एक्सपर्ट्स पैनल वीनू स्ट्रक्चरल इंजीनियर वाई. बी. सिंह स्ट्रक्चरल इंजीनियर अभय साहनी रेट्रोफिटिंग एक्सपर्ट भूकंप के झटके तो आकर चले जाते हैं लेकिन पीछे छोड़ जाते हैं, एक ऐसी दहशत जिसके साए में हम घर में भी सेफ महसूस नहीं करते। हम भले ही भूकंप की भविष्यवाणी नहीं कर सकते, लेकिन तकनीक की मदद से अपने आशियाने को सेफ जरूर बना सकते हैं। कैसे, एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं अमित मिश्रा : अक्सर लोग घर खरीदने और बनाने में वैसी ही भूल करते हैं जैसे छोटे बच्चे बालू के घरौंदे बनाने में करते हैं। न मजबूती का ख्याल और न तकनीक की जानकारी। सस्ता है तो अच्छा है के फॉर्म्युले पर चलते हुए जिंदगी को खतरे में डालने का जोखिम उठा लेते हैं। किसी भी वक्त आ धमकने वाले भूकंप से निपटने की तैयारी तीन लेवल पर जा सकती है। - पुराने घर में रहते हुए - बना-बनाए फ्लैट खरीदते वक्त - प्लॉट पर मकान बनवाते वक्त पुराने घर भी बनाएं सेफ अगर घर पुराना बना है तो उसकी सेफ्टी के लिए रेट्रोफिटिंग का सहारा ले सकते हैं। क्या है रेट्रोफिटिंग किसी भी बनी-बनाई बिल्डिंग में बिना पूरी तरह से तोड़े, किसी भी तरह के बदलाव को रेट्रोफिटिंग कहते हैं। बिल्डिंग को भूकंप के लिहाज से मजबूत बनाने के लिए बिल्डिंग में किए गए बदलाव को सिस्मिक रेट्रोफिटिंग कहा जाता है। किसे रेट्रोफिटिंग की जरूरत - बिल्डिंग अगर 30-40 साल पुरानी है तो मजबूती के लिहाज से उसकी जांच करा लेनी चाहिए। अगर जांच में कोई कमी महसूस होती है तो रेट्रोफिटिंग के ऑप्शन को चुना जा सकता है। - किसी एक्सपर्ट की राय के बिना मकान बनवा चुके हैं और घर डेंजर ज़ोन में आता है तो रेट्रोफिटिंग एक्सपर्ट से राय लें। फिलहाल रेट्रोफिटिंग का काम कमर्शल बिल्डिंग्स में काफी देखने को मिलता है, लेकिन रेसिजेंशल बिल्डिंग में यह अभी उतना कॉमन नहीं है। बिल्डिंग की रेट्रोफिटिंग के बारे में सोचने से पहले इसे तीन पैमाने पर चेक किया जाता है : 1. फ्लैक्सिबिलिटी : बिल्डिंग अगर फ्लैक्सिबल है तो भूकंप आने पर वह झटके को झेल जाएगी और कुछ क्रैक्स आने के बावजूद अपनी जगह पर खड़ी रहेगी। इसकी जांच बिना बिल्डिंग को नुकसान पहुंचाए सैंपल लेकर की जा सकती है। बेशक जरूरी नहीं कि जिस बिल्डिंग में क्रैक्स आ गए हों, वह खतरनाक हो। 2. जॉइंट्स की मजबूती : बिल्डिंग के जॉइंट्स बिल्डिंग की मजबूती के लिए बहुत जरूरी हैं। ऐसे में अगर बिल्डिंग के जॉइंट्स अगर एक-दूसरे को पूरी तरह से छोड़ गए हैं तो वह खतरनाक हो सकती है। जॉइंट्स की जांच से भी रेट्रोफिटिंग करने की जरूरत के बारे में पता लगाया जाता है। 