डोसे की करोड़ों की कंपनी
केरल के छोटे-से गांव में पैदा हुए मुस्तफा क्लास 6 में जब फेल हो गए तो उनके परिवार के साथ उन्हें भी झटका लगा। उनके पिता काफी गरीब और घर के अकेले कमाने वाले थे। मुस्तफा जानते थे कि सीमित संसाधनों में पढ़ाई करना एक बड़ी चुनौती है। सरकारी कॉलेज से इंजिनियरिंग करने के बाद उन्होंने कुछ वक्त नौकरी की और इसके लिए विदेश भी गए, लेकिन उनका मन कुछ अपना करने का था।
मुस्तफा अच्छी तरह से जानते थे कि भारत में एक दूसरे को बांधने का काम खाना करता है और इसलिए उन्होंने इस फील्ड में ही कुछ करने की सोची। उन्होंने आईडी नाम से डोसा बैटर (डोसा बनाने का पतला घोल) बना कर बेचना शुरू किया। 2005 में छोटे-से दिखने वाले आइडिया से शुरू हुआ बिजनेस 2014 तक 100 करोड़ का हो गया। अपनी सफलता पर पीसी मुस्तफा का कहना है, 'जो मन में करने का आए उसे फौरन कर लो, क्योंकि ऑन्ट्रप्रनर की राह में कभी कल नहीं आता।'
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दिल की सुनो और आगे बढ़ो
इंजिनियरिंग और बिजनस मैनेजमेंट की डिग्री ले चुकीं रिचा के मन में शुरू से ही अपना कुछ करने का था, लेकिन वह किसी सॉलिड आइडिया पर पहुंच नहीं पा रही थीं। एक दिन अचानक उन्हें भारतीय महिलाओं को अंडरगारमेंट की खरीदारी को लेकर होने वाली समस्याओं का ख्याल आया। दुकानों पर महिला सेल्सपर्सन का न होना, सही साइज की जानकारी न होना आदि परेशानियों से राहत तकनीक ही दिला सकती थी।
रिचा ने ऑनलाइन लेडीज अंडरगारमेंट स्टोर जिवामे की शुरुआत करने की ठानी। सबसे पहले हायतौबा घर में ही मची जब रिचा की मां ने कहा 'मैं लोगों से क्या कहूंगी कि मेरी बेटी ऑनलाइन अंडरगारमेंट बेचती है।' रिचा ने जो ठान लिया था उस पर वह अड़ी रहीं और वह इस वक्त देश की जानी-मानी वेबसाइट की सीईओ के तौर पर जानी जाती हैं। जीवामे इस वक्त देश की बड़ी फंडिंग वाली कंपनियों में शुमार होती है।
किसी ने सच कहा है: कोई क्या कहता है इसे सुनने से बेहतर है कि हमारा दिल क्या कहता है उसे सुनें। स्टार्टअप के लिए छोड़ा आईएएस अक्सर लोग कुछ कमाने के लिए स्टार्टअप शुरू करते हैं, लेकिन कुछ का अंदाज जुदा होता है। ऐसे ही एक शख्स हैं रोमन सैनी। उम्र सिर्फ 24 साल। जयपुर में जन्मे रोमन सैनी ने इतनी कम उम्र में वो सब हासिल किया, जिसका सपना हर इंसान देखता है। एम्स का डॉक्टर बनना और फिर आईएएस बनना। लेकिन रोमन ने अपने लिए कुछ और ही सोच रखा है।
रोमन अपने दोस्त गौरव मुंजाल के साथ मिलकर यू ट्यूब पर बच्चों को पढ़ाते हैं। उनके लिए ज़रूरी लेक्चर देते हैं। खासकर उन बच्चों के लिए जो डॉक्टर बनना चाहते हैं या सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं या फिर कंप्यूटर प्रोग्रामर्स बनना चाहते हैं। रोमन और उनके दोस्त गौरव ने मिलकर Unacademy.in नाम का ई-ट्यूटर प्लेटफॉर्म तैयार किया। इस पर सारी पढ़ाई पूरी तरह मुफ्त है। दिलचस्प बात यह है कि रोमन की ये मेहनत रंग ला रही है। उन्हें फॉलो करने वाले 10 स्टूडेंट्स सिविल सर्विसेज एग्जाम पास कर चुके हैं।
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समझें अपना रास्ता
