये गर्म होते हैं। राइस ब्रैन, नारियल, सोयाबिन, कनोला आदि का तेल यूज कर सकते हैं। वैसे गर्मियां आइसक्रीम के बिना अधूरी हैं। लेकिन हाई कैलरी, हाई शुगर और प्रिजर्वेटिव होने की वजह से इन्हें भी कम मात्रा में ही खाना चाहिए। हफ्ते में दो बार से ज्यादा बिल्कुल न खाएं। थोड़ी आइसक्रीम लेकर उसके साथ फ्रूट डालकर भी खा सकते हैं। इससे आइसक्रीम की मात्रा कम हो जाती है।

जमकर पिएं लिक्विड

पानी: गर्मियों में पसीने से सबसे ज्यादा नुकसान शरीर को पानी और नमक का होता है। ऐसे में डिहाइड्रेशन से बचने के लिए रोजाना 10-15 गिलास पानी पीना चाहिए। कम पानी पीने से यूरीन ट्रैक इन्फेक्शन भी हो सकता है। गुनगुना, नॉर्मल या हल्का ठंडा पानी पिएं। मटके का पानी पीना बेहतर है। चिल्ड (बहुत ठंडा) पानी नहीं पीना चाहिए। बहुत ठंडे पानी से पाचन खराब होता है। पानी में बर्फ डालकर भी नहीं पीना चाहिए। बर्फ शरीर में गर्मी पैदा करती है। एक्सरसाइज या मेहनत के काम के बाद तो बिल्कुल भी ठंडा पानी न पिएं। ऐसा करने से पिघला फैट फिर से जम जाता है। खाने से पहले जितना चाहें पानी पी सकते हैं, लेकिन खाने के बाद आधे घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए। खाने के साथ पानी पीने से पाचन खराब होता है। जिन्हें किडनी प्रॉब्लम है, उन्हें पानी कम पीना चाहिए। वे डॉक्टर से पूछकर पानी पिएं।

नीबू पानी: गर्मियों में जितना मुमकिन हो नीबू पानी पीना चाहिए। नीबू पानी में थोड़ा नमक या थोड़ी चीनी और थोड़ा नमक मिलाना बेहतर है। इससे शरीर से निकले सॉल्ट्स की भरपाई होती है। थोड़ी चीनी अच्छी होती है गर्मियों में। वजन कम करना चाहते हैं तो चीनी न मिलाएं। नमक भी कम डालें।

नारियल पानी: नारियल पानी को मां के दूध के बाद सबसे बेहतर और साफ पेय माना जाता है। नारियल पानी प्रोटीन और पोटैशियम (अच्छा सॉल्ट) का अच्छा सोर्स है। इसका कूलिंग इफेक्ट भी काफी अच्छा है, इसलिए एसिडिटी और अल्सर में भी कारगर है यह। शुगर के मरीज भी नारियल पानी पी सकते हैं।

छाछ: छाछ में प्रोटीन खूब होते हें। ये शरीर के टिश्यूज को हुए नुकसान की भरपाई करते हैं। मीठी लस्सी कम पिएं। छाछ जितनी चाहें पी सकते हैं। खाने के साथ छाछ लेना भी फायदेमंद है। छाछ में काला नमक, काली मिर्च, भुना जीरा डालकर पीना चाहिए।

ठंडाई: अगर शुगर लेवल ठीक है तो यह एक अच्छा पेय है, लेकिन इसमें ड्राइफ्रूट्स और शुगर काफी ज्यादा होने से यह मोटापा बढ़ाती है। हार्ट, हाइपर टेंशन और शुगर के मरीज ठंडाई से परहेज करें।

वेजिटेबल जूस: जूस पीने से बेहतर है सब्जियां खाना। फिर भी जो लोग सब्जियों का जूस पीना चाहते हैं वे घिया, खीरा, आंवला, टमाटर आदि का जूस मिलाकर पी सकते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, दो कड़वी चीजों के जूस मिलाकर कभी न पिएं क्योंकि कड़वे फल या सब्जियों में कुकुरबिट होते हैं। कुकरबिट एसिडिक होते हैं और कई बार जहरीले हो जाते हैं।

फ्रूट जूस: जूस में सिर्फ फ्रक्टोज होते हैं जबकि साबुत फल में फाइबर होता है, इसलिए जूस के मुकाबले साबुत फल खाना हमेशा बेहतर है। जूस जब भी पिएं ताजा ही पिएं। गर्मियों में मौसमी, संतरा, माल्टा या तरबूज का जूस काफी फायदेमंद है। तरबूज जूस के फौरन बाद पानी न पिएं।

पैक्ड जूस: जब तक जरूरी न हो, पैक्ड जूस न पिएं। इनमें शुगर काफी ज्यादा होती है और प्रिजर्वेटिव भी खूब होते हैं। पैक्ड जूस पीना ही चाहते हैं तो अच्छी कंपनी का खरीदें।

रेडीमेड शरबत: मार्केट में बने बनाए तमाम शरबत आते हैं जैसे कि रसना, रूह-अफजा, खस और गुलाब आदि। चीनी ज्यादा होने की वजह से ये मोटापा बढ़ाते हैं। हालांकि ये सॉफ्ट ड्रिंक से बेहतर होते हैं, खासकर हर्बल शरबत।

आम पना: आम पना गर्मियों का खास ड्रिंक है। कच्चे आम की तासीर ठंडी होती है। टेस्ट से भरपूर आम पना विटामिन-सी का अच्छा सोर्स है। यह स्किन और पाचन, दोनों के लिए अच्छा है। इसे लंबे समय तक रखा जा सकता है।

बेल का शरबत : बेल का शरबत एसिडिटी और कब्ज, दोनों में असरदार है। कच्चे बेल का शरबत लूज मोशंस को रोकता है तो पके बेल का शरबत कब्ज को ठीक करता है। इसका कूलिंग इफेक्ट भी काफी अच्छा होता है।

चंदन/खस का शरबत : अगर घर में नहीं बना सकते तो मार्केट में चंदनआसन, उशीरासव (खस) मिलते हैं। हीट स्ट्रोक्स (लू लगना) में काफी मददगार हैं ये।

कौन-से फल फायदेमंद

मौसमी फल खाना सेहत के लिहाज से हमेशा बढ़िया होता है। खाने और फलों के बीच 2-3 घंटे का गैप रखें। खाने से एक घंटा पहले भी फल खा सकते हैं, लेकिन भरे पेट न खाएं और न ही खाने के साथ खाएं क्योंकि फल खाने के मुकाबले जल्दी पचते हैं। फलों को ज्यादा देर पहले काटकर न रखें। इससे उनकी न्यूट्रिशन वैल्यू कम होती है।

आम: आम ज्यादा नहीं खाना चाहिए। घर में पकाकर आम खाना बेहतर है। घर पर पकाने के लिए आम को अखबार में लपेटकर तीन-चार दिन के लिए छोड़ दें। बाजार से आम खरीदते हैं तो ज्यादा मुमकिन है कि वह हाइड्रोजन सल्फाइड से पकाया गया हो। ऐसे आम की तासीर काफी गरम हो जाती है। ऐसे में आम का छिलका अच्छी तरह धोएं। डंठल निकालकर आम को पानी में तीन-चार घंटे के लिए छोड़ दें। आम में विटामिन और मिनरल्स के अलावा कैलरी और शुगर काफी होती हैं। जिन्हें वजन या शुगर की प्रॉब्लम है उन्हें आम बहुत कम खाना चाहिए। आम खाने के बाद ठंडा दूध या छाछ पीना अच्छा है। इससे आम शरीर में जाकर गर्मी नहीं करता। मैंगो शेक से आम की तासीर ठंडी हो जाती है।

तरबूज: गर्मियों के लिए तरबूज बहुत अच्छा है, लेकिन तरबूज के साथ पानी न पिएं। दोपहर के वक्त तरबूज खाना और भी अच्छा है क्योंकि यह उस वक्त तक शरीर को पानी की जरूरत बढ़ जाती है। तरबूज को दूसरे फलों के साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें काफी पोटैशियम, प्रोटीन, पानी और फाइबर होता है। इससे या तो पेट फूला लगेगा या लूज मोशंस हो सकते हैं। खरबूज में कार्ब और शुगर ज्यादा होती है। इसे कम खाना चाहिए।

बेर और चेरी: गर्मियों में बेर और चेरी भी खूब आते हैं। बेर में बॉरोन और सल्फर जैसे माइक्रो न्यूट्रिएंट काफी होते हैं। एसिडिक लोगों को इन्हें कम ही खाना चाहिए। लीची में शुगर आम से भी ज्यादा होती है। बड़ों की बजाय यह बच्चों के लिए अच्छी है।

अंगूर: डिहाइड्रेशन होने पर अंगूर से काफी मदद मिलती है। अंगूर फेफड़ों की सेहत के लिए भी बहुत अच्छे होते हैं। लो बीपी या लो शुगर वालों को इन्हें खाना चाहिए। इसमें शुगर काफी होती है, इसलिए लिमिट में खाएं।

मौसमी: मौसमी का कूलिंग इफेक्ट काफी अच्छा है। यह डाइजेशन में मदद करती है। खाना खाने से घंटा भर पहले मौसमी खाने से खाना अच्छी तरह पचता है।

फ्रूट चाट: फ्रूट चाट से बचना चाहिए क्योंकि सारे फलों का डायजेशन अलग-अलग वक्त पर होता है। इनका मिजाज भी अलग-अलग होता है। मसलन, केला अल्कलाइन है तो संतरा एसिडिक। दोनों को एक साथ खाने से डाइजेशन सही नहीं होता। बॉडी कन्फ्यूज हो जाती है कि एसिड वाले फलों का डाइजेशन करूं या एल्कलाइन का। अगर फ्रूट सलाद खाना ही चाहते हैं तो इसमें ऐसे फल रखें, जिनमें कार्ब और फैट ज्यादा न हों। मसलन केला, आम या चीकू कम रखें।

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सोलो ट्रैवलिंगः इन बातों का रखें ध्यान

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'मंजिल मिले न मिले, अपना तो सफर जन्नत है यारो...' इसी तर्ज पर चलते हुए लाखों सोलो ट्रैवलर दुनिया के कोने-कोने में घूम रहे हैं, हर पल कुछ नया अनुभव करते हुए। ऐसे घुमक्कड़ों के लिए न मंजिल मायने रखती है, न साथी। सफर में जो मिला, उसके साथ हो लिए। जहां अच्छा लगा, ठहर गए। घुमक्कड़ी के इस अंदाज के बारे में बता रहे हैं वरुण वागीश:

दार्शनिकों का मानना है कि हर इंसान अगर घुमक्कड़ बन जाए तो पूरी दुनिया से नफरत, हिंसा और आतंकवाद अपने आप खत्म हो जाएगा। घूमने से नए लोगों के साथ संवाद कायम होता है, हमारे पूर्वाग्रह खत्म होते हैं। घुमक्कड़ी नए लोगों, संस्कृतियों को जोड़ने का काम करती है और सोलो ट्रैवलिंग यानी अकेले घुमक्कड़ी इसका सबसे अच्छा जरिया है। सदियों से हमारा देश ऐसे यायावरों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। अब तो आम भारतीय भी बाहर निकल रहे हैं और दुनिया देखने-समझने के लिए अकेले घूम रहे हैं। हालांकि कोई भी काम शुरू करने से पहले जरूरी है, उससे जुड़ी तमाम जानकारी हासिल कर लें। सोलो ट्रैवलिंग करने से पहले भी बुनियादी तैयारी जरूरी है क्योंकि सोलो ट्रैवलिंग के जहां कई फायदे हैं, वहीं पहले से तैयारी न होने से यह मुसीबत भी बन सकता है।

इन बातों का रखें ध्यान

1. रिसर्च, रिसर्च और रिसर्च:
इंटरनेट या गाइड बुक्स की मदद से खूब जानकारी इकट्ठी करें। अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचने के लिए फ्लाइट लें या ट्रेन? एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन से टैक्सी, ऑटो करें या बस और मेट्रो जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट सही रहेंगे? बड़ी जगहों के आसपास के रास्ते कौन-से होंगे? ठहरने के लिए क्या हॉस्टल मिल जाएंगे? ऐसी कौन-सी जगह हैं, जो वहां जाकर देखना चाहिए। मौसम कैसा रहेगा? मोबाइल नेटवर्क कवरेज कैसा होगा? इमरजेंसी में कहां से मदद मिलेगी? इन सभी बातों के बारे में अच्छी तरह से जानकारी लेने के बाद ही यात्रा शुरू करें। Couchsurfing.com, Hitchwiki.org, tourbar.com, wetravelsolo.com जैसी वेबसाइट्स और Solo Travel Society, NOMADS - a life of free/cheap travel जैसे फेसबुक पेजों से आपको अच्छी जानकारी मिल सकती है।

2. जितना हल्का, उतना अच्छा: सामान जितना कम होगा, ट्रैवलिंग का मजा उतना ज्यादा आएगा, वरना घूमने से पहले सामान रखने के लिए क्लॉकरूम और होटल ढूंढने में ही वक्त, ताकत और पैसा खर्च होता रहेगा। इसी तरह से कई बार वीइकल न मिले तो भी आराम से पैदल चलकर थोड़ी-बहुत दूरी तय की जा सकती है।

3. कॉमन सेंस का कमाल: अक्सर परिजन बाहर निकलने से पहले तरह-तरह की हिदायतें देने लगते हैं। यह करना, यह मत करना, किसी का दिया मत खाना, अजनबियों से बात मत करना, बसों के बजाय टैक्सी कर लेना, हॉस्टल के बजाय प्राइवेट रूम ले लेना! अब अगर इतनी बंदिशें होंगी तो घूमने का फायदा क्या? बाहर निकले हैं तो आज़ाद होकर घूमें। लोगों से खूब बतियाएं। जहां मन चाहे, जाएं। जो मन चाहे, खाएं। बस ध्यान रखें कुछ सावधानियों का, जो ट्रिप से पहले रिसर्च के दौरान पता चल जाती हैं या कुछ घूमते हुए धीरे-धीरे समझ आने लगती हैं। इसलिए कॉमन सेंस का दरवाजा हमेशा खुला रखें। अलर्ट रहना भी बहुत जरूरी है, वरना आप मुसीबत में भी फंस सकते हैं।

4. धोखा खाने से बचें: अकेले घूमते हुए गलतियों की आशंका ज्यादा रहती है, लेकिन गलतियों से ही हम सीखते हैं। यात्रा पर निकलने से पहले की गई रिसर्च आपको परेशानियों से बचा सकती है। आमतौर पर मशहूर टूरिस्ट स्पॉट्स पर धोखाधड़ी की आशंका बनी रहती है। इसलिए सफर से पहले टूरिस्ट स्कैम्स के बारे में पता कर लें। इंटरनेट पर आपको ऐसे ढेरों विडियो मिल जाएंगे जिनमें घुमक्कड़ों ने अपने अनुभव शेयर किए होंगे। मिसाल के तौर पर दिल्ली में टूरिस्टों से होने वाली धोखाधड़ी पर कई विडियो बने हुए हैं। 'टूरिस्ट स्कैम्स' या 'टूरिस्ट ट्रैप इन दिल्ली' सर्च करके देखें। ऐसे ही बाकी जगहों के बारे में भी बहुत सारे विडियो बनाए गए हैं।

5. फेसबुक ग्रुप्स: इंटरनेट पर फेसबुक, quora जैसे कितने ही डिस्कशन फोरम हैं, जहां दुनियाभर के घुमक्कड़ अपने अनुभव के आधार पर लोगों की मदद करते रहते हैं। इन फेसबुक ग्रुप्स जैसे कि Backpacking, Travelettes, Travel Blogger Tales, The WOW Club - Women on Wanderlust, Girls LOVE travel आदि पर लोग सवाल पूछते हैं और अनुभवी लोग उनका जवाब देते हैं। टूरिस्ट स्कैम्स और दूसरी परेशानियों के बारे में अक्सर इन ग्रुपों में जानकारी भरी रहती है।

6.ऑफलाइन मैप्स: जिस जगह जा रहे हों, वहां का नक्शा अपने मोबाइल में डाउनलोड कर लें। कई बार नक्शे आपको मंजिल तक पहुंचाने में लोगों से ज्यादा मददगार होते हैं। खासतौर पर जब किसी ऐसी जगह जा रहे हों जहां लोग आपकी भाषा नहीं समझते हों वहां तो यह बेहद मददगार साबित होता है। गूगल मैप्स की मदद लें। अपनी डेस्टिनेशन के गूगल मैप्स को घर में ही वाई-फाई के जरिए मोबाइल में डाउनलोड कर लें ताकि इंटरनेट न होने की स्थिति में भी उसका इस्तेमाल किया जा सके। maps.me एक और भरोसेमंद ऑफलाइन मैप एप्लिकेशन है। कई देश, कई इलाकों के लिए अलग-से ऑफलाइन मैप ऐप्स हैं। मिसाल के तौर पर मध्य यूरोप के लिए maps.cz सबसे बढ़िया ऐप है। इंटरनेट से बाकी इलाकों के भी मैप्स की जानकारी मिल जाएगी।

7. मोबाइल ऐप्स: सोलो ट्रैवलिंग में सबसे मददगार साथी होता है आपका मोबाइल। अपनी जगह से संबंधित ढेरों जानकारी इसमें डालकर बेफिक्र होकर घूम सकते हैं। जब जरूरत पड़ी, जेब से मोबाइल निकाला, जानकारी ली और आगे बढ़ गए। जिस जगह या देश घूमने जाना हो, वहां की टूरिजम अथॉरिटी के मोबाइल ऐप्स को डाउनलोड कर लें। ऑफलाइन मैप्स वाला ऐप भी डाल लें। गूगल ट्रांसलेट ऐप की मदद से स्थानीय भाषा में अपनी बात कह सकते हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ऐप डाउनलोड कर लें। एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए कौन-सी बस या ट्राम मिलेगी, कितना किराया होगा, कितना वक्त लगेगा, यह सब ऐसे ऐप्स में मिल जाते हैं। Google translate, Tripadvisor, Accuweather, LiveTrekker, Opera Mini, Triposo जैसे ऐप काफी मददगार हो सकते हैं।

8. कैश के बजाय कार्ड: ज्यादा कैश रखने के बजाय डेबिट या क्रेडिट कार्ड रखना बेहतर है। कैश के चोरी हो जाने या खो जाने की आशंका रहती है इसलिए एक साथ बहुत सारा कैश निकालने की बजाय थोड़ा-थोड़ा निकालें। हालांकि विदेशों में एटीएम से कैश निकालने पर लगने वाले सर्विस चार्ज का भी ख्याल रखें। अक्सर ऐसा होता है कि बैंक कार्ड का पैसा नहीं लेता लेकिन जिस एटीएम से पैसा निकाला, वह बैक पैसा वसूल लेता है। कुछ बैंक खास तरह के ट्रैवल कार्ड देते हैं, जिनसे पैसा निकालने पर विदेशी बैंक सर्विस जार्च नहीं लगाते। यात्रा से पहले अपने बैंक से ऐसे कार्ड्स का पता करें। वैसे आमतौर पर कार्ड्स बराबर ही पड़ते हैं मसलन, ट्रैवल कार्ड के लिए आपको पहले पेमेंट करना होता है तो क्रेडिट कार्ड में ट्रांजेक्शन के लिए। कोई भी कार्ड लेने से पहले अच्छी तरह डिटेल्स जान लें।

सोलो ट्रैवलिंग के फायदे

1. मनमर्जी का मौका:
न किसी की खुशामद का झंझट, न किसी का इमोशनल प्रेशर। जब मन किया घूमने निकल जाओ, जब तक मन करे होटल में सुस्ताते रहो। चलने का मन नहीं तो कार रेंट पर ले ली। एक शहर पसंद नहीं आया तो किसी और शहर की ओर निकल पड़े। वरना ग्रुप में घूमते हुए भी कितनी बार ऐसा होता है कि जब आपका मन म्यूजियम या आर्ट गैलरी देखने के बजाय सामने वाले पहाड़ पर चढ़ने को मचल रहा होता है, अपने दोस्तों की खातिर मन मारकर रह जाना पड़ता है।

2. माहौल का बेहतर अनुभव: साथ में कोई 'अपना' न हो तो हम खुद-ब-खुद आसपास के माहौल का हिस्सा बनने की कोशिश करते हैं। अनजान लोगों से अपने आप बातचीत करने लगते हैं। माहौल को किसी और के नजरिए से समझने के बजाय खुद उसका सामने से अनुभव कर पाते हैं। किसी नई जगह, संस्कृति को देखने-समझने का इससे बढ़िया तरीका और क्या हो सकता है!

3. लोगों के लिए ज्यादा अप्रोचेबल: अक्सर अपनों के साथ यात्रा करते हुए हम आपस में इतने मशगूल हो जाते हैं कि अजनबियों से घुलने-मिलने का मौका ही नहीं मिल पाता।

4. ज्यादा कॉन्फिडेंस: सोलो ट्रैवलिंग में आपको मिलने वाले हर सुख-दुख के लिए आप खुद जिम्मेदार होते हैं। कोई गलती हुई तो उसका ठीकरा किसी और पर आप नहीं फोड़ सकते। लेकिन गलतियों से हम सीखते हैं और अकेले घूमते हुए हम ज्यादा जल्दी सीखते हैं। इस तरह घूमते हुए सीखे गए सबक ताउम्र याद रहते हैं और बेहतर जिंदगी जीने में मदद करते हैं। खराब हालात में भी मजबूती से डटे रहने का आत्मविश्वास अकेले घूमने से बहुत जल्दी आता है।

5.सस्ते में घूमने का सबसे बेहतर तरीका: बजट ट्रैवलर्स यानी कम पैसों में घूमने वालों के लिए सोलो ट्रैवलिंग सबसे बेहतर तरीका है। अपनी यात्राओं में हुए अनुभव इस बात की तस्दीक करते हैं। कई साल पहले दिल्ली से हिमाचल के खड़ापत्थर गांव गया था। लिफ्ट मांगकर पूरी यात्रा की थी और ढाबों पर सोया। पूरी यात्रा में खर्च हुए थे सिर्फ 200 रुपये। इसी तरह कुछ महीने पहले यूरोप के कुछ देशों में 15 दिनों तक घूमा। वहां खाने, रहने और ट्रैवलिंग में खर्च हुए 10,000 रुपये, फ्लाइट का खर्च हटाकर। जनवरी 2017 में थाइलैंड गया था। बैंकॉक तक फ्लाइट का खर्च निकाल दें तो वहां करीब 1 हफ्ते में कुल मिलाकर खर्च आया 4000 रुपये।

सस्ते में सोलो ट्रैवलिंग का राज

1. काउचसर्फिंगः कैसा हो अगर आप जिस जगह घूमने जा रहे हों, वहां किसी लोकल के घर में ठहरने को मिल जाए, उस परिवार के साथ आप एक ही टेबल पर बैठकर खाना खाएं, घंटों उनसे बतियाते रहें, वह अपनी गाड़ी में आपको अपना शहर दिखाए और यह सब एकदम फ्री हो...! जी जनाब, यह संभव है काउचसर्फिंग से। couchsurfing.com एक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट है, जिसके सदस्य एक-दूसरे के घर में बतौर मेहमान ठहर सकते हैं या किसी यात्री को अपने घर ठहरा सकते हैं। लाखों भारतीय इस वेबसाइट के सदस्य हैं। अपनी विदेश यात्राओं में मैं काउचसर्फिंग करते हुए कई लोगों के घर ठहरा और उनके साथ बिताए वक्त ने सफर की यादों को और खुशनुमा बना दिया।

2. हिचहाइकिंगः हिचहाइकिंग का मतलब है लिफ्ट मांगकर यात्रा करना। दुनिया के कई देशों, खासतौर पर पश्चिमी देशों में हिचहाइकिंग प्रचलित है इसलिए एक हिचहाइकर को लिफ्ट के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। दूसरे देशों में पश्चिम की तरह लिफ्ट उतनी आसानी से नहीं मिल पाती, लेकिन मदद मांगने का तरीका सही हो तो आप दुनियाभर में बिना एक पैसा खर्च किए, सिर्फ हिचहाइकिंग करते हुए भी घूम सकते हैं। वैसे, सोलो घुमक्कड़ों को लिफ्ट मिलने में आसानी होती है।

3. हॉस्टल: घुमक्कड़ों के लिए दुनिया के कई देशों में ठहरने के लिए सस्ते विकल्प मौजूद हैं, जिन्हें हॉस्टल कहा जाता है। बैकपैकर्स हॉस्टल के नाम से मशहूर इन हॉस्टलों में होटलों की तरह ठाठ-बाट नहीं होते, लेकिन साफ-सुथरे कमरे, बिस्तर, वॉशरूम्स जैसी बुनियादी सुविधाएं मिल जाती हैं। फ्री वाईफाई, किचन और फ्री ब्रेकफास्ट की सुविधा भी अच्छे होस्टलों में मिल जाती है। सोने के लिए यहां आमतौर पर बंक बेड होते हैं। किसी डॉरमेटरी की तरह एक कमरे में कई बेड हो सकते हैं। एक कमरे में कई अनजान घुमक्कड़ मिलते हैं, तो माहौल दुनियाभर के किस्से-कहानियों से जीवंत हो जाता है। अपनी कई यात्राओं में मैं हॉस्टलों में रुका और कई दिलचस्प लोगों से मिला। इस तरह के हॉस्टलों में एक रात का किराया 200 से 300 रुपये होता है। ओनली लेजीज़ रूम भी होते हैं।

शुरुआत कैसे करें

1. रिमोट की बजाय मशहूर लोकेशन: शुरुआत में मशहूर टूरिस्ट डेस्टिनेशंस पर घूमने जाएं। ऐसी जगहों पर आमतौर पर रहने, खाने और घूमने के लिए तमाम तरह की सुविधाएं मौजूद रहती हैं। एक चीज के लिए कई विकल्प मिल जाते हैं, जो हमें अपनी जरूरत के हिसाब से चुनाव करना सिखाते हैं। कोई परेशानी होने पर पुलिस, अस्पताल या कोई और मदद फौरन मिल सकती है। ऐसी जगहों पर सोलो ट्रैवलिंग के प्रति बुनियादी समझ विकसित होगी और धीरे-धीरे आत्मविश्वास आएगा।

2. छोटी यात्राओं से शुरू करें: एक दिन की छुट्टी लेकर या वीकेंड पर आसपास की किसी नई जगह को देखने निकल जाएं। फिर धीरे-धीरे यात्रा का टाइम बढ़ाएं। इससे आपको लंबी यात्राओं के लिए कॉन्फिडेंस आएगा।

3. प्राइवेट के बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट: अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हालत बहुत खराब न हो तो प्राइवेट कार या ऑटो रेंट पर लेने के बजाय बस, मेट्रो या लोकल ट्रेन से यात्रा करें। इससे आपको माहौल समझने में आसानी होगी और परिस्थितियों के हिसाब से चीजें हैंडल करना सीख पाएंगे। पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुरक्षा के नजरिए से ज्यादा भरोसेमंद और सस्ता पड़ता है।

4. विदेश से पहले अपना देश: हमारे देश की सबसे बड़ी खूबी है इसका विशाल और विविधता भरा होना। दिल्ली में रहते हैं तो पूर्वोत्तर भारत या दक्षिण में कहीं निकल जाएं। अलग भाषा, संस्कृति और रहन-सहन देखने और उसके हिसाब से ढलने की आदत अपने देश से ही पड़ जाएगी। उसके बाद विदेश यात्राएं शुरू करना ज्यादा मुनासिब होगा। शुरुआत में ही अकेले विदेश यात्रा पर निकले पड़ेंगे तो कल्चरल शॉक लगेगा और उससे घूमने का उत्साह ठंडा पड़ सकता है।

5. वीज़ा ऑन अराइवल वाले देशों में पहले जाएं: किसी भी देश में जाने के लिए वीज़ा जरूरी है। वीज़ा लेने के लिए उस देश की एंबेसी से संपर्क करना पड़ता है। हालांकि थाइलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया, केन्या और श्रीलंका जैसे कुछ ऐसे भी देश है जहां हम भारतीयों को वीज़ा-ऑन-अराइवल की सुविधा मिलती है। यानी पहले से वीज़ा लेने के बजाय, उस देश में पहुंचकर वीजा लेने की सुविधा। पहले इन देशों में घूमने की योजना बनाएं। हमारे लिए करीब 35 देशों में जैसे कि थाइलैंड, कंबोडिया, लाओस, मॉरिशस, केन्या, इथियोपिया आदि में इस कैटिगरी में आते हैं। बाकी शर्तों का भी ख्याल रखें, जैसे कि म्यांमार में वीज़ा मिलने के बावजूद मुझे वापस लौटा दिया गया क्योंकि मेरे पास स्पेशल परमिट लेटर नहीं था, जबकि इस लेटर के बारे में ना एंबेसी ने जानकारी दी, न ही किसी ट्रैवल एजेंसी ने। इसी तरह रूस का वीज़ा पाने के लिए आपको वहां की ट्रैवल एजेंसी का लेटर चाहिए होता है।

6. यूथ हॉस्टल कैंप्स: यूथ हॉस्टल्स इंटरनैशनल लेवल का संगठन है, जो एडवेंचर टूरिज़म को बढ़ावा देता है। भारत में साल भर, कहीं-न-कहीं यूथ हॉस्टल के कैंप लगते रहते हैं, जहां ट्रैकिंग, बाइकिंग, डेजर्ट कैंपिंग आदि कराई जाती है। देशभर से लोग इन कैंपों में आते हैं। यहां अनुशासन का ख्याल सबसे ज्यादा रखा जाता है। इसलिए इसमें हिस्सा लेने वालों में अकेली लड़कियों की संख्या भी अच्छी-खासी होती है। इन कैंपों में सिखाई गई बातें सोलो ट्रैवलिंग में काफी मददगार साबित होती हैं। यूथ हॉस्टल्स ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट है: yhaindia.org

कहां जाएं
वैसे तो घुमक्कड़ी के लिए जहां चाहें निकल जाएं, लेकिन शुरुआती सोलो ट्रैवलर्स को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा, ठहरने और आने-जाने के साधनों की उपलब्धता के आधार पर कुछ जगहें ज्यादा मुफीद हो सकती हैं:

अपने देश में:

धर्मशाला: हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखलाओं में बसा धर्मशाला हिमाचल प्रदेश का एक जाना-माना टूरिस्ट स्पॉट है। सालभर देसी और विदेशी टूरिस्टों का जमावड़ा यहां लगा रहता है। पास में बीड़ और बीलिंग गांव हैं, जहां पैरा-ग्लाइडिंग करने निकल जाएं। ट्रेकिंग का मन हो तो त्रियुंड चले जाएं। टेंट में रहने का मन हो तो त्रियुंड में कैंपिंग भी की जा सकती है। नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है और एयरपोर्ट है गग्गल, कांगड़ा।

ऋषिकेश: किसी आश्रम में जाकर योग और ध्यान करना चाहते हों या गंगा की तेज धाराओं में राफ्टिंग, तो ऋषिकेश में आपका स्वागत है। यहां आएंगे तो आपको अपनी तरह के कितने ही सोलो ट्रैवलर्स अपना बैकपैक टांगे नजर आ जाएंगे। भारत आने वाले ज्यादातर विदेशी बैकपैकर्स ऋषिकेश जरूर आते हैं। मन करे तो यहां से लोकल बस पकड़कर उत्तराखंड के पहाड़ों में कहीं भी निकल जाएं। नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है और एयरपोर्ट है जॉली ग्रांट, देहरादूऩ।

सिक्किम: पूर्वोत्तर में भारत का छोटा-सा राज्य सिक्किम सोलो ट्रैवलर्स के लिए काफी सुरक्षित है। चारों तरफ हिमालय है, जहां चाहे निकल जाएं। आने-जाने के लिए टैक्सी रिजर्व कर सकते हैं। कम पैसों में घूमना हो तो शेयर्ड टैक्सी ले सकते हैं। राजधानी गंगटोक में होटलों और गेस्टहाउसों की कमी नहीं है। पेलिंग, लाचेन, लाचुंग, गुरूडोंगमार झील और नाथू ला जैसी जगहें जरूर जाएं। यहां जैसे नजारे शायद ही कहीं और मिलें। यहां के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी है और एयरपोर्ट है बागडोगरा।

मणिपुर: सुदूर पूर्वोत्तर भारत में मणिपुर भी कम खूबसूरत नहीं है। हालांकि यह जगह अनुभवी सोलो ट्रैवलर्स के लिए सही है। उखरूल की पहाड़ियों में शिरोय चोटी से म्यांमार के पहाड़ साफ देखे जा सकते हैं। भारत के अंतिम गांव मोरे से भारतीय एक दिन के लिए म्यांमार में बिना वीजा आ-जा सकते हैं। मणिपुर के साथ म्यांमार की झलक भी देखने को मिल जाए, तो सोने पे सुहागा। तामेंगलॉन्ग की पहाड़ियों पर होने वाले संतरों की मिठास नागपुर के संतरों से कम नहीं है। नागा और दूसरी जनजातियों के किसी भी गांव में जाना न भूलें। नजदीकी रेलवे स्टेशन दीमापुर है और एयरपोर्ट इम्फाल।

केरल: शुरुआती सोलो ट्रैवलर्स के लिए केरल मुफीद जगह है। इस छोटे-से राज्य में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की अच्छी सुविधा है। एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए सड़क, रेल और यहां तक कि स्टीमर से भी यात्रा कर सकते हैं। एक तरफ मुन्नार की पहाड़ियों पर फैले चाय के बागान हैं तो दूसरी तरफ एलेप्पी के बैकवाटर्स। कोवलम और वरकला के बीच विदेशी टूरिस्टों को बहुत लुभाते हैं। एर्णाकुलम/कोचीन और तिरुवनंतपुरम में बड़े रेलवे स्टेशन और इंटरनैशनल एयरपोर्ट हैं।

जैसलमेर: सोने जैसी रेत वाला रेगिस्तान, किले, हवेलियां और राजसी ठाठबाट की झलक देखनी हो तो चलिए भारत के पश्चिमी कोने में। दिन में जैसलमेर किला देखने के बाद सम के रेगिस्तान की ओर निकल जाएं। शाम को वहां मीलों फैले रेगिस्तान में ऊंट की सवारी करते हुए रेत के टीलों के पीछे ढलते सूरज को देखने का अहसास अलौकिक होता है। रात में रेगिस्तान में तारों भरे आसमान के नीचे कैंपिंग कर सकते हैं। दूर-दूर तक शहरी चकाचौंध का नामोंनिशान नहीं मिलेगा। केर-सांगरी की सब्जी, दाल बाटी और चूरमा खाने को मिल जाए तो समझिए आपकी यात्रा सफल हो गई। नजदीकी रेलवे स्टेशन जैसलमेर है और एयरपोर्ट है जोधपुर।

विदेश में

चेक रिपब्लिक: यूरोप के मध्य में बसा यह छोटा-सा देश सोलो ट्रैवलर्स के लिए बहुत खास है। फ्रांस, जर्मनी और यूके की तरह यह देश उतना महंगा नहीं है। रहने को सस्ते हॉस्टल्स जगह-जगह मिल जाते हैं। राजधानी प्राग और दूसरे बड़े शहर ब्रनो में बेहतरीन पब्लिक ट्रांसपोर्ट है। एक टिकट से किसी भी बस, ट्राम या मेट्रो में सफर कर सकते हैं। एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए कौन-सा पब्लिक ट्रांसपोर्ट कितने बजे मिलेगा इसकी सटीक जानकारी pubtran मोबाइल ऐप देता है। शाकाहारियों के लिए बिला, अल्बर्ट और टेस्को जैसी सुपरमार्केट्स जगह-जगह खुली हुई हैं। प्राग को किसी ऊंची जगह से देखें तो लाल रंग की ढलवां छतों वाले घरों के बीच से गुजरती वोल्तावा नदी और उस पर बना चार्ल्स ब्रिज का विहंगम दृश्य गजब का लगता है। दक्षिण में मोराविया के अंतहीन विस्तार लिए हरे-भरे खेत और पश्चिम में बोहेमिया के पहाड़ यूरोप की यात्रा शुरू करने के लिए सबसे बढ़िया जगह हैं। चूंकि चेक रिपब्लिक के लिए शेनगन वीजा दिया जाता है, इसलिए ऑस्ट्रिया, स्लोवाकिया, हंगरी, पोलैंड, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, बेल्जियम जैसे शेनगन देशों में बेरोकटोक आ-जा सकते हैं। यूरोप के दूसरे शहरों के मुकाबले प्राग के लिए भारत से सस्ती फ्लाइट मिल जाती हैं। शर्त यह है कि आपको बीच में दुबई या इस्तांबुल में कुछ घंटों का लेओवर टाइम बिताना पड़ेगा। अपनी यात्रा में मैंने दिल्ली से दुबई के लिए एयर इंडिया एक्सप्रेस और दुबई से प्राग के लिए स्मार्टविंग्स का इस्तेमाल किया था। दोनों एयरलाइंस बजट श्रेणी में आती हैं, जो सोलो बैकपैकर्स के लिए अच्छा विकल्प हो सकती हैं। टिकट के 33 हजार रुपयों के अलावा मैंने सिर्फ हॉस्टलों और हिचहाइकिंग की बदौलत सिर्फ 10 हजार रुपये में यूरोप के कई देशों की यात्रा की।

थाइलैंड: थाइलैंड हम भारतीयों के लिए एक जाना-माना नाम बन चुका है। वीज़ा ऑन अराइवल, सस्ते हवाई किराए और भारत से कम दूरी की वजह से काफी इंडियन टूरिस्ट थाइलैंड जाने लगे हैं। राजधानी बैंकॉक, फुकेट और पटाया तो भारतीयों की पसंदीदा टूरिस्ट डेस्टिनेशंस हैं। लेकिन सोलो ट्रैवलर्स के लिए इन शहरों के अलावा भी थाइलैंड में बहुत कुछ है। चियांग माई, पाई, सुखो थाई, अयुध्या और फी फी आइलैंड ऐसी जगह हैं, जो देखने लायक हैं, लेकिन भारतीय टूरिस्ट कम ही पहुंच पाते हैं। इसके अलावा थाईलैड के पड़ोसी देश कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और इंडोनेशिया भी भारतीयों को वीज़ा-ऑन-अराइवल की सुविधा देते हैं। कंबोडिया, लाओस और वियतनाम के लिए बैंकॉक से ही बसें मिल जाती हैं। इंडोनेशिया के लिए ढेरों सस्ती फ्लाइट्स हैं। बजट ट्रैवलर्स के लिए बेहतर है कि इन देशों में सीधे फ्लाइट से जाने के बजाय पहले थाइलैंड जाएं। पिछले साल कंबोडिया जाने के लिए मैंने बैंकॉक से एक पैसेंजर ट्रेन ली थी जो सिर्फ 48 बात यानी 96 रुपये में कंबोडिया बॉर्डर पर छोड़ देती है। बैंकॉक से कंबोडिया जाने वाले ज्यादातर विदेशी बैकपैकर्स इसी ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं।

भूटान: पड़ोसी देश भूटान हम भारतीयों को बिना वीज़ा के आने की इजाजत देता है। राजधानी थिंफू और पारो दो बड़े शहर हैं। हालांकि इनकी बनावट इन्हें दुनिया के तमाम शहरों से अलग रखती है। जिस व्यवस्थित तरीके से यहां के शहर बसे हैं, वह वाकई देखने लायक है। पारो में भूटान का एकमात्र एयरपोर्ट है। वैसे तो भारत से पारो के लिए सीधी फ्लाइट मिल जाती है, लेकिन महंगी होने की वजह से बेहतर है कि भारत के बागडोगरा एयरपोर्ट तक फ्लाइट से जाएं और उसके बाद सड़क से। सड़क से जाते हुए फुंतशोलिंग भूटान का पहला शहर पड़ता है, जहां एंट्री परमिट बनता है। इसके लिए भारतीयों को अपना वोटर आई-कार्ड या आधार कार्ड दिखाना होता है। अपनी बाइक या कार से सोलो ट्रिप कर रहे हों तो आपकी गाड़ियों का परमिट भी इसी शहर में मिलेगा।

पैकिंग में अपने साथ क्या-क्या रखें

मौसम की जानकारी ले लें, उसी के मुताबिक पैकिंग और टूर प्लान करें। सामान जितना कम रखेंगे, यात्रा उतनी सुखद रहेगी। सामान हमेशा कम रखें। कैप्सूल पैकिंग करें यानी कपड़ों को फोल्ड करके नहीं, रोल करके पैक करें। इससे ज्यादा कपड़े कम जगह में फिट हो सकेंगे। कपड़े ऐसे हों, जिन्हें प्रेस करने की जरूरत न हो तो बेहतर है। टी-शर्ट और लोअर रखना बेहतर है। ट्राउजर्स ज्यादा न रखें। उनके साथ टॉप बदलकर पहनें। साथ ही कई स्कार्फ रखें। ये आपकी ड्रेस को नया लुक देंगे। कपड़ों के अलावा पीने का पानी भरने के लिए बोतल रखें। खाने के लिए ड्राई-फ्रूट्स, चॉकलेट्स, बिस्कुट, थेपला, भाकरबड़ी आदि रख सकते हैं। कैमरा और चार्जर, मोबाइल फोन और चार्जर और यात्रा के लिए जरूरी कागजात जैसे कि पासपोर्ट, वीज़ा आदि साथ जरूर रखें। इसके अलावा, सोप, फेसवॉश, फेसवाइप, क्रीम, लोशन, नेलकटर आदि भी रखें।

लड़कियों के लिए सेफ्टी टिप्स

क्या करें

1. जिस जगह जा रही हैं, वहां की अच्छी जानकारी हासिल करें।

2. अपनी लोकेशन अपने किसी करीबी से लगातार शेयर करती रहें।

3. मोबाइल में हिम्मत, सेफ्टी पिन जैसे सिक्योरिटी ऐप डाउनलोड करके रखें?