3 : कंक्रीट स्ट्रेंथ : कंक्रीट कितनी मजबूत है, इसे तय करना रेट्रोफिटिंग से पहले जानना काफी जरूरी है। इसे लैब या स्कैनर के जरिए नापा जा सकता है। टेस्ट में कितना खर्च : इन सभी टेस्ट में तकरीबन 20 हजार रुपये का खर्च आता है। कैसे होती है रेट्रोफिटिंग : - रेट्रोफिटिंग का काम कई स्टेप्स में होता है। पहले बेस को मजबूत किया जाता है। फिर मटीरियल और जॉइंट्स को मजबूत करने का काम होता है। - आसपास को लोगों को आपके लिए रेट्रोफिटिंग करवाते वक्त उतनी परेशानी उठानी पड़ सकती है जितनी कंस्ट्रक्शन के वक्त उठानी पड़ती है। - किसी भी फ्लोर पर रेट्रोफिटिंग दूसरे फ्लोर के रहने वाले को डिस्टर्ब किए बिना की जा सकती है। इसके लिए रेट्रोफिटिंग एक्सपर्ट कई तरह के इंस्ट्रुमेंट्स के जरिए हर फ्लोर को अलग-अलग रिकंस्ट्रक्ट कर सकते हैं। - रेट्रोफिटिंग सिंगल स्टोरी या मल्टी स्टोरी किसी भी तरह की बिल्डिंग में मुमकिन है। - क्रैक्स वगैरह को भरने के लिए इपॉक्सी इंजेक्शन तकनीक का सहारा लिया जाता है इसमें एक खास फाइबर मटीरियल के जरिए क्रैक्स को भर दिया जाता है। - अगर मकान के ढ़ांचे में कोई कमजोरी होती है, तो अलग से सरिया या फ्रेम के जरिए उसे मजबूत बनाया जाता है। - बिल्डिंग के कमजोर हिस्से को फाइबर रैप और ग्लास रैप जैसी मॉडर्न तकनीक के जरिए भी मजबूत बनाया जाता है। इसमें कमजोर हिस्से को खास तरह के फाइबर या ग्लास से लपेट दिया जाता है, जिससे वह मजबूत बना रहे। - कॉलम और ब्लॉक को अलग-अलग जगह से सपोर्ट के जरिए मजबूत किया जाता है। - जरूरी नहीं कि काम के दौरान मकान खाली करना पड़े। अगर रेट्रोफिटिंग एजेंसी अच्छी है, तो वह मकान के कुछ एरिया में काम करते हुए रहने की सहूलियत भी देती है। - आमतौर पर 900 स्कॉयर फुट के मकान में रेट्रोफिटिंग करने में 6-9 महीने का वक्त लगता है। रेट्रोफिटिंग में कितना खर्चा - रेट्रोफिटिंग में आने वाला खर्च बिल्डिंग में होने वाले काम पर निर्भर करता है। - छोटी बिल्डिंग में काम के हिसाब से खर्च ज्यादा आ सकता है और बड़े बिल्डिंग एरिया में भी खर्च कम आ सकता है। - मोटे तौर पर देखें, तो बिल्डिंग की कीमत का तकरीबन 10-15 फीसदी खर्च करके बिल्डिंग की रेट्रोफिटिंग कराई जा सकती है। जब खरीदें फ्लैट अगर आप प्लॉट पर अपना मकान बनवाने की बजाय पहले से ही तैयार कोई मकान लेने जा रहे हैं, तो उसकी मजबूती की जांच करने के लिए आपके पास सीमित ऑप्शन होते हैं। - ऐसे मकानों में थोड़े-थोड़े सैंपल लेकर जांच की जा सकती है, लेकिन यह काम भी कोई आम आदमी नहीं कर सकता। मिसाल के तौर पर तैयार मकान के कॉलम को किसी जगह से छीलकर सरिये की मोटाई और संख्या का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए किसी स्ट्रक्चरल इंजीनियर की सर्विस लेनी पड़ती है। - मजबूती की जांच के लिए खास मशीन भी आती है, जो एक्स-रे की तरह कॉलम को नुकसान पहुंचाए बिना सरिये की स्थिति बता देती है। - इसी तरह, प्लिंथ (फ्लोर) लेवल पर कंक्रीट की मोटाई और एरिया देखकर उसका मिलान मिट्टी की बियरिंग कपैसिटी से किया जा सकता है। - कंस्ट्रक्शन मटीरियल की जांच से भी काफी हद तक राहत मिल सकती है। कैसे हो मटीरियल की