कुछ भी अपना शुरू करने से पहले इस बात को समझना जरूरी है कि आप किस रास्ते पर जा रहे हैं और वहां की जरूरतें क्या-क्या हैं। मिसाल के तौर पर अक्सर अपना कुछ करने के लिए 'ऑन्ट्रप्रनरशिप' और 'स्टार्टअप' जैसे दो शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो इनमें कोई खास फर्क नहीं है लेकिन नए वक्त के हिसाब से बदलते बिजनेस के रंगढंग ने स्टार्टअप शब्द को जन्म दिया है। मूलरूप से स्टार्टअप अक्सर उन बिजनेसों को कहते हैं जो किसी ऐसे आइडिया पर होते हैं जिन पर पहले काम नहीं हुआ है।
एक उदाहरण से इसे समझ सकते हैं। एक बिजी मार्केट मे बहुत सारे रेस्तरां होते हैं। मान लीजिये एक नया रेस्तरां उसी बाजार मे खुलता है। तो वो स्टार्ट अप नहीं कहलाएगा। लेकिन कोई पहली बार एक मोबाइल ऐप बनाता है जिससे आप घर बैठे आसपास के रेस्तरां के मेनू देख सकते हैं, खाना ऑर्डर कर सकते हैं, कीमतों की तुलना कर सकते हैं, खाने की क्वॉलिटी की रेटिंग देख सकते हैं। ऐसे कारोबार को शुरू करने वाली कंपनी स्टार्ट अप कहलाएगी।
फेसबुक, गूगल कभी ऐसी ही स्टार्ट अप थीं। बहुत कम पूंजी से शुरू हुए यह स्टार्ट अप करोड़ो की कंपनी बनने का दम रखते हैं। परिभाषाओं को छोड़ कर अगर खालिस काम की बात की जाए तो यह जानना बहुत जरूरी है कि अपना कुछ भी शुरू करने के लिए बिजनेस से जुड़ी बेसिक बातों के बारे में जानना बहुत जरूरी है।
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खास तौर पर प्लानिंग और फंडिंग जैसे दो लेवल पर सोचने की जरूरत होती है:
1- करें फूलप्रूफ प्लानिंग इस लेवल पर आइडिया को लेकर स्पष्टता का होना बहुत जरूरी होता है। आइडिया लेवल पर ही फोकस न होना स्टार्टअप के फेल होने का सबसे बड़ा कारण साबित होता है। प्लानिंग करते वक्त खुद से ये सवाल जरूर पूछें:
क्या मेरा आइडिया या प्रॉडक्ट वाकई किसी के काम का है? क्या किसी जरूरत को पूरा करने के लिए शुरू किए किसी खास बिजनेस से मुझे फायदा होगा? क्या मेरे आइडिया पर पहले से कंपनियां काम कर रही हैं? अगर हां तो मेरा प्लान उनसे कितना बेहतर या अलग है? क्या आइडिया को जमीन पर लाना प्रैक्टिकल तरीके से मुमकिन है? मेरा आइडिया अच्छा तो है, लेकिन क्या इसे लोगों तक पहुंचाना मुमकिन है? मेरा आइडिया कितना लीगल है? उसमें किसी कानूनी पचड़े तो नहीं हैं? क्या यह ऑपरेट करने के लिहाज से सेफ है? बिजनेस शुरू करने और इसकी मार्केटिंग में आने वाले खर्च को जुटाना क्या मुमकिन है? क्या बिजनेस से मुनाफा मिलने की दर इतनी होगी कि मैं सफलता से अपने आइडिया को जमीन पर जमाए रख सकूं? अगर बेसिक आइडिया सफल हो गया तो क्या वक्त के हिसाब से इसे आगे बढ़ाना और बदलना मुमकिन होगा? क्या मैं अपने आइडिया को कॉपीराइट या पेटेंट के जरिए सेफ करने की स्थिति में हूं? कहीं मेरा आइडिया किसी दूसरे के पेटेंट या कॉपीराइट का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है? क्या इसके लिए कच्चा माल और मैन पावर उपलब्ध है? जिस आइडिया पर हम काम कर रहे हैं उस फील्ड के बारे में कोई एक्सपीरियंस मुझे या मेरे पार्टनर को है कि नहीं?