4. इमर्जेंसी नंबरों को हमेशा याद रखें, जरूरत पड़ने पर पुलिस की मदद लें।

5. सारा कैश एक ही जगह की बजाय अलग-अलग जगहों पर रखें। बड़े नोट्स इनरवेयर में रखे जा सकते हैं।

6. पासपोर्ट, वीज़ा, टिकट और जरूरी कागजात को स्कैन करके खुद को ईमेल कर लें या गूगल ड्राइव में सेव कर लें।

7. बस या ट्रेन में सीट बुक कराते समय बुकिंग क्लर्क से किसी महिला यात्री के साथ वाली सीट देने की रिक्वेस्ट कर सकती हैं।

8. अपने होटल या हॉस्टल का विजिटिंग कार्ड हमेशा अपने साथ रखें। कई बार विदेशी नाम याद नहीं रह पाते ऐसे में लोकल लोगों से कार्ड दिखाकर रास्ता पूछ सकती हैं।

9. नया रास्ता, पता, बस या ट्रेन की जानकारी पुलिसवाले, दुकानदार आदि से पूछें। कम-से-कम 2-3 लोगों से कन्फर्म करें। कितना किराया होगा, इसकी भी जानकारी ले लें।

10. किसी भी देश में वहां के चलन के मुताबिक ही कपड़े पहनें।

क्या न करें

1. भड़काऊ पहनावे से बचें, ट्रैवल के दौरान जूलरी न पहनें, न साथ रखें।

2. देर रात तक अकेले घूमने या सोलो ड्राइविंग से बचें, खासकर सुनसान रास्तों पर। अपने ठिकाने पर भी शाम होते-होते लौट जाएं।

3. किसी भी अनजान शख्स से दोस्ती से बचें और उसके साथ अपनी जानकारी शेयर न करें।

4. टैक्सी में सामान अपने साथ पिछली सीट पर ही रखें। अपने साथ सामान न रहने से इमर्जेंसी के दौरान आपका कंट्रोल अपने ही सामान पर नहीं रह पाता।

5. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में यात्रा करते समय अपनी पिछली जेबों में कुछ न रखें। हमेशा जेबकतरों से सावधान रहें।

6. चलते हुए ईयरफोन लगाकर गाने न सुनें। यह चोर-उच्चकों का ध्यान खींचता है। सतर्कता भी कम हो जाती है।

7. घूमने जाने से पहले की गई रिसर्च से भटके नहीं। सावधान रहकर घूमें, डर कर नहीं।

8. शराब से बचें और ड्रग्स तो बिल्कुल न लें।

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हेल्थी रहना है तो अपनाएं फिटनेस के ये फंडे

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स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है... कहावत पुरानी है, लेकिन है पूरी तरह सच। वैसे हम अपने रूटीन में अगर कुछ चीजों को शामिल करें और कुछ नियमों का पालन करें तो खुद को ज्यादा आसानी से फिट रख सकते हैं। जानते हैं इसके लिए चंद अहम बातें:

कसरत का कमाल
वॉक में हम 1 मिनट में आमतौर पर 40-50 कदम चलते हैं, ब्रिस्क वॉक में करीब 80 कदम और जॉगिंग में करीब 160 कदम। हफ्ते में 5 दिन 30-45 मिनट कार्डियो एक्सर्साइज (ब्रिस्क वॉक, एरोबिक्स, स्वीमिंग, साइकलिंग, जॉगिंग आदि) जरूर करें। एक्सर्साइज शुरू करने से पहले 5 मिनट वॉर्म-अप और खत्म करने के बाद 5 मिनट कूल डाउन जरूर करें।

सांस लेना सीखें
- रोजाना आधा घंटा योगासन करें। इसमें आसन, ध्यान, गहरी सांस लेना और अनुलोम-विलोम को शामिल करें। सुबह उठकर 10-15 मिनट गहरी सांस लेने से लंग्स की क्षमता 70% तक बढ़ जाती है।

- सुबह-शाम 10-10 मिनट मेडिटेशन करें। इससे शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ती है और साथ ही बीपी भी कंट्रोल होता है।

80 का फॉर्म्युला रखेगा फिट
पेट की चौड़ाई, दिल की धड़कन, बैड कॉलेस्ट्रॉल, खाली पेट शुगर, नीचे का बीपी 80 से कम रखें। रोजाना 80 तालियां बजाएं और कम-से-कम 80 बार हंसें।
- दिन में 80 एमएल से ज्यादा सॉफ्ट ड्रिंक्स न पिएं। इस 80 एमएल में भी सोडा मिलाकर उसे डायल्यूट कर लें और 200 मिली बना लें।
- दो हफ्ते में 80 ग्राम से ज्यादा नमक न खाएं। यह ब्लड प्रेशर बढ़ा सकता है। बीपी के मरीजों को नमक और कम खाना चाहिए।
- हफ्ते में 80 मिनट ब्रिस्क वॉक, 80 मिनट एरोबिक्स और 80 मिनट स्ट्रेचिंग एक्सर्साइज जरूर करें। तीनों को मिलाकर करना ही बेहतर है।
- ट्रेडमिल में हार्ट की कंडिशंस को 80 फीसदी तक जरूर पूरा करें। एक्सर्साइज में दिल जोर से नहीं धड़कता तो दिल के लिए फायदा नहीं।

वजन कम, लाइफ में दम
- 2 किलो से ज्यादा वजन महीने भर में घटाने का टारगेट नहीं रखें। बहुत तेजी से वजन घटाएंगे तो फिर से वजन बढ़ने के चांस ज्यादा होंगे क्योंकि ज्यादा डाइटिंग से मेटाबॉलिजम कम हो जाता है।
- 500 कैलरी रोजाना कम लेने का टारगेट रखें, लेकिन कम खाकर ऐसा न करें। इसके लिए 250 कैलरी खाने में से घटाएं और 250 कैलरी एक्सर्साइज करके घटाएं।
- 60% कार्डियो और 40% स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज का कॉम्बो रखें वजन कम करते वक्त। कार्डियो के लिए ब्रिस्क वॉक, एरोबिक्स, स्वीमिंग, साइकलिंग आदि और स्ट्रेंथनिंग के लिए डंबल, पुशअप्स, उठक-बैठक, सूर्य नमस्कार आदि करें।

BP रखें कंट्रोल में
अपने लोअर ब्लड प्रेशर को 80 mmHg से कम रखें। यदि आपका लोअर ब्लड प्रेशर 80 mmHg से ज्यादा रहता है तो हर साल डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जाएं।

हेल्दी खाना, सेहत का खजाना
- दिन में 5-6 बार थोड़ा-थोड़ा खाएं। दिल और लिवर को फिट रखने के लिए ऐसी चीजें खाएं जिनमें फाइबर खूब हो, जैसे कि गेहूं, ज्वार, बाजरा, जई आदि। दलिया, स्प्राउट्स, ओट्स और दालों के फाइबर से कॉलेस्ट्रॉल कम होता है।
- हरी सब्जियां, सनफ्लावर सीड्स, फ्लैक्स सीड्स आदि खाएं। इनमें फॉलिक एसिड होता है, जो कॉलेस्ट्रॉल लेवल को मेंटेन करने में मदद करता है।
- अलसी, बादाम, बीन्स, फिश और सरसों तेल में काफी ओमेगा-थ्री होता है, जो दिल के लिए अच्छा है।
- रोजाना 1-2 अखरोट और 8-10 बादाम भी खाएं।

मैदा और चीनी खतरनाक
- ट्रांस-फैट्स सेहत के लिए बेहद नुकसानदेह हैं। ट्रांस फैट्स तेल को बार-बार गर्म करने या तेल को बहुत तेज गर्म करने पर पैदा होते हैं। ये वनस्पति घी में ज्यादा पाए जाते हैं।
- वैसे तो सैचुरेटिड फैट्स (घी, बटर, चीज, रेड मीट आदि) से दिल की बीमारी का सीधा कनेक्शन नहीं है फिर भी फैट लिमिट में ही खाना चाहिए।
- रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट (सफेद चीनी, सफेद चावल और सफेद मैदा) फैट से कहीं ज्यादा नुकसानदेह हैं। कोशिश करें कि इन्हें अपने खाने से निकाल दें।
- चीनी के बजाय गुड़, सफेद चावल के बजाय ब्राउन राइस यूज करें।
- स्वस्थ हैं तो भी रोजाना 3-4 चम्मच से ज्यादा फैट न लें। इसमें देसी घी, मक्खन और रिफाइंड ऑयल सभी कुछ शामिल है।

ऊह...आह...आउच...
कमर, पैर या पीठ दर्द से परेशान हों तो RICE का फॉर्म्युला अपनाएं, यानी रेस्ट, आइस, कंप्रेशन एलिवेशन।
Rest: आराम करें। ज्यादा घूमे-फिरे नहीं, न ही देर तक खड़े रहें।
Ice: एक कपड़े या बैग में बर्फ रखें और दिन में 4-5 बार 10-10 मिनट के लिए दर्द की जगह पर लगाएं।
Compession: घुटने या कमर पर क्रेप बैंडेज, नी कैप या नी ब्रेस लगाएं।
Elevation: लेटते वक्त पैर के नीचे तकिया रख लें ताकि घुटना थोड़ा ऊंचा रहे। इस दौरान एक्सर्साइज और योगासन बंद कर आराम करें। वॉलिनी, मूव, वॉवेरन जेल, डीएफओ जेल आदि किसी दर्दनिवारक बाम या जेल से हल्के हाथ से एक-दो मिनट मालिश कर सकते हैं।


हार्ट अटैक में ऐसे बचें और बचाएं: सीने में उठनेवाले दर्द को हल्के में न लें। यह दिल की बीमारी से जुड़ा भी हो सकता है।
- एसिडिटी और हार्ट का दर्द मिलता-जुलता होता है। फिर भी दोनों में फर्क कर सकते हैं।
- सीने के बीचोंबीच बड़े एरिया में तेज दर्द हो, दर्द लेफ्ट बाजू की ओर बढ़ता महसूस हो, सीने पर पत्थर जैसा दबाव - महसूस हो, काफी घबराहट, बेचैनी हो, पसीना आए, दर्द कम होने के बजाय बढ़ता जाए तो हार्ट अटैक की आशंका रहती है, जबकि एसिडिटी का दर्द एक खास बिंदु पर चुभता हुआ सा महसूस होता है।
- हार्ट अटैक की आशंका हो तो मरीज को फौरन 300 एमजी की एस्प्रिन (Asprin) चबाने को दें या पानी में घोलकर पिलाएं।
- इससे मरीज के बचने के चांस 30 फीसदी तक बढ़ जाते हैं।
- हार्ट के मरीज एस्प्रिन के बजाय सॉरबिट्रेट (Sorbitrate) भी ले सकते हैं।

TB की टेंशन को टाटा
- टीबी का वाइरस कम रोशनी वाली और गंदी जगहों पर तेजी से पनपता है। ऐसे में बेहतर रहता है कि मरीज हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहे। पंखा चलाकर खिड़कियां खोल दें ताकि बैक्टीरिया बाहर निकल सके। मरीज को भीड़ भरी जगहों और पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूज करने से बचना चाहिए।

- टीबी के मरीज को मास्क पहनकर रहना चाहिए। मास्क नहीं हो तो हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को नैपकिन से कवर कर लेना चाहिए। इस नैपकिन को कवरवाले डस्टबिन में डालें। मरीज को चाहिए कि वह यहां-वहां थूकने के बजाय किसी एक प्लास्टिक बैग में थूके और उसमें फिनाइल डालकर अच्छी तरह बंद कर डस्टबिन में डाल दें।

फीवर में रहें अलर्ट
- किसी भी बुखार में सबसे सेफ दवा पैरासिटामोल (Paracetamol) है। यह क्रोसिन (Crocin), कालपोल (Calpol) आदि ब्रैंडनेम से मिलती है। इसे किसी भी बुखार में सेफ माना जाता है। डेंगू में एस्प्रिन बिल्कुल न लें। डेंगू में इसे लेने से ब्लीडिंग का खतरा होता है।

- बुखार मापने के लिए रैक्टल टेंप्रेचर लेना बेहतर है, खासकर बच्चों में। मुंह से तापमान लेते हैं तो उसमें 1 डिग्री सेंटिग्रेड जोड़कर सही तापमान मानें। 98.3 डि. तक नॉर्मल टेंप्रेचर है। 100 डिग्री तक बुखार में आमतौर पर किसी दवा की जरूरत नहीं होती। 102 डिग्री तक बुखार है और कोई खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं।

ऐलर्जी: बचाव जरूरी
- बचाव ही ऐलर्जी का इलाज है। ऐलर्जी के शिकार लोगों को घर से बाहर निकलने से पहले नाक पर रुमाल रखना चाहिए। समय-समय पर चादर, तकिए के कवर और पर्दे भी बदलते रहना चाहिए। कार्पेट यूज न करें या फिर उसे कम-से-कम 6 महीने में ड्राइक्लीन करवाते रहें।

- घर में पालतू जानवर न रखें। बारिश के मौसम में फूल वाले प्लांट्स को घर के अंदर न रखें। हो सके तो घर में एयर प्यूरिफायर लगवाएं। वैसे, बच्चों के इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए उन्हें धूल-मिट्टी, धूप और बारिश में खेलने दें। ये बच्चों को बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं।

डेस्क जॉब में हैं तो रखें ध्यान
- डेस्क जॉब करनेवालों को ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सर्साइज और स्ट्रेचिंग करते रहना चाहिए। अपने घुटनों को लगातार चलाते रहें। बैठे-बैठे 15-20 मिनट में पैरों को गोल-गोल घुमाते रहें और सीधा तानें। इसी तरह गर्दन की एक्सर्साइज भी करते रहें।
- हर 30 मिनट पर आंखों की एक्सर्साइज करें। आंखों को स्क्रीन से हटाएं और दूर टिकाएं। फिर पास में देखें।
आंखों को हथेलियों से अच्छी तरह ढक लें और 30 सेकंड के बाद खोलें।
- कंप्यूटर पर काम करते हुए इस तरह बैठे कि कमर सीधी रहे। हाथों को कुर्सी के हैंडल का सपॉर्ट मिले।
- थाई का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा कुर्सी की सीट पर होना चाहिए, लेकिन घुटने उसके किनारे से सटे हुए न हों। इसके लिए कमर पीछे लगाकर बैठना होगा। घुटने हल्के-से उठे हों।
- डेस्क पर कंप्यूटर स्क्रीन का ऊपरी हिस्सा आंखों के लेवल पर होना चाहिए। ऊपर या नीचा होने से गर्दन में दर्द हो सकता है।

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रहें फायरप्रूफ

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गर्मियों में आए दिन कहीं-न-कहीं आग लगने की घटना होती रहती है। ऐसे में हमें सोचना चाहिए कि हम घर, ऑफिस, कार आदि में लगने वाली आग से निपटने के लिए कितने तैयार हैं? फायरप्रूफ रहने के तरीके एक्सपर्ट्स की मदद से बताने की कोशिश कर रहे हैं अनुज जोशी

गर्मियों में नमी कम होती है और तापमान बढ़ जाता है इसलिए कोई भी चीज आसानी से आग पकड़ लेती है। इस मौसम में इलेक्ट्रिक वायर भी जल्दी गर्म हो जाती हैं और जरा-सा ज्यादा लोड पड़ने पर स्पार्क होने से आग लग जाती है। घर में ऐसी कई चीजें होती हैं, जो आग लगने की वजह बन सकती हैं। इनका ध्यान रखना जरूरी है।

एसी: अब जो नए एसी आ रहे हैं, वो लेटस्ट टेक्नॉलजी वाले हैं। ये अपने आप ऑटो कट होते रहते हैं, इसलिए अगर इन्हें 24 घंटे भी चलाएं तो ये खराब नहीं होते। फिर भी एसी की ठीक से देखभाल न की जाए तो यह खतरनाक साबित हो सकता है। एसी आमतौर पर 15 एंपियर तक करंट झेल सकता है। अच्छी तरह से मेंटेन किया हुआ एसी 12 एंपियर का करंट लेता है, जबकि अगर एसी को बिना सालाना सर्विसिंग किए चलाया जाए तो वह 18 एंपियर तक का करंट लेता है। इससे न सिर्फ वायर पर लोड बढ़ता है, बल्कि एसी जल भी सकता है। इसके अलावा, शॉर्ट सर्किट से घर में आग भी लग सकती है। जब न्यूट्रल, फेज और अर्थ, तीनों वायर या कोई दो वायर आपस में टच हो जाती हैं तो शॉर्ट सर्किट होता है।

क्या करें: एसी के लिए हमेशा MCB यानी मिनिएचर सर्किट ब्रेकर स्विच लगवाएं। नॉर्मल या पावर स्विच में एसी का प्लग न लगाएं। एमसीबी के बेस्ट ब्रैंड एंकर, हैवल्स, बैनटेक्स-लिंगर हैं। सीजन शुरू होने से पहले एसी की सर्विसिंग जरूर कराएं। हो सके तो सीजन के बीच में भी एक बार सर्विसिंग कराएं। जब भी सर्विसिंग कराएं, ट्रांसफॉर्मर आदि का प्लग खुलवा कर चेक कराएं कि कहीं कोई वायर ढीली तो नहीं। एसी से आग की एक बड़ी वजह तारों के ढीला होने से उनमें स्पार्क होना है। एसी या इलेक्ट्रॉनिक सॉकेट के पास पर्दा न लगाएं क्योंकि स्पार्क होने पर पर्दा आग पकड़ सकता है। एसी को रिमोट से बंद करने के बाद उसकी MCB को भी बंद करना चाहिए। एसी को लगातार 12 घंटे से ज्यादा न चलाएं। खिड़की-दरवाजे खोलकर एसी न चलाएं।

वायर और सर्किट: घर में वायरिंग कराते समय हम पैसे बचाने के चक्कर में अक्सर सस्ती वायर डलवा देते हैं। इसके अलावा, एक बार वायरिंग कराकर हम निश्चिंत हो जाते हैं और उसे अपग्रेड नहीं कराते, जबकि वक्त के साथ घर में इलेक्ट्रिक गैजेट्स बढ़ाते जाते हैं। बड़ा टीवी, बड़ा फ्रिज, ज्यादा टन का एसी, माइक्रोवेव आदि। घर में लगी पुरानी वायर इतना लोड सहन नहीं कर पाती और शॉर्ट सर्किट हो जाता है। घरों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण यही होता है।

क्या करें: घर में हमेशा ब्रैंडेड वायर इस्तेमाल करें। सस्ती वायर खरीदने से बचें। वायर हमेशा ISI मार्क वाली खरीदें और जितने एमएम की वायर की इलेक्ट्रिशन ने सलाह दी है, उतने की ही खरीदें। घर के लिए वायर 1, 1.5, 2.5, 4, 6 और 10 एमएम की होती हैं। मीटर और सर्किट के बीच 10 एमएम की वायर, घर में पावर प्लग के लिए 4 एमएम और बाकी के लिए 2.5 एमएम की वायर लगती है। घर में पीवीसी वायर लगानी चाहिए जो 1 लेयर की होती है। यह आसानी से गरम नहीं होती। घरों में कॉपर की तार यूज करनी चाहिए, जिनमें शॉर्ट सर्किट होने की आशंका सबसे कम होती है। फिलहाल हैवल्स और पॉलिकेब की वायर सबसे बेहतर है। इनका सबसे अच्छा रोल 90 मीटर का होता है, जिनका दाम 1100 से 1200 रुपये के बीच होता है। वायर में टॉप ब्रैंड हैं: फिनॉलेक्स, प्लाजा, आरआर आदि। वैसे, घर में बिजली का लोड कम है या ज्यादा, इसका पता प्राइवेट इलेक्ट्रिशन ही लगा सकता है। वह घर की सभी लाइट, पंखे, फ्रीज, एसी, टीवी, गीजर आदि चलाकर एम्पियर मीटर से चेक करता है कि बिजली का लोड ज्यादा है कम। हर 5 साल में इलेक्ट्रिशन बुलाकर वायर चेक जरूर करानी चाहिए। साथ ही मेन सर्किट बोर्ड पर पूरा लोड डालने से अच्छा है कि दो बोर्ड बनाकर लोड को बांट दें। मीटर बॉक्स भी लकड़ी के बजाय मेटल का लगवाएं। इससे आग लगने का खतरा कम हो जाता है।

कम जगह, ज्यादा सामान: आजकल घर के साइज छोटे हो रहे हैं और सामान ज्यादा। फर्नीचर, पर्दे और घर के दूसरे साजो-सामान भी ऐसे चलन में हैं जो जल्दी आग पकड़ते हैं। मसलन पॉलिस्टर के पर्दे, सिंथेटिक कपड़े, फोम के सोफे और गद्दे आदि।

क्या करें: घर में जरूरत का सामान ही रखें और फालतू चीजों को निकालते रहें। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स अच्छी कंपनी और बढ़िया क्वॉलिटी के होने चाहिए।

लापरवाही से बचें, रखें ध्यान

- ओवरलोडिंग से बचें। अक्सर हम एक ही इलेक्ट्रॉनिक सॉकेट में टू-पिन या थ्री-पिन वाला मल्टिप्लग लगा देते हैं। इससे लोड बढ़ जाता है और स्पार्किंग होने लगती है।

- हर इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक आइटम को एक दिन में लगातार चलाने की तय सीमा होती है। फिर चाहे वह एसी हो, पंखा हो, टीवी या फिर मिक्सी ही क्यों न हो। हर प्रॉडक्ट की पैकिंग पर यह जानकारी होती है। जरूरत से ज्यादा चलाने पर इलेक्ट्रॉनिक आइटम गर्म हो जाते हैं और आग लगने का कारण बन जाते हैं।

- इनवर्टर में पानी सही रखें। कम पानी होने, इनवर्टर के तार को अच्छी तरह कवर नहीं करने या फिर तार को ढीला छोड़ देने से स्पार्किंग हो सकती है।

- जब भी घर से बाहर जाएं तो सभी स्विच और इनवर्टर जरूर बंद करें।

- हर रात गैस सिलिंडर की नॉब को बंद करके ही सोना चाहिए। साथ ही गैस पाइप को हर 6 महीने में बदलते रहना चाहिए।

- रसोई में चूल्हे पर दूध का पतीला या तेल की कड़ाही चढ़ाकर न छोड़ें। ऐसा कर हम अक्सर दूसरे कामों में बिजी हो जाते हैं और तेल बेहद गर्म होकर आग पकड़ लेता है या फिर दूध उबल कर चूल्हे पर गिर जाता है। इससे चूल्हे की आग बुझ जाती है और गैस लीक होती रहती है, जो आग पकड़ लेती है।

- खराब रबड़ या खराब सीटी वाला प्रेशर कुकर यूज करना भी खतरनाक है। ऐसा होने पर कुकर ब्लास्ट कर सकता है।

- किचन में खाना बनाते समय ढीले-ढाले और सिंथेटिक कपड़े न पहनें। ये आग जल्दी पकड़ते हैं।

- फ्रिज के दरवाजे पर लगी रबड़ को अच्छी तरह साफ करें, वरना दरवाजा सही से बंद नहीं होगा। इससे कम्प्रेशर गर्म होकर आग लगने की वजह बन सकता है।

- गर्म आयरन को किसी कपड़े, पर्दे या इलेक्ट्रॉनिक प्लग के पास न रखें। ये चीजें आग पकड़ सकती हैं।

- बाथरूम के अंदर स्विच न लगवाएं, वरना नहाते समय या कपड़े धोते समय पानी उस पर गिर सकता है, जिससे स्पार्क हो सकता है। अंदर लगाना ही है तो ऊंचाई ज्यादा रखवाएं, जहां तक पानी की छीटें न जा सकें या फिर स्विच बोर्ड पर प्लास्टिक शीट चिपका दें।

- बच्चे के हाथ में माचिस न दें। यह आग लगने की वजह बन सकता है।

- दीया, अगरबत्ती, मोमबत्ती जलती छोड़कर सब लोग घर से बाहर न जाएं।

करके रखें तैयारी

आग शुरू में हमेशा हल्की होती है। उसे उसी समय रोक देना बेहतर है, लेकिन अक्सर उस वक्त हम घबरा जाते हैं और कोई कदम नहीं उठा पाते। यह भी कह सकते हैं कि हम इसलिए कदम उठा नहीं पाते क्योंकि हमने पहले से तैयारी नहीं की होती। मसलन घर में फायर एक्स्टिंगग्विशर रखा है, लेकिन हमें उसे चलाना नहीं आता। ऐसे में जरूरी है कि हम आग से निपटने के लिए पहले से तैयार रहें। एक्सपर्ट मानते हैं कि आग कैसे बुझानी है, एक-दूसरे को कैसे बचाना है, इन सबके लिए सभी को हर दो-तीन महीने में प्रैक्टिस जरूर करनी चाहिए। मेन गेट के अलावा, आग लगने पर और कहां से सुरक्षित निकल सकते हैं, यह भी पहले से सोच कर रखें और इसकी प्रैक्टिस भी करते रहें।

कार को ऐसे बचाएं आग से

- गर्मियों में कार को छांव में खड़ा करें और अगर मजबूरन धूप में खड़ा कर रहे हैं तो कार को ऐसे खड़ा करें कि धूप सीधा कार के अगले हिस्से पर न पड़े। कार के शीशे को हल्का से खोल दें। इससे कार में गर्म हवा नहीं भरती। अगर धूल-मिट्टी की वजह से शीशा हल्का-सा नहीं खोल सकते तो शीशों को किसी कपड़े से ढक देना चाहिए ताकि धूप सीधा कार के अंदर न आ सके।

- कार में आग से बचाव के लिए ड्राइवर की बगल वाली सीट के नीचे फायर एक्स्टिंगग्विशर जरूर रखना चाहिए, ताकि आग लगने पर इसका इस्तेमाल किया जा सके।

- कार में छोटा-सा हैमर भी जरूर रखें, ताकि आग लगने पर दरवाजे लॉक हो जाने पर उससे शीशा तोड़कर बाहर निकला जा सके। अगर हैमर नहीं है तो सीट के हेड रेस्ट या फिर गियर लॉक के लिवर का इस्तेमाल किया जा सकता है।

आग लग जाए तो...

- घबराएं नहीं और जिस चीज में आग लगी है, उसके आसपास रखी सभी चीजों को हटाने की कोशिश करें, ताकि आग को फैलने का मौका न मिले।

- अगर शॉर्ट सर्किट से आग लगती है तो मेन सर्किट को बंद कर दें और फायर एक्सटिंगविशर का प्रयोग करें। अगर यह नहीं है तो आग पर मिट्टी या रेत डालें। पानी न डालें। इलेक्ट्रिकल फायर में पानी का इस्तेमाल इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे करंट लग सकता है।

- आग ज्यादा है तो घर के सभी सदस्यों को इकट्ठे कर सुरक्षित जगह पर जाने की कोशिश करें। अगर बिल्डिंग में रहते हैं तो लिफ्ट की जगह सीढ़ियों के जरिए नीचे उतरें।

- आग लग जाने पर धुआं फैलता है इसलिए मुंह को ढककर निकलें।

- खाना बनाते समय अगर कढ़ाही में आग लग जाए तो उसे किसी बड़े बर्तन से ढक देना चाहिए। इससे आग बुझ जाएगी।

- अगर सिलिंडर में आग लग जाती है तो सबसे पहले उसकी नॉब को बंद करने की कोशिश करें। फिर गीला कपड़ा या बोरी डालकर उसे ठंडा करने की कोशिश करें। साथ ही सिलिंडर को खींचकर खुली जगह पर ले जाएं।

- कपड़ों में आग लग जाए तो भागने या खड़े रहने की जगह लेट जाएं, इससे आग फैलेगी नहीं। साथ ही कंबल से या फिर फायर एक्स्टिंगग्विशर से उसे बुझाने की कोशिश करें।

ये उपकरण हैं कारगर

आग कैसे और कहां लगी है, इसके आधार पर फायर एक्स्टिंगग्विशर को 5 कैटिगरी में बांटा गया है। हर फायर एक्स्टिंगग्विशर पर कैटिगरी लिखी होती है। आग लगने की वजह के मुताबिक उन्हें यूज करें:

Class A: सॉलिड यानी कागज, लकड़ी, कपड़ा, प्लास्टिक आदि से लगने वाली आग

Class B: लिक्विड यानी पेट्रोल, पेंट, स्प्रिट या तेल से लगने वाली आग

Class C: एलपीजी यानी रसोई गैस, वेल्डिंग गैस और बिजली के उपकरण से लगने वाली आग

Class D: मेटल यानी मैग्नीशियम, सोडियम या पोटैशियम से लगने वाली आग

Class K: कुकिंग ऑयल से लगने वाली आग

आग के क्लासिफिकेशन के अनुसार ही फायर एक्स्टिंगग्विशर का भी क्लासिफिकेशन किया गया है:

वॉटर एंड फोम: क्लास A की आग के लिए

कार्बन डाईऑक्साइड: क्लास B और C की आग के लिए

ड्राई केमिकल: क्लास A, B और C की आग के लिए

वेट केमिकल: क्लास K की आग के लिए

क्लीन एजेंट: क्लास B और C की आग के लिए

ड्राई पाउडर: क्लास B की आग के लिए

वॉटर मिस्ट: क्लास A और C की आग के लिए

आमतौर पर घर में ड्राई केमिकल वाला फायर एक्स्टिंगग्विशर ही रखा जाता है। इस तरह के एक्स्टिंगग्विशर के सिलिंडर पर ABC लिखा होता है। मार्केट में इसके रेट वजन के हिसाब से हैं:

1 किलो: 740 रुपये

2 किलो: 900 रुपये

4 किलो: 1400 रुपये

6 किलो: 1740 रुपये

फायर एक्स्टिंगग्विशर चलाना सीखें: nbt.in/eyOxEZ

ये उपकरण भी बहुत काम के

स्मोक/फायर कर्टन: इसे एक तय एरिया में लगाया जाता है और लोकल फायर अलार्म पैनल या फिर स्मोक डिटेक्टर से कनेक्ट कर देते हैं। आग लगते ही या धुआं फैलते ही ये कर्टन ऐक्टिव हो जाते हैं। ये आग और धुएं को फैलने से रोकते हैं। जिस जगह ये लगे होते हैं, वहां से आग या धुएं को फैलने के लिए कुछ देर के लिए रोक देते हैं। इससे इमारत में फंसे लोगों को बचाने में आसानी होती है और पर्याप्त समय भी मिल जाता है। अमूमन इस तरह के कर्टन आग या धुएं को ज्यादा-से-ज्यादा दो घंटे तक रोके रखने में सक्षम होते हैं और इतना समय रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने के लिए काफी होता है। इसे एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस टर्मिनल, फैक्ट्री, कमर्शल बिल्डिंग, ऑफिस या फिर रेजिडेंशल सोसायटी में लगाया जा सकता है।

स्मोक डिटेक्टर: इसमें एक तरह का सेंसर लगा होता है, जिसे आग से फैलने वाले धुएं की मौजूदगी का पता लगाने के लिए लगाया जाता है। यह इस तरह डिजाइन किया जाता है कि जहां इसे लगाया गया है, उसके आसपास धुआं फैलते ही यह ऐक्टिव हो जाता है और फायर अलार्म सिस्टम को सिग्नल भेजता है। इसके बाद फायर अलार्म सिस्टम के जरिए पूरी बिल्डिंग में लगे हॉर्न या हूटर बजने लगते हैं। यह धुआं होने पर बिल्कुल सटीक तरीके से काम करता है। यह सिर्फ लोगों को अलर्ट करने के काम आता है, न कि आग बुझाने के। सुरक्षा के नजरिये से इसे फैक्ट्री, कमर्शल बिल्डिंग, ऑफिस या फिर घर में लगाना बेहद जरूरी है। स्मोक डिटेक्टर को फायर अलार्म सिस्टम से वायर के जरिए कनेक्ट किया जाता है, लेकिन अब मार्केट में वायरलेस डिटेक्टर भी आ रहे हैं। स्मोक डिटेक्टर दो तरह के होते हैं। एक कंवेंशनल जो 1200 रुपये का आता है और दूसरा अड्रेसेबल जो 3500 रुपये का आता है।

फायर अलार्म सिस्टम: यह भी आग या धुएं की मौजूदगी का पता लगाने में मदद करता है। यह बिल्डिंग के फायर कंट्रोल रूम में लगा होता है। यह सिस्टम ऑटोमेटिक तरीके से काम करता है। आग लगते ही या धुआं फैलते ही यह अपने आप चालू हो जाता है। इससे पता चल जाता है कि बिल्डिंग में आग कहां लगी है। साथ ही यह एक स्पीकर से जुड़ा होता है जो हॉर्न बजाकर पूरी बिल्डिंग में मौजूद लोगों को सूचित करता है। आधुनिक फायर अलार्म सिस्टम में तो रेकॉर्डड मेसेज होता है, जो आग लगने या धुआं फैलने पर लोगों को जगह खाली करने की सूचना देता है। इससे बिल्डिंग को खाली कराने और आग को बुझाने की तैयारी करने में मदद मिलती है। फायर अलार्म सिस्टम दो तरह के होते हैं।

कंवेंशनल सिस्टम: यह सिस्टम अब पुराना है। इसके जरिए सिर्फ इतना पता चल सकता है कि आग बिल्डिंग में कहां लगी है। उदाहरण के लिए बिल्डिंग के हर फ्लोर को चार-चार हिस्से में बांटा गया है तो इससे यह पता चल जाएगा कि आग किस हिस्से में लगी है। यह पता चलने के बाद फायर फाइटर वहां जाकर देखेगा कि आग कहां लगी हुई है।

अड्रेसेबल सिस्टम: यह आज के जमाने का सिस्टम है। इसका पैनल बिल्कुल सटीक तरीके से बताता है कि आग बिल्डिंग के किस हिस्से के कौन-से कमरे में किस जगह लगी है। इससे फायर फाइटर के लिए आग को जल्द-से-जल्द बुझाना आसान हो जाता है। यह सिस्टम 5 से 7 लाख रुपये के बीच है।

फायर होज रील: यह उपकरण हर कमर्शल और रेजिडेंशल सोसायटी में होना जरूरी है। आग बुझाने में यह बेहद कारगर है। किसी भी ट्रेंड व्यक्ति द्वारा इसे इंस्टॉल कर चालू करने में 20 से 30 सेकंड लगते हैं। तय स्टैंडर्ड के अनुसार एक फायर होज रील की लंबाई 30 मीटर की होती है और कम-से-कम प्रेशर ढाई किलो तो होना ही चाहिए ताकि इतने प्रेशर से निकला पानी कम-से-कम 20 मीटर दूर तक आग बुझा सके। बिल्डिंग की ऊंचाई के अनुसार इसके प्रेशर को बढ़ाया जाता है। इनमें तीन तरह की कप्लिंग (स्टेनलेस स्टील, गन मेटल और एल्युमिनियम) लगती हैं, जो न तो जाम होती हैं और न ही इनमें जंग लगता है। इसके जरिए निकलने वाले पानी की धार इतनी तेज होती है कि अगर इसे किसी शख्स पर छोड़ा जाए तो उसे गंभीर चोट लग सकती है। इसकी एक खास बात यह है कि इसके पाइप को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह बाहर से गीला रहता है ताकि बिल्डिंग के अंदर जाकर आग बुझाने की स्थिति में पाइप आग न पकड़ ले। फायर होज रील को बिल्डिंग के ऊपर लगे वॉटर टैंक या फिर अंडरग्राउंड वॉटर टैंक से कनेक्ट किया जाता है। इसकी कीमत 7 से 8 हजार के करीब है।

पॉर्टबल फायर होज रील: यह उपकरण हाल में मार्केट में लॉन्च हुआ है। जहां फायर होज रील को कमर्शल और रेजिडेंशल सोसायटी में बने वॉटर टैंक से कनेक्ट किया जाता है वहीं इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे किसी भी आम नल के साथ कनेक्ट किया जा सकता है। इसे उठाना और कहीं भी ले जाना आसान होता है। इसकी पाइप के आगे जेट गन लीवर लगा होता है जो सामान्य नल से आने वाले पानी को भी तेज धार के साथ आग पर फेंकता है।

फायर स्प्रिंकलर सिस्टम: सिर्फ ये स्प्रिंकलर ही होते हैं जो आग लगने पर सबसे पहले आग को बुझाने का काम करते हैं। कमरे का तापमान 67 डिग्री से ज्यादा होते ही इनमें लगे रबड़ पिघल जाते हैं और पानी की बौछार करने लगते हैं। आमतौर पर स्प्रिंकलर के पाइप जिस वॉटर टैंक से जुड़े होते हैं उनमें 10 से 25 गैलन पानी होना जरूरी है। इनमें पाइप मेटल के होते हैं जो आग नहीं पकड़ते। यह आग से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम कर देते हैं और लोगों की जिंदगी भी बचाते हैं। अब तो इनका इस्तेमाल कमर्शल व रेजिडेंशल सोसायटी के साथ-साथ घरों में भी होने लगा है।

मॉड्युलर ऑटोमैटिक एक्स्टिंगग्विशर: यह स्प्रिंकलर बल्ब की शेप में फायर एक्स्टिंगग्विशर होते हैं जो कमरे की सीलिंग पर लगते हैं। इनमें भी आम फायर एक्स्टिंगग्विशर की तरह पाउडर भरा होता है। इन्हें सर्वर और यूपीएस रूम में लगाया जाता है। आग लगने के बाद कमरे का टेंपरेचर 68 डिग्री के पास पहुंचते ही ये स्प्रिंकल बल्ब फट जाते हैं और केमिकल वाला पाउडर चारों ओर फैल जाता है, जो आग बुझाने में मदद करता है।

गैस फ्लडिंग सिस्टम: इनका इस्तेमाल सिर्फ सर्वर रूम में ही किया जा सकता है। ये फायर एक्स्टिंगग्विशर की तरह सिलेंडर होते हैं जो सर्वर रूम में जरूरत के हिसाब से रखे जाते हैं। ये आग लगते ही ऐक्टिव हो जाते हैं और पाउडर रिलीज़ करते हैं। जहां मॉड्युलर ऑटोमैटिक एक्स्टिंगग्विशर सिर्फ थोड़ी-सी जगह में काम करते हैं वहीं ये सिलिंडर पूरे कमरे को पाउडर से भर देते हैं। आम एक्स्टिंगग्विशर के मुकाबले इसमें भरा जाने वाला पाउडर महंगा होता है। एक सिलिंडर को भरने में करीब एक लाख रुपये तक का खर्चा आता है। इनमें दो सेंसर लगे होते हैं। दूसरे सेंसर के ऐक्टिव होने के बाद ही सिलेंडर से पाउडर निकलता है।

फायर बॉल: अगर आग ज्यादा फैल जाए और वहां तक जाना मुश्किल हो तो वहां फायर बॉल को फेंका जाता है, जिससे आग कुछ कम हो जाती है। इसके बाद फायर फाइटर वहां तक जाकर आग बुझाने का काम कर सकता है।

फायर रेजिस्टेंट पेंट: यह एक तरह की कोटिंग होती है, जिसे फर्नीचर, दरवाजों और खिड़कियों पर किया जाता है। हालांकि यह पेंट किसी भी चीज को फायरप्रूफ तो नहीं बनाता, लेकिन उसमें आग लगने के टाइम को जरूर कम देता है। इससे आग को फैलने में समय लगता है और लोगों को आसानी से बचाया जा सकता है। फायर रेजिस्टेंट पेंट की कीमत करीब 480 रुपये किलो है।

फायर रेजिस्टेंट डोर: इस तरह के दरवाजों में जल्दी आग नहीं लगती। यह कुछ देर के लिए आग को कंट्रोल करके रखते हैं, जिससे बिल्डिंग में फंस लोगों को बाहर निकलने का समय मिल जाता है। फायर रेजिस्टेंट डोर की कीमत 15 से 20 हजार रुपये से शुरू होती है।

नोट: आग लगने के बाद कंपनी, ऑफिस, कमर्शल बिल्डिंग और फैक्ट्री में लगे एएचयू (एयर हाउस यूनिट) और एक्सेस कंट्रोल सिस्टम बंद कर देने चाहिए। एएचयू सभी एसी को बंद कर देते हैं ताकि हवा से आग न फैले और एक्सेस कंट्रोल सिस्टम बंद होते ही सभी बायोमीट्रिक दरवाजे अनलॉक हो जाते हैं।

आग से बचने की कितनी तैयारी है, जानें

1. क्या घर या दफ्तर में सब लोगों को पता है कि मेन स्विच कहां है और कैसे बंद करना है?

2. यूपीएस का स्विच कहां है और कैसे बंद करना है?

3. क्या ABC क्लास का फायर एक्स्टिंगग्विशर लगा है?

4. क्या सबको पता है कि यह कहां होता है और इसे कैसे इस्तेमाल किया जाता है?

5. क्या सबको फायर ब्रिगेड बुलाने का नंबर सबको पता है?

6. क्या स्मोक अलार्म लगा है? हर महीने इसकी टेस्टिंग होती है?

7. क्या आपके तमाम अहम दस्तावेज क्लाउड पर डिजिटल रूप में स्टोर हैं?

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पिओ और पिलाओ

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गर्मियों का मौसम अपने साथ लाता है ढेर सारे ठंडे-ठंडे कूल-कूल ड्रिंक्स की बहार। अगर इन ड्रिंक्स को घर पर ही तैयार किया जाए तो न सिर्फ ये जेब को किफायती पड़ते हैं, बल्कि सेहत के लिए ज्यादा मुफीद होते हैं। एक्सपर्ट्स से बात करके घर पर ही समर के कूल-कूल ड्रिंक्स तैयार करने के लिए बेहतरीन रेसिपी बता रही हैं प्रियंका सिंह

एक्सपर्ट्स पैनल

कुणाल कपूर, सिलेब्रिटी शेफ

निशा मधुलिका, यू-ट्यूब शेफ

वैभव भार्गव, शेफ, ITC शेरटन

भरत अलघ, इग्जेक्यूटिव शेफ, सिटरस होटल

नीलांजना सिंह, सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट

एक बार बनाओ, हफ्तों तक चलाओ

आम पना

आम पना गर्मियों का खास ड्रिंक है। कच्चे आम की तासीर ठंडी होती है। टेस्ट से भरपूर आम पना विटामिन-सी का अच्छा सोर्स है। यह स्किन और पाचन, दोनों के लिए अच्छा है। इसे लंबे समय तक रखा जा सकता है।

कितना बनेगा: 15-20 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 40 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर 2-3 महीनों तक लेकिन 15 दिन से अंदर कंस्यूम करना बेहतर क्योंकि खाने की चीजें ताजा बनाना ही अच्छा है।

सामग्री: कच्चे आम: 500 ग्राम, चीनी: 300 ग्राम, पुदीने के पत्ते: 1 कप, नमक: 2 छोटे चम्मच, काला नमक: 2 छोटे चम्मच, भूना जीरा: 4 छोटे चम्मच, काली मिर्च: 1- 2 छोटे चम्मच, छोटी इलायची: 7-8, अदरक: 1 इंच टुकड़ा

तरीका: आम को धोकर छील लें। फिर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। एक बड़ा बर्तन लें। इसमें आम के टुकड़े, कटा हुआ अदरक, इलायची, काली मिर्च और आधा कप पानी डालकर ढककर गैस पर पकने रखें दें। आम के पल्प में उबाल आने के बाद 4-5 मिनट मीडियम आंच पर पकने दें। आम का पल्प जब नरम हो जाए तो गैस बंद कर दें। पल्प को ठंडा होने दें। दूसरे बर्तन में चीनी और 1 कप पानी मिलाकर, चाशनी बनाने के लिए रख दें। धीमी आंच पर चीनी को पानी में घुलने तक पकाएं। इसके बाद मिक्सर जार में आम का पल्प, पुदीने के पत्ते, जीरा, सादा नमक, काला नमक डालकर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को चाशनी में डालकर पका लें। चाशनी को चेक करें। अगर चाशनी चिपकने लग गई है तो पना बनकर तैयार है। गैस बंद कर दें। आम पना को ठंडा होने दें। ठंडा होने पर छान लें। छानने पर बचा हुआ मोटा मसाला एक बार फिर मिक्सर में डाल कर पिस लें और छान कर इसे पना में डाल दें। आम पना बनकर तैयार है। इसे बोतल में भरकर रख दें। जब भी आपका मन आम पना पीने का करे तो गिलास में एक-तिहाई आम पना डालकर बाकी पानी और बर्फ मिलाकर पिएं। अगर आप आम पना को फ्रिज से बाहर रखना चाहते हैं तो इसमें सोडियम बेंजोएट (पाउडर या लिक्विड) की 1 छोटी चम्मच पना में डालकर मिला दें। इसके बाद बाहर रखकर ही इसे 2-3 महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि खाने में जितना मुमकिन हो, हमें किसी भी केमिकल के इस्तेमाल से बचना चाहिए।

नोट: आम पना कभी भी हरे रंग का नहीं बनता इसलिए मार्केट में जो आम पना मिलते हैं, उनमें कलर मिलाया होता है। इसके अलावा आम पना को हो सके तो छाने नहीं। इसमें हल्का पल्प अच्छा लगता है।

आम का शरबत

कितना बनेगा: 4-5 गिलास

कितना समय लगेगा: 10 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर 15-20 दिन तक

सामग्री: पके आमः 3-4, नीबूः 1, चीनीः 1/2 कप चीनी (100 ग्राम)

बनाने का तरीका: आम पना खट्टा-मीठा होता है लेकिन यह शरबत सिर्फ मीठा होता है। इसके लिए आम का पल्प निकाल लें। चीनी को किसी बर्तन में डालें। 1/2 कप से थोड़ा-सा ज्यादा पानी मिलाएं और उबलने रख दें। पहला उबाल आने के बाद 3-4 मिनट तेज गैस पर उबलने दें। इस तरह 1 तार की चाशनी तैयार कर लें। चाशनी को ठंडा होने दें। फिर आम का पल्प और नीबू का रस इस चाशनी में मिलाएं और छान लें। किसी बोतल में भरकर फ्रिज में रखें। जब भी आपका मन करे, 1 हिस्सा कंसंट्रेटिड आम का शरबत और 6 गुना पानी मिलाएं और थोड़े-से आइस क्यूब्स मिलाएं और पिएं। आम का शर्बत तैयार है।

नोट: यह बाजार में मिलनेवाले पैक्ड मैंगो जूस का अच्छा विकल्प है। यह जूस बच्चों को बहुत पसंद आता है।

ठंडाई

ठंडाई: ठंडाई में बादाम, सौंफ, गुलाब की पत्तियां, मगज और खस के बीज आदि होते हैं। यह ताजगी और एनर्जी देता है। अगर शुगर लेवल ठीक है तो यह एक अच्छा पेय है। बच्चों के लिए यह खासतौर पर अच्छी होती है। यह लू और नकसीर (नाक से खून आने) जैसी तकलीफों से भी बचाव करती है।

कितना बनेगी: 20-22 गिलास

कितना समय लगेगा: 40 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर 1 महीने तक

सामग्री: चीनी: 5 कप (करीब सवा किलो), पानी: 2 1/2 कप (600 ग्राम), बादाम: 1/2 कप से थोड़े ज्यादा (100 ग्राम), सौंफ: 1/2 कप ( 50 ग्राम), काली मिर्च: 2 छोटी चम्मच, खसखस: 1/2 कप (50 ग्राम), खरबूजे के बीज: 1/2 कप (50 ग्राम), छोटी इलाइची: 30-35 (छील कर दाने निकाल लें), गुलाब जलः 2 टेबल स्पून

बनाने का तरीका: किसी बर्तन में चीनी और पानी मिलाएं और गैस पर उबालने के लिए रख दें। पहला उबाल आने के बाद 5-6 मिनट तक और उबालें। गैस बंद कर ठंडा कर लें। सौंफ, काली मिर्च, बादाम, खरबूजे के बीज, इलाइची के दाने और खसखस को साफ करें और धोकर पानी में अलग-अलग 2 घंटे के लिए भिगो दें। रात भर भी भिगो सकते हैं। बादाम को छील कर छिलका अलग कर दें। एक्स्ट्रा पानी निकालकर सभी चीजों को बारीक पीस लें। पीसने के लिए पानी की जगह चीनी के घोल का इस्तेमाल करें। बारीक पिसे मिक्चर को चीनी के घोल में मिलाएं और छान लें। बचे हुए मोटे मिक्चर में घोल मिला कर फिर से बारीक होने तक पीस कर छान लें। ठंडाई बन चुकी है। इसे एयरटाइट बोतल में भरें और फ्रिज में रख दें। जब भी ठंडाई पीनी हो एक-चौथाई हिस्सा लेकर उसमें दूध और बर्फ मिलाएं। ठंडी-ठंडी ठंडाई पिएं।

नोट: ड्राइफ्रूट्स और शुगर काफी ज्यादा होने से ठंडाई मोटापा बढ़ाती है। हार्ट, हाइपर टेंशन और शुगर के मरीज इससे परहेज करें।

नीबू-पुदीना शरबत

नीबू-पुदीना का शरबत आपके दिल और दिमाग, दोनों को ठंडक पहुंचाएगा। इसे वैसे तो आप ताजा बनाकर भी पी सकते हैं लेकिन अगर कंसंट्रेट बनाकर रख लेंगे तो जब मर्जी तब इस्तेमाल कर सकते हैं।

कितना बनेगा: 15-17 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 20-25 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर महीना भर

सामग्री: नीबू: 1/2 किलो, चीनी: 1 किलो, पुदीना: 1 गुच्छी या 1 कप पत्तियां, अदरक: 1 इंच लंबा टुकड़ा, काला नमक: 1 छोटी चम्मच

बनाने का तरीका: चीनी को किसी बर्तन में डालकर एक-तिहाई पानी डालें। मसलन 1 किलो चीनी में 300 मिली (1 1/2 कप) पानी मिला लें। इस घोल को आग पर पकने के लिए रखें। घोल में चीनी घुलने और उबाल आने के बाद 5-6 मिनट और पका लें। घोल को हाथ की उंगली और अंगूठे के बीच लेकर देखें। अगर थोड़ा चिपकता है तो गैस बंद कर दें। फिर घोल को ठंडा होने के लिए रख दें। सारे नीबुओं का रस निचोड़ लें। पुदीने की पत्तियों को साफ पानी से 2 बार धो लें। अदरक को भी छील कर धो लें। पुदीना और अदरक को मिक्सर में बारीक पीस लें। पुदीना पीसते समय पानी का इस्तेमाल न करें बल्कि थोड़ा चीनी का घोल ही डालकर पीस लें। चीनी के ठंडे घोल में पुदीना और अदरक का पिसा हुआ पेस्ट मिलाएं। नीबू का रस, काला नमक भी मिलाएं। शरबत को छानें। बस, नीबू पुदीना कंसंट्रेट शरबत तैयार है। इस शरबत को कांच की सूखी साफ बोतल में भर कर फ्रिज में रख लें। जब शरबत पीने का मन हो तो गिलास में एक हिस्सा शरबत डालें और 6 गुना पानी मिलाएं। 2-3 आइस क्यूब डालें। ठंडा-ठंडा नीबू पुदीना शरबत तैयार है।

नोट: अगर पसंद हो तो आप चीनी की जगह शहद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

स्ट्रॉबेरी क्रश

कितना बनेगा: 10-12 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 30 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर 15-20 दिन

सामग्री: स्ट्रॉबेरी: 240 ग्राम, चीनी: 200 ग्राम, नीबू का रस: 2 टेबलस्पून

बनाने का तरीका: स्ट्रॉबेरी को गुनगुने पानी में धोकर सुखा लें। फिर उन्हें मिक्सर में पीस लें। इसके बाद एक बर्तन में 1/2 कप पानी डालकर चीनी और पिसी स्ट्रॉबेरी उसमें मिला लें। उबलने के लिए रख दें। एक तार की चाशनी बन जाए तो गैस बंद कर दें। ठंडा होने पर नीबू का रस मिला दें। फिर कांच की बोतल में भरकर फ्रिज में रख दें। जब भी पीने का मन हो एक-तिहाई हिस्सा क्रश का लेकर बाकी ठंडा पानी मिला लें।

नोट: पैक्ड जूस का यह अच्छा विकल्प है। स्वाद तो अच्छा है ही, हेल्दी भी है।

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फटाफट बनाएं

छाछ

छाछ में प्रोटीन खूब होते हें। प्रोटीन शरीर के टिश्यूज को हुए नुकसान की भरपाई करते हैं। गर्मियों में खूब छाछ पिएं।

कितनी बनेगी: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 2 मिनट

सामग्री: एक कटोरी दही, काला नमक, भुना जीरा

बनाने का तरीका: किसी गहरे बर्तन में दही डालकर उसे रई से मथ लें। मिक्सर में डालकर भी चला सकते हैं। ज्यादा न चलाएं, वरना मक्खन बनने लगेगा। फिर इसमें भूना जीरा, काला नमक डाल दें। चाहें तो धनिया या पुदीना भी डाल सकते हैं। अगर अलग स्वाद चाहते हैं तो इसमें सरसों का तड़का भी लगा सकते हैं। इसके अलावा, एक दिए तो गैस पर गर्म करके उसमें थोड़ा सरसों का तेल या देसी घी डाल लें। फिर इस दिए तो छाछ में डुबो दें। छाछ में सोंधी खुशबू आएगी। छाछ को अलग स्वाद देने के लिए उसमें तुलसी या लेमनग्रास भी डाल सकते हैं।

नोट: आजकल मार्केट में पैक्ड छाछ/लस्सी भी मिलती है। इसे खरीदते वक्त एक्सपायरी डेट जरूर चेक करें और देखें कि पैकेट अच्छी तरह बंद हो।

ताजा आम पना

कितना बनेगा: 8-10 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 20-25 मिनट

सामग्री: कच्चे आम: 300 ग्राम (2-3 मीडियम आकार के), भुना जीरा पाउडर: 2 छोटे चम्मच, काला नमक: स्वादानुसार (2 छोटे चम्मच), काली मिर्च: एक-चौथाई छोटी चम्मच, चीनी: 100- 150 ग्राम (1/2 - 3/4 कप), पुदीना: 20-30 पत्तियां

बनाने का तरीका: कच्चे आमों को धोकर गूदा निकाल लें। इस गूदे को एक कप पानी डालकर उबालें। अब इस उबले पल्प को मिक्सर में चीनी, काला नमक और पुदीना के पत्ते मिलाकर पीस लें। फिर एक लीटर ठंडा पानी मिलाएं और छान लें। काली मिर्च और भुना जीरा पाउडर डालें। आम पना तैयार है। इसमें आइस क्यूब डालकर परोसें। सजाने के लिए पुदीने की पत्तियों भी डाल सकते हैं।

नोट: इसे बनाकर ताजा भी पी सकते हैं और फ्रिज में रख कर 3-4 दिन तक यूज कर सकते हैं।

आम की स्मूदी

कितनी बनेगी: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 5 मिनट

सामग्री: आम: 1 मीडियम साइज, ताजा गाढ़ा दही: 1 कप, पिस्ता: 2 (पतले कटे हुए), चीनी: 4 छोटी चम्मच