जांच जमीन की मिट्टी ठीक होना ही बिल्डिंग की सेफ्टी के लिए काफी नहीं है। यह भी जरूरी है कि बिल्डिंग को तैयार करने में क्वॉलिटी मटीरियल भी लगाया गया हो। क्या-क्या मटीरियल कंकरीट, सीमेंट, ईंट, सरिये आदि। मटीरियल के ठीक होने या नहीं होने के संबंध में ज्यादातर संतुष्टि केवल डिवेलपर के ट्रैक रिकॉर्ड और उसकी साख को देखकर ही की जाती है। फिर भी कुछ हद तक सावधानी बरती जा सकती है। हो सके तो मार्केट में मौजूद आईएसओ सर्टिफाई बिल्डर ही चूज करें। करें टेस्ट प्लास्टर टेस्ट - एक कील या गाड़ी की चाबी लें, इसे दीवार पर हाथ से ठोकने की कोशिश करें। - कील दीवार में धंसती है और रेत झड़ता है, तो साफ है कि खराब मटीरियल लगाया गया है। - कील नहीं धंसती, तो मटीरियल अच्छा है और तराई भी अच्छी तरह से की गई है। बिल्डिंग मटीरियल टेस्टिंग - किसी प्रफेशनल एजेंसी से बिल्डिंग मटीरियल की टेस्टिंग कराई जा सकती है। - ये एजेंसियां पूरी बिल्डिंग या आपकी इच्छानुसार किसी खास हिस्से के मटीरियल की टेस्टिंग करेंगी। - अलग-अलग तरह की जांच के लिए अलग-अलग फीस ली जाती है। - जांच के बाद 10-15 दिनों में रिपोर्ट मिल जाती है। प्रफेशनल सर्टिफिकेट - आरसीसी फ्रेमवर्क (मूलभूत ढ़ाचा) के तहत आने वाली चीजों की जांच किसी प्रफेशनल से कराई जा सकती है। - इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत पिलर, नींव, स्लैब्स आदि आते हैं। - प्रफेशनल के रूप में स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सटिर्फिकेट लिया जा सकता है। यह इस बात की जानकारी देता है कि बिल्डिंग को बनाने में सेफ बिल्डिंग के बेसिक रूल्स को फॉलो किया गया है कि नहीं। साइट विजिट - अंडरकंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में फ्लैट बुक कराया है, तो साइट विजिट जरूर करें। - वहां मौजूद एक्सपर्ट/प्रोजेक्ट इंचार्ज से मटीरियल की जानकारी लें। थर्ड पार्टी क्वॉलिटी चेक - इस प्रक्रिया के अंतर्गत अच्छे बिल्डर मिट्टी समेत सभी मटीरियल की क्वॉलिटी चेक कराते हैं। - यह जांच प्राइवेट एजेंसियां निर्धारित मानकों के आधार पर करती हैं, जिन्हें मानना बिल्डर के लिए जरूरी होता है। - सभी चीजों की जांच के बाद सर्टिफिकेट दिए जाते हैं, जिन्हें बायर्स को एक बार जरूर देख लेना चाहिए। मल्टिस्टोरी फ्लैट मल्टिस्टोरी फ्लैट भूकंपरोधी है या नहीं, यह जांच करने की स्थिति में ज्यादा बायर्स नहीं होते। इसके लिए बिल्डर पर भरोसा कर लेना ही आमतौर पर उपलब्ध विकल्प होता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, किसी भी फ्लैट में इंडिविजुअल रूप से यह नहीं जांचा जा सकता कि वह भूकंपरोधी है या नहीं? इसके लिए पूरी बिल्डिंग की ही टेस्टिंग की जाती है। हां, डिवेलपर से बिल्डिंग और फ्लैट का स्ट्रक्चरल डिजाइन मांगकर उसे किसी एक्सपर्ट से चेक कराया जा सकता है। स्ट्रक्चरल इंजीनियर और सावधानियां - घर या बिल्डिंग बनवाने से पहले ही नहीं, फ्लैट खरीदते वक्त भी स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सलाह लें। - यह सलाह ड्रॉइंग डिटेल बनवाने तक ही सीमित न रहे, कंस्ट्रक्शन में उसकी राय को पूरी तरह फॉलो करें। - घर बनवाते वक्त/साइट पर स्ट्रक्चरल इंजीनियर से यह चेक करवाते रहें कि निर्माण सही हो रहा है या नहीं? - आर्किटेक्ट और स्ट्रक्चरल इंजीनियर का आपसी तालमेल भी बहुत जरूरी है। क्या है स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग सिविल इंजीनियरिंग का एक हिस्सा है। इसके अंतर्गत किसी बिल्डिंग, ब्रिज, डैम या किसी अन्य निर्माण का स्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन का काम आता है। बिल्डिंग के स्ट्रक्चर को डिजाइन करते वक्त बिल्डिंग कैसे खड़ी होगी और इस पर कितना लोड आएगा, इसका आकलन सबसे पहले किया जाता है। बिल्डिंग कितने लोगों के लिए तैयार की जा रही है, यह बिल्डिंग कमर्शल होगी या रेजिडेंशल, जमीन किस तरह की है, मिट्टी की लोड सहने की क्षमता कितनी है, उस स्थान पर भूकंप, बाढ़ और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं का कितना डर है आदि बातों को ध्यान में रखकर बिल्डिंग का डिजाइन तैयार किया जाता है। यह सारा कार्य स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के अंतर्गत आता है। इसके अंतर्गत कॉलम, बीम, फ्लोर, स्लैब आदि की मोटाई जैसे मुद्दों पर भी गंभीर रूप से ध्यान दिया जाता है। स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड और इंडियन बिल्डिंग कोड के मानकों का ध्यान रखा जाता है, जिससे मकान या बिल्डिंग सालों-साल सुरक्षित रहते हैं। मकान बनवाने से पहले कराएं टेस्टिंग अगर प्लॉट पर मकान बनाने जा रहे हैं, तो उसे भूकंपरोधी सॉयल टेस्टिंग (मिट्टी की जांच) के जरिए भूकंप से सेफ सेफ रखने की प्लानिंग की जा सकती है। सॉयल टेस्टिंग रिपोर्ट बताती है कि उस जगह की मिट्टी में कितने वजन की बिल्डिंग मजबूती से खड़ी रह सकती है। इलाके की मिट्टी की क्षमता के आधार पर ही बिल्डिंग में मंजिलों की संख्या तय की जाती है और डिजाइन तैयार किया जाता है। तकनीकी शब्दों में इसे मिट्टी की 'बियरिंग कैपेसिटी' कहा जा सकता है। इस रिपोर्ट से ही यह पता चलता है कि नेचरल ग्राउंड लेवल के नीचे कितनी गहराई पर जाकर भूकंप के प्रति बियरिंग कपैसिटी मिल सकती है। स्ट्रक्चरल इंजीनियर का काम बिल्डिंग का डिजाइन तैयार करना होता है। आजकल भूकंपरोधी मकान बनाने के लिए लोड बियरिंग स्ट्रक्चर की बजाय फ्रेम स्ट्रक्चर बनाए जाते हैं, जिनसे पूरी बिल्डिंग कॉलम पर खड़ी हो जाती है। कॉलम को जमीन के नीचे दो-ढाई मीटर तक लगाया जाता है। फ्लोर लेवल, लेंटेर लेवल, सेमी परमानेंट लेवल (टॉप) और साइड लेवल (दरवाजे-खिड़कियों के साइड) में बैंड (बीम) डालने जरूरी होते हैं। इस बात का ध्यान भी रखा जाता है कि कॉलम और