अगले स्टेज में
बिजनेस डिटेल्स जैसे नाम, लोकेशन, मार्केट और इस फील्ड में पहले से मौजूद कंपनियों से कॉम्पिटिशन जैसी चीजें प्लान करें। बिजनस से आप क्या पाना चाहते हैं और कैसे पाना चाहते हैं इसके बारे में डॉक्युमेंट तैयार करें मिसाल के तौर पर आप 1 या 2 साल बाद खुद को और अपने बिजनेस को किस मुकाम पर देखते हैं। कितने फंड की जरूरत है फंड को इस्तेमाल कैसे करेंगे। अपने प्रॉडक्ट से सर्विस से जुड़ी मार्केट का ब्योरा तैयार करें। इससे जुड़ी इंडस्ट्री के ट्रेंड की जानकारी लें। किस मार्केट को टारगेट करना है इसके बारे में भी डॉक्युमेंट तैयार करें। इसमें एक्सपर्ट की मदद भी ली जा सकती है।
पेटेंट, कॉपीराइट और लीगल मामले कैसे और कौन हैंडल करेगा इसका प्लान बनाएं। प्रॉडक्ट या सर्विस की कीमत और बेचने का ब्लू प्रिंट तैयार करें। किस तरह का ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर अपनाएंगे। यह तय करें। बेहतर होगा कि बिजनेस की शुरुआत में ही महंगे ऑफिस में इन्वेस्टमेंट न करें। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर या ओनरशिप किसके पास होगी, इसके बारे में पहले प्लान कर लेने से बिजनेस के सफल होने के बाद के झगड़ों से बचा जा सकता है। अक्सर बढ़ते बिजनेस में जिम्मेदारी का साफ-साफ बंटवारा न होने से बिजनेस पर ब्रेक लग सकता है।
तय करें कि कौन-सा पार्टनर क्या करेगा। स्टाफ प्लान या कितने कर्मचारी होंगे इसके बारे में भी सोच लें। स्टार्ट-अप्स काफी उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर कर अपने मुकाम पर पहुंचते हैं। ऐसे में जल्दबाजी या बिना प्लानिंग की हायरिंग जहां कंपनी को नुकसान पहुंचा सकती है वहीं काम करने वाले के करियर पर भी इसका बुरा असर होता है। अगले एक या दो साल तक बिजनेस चलाने का ऑपरेशनल प्लान जरूर तैयार करें। इसके लिए फंड के अलावा इस बारे में भी सोचें कि अगर सफलता नहीं मिली तो आपका प्लान 'बी' क्या हो सकता है।
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फंडिंग
स्टार्टअप शुरू करने की सबसे चैलेंजिंग स्टेज है फंड जुटाना। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि प्लानिंग के लेवल पर जहां आप काफी कुछ कंट्रोल करने की हालत में होते हैं, वहीं फंडिंग के लेवल पर कुछ भी आपके हाथ में नहीं होता। हो सकता है कि जो प्लानिंग बड़े बिजनेस के सपने दिखा रही हो वह फंड करने वालों को किसी काम का न लगे।
मुख्य रूप से किसी बिजनेस के लिए पैसों का जुगाड़ इन तरीकों से होता है: अपना पैसा बैंक से लोन लेकर किसी पार्टनर को फाइनैंसर बना कर या प्राइवेट इक्विटी (हिस्सेदारी) देकर VC (वेंचर कैपिटलिस्ट) के सहारे
ऐसे मिलेगा लोन
अपना बिजनेस शुरू करने के लिए अगर आपको बैंक लोन लेना है तो कंपनी लॉ के तहत आपकी कंपनी का रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है।