बनाने का तरीका: आम को छीलकर उसका पल्प निकाल लें और गुठली हटा दें। इसके बाद आम के पल्प को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। मिक्सर जार में आम के टुकड़े, चीनी और दही डाल दें और अच्छे से ब्लेंड कर लें। इसके बाद इसमें कुछ बर्फ के टुकड़े डाल दें और एक बार फिर से अच्छी तरह से ब्लेंड कर लें। आम की ठंडी-ठंडी स्मूदी तैयार हैं। गिलासों में डाल कर कटे पिस्तों से सजाकर सर्व करें।

नोट: सफेदा आम या कोई भी ऐसा आम लें, जिसमें रेशे न हों। चीनी की जगह शहद, ब्राउन शुगर या खांड़ भी डाल सकते हैं। आम की तरह की स्ट्रॉबेरी, एपल, चीकू आदि की भी स्मूदी बना सकते हैं।

नमकीन सत्तू

कितना बनेगा: 2 छोटे गिलास

कितना वक्त लगेगा: 8 मिनट

सामग्री: चने का सत्तू: आधा कप, पुदीने के पत्ते: 10, नीबू का रस: 2 छोटे चम्मच, हरी मिर्च: आधी, भुना जीरा: आधा छोटा चम्मच, काला नमक: आधा छोटा चम्मच, सादा नमक: एक-चौथाई छोटा चम्मच

बनाने का तरीका: पुदीना के पत्ते धोएं। 2 पत्ते साबुत छोड़ कर, सारे पत्ते बारीक काट लें। हरी मिर्च को बारीक काट लें। सत्तू में थोड़ा-सा ठंडा पानी डालकर गुठलियां खत्म होने तक घोल लें। फिर 1 कप पानी मिला दें। घोल में काला नमक, सादा नमक, हरी मिर्च, पुदीना की पत्तियां, नीबू का रस और भुना जीरा पाउडर डाल कर मिला दें। सत्तू का नमकीन शर्बत तैयार है। सत्तू के नमकीन शर्बत को गिलास में डालें और पुदीने की साबुत पत्तियां डालकर सजा दें। आइस क्यूब भी डाल सकते हैं।

नोट: गर्मी के मौसम में रोजाना 1 -2 गिलास सत्तू का नमकीन शर्बत बनाकर पिएं। यह आपको गर्मी से राहत देगा और लू से भी बचाएगा। चाहें तो मीठा भी बना सकते हैं।

जलजीरा

गर्मी के मौसम में ताजा और ठंडा जल जीरा बनाकर पिएं। जल जीरा बहुत ही स्वादिष्ट होता है, ठंडक और ताजगी देने के साथ पाचन में भी मदद करता है।

कितना बनेगा: 3-4 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 10 मिनट

सामग्री: पुदीना के पत्ते: आधा कप, धनिये के पत्ते: आधा कप, नीबू: 2, मीडियम आकार के, रायते वाली बूंदी: आधा कप, अदरक: 1/2 -1 इंच टुकड़ा, हींग: 1 चुटकी, काली मिर्च: 3/4 छोटी चम्मच, भुना जीरा: 2 छोटी चम्मच, चीनी: 2 छोटी चम्मच, काला नमक: 1 छोटी चम्मच, सादा नमक: आधा छोटी चम्मच या स्वादानुसार

बनाने का तरीका: पुदीना और धनिया को अच्छी तरह साफ करके धो लें। अदरक छील कर धो लें। मसालों को बारीक पीस कर तैयार कर लें। हरा धनिया और पुदीना जार में डाल दें। अदरक को छोटा-छोटा काट कर डाल दें। काली मिर्च, भुना जीरा, चीनी, हींग, काला नमक और सादा नमक डाल दें। थोड़ा-सा पानी डाल कर मसालों को एकदम बारीक पीस लें। पिसे मसाले जार में डाल दें और 4 कप ठंडा पानी डाल दें। अच्छी तरह मिक्स कर लें। नीबू का रस निकाल कर मिला दें। ताजा जलजीरा बनकर तैयार है। गिलास में जलजीरा डालें और 1-2 छोटी चम्मच बूंदी डाल दें। ठंडा जलजीरा पिएं और मन को तरोताजा करें।

नोट: जो लोग ज्यादा खट्टा और तीखा पसंद करते हैं, वे चीनी न डालें। ज्यादा तीखा पसंद करनेवाले 2 हरी मिर्च भी मसाले के साथ डालकर पीस सकते हैं। ब्लड प्रेशर के मरीजों को इसे ज्यादा नहीं पीना चाहिए क्योंकि इसमें नमक थोड़ा ज्यादा होता है।

आइस टी

गर्मियों में चाय पीने का मन नहीं करता लेकिन अगर चाय के फायदे और स्वाद, दोनों लेना चाहते हैं तो आइस टी बनाकर पीना चाहिए।

कितनी बनेगी: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 10 मिनट

सामग्री: चाय: 1 छोटी चम्मच, चीनीः 2-3 छोटी चम्मच, छोटी इलाइचीः 2 (छील कर बीज निकाल लें), नीबूः 1/2 नीबू का रस, नीबू के पतले छल्ले 4

बनाने का तरीका: किसी बर्तन में 2 कप पानी डालकर उबलने रख दें। पानी में उबाल आने पर चीनी, चाय की पत्ती और इलायची पाउडर डालें। गैस बंद कर दें। ढककर 2-3 मिनट चाय को बर्तन में ही छोड़ दें। फिर चाय को किसी बर्तन में छान लें और फ्रिज में रखकर ठंडी कर लें। ठंडी हो जाने पर चाय में आधा नीबू का रस मिला लें। 2 लंबे गिलास लें। हर गिलास में 7-8 टुकड़े बर्फ के डालें। बर्फ का चूरा करके भी डाल सकते हैं। ठंडी की हुई चाय को दोनों गिलास में आधा-आधा डाल दें। नीबू का रस मिलाएं। नीबू के 2-2 छल्ले हर गिलास में डाल दें। बस आपकी आइस-टी तैयार है।

नोट: चाय को ज्यादा देर तक न उबालें, वरना स्वाद अच्छा नहीं रहता। अगर चाय को फ्लेवर देना चाहते हैं तो उसमें उसी फ्लेवर का जूस मिला दें जैसे कि संतरे के स्वाद के लिए आधा कप संतरे का जूस डालें। इसी तरह फ्लेवर के लिए मैंगो जूस, पाइनएपल जूस से लेकर छोटी इलाइची, दालचीनी, जायफल, पुदीना और तुलसी जो भी पसंद हो, वह डाल सकते है।

फालसे का शरबत

फासले का शरबत गर्मियों में बहुत फायदेमंद है। लेकिन चूंकि यह बहुत ही नाजुक फल होता है, इसलिए इसे बनाकर न रखें, बल्कि ताजा ही पिएं।

कितना बनेगा: 5 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 15 मिनट

सामग्री: फालसे: 250 ग्राम (1 1/2 कप), चीनी: आधा कप से थोड़ा कम, काला नमक: आधा छोटी चम्मच

बनाने का तरीका: फालसे को हल्के गर्म पानी में धो लें। फिर सुखाकर मिक्सर में चीनी और आधा कप पानी डालकर चलाएं। चीनी घुल जाए तो फालसे डालकर थोड़ा और चलाएं। इस तरह फालसे का गूदा बीजों के ऊपर से निकल कर पानी में मिक्स हो जाता है। बीज साबुत ही रह जाते हैं। अब मिक्सर में 3 कप ठंडा पानी मिलाकर आधा मिनट और चलाएं। फालसे के रेशे और रस इस पानी में मिल जाएंगे। शरबत को मिक्सर से निकाल कर छान लें। चाहें तो इसमें एक नींबू निचोड़ सकते हैं। लीजिए, फालसे का शरबत तैयार है।

नोट: फालसा शरबत को ताजा बनाकर पीना ही सही रहता है। सर्व करते हुए आइस क्यूब्स डालें। ठंडा-ठंडा फालसा शरबत बहुत अच्छा लगता है।

बेल का शरबत

बेल का शरबत एसिडिटी और कब्ज, दोनों में असरदार है। कच्चे बेल का शरबत लूज मोशंस को रोकता है तो पके बेल का शरबत कब्ज को ठीक करता है। इसका कूलिंग इफेक्ट भी काफी अच्छा होता है। यह अल्सर को भी ठीक करता है।

कितना बनेगा: 4-5 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 20-25 मिनट

सामग्री: बेल फल: एक किलो, चीनी: 10-12 टेबल स्पून, भुना जीरा: 1 छोटा चम्मच, काला नमक: 1 छोटा चम्मच

बनाने का तरीका: बेल को धोएं, काटें और गूदा निकाल लें। एक बर्तन में गूदे से दो गुना पानी डालकर अच्छी तरह मसल लें। इतना मसलें कि सारा गूदा और पानी आपस में अच्छी तरह घुल जाए। इस मसले गूदे को मोटे छेद वाली चलनी में छान लें। चमचे से दबा-दबा कर सारा रस निकाल लें। निकाले हुए रस में चीनी मिला लें। जब चीनी अच्छी तरह घुल जाए तो इसमें ठंडा पानी या आइस के क्यूब मिलाएं। नमक और भुना जीरा भी मिलाएं। ठंडा मीठा बेल का शरबत तैयार है।

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बनाएं कुछ हटकर

एपल-कुकुंबर मोइतो

कितना बनेगा: 2-3 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 15 मिनट

सामग्रीः खीराः 1, सेबः 1, पुदीनाः 1 गुच्छी, अदरकः एक इंच का टुकड़ा, शहदः 3 चम्मच, नीबू का रसः 2 चम्मच, स्प्राइटः 100 मिली (1 कप), सोडा वॉटरः 100 मिली (1 कप)

बनाने का तरीकाः सेब, खीरा और अदरक को छीलकर टुकड़ों में काट लें। सेब, खीरा, अदरक, धनिया, शहद और नीबू के रस को एक साथ मिलाकर मिक्सर में 1-2 मिनट के लिए चला लें। फिर इसे छान लें। छानने के बाद मिले मिक्चर में स्प्राइट मिला लें। 4 घंटे के लिए फ्रिज में रख दें। सर्व करते वक्त गिलास में खूब सारा बर्फ का चूरा डाल लें। फिर आधा गिलास खीरे का मिक्चर डालें और ऊपर से सोडा वॉटर डाल दें। खीरे और नीबू की पतली स्लाइस से सजाकर सर्व करें।

ब्लूबेरी पालक स्मूदी

कितना बनेगा: 4-5 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 10 मिनट

सामग्रीः योगर्ट या गाढ़ा दहीः 2/3 कप, केलाः 1, फ्रोजन ब्लूबेरीः 2/3 कप, स्ट्रॉबेरी (फ्रोजन या फ्रेश): 2, पालकः 1 कप, सोया मिल्कः 1 कप, शहदः एक चम्मच

बनाने का तरीकाः सारी चीजों को मिक्सर में डाल कर प्यूरी बना लें। जरूरत लगे तो थोड़ा दूध भी डाल सकते हैं। एकदम ठंडा सर्व करें।

टोमैटो मॉकटेल

कितना बनेगा: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 10 मिनट

सामग्रीः देसी टमाटरः 250 ग्राम, धनियाः एक गुच्छी, इमली का पल्पः 2 चम्मच, नमक, चीनी और हरी मिर्च जरा-सी

बनाने का तरीकाः टमाटरों को अच्छी तरह धो लें। फिर टमाटर और इमली के पल्प को मिक्सर में डालकर चला लें। स्वादानुसार नमक डालें। जरा-सी चीनी और हरी मिर्च भी डालें। फ्रिज में रखकर ठंडा-ठंडा सर्व करें।

वॉटरमेलन बेसिल मॉकटेल

कितना बनेगा: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 15 मिनट

सामग्रीः तरबूजः करीब आधा किलो, सोडा वॉटरः 100 मिली, नीबू का रसः एक चम्मच, तुलसी की पत्तियांः 5-6

बनाने का तरीकाः तरबूज के बीज निकालकर मिक्सर में डालें। साथ में नीबू का रस, सोडा, तुलसी डालकर चला दें। बर्फ का चूरा डालकर ठंडा-ठंडा सर्व करें।

पाइनएपल ग्रैनिटा

कितना बनेगा: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 2 घंटे

सामग्रीः पाइनएपलः एक बड़ा कप टुकड़े, पुदीनाः एक गुच्छी, शहदः एक चम्मच, नीबू का रसः एक चम्मच

बनाने का तरीकाः ऊपर दी गई सभी चीजों को मिक्सर में डालकर चला लें। फिर इस मिक्चर को एक ट्रे में डालकर फ्रिजर में जमा लें। जब यह जम जाए तो फोर्क की मदद से इसे धीरे-धीरे खुरचें और गिलास में जमा कर सर्व करें। धीरे-धीरे पियें, मजा आ जाएगा।

काम की वेबसाइट और ऐप

Juice Recipes

इस ऐप के जरिए आप दुनिया भर की चुनिंदा जूस रेसिपी जान सकते हैं। रेसिपी इतने सिंपल तरीके से दी गई हैं कि कोई भी देखकर इन्हें आसानी से बना सकता है।

कीमत: फ्री, प्लेटफॉर्म: विंडोज़, एंड्रॉयड, ios

Juice Pro

यह ऐप आपको कई तरह के जूस की रेसिपी से रूबरू कराता है। खासियत है कि ये जूस आपकी हेल्थ के लिए काफी मुफीद हैं।

कीमत: फ्री, प्लेटफॉर्म: विंडोज़, एंड्रॉयड, ios

वेबसाइट्स

foodfood.com: मशहूर सिलेब्रिटी शेफ संजीव कपूर की यह वेबसाइट आपको तमाम तरह के लजीज खानों का स्वाद चखाती है। मौसम के हिसाब से डिशों को अलग-अलग कैटिगरी में बांटा गया है।

nishamadhulika.com: बिना लहसुन-प्याज की सिंपल लेकिन स्वादिष्ट रेसिपी पहचान है इस वेबसाइट की। रेसिपी इतनी सिंपल हैं कि कोई भी आसानी से बना सकता है।

natashaskitchen.com: इस वेबसाइट की खासियत है कि इसमें डेजर्ट, ड्रिंक्स, मेनकोर्स से लेकर बच्चों तक के लिए अलग कैटिगरी हैं। रेसिपी बेहद स्वादिष्ट हैं।

फेसबुक पेज

Juicing-Recipes और HealthyFoodHouse पेजों पर कई तरह के टेस्टी जूस और डिशों के बारे में अच्छी जानकारी मिल सकती है।

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ममता का रिटर्न गिफ्ट

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मां हमारे लिए जिंदगी भर कुछ-न-कुछ करती रहती हैं। अक्सर पढ़ाई-करियर या दूसरी प्राथमिकताओं में हम भूल जाते हैं कि हमारी भी मां के लिए कोई जिम्मेदारी है। यूं तो मां की ममता और दुलार को हम चुका नहीं सकते लेकिन फिर भी कुछ चीजें हैं, जिन्हें करके हम उसका कुछ तो कर्ज चुका ही सकते हैं। आज हम लेकर आए हैं मां के लिए एक गिफ्ट, जिसके जरिए आप मां की जिंदगी को आसान और बेहतर बना सकते हैं:

मदर्स डे पर स्पेशल

हेल्थ ही वेल्थ है

बढ़ती उम्र के साथ कुछ बीमारियां भी दस्तक दे सकती हैं। इलाज से बेहतर है एहतियात। ऐसे में मां की इन संभावित परेशानियों पर रखें निगाह:

सिस्ट या फाइब्रॉइड

ओवरी में सिस्ट या यूटरस में फाइब्रॉइड कॉमन समस्या है। सिस्ट आमतौर पर फ्लूइड वाले ट्यूमर होते हैं, जबकि फाइब्रॉइड ठोस ट्यूमर। ज्यादातर सिस्ट दवा से ठीक हो जाते हैं।

लक्षण: 15-20 दिन में पीरियड्स होना और इस दौरान बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होना। पता लगाने के लिए डॉक्टर की सलाह से अल्ट्रासाउंड या एमआरआई कराएं।

क्या करें: फाइब्रॉइड या सिस्ट के करीब 1 फीसदी मामलों के कैंसर में बदलने की आशंका होती है। जितना हो सके, हरी सब्जियां और फल खाएं, दिन में कम से कम 10 गिलास पानी पिएं। समस्या का पता लगने पर फौरन डॉक्टर से सलाह लें।

क्या करें ताकि न हो: जो महिलाएं रोजाना 40 मिनट वॉक करती हैं, उन्हें फाइब्रॉइड होने का रिस्क काफी कम हो जाता है। इसके अलावा मौसमी फल और सब्जियां लगातार लेती रहें और फास्ट फूड से बचें। हेल्दी लाइफस्टाइल इस स्थिति से बचने में मददगार है।

मीनोपॉज

40 साल की उम्र के बाद महिलाओं में कई तरह के बदलाव होने लगते हैं। इस बदलाव में कुछ साल लगते हैं। इस स्टेज को पेरीमीनोपॉज कहा जाता है। इस दौरान एग्स कम बनने लगते हैं, पीरियड्स बहुत कम या ज्यादा हो जाते हैं और स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।

लक्षण: प्राइवेट पार्ट में सूखापन, बालों का झड़ना, सेक्स की इच्छा कम होना, मोटापा बढ़ना जैसे बदलाव नजर आते हैं। धीरे-धीरे पीरियड्स पूरी तरह बंद हो जाते हैं। अगर एक साल तक पीरियड्स न आएं तो मीनोपॉज हो जाता है।

क्या करें: मीनोपॉज के बाद खून के धब्बे नजर आएं तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं क्योंकि यह कैंसर का संकेत हो सकता है। मीनोपॉज के दौरान और इसके बाद लाइफस्टाइल सुधारना जरूरी है। इस वक्त मां को खाने में हरी सब्जियां, दूध और सोयाबीन ज्यादा शामिल करने को कहें।

क्या करें ताकि जल्दी न हो: मीनोपॉज को सभी महिलाओं को होता है लेकिन हम रेग्युलर एक्सरासइज, वॉक और हेल्दी डाइट के जरिए इसे वक्त से पहले होने से रोक सकते हैं। साथ ही, इससे जुड़ी तकलीफों को भी कम कर सकते हैं।

ओस्टियो-ऑर्थराइटिस

मीनोपॉज के बाद कैल्शियम की कमी या एक्सरसाइज न करने से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। इससे फ्रैक्चर के आसार बढ़ जाते हैं।

लक्षण: जोड़ों और आसपास के मसल्स में दर्द, दर्द की वजह से नींद में कमी, सुबह उठते ही जोड़ों में जकड़न आदि।

क्या करें: इस दौरान विटामिन सी, डी और बीटा कैरोटीन भरपूर लेना चाहिए। खाने में फैट-फ्री दूध, पनीर, ब्रोकली, बींस, गाजर, पपीता, पालक, अंडा, अखरोट, सेब, चेरी, ग्रीन टी आदि शामिल करने चाहिए। जरूरत पड़ने पर हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी भी कराई जा सकती है। महिला को ऐसे काम करने चाहिए, जिनमें शारीरिक मेहनत हो, जैसे डांस, बागवानी, चलना, दौड़ना, तैराकी आदि। एक्सरसाइज जरूर करें ताकि बॉडी मसल्स अच्छी शेप में रहें। वजन लिमिट में रखना बहुत जरूरी है। रोजाना 30 मिनट वॉक या 30 मिनट एक्सरसाइज और योग करना जरूरी है।

क्या करें ताकि न हो: 18-20 साल की उम्र से ही लगातार एक्सरसाइज करें। घुटनों को मजबूत करने वाली एक्सरसाइज जैसे कि जंपिंग, स्कीपिंग, जॉगिंग, डांस आदि करें। स्ट्रेचिंग भी मददगार है। साथ ही कैल्शियम से भरपूर डाइट लें।

कराएं ये टेस्ट

ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर (बीपी)

कब कराएं: 30 साल के बाद ये टेस्ट कराने शुरू करें लेकिन 40 साल के बाद रेग्युलर तौर पर कराएं। ये डायबीटीज और हाई ब्लड प्रेशर की संभावना का पता लगाते हैं।

खर्च कितना: ब्लड शुगर और बीपी टेस्ट लगभग 200 रुपये और कॉलेस्ट्रॉल का लिपिड प्रोफाइल टेस्ट 600-800 रुपये तक होता है।

पेप स्मीयर

सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए पेप स्मीयर टेस्ट कराएं। हर तीन साल में करा सकते हैं।

कब कराएं: 40-45 साल की उम्र में यह टेस्ट करा लें। हर तीन साल में कराना काफी है। इससे कैंसर का पता अगर शुरुआती स्टेज में लग जाता है तो इलाज की संभावना काफी बढ़ जाती है।

लगवाएं टीका: सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए टीका भी मौजूद है। हालांकि टीका लगाने के बावजूद सर्वाइकल कैंसर की आशंका सौ फीसदी खत्म नहीं होती क्योंकि टीका कुछ ही वजहों से बचाव करता है। दूसरे, अगर टीके लगने से पहले कैंसर शुरू हो चुका हो तो भी टीकों का कोई फायदा नहीं है इसलिए भी पेप स्मीयर टेस्ट जरूर कराएं।

खर्च कितना: टेस्ट पर 300 से 500 रुपये तक खर्च आता है। तीन टीकों के इस कोर्स पर 9-10 हजार रुपये का खर्च आता है। तीनों टीके लगवाना जरूरी है।

मेमोग्रफी

देर से शादी, पहला बच्चा होने में देरी, बच्चे को दूध न पिलाना और जिनेटिक वजहों से ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा है।

कब कराएं: अगर मां के परिवार में किसी को ब्रेस्ट कैंसर रहा है तो डॉक्टर की सलाह से मेमोग्रफी कराएं। 40 साल की उम्र के बाद हर दो साल में यह टेस्ट करा लेना चाहिए।

खर्च कितना: करीब डेढ़-दो हजार रुपये। हर दो साल में एक बार कराएं।

नोट: टेस्ट और टीकों के रेट्स में जगह के हिसाब से फर्क हो सकता है।

इंश्योर करें मां की हेल्थ

- अगर आप अपने, पति/पत्नी और बच्चों के लिए मेडिकल इंश्योरेंस ले रहे हैं तो उसके प्रीमियम पर इनकम टैक्स की धारा 80 डी के तहत आपको अधिकतम 15 हजार रुपये की छूट मिलेगी। लेकिन अगर आप मदर या फादर या दोनों के लिए ली गई पॉलिसी के लिए प्रीमियम अदा कर रहे हैं तो आपको 15 हजार रुपये तक की अडिशनल छूट मिलेगी और अगर आपकी मदर सीनियर सिटिजन हैं तो आपको 20 हजार रुपये तक की छूट मिलेगी।

- मां के लिए हेल्थ इंश्योरेंस लेते वक्त ऐसी पॉलिसी चुनें, जिसमें एंट्री की उम्र ज्यादा-से-ज्यादा दी गई है। साथ ही, ज्यादा-से-ज्यादा उम्र तक हेल्थ पॉलिसी रिन्यू कराई जा सके। जीवनभर तक रिन्यू कराई जा सकने वाली पॉलिसी और भी अच्छी हैं।

- वह पॉलिसी लें, जिसमें कम-से-कम समय के बाद प्री-एग्जिस्टिंग यानी पहले से मौजूद बीमारियां कवर हों।

- आमतौर पर इंश्योरेंस कंपनियां 45 साल की उम्र के बाद मेडिकल इंश्योरेंस लेने पर टेस्ट कराती हैं। देख लें कि कंपनी खुद ही इन टेस्टों का खर्च उठाए।

टकाटक हो मां का टेक ज्ञान

मां रहे हमेशा कनेक्ट

- अगर आप मां से दूर रहते हैं या फिर लंबे समय के लिए बाहर जाते हैं तो मां को एक अच्छा मोबाइल और टैब जरूर लाकर दें ताकि वह आपके जुड़ी रह सकें। उनके लिए अलग से कोई खास मोबाइल लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि स्मार्ट फोन के जमाने में हर तरह की सहूलियत उसी फोन में दे सकते हैं। मसलन एंड्रॉयड फोन में Additional Setting में या फिर बाहर ही Accessibility होगा। जहां टॉकबैक से लेकर फोन्ट साइज बड़ा करने तक की सुविधा पा सकते हैं। इन्हें ऑन करने पर मां के लिए फोन ज्यादा सुविधाजनक होगा।

- मोबाइल खरीदते वक्त ध्यान रखें कि वह इतना बड़ा न हो कि पर्स में रखने या हाथ में पकड़ने में दिक्कत होती है। 5 इंच स्क्रीन साइज काफी है। फोन बहुत वजनी न हो। इस वक्त मार्केट में अच्छी स्क्रीन क्वॉलिटी वाले फोन मौजूद हैं, जिनसे आंखों पर जोर कम पड़ता है। इनमें फुल एचडी स्क्रीन, एमॉल्ड स्क्रीन, आईपीएस डिस्प्ले वाले फोन लें। मोबाइल के साथ असेसरीज़ लेते वक्त ध्यान रखें कि लेदर का मोबाइल कवर बेहतर है।

- इसी तरह लैपटॉप और टैब भी मां को कनेक्ट रखने के बेहतर साधन हो सकते हैं। अब टच स्क्रीन वाले लैपटॉप भी मिलते है जिन्हें इस्तेमाल करना ज्यादा आसान है। टैब और लैपटॉप के जरिए मां बच्चों के साथ विडियो चैट आदि तो कर ही सकती हैं, फिल्में आदि भी देख सकती हैं।

- कोई भी डिवाइस खरीदते वक्त ध्यान रखें कि वह इतना बड़ा न हो कि पर्स में न आए या फिर हाथ में पकड़ने में दिक्कत हो।

किचन बनेगा टेक माहिर

- मां के लिए अच्छा टी और कॉफी मेकर खरीदें। इससे उन्हें बार-बार चाय-कॉफी बनाने के झंझट से छुटकारा मिल जाएगा। ये चाय-कॉफी फटाफट तो तैयार करते ही हैं, साथ ही ज्यादा उबाल न आने की वजह से इसमें बनी चाय-कॉफी सेहत के लिए कम नुकसानदेह होती है। इनमें अच्छे ब्रैंड हैं: Morphy Richards, Philips, Havells, Inalsa आदि। इनकी कीमत 1000 से लेकर 5000 रुपये तक है।

- आजकल हर डॉक्टर तला-भुना न खाने की सलाह देता है। ऐसे में पोर्टेबल टोस्टर और ग्रिलर अच्छा विकल्प हो सकते हैं। Philips, Morphy Richards, Singer, Kenstar, Sunflame, prestige के प्रॉडक्ट अच्छे हैं। इनकी कीमत 1000 रुपये से 5000 रुपये तक है।

- वर्किंग मदर्स के लिए स्लो कूकर काफी काम का साबित हो सकता है। इसमें सुबह ही सारे इंग्रीडिएंट्स डालकर रखने पर और रात को गर्म और फ्रेश खाना मिलता है। थ्री-इन-वन ब्रेकफस्ट स्टेशन अप्लायंस में एक साथ कॉफी/चाय, टोस्ट, ऑमलेट या खाने को गर्म कर सकते हैं। इसी तरह मग वॉर्मर में गर्म चाय का मजा ले सकती हैं। सॉसरनुमा इलेक्ट्रिक प्लेट में चाय और कॉफी लगातार गर्म रहती है। ये अप्लायंस ऑनलाइन आसानी से मिल जाते हैं।

हेल्थ/एंटरटेनमेंट के लिए गैजेट्स

- बढ़ती उम्र में घर में ब्लड प्रेशर मॉनिटर जरूर रखना चाहिए। इस तरह के कई डिजिटल मॉनिटर बाजार में मौजूद हैं। इनके जरिए ब्लड प्रेशर पर निगाह रखी जा सकती है। इनकी कीमत 2000 रुपये से 5000 रुपये तक होती है।

- घर में डिजिटल बॉडी वेट मशीन रखने से वजन पर निगाह रखना आसान हो जाता है। इसकी कीमत 500 रुपये से 2000 रुपये तक होती है।

- थकान उतारने में फुट मसाजर और बैक मसाजर काफी मदद करते हैं। इनकी कीमत क्वॉलिटी के हिसाब से 1500 रुपये से लेकर 15,000 रुपये तक होती है।

लाइफ आसान बनाने वाले ऐप्स/वेबसाइट्स

- आजकल यू-ट्यूब पर ज्यादातर चीजों का हल मौजूद है। मसलन किसी डिब्बे को कैसे खोलें से लेकर सिलाई-कढ़ाई, कुकिंग और सफाई तक के विडियो यहां देखे जा सकते हैं। मां को यू-ट्यूब इस्तेमाल करना सिखाएं।

- Foodfood, Nishamadhulika, Bawarchi, Manjulaskitchen जैसे यू-ट्यूब चैनल, वेबसाइट्स और ऐप्स के बारे में मां को जानकारी दें ताकि वह चाहे तो तमाम तरह की डिश आसानी से बनाना सीख सके।

- मां को ऑनलाइन शॉपिंग सिखाएं। Flipkart, Amazon, Myntra, Jabong, Limeroad आदि वेबसाइट्स या ऐप्स से वह घर बैठे अपनी पसंद के कपड़े, शूज़, असेसरीज़ आदि खरीद सकती है तो bigbasket, grofers, lalaji24x7 आदि साइट्स से ग्रॉसरी और फल-सब्जियां।

- इसी तरह Urbanclap, Bizzby, Zimmber जैसी तमाम वेबसाइट और ऐप के जरिए वह मैकेनिक, प्लंबर, कुक, ब्यूटिशन आदि की सर्विस भी घर बैठे ले सकती हैं।

- मां को गूगल मैप्स इस्तेमाल करना जरूर सिखाएं। साथ ही Ola, Uber बुक कराना भी सिखाएं ताकि वह अकेले भी आसानी से कहीं भी आ-जा सकें।

- आप मां का फेसबुक और ट्विटर अकाउंट बनवाएं। इससे उनका खाली समय तो अच्छी तरह काट ही सकेगा, साथ ही वह देश-दुनिया की ताजा हलचल पर भी निगाह रख सकेगी।

- Himaat, Raksha, Safetipin, Smart24x7, Women Safety आदि कई ऐसे ऐप हैं, जो महिलाओं की सिक्योरिटी को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इनमें से कोई ऐप मां के मोबाइल पर डाउनलोड जरूर करें और उसे इस्तेमाल करना भी सिखाएं।

मां का मनी मैनेजमेंट

- मां का बैंक अकाउंट जरूर खुलवाएं। अगर आपकी मां 60 साल या ज्यादा की हैं तो उनके लिए आप जीरो बैलेंस अकाउंट खुलवा सकते हैं। सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम के तहत फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) करने पर आधा फीसदी ब्याज ज्यादा मिलता है।

- मां को इंटरनेट या मोबाइल बैंकिंग सिखाएं। इसके जरिए वह क्रेडिट कार्ड के बिल भरने से लेकर ऑनलाइन शापिंग तक घर बैठे कर सकेंगी। नेट बैंकिंग के लिए बैंक की ब्रांच जाकर या फिर ऑनलाइन फॉर्म भरना होता है। इसके बाद बैंक एक यूजर आईडी और पासवर्ड देगा। इस यूजर आईडी और पासवर्ड का इस्तेमाल बैंक की वेबसाइट पर लॉगइन करते वक्त करना होगा।

- आजकल हर बैंक का मोबाइल ऐप मौजूद है। मां का अकाउंट जिस बैंक में है, उसका ऐप भी उनके मोबाइल पर डाउनलोड जरूर करें और फिर उन्हें यह ऐप इस्तेमाल करना सिखा दें।

- मां को ATM का यूज करना सिखाएं। ATM इस्तेमाल करते वक्त कौन-सी सावधानियां बरतें, यह भी सिखाएं। मसलन अपना पिन या पासवर्ड आदि किसी के साथ शेयर न करें।

- इन दिनों मोबाइल वॉलेट भी बहुत पॉपुलर हैं। मां को Paytm, Freecharge आदि। इससे जुड़ा ऐप उनके मोबाइल पर डाउनलोड करें और यूज करना सिखाएं।

- आप कमाते हैं तो अपनी मम्मी को एक तय रकम हर महीने की पहली तारीख को उनके बिना मांगे दें।

इमोशंस का रखें ख्याल

जब बच्चे बड़े होकर अपनी पढ़ाई या करियर में बिजी हो जाते हैं तो मां को खालीपन काटने लगता है। साथ में, कई तरह के हॉर्मोन चेंज भी उनके मन में उदासी लाते हैं। ऐसे में आपको मां की इमोशनल जरूरतें पूरी करनी होंगी। इसके लिए आप छोटे-छोटे काम कर सकते हैं:

- मां को सुबह अपने साथ ब्रेकफास्ट कराएं। उनकी डाइट का ख्याल रखें और उसमें खूब सारे फल और सब्जियां शामिल करने को कहें।

- मां के साथ सुबह या शाम वॉक पर जाएं। इससे वह ज्यादा फिट रहेंगी। साथ ही आपके साथ वक्त बिता कर उनका मन भी खिल उठेगा।

- मां की तारीफ करें और उसके साथ रोजाना वक्त बिताएं। उनके साथ रोजाना की बातें शेयर करें और उनकी बातें भी सुनें।

- अक्सर मां के टाइम टेबल में सिर्फ काम ही होते हैं। आप उनके आराम का टाइमटेबल सेट करें और जोर डाल कर उसे लागू भी करवाएं।

- अक्सर हाउसवाइफ के रोल में मां का रुटीन काफी उबाऊ हो जाता है। हफ्ते में कम-से-कम एक दिन उनका भी हॉलिडे फिक्स करें। वह चाहें तो घूमने का प्लान करें या आराम करें।

- मां के एंटरटेनमेंट का इंतजाम करें। अगर वह म्यूजिक की शौकीन हैं तो उनके लिए एक एफएम रेडियो किचन में ही फिक्स करवाएं।

- अगर मां की कोई ऐसी हॉबी है जो वह बिजी रुटीन के चलते फॉलो नहीं कर पाई हैं तो जॉइन करने की सलाह दें। मनपसंद काम करने से वह तरोताजा महसूस करेंगी।

- आज मदर्स डे पर या उनके बर्थडे पर या फिर एनिवर्सिरी पर किसी अच्छे होटल में लंच या डिनर करा सकते हैं।

- उनके मनपसंद रिश्तेदार या सहेली से मिलवाने वक्त-वक्त पर ले जाएं या उन्हें अपने घर आने का न्यौता दें।

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क्यों जरूरी है विटामिन डी?

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हड्डियों और मसल्स में दर्द इन दिनों सबसे कॉमन प्रॉब्लम बन गया है। कम उम्र के लड़के-लड़कियां भी इस दर्द का शिकार बन रहे हैं। अक्सर दर्द की वजह विटामिन डी की कमी होती है। अपने देश में शहरों में रहनेवाले करीब 80-90 फीसदी लोग विटामिन डी की कमी से होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं। विटामिन डी की कमी से कैसे पाएं छुटकारा, एक्सपर्ट्स से बातचीत...

एक्सपर्ट्स पैनल

डॉ. पी. के. दवे, चेयरमैन ऑर्थोपीडिक डिपार्टमेंट, रॉकलैंड हॉस्पिटल
डॉ. सी. एस. यादव, प्रफेसर, ऑर्थोपीडिक डिपार्टमेंट, एम्स
डॉ. अमित नाथ मिश्रा, सीनियर ऑर्थोपीडिक कंसल्टंट, मैक्स हॉस्पिटल
डॉ. शिशिर भटनागर, सीनियर पीडियाट्रिशन
डॉ. प्रताप चौहान, डायरेक्टर, जीवा आयुर्वेद
नीलांजना सिंह, न्यूट्री डाइट एक्सपर्ट

ममता मान (47 साल) अक्सर शरीर में तेज दर्द की शिकायत करती थीं। उन्हें यूरिक एसिड से लेकर गठिया तक की दवा दी गई लेकिन दर्द कम नहीं हुआ। तब डॉक्टर ने उनसे विटामिन डी की जांच कराने को कहा। टेस्ट में विटामिन डी लेवल निकला 3, जोकि नॉर्मल (20 से 50 ng/mL) से बहुत-बहुत कम था। डॉक्टर ने विटामिन डी की डोज दी। 3 महीने में ही ममता की दर्द की शिकायत खत्म हो गई। सूर्यम तिवारी की उम्र 35 साल है। हाल के दिनों में वह अक्सर थके रहने और कभी-कभार शरीर में दर्द की शिकायत करते हैं। हालांकि उन्हें कभी कोई चोट आदि नहीं लगी। कई तरह के टेस्ट कराए, पर मर्ज समझ नहीं आया। फिर विटामिन डी का टेस्ट कराया तो पता लगा कि उनके शरीर में विटामिन डी लेवल काफी कम है। डॉक्टर की सलाह से उन्होंने विटामिन डी की डोज ली।

दरअसल, विटामिन डी हॉर्मोन की कमी और उससे होने वाली समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं, खासकर शहरों में। वजह, अब लोग धूप में ज्यादा नहीं निकलते। इससे शरीर में विटामिन डी की कमी और उससे जुड़ी समस्याएं हो जाती हैं। दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं होती। अगर विटामिन डी की डोज नियमित रूप से ली जाए तो आसानी से दर्द से राहत मिल सकती है।

विटामिन डी क्यों जरूरी

- हड्डियों, मसल्स और लिगामेंट्स की मजबूती के लिए
- शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए
- नर्व्स और मसल्स के कॉर्डिनेशन को कंट्रोल करने के लिए
- सूजन और इन्फेक्शन से बचाने के लिए
- किडनी, लंग्स, लिवर और हार्ट की बीमारियों की आशंका कम करने के लिए
- कैंसर की रोकने में मदद के लिए

कमी से होने वालीं दिक्कतें

- हड्डियों का कमजोर और खोखला होना
- जोड़ों और मसल्स का कमजोर होना
- कमर और शरीर के निचले हिस्सों में दर्द होना खासकर पिंडलियों में
- हड्डियों से कट की आवाज आना
- इम्युनिटी कम होना
- बाल झड़ना
- बहुत थकान और सुस्ती रहना
- बेचैन और तुनकमिजाज रहना
- इनफर्टिलिटी का बढ़ना
- पीरियड्स का अनियमित होना
- ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों का खोखला होना) और ऑस्टियोमलेशिया (हड्डियों का कमजोर होना) जैसी बीमारियां
- बार-बार फ्रेक्चर होना

कितना विटामिन डी चाहिए

किसी भी सेहतमंद शख्स में विटामिन डी का लेवल 50 ng/mL या इससे ज्यादा होना चाहिए। हालांकि 20 से 50 ng/mL के बीच नॉर्मल रेंज है लेकिन डॉक्टर 50 को ही बेहतर मानते हैं। अगर लेवल 25 से कम है तो डॉक्टर की सलाह से विटामिन डी सप्लिमेंट जरूर लेना चाहिए।

टेस्ट और इलाज

अगर हड्डियों या मसल्स में दर्द रहता है तो 25-हाइड्रॉक्सी विटामिन डी ब्लड टेस्ट कराएं। इसे विटामिन डी डिफिसिएंशी टेस्ट भी कहते हैं। अगर शरीर में दर्द नहीं है तो भी यह टेस्ट करा सकते हैं। अगर लेवल काफी कम निकलता है तो छह महीने या साल भर बाद दोबारा करा सकते हैं।

कीमत: करीब 1200-1300 रुपये

इलाज: विटामिन डी की कमी पूरी करने के लिए बच्चों को एक बार में 6 लाख IU (इंटरनैशनल यूनिट) दी जाती हैं। यह कई बार इंजेक्शन के जरिए भी दिया जाता है। फिर नॉर्मल रेंज आने तक एक महीने हर हफ्ते 60,000 यूनिट और फिर हर महीने 60,000 यूनिट दी जाती है, जोकि ओरली दी जाती है। बड़ों में पहले तीन महीने हर हफ्ते 60,000 यूनिट और फिर हर महीने एक बार 60,000 यूनिट का सैशे दिया जाता है। अगर धूप में नहीं निकलते हैं तो 25-30 साल की उम्र के बाद हर महीने एक सैशे लेना चाहिए।

नोट: वैसे, ज्यादातर एक्सपर्ट मानते हैं कि यह टेस्ट कराए बिना और डॉक्टर की सलाह के बिना भी हर किसी को विटामिन डी की डोज लेनी चाहिए क्योंकि इसकी पूर्ति खाने से नहीं हो पाती और ज्यादातर लोगों में इसकी कमी होती है। महीने में एक बार सैशे लेने का नुकसान नहीं है। एक सैशे से महीने भर के विटामिन डी का कोटा पूरा हो जाता है। इसकी कीमत भी 25-30 रुपये तक ही होती है यानी महंगा भी नहीं है। जहां तक बच्चों की बात है तो 50 किलो से ज्यादा वजन के बच्चे को अडल्ट के मुताबिक ही डोज दी जा सकती है लेकिन छोटे बच्चों को डॉक्टर की सलाह से डोज दें। इंटरनैशनल गाइडलाइंस के मुताबिक बच्चे को जन्म से लेकर 12 महीने का होने तक रोजाना 4000 यूनिट दी जानी चाहिए। इसके लिए मां को विटामिन डी लेने की सलाह दी जाती है ताकि दूध के जरिए यह बच्चे तक में पहुंच सके। अगर मां बच्चे को दूध नहीं पिलाती है तो डॉक्टर बच्चे के लिए सिरप लिखते हैं। उम्र बढ़ने पर बच्चे में विटामिन डी की जरूरत बढ़ जाती है। वैसे एक्सपर्ट्स का मानना है कि बच्चों को रोजाना एक घंटे धूप में खेलने के प्रेरित करना चाहिए। इस दौरान बच्चे का शरीर कुछ खुला हो ताकि उसे पर्याप्त विटामिन डी मिल सके। अगर फिर भी बच्चा धूप में ज्यादा नहीं खेलता तो उसे विटामिन डी दे सकते हैं लेकिन पहले डॉक्टर से पूछ लें या फिर टेस्ट करा कर लेवल चेक कर लें।

कब लें खुराक

विटामिन डी की खुराक यूं तो खाली या भरे पेट कभी भी ले सकते हैं लेकिन फिर भी इसे खाने के बाद लेना बेहतर है।

ज्यादा हो तो खतरनाक

वैसे, विटामिन डी अगर बहुत ज्यादा हो तो बहुत खतरनाक हो सकता है। ज्यादा तब माना जाता है, जब शरीर में लेवल 800-900 नैनोग्राम/मिली तक पहुंच जाए। ऐसा होने पर किडनी फंक्शन से लेकर मेटाबॉलिजम तक पर असर पड़ता है। हालांकि विटामिन डी बहुत ही कम मामलों में इस लेवल तक जा पाता है। कई बार लोगों को लगता है कि विटामिन डी ज्यादा लेने से नुकसान हो सकता है। मुंह से लिए जानेवाले विटामिन डी का कोई नुकसान नहीं है। यह एक्स्ट्रा विटामिन डी शरीर से पॉटी या यूरीन के रास्ते निकल जाता है। लेकिन इंजेक्शन से लिया जानेवाला सारा विटामिन डी शरीर में ही रह जाता है इसीलिए विटामिन डी के सैशे, टैब्लेट या कैप्लूस ही लेने की सलाह दी जाती है।

...ताकि न हो कमी

1. कैसे मिलेगा कुदरती तरीके से विटामिन डी

विटामिन डी का सबसे बढ़िया सोर्स सूरज की रोशनी है। विटामिन डी पाने के लिए आप धूप में बैठें। खासियत यह है कि एक बार शरीर में जाने के बाद विटामिन डी लिवर में स्टोर हो जाता है और फिर धीरे-धीरे लिवर जरूरत के मुताबिक इसे ब्लड में रिलीज करता रहता है। ऐसे में रोजाना धूप में बैठना या निकलना भी जरूरी नहीं है। अगर आप हफ्ते में 1-2 दिन या महीने में कुल 4-5 दिन और साल भर में औसतन 45-50 दिन आप 45 मिनट के लिए धूप में निकलते हैं या बैठते हैं तो काफी हद तक विटामिन डी की खुराक पूरी हो जाती है। लेकिन ध्यान रखें कि इस दौरान शरीर का कम-से-कम 80-85 फीसदी हिस्सा खुला हो। वैसे, जब सूरज की किरणें बहुत तेज हों, तब विटामिन डी भी ज्यादा मिलता है लेकिन उस वक्त अल्ट्रा-वॉयलेट किरणों से शरीर को होनेवाले संभावित नुकसान को ध्यान में रखते हुए सुबह या शाम की धूप में बैठना ही बेहतर है। यूं भी दिन की धूप में बैठना प्रैक्टिकली मुमकिन नहीं है। ऐसे में गर्मियों में सुबह 8-10 बजे और शाम को 4-6 बजे और सर्दियों में सुबह 9-12 बजे और शाम को 3-5 बजे के बीच का समय चुनें। अगर शरीर को खुला वैसे बेहतर यह है कि आप खुद को किसी नियम में बांधने की बजाय सोच लें कि जब भी मुमकिन होगा, धूप में निकलेंगे या बैठेंगे तो शरीर को विटामिन डी मिलता रहेगा।

नोट: कई बार जन्म से ही विटामिन डी की कमी होती है। इस बीमारी को रिकेट्स कहते हैं और इन बच्चों के पैर टेढ़े हो जाते हैं। हालांकि यह बीमारी अब काफी कम होती है। इसके अलावा अगर किडनी विटामिन डी को ऐक्टिव फॉर्म में नहीं बदलती तो भी विटामिन डी की कमी हो सकती है। लेकिन ऐसे मामले भी चुनींदा ही होते हैं।

2. डाइट

- विटामिन डी फैट में घुलनेवाला विटामिन है। यह शरीर में अच्छी तरह जज्ब हो, इसके लिए हमें हेल्दी फैट जैसे कि ड्राई-फ्रूट्स, कम फैट वाले डेयरी प्रॉडक्ट्स, चीज़ आदि जरूर लेने चाहिए।

- मछली, मशरूम, अंडे और मीट में विटामिन डी पाया जाता है, लेकिन यह इतना नहीं होता कि आपके शरीर की जरूरत पूरी कर सके।

- दूध और दूध से बनी चीजें जैसे कि पनीर, दही, योगर्ट आदि में कैल्शियम काफी होता है। रोजाना कम-से-कम एक गिलास दूध (लगभग 230 ml कैल्शियम), एक कटोरी दही (करीब 250 mg) और हफ्ते में 250 ग्राम पनीर (करीब 200 mg कैल्शियम) जरूर खाना चाहिए।

- हरी सब्जियों जैसे कि मशरूम, पालक, बीन्स, ब्रोकली, चुकंदर, कमल ककड़ी आदि और केला, संतरा, शहतूत, सिंघाड़ा आदि फलों में भी कैल्शियम पाया जाता है।

- ड्राई-फ्रूट्स (बादाम, किशमिश, खजूर, अंजीर, अखरोट आदि), तिल और अंडे भी खाना चाहिए क्योंकि इनमें काफी कैल्शियम होता है। राजमा, मूंगफली, तिल, टूना मछली खाना भी फायदेमंद हैं।

3. एक्सरसाइज है जरूरी

रोजाना कम-से-कम 30 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें। एक्सरसाइज शरीर को फिट रखने और उसके सही तरीके से काम करने के लिए बेहद जरूरी है। यहां तक एक्सरसाइज ब्लड में मौजूद विटामिन डी और कैल्शियम को जज्ब करने में भी मदद करती है। डॉ. सी. एस. यादव कहते हैं कि अगर आप रोजाना 1 घंटा एक्सरसाइज करते हैं तो बाकी 23 घंटे फिट और खुशहाल रह सकते हैं। अगर यह एक घंटा अपने लिए नहीं निकाल सकते तो फिर 24 घंटे हेल्थ को लेकर परेशान रहेंगे। एक्सरसाइज में कार्डियोवसकुलर, स्ट्रेंथनिंग और स्ट्रेचिंग को मिलाकर करें। कार्ड्रियो के लिए साइकलिंग, अरोबिक्स, स्वीमिंग या डांस, स्ट्रेंथनिंग के लिए वेट लिफ्टिंग और स्ट्रेचिंग के लिए योग करें। अगर वॉक करना चाहते हैं तो कम-से-कम 45 मिनट ब्रिस्क वॉक यानी तेज-तेज चलें।

सनस्क्रीन को लेकर कन्फ्यूजन

आजकल लोग घर से बाहर निकलते हुए सनस्क्रीन लगाते हैं। सनस्क्रीन सूरज की किरणों को ब्लॉक करता है। इससे शरीर को धूप नहीं मिल पाती। कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि सनस्क्रीन न लगाएं जबकि कुछ कहते हैं कि सनस्क्रीन न लगाने से स्किन को नुकसान की आशंका भी बनी रहती है। ऐसे में बेहतर है कि सनस्क्रीन लगाना जारी रखें लेकिन विटामिन डी पाने के लिए अलग से धूप में बैठने का समय तय कर लें।

आयर्वेद में इलाज

- आयुर्वेद में दवा, मालिश और लेप को मिलाकर विटामिन डी की कमी से होनेवाले दर्द का इलाज किया जाता है। आमतौर पर इलाज का नतीजा सामने आने में 3 महीने लग जाते हैं।

- पूरे शरीर पर तेल की धारा डालते हैं। इसके लिए क्षीरबला तेल, धनवंतरम तेल आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसे 40 मिनट रोजाना और 5 दिन लगातार करते हैं। इससे हड्डियां मजबूत होती हैं।

- महिलाएं शतावरी सुबह और शाम एक-एक टैब्लेट लें। वैसे तो किसी भी उम्र में ले सकते हैं लेकिन मिनोपॉज के बाद जरूर लें।

- रोजाना एक चम्मच मेथी दाना भिगोकर खाएं। मेथी दर्दनिवारक है और हड्डियों के लिए अच्छी है।

- गुनगुने दूध में एक चम्मच हल्दी डालकर पिएं।

- रोजाना एक चम्मच बादाम का तेल (बादाम रोगन) दूध में डालकर पिएं।

- विटामिन डी के सप्लिमेंट ले सकते हैं।

कैल्शियम के साथ क्या कनेक्शन

कैल्शियम हड्डियों का एक मुख्य तत्व है। इसकी कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा, यह न्यूरो सिस्टम को दुरुस्त रखता है। शरीर के कई अंगों के काम करने में मदद करता है। खास बात यह है कि कैल्शियम तभी शरीर में जज्ब हो पाता है, जबकि विटामिन डी का लेवल ठीक हो यानी अगर विटामिन डी कम है तो कैल्शियम शरीर में नहीं जा पाता और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। ऐसे में कैल्शियम अगर पूरा ले भी रहे हैं तो भी उसका फायदा नहीं मिलता। शरीर को कैल्शियम अगर पूरा नहीं मिलता तो वह हड्डियों में मौजूद कैल्शियम को इस्तेमाल करना शुरू करता है क्योंकि कैल्शियम ब्लड के जरिए शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर काम करता है। अगर हड्डियों से कैल्शियम निकलना शुरू हो जाता है तो फिर उनमें दर्द होने लगता है। इस तरह यह कमी और दर्द का पूरा एक पूरा चक्र बन जाता है, जिससे निकलने के लिए विटामिन डी लेवल सही रखना जरूरी है।

कितना होना चाहिए कैल्शियम

शरीर में कैल्शियम का लेवल 8.8 से 10.6 mg/dl होना चाहिए। इसके लिए रोजाना 1000 mg यानी 1 ग्राम कैल्शियम लेने की जरूरत होती है। कैल्शियम से भरपूर डाइट (दूध और दूध से बनी चीजें, हरी पत्तेदार सब्जियां और ड्राई-फ्रूट्स) लेने से यह जरूरत काफी हद तक पूरी हो जाती है। प्रेग्नेंट महिलाओं, दूध पिलाने वाली मांओं और बढ़ते बच्चों को भी ज्यादा मात्रा में कैल्शियम की जरूरत होती है। प्रेग्नेंट और दूध पिलाने वाली मांओं को दोगुनी यानी करीब 2 ग्राम कैल्शियम रोजाना की जरूरत होती है। इसी तरह 1-4 साल के बच्चों को रोजाना 700 mg, 4-8 साल के बच्चों को 1000 mg और 9-18 साल के बच्चों को 1300 mg कैल्शियम चाहिए होता है। उम्र बढ़ने के साथ खासकर महिलाओं में कैल्शियम सप्लिमेंट या टैब्लेट लेने की जरूरत पड़ने लगती है।

कैल्शियम के लिए कौन-सा टेस्ट

कैल्शियम की जांच के लिए 2 टेस्ट होते हैं:

ब्लड कैल्शियम: यह ब्लड में मौजूद कैल्शियम की जानकारी देता है। हालांकि यह बहुत फायदेमंद नहीं है क्योंकि हमें हड्डियों में मौजूद कैल्शियम की जानकारी चाहिए होती है, न कि ब्लड में मौजूद कैल्शियम की।

कीमत: 300-400 रुपये

डेक्सास्कैन: इसे बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट भी कहते हैं। इससे हड्डियों में मौजूद कैल्शियम के लेवल की जानकारी मिलती है। हड्डियों के दर्द या किसी और दिक्कत को जानने के लिए यही टेस्ट कराना बेहतर है।

कीमत: 1200 से 1500 रुपये

नोट: अक्सर गली-मोहल्ले में फ्री में बोन डेंसिटी टेस्ट के कैंप लगते हैं। इनमें एड़ी के जरिए हड्डियों में कैल्शियम की मात्रा की जांच की जाती है। लेकिन यह तरीका सही नहीं है। इस टेस्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

कौन-सी दवा लें

हमें रोजाना 1 ग्राम (1000 mg) कैल्शियम की जरूरत पड़ती है। 50 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं और 70 साल के ज्यादा उम्र के पुरुषों को रोजानना 1200 mg कैल्शियम लेना चाहिए। खाने से यह जरूरत पूरी नहीं हो रही हो तो डॉक्टर की सलाह से हर दिन 500 mg की 1 टैब्लेट ले सकते हैं। 30 साल की उम्र के बाद महिलाओं को और 40 साल के बाद पुरुषों को कैल्शियम टैब्लेट लेनी चाहिए। कैल्शियम लेने पर कई बार गैस, अपच, कब्ज आदि की शिकायत हो सकती है। ऐसे में खाने के बाद लेना और खूब सारा पानी पीना चाहिए।

चंद अहम सवाल

क्या सबको कैल्शियम टैब्लेट लेनी चाहिए?