ब्लॉक सही से एक दूसरे से जुड़े हों। क्या चलेगा पता - मिट्टी प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर कितना लोड झेल सकती है? - यह जगह कंस्ट्रक्शन के लिए ठीक है या नहीं? - इलाके में वॉटर लेवल कितना है? - वॉटर लेवल और बियरिंग कपैसिटी का सही अनुपात क्या है? - मिट्टी हार्ड है या सॉफ्ट? कौन करेगा जांच - मिट्टी की जांच की जिम्मेदारी सेमी गवर्नमेंट और प्राइवेट एजेंसी संभालती हैं। इसके लिए इंश्योरेंस सर्वेयर्स की तरह इंडिपेंडेंट सर्वेयर भी होते हैं। - जांच के बाद एक सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। कितना आएगा खर्च 90 गज के प्लॉट के लिए करीब 25 हजार रुपये। बिल्डिंग के लिए जिम्मेदारी - टेस्टिंग के बाद सर्वेयर और बिल्डिंग डिजाइन करने के बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियर एक सर्टिफिकेट जारी करते हैं। बिल्डिंग को कोई नुकसान पहुंचने पर इनकी भी जवाबदेही तय की जा सकती है। - यह भी अच्छी तरह से देख लें कि बिल्डर ने अपने स्ट्रक्चरल डिजाइन के लिए वेटिंग (बाहरी संस्था से जांच) करवाई है कि नहीं। अक्सर इस तरह की जांच देश भर के आईआईटी के सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट करते हैं। - जो बिल्डर मजबूत बिल्डिंग बनाते हैं, वे वेटिंग सर्टिफिकेट दिखाने में कोई कोताही नहीं बरतते। क्या है सेफ - कॉलम में सरिया कम-से-कम 12 मिमी. मोटाई वाला हो। - फाउंडेंशन कम-से-कम 900x900 सेमी की हो। - लेंटेर बीम (दरवाजों के ऊपर) में कम-से-कम 12 मिमी मोटाई का स्टील इस्तेमाल किया जाए। - पुटिंग में कम-से-कम 10-12 मिमी. मोटाई वाले स्टील का प्रयोग हो। - स्टील की मोटाई कंक्रीट की मोटाई के आधार पर कम या ज्यादा की जा सकती है। - स्टील की क्वॉलिटी बेहतर होनी चाहिए। स्टील जितनी इलैस्टिसिटी वाली होगी, भूकंप में बिल्डिंग उतनी ही मजबूत रहेगी। - कॉलम और ब्लॉक को जोड़ते वक्त इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इनकी लैपिंग सही तरीके से हो। जितनी अच्छी तरह से कॉलम एक-दूसरे से जुड़े होंगे उतना ही वे झटके लगने की स्थिति में एक दूसरे पर वेट ट्रांसफर कर सकेंगे। कैसी हों ब्रिक्स - मार्केट में परंपरागत ब्रिक्स की जगह नए डिजाइन और मटीरियल की ब्रिक्स भी आती हैं, जो ज्यादा टिकाऊ होती हैं। - इन्हें हॉलो ब्रिक्स कहा जाता है। ये कंक्रीट या फ्लाई ऐश की बनी होती हैं। - इनका वजन भी परंपरागत ब्रिक्स के मुकाबले कम होता है, जिससे बिल्डिंग पर लोड कम पड़ता है। - साइज में ये बड़ी होती हैं, जिससे यह ज्यादा स्पेस घेरती हैं, लेकिन लोड कम देती हैं। - ये हीट रेजिस्टेंट भी होती हैं। जिससे मकान कम गरम होते हैं और एयर कंडिशनिंग का खर्च भी कम हो जाता है। - हॉलो ब्रिक्स की कीमत परंपरागत ब्रिक्स के मुकाबले 10 फीसदी तक कम होती है।
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