इसके बाद कंपनी को मिनिस्ट्री ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज से अप्रूवल लेना होगा। यह तब ही मिलेगा जब इस मिनिस्ट्री की गाइडलाइन पर आप खरे उतरेंगे। इसकी पूरी जानकारी आप dcmsme.gov.in पर जाकर ले सकते हैं।
एक बार यहां से अप्रूव हो जाने के बाद बैंक 1 करोड़ तक का लोन बिना कुछ गिरवी रखे दे सकता है। - बैंक लोन देते वक्त खाता खुलवाते वक्त की गई तमाम औपचारिकताओं के अलावा बिजनेस की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी मांगता है।
अगर प्रॉडक्शन से जुड़ा बिजनेस शुरू करते हैं तो पॉल्यूशन और लेबर मिनिस्ट्री से मिलने वाली एनओसी भी देनी पड़ती है। - अगर कंपनी सोल प्रोपराइटरशिप (केवल एक इंसान द्वारा चलाई जा रही) वाली है और वह बिजनेस शुरू करने के लिए पैसा चाहती है तो उसे स्टेट लेवल पर चलने वाले डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) से अप्रूवल की जरूरत होती है। हर स्टेट में इनके लिए अलग-अलग मापदंड तय किए गए हैं।
प्राइवेट इक्विटी और एंजल इन्वेस्टर : नए जमाने में जहां बिजनेस के नए आइडिया आए वहीं फंडिंग ने भी नए-नए रास्ते तलाशे हैं। एंजल इन्वेस्टर और वेंचर कैपिटलिस्ट भी फंडिंग के ऐसे ही रास्ते हैं। यह मुख्य रूप से किसी इंसान या फर्म की तरफ से किसी दूसरे के बिजनेस में किया गया स्ट्रैटजिक इन्वेस्टमेंट होता है।
एंजल इन्वेस्टर या वेंचर कैपिटलिस्ट अक्सर बिजनेस की दुनिया के बड़े लोग होते हैं। किसी भी स्टार्टअप को वह अपने अनुभव के हिसाब से आंकते हैं और फिर इन्वेस्टमेंट करते हैं। इस तरह के इन्वेस्टमेंट प्राइवेट इक्विटी के तौर पर भी होते हैं।
प्राइवेट इक्विटी - यह अक्सर पहले से कमाई करने वाली कंपनी पर पैसा लगाना चाहते हैं। यह हर तरह की कंपनियों पर पैसा लगाती हैं और मुनाफा को ही महत्व देते हैं। बिजनेस मॉडल और साइज के हिसाब से इन्वेस्मेंट की रकम तय करते हैं। कम से कम 6 से 10 साल तक में कई स्टेजों में पूरी फंडिंग करती हैं। अक्सर कंपनी पर पूरा कंट्रोल रखते हैं और बड़े शेयर की डिमांड करते हैं।
इन्वेस्टर कंपनी के रोजमर्रा के काम में ज्यादा एक्टिव नहीं रहते जब तक कि कंपनी पॉलिसी के लेवल पर कोई भारी बदलाव न करना चाहे। एंजल इन्वेस्टर या वेंचर कैपिटलिस्ट लोन के जरिए बिजनेस न शुरू करने का सबसे बड़ा कारण यह होता है कि अक्सर लोन लेकर बिजनेस करने में सारा दारोमदार आप पर आ जाता है, जबकि वेंचर कैपिटलिस्ट आइडिएशन से लेकर एक्सपर्ट एडवाइस तक देने के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं। वैसे देखा जाए तो वेंचर कैपिटलिस्ट और प्राइवेट इक्विटी बिजनेस के लिए पैसा जुटाने का मिलता-जुलता ही तरीका है।
इसमें आपके आइडिया के पीछे पैसा लगाने के बदले उसमें प्रॉफिट शेयर करना होता है।