अगर आप डाइट के जरिए कैल्शियम बहुत अच्छी मात्रा में ले रहे हैं तो अलग से कैल्शियम टैब्लेट लेना जरूरी नहीं है। हां, उम्र बढ़ने के साथ कैल्शियम टैब्लेट लेने की सलाह दी जाती है।

कैल्शियम ज्यादा हो तो क्या शरीर में पथरी बन जाती हैं?

पथरी बनने के पीछे दूसरी वजह होती हैं। कैल्शियम का इसमें सीधे तौर पर कोई रोल नहीं होता।

किडनी और दिल के मरीजों को कैल्शियम ज्यादा नहीं लेना चाहिए?

वैसे तो कैल्शियम का सीधे तौर पर इन दोनों बीमारियों से कनेक्शन नहीं है लेकिन फिर भी बेहतर है कि कैल्शियम टैब्लेट लेना शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह ले लें।

कौन-सा कैल्शियम लेना बेहतर है?

कई तरह के कैल्शियम मार्केट में मिलते हैं। कैल्शियम कार्बोनेट सबसे कॉमन है और इसे खाने के साथ लेना बेहतर है, जबकि कैल्शियम साइट्रेट के साथ ऐसा कोई नियम नहीं है। कोई भी कैल्शियम टैब्लेट खरीदते वक्त उसमें कैल्शियम की मात्रा जरूर चेक कर लें।

कहते हैं कि गेंहू के दाने के बराबर चूना रोजाना पानी में डालकर रोज खाली पेट लेने से कैल्शियम की जरूरत पूरी हो जाती है। यह सही है क्या?

यह पूरी तरह गलत है। मॉर्डन मेडिसिन के सभी जानकार इसे पूरी तरह गलत बताते हैं और चूने से दूर रहने की सलाह देते हैं।

ज्यादा जानकारी के लिए

यूट्यूब विडियो

y2u.be/CgInu5GnOr4: विटामिन डी की कमी से कौन-कौन सी बीमारियां हो सकती हैं, इस 1:38 मिनट के इस विडियो से जान सकते हैं।

y2u.be/Y4Bx5Mx8Zok: विटामिन डी की कमी पूरी करनेवाले फूड आइटम्स की जानकारी के लिए देखें यह विडियो, जोकि कुल 1:32 मिनट का है।

वेबसाइट्स

webmd.com: विटामिन डी से जुड़ी ढेर सारी जानकारी आपको यहां मिल सकती है।

nhs.uk: विटामिन डी को लेकर नई गाइडलाइंस क्या कहती हैं, पढ़ें इस साइट पर।

ऐप

dminder: यह ऐप आपके मोबाइल का जीपीएस यूज कर बताता है कि आप जहां हैं, वहां आपको कितनी धूप मिल रही है। इसमें लगा टाइमर आपको धूप में बैठने के लिए भी रिमाइंड कराएगा। पेड वर्जन में हिस्ट्री को भी मैनेज कर सकते हैं। साथ ही, फिलहाल आपका क्या लेवल चल रहा है, यह भी जान सकते हैं।

कीमत: फ्री, प्लैटफॉर्म: विंडोज़, एंड्रॉयड, ios

D-Rise: विटामिन डी से जुड़ी सारी जानकारी आपको इस ऐप से मिल सकती है। आपके लिए कितना विटामिन डी जरूरी है, वह कैसे मिलेगा, क्या खाएं आदि तमाम जानकारियां आपको इसके जरिए मिल सकती हैं।

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एक्सपर्ट से पूछें

विटामिन डी की कमी से जुड़ा कोई सवाल हो तो हमें sundaynbt@gmail.com पर भेजें। सब्जेक्ट में vitaminD लिखें। हम एक्सपर्ट से पूछकर हम आपके सवालों के जवाब छापेंगे।

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साइनस बहुत ही कॉमन प्रॉब्लम है। सही इलाज से इससे पूरी तरह राहत मिल सकती है। एक्सपर्ट्स से बात करके साइनस पर पूरी जानकारी दे रही हैं गुंजन दुष्यंत भाटी...

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. मनीष, सीनियर रेजिडेंट, राजन बाबू इंस्टिटयूट ऑफ पल्मनरी मेडिसन
डॉ. शशिधर तटवर्ती, हेड, ईएनटी डिपार्टमेंट, आर्टीमिस हॉस्पिटल
डॉ. शुचींद्र सचदेव, सीनियर होम्योपैथ एक्सपर्ट
लक्ष्मीकांत त्रिपाठी, आयुर्वेदिक एक्सपर्ट
सुरक्षित गोस्वामी, योग गुरु

कुछ लोगों को हमेशा सर्दी-जुकाम की शिकायत रहती है लेकिन इनमें से ज्यादातर मामले साइनोसाइटिस यानी साइनस के होते हैं। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह क्या है? दरअसल, हमारी खोपड़ी में बहुत-सारी कैविटीज़ (खोखले छेद) होती हैं। ये हमारे सिर को हल्का बनाए रखने और सांस लेने में मदद करती हैं। इन छेदों को साइनस कहते हैं। अगर इन छेदों में बलगम भर जाती है तो सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। इस समस्या को ही साइनोसाइटिस कहते हैं। आम बोलचाल में इसे साइनस भी कहा जाता है। हर साल बड़ी संख्या में लोग इसकी चपेट में आते हैं या कहें कि हर साल इसके नए मामले आते हैं। जिन लोगों को एलर्जिक साइनस होता है, उन्हें पोलन सीजन और सर्दियों में स्मॉग होने पर समस्या बढ़ने का खतरा रहता है। पहले जुकाम और प्रदूषण की वजह से गले में खिचखिच पैदा होती है। इसी के साथ नाक बंद होना, नाक बहना और बुखार जैसी शिकायतें होने लगती हैं। अगर ये लक्षण कई दिनों तक बने रहें तो ये एक्यूट साइनस हो सकता है। अगर यह समस्या बार-बार होने लगे या तीन महीने से ज्यादा समय तक बनी रहे तो यह क्रॉनिक साइनस हो सकता है।

क्यों होता है
सांस लेने में रुकावट, नाक की हड्डी का बढ़ना और तिरछा होना, एलर्जी होना इसकी आम समस्या है यानी किसी भी कारण से साइनस के संकरे प्रवेश मार्ग में अगर रुकावट आ जाती है तो साइनस होता है। इसके अलावा कई बार खोखले छेदों में बलगम भर जाता है, जिससे साइनस बंद हो जाते हैं। साथ ही, इन्फेक्शन के कारण साइनस की झिल्ली में सूजन आ जाती है। इस वजह से सिर, माथे, गालों और ऊपर के जबड़े में दर्द होने लगता है। यह बीमारी खराब लाइफस्टाइल की वजह से नहीं होती लेकिन जो लोग फील्ड जॉब में होते हैं यानी जो ज्यादा समय पल्यूशन में रहते हैं या फिर लकड़ी इंडस्ट्री आदि प्रफेशन से जुड़े होते हैं, उनको साइनस होने का खतरा ज्यादा होता है।

लक्षण
- सिर में दर्द और भारीपन
- आवाज में बदलाव
- बुखार और बेचैनी
- आंखों के ठीक ऊपर दर्द
- दांतों में दर्द
- सूंघने और स्वाद की शक्ति कमजोर होना
- बाल सफेद होना
- नाक से पीला लिक्विड गिरने की शिकायत

कैसे जानें कि साइनस है
जुकाम अक्सर अपना पूरा वक्त लेकर ही ठीक होता है। यह ज्यादा-से-ज्यादा एक हफ्ते में ठीक हो जाता है। हालांकि तीसरे-चौथे दिन से जुकाम की तीव्रता कम होने लगती है। लेकिन अगर जुकाम एक या दो दिन में ही बहते-बहते अचानक रुक जाए या अपने आप ठीक हो जाए तो हो सकता है कि जुकाम बाहर न निकलकर अंदर ही जम गया है जोकि आगे चलकर साइनस बन सकता है। अगर जुकाम करीब एक हफ्ता रहे और अपना पूरा टाइम लेकर ठीक हो तो मरीज को आगे जाकर साइनस होने का खतरा नहीं होता क्योंकि बलगम आदि नाक के जरिए बाहर निकल जाता है लेकिन अगर बार-बार जुकाम हो और वह दो-तीन दिन में अपने आप ही ठीक हो जाए, बहे नहीं या दवा लेकर उसे रोक दिया जाए तो वह साइनस बन जाता है।

कई तरह का साइनस
एक्यूट साइनस: इसमें सर्दी लगने के लक्षण अचानक उभर आते हैं, जैसे नाक जाम होना या उसका बहना और चेहरे में दर्द होना। यह अवस्था 8-10 दिन बाद भी खत्म नहीं होती बल्कि आमतौर पर चार हफ्ते तक बनी रहती है। एक्यूट साइनस अक्सर बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण होता है और इसमें सांस की नली के ऊपरी हिस्से में इन्फेक्शन हो जाता है। इसके इलाज के लिए एंटी-बायोटिक दवाएं दी जाती हैं। ये साइनस से इन्फेक्शन साफ कर देती हैं। नाक में सूजन कम करने के लिए नेजल ड्रॉप्स दी जाती हैं, लेकिन इन्हें कुछ दिनों के लिए ही लेना चाहिए। ज्यादा दिनों तक यूज करने से नाक की भीतरी सतह पर बुरा असर पड़ता है। दर्द से राहत के लिए पेनकिलर दवाएं दी जाती हैं। इसमें स्टीम लेने से भी फायदा होता है। खूब पानी पीना और आराम करना बीमारी को जल्दी ठीक कर देता है।

सब-एक्यूट साइनस: साइनस में चार से आठ हफ्ते तक सूजन और जलन रहती है। इसका इलाज भी आमतौर पर एक्यूट साइनस की तरह की होता है।
क्रॉनिक साइनस: इसमें लंबे समय तक साइनस में जलन और सूजन रहती है। साइनस की सूजन दो तरह की होती है: एक, सूजन अचानक होती है और कुछ दिनों में खत्म हो जाती है। लेकिन कई मरीजों में सूजन लंबी चलती है और साथ में नाक में दर्द भी होता है। इसमें नाक के रास्ते को साफ करने की सख्त जरूरत होती है। जब साइनस के ये लक्षण हफ्ते तक रहें तो उसे क्रॉनिक साइनस कहा जाता है। यह भले ही जानलेवा बीमारी न हो, लेकिन लाइफ की क्वॉलिटी पर असर डालती है यानी मरीज लगातार परेशान-सा रहता है। किसी को साइनस की प्रॉब्लम अगर कुछ बरसों तक रहे तो वह आगे चलकर अस्थमा में बदल सकती है। हालांकि बच्चों में यह समय 8 से 10 साल का होता है।

रीक्यूरेंट साइनस: अगर दमा यानी अस्थमा है या एलर्जी से संबंधित कोई बीमारी है तो जल्दी-जल्दी क्रॉनिक साइनस हो सकता है। इसका इलाज करीब-करीब क्रॉनिक साइनस की तरह ही होता है।

नोट: मरीज की स्थिति के अनुसार डॉक्टर दवाएं देते हैं। शुरुआती दौर में दवाओं से साइनस का इलाज मुमकिन है, लेकिन अगर वक्त रहते इलाज नहीं किया जाए तो सर्जरी ही आखिरी इलाज बचता है। साइनस के इलाज या सर्जरी के लिए आपको ईएनटी स्पेशलिस्ट के पास जाना होता है। साइनस के लिए एंडोस्कोपिक साइनस सर्जरी की जाती है।

बीमारी अलग, लक्षण एक
बड़े और बच्चों, सभी में साइनस के लक्षण एक जैसे ही होते हैं। इसके अलावा, सर्दी-जुकाम, फ्लू, अस्थमा, क्रॉनिक ऑबस्ट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज़ (COPD) और साइनस के काफी लक्षण करीब-करीब एक जैसे होते हैं। हालांकि इन सभी बीमारियों में कुछ फर्क भी होता है:

सर्दी-जुकाम
सर्दी-जुकाम में वायरल इंफेक्शन के कारण सांस की नली पर असर होता है। बुखार, सिरदर्द, खांसी, नाक बहना या बंद रहना, छींकना, गले में खराश, आंखों से आंसू बहना, सांस लेने में परेशानी होना आदि सर्दी-जुकाम के मुख्य लक्षण हैं। वायरल इंफेक्शन में एंटी-बायोटिक दवाओं की जरूरत नहीं होती। यह 5 से 7 दिन में खुद ही ठीक हो जाता है या फिर एंटी-एलर्जिक दवा ले सकते हैं, ताकि आराम मिले। बेहतर है कि कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर से जरूर पूछें। स्टीम लेने और नमक के पानी के गरारों से फायदा होता है।

फ्लू
फ्लू खासकर सर्दी के मौसम की शुरुआत में होता है। सर्दी, छींक, खांसी, गले में दर्द, बदन दर्द और बुखार इसके सामान्य लक्षण हैं। यह भी वायरल इंफेक्शन है, लेकिन इसमें स्थिति सामान्य जुकाम की तुलना में ज्यादा गंभीर होती है। तेज बुखार और सिरदर्द होता है, निमोनिया भी हो सकता है। इसका असर लंबे समय तक रहता है। नॉर्मल फ्लू 5 से 7 दिनों तक रहता है लेकिन निमोनिया कितने भी दिन रह सकता है।

अस्थमा
अस्थमा यूनानी शब्द है, जिसका अर्थ है सांस लेने के लिए जोर लगाना। अस्थमा ऐसी बीमारी है, जो मनुष्य के फेफड़ों के किसी चीज के प्रति एलर्जिक होने के कारण होती है। इसमें मरीज की सांस की नली के अंदर सूजन आ जाती है। इसी सिकुड़न के कारण सांस लेने में परेशानी होती है क्योंकि फेफड़ों तक भरपूर ऑक्सिजन नहीं पहुंच पाती। अस्थमा का एक कारण जिनेटिक भी हो सकता है यानी परिवार में किसी को अस्थमा रहा हो तो अगली पीढ़ी को भी इसके होने की आशंका बढ़ जाती है। इसकी मनोवैज्ञानिक वजह भी होती है। अक्सर डरे-सहमे बच्चों के अंदर घबराहट की एक प्रवृत्ति बन जाती है, जो आगे चल कर सांस की दिक्कत में बदल जाती है।
घर की धूल (दीवारों-फर्श या कारपेट पर जमी धूल, कंबल-रजाई-गद्दे या मकड़ी के जाले की धूल आदि), तापमान में बदलाव या फ्लू के इन्फेक्शन से अस्थमा का अटैक हो सकता है। घने कोहरे में टहलने से भी इसका अटैक पड़ सकता है। जल्दी-जल्दी सांस लेना, सांस लेने में तकलीफ, खांसी के कारण नींद न आना, सीने में कसाव या भारीपन, अक्सर सांस फूलना और पूरे शरीर में खिंचाव महसूस होना अस्थमा के लक्षण हैं। डॉक्टर लक्षण के हिसाब से मरीज को दवाएं देता है। अस्थमा को मरीज को हमेशा अपने साथ इनहेलर रखने की भी सलाह दी जाती है।

COPD
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज़ आमतौर पर स्मोकिंग करने वालों में होती है। सर्दियों में बैक्टीरिया के इन्फेक्शन से दौरे की आशंका बढ़ जाती है। इसमें फेफड़ों में इन्फेक्शन हो जाता है। कई बार शरीर में ऑक्सिजन की ज्यादा कमी होने पर मरीज को हॉस्पिटल भी ले जाना पड़ सकता है। COPD का अटैक तेज होता है। मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगती है। ऐसा होने पर देर न करें और मरीज को फौरन डॉक्टर के पास लेकर जाएं। एंटी-बायोटिक दवाओं के जरिए इसका इलाज किया जाता है।

ऐसे करें बचाव
- एलर्जी से बचने के लिए बहुत ज्यादा भारी-भरकम और गद्देदार फर्नीचर से परहेज करें। अपने तकियों, बिस्तरों और कारपेट की नियमित सफाई करें। गलीचों और पायदानों की सफाई का भी ध्यान रखें। परफ्यूम आदि की गंध से दूर रहें। एयर पलूशन से बचें।
- अपने घर के वेंटिलेशन सिस्टम को सुधारें। जहां तक हो सके, घर की खिड़कियां खोलकर हवा को आर-पार जाने दें।
- जिन लोगों को जुकाम या कोई दूसरा वायरल इंफेक्शन हो, उनके संपर्क में जाने से बचें।
- बहुत ज्यादा या बहुत कम तापमान में न रहें। तापमान में अचानक आने वाले बदलाव से बचें।
- तनाव से दूर रहें। तनाव के कारण शरीर की रक्षा करनेवाले सफेद सेल कमजोर पड़ जाते हैं।
- स्वीमिंग से बचें। अगर स्वीमिंग करनी ही हो तो नाक को ढक लें। ध्यान रखें कि स्वीमिंग के पानी में क्लोरीन जरूर हो।
- नमक के पानी से अपनी नाक की सफाई करें।
- सफाई का खास ख्याल रखें। बैक्टीरियल और वायरल इन्फेक्शन से बचें। अपने हाथों को हमेशा साबुन से साफ करें।
- रोजाना 8-10 गिलास पानी पिएं।
- सुबह उठते ही चाय या गर्म पानी पिएं। गर्म चीजें पीने से नाक या गले में बलगम जमा नहीं होता।

क्या है इलाज
स्टीम
बारी-बारी से नाक के दोनों नथुने साफ करें। पानी उबालें और डॉक्टर की बताई दवाई डालकर पंखे बंद कर कपड़ा ढककर नाक और मुंह से लंबी-लंबी सांस 8-10 मिनट तक लें। इसके बाद 20 मिनट तक हवा में न जाएं। सिंपल ताजे साफ पानी से भाप लेना ज्यादा अच्छा रहता है। किसी भी नेज़ल स्प्रे का खुद से बिल्कुल इस्तेमाल न करें। डॉक्टर की सलाह से ही स्प्रे यूज करें। सलाइन वॉटर यानी नमक के पानी का इस्तेमाल करना सबसे ज्यादा फायदेमंद रहता है।

दवाएं
साइनस के इलाज के लिए दवा लेना भी जरूरी होता है। लेकिन कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह के बिना न लें। डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी दवा लेना काफी नुकसान पहुंचा सकता है और आप मुश्किल में पड़ सकते हैं इसलिए बीमारी पता चलते ही डॉक्टर से मिलें। नाक में कोई भी स्प्रे आदि का इस्तेमाल डॉक्टर से पूछ कर ही करें। शुरुआती दौर में दवाओं से साइनस का इलाज मुमकिन है, लेकिन अगर वक्त रहते इलाज नहीं कराते तो ऑपरेशन की नौबत आ सकती है।

कब होता है ऑपरेशन
- जब नाक में मस्सा बन गया हो
- फंगस या इन्फेक्शन ब्रेन तब पहुंच गया हो या आंखों पर दवाब डाल रहा हो
- सर में बहुत ज्यादा तेज दर्द हो और नींद डिस्टर्ब हो
सर्जरी का खर्च हॉस्पिटल के हिसाब से अलग-अलग होता है लेकिन करीब 60 हजार से डेढ़ लाख रुपये तक का खर्च आता है। सर्जरी में एक दिन का समय लगता है। अगर मरीज सर्जरी कराने के बाद इलाज जारी न रखे या डॉक्टर की बताई जरूरी दवाएं लेना बंद कर दे तो समस्या वापस आ सकती है।

इलाज में कॉमन गलतियां
- तकलीफ बढ़ने पर सर्जरी नहीं कराना।
- अगर जुकाम 5 से 6 दिन तक रह जाए तो उसे जुकाम ही मानना और डॉक्टर को नहीं दिखाना।
- खुद ही एंटी-बायोटिक ले लेना या घरेलू नुस्खे कर लेना।

होम्योपैथी में इलाज
होम्योपैथी में साइनस के इलाज के लिए इस तरह की दवाएं दी जाती हैं जिनसे सिरदर्द में आराम मिले और कैविटी में भरा बलगम जुकाम के जरिए बाहर निकले। ये दवाएं हैं:
कली बिक्रोमियम (Kali bichromicum) 30: 5-5 गोली दिन में तीन बार
आर्सेनिकम अल्बम (Arsenicum Album) 30: 5-5 गोली दिन में तीन बार
सिलैसिआ (Silicea) 30: 5-5 गोली दिन में तीन बार
सैम्बुकस निग्रा (Sambucus Nigra) 30: 5-5 गोली दिन में तीन बार
नोट: ये सभी दवाएं डॉक्टर मरीज की उम्र और बीमारी के लक्षणों के मुताबिक देता है। जब साइनस की प्रॉब्लम पहली बार हो तब ये दवाएं 1 से 2 हफ्ते चलती हैं। जब साइनस की प्रॉब्लम बार-बार हो या बीमारी पुरानी हो जाए तो दवाएं 3 से 6 महीने तक दी जाती हैं। दवा डॉक्टर से पूछे बिना कतई न लें।

आयुर्वेद में इलाज
- 1 चम्मच सितोपलादि और आधा चम्मच तालीसादि चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम गरम पानी से एक हफ्ते लें।
- आधे चम्मच मधुयस्ती चूर्ण को आधे चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम एक हफ्ते तक लें।
- सोने से पहले नाक में गाय के घी की दो-दो बूंदें तीन दिन तक डालें। पिघले घी को ही नाक में डालें।

योग में इलाज
- सुबह उठकर 1 से 2 मिनट जल नेति
- कुंजल क्रिया 2 से 5 मिनट
- कपालभाति 5 से 7 मिनट
- महावीर आसन 2 से 3 बार
- वीर आसन 2 से 3 बार
- पृष्ठचालन आसन 2 से 3 बार
- शलभासन 2 से 3 बार
- धनुर्रासन 2 से 3 बार
- मंडूकासन 2 से 3 बार
- लिंग मुद्रा 2 से 3 बार
- अनुलोम-विलोम प्राणायाम 2 से 5 मिनट
- भस्त्रिका प्राणायाम 2 से 5 मिनट
- इसके बाद 2 से 5 मिनट ध्यान में बैठें या 2 से 5 मिनट तक शवासन करें।
- पानी को उबालकर ठंडा करके उससे नेति क्रिया करें। नेति क्रिया किसी योग गुरु की देखभाल में दिन में एक बार और एक महीने तक करें। बिना एक्सपर्ट के ना करें।
- ये सभी योग क्रियाएं सुबह खाली पेट करें और शाम को करना चाहते हैं तो डिनर से 2 से 3 घंटे पहले या लंच के चार घंटे बाद करें।

क्या खाएं
- खजूर, किशमिश, सेब, सोंठ, अजवायन, हींग, लहसुन, लौकी, कद्दू, मूंग के अलावा ताजा सब्जियों का सूप पिएं।
- सुबह खाने से पहले या खाने के बाद रोज एक आंवला खाएं।
- रोजाना एक चम्मच च्यवनप्राश खाएं।
- हल्के गुनगुने पानी से नहाएं।
-10 से 15 तुलसी के पत्ते, 1 टुकड़ा अदरक और 10 से 15 पत्ते पुदीने के लें। सबको पीसकर एक गिलास पानी में उबाल लें। जब पानी उबलकर आधा रह जाए तो उसे छान लें और स्वाद के अनुसार शहद मिलकार पिएं। इसे पूरे दिन में दो बार (सुबह खाने के बाद और रात को सोने से पहले) पीने से साइनस में आराम मिलता है।

क्या न खाएं
बासी खाना, गन्ने का रस, दही, चावल, केला, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक, फ्रिज का ठंडा दूध, चॉकलेट, तीखा खाने से बचें। ठंडी हवा में ज्यादा न घूमें या नाक और मुंह को ढककर रखें।

ये भी मददगार
हल्दी और अदरक की चाय
अगर आप साइनस से फौरी राहत पाना चाहते हैं तो हल्दी और अदरक से बनी चाय का सेवन करें। हल्दी में कई औषधीय गुण होते हैं और इसमें मौजूद तत्व जलन भी कम कर सकते हैं, जिससे किसी भी तरह की एलर्जी और चिड़चिड़ेपन को दूर किया जा सकता है। अदरक नाक को खोलने में आपकी मदद करती है और अंदर की गंदगी को साफ करती हैं। एक इंच हल्दी और एक इंच अदरक को पीसकर एक कप उबलते गर्म पानी में डाल दें और ढक्कन लगा लें। इसे 10 मिनट तक आंच पर रखें और फिर छान लें। इस चाय का सेवन करने से आपको साइनस के दर्द से छुटकारा मिलेगा।

घर का वातावरण रखें साफ
धूल, मिट्टी के महीन कण, पशुओं के बाल, फफूंद आदि हवा में रहने वाले ऐसे तत्व हैं, जिन्हें साइनस का बड़ा कारण माना जाता है। इसके लिए आप अपने घर में एयर प्यूरिफायर लगवाएं, जिससे आपके घर के अंदर वातावरण साफ बना रह सके। लेकिन हर महीने फिल्टर की सफाई जरूरी है। अपने पालतू जानवरों को घर से बाहर रखें। उनकी साफ-सफाई पर भी ध्यान दें। हफ्ते में एक बार वैक्यूम क्लीनर से घर की सफाई करवाएं।

बाहरी इन्फेक्शन से करें बचाव
प्रदूषण से बचाव के लिए जरूरी है। साइनस से पीड़ित कुछ लोगों की समस्या इससे काफी बढ़ जाती है। आप जब भी बाहर जाएं, मुंह पर मास्क लगाकर जाएं। आप एन-90 मास्क का इस्तेमाल कर सकते हैं....अगर खुद कार चला रहे हैं तो शीशे बंद करके रखें और इस बात का ध्यान रखें कि आपकी कार का वेंटिलेशन सिस्टम सही तरह से काम कर रहा हो।

पानी की कमी से बचें
आपको साइनस की समस्या है तो यह जान लें कि आपके शरीर में पानी की भी कमी है। आपको जल्द ही इस समस्या से निजात पाना होगा, वरना गंभीर स्थिति पैदा हो जाएगी। इसके लिए आपको रोज खूब पानी पीना चाहिए। अल्कोहल, कैफीन, मीठे शरबत आदि पीने और स्मोकिंग करने से बचें। क्यों, क्या नुकसान।

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इस साल सीबीएसई की क्लास 12वीं की ऑल इंडिया टॉपर रही हैं रक्षा गोपाल। ह्युमैनिटीज़ यानी आर्ट्स में 99.6 पर्सेंट नंबर हासिल कर रक्षा ने सभी को चौंका दिया है। इतने नंबर पाने के बाद सभी के मन में सवाल है कि आखिर उसका एग्जाम में सवालों के जवाब देने के तरीके में क्या खास था कि टीचर नंबर काट ही न सके। जनवरी में हुए प्री-बोर्ड एग्जाम की रक्षा की आंसरशीट्स के जरिए उसकी कॉपी को स्कैन करके इन सवालों के जवाब खोजे पूनम गौड़ ने:

इंग्लिश

रक्षा ने इंग्लिश में परफेक्ट 10 हासिल किए हैं। रक्षा बता रही हैं कि उन्होंने अपनी कॉपी को कैसे लिखा कि पूरे नंबर हासिल किए।

- शुरुआत में मिले 15 मिनटों को मैंने बखूबी इस्तेमाल किया। पहले 5 मिनट में मैंने काॉम्प्रिहेंशन को छोड़कर बाकी सारा पेपर पढ़ा। ऐसा इसलिए क्योंकि काॉम्प्रिहेंशन वक्त मांगता है। बचे 10 मिनट में कॉम्प्रिहेंशन पर फोकस किया और जवाब लिखने की स्ट्रैटजी तैयार कर ली।

- इंग्लिश की कॉपी में प्रेजेंटेशन बहुत अहम होता है। इसके लिए प्रमुख पॉइंट्स को अंडरलाइन जरूर करना चाहिए।

- 3 नंबर वाले सवालों को जल्द खत्म करने की कोशिश की। मैंने टू द पॉइंट लिखा और हर जवाब में 3 पॉइंट्स देने की कोशिश की। जरूरत लगने पर पैराग्राफ भी लिखे लेकिन लंबाई ज्यादा नहीं रखी।

- इंग्लिश सब्जेक्ट में मेरा फोकस हमेशा पेपर को शुरू से (सीरियल से) सॉल्व करने पर रहा। सबसे पहले मैं रीडिंग सेक्शन को सॉल्व करती थी। इसमें जवाब छोटे होते हैं तो टाइम कम लगता है और यह वॉर्म-अप का काम करते हैं। इससे प्रेशर भी कम हो जाता था।

- उसके बाद मेरा फोकस राइटिंग स्किल्स सेक्शन पर ज्यादा रहा। इसमें सबसे ज्यादा लिखना होता है और यह सबसे ज्यादा टाइम लेता है।

- इस हिस्से में तय फॉर्मेट का ध्यान रखना काफी जरूरी है। पूरे नंबर लेने के लिए यह जरूरी है। इसकी प्रैक्टिस मैंने सबसे ज्यादा की। महत्वपूर्ण पॉइंट्स को जवाब खत्म होते ही अंडरलाइन किया ताकि भूल न जाऊं। कटिंग कम-से-कम करने की कोशिश की। हालांकि फिर भी कटिंग हो जाती थी।

- इस सेक्शन में वर्ड लिमिट रहती है, उस पर मैंने पूरा फोकस किया। इस सेक्शन में सबसे ज्यादा प्रैक्टिस की जरूरत होती है और कई बार करंट टॉपिक से ही सवाल पूछे जाते हैं इसलिए मैंने खबरों पर नजर रखी।

- आखिर में मैंने टेक्स्ट बुक और लॉन्ग रिडिंग टेक्स्ट पर फोकस किया। इसमें 6 नंबर वाले सवाल सबसे जरूरी होते हैं। इनमें जवाबों की लंबाई और प्रेजेंटेशन काफी अहमियत रखती है। ये सवाल 120 से 150 शब्दों में हल करने होते हैं। मैंने इस बात का पूरा ध्यान रखा। लिहाजा इसमें मैंने ब्रैकग्राउंड, एक्सप्लेनेशन और कन्क्लूजन, तीनों लिखे। मुख्य पॉइंट्स को अंडरलाइन किया।

- इंग्लिश के पेपर के लिए मैंने समय-समय पर टीचर्स से टिप्स लिए। लिखकर काफी प्रैक्टिस की। सबजेक्ट टीचर से ही मुझे प्रेजेंटेशन में हेल्प मिली। पहले ही टेस्ट से मैंने अपनी गलतियों को दूर करने की कोशिशें शुरू कर दीं। टीचर के बताए टिप्स को शुरू से प्रैक्टिस में फॉलो किया।

एक्सपर्ट कमेंट: सीबीएसई की कॉपी चेक करने वाली और पिछले 14 बरसों से सीनियर स्टूडेंट्स को पढ़ा रहीं हमारी एक्सपर्ट ने बताया कि शिक्षा की प्री-बोर्ड कॉपी में उन्होंने प्रेजेंटेशन पर ध्यान दिया है। इसकी वजह से कटिंग की गलतियां छुप गई हैं। वर्ड लिमिट का काफी ख्याल रखा है और सबसे अहम बात है कि जिन पॉइंट्स को अंडरलाइन करने की जरूरत थी, उसका पूरा इस्तेमाल किया है। इससे टीचर को नंबर काटने की वजह नहीं मिलती। छोटी गलतियां इस खूबी से छुप जाती हैं। राइटिंग सेक्शन में लग रहा है कि पूरी मेहनत की गई है और काफी प्रैक्टिस की है। इस सेक्शन में अक्सर गलतियां होती हैं लेकिन यहां नंबर काटने की गुंजाइश कम ही दिख रही है।

हिस्ट्री

- हिस्ट्री में जवाबों की लंबाई काफी अहमियत रखती है। यह पेपर समय पर पूरा करना एक चुनौती होता है।

- इसके लिए मैंने पिछले साल के बोर्ड पेपरों से काफी तैयारियां कीं ताकि टाइम मैनेजमेंट बेहतर हो सके।

- अहम तारीखों का रिविजन बार-बार किया ताकि तारीखें याद रह जाएं।

- कॉपी में महत्वपूर्ण पॉइंट्स को अंडरलाइन करना सबसे अहम हिस्सा रहा।

- मैप वर्क में मैंने शुरू से तय कर लिया था कि मुझे फुल 5 नंबर लेने हैं इसलिए काफी प्रैक्टिस की।

- टीचर के पास पूरा क्वश्चन बैंक था जिससे मुझे काफी हेल्प मिली और मेरी प्रैक्टिस भी काफी अच्छी हुई।

- जहां-जहां तारीखों का इस्तेमाल हो सकता था, मैंने किया क्योंकि इससे मार्क्स नहीं कटते।

- पॉइंट्स बनाकर अपनी बातों को एक्सप्लेन करने पर फोकस किया।

एक्सपर्ट कमेंट: पिछले कुछ बरसों से सीबीएसई की कॉपियां चेक कर रही हमारी एक्सपर्ट टीचर ने बताया कि प्रेजेंटेशन, लंबाई और तारीखों का पूरा ख्याल कॉपी में रखा गया है। इससे लग रहा है कि स्टूडेंट ने पूरे साल मेहनत की है। नंबर से सवालों को हल करना, पॉइंट्स में जवाब लिखना और अंडरलाइन का बेहतरीन उदाहरण कॉपियों में हैं। लगता है कि एनसीईआरटी की बुक्स को कई बार पढ़ा गया है, तभी कॉन्सेप्ट क्लियर हैं।

पॉलिटिकल साइंस

- पॉलिटिकल साइंस में मैंने एनसीईआरटी के साथ दूसरी किताबों पर काफी फोकस किया। इस सब्जेक्ट के लिए सिर्फ एनसीईआरटी की बुक्स काफी नहीं है। इसमें 6 नंबर के सवालों में फुल नंबर आते हैं।

- इसमें मैंने पेपर हमेशा लास्ट सवाल से शुरू किया। पैटर्न उलटा रखने का मकसद यह होता है कि ज्यादा नंबर के सवाल पहले हल हो जाते हैं और उनमें फुल मार्क्स भी आते हैं।

- प्रेजेंटेशन इसमें काफी महत्वपूर्ण है। जवाब लिखते हुए दो पॉइट्स के बीच मैं लाइन जरूर छोड़ती थी। इसे पॉइंट्स में आसानी से फर्क पता चलता है।

- इसमें सवालों को करंट टॉपिक से जोड़ना जरूरी है इसलिए आपको देश-विदेश के घटनाक्रम पर नजर रखना जरूरी है। मसलन पानी की किल्लत के जवाब को कावेरी या किसी लेटेस्ट विरोध प्रदर्शन से जोड़ सकते हैं।

- इसमें 1 नंबर के सवालों में भी मैंने पूरे वाक्य लिखे ताकि एग्जामिनर को नंबर काटने का मौका न मिले।

- 4 नंबर के सवालों में टू द पॉइंट जवाब लिखने की जरूरत है।

- यह सबसे लंबे पेपरों में एक है इसलिए इसमें टाइम मैनेजमेंट पर फोकस करना होता है। एक बार 6 नंबर के सवाल खत्म हो गए तो बचे टाइम का अंदाजा लगाकर स्पीड उसी हिसाब से तय करती थी।

एक्सपर्ट कमेंट: पिछले 6 बरसों से सीबीएसई की कॉपियां चेक कर रहे हमारे एक्सपर्ट ने बताया कि पॉलिटिकल साइंस की कॉपी का इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता। इसमें नंबर काटने की गुंजाइश काफी बारीकी से ढूंढ़नी पड़ रही है। जवाबों को सटीक उदाहरणों के साथ पॉइंट्स के जरिए उभारकर लिखा गया है। शब्द सीमा का ख्याल रखते हुए अपनी बातों को बेहतरीन तरीके से लिखा गया है।

इकनॉमिक्स

- इकनॉमिक्स में डायग्राम सबसे अहम पॉइंट्स में से है। ये प्रेजेंटेशन को बेहतरीन बनाते हैं। मैंने लेवल करके इन्हें बनाया।

- इकनॉमिक्स मैथ्स की तरह ही है इसलिए फॉर्म्यूले का इस्तेमाल, साफ-सुथरे ग्राफ बनाने का और एक्स एक्सिस और वाई एक्सिस की क्लैरिटी का मैंने ध्यान रखा।

- इसमें न्यूमैरिकल काफी होते हैं। हर स्टेप का ध्यान रखने के साथ उनमें फिट होने वाले फार्मुले भी लिखे ताकि सवालों के लिए मुझे फुल नंबर मिलें।

- इस पेपर के दो हिस्से होते हैं: मैक्रो और माइक्रो। मैं माइक्रो को पहले करती हूं। यह हिस्सा ज्यादा समय लेता है जबकि मैक्रो में कम वक्त लगता है।

- डायग्राम पेंसिल से बनाए ताकि गलती होने पर उन्हें मिटाया जा सके।

- फॉर्म्यूले, डायग्राम, लेवलिंग को री-चेक करने के लिए समय बचाया ताकि अगर गलतियां हुई है तो उन्हें ठीक किया जा सके।

एक्सपर्ट कमेंट: पिछले 4 बरसों से सीबीएसई की कॉपी चेक कर रहीं हमारी एक्सपर्ट ने बताया कि कॉपी बहुत साफ है और गलतियां नहीं हैं। कुछ जगहों पर कटिंग हुई है लेकिन इकनॉमिक्स में इतनी गलतियां होती ही हैं। जवाब टू द पॉइंट लिखे हैं। खास बातों को अंडरलाइन किया गया है। सवालों को समझकर शब्द सीमा में जवाब लिखने की कोशिश काफी अच्छी है। न्यूमेरिकल में हर स्टेप का ध्यान रखा है।

साइकॉलजी

- साइकॉलजी के लिए एनसीईआरटी की बुक को पढ़ना ही काफी है। लेकिन बुक में बने बॉक्स को भी उतना ही महत्व देना होता है। बॉक्स को छोड़कर अच्छा स्कोर नहीं कर सकते।

- एक-एक नंबर के 10 सवाल आते हैं इसलिए ये काफी जरूरी होते हैं और ज्यादातर बुक के बॉक्स या डार्क वर्ड से ही आते हैं। इनमें एक शब्द में जवाब लिखना काफी होता है।

- दो नंबर के सवालों में दो पॉइंट्स ही लिखे ताकि इनमें ज्यादा समय न लग जाए।

- इससे समय बचाकर 3 सवालों के जवाबों को ज्यादा बड़ा किया ताकि उनमें भी मुझे फुल नंबर मिलें।

- इस पेपर का डी और ई पार्ट काफी स्कोरिंग और लंबा होता है इसलिए इसके लिए समय बचाना जरूरी है। इस पार्ट को अच्छे से एक्सप्लेन करना और लंबा लिखना जरूरी है। तभी फुल मार्क्स मिल पाते हैं।

एक्सपर्ट कमेंट: पिछले सात बरसों से सीबीएसई की कॉपियां चेक कर रहे टीचर ने बताया कि कॉपी में नंबर काटने की गुंजाइश नहीं दिख रही। डेढ़ नंबर काटने के लिए टीचर को एक गलती ढूंढ़ने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी होगी। प्रेजेंटेशन अच्छा है। पॉइंट बनाकर और दो पॉइंट्स को अलग दिखाने के लिए जगह छोड़ना अच्छा इम्प्रेशन डाल रहा है। कॉपी से स्टूडेंट की मेहनत दिख रही है।

सवाल हमारे, जवाब रक्षा के

आपकी कॉपियों में दूसरे स्टूडेंट्स की कॉपियों से क्या अलग है कि 100 मार्क्स मिले?

मैंने जवाब संतुलित और शब्द सीमा में लिखे। लैंग्वेज सिंपल रखी और गलतियां कम-से-कम करने की कोशिश की। मुख्य बातों को अंडरलाइन किया। फॉर्म्युले, मैप, डायग्राम पर काफी मेहनत की। स्पेलिंग से लेकर ग्रामर तक में गलतियों की गुंजाइश नहीं छोड़ी।

जवाब लिखने के लिए क्या आपको किसी की गाइडेंस मिली? वह क्या थी?

सभी सब्जेक्ट के टीचर मुझे जवाब लिखने के लिए गाइड करते रहे। पूरे साल टेस्ट कॉपियों में जो गलतियां मुझे बताई गईं, मैंने उन पर ध्यान दिया और उन्हें दूर किया। पूरे साल मैंने जवाब को तय फॉर्मेट में लिखने की प्रैक्टिस की है और टीचर्स से कमियों के बारे में पूछकर उन्हें दूर किया है। न सिर्फ लिखने की, बल्कि सवालों को टाइम पर पूरा करने के लिए मैंने काफी मेहनत की है।

कॉपी में सब हेडिंग, मैप, ग्राफ प्रेजेंटेशन के लिए क्या तैयारियां कीं?

हिस्ट्री में मैप वर्क पूरे नंबर पाने का एक जरिया है। इसकी रेग्युलर प्रैक्टिस की। इकनॉमिक्स में फॉर्म्युले का इस्तेमाल कर स्कोर को सुधारा, वहीं ग्राफ में एक्स एक्सिस और वाई एक्सिस की क्लैरिटी का ध्यान रखना काफी अहम है।

क्या लंबे जवाब लिखने पर ज्यादा नंबर मिले हैं, खास तौर पर हिस्ट्री में?

ज्यादा नंबर के सवालों में ज्यादा लिखना ही होता है। लेकिन पॉइंट बनाकर लिखने से नंबर कटने की संभावना कम होती है। मैंने भी इसी पैटर्न को फॉलो किया। पॉइंट्स के बीच में एक लाइन का स्पेस खाली छोड़ा। अगर 6 मार्क्स के सवाल में शब्द सीमा दी है तो न उसे कम और न उससे ज्यादा। यदि नहीं दी गई है तो 200 से 300 शब्द में ज्यादा-से-ज्यादा बात को कहने का फॉर्म्युला अपनाया। हिस्ट्री में ही नहीं, यह नियम इंग्लिश, पॉलिटिकल साइंस आदि में भी लागू होता है।

हिस्ट्री में तारीखों को याद कैसे रखती हैं?

हिस्ट्री में तारीखें याद रखना मुश्किल होता है। लेकिन थोड़ी-सी कोशिश से यह काम भी आसान हो जाता है। मैंने सभी प्रमुख तारीखों को एक जगह लिखा था और उन्हें रेग्युलर इंटरवल पर पढ़ती थी। इससे वे मुझे टिप्स पर याद हो गईं। कॉपी में तारीखें लिखने से पूरे नंबर मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

अलग-अलग नंबर के सवालों के लिए शब्द सीमा क्या है?