किसी स्टार्ट अप को बड़ा होने के लिए फंड की जरूरत होती है। एक कंपनी जिसमें कुछ लाख लगे होते हैं, कुछ लोग काम कर रहे होते हैं, लेकिन उसके पास ऐसी तकनीक है जो दुनिया बदल सकती है। और उसे ज्यादा पैसों की जरूरत होती है। ये पैसा आता है, वेंचर कैपिटल फर्म से या एंजल इन्वेस्टर से। मिलियन और बिलियन डॉलर में। जैसे फ्लिप कार्ट को मिला, ओला जैसी कंपनियों को मिल रहा है।
किसी आइडिया को बिजनेस की शक्ल देने की शुरुआत में ही वेंचर कैपिटलिस्ट का बड़ा रोल होता है। कम पूंजी से शुरू किए गए बिजनेस को अक्सर इनसे फायदा होता है।
इस तरह की फंडिंग अक्सर हाई ग्रोथ सेक्टर वाले बिजनेस जैसे आईटी, बायोमेडिकल और अल्टरनेटिव एनर्जी आदि सेक्टर में ज्यादा होती है।
एंजल इन्वेस्टर शुरुआत में अक्सर छोटे इन्वेस्टमेंट के लिए ही तैयार होते हैं। अक्सर वेंचर कैपिटलिस्ट 10 लाख रुपये तक की रकम ही फंड करते हैं।
फंडिंग पीरियड 4 से लेकर 7 साल का होता है।
वेंचर कैपिटलिस्ट कंपनी में अक्सर छोटे शेयर ही लेती हैं लेकिन शर्तें आइडिया देने वाले और कंपनी के बीच तय होती हैं।
ये इन्वेस्टर हर मुकाम पर राय देते हैं और अपने कनेक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन सर्कल का भी फायदा देते हैं।
इनक्यूबेटर और अक्सेलरेटर को भी समझें बिजनेस की शुरुआत करने वालों के लिए इन दो शब्दों के मायने जानना बहुत जरूरी हैं। इन्क्यूबेटर यह आइडिया के शुरुआती दौर में उसे प्रॉडक्ट के लेवल तक ले जाने में मदद करता है। इस दौरान यह एक्सपर्ट सलाह तो देता ही है, पूरे आइडिया को फाइन ट्यून करने का काम भी करता है। उनकी तरफ से इस लेवल पर ऑफिस खोलने की जगह और चंद महीने के टारगेट के हिसाब से फंडिंग दी जाती है। इसका मकसद होता है एक बिजनेस आइडिया को प्लान के लेवल से हकीकत की जमीन पर उतारना। किसी भी बिजनेस का असली टेस्ट इस लेवल के बाद ही शुरू होता है। अक्सर एंजल इन्वेस्टर भी इन्क्यूबेटर की कसौटी पर खरे उतर चुके बिजनेस आइडिया को ही भाव देते हैं। अक्सेलरेटर जैसा कि नाम से ही पता चलता है यह आपके आइडिया को स्पीड देने का काम करता है। इनका रोल तब अधिक होता है जब एक बिजनेस आइडिया इन्क्यूबेटर के लेवल से आगे निकल जाता है लेकिन उसके बड़ा बनने में कुछ कसर बाकी है। यह तय वक्त के लिए आपके बिजनस आइडिया को अपने सहारे ऊंची उड़ान दिलाने में मदद करते हैं।
इन्क्यूबेटर और अक्सेलरेटर अमूमन नए बिजनेस आइडिया को एक ऑफिस स्पेस के साथ ही एक्सपर्ट्स की मदद भी दिलाते हैं। ये दोनों ही बेहतरीन आइडिया को हर मुकाम पर पालने-पोसने की जिम्मेदारी उठाते हैं। मुख्य फंडिंग यह वह दौर है जब कंपनी न सिर्फ आइडिया के लेवल पर खुद को साबित कर देती है, बल्कि बिजनेस के धरातल पर यानी कस्टमर के लेवल पर पहुंच जाती है। यह बड़ा इन्वेस्टमेंट पाने का दौर होता है। अक्सर इस लेवल पर पहुंच चुकी कंपनी करोड़ों के टर्नओवर तक पहुंच चुकी होती है।