1 नंबर के सवालों के लिए एक शब्द और एक वॉक्य काफी है। पॉलिटिकल साइंस में एक नंबर के सवाल के जवाब में पूरा वॉक्य लिखना होता है तो साइकॉलजी में एक शब्द के जवाब काफी है। यह प्रैक्टिस से संभव होता है। दो मार्क्स के सवालों में दो पॉइंट लिखना काफी है। दो और तीन नंबर के सवाल टू द पॉइंट होने चाहिए। उनमें बहुत ज्यादा लिखने की जरूरत नहीं होती। लेकिन 4 से 6 नंबर के सवालों में आपको काफी लिखना होता है। अगर शब्द सीमा नहीं होती तो 200 से 300 शब्द के बीच होने चाहिए।

आप सीरियल से जवाब लिखना पसंद करती हैं या फिर जो अच्छे से आता है, उसे पहले करती हैं?

जवाब चाहे आगे से शुरू करें या पीछे से, मैं सीरियल फॉलो करती हूं। मैं पॉलिटिकल साइंस को आखिरी से शुरू करती हूं क्योंकि उसमें 6 मार्क्स के सवाल काफी लंबे होते हैं और उनमें समय काफी वक्त लगता है। वहीं इकनॉमिक्स में मैं पहले माइक्रो इकोनामिक्स सेक्शन को करती हूं। इस हिस्से को सॉल्व करने में थोड़ा समय लगता है। यह थोड़ा टेक्निकल भी है। उसके बाद माइक्रो करती हूं। लेकिन सीरियल नंबर को इसमें भी फॉलो करती हूं।

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टेस्ट, बीमारी को दें रेस्ट

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हम सभी हमेशा फिट और हेल्दी रहना चाहते हैं। इसके लिए अच्छी लाइफस्टाइल अपनाने के अलावा रेग्युलर इंटरवल पर रुटीन टेस्ट कराना चाहिए। कौन-कौन से रुटीन टेस्ट कराने जरूरी हैं और उनके क्या फायदे हैं, एक्सपर्ट से बात कर जानकारी दे रहे हैं प्रसन्न प्रांजल

एक्सपर्ट्स पैनल

डॉ. सरमन सिंह

प्रफेसर एंड हेड, क्लीनिकल माइक्रोबायॉलजी डिविजन, एम्स

डॉ. विजय मित्तल

कंसल्टेंट पैथलॉजिस्ट, दिल्ली सरकार

डॉ. अतुल आनंद

सीनियर मेडिकल ऑफिसर, डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन, आरएमएल हॉस्पिटल

डॉ. नवीन डैंग

डायरेक्टर, डैंग लैब

डॉ. रवि गुप्ता

सीईओ, सरल डायग्नोस्टिक्स

दिल्ली में रहने वाले 23 साल के अंकुश की दो साल पहले तबीयत खराब हुई। टेस्ट कराया तो टीएलसी लेवल 44,000 के ऊपर निकला। रिपोर्ट में कुछ और भी चीजें थीं, जो गंभीर थीं। ऐसे में वे परेशान होकर इंटरनेट से बीमारियों के लक्षण के बारे में जानकारी हासिल करने लगे। टेस्ट रिपोर्ट और बीमारी के लक्षणों को देखकर उन्हें लगा कि उन्हें ब्लड कैंसर हो गया है, लेकिन डॉक्टर से मिलने पर पता चला कि इंफेक्शन की वजह से ऐसा हो रहा है, जो बहुत जल्द ठीक हो सकता है। हालांकि बावजूद इसके अंकुश मन से वहम निकाल नहीं पा रहे थे। आखिरकार डॉक्टर ने 'बोन मैरो' टेस्ट करवाकर उनके वहम को दूर किया कि उन्हें कैंसर नहीं है। महज दो महीने के ट्रीटमेंट के बाद उनका वह इन्फेक्शन पूरी तरह खत्म हो गया। यह एक घटना बताती है कि टेस्ट हमारे लिए कितने जरूरी हैं और यह भी कि निश्चित वक्त पर या फिर जरूरत पड़ने पर हमें अच्छी लैब से टेस्ट करा लेना चाहिए।

जरूरी टेस्ट

1. कंप्लीट ब्लड टेस्ट (CBC)

इससे पता चलेगाः खून की कमी, बुखार, वायरल इंफेक्शन, एनीमिया, इन्फेक्शन, कैंसर आदि

कब कराएं टेस्ट: कभी भी, खाली पेट या खाने के बाद

कीमत: 300-400 रुपये

रेफरेंस रेंज

हीमोग्लोबिन (Haemoglobin): पुरुष: 12-18 gm%, महिला: 11.5-16.5 gm%

क्रिटिकल वैल्यू: 5 से कम, 18 से ज्यादा

टेस्ट से जानकारी: लेवल कम होने पर एनीमिया और ज्यादा होने पर पॉलिसाइथेमिया का खतरा

टोटल ल्यूकोसाइट्स काउंट (TLC): 4000-11000 cumm

क्रिटिकल वैल्यू: 2000 से कम, 50,0000 से ज्यादा

टेस्ट से जानकारी: काउंट ज्यादा होने पर ल्यूकीमिया, इंफेक्शन का खतरा और काउंट कम होने पर एनीमिया, बोन मैरो डिसॉर्डर की आशंका

रेड ब्लड सेल काउंट (RBC): पुरुष: 4.5-6.5 million/ul, महिला: 3.8-5.8 million/ul

टेस्ट से जानकारी: खून की कमी की जानकारी

प्लेटलेट्स काउंट: 1,50,000 - 4,50,000/ul

क्रिटिकल वैल्यू: 50,000 से कम, 10,000,00 से ज्यादा

टेस्ट से जानकारी: कम होने पर खून की कमी, वायरल इंफेक्शन या डेंगू का खतरा

ईएसआर वेस्टरग्रेन (Westergren): 0-22 mm 1st Hr

क्रिटिकल वैल्यू: 1 से कम, 60 से ज्यादा

टेस्ट से जानकारी: सूजन, संक्रमण की वजह, खून की कमी

ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes) काउंट

ल्यूकोसाइट्स: 20-40%

क्रिटिकल वैल्यू: 10% से कम, 70% से ज्यादा

टेस्ट से जानकारी: हाई काउंट होने पर एक्यूट वायरल इन्फेक्शंस, टीबी, लिम्फोटिक ल्यूकीमिया का खतरा, जबकि लो काउंट होने पर बोन मैरो डैमेज, एपलैस्टिक एनीमिया, ऑटोइम्यून डिसॉर्डर का खतरा

मोनोसाइट्स (Monocytes): 2-10%

क्रिटिकल वैल्यू: 1% से कम, 10% से ज्यादा

टेस्ट से जानकारी: ज्यादा होने पर टीबी, इंडोकार्डाइटिस में बैक्टीरियल इन्फेक्शन, वैस्कुलर डिज़ीज़, कम होने पर बोन मैरो डैमेज का खतरा

इसिनोफिल्स (Eosinophils): 1-6%

क्रिटिकल वैल्यू: 1% से कम, 30% से ज्यादा

टेस्ट से जानकारी: ज्यादा होने पर अस्थमा, एलर्जी, पैरासिटिक इंफेक्शन का खतरा

पॉलिमॉर्फ्स/न्यूट्रोफिल्स (Polymorphs/ Neutrophils): 40-75%

क्रिटिकल वैल्यू: 20% से कम, 90% से ज्यादा

टेस्ट से जानकारी: ज्यादा होने पर एक्यूट बैक्टीरियल इंफेक्शन और कम होने पर ऑटोइम्यून डिसऑर्डर का खतरा

2. किडनी फंक्शन टेस्ट (KFT)

इससे पता चलेगा: किडनी से संबंधित बीमारियां, जैसे कि पथरी, किडनी का टीबी, किडनी का कैंसर, पेशाब की थैली का कैंसर, यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन, ग्लोमैरोले नेफ्राइटिस, पाइलो नेफ्राइटिस

कब कराएं टेस्ट: खाली पेट टेस्ट कराएं। टेस्ट से 9-12 घंटे पहले पानी के अलावा कुछ और खाए-पीएं नहीं।

कीमत: 700-800 रुपये

टेस्ट से जानकारी: लेवल ज्यादा होने पर एक्यूट और क्रॉनिक किडनी डिजीज का खतरा

रेफरेंस रेंज

यूरिया: 15-45mg/dl

क्रिटिकल वैल्यू: 10 से कम, 100 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: लेवल ज्यादा होने पर एक्यूट और क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ का खतरा

क्रेटनिन: 0.6-1.2 mg/dl

क्रिटिकल वैल्यू: 0.4 से कम, 3.0 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: लेवल ज्यादा होने पर किडनी में गड़बड़ी की आशंका

यूरीक एसिड: पुरुष: 3.6-7.7 mg/dL, महिला: 2.5-6.8 mg/dl

क्रिटिकल वैल्यू: 1.5 से कम, 10 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: किडनी की बीमारी या जोड़ों के दर्द की वजह

सोडियम: 130-150mmol/L

क्रिटिकल वैल्यू: 125 से कम, 150 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: नमक और पानी की कमी, किडनी के फंक्शन में गड़बड़ी

पोटैशियम: 3.5-5.5mmol/L

क्रिटिकल वैल्यू: 3 से कम, 5.5 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: किडनी, नमक और पानी की कमी

क्लोराइड: 95-110 mmol/L

क्रिटिकल वैल्यू: 85 से कम, 110 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: किडनी फंक्शन में गड़बड़ी की आशंका

सीरम कैल्शियम: 8.4-10.4 mg/dL

क्रिटिकल वैल्यू: 6.5 से कम, 14 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: नमक या पानी की कमी से सुन्नपन या दौरे की आशंका

कैल्शियम (आयोनिक): 4.6-5.3 mg/uL

क्रिटिकल वैल्यू: 3 से कम, 6.4 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: लो लेवल होने पर किडनी फेल होने का खतरा

3. लिवर फंक्शन टेस्ट (LFT)

इससे पता चलेगाः लिवर से संबंधित बीमारियां जैसे कि जॉन्डिस, वायरल हेपटाइटिस, लिवर कैंसर, टीबी आदि के बारे में

कब कराएं टेस्ट: कभी भी

कीमत: 700-800 रुपये

रेफरेंस रेंज

एसजीओटी (SGOT): 15-50 U/L

क्रिटिकल वैल्यू: 5 से कम, 1000 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: लिवर या हार्ट की समस्या, जॉन्डिस

एसजीपीटी (SGPT): 15-50 U/L

क्रिटिकल वैल्यू: 1 से कम, 1000 से ज्यादा

टेस्ट का नतीजा: लिवर की समस्या, जॉन्डिस

टोटल बिलिरुबिन (Bilirubin): 0.2-1.2 mg/dl

क्रिटिकल वैल्यू: 0.2 से कम, 15.0 से ज्यादा

वजहः जॉन्डिस

अल्कलाइन फॉस्फेट:

पुरुष: 40-130 U/L, महिला: 35-105 U/L

टोटल प्रोटीन्स: 6.0-8.0gm/dL

क्रिटिकल वैल्यू: 4 से कम, 10 से ज्यादा

वजहः लिवर, जॉन्डिस, प्रोटीन की कमी

अल्बुमिन: 3.5-5.5 gm/dL

क्रिटिकल वैल्यू: 2 से कम, 8 से ज्यादा

वजहः लिवर, जॉन्डिस, प्रोटीन की कमी की जानकारी के लिए

4. रैंडम शुगर, फास्टिंग, पोस्ट प्रैंडियल

इससे पता चलेगाः ब्लड में ग्लूकोज का लेवल, डायबीटीज

रेफरेंस रेंज

ग्लूकोज़ फास्टिंग: 70-110 mg/dl

कब कराएं टेस्ट: खाली पेट। टेस्ट से 9-12 घंटे पहले पानी को छोड़कर कुछ भी नहीं लें। 24 घंटे पहले तक अल्कोहल बिल्कुल न लें। स्टेरॉयड, डाइयूरेटिक्स, ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स, एस्प्रिन जैसी दवाएं टेस्ट से 3 से 4 दिन पहले न लें। चुकंदर, गन्ने का रस एक दिन पहले नहीं लेना चाहिए।

कीमत: 80-100 रुपये

टेस्ट का नतीजा: रीडिंग ज्यादा आने पर डायबीटीज होने की आशंका

पोस्ट प्रैंडिल (PP): 90-160 mg/dl

कब कराएं टेस्ट: भरपेट खाना खाने के 2 घंटे बाद

टेस्ट का नतीजा: रीडिंग ज्यादा आने पर डायबीटीज होने की आशंका

रैंडम: 70-140mg/dl

कब कराएं टेस्ट: खाली पेट या खाना खाने के बाद कभी भी

क्रिटिकल वैल्यू: 40 से कम, 300 से ज्यादा

कीमत: 100-120 रुपये

टेस्ट का नतीजा: ज्यादा होने पर डायबीटीज का खतरा, किडनी में खराबी की आशंका, ब्रेन स्ट्रोक, आंखों में समस्या की आशंका

5. एचबीए 1सी (HbA1C)

इससे पता लगेगा: ब्लड शुगर पता करने के लिए सबसे बेहतरीन टेस्ट, इसमें तीन महीने के एवरेज ब्लड शुगर की जानकारी देता है। इसे एवरेज शुगर टेस्ट भी कहते हैं।

बीमारी का नामः डायबीटीज

रेफरेंस रेंज: 4.4-6.4

कीमत: 300-350 रुपये

टेस्ट का नतीजा: डायबीटीज की आशंका

6. थायरॉइड टेस्ट (T3, T4, TSH)

इससे पता चलेगाः हाइपर थाइरॉइड, हाइपो थाइरॉइड

कब कराएं टेस्ट: खाली पेट

कीमत: 700-800 रुपये

रेफरेंस रेंजः TSH (Ultrasensitive): 0.27-4.2

Free Triiodothyronine (FT3), Serum: 1.8-4.6

Free Thyroxine (FT4), Serum: 0.93-1.7

टेस्ट से जानकारी: अगर लेवल ज्यादा हो तो हाइपो थाइरॉइड और कम हो तो हाइपर थाइरॉइड होने की आशंका

7. लिपिड प्रोफाइल

इससे पता चलेगाः कॉलेस्ट्रॉल का लेवल, हाई ब्लड प्रेशर, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट अटैक और दिल से संबंधित बीमारियों के बारे में

कब कराएं टेस्ट: सुबह खाली पेट, रात को कुछ खाने के 12 घंटे बाद

कीमत: 800-1000 रुपये

रेफरेंस रेंजः कॉलेस्ट्रॉल सीरम: 130-2300 mg/dL

क्रिटिकल वैल्यू: 100 से कम, 300 से ज्यादा

HDL कॉलेस्ट्रॉल: पुरुष: 30-55mg/dl, महिला: 45-65 mg/dL

क्रिटिकल वैल्यू: 20 से कम, 75 से ज्यादा

LDL कॉलेस्ट्रॉल: 50-150 mg/dL

क्रिटिकल वैल्यू: 20 से कम, 200 से ज्यादा

8. ईसीजी (ECG)

इससे पता चलेगा: हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट संबंधी बीमारियों के बारे में

कब कराएं टेस्टः कभी भी

कीमत: 200-400 रुपये

नोटः क्रिटिकल वैल्यू में अगर किसी टेस्ट का रिजल्ट आया हो तो इमरजेंसी कंडिशन हो सकती है।

कुछ दूसरे जरूरी टेस्ट

विटामिंस: बदलते लाइफस्टाइल में कुछ खास विटामिंस के टेस्ट भी करवाते रहना चाहिए। अगर विटामिंस की टेस्ट रिपोर्ट सामान्य आए तो दो से तीन साल में टेस्ट को रिपीट करा लें। अगर टेस्ट रिपोर्ट में कुछ गड़बड़ी हो तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार समय-समय पर टेस्ट कराएं।

B-12 Level

इससे पता चलेगा: मल्टी-ऑर्गन फंक्शन के बारे में। नर्वस सिस्टम और न्यूरो से संबंधित बीमारियां, एनीमिया की जानकारी के बारे में भी।

कब कराएं टेस्ट: खाली पेट, रात को कुछ खाने के 12 घंटे बाद

कीमत: 1000-1800 रुपये

रेफ्रेंस रेंज: 197-771 pg/mL

ये लक्षण दिखें तो कराएं: थकान, शरीर में पीलापन, काम में रुचि न होना, चक्कर आना

Vitamin D-3 (25-OH)

इससे पता चलेगा: हड्डियों से संबंधित बीमारियां

कीमत: 1500-2000 रुपये

रेफरेंस रेंज: 25-100ng/ml

कब कराएं टेस्टः कभी भी

अल्ट्रासाउंड (USG Abdomen)

किस समस्या के लिए: पेट से संबंधित सभी तरह की समस्याओं के बारे में जानने के लिए, जैसे कि किडनी, पित्त की थैली, आंत में रुकावट, पेट की टीबी आदि

कब कराएं टेस्टः सुबह खाली पेट, 9-12 घंटे की फास्टिंग जरूरी

कीमत: 800-1200 रुपये

स्टूल कल्चर

नवजात शिशु (पैदा होने से) लेकर 13 साल तक के बच्चों के लिए साल में एक बार कराना चाहिए। बड़ों में भी अगर पेट से संबंधित कोई समस्या हो या पेट से संबंधित इन्फेक्शन हो तो स्टूल टेस्ट जरूर कराएं।

इससे पता चलेगा: इंटेस्टाइनल इन्फेक्शन, स्टमक इन्फेक्शन, पेट में कीड़ा आदि

कीमत: 100-150 रुपये

रुटीन यूरिन टेस्ट, यूरिन कल्चर

मानव शरीर से संबंधी 50 फीसदी बीमारियों के बारे में पता करने में मददगार

कब कराएं टेस्टः सुबह सबसे पहले यूरिन का सैंपल दें।

कीमत: 100-150 रुपये

इससे पता चलेगा: गुर्दे, लिवर या यूरिनरी ट्रैक में इन्फेक्शन, पेशाब में जलन, पेशाब में खून आना, डायबीटीज आदि

स्पेशलाइज्ड टेस्ट

कैंसर मार्कर टेस्ट

पुरुषों के लिए: प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन (PSA)

इससे पता चलेगाः प्रोस्टेट कैंसर

रेफ्रेंस रेंज: 0-3.1

कब कराएं: 45 साल के बाद

महिलाओं के लिए

पेप स्मियर टेस्ट

इससे पता चलेगा: सर्वाइकल कैंसर

कब कराएं: सामान्य तौर पर पहली बार सेक्स संबंध बनाना शुरू करने के बाद हर दो-तीन साल में

ब्रेस्ट अल्ट्रासाउंड

इससे पता चलेगा: ब्रेस्ट कैंसर

कब कराएं: अडल्ट होने के बाद जब भी ब्रेस्ट के आसपास कोई गांठ लगे। 40 साल की उम्र के बाद हर दो साल में कराएं। अगर किसी तरह की गड़बड़ी निकलती है तो 'मेमोग्राफी' जरूरी।

नोट: सरकारी अस्पतालों में सामान्यतया ये सभी टेस्ट मुफ्त में किए जाते हैं। लेकिन सरकारी अस्पताल में आप अपनी मर्जी से सीधे जांच करवाने के लिए लैब में नहीं जा सकते। डॉक्टर के लिखने पर ही सरकारी अस्पतालों में टेस्ट किए जाते हैं।

टेस्ट कराते हुए रखें ध्यान

- नियमित चेकअप कराने से या रुटीन टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल देने का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।

- ब्लड सैंपल देने से घबराना नहीं चाहिए। टेस्ट सैंपल के रूप में सामान्य तौर पर 2 एमएल 5, 10, या 20 एमएल खून लिया जाता है। इतनी मात्रा में ह्यूमन बॉडी से खून निकालने पर किसी तरह की समस्या नहीं होगी।

- ब्लड सैंपल देते वक्त तनाव न लें। यह सामान्य प्रक्रिया है।

- टेस्ट हमेशा मान्यताप्राप्त लैब में ही कराएं। लैब एनएबीएल (NABL) से मान्यताप्राप्त हो।

- जिन टेस्टों के लिए खाली पेट सैंपल देना जरूरी है, उन्हें खाली पेट ही दें।

- जब तक बहुत जरूरी न हो टेस्ट से 12 घंटे पहले कोई मेडिसिन न लें। डायबीटीज, हार्ट पेशंट, ब्लड प्रेशर या दूसरे हाई रिस्क मरीज दवा ले सकते हैं।

- सैंपल देते हुए घबराएं नहीं। आराम से टेस्ट कराएं।

- स्पेशलाइज्ड टेस्ट हमेशा एक्सपर्ट डॉक्टर की सलाह पर ही करवाएं।

कब कराएं रुटीन टेस्ट

- 30 से 40 साल तक की उम्र के सेहतमंद इंसानों को भी साल में एक बार रूटीन टेस्ट जरूर कराना चाहिए।

- 40 से 50 साल की उम्र में साल में एक बार रुटीन टेस्ट कराना बेहतर होगा।

- अगर आप हेल्दी हैं और रुटीन चेकअप के लिए टेस्ट कराते हैं तो बगैर डॉक्टर की सलाह के भी साल-दो साल में टेस्ट करा सकते हैं। लेकिन टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें। स्पेशलाइज्ड टेस्ट हमेशा डॉक्टर की सलाह पर ही कराएं।

- टेस्ट रिपोर्ट में गड़बड़ी हो तो डॉक्टर की सलाह पर सिर्फ उस बीमारी से संबंधित आगे के टेस्ट कराएं।

रेफरेंस रेंज के लिए ध्यान रखने लायक बातें

- यहां दी गई रेंज सिर्फ रेफरेंस के लिए है। यह रेंज आमतौर पर सेंट्रल गवर्नमेंट हॉस्पिटल के लैब में इस्तेमाल की जाती है। अस्पताल और लैब में अलग-अलग तरीकों से टेस्ट करने की वजह से रेफरेंस लेवल अलग-अलग हो सकती है, इसलिए इसे आदर्श रेफरेंस रेंज नहीं माना जा सकता।

- रिपोर्ट में दी गई रेफरेंस रेंज का विश्लेषण और परिणाम खुद न निकालें। लैब के सीनियर पैथलॉजिस्ट शुरुआती सलाह दे सकते हैं, लेकिन बेहतर होगा कि किसी अच्छे फिजिशन को रिपोर्ट दिखाकर जानकारी लें।

- रेफरेंस रेंज सभी लैब की अलग-अलग होती है। डॉक्टर लैब द्वारा जारी रिपोर्ट की टेस्ट फाइंडिंग की तुलना डब्लूएचओ की आइडियल रेंज से करते हैं। उसके बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचते हैं।

- रिपोर्ट में कई बार रिजल्ट रेफरेंस रेंज से ज्यादा या कम दिखता है, लेकिन वास्तविकता में डॉक्टर ही उसे देखकर बता सकते हैं कि वह चिंताजनक है या नहीं।

- हर लैब की मशीनें, टेक्नॉलजी, यूनिट और किट अलग-अलग होती हैं। ऐसे में दो अलग-अलग लैब की रेफरेंस रेंज एक समान होना जरूरी नहीं है। कभी भी एक लैब की टेस्ट रिपोर्ट की तुलना दूसरे लैब की टेस्ट रिपोर्ट और वहां की रेफरेंस रेंज से बिल्कुल भी न करें।

- टेस्ट रिपोर्ट के विश्लेषण के लिए गूगल सर्च का सहारा कभी न लें। यह किसी नतीजे पर पहुंचने की बजाए कंफ्यूजन बढ़ाने का काम ज्यादा करता है और यहां पर सभी जानकारियां सही हों, ऐसा जरूरी नहीं है।

चंद अहम सवाल

क्या खाली पेट वाले टेस्ट से पहले पानी भी नहीं पीना चाहिए?

खाली पेट टेस्ट का मतलब होता है रात भर फास्टिंग के बाद सुबह-सुबह टेस्ट के लिए सैंपल देना। सैंपल देने से 9-12 घंटे पहले पानी के अलावा कुछ और नहीं खाएं-पीएं। ग्लूकोज फास्टिंग, लिपिड प्रोफाइल, अल्ट्रासाउंड, केएफटी, विटामिन B-12, थाइरॉयड टेस्ट खाली पेट ही कराएं। काफी डॉक्टरों का मानना है कि सभी टेस्ट खाली पेट ही कराने चाहिए। ऐसे में सीबीसी, एलएफटी और बाकी ब्लड से संबंधित टेस्ट भी खाली पेट कराना ज्यादा फायदेमंद साबित होगा। ग्लूकोज पीपी (पोस्ट प्रैंडियल) टेस्ट खाना खाने के दो घंटे बाद कराना अनिवार्य है।

क्या घर से सैंपल देना सही रहता है? क्या रिपोर्ट लेने जाना जरूरी है?

ब्लड से संबंधित ज्यादातर टेस्ट के लिए अब आपको लैब जाने की जरूरत नहीं है। किसी अच्छे प्राइवेट लैब को कॉल करके आप घर बुलाकर सैंपल दे सकते हैं। सुबह सैंपल देने पर कल्चर की रिपोर्ट को छोड़कर ज्यादातर रिपोर्ट आप उसी दिन शाम तक हासिल कर सकते हैं। ज्यादातर प्रतिष्ठित लैब से घर बैठे ऑनलाइन रिपोर्ट भी प्राप्त कर सकते हैं। आप अपने घर पर ही ऑनलाइन रिपोर्ट देख सकते हैं और उसका प्रिंट आउट निकाल सकते हैं।

कोई लैब गलत रिपोर्ट दे तो कहां जाएं?

सामान्यतौर पर लैब गलत रिपोर्ट नहीं देती, लेकिन अगर कभी ऐसा हो जाए तो आप 'कंस्यूमर फोरम' में संबंधित लैब के खिलाफ अपील कर सकते हैं।

अगर हॉस्पिटल या डॉक्टर किसी खास लैब से ही टेस्ट कराने को कहे?

कई बार बेहतर टेस्ट के लिए डॉक्टर किसी विशेष लैब से ही टेस्ट कराने की सलाह देते हैं, लेकिन कई बार डॉक्टर या हॉस्पिटल अपने फायदे, कमिशन या पॉलिसी की वजह से किसी विशेष लैब में टेस्ट कराने को मजबूर करते हैं। ऐसी स्थिति में अगर आपने किसी NABL मान्यताप्राप्त लैब से टेस्ट करवाएं हैं तो डॉक्टर से अनुरोध कर बताएं कि आपने मान्यताप्राप्त लैब से टेस्ट कराया है। अगर फिर भी डॉक्टर मानने को तैयार नहीं हो तो ऐसी स्थिति में या तो आप डॉक्टर ने जिस लैब के बारे में बोला है, वहां फिर से टेस्ट कराएं या डॉक्टर बदल लें, क्योंकि फिलहाल इसके खिलाफ कोई सख्त कानून नहीं है।

जब रिपोर्ट के आधार पर ट्रीटमेंट शुरू करना हो?

टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर जब किसी बीमारी का ट्रीटमेंट शुरू होना हो, खासकर जिसमें लंबे समय तक दवा चलने या सर्जरी की आशंका हो, तो आप डॉक्टर की सलाह पर किसी दूसरी लैब में फिर से टेस्ट कराकर क्रॉस चेक कर सकते हैं।

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योग: सेहत रखे बेजोड़

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योग देश ही नहीं, दुनिया भर में पॉप्युलर हो रहा है। सेहत के लिए बेहद फायदेमंद योग से पूरा फायदा कैसे पाएं, जानते हैं एक्सपर्ट्स की मदद से। यहां योग का प्रोटोकॉल भी बताया जा रहा है ताकि आप योग का सही तरीका सीख सकें और इंटरनैशनल योग डे 21 जून के दिन आप भी देश-दुनिया के साथ योग कर सकें:

एक्सपर्ट्स पैनल
सुरक्षित गोस्वामी, लाइफ और योग गुरु
योगी अमृतराज, योग गुरु
गौरव वर्मा, डायरेक्टर, आर्ट ऑफ लिविंग योगा

आसन कब करें
सुबह-शाम कभी भी आसन कर सकते हैं, लेकिन भरपेट खाना खाने के 3-4 घंटे बाद, हल्के स्नैक्स के घंटे भर बाद, चाय, छाछ आदि तरल चीजें लेने के आधे घंटे बाद और पानी पीने के 10-15 मिनट बाद आसन करना बेहतर रहता है।

कौन कर सकता है योग
3 साल से बड़ा कोई भी शख्स योग कर सकता है। अगर आप बच्चे को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि वह खेल-खेल में ही कई तरह के आसन करता है। 12 साल तक के बच्चों को हल्के योगासन और प्राणायाम करने चाहिए। बेहतर होगा वे मुश्किल आसन और क्रियाएं न करें। प्रेग्नेंसी में मुश्किल आसन, कपालभाति कतई न करें। महिलाएं पीरियड्स के दौरान, नॉर्मल डिलिवरी के 3 महीने बाद तक और सिजेरियन ऑपरेशन के 6 महीने बाद तक योग न करें। कुछ और सावधानियों का ख्याल रखें। कमर दर्द हो तो आगे न झुकें, पीछे झुक सकते हैं। अगर हर्निया हो तो पीछे न झुकें। हार्ट की बीमारी वालों को योगासन शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

कहां और कैसे करें
- खुले में ताजा हवा में योग करना बेहतर है। ऐसा मुमकिन नहीं हो तो कहीं भी (एसी में भी) योग कर सकते हैं। जरूरी है कि इस दौरान माहौल शांत हो। मन को शांत करनेवाला म्यूजिक हल्की आवाज में चला सकते हैं।

- जमीन पर योगा मैट, दरी या कालीन बिछाकर योग करें। थोड़े ढीले कॉटन के कपड़े पहनना बेहतर रहता है। टी-शर्ट व ट्रैक पैंट आदि में भी कर सकते हैं।

- योगासन आंखें बंद करके करें। इससे योग और भी प्रभावशाली हो जाता है। ध्यान शरीर के उन हिस्सों पर लगाएं, जहां आसन का असर हो रहा है, जहां दबाव पड़ रहा है। भाव से करेंगे तो प्रभाव जल्दी और ज्यादा होगा।

- योग में सांस लेने और छोड़ने की बहुत अहमियत है। इसका सीधा फंडा है: जब भी शरीर फैलाएं, पीछे की तरफ जाएं, सांस भरते हुए करें और जब भी शरीर सिकुड़े या आगे की ओर झुकें, सांस छोड़ते हुए झुकें। सांस नाक से लें, मुंह से नहीं।

- योग करते हुए शरीर को शिथिल रखें और झटके से बचाएं। झटके से आसन न करें। उतना ही करें, जितना आसानी से कर पाएं। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाएं।

- योग को हमेशा ध्यान और मौन से करना चाहिए।

- थकावट, बीमारी और जल्दबाजी में योग न करें।

- योग के 30 मिनट बाद स्नान करना चाहिए और 30 मिनट बाद ही कुछ खाना चाहिए, उससे पहले नहीं।

- योग का नतीजा आने में वक्त लगता है। ऐसे में नतीजे को लेकर जल्दबाजी न करें।

जब 10 मिनट में करना हो योग

- 5 मिनट गर्दन, कंधे, कुहनियों, हाथों, कमर, घुटनों, पैरों, पंजों आदि की सूक्ष्म क्रियाएं (हर दिशा में घुमाना और स्ट्रेच करना) कर लें।

- 2-3 मिनट सूर्य नमस्कार कर लें।

- 3 मिनट अपनी जगह खड़े होकर ही जॉगिंग कर लें।

ऑफिस में करनेवाला योग

सूक्ष्म क्रियाएं: ऑफिस में 7-8 घंटे की ड्यूटी के दौरान 2 बार गर्दन, कंधों, कुहनियों, हाथों, कमर, घुटनों, पैरों, पंजों आदि की सूक्ष्म क्रियाएं कर लें।

ताड़ासन: अपनी सीट पर ही खड़े होकर ताड़ासन करें।

डीप ब्रीदिंग : जब भी थकान लगे, अपनी सीट पर ही आंखें बंद करें और लंबी-गहरी सांस लें और छोड़ें। 2-3 मिनट में भी मन रिलैक्स हो जाएगा।

रोजाना करें ये आसन
आसनों की शुरुआत प्रार्थना और सूक्ष्म क्रियाओं से करें। प्रार्थना मन को और सूक्ष्म क्रियाएं शरीर को योग के लिए तैयार करती हैं।

1. प्रार्थना
ओम संगच्छध्वम् संवदध्वम्, सम् वो मनांसि जानताम्
देवा भागम् यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ||
यानी हम सब प्रेम से मिलकर साथ चलें, मिलकर बोलें और सभी मिलकर सोचें। अपने पूर्वजों की भांति हम अपने कर्तव्यों का पालन करें।

2. सूक्ष्म क्रियाएं
- सूक्ष्म क्रियाओं को बैठकर या खड़े होकर कर सकते हैं। सबसे पहले गर्दन को आगे और पीछे ले जाने का अभ्यास करें। सांस को बाहर निकालते हुए सिर को धीरे-धीरे आगे की ओर झुकाएं और ठुड्डी को सीने पर लगाने की कोशिश करें। फिर सांस भरते हुए सिर को जितना पीछे ले जा सकते हैं, ले जाएं। ऐसा 3 बार करें।

- इसी तरह सिर को लेफ्ट और राइट साइड में झुकाएं। सांस छोड़ते हुए सिर को लेफ्ट साइड में ले जाएं। फिर सांस निकालते हुए सामान्य स्थिति (बीच में) में ले आएं। ऐसे ही राइट साइड में करें। कुल 3 सेट कर लें।

- इसके बाद सिर को लेफ्ट और फिर राइड साइड में घुमाएं। कुल 3 बार कर लें।

- गर्दन को घुमाएं। सांस छोड़ते हुए ठुड्डी को सीने से लगाने की कोशिश करें। फिर सांस भरते हुए क्लॉकवाइज गर्दन को पीछे ले जाएं। सांस छोड़ते हुए वापस लाएं। फिर दूसरी तरफ से करें। कुल 3 सेट कर लें। गर्दन को उतना ही घुमाएं, जितना आसानी से घुमा सके। सर्वाइकल के मरीज न करें।

- इसके बाद हाथों और कंधों की सूक्ष्म क्रियाएं करें। दोनों हाथों को एक बार ऊपर ले जाएं। फिर साइड में फैलाएं। 3 बार कर लें।

- फिर उंगलियों को मोड़कर कंधों को छुएं। फिर गोल-गोल घुमाएं। पहले 5 बार क्लॉकवाइज और फिर 5 बार ऐंटी-क्लॉकवाइज घुमाएं।

- अब पैरों में 2-3 फुट का फासला रखकर खड़े हो जाएं। दोनों हाथों को सामने फैला लें। सांस छोड़ते हुए शरीर को लेफ्ट साइड में घुमाएं, ताकि राइट हथेली लेफ्ट कंधे को छुए। सांस छोड़ते हुए बीच में लौट आएं। फिर राइट साइड में घुमाएं। बीच में आ जाएं। कुल 3 सेट कर लें। कमरदर्द और स्लिप डिस्क वाले न करें।

- दोनों हाथों को सामने फैलाएं और घुटनों को मोड़कर कुर्सी की तरह मुद्रा बनाएं। हाथों को वापस लाते हुए सांस को शरीर से बाहर छोड़ें। कुल दो बार कर लें। आर्थराइटिस की समस्या हो तो न करें।

3. ताड़ासन
कैसे करें: दोनों पैरों को मिलाकर खड़े हो जाएं। हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लें। अब सांस भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और पैरों के पंजों पर शरीर का भार लाते हुए एड़ियां भी उठा लें। सांस सामान्य रखते हुए पूरे शरीर को ज्यादा-से-ज्यादा ऊपर की ओर जितना खींच सकते हैं, खींच कर रखें। इस पोजिशन में जब तक मुमकिन हो, रुकने के बाद सांस निकालते हुए हाथों को साइड से नीचे की ओर ले आएं। इसका अभ्यास 2 से 3 बार करें।

फायदा: शरीर को सुडौल बनाता है। नर्वस सिस्टम को ऐक्टिव करता है और मांसपेशियों में लचीलापन लाता है। गर्दन दर्द व कंधे की जकड़न, ऑस्टियोपोरोसिस, स्लिप डिस्क, गठिया और जोड़ों के दर्द में फायदेमंद है। बच्चों की लंबाई बढ़ाने वाला है यह आसन।

सावधानियां: हड़बड़ाहट में न करें। पैरों पर बैलेंस बनाए रखें।

4. पादहस्तासन (हस्तपादासन)
कैसे करें: दोनों पैरों के बीच 2 इंच की दूरी बनाकर सीधे खड़ा हो जाएं। धीरे-धीरे सांस अंदर लेते हुए हाथों को ऊपर की ओर ले जाएं। फिर सांस छोड़ते हुए जमीन की तरफ झुकें। कोशिश करें कि हथेलियां जमीन छू जाएं। आसानी से जितना झुक सकें, उतना ही झुकें। 10-30 सेकंड रुकें। फिर सांस भरते हुए दोनों हाथों को धीरे-धीरे सिर के ऊपर खींचकर ले जाएं। सांस छोड़ते हुए सामान्य स्थिति में आ जाएं।

फायदा: यह रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है। कब्ज, एसिडिटी और पीरियड्स के दर्द में काफी लाभदायक है।

सावधानियां: जबरन जमीन छूने की कोशिश न करें। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाएं। पीठ दर्द, स्लिप डिस्क, हर्निया, अल्सर, हाई बीपी, दिल के मरीज न करें।

5. अर्धचक्रासन
कैसे करें: दोनों हाथों की सभी उंगलियों से कमर को पीछे की ओर से पकड़ें। सिर को पीछे की ओर झुकाते हुए गले की मांसपेशियों को खींचें। सांस लेते हुए कमर से पीछे की ओर झुकें। सांस छोड़ते हुए शिथिल हो जाएं। 10-30 सेकंड रुकें। सामान्य रूप से सांस लेते रहें। फिर सांस भरते हुए शुरुआती अवस्था में लौट आएं।

फायदा: रीढ़ और कमर की मांसपेशियों को लचीला बनाता है। सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस में फायदेमंद है।

सावधानियां: चक्कर आता है तो इस आसन को न करें। हाई बीपी वाले भी पीछे झुकते समय सावधानी बरतें।

6. त्रिकोणासन
कैसे करें:
खड़े होकर दोनों पैरों को ज्यादा-से-ज्यादा खोल लें। दोनों हाथों को कंधों के पैरलल साइड में उठा लें। लंबी-गहरी सांस भरें और सांस निकालते हुए कमर को लेफ्ट साइड में घुमाएं और आगे की ओर झुककर, उल्टे हाथ से सीधे पैर के पंजे को छूने की कोशिश करें। पंजा आसानी से छू पाएं, तो हथेली को पैर के पंजे के बाहर की तरफ जमीन पर टिका दें। साथ ही, सीधा हाथ कंधे की सीध में आकाश की तरफ उठाएं और ऊपर की ओर खींचे। गर्दन को ऊपर की तरफ घुमाकर ऊपर वाले हाथ की ओर देखें। सांस की गति सामान्य रखते हुए इस आसन में जब तक संभव हो, रुके रहें। फिर सांस भरते हुए धीरे से वापस आ जाएं। इसी तरह दूसरी ओर करें। दोनों ओर से यह आसन 3-4 बार कर लें।

फायदा: कमर, गर्दन, घुटने, पिंडलियां, हाथ, कंधे और छाती की मांसपेशियां लचीली बनी रहती हैं। पाचन तंत्र को बल मिलता है। कब्ज, गैस व डायबीटीज़ को दूर करने वाला है।

सावधानियां: कमर को जितने आराम से आगे झुकाकर मोड़ सकें, उतना ही करें। गर्दन दर्द, कमर दर्द, साइटिका दर्द, ऑस्टियोपॉरोसिस, माइग्रेन, स्लिप डिस्क, पेट की सर्जरी और हाई ब्लड प्रेशर के मरीज इसे न करें।

7. भद्रासन (बटरफ्लाई)
कैसे करें:
दोनों पैर सामने फैलाकर बैठ जाएं। फिर दोनों तलवों को एक साथ लेकर आएं। सांस छोड़ते हुए पैरों की उंगलियों को हाथों से पकड़ कर ढक दें। एड़ियों को मूलाधार के जितना नजदीक हो सके, ले आएं। फिर दोनों पैरों को धीरे-धीरे बटरफ्लाई की तरह 20 बार हिलाएं। फिर सामान्य मुद्रा में लौट आएं।

फायदा: घुटने और नितंबों के जोड़ों को स्वस्थ रखता है। जांघों की चर्बी कम करता है। पीरिड्स के दर्द से राहत दिलाता है।

सावधानियां: आर्थराइटिस और साइटिका के मरीज न करें।

8. वज्रासन
कैसे करें:
दोनों पैरों को फैलाकर बैठ जाएं। राइट पैर के घुटने को मोड़ लें। पंजे को नितंबों के नीचे दबाकर बैठ जाएं। इसी तरह लेफ्ट पैर को भी मोड़ लें। दोनों हाथ घुटनों पर रखें। कमर सीधी रखें। फिर आंख बंद कर गहरी सांस लें और छोड़ें। कुछ देर इसी स्थिति में रुकें। पहले की स्थिति में आने के लिए राइट साइड में थोड़ा झुककर लेफ्ट पैर को बाहर निकालें, फिर राइट पैर को बाहर निकालकर सीधा कर लें।

फायदा: जांघ और पिंडली की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। पाचन शक्ति बढ़ती है।

सावधानियां: बवासीर और घुटने व एड़ियों की चोट से पीड़ित लोग इसे न करें।

9. भुजंगासन
कैसे करें:
पेट के बल लेट जाएं और हाथों को कंधों के नीचे रखकर कोहनियों को उठा लें। पीछे दोनों पैरों को मिलाकर रखें। अब सांस भरते हुए आगे से सिर और छाती को नाभि तक ऊपर उठाएं। इससे ऊपर नहीं। अब सिर को ऊपर की ओर उठाकर सांस की गति सामान्य रखते हुए जहां तक मुमकिन हो, रुके रहें। फिर सांस छोड़ते हुए धीरे से वापस आ जाएं। 2-3 बार ऐसा कर लें।

फायदा: यह रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है। कमर दर्द, स्लिप डिस्क, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस और ऑस्टियोपॉरोसिस में फायदेमंद है। लिवर, किडनी, फेफड़े और थायरॉइड ग्रंथि को बल देने वाला है।

सावधानियां: हर्निया या पेट में अल्सर हो या फिर पेट की सर्जरी हुई हो तो न करें।

10. उत्तानपादासन
कैसे करें:
पीठ के बल सीधे लेट जाएं। हाथों को जंघाओं के पास जमीन पर रख लें। हथेलियों का रुख नीचे की ओर रहेगा। अब सांस भरते हुए दोनों पैरों को 60 डिग्री तक ऊपर उठाकर रुक जाएं। हथेलियां जमीन पर ही रहेंगी। सांस की गति को सामान्य रखते हुए प्रसन्नता के भाव से जब तक मुमकिन हो, आसन में रुके रहें। कुछ देर रुकने के बाद आपको पेट के ऊपर कंपन अनुभव होने लगेगा। अब सांस निकालते हुए धीरे से बिना सिर उठाए पैरों को नीचे ले आएं। ऐसा 2-3 बार करें।

फायदा: यह पेट के थुलथुलेपन को दूरकर मोटापा कम करता है। पाचन तंत्र को बेहतर करता है और दिल व फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखता है। लो ब्लड प्रेशर में लाभकारी है। बालों के झड़ने और सफेद होने से रोकने में भी मदद करता है।

सावधानियां: कमर दर्द, हर्निया और हाई बीपी के मरीज न करें।

11. पवनमुक्तासन
कैसे करें:
पीठ के बल लेट जाएं। फिर दोनों घुटनों को मोड़ते हुए जांघों को सीने के ऊपर ले आएं। दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर पैरों को पकड़ लें। सांस छोड़ते हुए सिर को तब तक ऊपर उठाएं, जब तक कि ठुड्डी घुटनों से नहीं लग जाए। कुछ देर रुकें। फिर सांस छोड़ते हुए सिर को वापस जमीन पर ले जाएं। फिर पैरों को जमीन पर ले आएं। अगर कमर या गर्दन में दर्द रहता हो तो सिर न उठाएं।

फायदा: यह कब्ज, गैस, भूख न लगना और लिवर की कमजोरी को दूर करता है। डायबीटीज, मूत्रदोष, हर्निया, स्त्री रोग, कमर दर्द, अस्थमा और दिल की बीमारी में भी फायदेमंद है।

सावधानियां: कमर दर्द या गर्दन दर्द रहता हो तो इस आसन में सिर न उठाएं।

12. शवासन
कैसे करें:
शरीर को ढीला छोड़ कर आराम से पीठ के बल लेट जाएं। दोनों पैरों में एक-डेढ़ फुट का फासला रखें और दोनों हाथ शरीर से थोड़ी दूरी पर ढीले छोड़ दें। आंखें बंद कर अपना ध्यान आती-जाती सांस पर केंद्रित करें। अब ध्यान को शरीर के अंगों पर लाएं और नीचे से ऊपर हर हिस्से को साक्षी भाव से महसूस करते जाएं। महसूस करें कि पूरा शरीर शव जैसा पड़ा है। न हिलता है, न डुलता है, बस आराम ही आराम है। इस दौरान मन में कोई विचार नहीं लाना है। कुछ देर आराम करने के बाद अपने ध्यान को सांसों पर लाएं। लंबी, गहरी सांस भरें व निकालें। अब हाथों और पैरों की उंगलियों में चेतना का अनुभव करें। धीरे-धीरे हाथों को उठाकर हथेलियों को आपस में रगड़कर आंखों पर रख लें। कुछ देर बाद हथेलियां हटा कर करवट लेते हुए धीरे से बैठ जाएं। इस आसन को 5-10 मिनट कर सकते हैं।

फायदा: मन को शांत करता है। थकान दूर करता है।

प्राणायाम
आसनों के बाद प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। यहां ऐसे 3 प्राणायाम दिए जा रहे हैं, जिनका रोजाना अभ्यास करना चाहिए। हालांकि कपालभाति प्राणायाम नहीं है लेकिन इसे इसी श्रेणी में रखकर अभ्यास कर सकते हैं:

1.कपालभाति क्रिया
सुखासन में बैठ जाएं और आंखें बंद कर लें। दोनों नासिकाओं से गहरी सांस भीतर लें। सीना फूलेगा। अब सांस को जोर लगाकर बाहर निकाल दें। इस तरह से 20 सांसें बिना रुके लेनी और निकालनी है। जोर सांस फेंकने पर देना है। सांस भीतर अपने आप बिना जोर लगाए आने दें। यह कपालभाति का एक राउंड हुआ। हर राउंड के बाद कुछ लंबी गहरी सांस लें और छोड़ें और उसके बाद दूसरे राउंड पर जाएं। ऐसे 3 राउंड कर सकते हैं।

फायदा: सर्दी, जुकाम, अस्थमा, कफ, ब्रोंकाइटिस में फायदेमंद है।

सावधानियां: वर्टिगो, हाई बीपी, मिर्गी, माइग्रेन, हर्निया, गैस्ट्रिक अल्सर और हार्ट के मरीज न करें।

2. अनुलोम-विलोम (नाड़ी शोधन प्राणायाम)
सुखासन में बैठकर आंखें बंद कर लें। सिर और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। बाएं हाथ की हथेली को ज्ञान मुद्रा (देखें चित्र) में बाएं घुटने पर रख लें। दाएं हाथ की अनामिका और सबसे छोटी उंगली को मिलाकर बाईं नासिका पर रखें और अंगूठे को दाईं नासिका पर लगा लें। तर्जनी और मध्यमा को मिलाकर मोड़ लें। अब बाईं नासिका से सांस भरें और उसे अनामिका और सबसे छोटी उंगली को मिलाकर बंद कर लें। फौरन ही दाईं नासिका से अंगूठे को हटाकर सांस बाहर निकाल दें। अब दाईं नासिका से सांस भरें और अंगूठे से उसे बंद कर दें। अब सांस को बाईं नासिका से बाहर निकाल दें। यह एक राउंड हुआ। ऐसे 5 राउंड करें।

फायदे: तनाव और बेचैनी को कम करता है और एकाग्रता बढ़ाता है। कफ से संबंधित गड़बड़ियों को दूर करता है। ब्लड सर्कुलेशन, दिल और फेफड़ों को ठीक रखता है।

सावधानियां: इसे सभी लोग कर सकते हैं, लेकिन जबरन सांस रोकने की कोशिश न करें।

3. भ्रामरी प्राणायाम
सुखासन में बैठ जाएं और आंखें बंद कर लें। दोनों हाथों को चेहरे पर लाएं। दोनों अंगूठे दोनों कानों में जाएंगे, तर्जनी उंगली आंखों के ऊपर रखें, मध्यमा उंगली नाक के पास, अनामिका होंठ के ऊपर और सबसे छोटी उंगली होंठ के नीचे रहेगी। अब नाक से गहरी और लंबी सांस लें। अब भंवरे की गुंजन की आवाज के साथ सांस को बाहर निकालें। यह 1 राउंड हुआ। इस तरीके से 5 राउंड कर लें। बाद में बढ़ा भी सकते हैं।

फायदे: गुस्सा और बेचैनी को कम करता है और तनाव से छुटकारा दिलाता है।

कौन न करें: जिन लोगों को नाक या कान का इंफेक्शन है।

ध्यान(मेडिटेशन)
प्राणायाम के बाद ध्यान लगाएं। ध्यान के लिए घर या पार्क का कोई शांत कोना चुनें। कंधे और गर्दन को आरामदायक स्थिति में रखें और पूरी प्रक्रिया के दौरान आंखें बंद रहनी चाहिए। ध्यान के बाद आंखों को धीरे-धीरे खोलें। बेहतर है कि सुबह और शाम दोनों वक्त 20-20 मिनट के लिए ध्यान किया जाए, लेकिन कम समय के लिए भी ध्यान में बैठा जा सकता है।

ऐसे लगाएं ध्यान
सुखासन में बैठ जाएं। आंखें बंद कर लें और चेहरे पर मुस्कान बनाए रखें। लंबी गहरी सांस लें और जाने दें। तीन बार ओम का जाप करें। फिर ध्यान में उतर जाएं। इसके लिए बस अपनी सांसों पर ध्यान लगाना है। आती-जाती सांसों पर अपने मन को ले जाएं। मन में जो विचार आ रहे हैं, उन्हें आने दें, रोकें नहीं। विचार आएंगे और खुद चले जाएंगे। कुछ देर के लिए मन खाली होगा, फिर विचार आएंगे और चले जाएंगे। 20 मिनट के बाद जब मन करे, सहजता से आंखें खोल सकते हैं। कुछ दिनों के अभ्सास से धीरे-धीरे अपने आप ही विचार आने कम होने लगेंगे और ध्यान लगने लगेगा।

नोट: गौरतलब है कि योग का मतलब सिर्फ आसन या प्राणायाम नहीं है। यह तन के साथ-साथ मन को साधने का भी जरिया है। अगर आप सही तरीके से योग करते हैं तो यह आगे जाकर आपका गुस्सा कम करता है, धीरज बढ़ाता है और सकारात्मकता में इजाफा करता है।

ज्यादा जानकारी के लिए
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Light on Yoga by B.K.S. Iyengar
Functional Anatomy of Yoga by David Keil
The Yoga Sutras Of Patanjali By Sri Swami Satchidananda

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लाइलाज नहीं है सफेद दाग

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सफेद दाग, यानी विटिलाइगो (vitiligo) को लेकर तरह-तरह के भ्रम हैं। लोग इसे लाइलाज बीमारी मानते हैं, जबकि डॉक्टरों के मुताबिक यह एक कॉस्मेटिक प्रॉब्लम है और इसका इलाज बहुत हद तक मुमकिन है। सफेद दाग को बढ़ने से रोकने और इसे ठीक करने के बारे में एक्सपर्ट्स से पूछकर पूरी जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह...