कंपनी रजिस्ट्रेशन को भी समझें भारत में किसी भी कंपनी को रजिस्टर्ड करने के लिए बाकायदा मिनीस्ट्री ऑफ कार्पोरेट अफेयर काम करती है। भारत में कंपनियां दो स्वरूपों: सोल प्रोपराइटरशिप और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह रजिस्टर कराया जा सकता है।
कंपनी लॉ के अनुसार, किसी भी रजिस्टर्ड कंपनी के लिए कम से कम 2 पार्टनर और 2 शेयर होल्डर होना जरूरी है।
शेयर होल्डर्स किसी भी हाल में 50 से ज्यादा नहीं हो सकते।
किसी भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में आम पब्लिक शेयर नहीं खरीद सकती है।
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करें ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन
इसके लिए www.mca.gov.in/MCA21/RegisterNewComp.html पर जा सकते हैं। सोल प्रोपराइटरशिप बिजनेस के लिए कंपनी लॉ के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराना पड़ता। नई कंपनी खोलने का यह आसान और पुराना तरीका है। ऐसी कंपनी का बैंक अकाउंट तो कंपनी के नाम पर ही होता है लेकिन उसे ऑपरेट कंपनी का फाउंडर अपने सिग्नेचर से ही करता है। इसमें किसी भी तरह के कम से कम या अधिक से अधिक रकम की लिमिट नहीं होती। ऐसी कंपनी की पहचान उसके ओनर से ही होती है और इसके अलावा उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती।
मिले-जुलें और फंडिंग पाएं
जितनी जरूरत बिजनेस शुरू करने वालों के पैसों की है उतनी ही जरूरत पैसे वालों को अच्छे आइडिया की है। ऐसे में देश भर में साल भर में कई तरह की पेड और फ्री स्टार्ट-अप मीट्स साल भर होती रहती हैं। इन मीटिंगों से कई बिजनेस आइडिया परवान चढ़ चुके हैं। ऐसे में यहां से मिल सकती है मदद: Startup Saturday हर हफ्ते वीकेंड पर होने वाली यह इवेंट उन लोगों को लिए काफी फायदेमंद होती हैं जो नौकरी करते हुए अपने बिजनेस का सपना देख रहे हैं। ज्यादा जानकारी के लिए startupsaturday.headstart.in पर जाएं। TiE Events यह देश में इस तरह की मीटिंग के लिए काफी पॉपुलर अड्डा है।
इसके शेड्यूल की पूरी जानकारी www.tiecon.org पर मिल सकती है। Indian Angel Network Events यह दुनियाभर में फैले भारतीय ऑन्ट्रप्रनर्स को एक मंच पर लाने वाला नेटवर्क है। इसकी मीटिंगें टेक बिजनेस शुरू करने वालों के काफी काम आ सकती हैं। पूरी जानकारी indianangelnetwork.com पर मिल सकती है। Startup Jalsa यह जलसा सही मायने में स्टार्ट-अप का जलसा है। यहां पर कई बड़े मेंटर्स और बिजनेस जगत के लोग जुटते हैं। startupjalsa.com पर लॉगइन करके जानकारी मिल सकती है।
केरल के छोटे-से गांव में पैदा हुए मुस्तफा क्लास 6 में जब फेल हो गए तो उनके परिवार के साथ उन्हें भी झटका लगा। उनके पिता काफी गरीब और घर के अकेले कमाने वाले थे। मुस्तफा जानते थे कि सीमित संसाधनों में पढ़ाई करना एक बड़ी चुनौती है। सरकारी कॉलेज से इंजिनियरिंग करने के बाद उन्होंने कुछ वक्त नौकरी की और इसके लिए विदेश भी गए, लेकिन उनका मन कुछ अपना करने का था।
मुस्तफा अच्छी तरह से जानते थे कि भारत में एक दूसरे को बांधने का काम खाना करता है और इसलिए उन्होंने इस फील्ड में ही कुछ करने की सोची। उन्होंने आईडी नाम से डोसा बैटर (डोसा बनाने का पतला घोल) बना कर बेचना शुरू किया। 2005 में छोटे-से दिखने वाले आइडिया से शुरू हुआ बिजनेस 2014 तक 100 करोड़ का हो गया। अपनी सफलता पर पीसी मुस्तफा का कहना है, 'जो मन में करने का आए उसे फौरन कर लो, क्योंकि ऑन्ट्रप्रनर की राह में कभी कल नहीं आता।'
दिल की सुनो और आगे बढ़ो
इंजिनियरिंग और बिजनस मैनेजमेंट की डिग्री ले चुकीं रिचा के मन में शुरू से ही अपना कुछ करने का था, लेकिन वह किसी सॉलिड आइडिया पर पहुंच नहीं पा रही थीं। एक दिन अचानक उन्हें भारतीय महिलाओं को अंडरगारमेंट की खरीदारी को लेकर होने वाली समस्याओं का ख्याल आया। दुकानों पर महिला सेल्सपर्सन का न होना, सही साइज की जानकारी न होना आदि परेशानियों से राहत तकनीक ही दिला सकती थी।
रिचा ने ऑनलाइन लेडीज अंडरगारमेंट स्टोर जिवामे की शुरुआत करने की ठानी। सबसे पहले हायतौबा घर में ही मची जब रिचा की मां ने कहा 'मैं लोगों से क्या कहूंगी कि मेरी बेटी ऑनलाइन अंडरगारमेंट बेचती है।' रिचा ने जो ठान लिया था उस पर वह अड़ी रहीं और वह इस वक्त देश की जानी-मानी वेबसाइट की सीईओ के तौर पर जानी जाती हैं। जीवामे इस वक्त देश की बड़ी फंडिंग वाली कंपनियों में शुमार होती है।
किसी ने सच कहा है: कोई क्या कहता है इसे सुनने से बेहतर है कि हमारा दिल क्या कहता है उसे सुनें। स्टार्टअप के लिए छोड़ा आईएएस अक्सर लोग कुछ कमाने के लिए स्टार्टअप शुरू करते हैं, लेकिन कुछ का अंदाज जुदा होता है। ऐसे ही एक शख्स हैं रोमन सैनी। उम्र सिर्फ 24 साल। जयपुर में जन्मे रोमन सैनी ने इतनी कम उम्र में वो सब हासिल किया, जिसका सपना हर इंसान देखता है। एम्स का डॉक्टर बनना और फिर आईएएस बनना। लेकिन रोमन ने अपने लिए कुछ और ही सोच रखा है।
रोमन अपने दोस्त गौरव मुंजाल के साथ मिलकर यू ट्यूब पर बच्चों को पढ़ाते हैं। उनके लिए ज़रूरी लेक्चर देते हैं। खासकर उन बच्चों के लिए जो डॉक्टर बनना चाहते हैं या सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं या फिर कंप्यूटर प्रोग्रामर्स बनना चाहते हैं। रोमन और उनके दोस्त गौरव ने मिलकर Unacademy.in नाम का ई-ट्यूटर प्लेटफॉर्म तैयार किया। इस पर सारी पढ़ाई पूरी तरह मुफ्त है। दिलचस्प बात यह है कि रोमन की ये मेहनत रंग ला रही है। उन्हें फॉलो करने वाले 10 स्टूडेंट्स सिविल सर्विसेज एग्जाम पास कर चुके हैं।