एक्सपर्ट्स पैनल

डॉ. रोहित बत्रा, कंसल्टंट, विटिलाइगो स्पेशलिस्ट, सर गंगाराम हॉस्पिटल
डॉ. शुचींद्र सचदेवा, होम्योपैथिक एक्सपर्ट
डॉ. राजीव मेहता, सीनियर सायकायट्रिस्ट
डॉ. प्रताप चौहान, डायरेक्टर, जीवा आयुर्वेद

क्या है सफेद दाग

- यह एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। इसमें स्किन का रंग बनाने वाले सेल्स मेलानोसाइट (Melanocyte) खत्म होने लगते हैं या काम करना बंद कर देते हैं, जिससे शरीर पर जगह-जगह सफेद-से धब्बे बन जाते हैं। यह समस्या मोटे तौर पर लिप-टिप यानी होठों और हाथों पर, एक्रोफेशियर यानी हाथ-पैर और चेहरे पर, फोकल यानी शरीर में एक-दो जगह पर, सेग्मेंटल यानी शरीर के एक पूरे हिस्से पर और जनरलाइज्ड यानी शरीर के कई हिस्सों पर दाग के रूप में सामने आती है।

ये हैं वजहें

- फैमिली हिस्ट्री, यानी अगर पैरंट्स सफेद दाग से पीड़ित रहे हैं तो बच्चों में इसके होने की आशंका रहती है। हालांकि ऐसे मामले 2 से 4 फीसदी ही होते हैं।

- एलोपेशिया एरियाटा (Alopecia Areata) यानी वह बीमारी, जिसमें छोटे-छोटे गोले के रूप में शरीर से बाल गायब होने लगते हैं।

- सफेद दाग मस्से या बर्थ मार्क (Halo Nevus) से। मस्सा या बर्थ मार्क बच्चे के बड़े होने के साथ-साथ आसपास की स्किन का रंग बदलना शुरू कर देता है।

- केमिकल ल्यूकोडर्मा (Chemical Leucoderma) यानी खराब क्वॉलिटी की चिपकाने वाली बिंदी या खराब प्लास्टिक की चप्पल इस्तेमाल करने से।

- ज्यादा केमिकल एक्सपोजर यानी प्लास्टिक, रबर या केमिकल फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों को खतरा ज्यादा। कीमोथेरपी से भी इसकी आशंका रहती है।

- थाइरॉयड संबंधी बीमारी होने पर।

कैसे पहचानें इसे

अगर स्किन का रंग हल्का होने लगे और उस हिस्से के बाल भी सफेद होना शुरू हो जाएं तो समझिए कि सफेद दाग है। हालांकि इन दागों पर कोई खुजली या दर्द नहीं होता और संवेदनशीलता भी बनी रहती है, लेकिन पसीने और ज्यादा गर्मी की स्थिति में जलन पैदा हो सकती है। अगर सफेद दाग पर बाल काले रहें तो इलाज की गुंजाइश ज्यादा होती है। अगर दाग के ऊपर लगा स्क्रेच या घड़ी पहननेवाली जगह आदि भी सफेद होने लगे तो समझिए कि समस्या बढ़ रही है। अगर इसे बिल्कुल शुरुआती दौर में पकड़ना चाहते हैं तो हल्का-सा भी दाग होने पर डॉक्टर के पास जाएं। लोग अक्सर इसे कैल्शियम या आयरन की कमी से पैदा हुई समस्या मानकर इग्नोर कर देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। एक्सपर्ट वुड लैंप (Wood Lamp) टेस्ट के जरिए देखते हैं कि समस्या सफेद दाग की है या नहीं। इसके लिए अंधेरे कमरे में दाग पर खास तरह की लाइट डालकर चेक करते हैं। इस टेस्ट के लिए कंसल्टेंसी फीस के अलावा अलग से कोई रकम नहीं ली जाती।

किस डॉक्टर के पास जाएं

विटिलाइगो एक्सपर्ट के पास जाना चाहिए। ये भी डर्मटॉलजिस्ट या स्किन स्पेशलिस्ट ही होते हैं, लेकिन इनका सफेद दाग के इलाज करने का अनुभव दूसरे डर्मटॉलजिस्ट की तुलना में ज्यादा होता है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि हर विटिलाइगो एक्सपर्ट स्किन स्पेशलिस्ट होता है, लेकिन हर स्किन स्पेशलिस्ट विटिलाइगो एक्सपर्ट नहीं होता।

क्या है इलाज

सफेद दाग के इलाज के लिए दो तरह की दवाएं दी जाती हैं: सफेद दाग को रोकने वाली और स्किन कलर वापस लाने वाली। इनमें भी खानेवाली और लगानेवाली, दो अलग-अलग तरह की दवाएं दी जाती हैं।

फैलने से रोकने वाली दवाएं

सफेद दाग न फैले, इसके लिए खाने वाली दवाएं दी जाती हैं, जिनमें खास हैं मिनी स्टेरॉयड पल्स (Mini Steroid Pulse), लिवामिसोल (Levamisole) और अजाथियोप्राइन (Azathioprine) आदि। मिनी स्टेरॉयड पल्स से वजन बढ़ने और दूसरे साइड इफेक्टस हो सकते हैं इसलिए बेहतर है कि ना लें।

रंग वापस लाने वाली दवाएं

स्किन का रंग वापस लाने के लिए खाने और लगाने वाली, दोनों तरह की दवाएं दी जाती हैं। इनमें खास हैं: टैक्रोलाइमस (Tacrolimus), एपिफर्मल फाइब्रोब्लास्ट ग्रोथ फैक्टर (Epiphermal Fibroblast Growth Factor), कैल्सिन्युरिन इन्हिबिटर ऑइंटमेंट (Calcineurin Inhibitor Ointment), वीक कॉर्टिको स्टेरॉयड क्रीम (Weak Cortico Steroid Cream), ऑर्गन प्लेसेंटल एक्सट्रैक्ट क्रीम (Organ Placental Extract Cream) आदि।

थेरपी

- इसके लिए फोटो थेरपी ट्रीटमेंट भी दिया जाता है। इसके तहत सूरज की किरणों (UVA) और नैरोबैंड (UVB) का इस्तेमाल स्किन का रंग फिर से नॉर्मल करने के लिए किया जाता है। इस थेरपी का साइड इफेक्ट यह है कि इसे करते हुए सावधानी न बरती जाए तो स्किन काली पड़ सकती है।

- एक्जाइमर लेजर भी असरदार है। हफ्ते में 2 सेशन की जरूरत होती है। 15-20 सेशन में फायदा नजर आने लगता है। हर सेशन का 1000 से 1500 रुपये खर्च आता है।

सर्जरी

स्किन का कलर नॉर्मल करने के लिए कई तरह की सर्जरी भी की जाती हैं। ये एक ही दिन के प्रसीजर होते हैं और इनके कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं, लेकिन बीमारी के फैलने से रोकने के बाद ही इन्हें कराना सही रहता है। सर्जरी उन जगहों पर भी काम करती है, जहां चमड़ी के नीचे मांस के बिना हड्डियां होती हैं और दवाइयों का असर कम होता है (मसलन उंगलियों पर)। इनमें खास प्रसीजर हैं:

स्किन ग्राफ्टिंग: यह पुरानी तकनीक है। इसमें एक जगह की स्किन निकालकर दाग वाली जगह पर लगा दिया जाता है। इसमें एक-दो घंटे लगते हैं और 10वें दिन टांके काट दिए जाते हैं। 75-100 स्क्वेयर सेंटीमीटर के दाग के लिए करीब 25 हजार रुपये का खर्च आता है।

सक्शन ब्लिस्टर एपिडर्मल ग्राफ्टिंग: इसमें स्किन को वैक्यूम के जरिए दो भाग में अलग करके जहां सफेद दाग है, वहां ऊपरी भाग को रखा जाता है। ऊपरी भाग के जो रंग बनाने वाले कण हैं, वे सफेद दाग की जगह वाले स्किन के अंदर जाकर सामान्य रंग ले आते हैं। इसमें कोई टांका नहीं लगता और कलर का मैच भी अच्छा होता है। 2-3 महीने में सही कलर आ जाता है। 75-100 स्क्वेयर सेंटीमीटर के लिए करीब 40 हजार रुपये का खर्च आता है।

मेलानोसाइट एपिडर्मल सेल सस्पेंशन: इसमें बिना किसी चीरा-टांके के सफेद दाग को हटाया जाता है। शरीर से सामान्य स्किन के एक छोटे-से टुकड़े को लेकर उसके रंग बनाने वाले कणों को अलग करके उसे लिक्विड में तब्दील किया जाता है। इसके बाद जहां सफेद दाग है वहां इस लिक्विड को इंजेक्ट कर दिया जाता है। इससे सामान्य रंग वापस लौट आता है। 75-100 स्क्वेयर सेंटीमीटर के लिए करीब 60 हजार रुपये खर्च होते हैं। इनके अलावा मिलानोसाइट कल्चर और प्लैटलेट रिच प्लाज्मा पर भी ट्रायल चल रहा है। लेकिन अभी ये प्रसीजर शुरू नहीं हुए हैं।

होम्योपैथी
होम्योपैथी में भी सफेद दाग का अच्छा इलाज होने का दावा किया जाता है, लेकिन इलाज में अमूमन 2 से 3 साल तक का समय लगता है। शुरुआती 6 महीने में जितना असर नजर आता है, उसके अनुसार इलाज के वक्त का अंदाजा लगाया जाता है। होम्योपैथी में इम्यून सिस्टम को मॉडरेट करने के लिए दवाएं दी जाती हैं। बीमारी की वजह जानकर उसके मुताबिक दवाएं दी जाती हैं। प्रमुख दवाएं हैं:

सल्फर-30 (Sulphur-30), आर्सेनिक अल्बम-30 (Arsenic album-30), सिफलिनम-200 (Syphllinum-200), आर्सेनिक सल्फ फ्लेवम-6(Arsenic sulph Flevum-6), फॉस्फोरस-30 (Phosphorus 30), मर्क सोल (Merc Sol) आदि। अगर बीमारी की वजह से तनाव और डिप्रेशन है तो इग्नेशिया-30 (Ignatia-30), नेट्रम म्यूर-30 (Natrum mur-30), पल्सेटिला-30 (Pulsatilla-30), नक्स वॉमिका-30, सिफलिनम-200 (Syphllinum-200) आदि दवा दी जाती है। कोई भी दवा डॉक्टर बीमारी की वजह जानकर उसके मुताबिक ही दवा देते हैं।

नोट: विशेषज्ञों का कहना है कि कई लोग दूसरी दवाओं के साथ होम्योपैथी की दवाएं लेते हैं। यह सही नहीं है। एक वक्त में एक ही तरह का इलाज करना चाहिए।

कितना खर्च
मोटे तौर पर 1000-1500 रुपये हर महीना खर्च आता है। बीमारी के ठीक होने में कितना वक्त लगेगा, यह प्रभावित हिस्से और उसकी गहनता पर निर्भर करता है। जितना जल्दी इलाज के लिए एक्सपर्ट के पास जाएंगे, उतना बेहतर रहेगा।

आयुर्वेद
आयुर्वेद के अनुसार, पित्त या इसके साथ बाकी वातों की गड़बड़ी से सफेद दाग की समस्या होती है। जो लोग बहुत ज्यादा तला-भुना, मसालेदार, बेवक्त खाने के अलावा विरुद्ध आहार (मसलन दूध के साथ नमक या मछली आदि) लेता है, उसमें यह समस्या होने की आशंका ज्यादा होती है। आयुर्वेद में पंचकर्म के जरिए शरीर को डिटॉक्सिफाई किया जाता है। इसके अलावा बाकुची बीज, खदिर (कत्था), दारुहरिद्रा, करंज, आरग्यवध (अमलतास) आदि सिंगल हर्ब्स के जरिए भी खून को साफ किया जाता है। इसके अलावा कंपाउंड मेडिसिन भी दी जाती हैं जैसे कि गंधक रसायन, रस माणिक्य, मंजिष्ठादी क्वाथ, खदिरादी वटी आदि हैं। त्रिफला भी काफी असरदार है।

- ल्यूकोस्किन (lukoskin) भी अच्छी दवा है। यह ओरल लिक्विड और ऑइंटमेंट, दोनों रूप में मौजूद है। ओरल लिक्विड से नए सफेद दाग नहीं बनने और शरीर की इम्यूनिटी बढ़ने का दावा किया जाता है, जबकि ऑइंटमेंट से मौजूदा सफेद दाग ठीक होने का। इसके नतीजे तीन महीने में दिखने लगते हैं, जबकि पूरी तरह ठीक होने में दो साल तक का वक्त लग सकता है। एक महीने का खर्च करीब 700 रुपये आता है।

- आयुर्वेद इसके इलाज और बचाव के लिए खानपान पर बहुत जोर देता है। आयुर्वेदिक एक्सपर्ट के मुताबिक, पीड़ित को तांबे के बर्तन में पानी को 8 घंटे रखने के बाद पीना चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर, लौकी, सोयाबीन, दालें ज्यादा खाना चाहिए। पेट में कीड़ा न हो, लीवर दुरुस्त रहे, इसकी जांच कराएं और डॉक्टर की सलाह के मुताबिक दवा लें। एक कटोरी भीगे काले चने और 3 से 4 बादाम हर रोज खाएं। ताजा गिलोय या एलोविरा जूस पीएं। इससे इम्यूनिटी बढ़ती है।

क्या न करें

खट्टी चीजें जैसे नीबू, संतरा, आम, अंगूर, टमाटर, आंवला, अचार, दही, लस्सी, मिर्च, मैदा, गोभी, उड़द दाल आदि कम खाएं। गर्मी बढ़ाने वाली चीजें न खाएं। नॉनवेज और फास्ट फूड कम खाएं। सॉफ्ट डिंक्स के सेवन से बचें।

- नमक, मूली और मांस-मछली के साथ दूध न पीएं।

- लंबे समय तक तेज गर्मी के एक्सपोजर से बचें।

मिथ मंथन

मिथः कैंसर की वजह बन सकता है यह।

सचः नहीं, यह कैंसर की वजह नहीं बनता और इसमें जान को भी कोई खतरा नहीं है।

मिथः यह एक तरह का कोढ़ है।

सचः इसका कोढ़ (लेप्रसी) से भी कोई लेना-देना नहीं है। यह सिरोसिस (Psoraisis) भी नहीं है। सिरोसिस में स्किन पर लाल धब्बे बनते हैं, न कि सफेद।

मिथः अल्बीनिज़म और सफेद दाग एक ही हैं।

सचः कुछ लोगों का पूरा शरीर उजला होता है क्योंकि उनके शरीर में रंग बनाने वाले कण जन्म से ही पूरी तरह नदारद होते हैं। इन्हें अल्बीनो और उनकी बीमारी को अल्बीनिज़म कहा जाता है। यह बीमारी वंशानुगत और लाइलाज है, जबकि सफेद दाग का इलाज मुमकिन है।

मिथः मरीज की छूने या चीजें इस्तेमाल करने से दूसरों में फैलता है यह।

सचः सफेद दाग किसी को छूने, किस करने या फिजिकल रिलेशन बनाने से नहीं फैलता। प्राइवेट पार्ट पर सफेद दाग हो तो भी न तो सेक्शुअल आनंद में कमी आती है और न ही पार्टनर को यह बीमारी होती है।

ध्यान दें

- सफेद दाग हैं तो तेज केमिकल वाले साबुन और डिटर्जेंट के इस्तेमाल से बचें। साथ ही परफ्यूम, डियोड्रंट, हेयर डाई, पेस्टिसाइड्स को शरीर के सीधे संपर्क में आने से बचाएं। तेज केमिकल एक्सपोजर से सफेद दाग फैलता है।

- सफेद दाग वाले कुछ लोग उन्हें छिपाने के लिए स्किन कलर भी लगाते हैं। इससे कुछ घंटों के लिए सफेद दाग छिप तो जाते हैं, लेकिन स्किन के छेद भर जाते हैं। इससे स्किन को नुकसान होता है।

- कुछ लोग सफेद दाग पर टैटू भी बनवाते हैं। इससे सफेद दाग के आसपास के हिस्से में फैलने की आशंका भी बढ़ जाती है।

- मुमकिन है कि एक बार दवाओं से ठीक होने के बावजूद एक से डेढ़ साल के भीतर सफेद दाग फिर से पनप जाए। लेकिन अगर डेढ़ साल तक सफेद दाग नहीं लौटे तो बहुत हद तक आप इत्मिनान रख सकते हैं कि आपको इनसे छुटकारा मिल गया है।

खुद पर भरोसा जरूरी

- अंकित की उम्र 17 साल है। उनके हाथों और चेहरे पर सफेद दाग हैं। इन दागों को लेकर वह इतना परेशान थे कि दिन भर शीशे के सामने खड़े होकर देखते रहते थे कि कहीं दाग बढ़ तो नहीं रहे। किसी भी दवा को खाने से पहले अंकित पूरी तरह इंटरनेट खंगालने लगते थे कि इससे सफेद दाग तो नहीं बढ़ जाएंगे। सारा दिन इसी तनाव में रहने से अंकित का मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था। वह दोस्तों से भी कटे-कटे रहते थे। आखिरकार परिवार वाले उन्हें सायकायट्रिस्ट के पास लेकर गए। सायकायट्रिस्ट ने काफी दिनों तक उनकी काउंसलिंग की और धीरे-धीरे वह नॉर्मल लाइफ जीने लगे। उनका करियर शानदार है और अब उनके कई अच्छे दोस्त भी हैं।

- मशहूर सिंगर माइकल जैक्सन को भी सफेद दाग थे और उन्होंने इस बात को पूरी दुनिया के सामने स्वीकार किया था। इससे जैक्सन का मनोबल कम नहीं हुआ और वह पूरी दुनिया पर छा गए। दूसरे भी कई सिलेब्रिटी इससे पीड़ित रहे हैं, लेकिन वे कभी हीन भावना से ग्रस्त नहीं रहे। यह कोई ऐसी चीज है भी नहीं जिसकी वजह से हीन भावना पाली जाए।

- अपने को कुछ अलग न समझें। सफेद दाग होने पर न तो उस शख्स की काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है और न ही किसी और तरह की दिक्कत पेश आती है। सफेद दाग से प्रभावित शख्स किसी भी आम इंसान की तरह ही होता है।

- अगर आपको सफेद दाग है तो आप अपने किसी गुण या काबिलियत पर फोकस करें और उसे इतना अच्छा बना लें कि दूसरों से आगे निकल जाएं।

- इस समस्या से ध्यान हटाकर पर्सनैलिटी डिवेलपमेंट पर ध्यान दें। किताबें पढ़ें, कुछ नया सीखें, म्यूजिक सीखें और फ्रेंड सर्कल बढ़ाएं।

- अगर सुंदरता आपके लिए बहुत अहम है तो आप उन फीचर को उभारें, जो अच्छे हैं, मसलन फिट रहें, अच्छी फिजिक बनाएं, बेहतर ड्रेस पहनें और प्रजेंटेबल बनें।

- अगर आप वाकई दागों को लेकर असहज महसूस करते हैं तो कंसीलर इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन कंसीलर हमेशा अच्छी क्वॉलिटी का खरीदें वरना स्किन को और नुकसान हो सकता है।

- हमेशा खुद से सहानुभूति दिखानेवालों से दूर रहें और मन को पॉजिटिव रखें।

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लाइलाज नहीं है यह

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सफेद दाग, यानी विटिलाइगो (vitiligo) को लेकर तरह-तरह के भ्रम हैं। लोग इसे लाइलाज बीमारी मानते हैं, जबकि डॉक्टरों के मुताबिक यह एक कॉस्मेटिक प्रॉब्लम है और इसका इलाज बहुत हद तक मुमकिन है। सफेद दाग को बढ़ने से रोकने और इसे ठीक करने के बारे में एक्सपर्ट्स से पूछकर पूरी जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह

वर्ल्ड विटिलाइगो डे आज

एक्सपर्ट्स पैनल

डॉ. रोहित बत्रा, कंसल्टंट, विटिलाइगो स्पेशलिस्ट, सर गंगाराम हॉस्पिटल

डॉ. शुचींद्र सचदेवा, होम्योपैथिक एक्सपर्ट

डॉ. राजीव मेहता, सीनियर सायकायट्रिस्ट

डॉ. प्रताप चौहान, डायरेक्टर, जीवा आयुर्वेद

क्या है सफेद दाग

- यह एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। इसमें स्किन का रंग बनाने वाले सेल्स मेलानोसाइट (Melanocyte) खत्म होने लगते हैं या काम करना बंद कर देते हैं, जिससे शरीर पर जगह-जगह सफेद-से धब्बे बन जाते हैं। यह समस्या मोटे तौर पर लिप-टिप यानी होठों और हाथों पर, एक्रोफेशियर यानी हाथ-पैर और चेहरे पर, फोकल यानी शरीर में एक-दो जगह पर, सेग्मेंटल यानी शरीर के एक पूरे हिस्से पर और जनरलाइज्ड यानी शरीर के कई हिस्सों पर दाग के रूप में सामने आती है।

ये हैं वजहें

- फैमिली हिस्ट्री, यानी अगर पैरंट्स सफेद दाग से पीड़ित रहे हैं तो बच्चों में इसके होने की आशंका रहती है। हालांकि ऐसे मामले 2 से 4 फीसदी ही होते हैं।

- एलोपेशिया एरियाटा (Alopecia Areata) यानी वह बीमारी, जिसमें छोटे-छोटे गोले के रूप में शरीर से बाल गायब होने लगते हैं।

- सफेद दाग मस्से या बर्थ मार्क (Halo Nevus) से। मस्सा या बर्थ मार्क बच्चे के बड़े होने के साथ-साथ आसपास की स्किन का रंग बदलना शुरू कर देता है।

- केमिकल ल्यूकोडर्मा (Chemical Leucoderma) यानी खराब क्वॉलिटी की चिपकाने वाली बिंदी या खराब प्लास्टिक की चप्पल इस्तेमाल करने से।

- ज्यादा केमिकल एक्सपोजर यानी प्लास्टिक, रबर या केमिकल फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों को खतरा ज्यादा। कीमोथेरपी से भी इसकी आशंका रहती है।

- थाइरॉयड संबंधी बीमारी होने पर।

कैसे पहचानें इसे

अगर स्किन का रंग हल्का होने लगे और उस हिस्से के बाल भी सफेद होना शुरू हो जाएं तो समझिए कि सफेद दाग है। हालांकि इन दागों पर कोई खुजली या दर्द नहीं होता और संवेदनशीलता भी बनी रहती है, लेकिन पसीने और ज्यादा गर्मी की स्थिति में जलन पैदा हो सकती है। अगर सफेद दाग पर बाल काले रहें तो इलाज की गुंजाइश ज्यादा होती है। अगर दाग के ऊपर लगा स्क्रेच या घड़ी पहननेवाली जगह आदि भी सफेद होने लगे तो समझिए कि समस्या बढ़ रही है। अगर इसे बिल्कुल शुरुआती दौर में पकड़ना चाहते हैं तो हल्का-सा भी दाग होने पर डॉक्टर के पास जाएं। लोग अक्सर इसे कैल्शियम या आयरन की कमी से पैदा हुई समस्या मानकर इग्नोर कर देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। एक्सपर्ट वुड लैंप (Wood Lamp) टेस्ट के जरिए देखते हैं कि समस्या सफेद दाग की है या नहीं। इसके लिए अंधेरे कमरे में दाग पर खास तरह की लाइट डालकर चेक करते हैं। इस टेस्ट के लिए कंसल्टेंसी फीस के अलावा अलग से कोई रकम नहीं ली जाती।

किस डॉक्टर के पास जाएं

विटिलाइगो एक्सपर्ट के पास जाना चाहिए। ये भी डर्मटॉलजिस्ट या स्किन स्पेशलिस्ट ही होते हैं, लेकिन इनका सफेद दाग के इलाज करने का अनुभव दूसरे डर्मटॉलजिस्ट की तुलना में ज्यादा होता है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि हर विटिलाइगो एक्सपर्ट स्किन स्पेशलिस्ट होता है, लेकिन हर स्किन स्पेशलिस्ट विटिलाइगो एक्सपर्ट नहीं होता।

क्या है इलाज

सफेद दाग के इलाज के लिए दो तरह की दवाएं दी जाती हैं: सफेद दाग को रोकने वाली और स्किन कलर वापस लाने वाली। इनमें भी खानेवाली और लगानेवाली, दो अलग-अलग तरह की दवाएं दी जाती हैं।

फैलने से रोकने वाली दवाएं

सफेद दाग न फैले, इसके लिए खाने वाली दवाएं दी जाती हैं, जिनमें खास हैं मिनी स्टेरॉयड पल्स (Mini Steroid Pulse), लिवामिसोल (Levamisole) और अजाथियोप्राइन (Azathioprine) आदि। मिनी स्टेरॉयड पल्स से वजन बढ़ने और दूसरे साइड इफेक्टस हो सकते हैं इसलिए बेहतर है कि ना लें।

रंग वापस लाने वाली दवाएं

स्किन का रंग वापस लाने के लिए खाने और लगाने वाली, दोनों तरह की दवाएं दी जाती हैं। इनमें खास हैं: टैक्रोलाइमस (Tacrolimus), एपिफर्मल फाइब्रोब्लास्ट ग्रोथ फैक्टर (Epiphermal Fibroblast Growth Factor), कैल्सिन्युरिन इन्हिबिटर ऑइंटमेंट (Calcineurin Inhibitor Ointment), वीक कॉर्टिको स्टेरॉयड क्रीम (Weak Cortico Steroid Cream), ऑर्गन प्लेसेंटल एक्सट्रैक्ट क्रीम (Organ Placental Extract Cream) आदि।

थेरपी

- इसके लिए फोटो थेरपी ट्रीटमेंट भी दिया जाता है। इसके तहत सूरज की किरणों (UVA) और नैरोबैंड (UVB) का इस्तेमाल स्किन का रंग फिर से नॉर्मल करने के लिए किया जाता है। इस थेरपी का साइड इफेक्ट यह है कि इसे करते हुए सावधानी न बरती जाए तो स्किन काली पड़ सकती है।

- एक्जाइमर लेजर भी असरदार है। हफ्ते में 2 सेशन की जरूरत होती है। 15-20 सेशन में फायदा नजर आने लगता है। हर सेशन का 1000 से 1500 रुपये खर्च आता है।

सर्जरी

स्किन का कलर नॉर्मल करने के लिए कई तरह की सर्जरी भी की जाती हैं। ये एक ही दिन के प्रसीजर होते हैं और इनके कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं, लेकिन बीमारी के फैलने से रोकने के बाद ही इन्हें कराना सही रहता है। सर्जरी उन जगहों पर भी काम करती है, जहां चमड़ी के नीचे मांस के बिना हड्डियां होती हैं और दवाइयों का असर कम होता है (मसलन उंगलियों पर)। इनमें खास प्रसीजर हैं:

स्किन ग्राफ्टिंग: यह पुरानी तकनीक है। इसमें एक जगह की स्किन निकालकर दाग वाली जगह पर लगा दिया जाता है। इसमें एक-दो घंटे लगते हैं और 10वें दिन टांके काट दिए जाते हैं। 75-100 स्क्वेयर सेंटीमीटर के दाग के लिए करीब 25 हजार रुपये का खर्च आता है।

सक्शन ब्लिस्टर एपिडर्मल ग्राफ्टिंग: इसमें स्किन को वैक्यूम के जरिए दो भाग में अलग करके जहां सफेद दाग है, वहां ऊपरी भाग को रखा जाता है। ऊपरी भाग के जो रंग बनाने वाले कण हैं, वे सफेद दाग की जगह वाले स्किन के अंदर जाकर सामान्य रंग ले आते हैं। इसमें कोई टांका नहीं लगता और कलर का मैच भी अच्छा होता है। 2-3 महीने में सही कलर आ जाता है। 75-100 स्क्वेयर सेंटीमीटर के लिए करीब 40 हजार रुपये का खर्च आता है।

मेलानोसाइट एपिडर्मल सेल सस्पेंशन: इसमें बिना किसी चीरा-टांके के सफेद दाग को हटाया जाता है। शरीर से सामान्य स्किन के एक छोटे-से टुकड़े को लेकर उसके रंग बनाने वाले कणों को अलग करके उसे लिक्विड में तब्दील किया जाता है। इसके बाद जहां सफेद दाग है वहां इस लिक्विड को इंजेक्ट कर दिया जाता है। इससे सामान्य रंग वापस लौट आता है। 75-100 स्क्वेयर सेंटीमीटर के लिए करीब 60 हजार रुपये खर्च होते हैं। इनके अलावा मिलानोसाइट कल्चर और प्लैटलेट रिच प्लाज्मा पर भी ट्रायल चल रहा है। लेकिन अभी ये प्रसीजर शुरू नहीं हुए हैं।

होम्योपैथी

होम्योपैथी में भी सफेद दाग का अच्छा इलाज होने का दावा किया जाता है, लेकिन इलाज में अमूमन 2 से 3 साल तक का समय लगता है। शुरुआती 6 महीने में जितना असर नजर आता है, उसके अनुसार इलाज के वक्त का अंदाजा लगाया जाता है। होम्योपैथी में इम्यून सिस्टम को मॉडरेट करने के लिए दवाएं दी जाती हैं। बीमारी की वजह जानकर उसके मुताबिक दवाएं दी जाती हैं। प्रमुख दवाएं हैं:

सल्फर-30 (Sulphur-30), आर्सेनिक अल्बम-30 (Arsenic album-30), सिफलिनम-200 (Syphllinum-200), आर्सेनिक सल्फ फ्लेवम-6(Arsenic sulph Flevum-6), फॉस्फोरस-30 (Phosphorus 30), मर्क सोल (Merc Sol) आदि। अगर बीमारी की वजह से तनाव और डिप्रेशन है तो इग्नेशिया-30 (Ignatia-30), नेट्रम म्यूर-30 (Natrum mur-30), पल्सेटिला-30 (Pulsatilla-30), नक्स वॉमिका-30, सिफलिनम-200 (Syphllinum-200) आदि दवा दी जाती है। कोई भी दवा डॉक्टर बीमारी की वजह जानकर उसके मुताबिक ही दवा देते हैं।

नोट: विशेषज्ञों का कहना है कि कई लोग दूसरी दवाओं के साथ होम्योपैथी की दवाएं लेते हैं। यह सही नहीं है। एक वक्त में एक ही तरह का इलाज करना चाहिए।

कितना खर्च

मोटे तौर पर 1000-1500 रुपये हर महीना खर्च आता है। बीमारी के ठीक होने में कितना वक्त लगेगा, यह प्रभावित हिस्से और उसकी गहनता पर निर्भर करता है। जितना जल्दी इलाज के लिए एक्सपर्ट के पास जाएंगे, उतना बेहतर रहेगा।

आयुर्वेद

आयुर्वेद के अनुसार, पित्त या इसके साथ बाकी वातों की गड़बड़ी से सफेद दाग की समस्या होती है। जो लोग बहुत ज्यादा तला-भुना, मसालेदार, बेवक्त खाने के अलावा विरुद्ध आहार (मसलन दूध के साथ नमक या मछली आदि) लेता है, उसमें यह समस्या होने की आशंका ज्यादा होती है। आयुर्वेद में पंचकर्म के जरिए शरीर को डिटॉक्सिफाई किया जाता है। इसके अलावा बाकुची बीज, खदिर (कत्था), दारुहरिद्रा, करंज, आरग्यवध (अमलतास) आदि सिंगल हर्ब्स के जरिए भी खून को साफ किया जाता है। इसके अलावा कंपाउंड मेडिसिन भी दी जाती हैं जैसे कि गंधक रसायन, रस माणिक्य, मंजिष्ठादी क्वाथ, खदिरादी वटी आदि हैं। त्रिफला भी काफी असरदार है।

- ल्यूकोस्किन (lukoskin) भी अच्छी दवा है। यह ओरल लिक्विड और ऑइंटमेंट, दोनों रूप में मौजूद है। ओरल लिक्विड से नए सफेद दाग नहीं बनने और शरीर की इम्यूनिटी बढ़ने का दावा किया जाता है, जबकि ऑइंटमेंट से मौजूदा सफेद दाग ठीक होने का। इसके नतीजे तीन महीने में दिखने लगते हैं, जबकि पूरी तरह ठीक होने में दो साल तक का वक्त लग सकता है। एक महीने का खर्च करीब 700 रुपये आता है।

- आयुर्वेद इसके इलाज और बचाव के लिए खानपान पर बहुत जोर देता है। आयुर्वेदिक एक्सपर्ट के मुताबिक, पीड़ित को तांबे के बर्तन में पानी को 8 घंटे रखने के बाद पीना चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर, लौकी, सोयाबीन, दालें ज्यादा खाना चाहिए। पेट में कीड़ा न हो, लीवर दुरुस्त रहे, इसकी जांच कराएं और डॉक्टर की सलाह के मुताबिक दवा लें। एक कटोरी भीगे काले चने और 3 से 4 बादाम हर रोज खाएं। ताजा गिलोय या एलोविरा जूस पीएं। इससे इम्यूनिटी बढ़ती है।

क्या न करें

खट्टी चीजें जैसे नीबू, संतरा, आम, अंगूर, टमाटर, आंवला, अचार, दही, लस्सी, मिर्च, मैदा, गोभी, उड़द दाल आदि कम खाएं। गर्मी बढ़ाने वाली चीजें न खाएं। नॉनवेज और फास्ट फूड कम खाएं। सॉफ्ट डिंक्स के सेवन से बचें।

- नमक, मूली और मांस-मछली के साथ दूध न पीएं।

- लंबे समय तक तेज गर्मी के एक्सपोजर से बचें।

मिथ मंथन

कैंसर की वजह बन सकता है यह।

नहीं, यह कैंसर की वजह नहीं बनता और इसमें जान को भी कोई खतरा नहीं है।

यह एक तरह का कोढ़ है।

इसका कोढ़ (लेप्रसी) से भी कोई लेना-देना नहीं है। यह सिरोसिस (Psoraisis) भी नहीं है। सिरोसिस में स्किन पर लाल धब्बे बनते हैं, न कि सफेद।

अल्बीनिज़म और सफेद दाग एक ही हैं।

कुछ लोगों का पूरा शरीर उजला होता है क्योंकि उनके शरीर में रंग बनाने वाले कण जन्म से ही पूरी तरह नदारद होते हैं। इन्हें अल्बीनो और उनकी बीमारी को अल्बीनिज़म कहा जाता है। यह बीमारी वंशानुगत और लाइलाज है, जबकि सफेद दाग का इलाज मुमकिन है।

मरीज की छूने या चीजें इस्तेमाल करने से दूसरों में फैलता है यह।

सफेद दाग किसी को छूने, किस करने या फिजिकल रिलेशन बनाने से नहीं फैलता। प्राइवेट पार्ट पर सफेद दाग हो तो भी न तो सेक्शुअल आनंद में कमी आती है और न ही पार्टनर को यह बीमारी होती है।

ध्यान दें

- सफेद दाग हैं तो तेज केमिकल वाले साबुन और डिटर्जेंट के इस्तेमाल से बचें। साथ ही परफ्यूम, डियोड्रंट, हेयर डाई, पेस्टिसाइड्स को शरीर के सीधे संपर्क में आने से बचाएं। तेज केमिकल एक्सपोजर से सफेद दाग फैलता है।

- सफेद दाग वाले कुछ लोग उन्हें छिपाने के लिए स्किन कलर भी लगाते हैं। इससे कुछ घंटों के लिए सफेद दाग छिप तो जाते हैं, लेकिन स्किन के छेद भर जाते हैं। इससे स्किन को नुकसान होता है।

- कुछ लोग सफेद दाग पर टैटू भी बनवाते हैं। इससे सफेद दाग के आसपास के हिस्से में फैलने की आशंका भी बढ़ जाती है।

- मुमकिन है कि एक बार दवाओं से ठीक होने के बावजूद एक से डेढ़ साल के भीतर सफेद दाग फिर से पनप जाए। लेकिन अगर डेढ़ साल तक सफेद दाग नहीं लौटे तो बहुत हद तक आप इत्मिनान रख सकते हैं कि आपको इनसे छुटकारा मिल गया है।

खुद पर भरोसा जरूरी

- अंकित की उम्र 17 साल है। उनके हाथों और चेहरे पर सफेद दाग हैं। इन दागों को लेकर वह इतना परेशान थे कि दिन भर शीशे के सामने खड़े होकर देखते रहते थे कि कहीं दाग बढ़ तो नहीं रहे। किसी भी दवा को खाने से पहले अंकित पूरी तरह इंटरनेट खंगालने लगते थे कि इससे सफेद दाग तो नहीं बढ़ जाएंगे। सारा दिन इसी तनाव में रहने से अंकित का मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था। वह दोस्तों से भी कटे-कटे रहते थे। आखिरकार परिवार वाले उन्हें सायकायट्रिस्ट के पास लेकर गए। सायकायट्रिस्ट ने काफी दिनों तक उनकी काउंसलिंग की और धीरे-धीरे वह नॉर्मल लाइफ जीने लगे। उनका करियर शानदार है और अब उनके कई अच्छे दोस्त भी हैं।

- मशहूर सिंगर माइकल जैक्सन को भी सफेद दाग थे और उन्होंने इस बात को पूरी दुनिया के सामने स्वीकार किया था। इससे जैक्सन का मनोबल कम नहीं हुआ और वह पूरी दुनिया पर छा गए। दूसरे भी कई सिलेब्रिटी इससे पीड़ित रहे हैं, लेकिन वे कभी हीन भावना से ग्रस्त नहीं रहे। यह कोई ऐसी चीज है भी नहीं जिसकी वजह से हीन भावना पाली जाए।

- अपने को कुछ अलग न समझें। सफेद दाग होने पर न तो उस शख्स की काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है और न ही किसी और तरह की दिक्कत पेश आती है। सफेद दाग से प्रभावित शख्स किसी भी आम इंसान की तरह ही होता है।

- अगर आपको सफेद दाग है तो आप अपने किसी गुण या काबिलियत पर फोकस करें और उसे इतना अच्छा बना लें कि दूसरों से आगे निकल जाएं।

- इस समस्या से ध्यान हटाकर पर्सनैलिटी डिवेलपमेंट पर ध्यान दें। किताबें पढ़ें, कुछ नया सीखें, म्यूजिक सीखें और फ्रेंड सर्कल बढ़ाएं।

- अगर सुंदरता आपके लिए बहुत अहम है तो आप उन फीचर को उभारें, जो अच्छे हैं, मसलन फिट रहें, अच्छी फिजिक बनाएं, बेहतर ड्रेस पहनें और प्रजेंटेबल बनें।

- अगर आप वाकई दागों को लेकर असहज महसूस करते हैं तो कंसीलर इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन कंसीलर हमेशा अच्छी क्वॉलिटी का खरीदें वरना स्किन को और नुकसान हो सकता है।

- हमेशा खुद से सहानुभूति दिखानेवालों से दूर रहें और मन को पॉजिटिव रखें।

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ऐसे मॉनसून रहेगा मजेदार

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बरसात का सुहाना मौसम अक्सर कुछ बीमारियों की वजह भी बन जाता है। जानते हैं मॉनसून के मौसम में होनेवाली दिक्कतों और उनके इलाज के बारे में:

बरसात के बुखार
बारिश के दिनों में कई तरह के बुखार परेशानी की वजह बन सकते हैं। जब भी शरीर का तापमान नॉर्मल (98.3 डिग्री फॉर.) से बढ़ जाए तो वह बुखार माना जाएगा। आमतौर पर 100 डिग्री तक बुखार में किसी दवा की जरूरत नहीं होती। हालांकि बुखार इसी रेंज में 3-4 या ज्यादा दिन तक लगातार बना रहे तो इलाज की जरूरत होती है। इसी तरह बुखार अगर 102 डिग्री तक है और कोई खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। लेकिन आजकल यानी मॉनसून में एक दिन के बुखार के बाद ही फौरन डॉक्टर के पास चले जाएं चाहे बुखार कैसा भी हो। मॉनसून के खास बुखार हैं:

डेंगू
यह मादा एडीज इजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। ये मच्छर साफ पानी में पनपते हैं और दिन में ज्यादा काटते हैं। इन मच्छरों के शरीर पर चीते जैसी धारियां होती हैं। डेंगू बरसात के मौसम और उसके फौरन बाद के महीनों यानी जुलाई से अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है। डेंगू 3 तरह का होता है: क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार, डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF) और डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)। साधारण डेंगू बुखार अपने आप ठीक हो जाता है लेकिन DHF या DSS का फौरन इलाज शुरू नहीं किया जाए तो जान जा सकती है।

क्या हैं लक्षण
साधारण डेंगू बुखार
- ठंड लगने के बाद अचानक तेज बुखार चढ़ना
- सिर, मसल्स और जोड़ों में दर्द
- आंखों के पिछले हिस्से में दर्द
- बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, भूख न लगना, जी मितलाना और मुंह का स्वाद खराब होना
- गले में हल्का-सा दर्द होना
- शरीर खासकर चेहरे, गर्दन और छाती पर लाल-गुलाबी रंग के रैशेज होना

डेंगू हैमरेजिक बुखार (DHF)
- नाक और मसूढ़ों से खून आना
- शौच या उलटी में खून आना
- स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के छोटे या बड़े चकत्ते पड़ जाना

डेंगू शॉक सिंड्रोम (DSS)
इसमें DHF लक्षणों के साथ-साथ 'शॉक' की अवस्था के भी लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे
- मरीज बहुत बेचैन हो जाता है और तेज बुखार के बावजूद उसकी स्किन ठंडी महसूस होती है।
- मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है।
- मरीज की नाड़ी कभी तेज और कभी धीरे चलने लगती है। ब्लड प्रेशर एकदम लो हो जाता है।

बच्चों में खतरा ज्यादा
बच्चों का इम्यून सिस्टम ज्यादा कमजोर होता है और वे खुले में ज्यादा रहते हैं इसलिए उन्हें डेंगू होने का खतरा ज्यादा होता है। बच्चों को घर में और बाहर पूरे कपड़े पहनाकर रखें। जहां बच्चे खेलें, वहां आसपास पानी न जमा हो। अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा हो, लगातार सोए जा रहा हो, बेचैन हो, उसे तेज बुखार हो, शरीर पर रैशेज हों, उलटी हो या इनमें से कोई भी लक्षण हो तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। बच्चों को डेंगू हो तो उन्हें अस्पताल में रखकर ही इलाज कराना चाहिए क्योंकि बच्चों में प्लेटलेट्स जल्दी गिरते हैं और उनमें पानी की कमी भी जल्दी होती है।

कौन-से टेस्ट
अगर तेज बुखार हो, जॉइंट्स में तेज दर्द हो या शरीर पर रैशेज हों तो फौरन डॉक्टर के पास जाएं। वह डेंगू का टेस्ट कराएगा। डेंगू की जांच के लिए ऐंटिजन ब्लड टेस्ट (NS-1) या ऐंटिबॉडी टेस्ट (डेंगू सिरॉलजी) कराया जाता है। NS-1 टेस्ट की कीमत करीब 600 रुपये है। बुखार चढ़ने के 5 दिन तक यह टेस्ट करा सकते हैं। 5 दिन के बाद कराना है तो डेंगू सिरॉलजी (IgM अलाइसा) टेस्ट कराना बेहतर है।

कब प्लेटलेट्स चढ़ाना जरूरी
आमतौर पर तंदुरुस्त आदमी के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं। प्लेटलेट्स अगर एक लाख से कम हैं तो मरीज को फौरन हॉस्पिटल में भर्ती कराना चाहिए क्योंकि ऐसे में डॉक्टर प्लेटलेट्स चढ़ाने की तैयारी करने लगते हैं। अगर प्लेटलेट्स 20 हजार या उससे नीचे पहुंच जाएं तो प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।

इलाज
- अगर मरीज को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका इलाज और देखभाल घर पर की जा सकती है। डॉक्टर की सलाह लेकर पैरासिटामोल (क्रोसिन Crocin), कारपोल (Carpol) आदि ले सकते हैं।
- एस्प्रिन (डिस्प्रिन (Disprin), इकोस्प्रिन (Ecosprin) आदि) बिल्कुल न लें। इनसे प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं।
- अगर बुखार 102 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा है तो मरीज के शरीर पर पानी की पट्टियां रखें।
- सामान्य रूप से खाना देना जारी रखें। बुखार की हालत में शरीर को और ज्यादा खाने की जरूरत होती है।
- किसी भी तरह के डेंगू में मरीज के शरीर में पानी की कमी नहीं आने देनी चाहिए। उसे खूब पानी और बाकी तरल पदार्थ (नींबू पानी, छाछ, नारियल पानी आदि) पिलाएं ताकि ब्लड गाढ़ा होकर जमे नहीं।
- मरीज को पूरा आराम करने दें। आराम भी डेंगू की दवा ही है।

नोट: इन दिनों बुखार होने पर सिर्फ पैरासिटामोल लें। एस्प्रिन या एनालजेसिक (ब्रूफिन (‌‌Brufen), कॉम्बिफ्लेम (Combiflame) आदि) बिल्कुल न लें। क्योंकि अगर डेंगू है तो एस्प्रिन या ब्रूफिन आदि लेने से प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं और शरीर से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है।

चिकनगुनिया
चिकनगुनिया भी डेंगू की तरह मादा एडिस इजिप्टी मच्छर के काटने से होता है।

क्या हैं लक्षण
- तेज बुखार (104 डिग्री तक), कुछ मामलों में 3-4 दिन बार दोबारा चढ़ता है
- जोड़ों में बहुत तेज दर्द (महीनों तक रह सकता है)
- 3-4 दिन में शरीर पर लाल चकत्ते

कौन-सा टेस्ट
RT-PCR टेस्ट होता है, जिसकी कीमत 1500-2000 रुपये होती है। बुखार शुरू होने के एक दिन बाद से लेकर कभी भी करा सकते हैं। वैसे एक बार होने पर चिकनगुनिया एक साल तक पॉजिटिव आता है।

इलाज
- हर 6 घंटे में पैरासिटामोल ले सकते हैं।
- चिकनगुनिया में पानी से बनी चीजों का अधिक से अधिक सेवन करें। ऐसा करने पर चिकनगुनिया का वायरस अपने आप मर जाता है। लगातार पानी से बनी चीजें लेते रहने से जल्दी रिकवरी होती है।
- चिकनगुनिया में जोड़ों में सारे बुखार में सबसे तेज दर्द होता है। यह जॉइंट पेन घुटने, एड़ी, पंजों, कुहनियों, हथेलियों में ज्यादा होता है। साथ ही अकड़न भी महसूस होती है।
- चिकनगुनिया में पेनकिलर दिया जा सकता है लेकिन यह तभी संभव है जब मरीज में यह कंफर्म हो जाए कि डेंगू नहीं है।

मलेरिया
मलेरिया एनाफिलिज मादा मच्छर के काटने से होता है।

क्या हैं लक्षण
तेज बुखार, सिर में दर्द, एक दिन छोड़कर ठंड के साथ बुखार आना

कौन-सा टेस्ट
रैपिड कार्ड (100 से 120 रुपये) या स्लाइड (100-120 रुपये) के जरिए मलेरिया टेस्ट किया जाता है।

बचाव और इलाज
मच्छरदानी का इस्तेमाल करें। घर, स्कूल, ऑफिस के आसपास पानी इकट्ठा न होने दें। लक्षण नजर आने पर फौरन डॉक्टर को दिखाएं।

कॉमन फ्लू
- फ्लू के तीन मुख्य वायरस होते हैं, जिनमें ए, बी और सी टाइप शामिल हैं। ए वायरस जानवरों और इंसान दोनों में होता है और बी, सी सिर्फ इंसानों में होता है।
- सबसे खतरनाक टाइप ए वायरस होता है। अगर मरीज को कोई और बीमारी भी है तो टाइप बी भी गंभीर हो सकता है, लेकिन सी कम खतरनाक होता है।
- ए और सी टाइप की चपेट में आने वाले ज्यादातर मरीजों को छींक आने, शरीर में दर्द, खांसी, नाक बहने और तेज बुखार जैसे लक्षण होते हैं, लेकिन टाइप सी से प्रभावित
लोगों में लक्षण स्पष्ट नहीं दिखते।
- हर बार मौसमी बदलाव के समय टाइप सी ज्यादा ऐक्टिव होता है, इसलिए पांच से सात दिन में लोग बिना मेडिकेशन के ठीक हो जाते हैं।

लक्षण और इलाज
-नाक से पानी बहना, गले में खराश, खांसी (सूखी या बलगम के साथ - सफेद, हरा या पीला बलगम)। पीले का मतलब बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है।
-लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक इन्फेक्शन में लक्षण गंभीर होते हैं, मसलन तेज बुखार और शरीर में तेज दर्द होगा और बलगम ज्यादा हो सकता है। इसमें मरीज को ऐंटिबैक्टीरियल ट्रीटमेंट लेना होता है।
- अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक इन्फेक्शन में नाक बहती है। यह आमतौर पर वायरल होता है। इसमें सिरदर्द आदि से राहत के लिए पैरासिटामॉल और जरूर हो तो ऐंटिएलर्जिक दवा देते हैं।
- अगर सिर्फ गले में खराश है तो बैक्टीरियल मानकर चलते हैं। उसमें भी ऐंटिबायॉटिक देते हैं। ज्यादातर ऐंटिबायॉटिक का पांच दिन का कोर्स होता है।

ध्यान रखें
- पहले से कोई बीमारी (डायबीटीज, लिवर, किडनी, दिल की बीमारी आदि) होने पर बुखार को हल्के में ना लें और डॉक्टर के पास फौरन जाएं। डॉक्टर को पहले से चल रहीं कुछ दवाएं फौरी तौर पर बंद करनी हो सकती हैं।
- बुखार में हेल्दी डाइट जरूर लें। हरी सब्जियां, फलों के साथ नॉर्मल खाना खाएं।
- तरल चीजें खूब लें। दिन में पानी और तरल चीजें मिलाकर करीब 12-15 गिलास जरूर लें। इनमें सूप, दूध, छाछ, लस्सी, नारियल पानी, ओआरएस का घोल, जूस, शिकंजी आदि लें।

नोट: यहां जो भी मेडिकल सलाह दी गई है, वह सिर्फ पाठकों की जानकारी बढ़ाने के लिए ही दी गई है जिससे इलाज के बारे में वे सही वक्त पर सही फैसला कर सकें। कोई भी दवा लेनी हो या टेस्ट कराना हो, डॉक्टर से पूछ लें। आखिरी फैसला अपने डॉक्टर पर छोड़ दें।

आंखों ही आंखों में...
बरसात के मौसम में कंजंक्टिवाइटिस काफी कॉमन समस्या है। कंजंक्टिवाइटिस को आई फ्लू या पिंक आई भी कहते हैं। यह 3 तरह का होता है: वायरल, एलर्जिक और बैक्टीरियल। आमतौर पर लक्षणों से पता लग जाता है कि किस टाइप का कंजंक्टिवाइटिस है। कई बार स्लिट लैंप माइक्रोस्कोप और कल्चर टेस्ट भी किया जाता है।

ऐसे करें बचाव
इस सीजन में किसी से भी (खासकर जिसे कंजंक्टिवाइटिस हो) हाथ मिलाने से भी बचें क्योंकि हाथों के जरिए इंफेक्शन फैल सकता है। दूसरों की चीजों का भी इस्तेमाल न करें। आंखों को दिन में 5-6 बार ताजे पानी से धोएं। बरसात के मौसम में स्विमिंग पूल में जाने से बचें। गर्मी के मौसम में अच्छी क्वॉलिटी का धूप का चश्मा पहनें। यह आंखों को तेज धूप, धूल और गंदगी से बचाता है, जो एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस के कारण होते हैं।

इलाज
- सुबह के वक्त आंख चिपकी मिले और कीचड़ आने लगे तो बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस हो सकता है। इसमें ब्रॉड स्पेक्ट्रम ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप्स जैसे सिप्रोफ्लॉक्सोसिन (Ciprofloxacin), ऑफ्लोक्सेसिन (Ofloxacin), स्पारफ्लोक्सेसिन (Sparfloxacin) यूज कर सकते हैं। एक-एक बूंद दिन में तीन से चार बार डाल सकते हैं।
- आंख लाल हो और उससे पानी गिर रहा हो तो वायरल और एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस हो सकता है। वायरल कंजंक्टिवाइटिस अपने आप 5-7 दिन में ठीक हो जाता है लेकिन इसमें बैक्टीरियल इंफेक्शन न हो, इसलिए ब्रॉड स्पेक्ट्रम (Spectrum) ऐंटिबायॉटिक आई-ड्रॉप का इस्तेमाल करते रहना चाहिए।
- आंख में चुभन और तेज खुजली हो, तेज रोशनी में चौंध लगे तो एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस हो सकता है। क्लोरफेनेरामिन (Chlorphenaramine) और सोडियम क्रोमोग्लाइकेट (Sodium Cromoglycate) जैसी ऐंटिएलर्जिक आई-ड्रॉप्स दिन में तीन बार एक-एक बूंद डाल सकते हैं।
नोट: कंजंक्टिवाइटिस में दवा डालने के 2-3 दिन में आराम न मिले तो आंखों के डॉक्टर की सलाह लें। यहां दवाओं के जेनरिक नाम दिए गए हैं। ये दवाएं बाजार में अलग-अलग ब्रैंड नामों से उपलब्ध हैं।

रखें ध्यान
- आंखों को दिन में 5-6 बार साफ पानी से धोएं। आंखों को मसलें नहीं क्योंकि इससे रेटिना में जख्म हो सकता है। ज्यादा समस्या होने पर खुद इलाज करने के बजाय डॉक्टर की सलाह लें।
- कंजंक्टिवाइटिस में स्टेरॉयड वाली दवा जैसे डेक्सामिथासोन (Dexamethasone), बीटामिथासोन (Betamethasone) आदि का इस्तेमाल न करें। अगर जरूरी है तो डॉक्टर की सलाह से ही आई-ड्रॉप्स डालें और उतने ही दिन, जितने दिन आपके डॉक्टर कहें। स्टेरॉयड वाली दवा के ज्यादा इस्तेमाल से काफी नुकसान हो सकता है।

बारिश में न होगी खारिश
बरसात में स्किन से जुड़ी कई समस्याएं बढ़ जाती हैं। इनमें खास हैं:

फंगल इन्फेक्शन
बारिश में रिंगवॉर्म यानी दाद-खाज की समस्या बढ़ जाती है। इसमें रिंग की तरह रैशेज़ जैसे नजर आते हैं। ये अंदर से साफ होते जाते हैं और बाहर की तरफ फैलते जाते हैं। इनमें खुजली होती है और एक से दूसरे शख्स में फैलते हैं।
इलाज: ऐंटिफंगल क्रीम क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से ग्राइसोफुलविन (Griseofulvin) या टर्बिनाफिन (Terbinafine) टैब्लेट ले सकते हैं। फंगल इन्फेक्शन बालों या नाखूनों में है तो खाने के लिए भी दवा दी जाती है। फ्लूकोनाजोल (Fluconazole) ऐसी ही एक दवा है।

फोड़े-फुंसी/दाने
इन दिनों फोड़े-फुंसी, बाल तोड़ के अलावा पस वाले दाने भी हो सकते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि ऐसा आम खाने से होता है, लेकिन यह सही नहीं है। असल में यह नमी में पनपने वाले बैक्टीरिया से होता है।
इलाज: दानों पर ऐंटिबायॉटिक क्रीम फ्यूसिडिक एसिड (Fusidic Acid) या म्यूपिरोसिन (Mupirocin) लगाएं। परेशानी बढ़ने पर क्लाइंडेमाइसिन (Clindamycin) लोशन लगा सकते हैं। ऐंटिऐक्ने साबुन एक्नेएड (Acne-Aid), एक्नेक्स (Acnex), मेडसोप (Medsop) आदि भी यूज कर सकते हैं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर ऐंटिबायॉटिक टैब्लेट देते हैं।

घमौरियां/रैशेज़
स्किन में ज्यादा नमी रहने से बैक्टीरिया रैशेज और घमौरियां पैदा करते हैं।
इलाज: ठंडे वातावरण यानी एसी और कूलर में रहें। घमौरियों और रैशेज पर कैलेमाइन (Calamine) लोशन लगाएं। बर्फ भी लगा सकते हैं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं।

ऐथलीट्स फुट
जो लोग लगातार जूते पहने रहते हैं, उनके पैरों की उंगलियों के बीच की स्किन गल जाती है। समस्या बढ़ जाए तो इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है।
इलाज: हवादार जूते-चप्पल पहनें। जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों पर पाउडर डाल लें। बीच-बीच में जूते उतार कर पैरों को हवा लगाएं। जहां इन्फेक्शन हो, वहां क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) क्रीम या पाउडर लगाएं। एक-दो दिन में फायदा नहीं हो तो डॉक्टर को दिखाएं। वह जरूरत पड़ने पर ऐंटिबायॉटिक या ऐंटिफंगल मेडिसिन देंगे।
नोट: यहां दवाओं के जेनरिक नेम दिए गए हैं, जो मार्केट में अलग-अलग ब्रैंड नेम से मिलती हैं।

बाल न बनें बवाल
मौसम बदलने पर बाल थोड़ा ज्यादा झड़ते हैं। बारिश के मौसम में अगर बालों को साफ और सूखा रखें तो झड़ने की शिकायत नहीं होगी:

फंगल इंफेक्शन
बारिश में बालों में पानी रहने से फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। डैंड्रफ भी एक किस्म का फंगल इन्फेक्शन ही है। हालांकि थोड़ी-बहुत डैंड्रफ होना सामान्य है लेकिन ज्यादा होने पर यह बालों की जड़ों को कमजोर कर देती है।
कैसे करें बचाव: बाल कटवाते वक्त हाइजीन का खास ख्याल रखें। देखें कि कंघी साफ हो। हो सके तो अपनी कंघी साथ लेकर जाएं।
इलाज: डैंड्रफ से छुटकारे के लिए इटोकोनाजोल (Etoconazole), जिंक पायरिथिओनाइन (Zinc Pyrithionine यानी ZPTO) या सिक्लोपिरॉक्स ऑलोमाइन (Ciclopirox Olamine) शैंपू का इस्तेमाल करें। बालों के बीच में फंगल इन्फेक्शन हो तो क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगा सकते हैं। यह जेनरिक नेम है। तेल न लगाएं वरना इन्फेक्शन फैल सकता है। फौरन डॉक्टर को दिखाएं।

ध्यान दें
- बाल प्रोटीन से बनते हैं, इसलिए हाई प्रोटीन डाइट जैसे कि दूध, दही, पनीर, दालें, अंडा (सफेद हिस्सा), फिश, चिकन आदि खूब खाएं।
- विटामिन-सी (मौसमी, संतरा, आंवला आदि), ऐंटिऑक्सिडेंट (सेब, ड्राई फ्रूट्स आदि) के अलावा सी फूड और हरी सब्जियां खूब खाएं।
- बाल ज्यादा देर गीले न रहें। ऐसा होने पर बाल झड़ सकते हैं।
- बालों को साफ रखें और हफ्ते में दो बार जरूर धोएं। जरूरत पड़ने पर ज्यादा बार भी धो सकते हैं।
- बाल नहीं धोने हैं तो नहाते हुए शॉवर कैप से बालों को अच्छी तरह ढक लें।
- बाल धोने के बाद अच्छी तरह सुखाएं। पंखे या ड्रायर को थोड़ा दूर रखकर बाल सुखा लें।
- मॉनसून के दिनों में बालों में तेल कम लगाएं क्योंकि मौसम में पहले ही नमी काफी होती है।

पेट की गड़बड़ी
बरसात में खराब खाने और पानी के इस्तेमाल से पेट में इन्फेक्शन यानी गैस्ट्रोइंटराइटिस हो जाता है। ऐसा होने पर मरीज को बार-बार उलटी, दस्त, पेट दर्द, शरीर में दर्द या बुखार हो सकता है।

डायरिया
डायरिया गैस्ट्रोइंटराइटिस का ही रूप है। इसमें अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं, लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां न हों, पर दस्त खूब हो रहे हों। यह स्थिति खतरनाक है। डायरिया आमतौर पर 3 तरह का होता है :
वायरल: वायरस के जरिए ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है। यह सबसे कम खतरनाक होता है। इसमें पेट में मरोड़ के साथ लूज मोशंस और उलटी आती है। काफी कमजोरी भी महसूस होती है।
इलाज: वायरल डायरिया में मरीज को ओआरएस का घोल या नमक और चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। उलटी रोकने के लिए डॉमपेरिडॉन (Domperidone) और लूज मोशंस रोकने के लिए रेसेसाडोट्रिल (Racecadotrill) दे सकते हैं। पेट में मरोड़ हैं तो मैफटल स्पास (Maflal spas) दे सकते हैं। 4 घंटे से पहले दोबारा टैब्लेट न लें। एक दिन में उलटी या दस्त न रुकें तो डॉक्टर के पास ले जाएं।

बैक्टीरियल: इस तरह के डायरिया में तेज बुखार के अलावा पॉटी में पस या खून आता है।
इलाज: इसमें ऐंटिबायॉटिक दवाएं दी जाती हैं। अगर किसी ने बहुत ज्यादा ऐंटिबायॉटिक दवाएं खाई हैं, तो उसे साथ में प्रोबायॉटिक्स भी देते हैं। दही प्रोबायॉटिक्स का बेहतरीन नेचरल सोर्स है।

प्रोटोजोअल: इसमें भी बैक्टीरियल डायरिया जैसे ही लक्षण दिखाई देते हैं।
इलाज: प्रोटोजोअल इन्फेक्शन में ऐंटी-अमेबिक दवा दी जाती है।

रखें ध्यान
यह गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना-पानी नहीं देना चाहिए। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें, जैसे कि नारियल पानी, नींबू पानी (हल्का नमक और चीनी मिला), छाछ, लस्सी, दाल का पानी, ओआरएस का घोल, पतली खिचड़ी, दलिया आदि। सिर्फ तली-भुनी चीजों से मरीज को परहेज करना चाहिए।

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आओ समझाएं रिटर्न का फंडा...

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इनकम टैक्स रिटर्न भरने की आखिरी तारीख नजदीक आ गई है। फाइनैंशल इयर 2016-17 (असेसमेंट इयर 2017-18) के लिए 31 जुलाई तक आप रिटर्न फाइल कर सकते हैं। कुछ बदलावों की वजह से इस बार आईटीआर कुछ हटकर है। आईटीआर से जुड़ीं जानकारियां और ऑनलाइन रिटर्न भरने का तरीका बता रहे हैं आशीष रंजन

नोटबंदी और इनकम टैक्स रिटर्न के फॉर्म में कुछ बदलावों की वजह से इस साल रिटर्न आईटीआर फाइल करने में सावधानी बरतने की जरूरत है। फिर सभी बैंक अकाउंट के पैन और आधार से जुड़ना अनिवार्य कर दिए जाने की वजह से भी आईटीआर फाइल करना दूसरे बरसों की तुलना में थोड़ा अलग है। इस बार आईटीआर फाइल करते समय आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से आपकी आमदनी छिपी हुई बिल्कुल न हो। ऐसे में आपका एक भी गलत दावा आपको परेशानी में डाल सकता है।

किसे भरना है रिटर्न और किसे नहीं
फाइनैंशल इयर 2016-17 के स्लैब के हिसाब से छूट की सीमा 60 साल से कम के पुरुषों और महिलाओं के लिए 2.5 लाख रुपये है। 60 साल या उससे ज्यादा उम्र के बुजुर्गों के लिए यह सीमा 3 लाख रुपये है और 80 साल या उससे ज्यादा उम्र के सुपर सीनियर सिटिजन के लिए 5 लाख तक की आमदनी टैक्स-फ्री है।

साल भर में हुई कुल इनकम में से HRA, मेडिकल और कन्वेंस आदि Exemption घटाने के बाद जो रकम बचती है, उसके हिसाब से रिटर्न भरने या न भरने का फैस्ला होता है। यह 80C आदि Deduction घटाने से पहले की रकम है।

अगर चैप्टर VIA के इन्वेस्टमेंट और ब्याज की छूट लेने से पहले आपकी इनकम इस सीमा से ज्यादा है तो आपको रिटर्न भरना होगा। मतलब यह है कि इनवेस्टमेंट पर मिलने वाली छूट के बाद अगर टैक्सेबल इनकम इस लिमिट से कम हो रही है तो भी रिटर्न भरना होगा। मान लें, आपकी ग्रॉस इनकम 3 लाख रुपये है और उम्र 60 साल से कम है। आपने 80 सी में पीपीएफ और इंश्योरेंस पॉलिसी में 60 हजार रुपये इनवेस्ट कर दिए। इससे आपकी टैक्सेबल इनकम हो गई 2 लाख 40 हजार रुपये। अब यह 2.5 लाख की एग्जम्प्शन लिमिट से कम है, लेकिन रिटर्न भरना होगा क्योंकि डिडक्शन से पहले की इनकम तीन लाख है।




कुछ ऐसे खास बदलाव जो फाइनैंशल इयर 2016-17 पर लागू हुए हैं
1. ITR1 (सहज) से सभी सैलरी वाले अपना रिटर्न फाइल कर सकते हैं, जिनकी इनकम सालाना 50 लाख रुपये तक है। ITR 2 से वैसे सैलरी वाले अपना रिटर्न फाइल कर सकते हैं जिनकी सालाना आमदनी 50 लाख से ज्यादा है।

2. आईटीआर फॉर्म में इस बार एक स्पेशल कॉलम दिया गया है जिसमें आपको नोटबंदी के दौरान (8 नवंबर से 30 दिसंबर के बीच) अपने अकाउंट में जमा किए गए 2 लाख रुपये या इससे ज्यादा के रकम का विवरण देना होगा। इसके लिए आपको अपना अकाउंट नंबर, बैंक का IFSC कोड और जितनी रकम जमा कराई है, उसका विवरण देना होगा।

3. आपको अपना 12 डिजिट का आधार नंबर भी अपने पैन से लिंक करना अनिवार्य है।

4. अब ITR1 से संपत्ति व दायित्व का कॉलम हटा लिया गया है। अभी तक ITR1 में ही लोग अपनी संपत्ति और दायित्व का विवरण देते थे, लेकिन इस बार 50 लाख रुपये तक की आमदनी वाले ही ITR1 भरेंगे इसलिए इस कॉलम को हटाकर ITR2 में डाला गया है जो 50 लाख से ज्यादा इनकम वाले लोगों के लिए है।

5. इस बार फॉर्म की संख्या भी कम कर दी गई है। पहले 9 तरह के फॉर्म थे, इस बार सिर्फ 7 फॉर्म रह गए हैं।

रिटर्न भरने की आखिरी तारीख
31 जुलाई 2017 - सैलरीड लोगों के लिए रिटर्न भरने की आखिरी तारीख। बिजनस वाले, प्रफेशनलों के लिए भी यही लास्ट डेट है, बशर्ते आमदनी की ऑडिटिंग न कराते हों। बिजनस में ऑडिटिंग की जरूरत उन्हें है, जिनकी टैक्सेबल इनकम 1 करोड़ से ज्यादा होती है।

30 सितंबर 2017 - उन लोगों, फर्मों और कंपनियों के लिए है आखिरी तारीख, जिनके लिए अपनी सालाना आमदनी की ऑडिटिंग कराना जरूरी होता है।

31 मार्च 2018 - अगर आपका टीडीएस आपकी कंपनी ने काट लिया है और आप पर टैक्स की कोई देनदारी नहीं बनती, तो आप 31 मार्च 2018 तक भी बिना किसी पेनल्टी के इनकम टैक्स रिटर्न भर सकते हैं।

किसके लिए कौन-सा फॉर्म
सबसे पहले यह तय कीजिए कि आमदनी के सोर्स के आधार पर कौन-सा आईटीआर फॉर्म आपके लिए मुफीद है। इस साल इसके लिए 7 तरह के फॉर्म जारी किए गए हैं।

आईटीआर फॉर्म नंबर 1 से लेकर फॉर्म नंबर 4 तक इंडिविजुअल के लिए है:

ITR 1 (SAHAJ)
यह ऐसे इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स के लिए है, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है:

सैलरी या पेंशन या मकान के किराए से 50 लाख रुपये तक की कमाई। कमर्शल प्रॉपर्टी के किराए से अगर कमाई हो रही है तो भी यही फॉर्म है। जिन लोगों को सैलरी या पेंशन से इनकम होती है और उनके पास एक घर है या कोई घर नहीं है, वे भी इसे भरेंगे।

इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर...
आपकी आमदनी एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी से होती हो
विदेश से कोई इनकम हो या कोई फॉरेन असेट हो
किसी सोर्स से कैपिटल गेंस हुआ हो
खेती से आय 5000 रुपये सालाना से ज्यादा हो
किसी बिजनस या प्रफेशन से आमदनी होती हो
इनकम फ्रॉम अदर सोर्सेज में लॉस दिखाना हो

ITR 2
ऐसे टैक्सपेयर्स और हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली (HUF) के लिए, जिन्हें इन तरीकों से आमदनी होती है :

सैलरी या पेंशन से 50 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी
एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी
किसी सोर्स से कैपिटल गेंस हुआ हो।
दूसरे सोर्स से आमदनी, लॉटरी समेत
किसी फर्म में पार्टनरशिप से आमदनी हो
एग्रीकल्चरल इनकम सालाना 5000 रुपये से ज्यादा हो

इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर...
बिजनस या प्रफेशन से आमदनी

ITR 3
फर्म के ऐसे पार्टनर्स के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है:
सैलरी या पेंशन
एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी
कैपिटल गेंस, किसी इन्वेस्टमेंट की बिक्री से
दूसरे सोर्स से, जिसमें लॉटरी भी शामिल है।
पार्टनरशिप फर्म का प्रॉफिट

इस फॉर्म का इस्तेमाल न करें अगर...
आपके पास सोल प्रॉपराइटरशिप फर्म से इनकम है।

ITR 4
ऐसे टैक्सपेयर्स के लिए, जिन्हें नीचे दिए तरीकों से आमदनी होती है:
प्रिजम्प्टिव इनकम स्कीम के तहत आने वाले बिजनस से
एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी हो

ITR फॉर्म 5 से लेकर 7 तक नॉन-इंडिविजुअल के लिए हैं।


डिडक्शंस की लिस्ट
80C, 80CCC और 80CCD में इन आइटम्स में छूट मिलती है। इसकी सीमा फाइनैंशल इयर 2016-17 के लिए 1.5 लाख रुपये तक है।

पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF)
एंप्लॉयी प्रॉविडेंट फंड (EPF), बैंक एफडी
दो बच्चों की ट्यूशन फीस
सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम
होम लोन के रीपेमेंट में प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर दी जाने वाली रकम
लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए प्रीमियम जो आप चुकाते हैं।
नैशनल सेविंग्स स्कीम (NSC)
इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम यानी ELSS
सुकन्या समृद्धि योजना में किया गया इन्वेस्टमेंट
नैशनल पेंशन स्कीम (NPS) में अधिकतम 50 हजार रुपये
स्टांप ड्यूटी, प्रधानमंत्री सहायता कोष में दिया गया दान (80G) में
राजनीतिक दलों को दिया गया चंदा 80GGC में

1.5 लाख के अलावा
इन आइटमों में भी छूट मिलती है, जो 1.5 लाख की सीमा से अलग है:

80D : हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का प्रीमियम 60 साल की उम्र तक ₹25000 रुपये, लेकिन 60 साल या उससे ज्यादा उम्र के हैं तो 30 हजार रुपये तक।
24B : होम लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। इसकी सीमा 2 लाख रुपये है।
80E : हायर स्टडीज के लिए लिए गए एजुकेशन लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। कोई सीमा नहीं।

रिटर्न भरने की तैयारी
आमतौर पर हमलोग रिटर्न भरने को बड़ा टास्क मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। अगर आप कुछ शुरुआती तैयारियों के बारे में जान लें तो काम आसान हो जाएगा। रिटर्न फाइल करने में आपको इनसे मदद मिल जाएगी। रिटर्न भरने से पहले नीचे दिए गए कागजात आप अपने पास रखें। याद रखें कि रिटर्न फाइल करने के समय आपसे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को कोई कागज नहीं चाहिए।

फॉर्म 16
जो सैलरीड हैं, यह फॉर्म अब तक उनके एम्प्लॉयर ने उन्हें दे दिया होगा। आपकी सैलरी से जो टीडीएस पिछले फाइनैंशल इयर में काटा गया होगा, वह इसमें दर्ज होगा।

TDS सर्टिफिकेट
अगर सैलरी के अलावा किसी दूसरे स्रोतों से भी आपको आमदनी हुई हो और उस पर टीडीएस कट चुका हो तो उस संस्था से भी टीडीएस सर्टिफिकेट ले लें। रेंटल इनकम, शेयर, एफडी वगैरह से होने वाली इनकम के मामले में टीडीएस सर्टिफिकेट की जरूरत होती है।

फॉर्म 26AS
फॉर्म 26 एएस से आप यह पता लगा सकते हैं कि कंपनी या बैंक ने आपका जो टीडीएस काटा है, उसे सरकार के पास जमा भी कराया है या नहीं। इससे यह जरूर सुनिश्चित कर लें कि आपका काटा गया टीडीएस इनकम टैक्स विभाग के पास पहुंच गया है। इस टीडीएस का ब्योरा आप दो तरह से देख सकते हैं।
अगर आप इनकम टैक्स रिटर्न की साइट incometaxindiaefiling.gov.in पर रजिस्टर्ड हैं तो इस वेबसाइट पर जाकर लेफ्ट साइड में View Form 26AS पर क्लिक करें। अगर बैंक पिछले फाइनैंशल आपका टीडीएस काट चुका है और आप नेट बैंकिंग इस्तेमाल करते हैं तो बैंक की वेबसाइट पर जाकर View Your Tax Credit पर क्लिक करके फॉर्म 26 एएस देख सकते हैं। यहां आपको उस बैंक में की गई एफडी आदि से जुड़ी जानकारी भी मिल जाएगी।

बैंक स्टेटमेंट्स
सभी सेविंग्स अकाउंट्स की साल भर (1 अप्रैल 2016 से 31 मार्च 2017 तक) की स्टेटमेंट ले लें। इसकी मदद से आपको यह पता चलेगा कि इस फाइनैंशल इयर में बैंक ब्याज के तौर पर आपको कितनी आमदनी हुई। ब्याज की इस आमदनी को आपको रिटर्न में दिखाना होगा।

दूसरे जरूरी दस्तावेज
पैन नंबर और बैंक की डिटेल्स आपके पास होनी चाहिए। बैंक का IFSC नंबर रिटर्न में भरा जाता है। इसी से रिफंड का पैसा आपके अकाउंट में आता है।
आपको आधार नंबर की भी जरूरत होगी। अगर आपने आधार कार्ड नहीं बनवाया है तो जल्दी से बनवा लें।
नोटबंदी के दौरान यदि आपने अपने किसी खाते में 2 लाख या इससे ज्यादा रकम जमा कराया है तो आपको वह अकाउंट नंबर और जमा रकम का विवरण भी देना होगा। ये डिटेल्स भी अपने पास रखें।





जानें कुछ बेसि क टर्म्स

फाइनैंशल इयर
1 अप्रैल से 31 मार्च तक के समय को फाइनैंशल इयर कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर 1 अप्रैल 2016 से 31 मार्च 2017 तक के समय को फाइनैंशल इयर 2016-17 कहा जाएगा। अभी हम जो रिटर्न भर रहे हैं, वह फाइनैंशल इयर 2016-17 के लिए है।

असेसमेंट इयर
असेसमेंट इयर फाइनैंशल इयर से आगे वाला साल होता है यानी जिस साल उस फाइनैंशल इयर के टैक्स संबंधी मामलों का असेसमेंट किया जाता है। मसलन फाइनैंशल इयर 2016-17 के लिए असेसमेंट इयर 2017-18 होगा।

डिडक्शंस
विभिन्न तरह की इन्वेस्टमेंट पर इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपको टैक्स में छूट मिलती है। ये कई तरह के आइटम होते हैं, जहां इन्वेस्टमेंट करके टैक्स में छूट हासिल की जा सकती है। मसलन सेक्शन 80सी से सेक्शन 80यू तक जो भी आइटम हैं, उन्हें डिडक्शन के तहत माना जाता है।

ग्रॉस इनकम
टैक्स-फ्री आमदनी और अलाउंसेस को छोड़कर आपकी साल की कुल आमदनी जो भी है, उसे ग्रॉस इनकम कहा जाता है। ग्रॉस इनकम हमेशा 80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन से पहले वाली इनकम होती है।

टैक्सेबल इनकम
ग्रॉस इनकम में से 80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन क्लेम कर लेने के बाद जो इनकम आती है, उसे टैक्सेबल इनकम कहते हैं, यानी डिडक्शन से पहले वाली इनकम ग्रॉस इनकम और डिडक्शन के बाद वाली इनकम को टैक्सेबल इनकम कहते हैं।

टीडीएस
आपकी जो भी आमदनी होती है, सरकार उस पर टैक्स काटती है। इसे टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स कहा जाता है। जो संस्था आपको पेमेंट कर रही है, वही टैक्स की इस रकम को काटकर बाकी रकम आपको पे करती है। मसलन आपकी कंपनी आपको जो सैलरी देती है, वह उस पर बनने वाले टैक्स को काटकर बाकी रकम आपके खाते में ट्रांसफर करती है। टीडीएस काटने का काम एंम्प्लॉयर या पेमेंट करने वाली संस्था का है। इसे काटना या जमा करना लेने वाले की जिम्मेदारी नहीं है। आमतौर पर जब कोई संस्था किसी काम के बदले आपको भुगतान करती है, तो वह 10 फीसदी की दर से टीडीएस काटती है।

सीनियर सिटिजन
जिन लोगों की उम्र 31 मार्च 2017 को 60 साल या उससे ज्यादा थी, उन्हें सीनियर सिटिजन माना जाएगा। सुपर सीनियर सिटिजन इसी तरह जिन लोगों की उम्र 31 मार्च 2017 को 80 साल से ज्यादा थी, वे सुपर सीनियर सिटिजंस होंगे। आप जिस फाइनैंशल इयर का रिटर्न भर रहे हैं, उसके अंतिम दिन 31 मार्च को उम्र की गिनती की जाती है।

इनकम टैक्स रिफंड
अगर किसी टैक्सपेयर ने सरकार को ज्यादा टैक्स दे दिया है, तो वह उस रकम को सरकार से वापस ले सकता है। इस वापस आई रकम को ही रिफंड कहा जाता है। टैक्स रिटर्न भरकर आप इस एक्स्ट्रा रकम को इनकम टैक्स विभाग से क्लेम करते हैं। इसके बाद रिफंड की यह रकम आपको इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपके अकाउंट में भेज दी जाती है।

फॉर्म 16A
अगर सैलरी के साथ-साथ दूसरे जरियों से भी आपको आमदनी हुई हो और उस पर टीडीएस कट चुका हो तो उस संस्था से भी टीडीएस सर्टिफिकेट ले लें। इस सर्टिफिकेट को ही फॉर्म 16ए कहा जाता है। यहां हम रेंटल इनकम, शेयर, एफडी वगैरह से होने वाली इनकम की बात कर रहे हैं। एफडी के मामले में आपका बैंक आपको यह सर्टिफिकेट देगा।

फॉर्म 16
अगर आप कहीं नौकरी करते हैं तो आपका एम्प्लॉयर आपको एक फॉर्म 16 देता है। यह फॉर्म अब तक आपके एम्प्लॉयर ने आपको दे दिया होगा। यह इस बात को साबित करता है कि एम्प्लॉयर ने आपकी सैलरी से अगर टैक्स बनता है, तो टीडीएस काटा है। इनकम टैक्स के नियमों के मुताबिक हर एम्प्लॉयर के लिए जरूरी है कि वह फॉर्म 16 अपने कर्मचारियों को दे। अगर आपका एम्प्लॉयर आपको यह फॉर्म नहीं दे रहा है तो आप इसकी रिक्वेस्ट उसे रजिस्टर्ड डाक से भेजें और इसका सबूत अपने पास रखें। इनकम टैक्स विभाग के पूछताछ करने पर यह सबूत दिखाया जा सकता है।

फॉर्म 26AS
फॉर्म 26एएस एक कंसॉलिडेटेड टैक्स स्टेटमेंट है। इसमें खासतौर से तीन तरह के ब्योरे होते हैं। पहला टीडीएस का ब्योरा, दूसरा टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स का ब्योरा और तीसरा टैक्सपेयर द्वारा बैंक में जमा कराया गया एडवांस टैक्स/सेल्फ असेसमेंट टैक्स का ब्योरा। फॉर्म 26 एएस से आप यह पता लगा सकते हैं कि कंपनी या बैंक ने आपका जो टीडीएस काटा है, उसे सरकार के पास जमा कराया भी है या नहीं।

आसान है इनकम टैक्स रिर्टन भरना
इनकम टैक्स रिटर्न भरना आसान है। अगर आप खुद नहीं भर सकते तो प्रफेशनल्स की मदद ले सकते हैं। आइए जानते हैं रिटर्न भरने के बारे में:

रिटर्न आप दो तरह से भर सकते हैं - मैन्युअली और ऑनलाइन। यहां आपके लिए यह जानना जरूरी है कि अगर आपकी आमदनी 5 लाख रुपये तक सालाना है और वह भी सैलरी से, तभी आप मैन्युअली रिटर्न फाइल कर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो आपको रिटर्न ऑनलाइन ही फाइल करना होगा।

मैन्युअली रिटर्न फाइल
मैन्युअली रिटर्न भरने के लिए फॉर्म किसी स्टेशनरी की दुकान से ले सकते हैं या फिर साइट www.incometaxindia.gov.in से डाउनलोड कर लें। अब सवाल यह कि रिटर्न फाइल करेगा कौन? रिटर्न आप खुद भी फाइल कर सकते हैं। सैलरीड क्लास के लिए जरूरी आईटीआर1 फॉर्म भरना आसान ही है। हालांकि दूसरे फॉर्म भी आसान ही हैं, बावजूद इसके अगर आपको लगता है कि आप खुद से फाइल नहीं कर सकते तो आप किसी सीए, इनकम टैक्स के वकील या इनकम टैक्स विभाग के Tax Return Preparer (TRP) को फीस देकर भी रिटर्न फाइल कर सकते हैं।

आप इनकम टैक्स विभाग में जाकर ऑफलाइन रिटर्न जमा कर सकते हैं या करवा सकते हैं। हालांकि अब लोग ऑनलाइन ही रिटर्न फाइल करना पसंद करते हैं क्योंकि यह बेहद आसान है और समय की भी काफी बचत करता है। आप भी ऐसा कर सकते हैं।

जमा कहां करें
सैलरीड क्लास (जिनकी आमदनी 5 लाख रुपये तक है) के जो लोग ऑफलाइन रिटर्न भर रहे हैं, वे अपने शहर में असेसमेंट ऑफिसर के पास रिटर्न जमा करा सकते हैं। असेसमेंट ऑफिसर के बारे में जानने के लिए incometaxindiaefiling.gov.in/ पर जाएं और वहां ऊपर मौजूद Accessibility Options पर क्लिक करें। यहां Services में जाकर Know Your Jurisdiction AO पर क्लिक करें। नई विंडो में आपसे पैन और मोबाइल नंबर मांगा जाएगा। जानकारी देकर Submit पर क्लिक करें। अपने वॉर्ड से संबंधित पूरी जानकारी आपके सामने होगी। अगर आपने पिछले एक साल में नौकरी बदली है तो संभव है कि नए एम्प्लॉयर के हिसाब से आपका वॉर्ड बदल जाए। वेबसाइट से यह पता लगाने में दिक्कत हो और नौकरी न बदली हो तो पिछले साल भरे गए रिटर्न की रसीद से भी आप अपना वॉर्ड पता लगा सकते हैं।

ऑॅनलाइन रिटर्न ऐसे फाइल करें
ऑनलाइन रिटर्न फाइल करना बेहद आसान है। इसकी एक बड़ी खासियत यह है कि इससे रिफंड जल्दी आ जाता है। आजकल ऐसी तमाम साइट्स हैं जो ई-रिटर्न भरना आपके लिए आसान बना देती हैं, लेकिन इसके लिए आपसे पैसे भी चार्ज करती हैं। वैसे, अगर आप फ्री में ई-रिटर्न फाइल करना चाहते हैं तो इनकम टैक्स विभाग की साइट incometaxindiaefiling.gov.in से भर फाइल कर सकते हैं। इसके लिए नीचे दिए गए स्टेप्स को फॉलो करें :

साइट incometaxindiaefiling.gov.in पर जाएं। राइट साइड में Downloads के नीचे ITR Forms- AY 2017-18 मेन्यू में से जिस भी सोर्स से आपकी आमदनी है, उसके अनुसार अपना फॉर्म चुनें। यहां डाउनलोड के लिए दो ऑप्शन आपको मिलेंगे। आप जरूरी फॉर्म के सामने Excel Utility पर क्लिक करें। एक डायलॉग बॉक्स खुलेगा। उसमें Save File ऑप्शन क्लिक करें और फॉर्म को डेस्कटॉप पर सेव कर लें।

अब इस फॉर्म को ऑफलाइन ही भर लें। बीच-बीच में फॉर्म को वैलिडेट करते जाएं। इससे अगर कहीं कुछ गड़बड़ होगी तो पकड़ में आ जाएगी। फॉर्म भर लेने के बाद Generate XML पर क्लिक करके इसका एक्सएमएल वर्जन तैयार कर लें। अब आपका रिटर्न फॉर्म फाइल होने के लिए तैयार है।

अब इनकम टैक्स की साइट पर जाएं। अगर पहले से रजिस्टर्ड हैं तो अपना लॉगइन और पासवर्ड डालकर आगे बढें। अगर रजिस्टर्ड नहीं हैं तो रजिस्ट्रेशन कराएं और अकाउंट और पासवर्ड हासिल करें। इसके लिए incometaxefiling.gov.in पर जाएं। यहां राइट साइड पर New To e-Filing? के नीचे Register Youeself बटन पर क्लिक करें। यहां select User Type के नीचे दिए गए ऑप्शन में से अपने लिए सही टाइप चुनें मसलन इंडिविजुअल, एचयूएफ, कंपनी आदि में से कोई एक। इसे सिलेक्ट करने के बाद Continue पर क्लिक करें। एक नया पेज खुल जाएगा जहां आपसे पैन के साथ-साथ इंडिविजुअल या कंपनी का नाम आदि कुछ बेसिक सूचनाएं मांगकर आपका रजिस्ट्रेशन हो जाएगा।

इतना कुछ करने के बाद आपको यूजर आईडी और पासवर्ड मिल चुका होगा। आप फिर से incometaxefiling.gov.in पर जाएं और आईडी और पासवर्ड की मदद से लॉगइन करें। यहां पर e-file में जाकर Upload Return पर क्लिक कर दें। रिटर्न की एक्सएमएल फाइल ब्राउज करके उसे अपलोड कर दें। फाइल अपलोड हो जाने के बाद अकनॉलिजमेंट फॉर्म आएगा। अगर आपके पास डिजिटल साइन हैं, तो डिजिटल साइन दे दीजिए। रिटर्न का प्रॉसेस यहीं पूरा हो गया।

अगर आपके पास डिजिटल साइन नहीं हैं और न ही ई वेरिफिकेशन, तो इस अकनॉलिजमेंट फॉर्म का प्रिंट लेकर उस पर अपना साइन करें और 120 दिनों के अंदर इसे साधारण पोस्ट या स्पीड पोस्ट से इस पते पर भेज दें :
CPC
Post Bag No.1,
Electronic City Post Office,
Bengaluru- 560100
Karnataka

15-20 दिन में इनकम टैक्स विभाग की तरफ से इस बात का अकनॉलिजमेंट आपके पास ई-मेल और एसएमएस से आ जाएगा कि आपका रिटर्न भरने का काम सफलतापूर्वक पूरा हो गया। अगर इतने दिनों में रिटर्न का अकनॉलिजमेंट मेल न आए तो दोबारा अकनॉलिजमेंट भेज दें। फोन नंबर 080-43456700 पर कॉल कर भी आप इससे संबंधित पूछताछ कर सकते हैं। सीपीसी सेंटर के नंबर 1800 4250 0025 पर आप सुबह 9 बजे से रात 8 बजे तक ई फाइलिंग का स्टेटस जान सकते हैं। सीपीसी सेंटर के एक दूसरे नंबर 1800 425 2229 पर कॉल कर आप अपने रिफंड का स्टेटस जान सकते हैं।

- अगर आपने पिछली बार ऑनलाइन रिटर्न भरा था तो इस बार भी ऑनलाइन ही भरना होगा। ऐसा करना बहुत आसान है। आपको बस आमदनी के डिटेल्स भरने होंगे। बाकी सारे डिटेल्स खुद ब खुद आ जाएंगे।

TRP की मदद से ऐसे करें फाइल
इसके लिए आपको एक टीआरपी ढूंढना होगा। इसके लिए trpscheme.com पर जाएं। यहां ऊपर ही मौजूद Locate TRP पर क्लिक करें। आपको गूगल मैप दिखेगा और उसके नीचे कुछ सूचनाएं मांगी जाएंगी। यहां ऊपरी लाइन में मौजूद State, City और Pin Code भरें और Search पर क्लिक कर दें। क्लिक करते ही आपके सामने आपके क्षेत्र के टीआरपी के नाम, पते और फोन नंबर मिल जाएंगे। आप उनमें से किसी से भी संपर्क कर सकते हैं। समय-समय पर इनकम टैक्स विभाग टीआरपी के बारे में अखबारों में भी सूचना देता रहता है। टोल-फ्री नंबर 1800-10-23738 पर कॉल करके भी टीआरपी से संबंधित सूचनाएं हासिल की जा सकती हैं। यह लाइन सोमवार से शनिवार तक सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक खुली रहती है।

- टीआरपी फॉर्म 16 की मदद से रिटर्न भरेगा और जमा करेगा। रिटर्न जमा करने के बाद टीआरपी आपको उसकी रसीद देगा। रिटर्न भरने में कोई गड़बड़ी होती है तो इसके लिए टीआरपी जिम्मेदार होगा। याद रखें कि टीआरपी से उसका आईकार्ड जरूर मांगें और उसे डॉक्युमेंट्स की फोटोस्टेट कॉपी ही दें ऑरिजिनल नहीं।

- कोई भी टीआरपी देश में कहीं भी मौजूद आदमी का रिटर्न भर सकता है।

- टीआरपी इसके लिए मैक्सिमम 250 रुपये तक चार्ज कर सकता है।

ऑनलाइन रिटर्न फाइल का खर्च कितना :
अगर आप इनकम टैक्स की सरकारी साइट से भर रहे हैं तो कोई खर्च नहीं है। किसी प्राइवेट साइट से भरते हैं तो 100 से 750 रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं। पेड साइट्स की मदद से कुछ पैसे खर्च करके भी आप अपना रिटर्न फाइल कर सकते हैं।
Taxsmile.com
Myitreturn.com
Taxspanner.com
Cleartax.com

बचें 10 टॉप गलतियों से:

1. रिटर्न भरने में देरी
इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने में देरी न करें और बेहतर यही रहेगा कि समय रहते रिटर्न फाइल कर दें। अगले साल से तो अगर रिटर्न समय पर फाइल नहीं करेंगे तो 5000 रुपये की पेनल्टी देनी होगी।

2. रिटर्न न फाइल करना
आमतौर पर लोग सोचते हैं कि अगर टैक्स की कोई देनदारी नहीं है, तो आईटी रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है। आप भी यही सोचते हैं तो आप गलत हैं। रिटर्न भरने से आजादी सिर्फ उन लोगों को है, जिनकी सालाना ग्रॉस इनकम बेसिक एग्जेंप्शन लेवल से कम है।

3. आईटीआर फॉर्म गलत चुनना
आप देखें कि आपकी आय का जरिया क्या-क्या है। इनकम के अलग-अलग सोर्स के हिसाब से फॉर्म अलग-अलग हैं। किसे कौन-सा फॉर्म भरना है, इसके लिए बाकायदा नियम हैं। कई बार लोग गलत फॉर्म चुन लेते हैं। अपनी कैटिगरी के हिसाब से सही रिटर्न फॉर्म चुनें और उसे ही भरें। आपकी आमदनी यदि सिर्फ सैलरी से है तो ITR1 ही भरें, लेकिन यदि आमदनी का इसके अलावा भी कोई सोर्स है तो आपके लिए अलग फॉर्म होगा।

4. सोच-समझकर करें फॉर्म पर साइन
अगर आप खुद से फॉर्म नहीं भर रहे हैं तो सावधान रहें। अक्सर आपका अकाउंटेंट साइन कराकर खाली रिटर्न फॉर्म पर रख लेता है और बाद में उस फॉर्म को भरकर जमा कर देता है। खाली फॉर्म पर साइन न करें। फॉर्म भरने में अकाउंटेंट से गलती हो गई तो आपको ही दिक्कत होगी। इसलिए भरे हुए रिटर्न फॉर्म को अच्छी तरह जांचने के बाद ही उस पर साइन करें।

5. ध्यान से भरें फॉर्म
रिटर्न फॉर्म में पैन, आईएफएस कोड, अकाउंट नंबर, एम्प्लॉयर का टैन जैसी कुछ फिगर्स ऐसी होती हैं, जिन्हें भरते वक्त गलती होने की आशंका रहती है। इन नंबरों को ध्यान से भरें। फर्ज करें कि आपने अपने पैन का एक डिजिट गलत भर दिया। ऐसी स्थिति में आपका रिटर्न रिजेक्ट हो जाएगा और इसके लिए इनकम टैक्स विभाग आपके ऊपर जुर्माना लगा सकता है।

6. ई-वेरिफिकेशन नहीं तो अकनॉलिजमेंट जरूरी
आप ई-फाइलिंग कर रहे हैं, लेकिन डिजिटल साइन व ई-वेरिफिकेशन का यूज नहीं कर रहे हैं, तो आपको रिटर्न का प्रिंट लेकर बेंगलुरु भेजना जरूरी है। अक्सर लोग अकनॉलिजमेंट भेजना भूल जाते हैं और रिटर्न रिजेक्ट हो जाता है। यह काम ऑनलाइन रिटर्न भरने के 4 महीने के भीतर कर लें। अकनॉलिजमेंट फॉर्म साधारण पोस्ट या स्पीड पोस्ट से ही भेजें।

7. फॉर्म 16 जरूर लें
अगर आपने फाइनैंशल इयर के दौरान नौकरी बदली है तो अपने दोनों एम्प्लॉयर से फॉर्म 16 जरूर ले लें। अपने पहले एम्प्लॉयर के साथ काम के दौरान की गई सेविंग्स और उससे हुई आमदनी अगर आपने अपने नए एम्प्लॉयर को नहीं बताई है तो हो सकता है कि वह कम टैक्स काटे। लेकिन याद रखिए कि यह चालाकी चलेगी नहीं। संभव है कि बाद में आपको कम काटा गया टैक्स ब्याज समेत भरना पड़ेगा। दरअसल, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट 26 एएस से आपके रिटर्न को वेरिफाई कर सकता है। 26 एएस में आपके एडवांस टैक्स, मिले ब्याज, टीडीएस और आय के अन्य स्रोतों का विवरण रहता है।

8. बैंक ब्याज का जिक्र जरूरी
कई बार लोग फिक्स्ड डिपॉजिट और सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज का जिक्र अपने इनकम टैक्स रिटर्न में नहीं करते हैं। उन्हें लगता है कि बैंक ने टीडीएस तो काट ही लिया है इसलिए उस आमदनी को रिटर्न में दिखाने की अब उन्हें कोई जरूरत नहीं। यह सोच पूरी तरह से गलत है। आपको ब्याज का पूरा विवरण देना चाहिए। 80C में शामिल फिक्स्ड डिपॉजिट टैक्स सेविंग में मदद करता है, लेकिन इस पर मिले ब्याज पर टैक्स देना होता है। ऐसे में ब्याज को आप नजरअंदाज नहीं कर सकते।
9. इनकम की क्लबिंग को नजरंदाज करना
कई लोग वाइफ और बच्चों के नाम से भी इन्वेस्टमेंट करते हैं। आप अपनी वाइफ को कितनी भी रकम दे सकते हैं, लेकिन गिफ्ट की गई रकम को आप इन्वेस्ट करते हैं तो सेक्शन 64 सामने आ जाता है। इसके मुताबिक, गिफ्ट की गई रकम से कोई आमदनी होती है तो वह आपकी टैक्सेबल इनकम में जोड़ी जाएगी। इससे फर्क नहीं पड़ता कि पार्टनर को आमदनी होती है या नहीं।

10. नोटबंदी में जमा रकम की जानकारी
यदि आपने नोटबंदी में 2 लाख से ज्यादा डिपॉजिट किया है तो आपको अपने रिटर्न में इसे जरूर दिखाना चाहिए। आप इसे किसी भी हाल में छिपा नहीं सकते। आपको यह पता होना चाहिए कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास नोटबंदी के दौरान दो लाख रुपये या इससे ज्यादा रकम बैंक में जमा करने वाले सभी लोग की सूची है। गलत सूचना देने की स्थिति में आप पर पेनल्टी लगाने के साथ-साथ मुकदमा भी चलाया जा सकता है।

पैन से ऐसे जोड़ें आधार को
जिनके पास पहले से आधार है, वे इस बार पैन से आधार को लिंक किए बिना रिटर्न जमा नहीं करा पाएंगे। जानते हैं कि कैसे जोड़ें इन दोनों को:

मोबाइल से
आधार नंबर और पैन कार्ड को SMS से मेसेज भेजकर भी लिंक किया जा सकता है। इसके लिए फोन से कैपिटल लेटर में UIDPAN लिखने के बाद स्पेस देकर आधार नंबर और एक स्पेस देकर फिर पैन नंबर लिखें और 567678 या 56161 पर भेज दें। यह मेसेज उसी मोबाइल नंबर से भेजना होगा जो मोबाइल नंबर आधार कार्ड के साथ रजिस्टर है। जानकारियां मैच करने पर पैन और आधार लिंक हो जाएंगे।

वेबसाइट से
1. incometaxindiaefiling.gov.in पर जाएं।
2. लेफ्ट साइड में Link Aadhaar नाम के लाल रंग के टैब पर क्लिक करें।
3. यहां पर आपको पैन नंबर, आधार नंबर और अपना नाम भर कर कैप्चा भर कर Link Aadhaar पर क्लिक करें।
4. अगर नाम में थोड़ा बहुत मिसमैच है तो पोर्टल की तरफ से ओटीपी आएगा और उसे भरने के बाद सेव करने पर आधार और पैन लिंक हो जाएगा।

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फल और सब्जियों के बारे में ये बातें जानते हैं आप?

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कहते हैं कि दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है। अब यह कितना सच है, यह नहीं पता, लेकिन यह पूरी तरह सच है कि सेहत और पेटपूजा के बीच अटूट रिश्ता है। आपको पेटपूजा का पूरा फल मिले, इसके लिए हम आपको बता रहे हैं फल-सब्जियों और खाने की दूसरी चीजों से जुड़ीं अहम जानकारियां:

क्या है बैलेंस्ड डाइट
- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट, विटामिन, मिनरल, फाइबर, पानी से भरपूर डाइट है बैलेंस्ड डाइट यानी संतुलित भोजन। फूड पिरामिड में सबसे नीचे हैं कार्ब यानी अनाज, फिर फल और सब्जियां, फिर दालें और दूध-दही और सबसे कम फैट, शुगर और नमक। सबसे नीचे वाली चीजों को सबसे ज्यादा खाना चाहिए।

- खाने में सबसे जरूरी अनाज हैं, जिन्हें एनर्जी के बड़े जरिए के रूप में इस्तेमाल करें। दूसरे नंबर पर हैं फल और सब्जियां, जोकि विटामिन और मिनरल से भरपूर हैं। 150 मिली जूस एक स‌र्विंग कहलाता है। ज्यादा जूस नहीं पीना चाहिए। हां, रोजाना 6-8 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए। साबुत फल खाना ज्यादा फायदेमंद है।

- पिरामिड में तीसरे नंबर पर मौजूद हैं दालें, ड्राई फ्रूटस्, दूध और दूध से बनी चीजें, मीट, मछली आदि। ये प्रोटीन के अच्छे सोर्स हैं और हमारे लिए बहुत जरूरी हैं। मसल्स, हड्डियां, स्किन और बाल आदि प्रोटीन से बनते हैं। शरीर के सही गठन और इससे काम कराने के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी है।

- सबसे आखिर में नंबर आता है फैट और ऑयल का। ये जरूरी तो हैं, लेकिन कम मात्रा में ही खाएं।

फल-सब्जियों से होने वाले फायदे

- फल और सब्जियों में फाइबर के साथ-साथ विटामिन ए, सी, एंटी-ऑक्सिडेंट और मिनरल होते हैं।

- मौसमी फल और सब्जियां ही खरीदें। अलग-अलग रंग के फल और सब्जियां खाएं।

- रोजाना कम-से-कम 5 सर्विंग अलग-अलग रंग के फल और सब्जियां खाएं। सर्विंग मोटे तौर पर एक मीडियम साइज का सेब-संतरा या छोटी कटोरी के बराबर फल या सब्जी होते हैं। इनमें से दो सर्विंग हरी पत्तेदार सब्जियों या ऑरेंज, पीले फलों और सब्जियों की होनी चाहिए। आलुओं को इस लिस्ट में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इसमें स्टार्च काफी होता है जोकि मोटापा बढ़ाता है।

खरीदते हुए रखें ध्यान

- मौसमी फल और सब्जियां, ताजा और सही से पके हों।

- पत्तेदार सब्जियां ताजा हों। पत्तियों का रंग जितना गहरा होगा, वे उतनी अच्छी होंगी। जड़ वाली सब्जियां ठोस हों।

- फलों को छूकर देखें कि वे ठोस हों और उन पर दाग-धब्बे भी नहीं हों। जूस वाले वे फल खरीदें, जिनका वजन ज्यादा हो।

- फल और सब्जी बहुत ज्यादा पकी, गली या कीड़ों की खाई न हो।

स्टोर कैसे करें

- फल और सब्जियों को स्टोर करने से पहले अच्छी तरह से धो लें। फिर पानी सूखने के बाद ही फ्रिज में रखें। अगर फल या सब्जी का कोई हिस्सा खराब हो गया है तो उसे निकाल दें। काटने के बाद धोने से बचें।

- सब्जियों को बहते पानी में साफ करें। इसके बाद 15-20 मिनट के लिए हल्के गुनगुने पानी में थोड़ा नमक मिलाकर भी रख सकते हैं। इससे उपज के दौरान इस्तेमाल किए गए रसायनों का असर कम हो जाता है, लेकिन ज्यादा लंबे समय तक न भिगोएं।

- हरी पत्तेदार सब्जियों, टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, भिंडी आदि को फ्रिज में जाली वाले बैग में रखें।

- प्याज, लहसुन, आलुओं को फ्रिज से बाहर खुली टोकरी में रखें ताकि हवा लग सके।

- सेब, नाशपाती, संतरे आदि को 3-4 दिनों के लिए खुले में रख सकते हैं।

- केलों को फ्रिज में न रखें, वे काले पड़ जाते हैं। बाकी सारे फलों को फ्रिज में रखें।

आटा, दाल, चावल और सूजी के फायदे

- खाने में सबसे जरूरी अनाज हैं, जो फूड पिरामिड में सबसे नीचे आते हैं। इनसे शरीर को भरपूर एनर्जी मिलती है।

- फोर्टिफाइड अनाज, दाल आदि से शरीर को बेहतर पोषण मिलता है। इनमें जरूरी न्यूट्रिएंट्स जैसे कि विटामिन और मिनरल आदि ऊपर से डाले जाते हैं।
खरीदते हुए रखें ध्यान

- देखें कि दाल और अनाज के दानों का साइज एक जैसा हो।

- फोर्टिफाइड आटा, चावल और सूजी खरीदना बेहतर है।

- फफूंद, कंकड़-पत्थर वाले, कीड़े वाले या महक वाले अनाज न खरीदें।

स्टोर कैसे करें

- साफ और सूखे एयरटाइट डिब्बों में, जमीन से ऊपर रखें।

- हर डिब्बे में एक साफ और सूखा चम्मच रखें।

- जहां रखें, वह जगह सूखी हो, वहां नमी न हो।

- मसालों को भी सूखी जगह पर एयरटाइट जार में रखें।

नोट: दाल, चावल आदि को कुकिंग से पहले बार-बार न धोएं। दालों को साफ पानी में धोकर 30 से 45 मिनट तक भिगोएं, फिर कुकर में पकाएं। भिगोने के लिए इस्तेमाल किए गए पानी को फेंके नहीं। उससे आटा गूंथ सकते हैं।

- दाल या सब्जी गलाने के लिए बेकिंग सोडा का इस्तेमाल न करें।

- सामान रखने से पहले डिब्बे को साबुन और पानी से धोकर सुखा लें। टूटे हुए डिब्बे या बिना ढक्कन वाले कंटेनर को फौरन फेंक दें।

अंडा, मछली और मीट के फायदे

- अंडे और मीट प्रोटीन, आयरन, जिंक और विटामिन बी के अच्छे जरिए हैं।

- अगर वजन कम करना चाहते हैं तो रेड मीट से परहेज करें। रेड मीट दिल के लिए भी अच्छा नहीं है।

- फिश में ओमेगा-थ्री फैटी एसिड काफी मात्री में होता है। मछली खाने से दिल की बीमारियां और डायबीटीज की आशंका कम होती है।
खरीदते हुए रखें ध्यान

- अंडों का खोल साफ हो और टूटा न हो

- मछली का कलर पिंक हो, गिल्स सही सलामत हों और आखें साफ हों

- अगर मछली के गिल हरे या स्लेटी हों या आंखों का रंग फीका हो, महक आ रही हो तो न खरीदें

- हाथ से दबाने पर मीट वापस आए यानी बाउंस बैक हो तो न खरीदें

- पैक्ड मीट पर एक्सपायरी डेट देखें। जहां उसे स्टोर किया गया है, देखें कि वहां का तापमान सही हो
स्टोर कैसे करें

- अंडे फ्रिज की एग ट्रे में रखें।

- अगर उसी दिन इस्तेमाल करना है तो मीट को चिलर में रखें, वरना फ्रिजर में रखें।

- कच्चा और पका मीट को अलग-अलग रखें।

नोट: कच्चा मीट, फिश, अंडे आदि को इस्तेमाल करने के पहले और बाद में साबुन से हाथ अच्छी तरह साफ करें।

- ऐसी प्लेट पर पका हुआ खाना न रखें, जहां पहले कच्चा मीट, अंडे, सी फूड आदि रखा गया हो। प्लेट को साबुन से अच्छी तरह साफ करें, फिर रखें।

दूध और दूध से बनी चीजें के फायदे

- दूध से बनी चीजों में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, विटामिन बी2 और विटामिन बी12 अच्छी मात्रा में होता है।

- दिल की बीमारी से बचने के लिए लो कैलरी मिल्क और चीज़ खरीदें। जिन्हें लैक्टोज़ से एलर्जी है, वे सोया और सोया प्रॉडक्ट्स ले सकते हैं। इनके गुण करीब-करीब दूध जैसे ही होते हैं।ॉ

- सोया, लो फैट डेयरी प्रॉडक्ट्स, बीज, ड्राई फ्रूट्स, साबुत अनाज और सब्जियों से शाकाहारियों की प्रोटीन की जरूरत अक्सर पूरी हो जाती है।
खरीदते हुए रखें ध्यान

- पॉश्चराइज्ड मिल्क और मिल्क प्रॉडक्ट्स खरीदना ही बेहतर है।

- ऑथराइज्ड मिल्क डिपो से ही पैक्ड और सील्ड मिल्क पैकेट खरीदें।

- पनीर डिब्बाबंद ही खरीदें। अगर पैकेट खुला हो या फूला हो तो न खरीदें।

- दही घर पर जमाना बेहतर है। अगर पैक्ड खरीदते हैं तो एक्सपायरी डेट जरूर चेक करें।
स्टोर कैसे करें

- फ्रिज के चिलर में रख सकते हैं 1-5 दिनों के लिए।

- मिल्क पाउडर को कमरे के तापमान पर एयरटाइट कंटेनर में रखें।

- बटर, क्रीम और चीज को हमेशा फ्रिज में रखें।

फैट, ऑयल और नट्स के फायदे

- फैट शरीर में न्यूट्रिशन को जज्ब कराने के लिए बहुत जरूरी हैं।

- ये जोड़ों आदि को दुरुस्त रखने में भी मदद करते हैं।

- इन्हें कम मात्रा में खाना चाहिए और सैचुरिडट और ट्रांस फैट से तो दूर ही रहना चाहिए, वरना मोटापा और दिल की बीमारी हो सकती है।
खरीदते हुए रखें ध्यान

- डिब्बाबंद ऑयल और घी ही खरीदें, खासकर सरसों का तेल।

- ऑयलसीड्स और ड्राई फ्रूट्स भी खुले नहीं, डिब्बाबंद ही खरीदें।

- ऐसे ड्राई फ्रूट्स और ऑयल सीड्स न खरीदें, जिनमें खराब महक आ रही हो या कीड़े या फफूंद लगी हो
स्टोर कैसे करें

- अच्छी तरह बंद होने वाले जार या बॉटल में इन्हें तेज रोशनी से दूर ठंडी जगहों पर रखें।

- गैस या स्टोव या सूरज की रोशनी के पास न रखें।

नोट: तलने के बाद बचे तेल को फिर से गर्म न करें। उसे फेंकना ही बेहतर है। इस्तेमाल करना ही चाहें तो छौंक के लिए यूज कर सकते हैं, लेकिन दोबारा तलने के लिए नहीं।

- शैलो फ्राइंग (हल्की फ्राइंग) डीप फ्राइंग से ज्यादा अच्छी नहीं है क्योंकि इसमें डीप फ्राइंग से ज्यादा तेल जज्ब होता है।

फ्रोजन और पैक्ड फूड के फायदे

फायदा
- ज्यादातर पैक्ड फूड ज्यादा साफ-सुथरे होते हैं
- हालांकि प्रिजर्वेटिव और कैलरी ज्यादा होना इनकी कमी है

खरीदते हुए रखें ध्यान

- पैक्ड फ्रोजन फूड ही खरीदें, एक्सपायरी डेट भी चेक करें।

- अगर पैकेट खुला हो या लीक हो रहा हो, उसे न खरीदें।

- देखें कि पूरी बॉटल का रंग एक जैसा हो और सील टूटी न हो।

- एक्सपायरी डेट जरूर चेक करें।

स्टोर कैसे करें

- धूप से दूर ठंडी जगहों पर रखें।

- अगर पैकेट पर लिखा है तो फ्रीज में रखें लेकिन फ्रिजर में न रखें ताकि जमे नहीं।

- फ्रोजन फूड को फ्रिज से बाहर निकाल लिया गया है और वह अगर पिलपिला हो गया है तो उसे दोबारा फ्रिज या फ्रिजर में ना रखें, बल्कि उसी वक्त इस्तेमाल कर लें।
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खाने को लेकर किए जाने वाले दावे और सच

फैट और कुकिंग ऑयल

दावा: यह तेल डायबीटीज के लिए अच्छा है।
सच: सारे तेल 100 फीसदी फैट होते हैं इसलिए कम मात्रा में लेने चाहिए। देसी घी, तेल सब मिलाकर रोजाना 2 चम्मच से ज्यादा न लें।

दावा: इस तेल में कॉलेस्ट्रॉल नहीं है।
सच: प्लांट बेस्ड किसी भी तेल में कॉलेस्ट्रॉल नहीं होता। मसलन, सरसों तेल, कॉर्न तेल आदि।

दावा: यह लाइट ऑयल है।
सच: यह सच है कि कुछ तेल दूसरों के मुकाबले आसानी से अब्जॉर्ब हो जाते हैं लेकिन कोई भी 1 ग्राम तेल 9 कैलरी ही देता है।

दावा: इस तेल में सैचुरेटिड फैट्स नहीं हैं।
सच: यह सच नहीं है क्योंकि हर तेल में कुछ-न-कुछ मात्रा सैचुरेडिट फैट्स की होती है, जबकि कुछ में ज्यादा सैचुरेटिड फैट होते हैं। पैकेट पर मात्रा लिखी होती है।

दावा: कॉलेस्ट्रॉल-फ्री तेल है यह।
सच: जिन प्रोडक्ट्स पर कॉलेस्ट्रॉल-फ्री लिखा होता है, उनमें कॉलेस्ट्रॉल नहीं होता लेकिन आपको टोटल फैट, खासकर सैचुरेटिड और ट्रांस फैट का ध्यान रखना होता है क्योंकि वे आपके शरीर में कॉलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ा सकते हैं। वैसे किसी भी वेजिटेबल ऑयल में कॉलेस्ट्रॉल नहीं होता, सिर्फ एनिमल फैट में होता है। इसके अलावा हमारा शरीर खुद कॉलेस्ट्रॉल बनाता है।

दावा: यह लो-फैट और नॉन-फैट वाला ऑयल है।
सच: अक्सर लो फैट फूड में एक्स्ट्रा शुगर, रिफाइंड आटा या स्टार्च होते हैं ताकि उनका टेस्ट बढ़ाया जा सके। ये चीजें कार्ब के जरिए वजन बढ़ाने का काम करती हैं।

नोट: दो या दो से ज्यादा तरह के फैट, तेल और घी आदि यूज करें। दिल की बीमारी का खतरा कम करने के लिए सैचुरेडिट और ट्रांस फैट (घी, वनस्पति घी, पाम ऑयल आदि) की जगह मोनोअनसैचुरेटिड और पोली-अनसैचुरेटिड फैट खरीदें जोकि मछली, ड्राई फ्रूट्स और वेजिटेबल ऑयल में पाए जाते हैं।

अनाज

दावा: ब्राउन ब्रेड का मतलब वीट ब्रेड होता है।
सच: ब्राउन ब्रेड का मतलब होल वीट ब्रेड नहीं होता। ब्राउन ब्रेड मेंम ज्यादातर केरेमल कलर होता है और उसमें गेंहू के आटे की मात्रा काफी कम होती है। होल वीट ब्रेड में 59 फीसदी तक गेहूं का आटा होता है।

शुगर

दावा: शुगर-फ्री या ब्राउन शुगर वाला प्रॉडक्ट है यह।
सच: अक्सर लोगों को लगता है कि शुगर-फ्री खाने का मतलब लो-कैलरी खाना होता है, जबकि शुगर-फ्री फूड में काफी ज्यादा फैट, रिफाइंड अनाज, शुगर (फ्रक्टोज़, कॉर्न सिरप, मलिटोस आदि के रूप में) होते हैं। ब्राउन शुगर आमतौर पर सुकरोस होती है, जिस पर केरेमल कलर होता है।

फ्रिज में इस प्राथमिकता से रखें चीजें

- सबसे नीचे के खाने में फल और सब्जी

- नीचे से दूसरे या बीच के खाने में दूध, मीट, मछली

- सबसे ऊपर के खाने में दही, मक्खन, चीज और बना हुआ खाना

- फ्रिज के दरवाजे के हिस्से में पानी की बोतल, अंडा, जूस और मसाले

- फ्रीजर में आइस्क्रीम, फ्रोजन फूड, बर्फ आदि।

कुकिंग में रखें ख्याल

- धीमी आंच पर पकाएं और न बहुत ज्यादा और न ही कम पकाएं। ढककर पकाएं।

- बचे हुए खाने को बार-बार गर्म न करें। न ही बचे हुए खाने को ताजा खाने में मिलाएं।

- अगर बचे खाने को लेकर संशय है कि इस्तेमाल करें या ना करें, तो उसे फेंक दें।

- डब्ल्यूएचओ ने रोजाना 2 ग्राम सोडियम लेने की सलाह दी है, जोकि 5 ग्राम नमक (1 चम्मच) के बराबर बैठता है।

- खाने में हमेशा आयोडाइज्ड नमक ही इस्तेमाल करें। जितना मुमकिन हो, नमक पकाने के दौरान आखिर में ही डालें ताकि गर्मी की वजह से आयोडीन का नुकसान न हो।

- खाना धीरे-धीरे खाएं। भूख से 20-25 फीसदी कम खाएं। टीवी देखते हुए पढ़ते हुए ना खाएं।

- 6-8 गिलास पानी पीएं। जितना मुमकिन हो, गुनगुना पानी पिएं।

- अगर वजन कम करना चाहते हैं तो छोटी प्लेट में कम मात्रा में खाएं।

माइक्रोवेव कुकिंग के टिप्स

- फूड ग्रेड प्लास्टिक, सिरेमिक या ग्लास का इस्तेमाल करें, जिन पर माइक्रोवेव सेफ लिखा हो।

- जितना खाना सर्व करना हो, उसे ही दोबारा गरम करें। बार-बार गर्म करने से बचें।

- अंडों को माइक्रोवेव में न पकाएं।

खाना कैसे परोसें

- स्टेनलेस स्टील, कॉपर के बर्तन, फूड ग्रेड प्लास्टिक, सेरेमिक, पोर्सलिन (चीनी मिट्टी) या डिस्पोजेबल में करें।

- प्लास्टिक, पॉलीथीन, कॉपर, पीतल या एल्यूमिनियम में न परोसें।

- डिस्पोजेबल बर्तनों का फिर से इस्तेमाल न करें, न ही इनमें खाना गर्म करें।

- खाना परोसने के लिए अखबार इस्तेमाल न करें।

कुछ और जरूरी बातें

- फ्रिज में 'फर्स्ट इन फर्स्ट आउट' रूल अपनाएं यानी जिस फूड को पहले फ्रिज में रखें, उसे निकालें भी पहले। खाने पर ढक्कन लगाकर फ्रिज में रखें।

- फल-सब्जियों और मीट के लिए अलग-अलग चॉपिंग बोर्ड यूज करें। चॉपिंग बोर्ड को इस्तेमाल के बाद साबुन और पानी से अच्छी तरह साफ कर लें।

- किसी भी खाने को चख कर न देखें कि खराब हुआ है या नहीं। खराब खाना थोड़ी मात्रा में खाने पर भी नुकसान कर सकता है।

नोट: यहां दी गई तमाम जानकारियां 'द पिंक बुक: योर गाइड फॉर सेफ ऐंड न्यूट्रिशस फूड ऐट होम' से ली गई है। इसे फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्डस अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने तैयार कराया है।

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तन-मन की खूबसूरती के टिप्स

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मिस इंडिया का ताज पाना हर लड़की का ख्वाब होता है। FBB कलर्स फेमिना मिस इंडिया प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंचने वाली युवतियों के व्यक्तित्व को निखारने के उन्हें कई तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। योग गुरु अमृत राज भी इस साल ट्रेनिंग टीम का हिस्सा रहे। इस ट्रेनिंग के कुछ टिप्स ऐसे हैं, जिन्हें आजमाकर आप भी अपनी जिंदगी को और भी खूबसूरत बना सकते हैं। योगी अमृत राज से ऐसे ही टिप्स जानकर हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं...

40 मिनट रोज सिर्फ अपने वास्ते

सूक्ष्म क्रियाएं (5 मिनट)
गर्दन, कंधों, कुहनियों, हाथों, कमर, घुटनों, पैरों, पंजों आदि की सूक्ष्म क्रियाएं (हर दिशा में घुमाना और खींचना)।

सूर्य नमस्कार (10 मिनट)
सूर्य नमस्कार एक संपूर्ण व्यायाम है। अगर आपके पास ज्यादा वक्त नहीं है तो सुबह 5 बार सूर्य नमस्कार करने से भी आपके पूरे शरीर की एक्सर्साइज हो जाएगी। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। यह इम्यून सिस्टम और हॉर्मोनल सिस्टम को बैलेंस करता है।

सिंहासन (2 मिनट)
- आराम से पालथी मारकर बैठ जाएं। इस दौरान कमर सीधी रहे। दोनों हथेलियों को पसारकर हाथों को आगे की ओर फैलाएं। मुंह से सांस लें और जोर लगाकर मुंह से ही वापस निकालें।
- फिर जीभ बाहर निकालें और मुंह से शेर के दहाड़ने जैसी आवाज निकालें। इस दौरान दोनों भौहों के बीच में देखें। चेहरे की मसल्स को पूरा खीचें।

असर
यह चेहरे की मांसपेशियों को लचीला करता है। झुरियां आने की रफ्तार धीमी करता है और गले को साफ करता है। यह आपके अंदर की बेचैनी को खत्म करता है। रोजाना 5 बार करें।

देखें: रोज करेंगे योग तो शरीर रहेगा निरोग

ओम का उच्चारण (2 मिनट)
- ओम तीन अक्षरों अ, ओ और म से मिलकर बना है। अ की आवाज सीधे पेट से आती है और यह सृजन का प्रतीक है, जबकि ओ की आवाज मुंह के बीच से आती है और यह निरंतरता और जुड़ाव का प्रतीक है। म की आवाज मुंह बंद करने पर आती है और यह आवाज नाक से होते हुए निकलती है जोकि अंत का प्रतीक है।

- एक बार में ओम का उच्चारण 10 सेकंड में करें। जब ओम बोलें तो अ और ओ को मिलाकर 4 सेकंड और म को 6 सेकंड के लिए बोलें। ओम का उच्चारण 5 बार करें।

असर
ओम के उच्चारण से शरीर में एक केमिकल रिऐक्शन होता है, जिससे ऐसे हॉर्मोन निकलते हैं, जो हमारी सेहत को बेहतर बनाते हैं। अपने दिन की शुरुआत ओम के उच्चारण के साथ करें। इससे आपके तन-मन में ताजगी का एहसास होगा और यह एहसास दिन भर आपके साथ रहेगा।

ताली बजाना (3 मिनट)
- पालथी मारकर आराम से बैठ जाएं। कमर को सीधा रखें। हथेलियों को आपस में टकराकर जोर-जोर से तालियां बजाएं। साथ में, तेजी से चिल्लाएं भी (मुंह खोलकर आ...आ... की आवाज निकालें)। एक बार में 30 तालियां बजाएं और तीन सेट करें यानी आपको कुल 90 बार तालियां बजानी हैं।

असर
इससे आपके अंदर ऊर्जा का संचार होता है और खून का दौरा तेज होता है। इससे खून की नलियों में जमाव को रोकने में मदद मिलती है, जिससे हार्ट अटैक या लकवा का खतरा कम होता है।

देखें: ऐसे-ऐसे योग जिनके बारे में पहले कभी नहीं सुना होगा

जोर-जोर से हंसना (3 मिनट)
- पालथी मारकर आराम से बैठ जाएं। कमर को सीधा रखें। दोनों हाथों को आसमान की ओर फैला लें और जोर-जोर से हंसें।
- फिर अंदर ही अंदर हंसते हुए आगे और पीछे की ओर झुकें, लेकिन इस दौरान आवाज नहीं आनी चाहिए।

असर
यह किसी भी तरह के डिप्रेशन या तनाव को दूर करता है। सेहत के लिए यह तरीका टॉनिक का काम करता है।

भस्रिका प्राणायाम (5 मिनट)
- आराम से पालथी मारकर बैठ जाएं। राइट नॉस्ट्रिल को अंगूठे से बंद कर लें। लेफ्ट नॉस्ट्रिल से गहरी सांस लें और तेजी से लेफ्ट नॉस्ट्रिल से ही बाहर निकालें। 5 बार करें।'
- लेफ्ट नॉस्ट्रिल से नाक को अंगूठे से बंद कर लें और राइट नॉस्ट्रिल से गहरी सांस लें। फिर राइट नॉस्ट्रिल से ही सांस बाहर निकाल दें। 5 बार करें।
- हथेलियों को घुटनों पर रखें और गहरी सांस लें। ताकत लगाकर दोनों नॉस्ट्रिल से सांस बाहर निकाल दें। 5 बार करें।
- दोनों हाथों को ऊपर ले जाकर भी कर सकते हैं। हाथ और सांस, दोनों को झटके के साथ छोड़ें। ऐसा 5 बार करें।
- दोनों हाथों को बगल में फैलाकर भी करें। ऐसा 5 बार करें।

असर
यह फेफड़ों की क्षमता बढ़ाकर आपके अंदर प्राण ऊर्जा बढ़ाता है। असल में यह प्राणायाम पूरे शरीर को जरूरी ऊर्जा देता है।

नोट: इसे करते हुए अगर आपको चक्कर या सिरदर्द महसूस हो तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि आप तेज कर रहे हैं। अपनी रफ्तार धीमी कर दें। हाई ब्लड प्रेशर वाले और पेट की सर्जरी वाले न करें या फिर बिल्कुल धीरे-धीरे करें।

भ्रामरी प्राणायाम (5 मिनट)
- आंखें बंद कर लें। गहरी सांस लें और सांस निकालते हुए गुंजन की आवाज निकालें।
तकनीक 1: सिर की बाईं और दाईं तरफ में हाथों को रखें। फिर करें।
तकनीक 2: गर्दन की बाईं और दाईं तरफ में हाथों को रखें। फिर करें।
तकनीक 3: हाथों को अपने दिल पर रखें और करें।
तकनीक 4: हाथों को पेट पर रखें और करें।
तकनीक 5: हथेलियों को घुटनों पर रखकर करें।
तकनीक 6: हथेलियों को आंखों पर रखें, अंगूठों को कानों के अंदर रखें और करें।
जमीन पर लेट जाएं और तन-मन को रिलैक्स करें।

असर
यह दिमाग में मेलाटोनिन हॉर्मोन को रिलीज़ करने में मदद करता है, जो नींद लाने में मददगार है। यह तनाव, अनिंद्रा, सिरदर्द और सोने से जुड़ी समस्याओं को कम करने में मदद करता है। यह दिमाग को काफी आराम दिलाता है। जो लोग लगातार दिमागी कामों में लगे रहते हैं, उनके लिए खासतौर पर फायदेमंद है। कम-से-कम 5-5 बार करें। इनमें से किसी भी तरीके से कर सकते हैं।

ध्यान
अंदरूनी मुस्कान वाला ध्यान (5 मिनट)

आराम से जमीन पर बैठ जाएं। चाहें तो नीचे कंबल, कुशन लगा सकते हैं या फिर चेयर पर भी बैठ सकते हैं। दीवार का सहारा लेकर भी बैठ सकते हैं। ध्यान रहे कि इस दौरान रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। हथेलियां घुटनों पर रहें या आप अपनी पसंद की मुद्रा भी बना सकते हैं। शुरुआत एक कुदरती खुशी के भाव के साथ करें, मानो वह खुशी आपकी आंखों के पीछे से आ रही है। अगर आपको अचानक यह भाव नहीं आता तो अपने ध्यान को किसी ऐसी कुदरती चीज पर लगाएं, जिससे आपको कुदरती खुशी का अहसास हो, जैसे कि किसी हंसते-खेलते बच्चे का चेहरा ध्यान में लाएं। उसे मन-ही-मन निहारें और उस पर ध्यान लगाएं। एक बार आपको इस मुस्कान का अहसास हो जाए तो फिर पूरे शरीर में इस भाव को गहरे तक उतारने की कोशिश करें। महसूस करें कि ध्यान से पैदा हुई यह सकारात्मक लहर आपकी रीढ़ में दौड़ रही है, दिल से होकर गुजर रही है, पेट और कमर के चारों ओर फैल रही है, हाथों और पैरों से होते हुए हथेलियों और पंजों तक जा रही है। आप आंखों से शुरू कर इस भाव को पैरों तक एक ही बार में ले जा सकते हैं या फिर धीरे-धीरे एक-एक हिस्से पर फोकस कर सकते हैं। जितनी देर इस भाव में रह सकते हैं, रहें। फिर धीरे-धीरे आंख खोल लें।

असर
यह साधारण, लेकिन असरदार ध्यान तकनीक है, जो अपनी इमोशनल और फिजिकल टेंशन को दूर करती है। ध्यान रखें कि आप अपनी अंदरूनी मुस्कान के भाव को दिन भर में कभी भी जगा सकते हैं ताकि आपका दिल करुणा के भाव से भर सके।

सांस पर फोकस वाला ध्यान (5 मिनट)
यह ध्यान का सबसे आसान, लेकिन असरदार तरीका है। इसके लिए आरामदायक मुद्रा में जमीन पर बैठ जाएं। नीचे कुशन या कंबल रख सकते हैं। कुर्सी पर भी बैठ सकते हैं और दीवार का सहारा भी ले सकते हैं। कमर सीधी रहे। हथेलियां घुटनों पर रहें या फिर अपनी पसंद की मुद्रा भी बना सकते हैं। सांस पर ध्यान केंद्रित करें। ध्यान दें कि किस तरह सांस आपके नॉस्ट्रिल से होते हुए शरीर के अंदर जा रही है और बाहर निकल रही है। ध्यान दें कि सांस दोनों में से किस नॉस्ट्रिल से ज्यादा आ-जा रही है।। अपनी सांस लेने की गुणवत्ता पर भी ध्यान केंद्रित करें। सांस लेने की रफ्तार और उसकी आवाज पर ध्यान दें। कोशिश करें कि आवाज न हो। इस दौरान अगर विचार आते हैं तो आने दें। वे अपने आप बाहर निकल जाएंगे। अपने विचारों से जुड़ें नहीं, न ही उन्हें लेकर परेशान हों। सारा ध्यान सांस पर केंद्रित होना चाहिए। जितनी देर इस भाव में रह सकते हैं, रहें। फिर धीरे-धीरे आंख खोल लें।

असर
दिन की शुरुआत ध्यान के साथ करने से आपका शरीर दिन भर के लिए सकारात्मक ऊर्जा हासिल कर लेता है। वैसे, जब भी वक्त मिले, इसे कर सकते हैं। इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं। नितिन को अपने ऑफिस जाने में करीब 30 मिनट लगते थे। उन्होंने अपनी कार के बजाय मेट्रो या कैब से ऑफिस जाना-आना शुरू कर दिया। इससे 40-45 मिनट का वक्त उन्हें मिलने लगा, जिसका बेहतरीन इस्तेमाल उन्होंने यह ध्यान करने के लिए किया। अब वह रोजाना ऑफिस आते और जाते वक्त ध्यान करते हैं और खुश रहते हैं, जबकि पहले ट्रैफिक से जूझते हुए बेहद तनाव में ऑफिस आते-जाते थे।

नोट: इन दोनों ध्यान में से कोई भी कर सकते हैं। इन सभी क्रियाओं को रोजाना करें क्योंकि जिस तरह नहाने के आपके शरीर की गंदगी दूर होती है, उसी तरह इन्हें करने से आपके तन और मन, दोनों की सफाई होती है। हमारा दिमाग 24 घंटे काम करता है और इसके अंदर रोजाना करीब 80 हजार से 1 लाख विचार आते हैं। ऐसे में ये क्रियाएं दिमाग को राहत देने का काम करती हैं।

नोट: दोनों में से कोई एक ध्यान कर सकते हैं।

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टेंशन: कारण और निवारण
1. अविद्या यानी गलत सोच: हमें जितने तनाव मिलते हैं, उनमें से करीब 80 फीसदी हम खुद पैदा करते हैं। यह हमारे देखने का नजरिया है, जो दुख या खुशी की वजह बनता है। मसलन, महेश सीढ़ियों से गिर गए और उनका दायां हाथ टूट गया, लेकिन वह दुखी नहीं थे। पूछने पर बताया कि खुश रहने की वजह यह है कि बायां हाथ अब भी काम कर रहा है और पैर सही-सलामत हैं। ऐसी परिस्थिति में ज्यादातर लोग दुखी हो रहे होते कि हाथ टूट गया, लेकिन महेश ने ऐसा नहीं किया। चीजों को देखने का नजरिया बदलने से तनाव खत्म होता है।

2. अस्मिता यानी अहम: अक्सर लोग अहम यानी इगो की वजह से तनाव से ग्रसित रहते हैं। अपने नकली अहम की वजह से अक्सर लोग दूसरों से उलझते रहते हैं। इस अहम को मन से निकाल दें तो तनाव से राहत मिल जाएगी।

3. राग यानी आकर्षण: ऐसी चीजों की चाहत करना, जो आपके पास नहीं हैं या फिर उन्हें अपने पास रखने की कोशिश करना, जो आपकी नहीं है, तनाव पैदा करता है। किसी से भी इतना जुड़ाव न रखें कि वह दुख और तनाव की वजह बन जाए।

4. द्वेष यानी नफरत: किसी चीज को नकारना या किसी से नफरत या फिर किसी ऐसे काम को दोबारा करने से बचना, जिसे करने का आपका अनुभव अच्छा नहीं रहा हो, आपको तकलीफ देता है। मसलन, आप किसी से नफरत करेंगे और वह सामने होगा तो आपको तनाव होगा ही। ऐसे में जरूरी है कि आप नफरत के भाव से खुद को दूर रखें।

5. डर: मन में कोई भी शक, शुबहा, आशंका या डर रखना मसलन बूढ़े होने का डर, नकारे जाने का डर, फेल होने का डर आदि ऐसे भाव हैं, जिनसे किसी को भी तनाव आता है।

नोट: तनाव को दूर करने का एक बड़ा तरीका यह भी है कि हम फौरन प्रतिक्रिया देना बंद कर दें। अक्सर किसी क्रिया के फौरन बाद आप प्रतिक्रिया जताने लगते हैं, जिससे चीजें खराब होती हैं और तनाव बढ़ता है। इसके अलावा चीजों को अपने पकड़ या जद में रखने की जिद भी नहीं करनी चाहिए।

फूड के टॉप फंडे

खाते हुए रखें ध्यान
- हमारे खाने में 80 फीसदी अल्कलाइन और 20 फीसदी एसिडिक होना चाहिए। ज्यादातर फल और सब्जियां (खट्टी चीजों को छोड़कर) अल्कलाइन होती हैं और चाय, कॉफी, मीट आदि एसिडिक होता है।

- जब तक भूख न हो, कुछ न खाएं। भूख लगने पर ही खाना खाएं। जितनी भूख हो, उससे करीब 20-30 फीसदी कम खाएं। शुगर के मरीजों पर यह नियम लागू नहीं होता। उन्हें हर दो घंटे में कुछ हेल्दी खाना चाहिए।

- खाने के आधे घंटे बाद तक पानी बिल्कुल न पिएं और खाने से पहले (आधा घंटा पहले पी सकते हैं) भी ज्यादा पानी पीने से बचें, वरना पेट भरा हुआ महसूस होगा। खाने के दौरान जरूरत लगने पर एक-दो घूंट पानी पी सकते हैं लेकिन बेहतर है कि यह गुनगुना हो।

- खाने के साथ सलाद जरूर खाएं। सलाद खाने से पहले या साथ-साथ खा सकते हैं। इसमें अच्छी मात्रा में फाइबर होता है, जोकि पाचन में मदद करता है।

- आराम से बैठकर खाएं। अगर शरीर और मन, दोनों आराम में होगा तो मेटाबॉलिजम अच्छा होगा।

- जब खा रहे हैं तो सिर्फ खाने पर ध्यान केंद्रित करें। टीवी देखते हुए या कुछ पढ़ते हुए ना खाएं, न ही इस दौरान ज्यादा बातचीत करें। सारा ध्यान खाने पर होना चाहिए, तभी आपको उसका सही फायदा मिलेगा।

- अगर आपको भूख है और आप खाने के बजाय कुछ पी लेंगे तो वह पाचन में काम आनेवाले एंजाइम्स को धीमा करके पाचन पर असर डालेगा।

विरुद्ध आहार से बचें
आयुर्वेद में विरुद्ध आहार-विहार के बारे में अच्छी जानकारी दी गई है, जिसमें बताया गया है कि किस चीज के साथ क्या न खाएं। इनमें खास हैं:

- दूध और दूध से बनी चीजों के साथ फल या सब्जियां न खाएं। ऐसा करेंगे तो पेट में जाकर खाना पचने के बजाय सड़ जाएगा। इससे उसका असली फायदा शरीर को नहीं मिल पाएगा। पित्जा इसी कैटिगरी में आता है। उसमें चीज, टमाटर, सॉस आदि मिली होती हैं।

- खीर के साथ खिचड़ी, दूध के साथ नमक आदि चीजें खाने से बचना चाहिए। इस तरह के कॉम्बो पाचन के लिए अच्छे नहीं हैं।

- खाने के दौरान फलों के जूस या फिर बेहद ठंडे ड्रिंक्स न पिएं। गर्म खाने के साथ ठंडा पीना सही नहीं है।
असर

अगर हम गलत कॉम्बिनेशन में चीजें खाएंगे तो पेट में अफारा, अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं। साथ ही खाना अच्छे से पचेगा नहीं तो शरीर को पोषक तत्व नहीं मिलेंगे। खराब मेल में खाना खाने से त्वचा की बीमारियां हो सकती हैं।


खाने के जरिए ऐसे घटाएं मोटापा
- सर्दी हो या गर्मी, गुनगुना पानी पिएं। इससे मेटाबॉलिक रेट बढ़ता है। फ्रिज का पानी पीना बंद कर दें। यह काफी नुकसान पहुंचाता है। इससे जठराग्नि धीमी हो जाती है और खाना सही से पचता नहीं है। मटके का पानी पी सकते हैं।

- खाने में नमक कम करें क्योंकि एक चम्मच नमक शरीर में 3-4 लीटर पानी को रोकता है। इससे ब्लड प्रेशर भी बढ़ता है।

- रात का खाना 8 बजे से पहले खा लें। डिनर हल्का होना चाहिए, लंच उससे भारी और नाश्ता सबसे भारी क्योंकि जब सूरज ऐक्टिव होता है तो हमारा मेटाबॉलिक रेट ज्यादा होता है, जबकि चंद्रमा की मौजूदगी में यह कम हो जाता है। लोग रात में खाना खाकर जल्दी सो जाते हैं जोकि मोटापा बढ़ाता है।

- बिस्किट, नमकीन जैसे सेहत को नुकसान पहुंचानेवाले स्नैक्स न खाएं। इनसे फालतू कैलरी मिलती है और इनमें ट्रांस-फैट भी होते हैं जोकि सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं।

- खाने में प्याज, लहसुन और अदरक को शामिल करें। ये पाचन बढ़ाते हैं।

खुश रहने के 10 नुस्खे

1. सुबह उठकर खुद से पॉजिटिव बातें करें। खुद से कहें कि मैं दिव्य आत्मा हूं, मैं शांतस्वरूप आत्मा हूं, मैं शक्तिशाली आत्मा हूं, मैं सेहतमंद आत्मा हूं, मैं सकारात्मक आत्मा हूं, मैं खूबसूरत आत्मा हूं। इससे धीरे-धीरे आपके अंदर सकारात्मक भाव पैदा होगा।

2. मुस्कुराने की आदत डालें। कार चलाते हुए मुस्कुराएं, वॉक करते हुए मुस्कुराएं। जब भी मुमकिन हो, मुस्कुराएं। इससे मुस्कुराना आपकी आदत में शुमार हो जाएगा। आपकी मुस्कुराहट आपके साथ-साथ दूसरों पर भी अच्छा प्रभाव छोड़ती है।

3. खुश रहने का मुद्दा तलाशें। हमारी जिंदगी में, हमारे आसपास ऐसे तमाम मसले होते हैं, जिन्हें सोचकर हम खुश रह सकते हैं। अक्सर लोग दुखी होने की वजह ढूंढते हैं, जबकि जरूरत खुश रहने का मसला ढूंढने की है।

4. जीने का मकसद हासिल करें। आप में जो काबिलियत है, उस पर काम करें। कोशिश करें कि अपने अलावा दूसरों के लिए कुछ कर सकें। दूसरों के लिए कुछ करने, उनकी मदद करने का भाव खुशी देता है।

5. डर के आगे जीत है। आप अपने डरों से निजात पाएं। जो भी डर हैं, उनका सामना करें और उन पर जीत हासिल करें।

6. खुद को और दूसरों को लेकर जागरुकता बढ़ाएं। मसलन अगर आपका मीठा खाने का मन है तो जानें कि यह जीभ की जरूरत है, शरीर की नहीं। घर से बाहर देखने का मन है तो यह आंखों की जरूरत है, आपकी नहीं। इससे आपकी बहुत सारी उलझनें खत्म हो जाएंगी।

7. रोज सीखें और आगे बढ़ें। इसके लिए आपका रोजाना पढ़ना जरूरी है। जितना पढ़ेंगे, उतना आगे बढ़ेंगे।

8. अपने रिश्तों को बेहतर बनाएं। रिश्तेदार, दोस्त आदि के साथ वक्त बिताएं। उनके साथ बिताया वक्त आपको खुशी देता है।

9. कामों की प्राथमिकता तय करें। खुद पर काम का बोझ न लादें। उतना ही करें, जितना आप कर सकते हैं।

10. जिंदगी में जो भी मिला, उसके लिए शुक्रिया अदा करना सीखें। अपने परिवार को, करीबियों को और भगवान को धन्यवाद कहें।


कामयाबी को कैसे पचाएं
- कामयाबी के सफर में जिन लोगों ने आपका साथ दिया, उनके प्रति कृतज्ञता जरूर जताएं। इससे विनम्रता भी आएगी।
- अपनी धरती, परिवार, जानकारों से लेकर अनजानों तक के लिए कुछ करें। उनके विकास में योगदान दें।
- देखें कि आपसे ऊपर भी बहुत लोग हैं यानी आप जहां पहुंचे हैं, वही अंत नहीं है। इससे आपको पैर जमीन पर रखने में मदद मिलेगी।

नाकामी को कैसे सहन करें
- शांति के साथ स्थिति को स्वीकार करें। सोचें कि ईश्वर ने आपके लिए कुछ और अच्छा लिखा होगा, मसलन कलाम साहब का चुनाव एयरफोर्स में हो जाता तो वह शायद इन ऊंचाइयों पर नहीं पहुंचते।
- सोचें कि सिर्फ करियर में अच्छा करना या नाम कमाना ही कामयाबी नहीं है। घर-परिवार के साथ अच्छे रिश्ते और सुख-शांति भी कामयाबी का ही हिस्सा है।
- मन को शांत रखकर खुद का आकलन करें और अपनी कमियों को स्वीकार करते हुए उन पर काम करें।

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