समझें अपना रास्ता
कुछ भी अपना शुरू करने से पहले इस बात को समझना जरूरी है कि आप किस रास्ते पर जा रहे हैं और वहां की जरूरतें क्या-क्या हैं। मिसाल के तौर पर अक्सर अपना कुछ करने के लिए 'ऑन्ट्रप्रनरशिप' और 'स्टार्टअप' जैसे दो शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो इनमें कोई खास फर्क नहीं है लेकिन नए वक्त के हिसाब से बदलते बिजनेस के रंगढंग ने स्टार्टअप शब्द को जन्म दिया है। मूलरूप से स्टार्टअप अक्सर उन बिजनेसों को कहते हैं जो किसी ऐसे आइडिया पर होते हैं जिन पर पहले काम नहीं हुआ है।
एक उदाहरण से इसे समझ सकते हैं। एक बिजी मार्केट मे बहुत सारे रेस्तरां होते हैं। मान लीजिये एक नया रेस्तरां उसी बाजार मे खुलता है। तो वो स्टार्ट अप नहीं कहलाएगा। लेकिन कोई पहली बार एक मोबाइल ऐप बनाता है जिससे आप घर बैठे आसपास के रेस्तरां के मेनू देख सकते हैं, खाना ऑर्डर कर सकते हैं, कीमतों की तुलना कर सकते हैं, खाने की क्वॉलिटी की रेटिंग देख सकते हैं। ऐसे कारोबार को शुरू करने वाली कंपनी स्टार्ट अप कहलाएगी।
फेसबुक, गूगल कभी ऐसी ही स्टार्ट अप थीं। बहुत कम पूंजी से शुरू हुए यह स्टार्ट अप करोड़ो की कंपनी बनने का दम रखते हैं। परिभाषाओं को छोड़ कर अगर खालिस काम की बात की जाए तो यह जानना बहुत जरूरी है कि अपना कुछ भी शुरू करने के लिए बिजनेस से जुड़ी बेसिक बातों के बारे में जानना बहुत जरूरी है।
खास तौर पर प्लानिंग और फंडिंग जैसे दो लेवल पर सोचने की जरूरत होती है:
1- करें फूलप्रूफ प्लानिंग इस लेवल पर आइडिया को लेकर स्पष्टता का होना बहुत जरूरी होता है। आइडिया लेवल पर ही फोकस न होना स्टार्टअप के फेल होने का सबसे बड़ा कारण साबित होता है। प्लानिंग करते वक्त खुद से ये सवाल जरूर पूछें:
क्या मेरा आइडिया या प्रॉडक्ट वाकई किसी के काम का है? क्या किसी जरूरत को पूरा करने के लिए शुरू किए किसी खास बिजनेस से मुझे फायदा होगा? क्या मेरे आइडिया पर पहले से कंपनियां काम कर रही हैं? अगर हां तो मेरा प्लान उनसे कितना बेहतर या अलग है? क्या आइडिया को जमीन पर लाना प्रैक्टिकल तरीके से मुमकिन है? मेरा आइडिया अच्छा तो है, लेकिन क्या इसे लोगों तक पहुंचाना मुमकिन है? मेरा आइडिया कितना लीगल है? उसमें किसी कानूनी पचड़े तो नहीं हैं? क्या यह ऑपरेट करने के लिहाज से सेफ है? बिजनेस शुरू करने और इसकी मार्केटिंग में आने वाले खर्च को जुटाना क्या मुमकिन है? क्या बिजनेस से मुनाफा मिलने की दर इतनी होगी कि मैं सफलता से अपने आइडिया को जमीन पर जमाए रख सकूं? अगर बेसिक आइडिया सफल हो गया तो क्या वक्त के हिसाब से इसे आगे बढ़ाना और बदलना मुमकिन होगा? क्या मैं अपने आइडिया को कॉपीराइट या पेटेंट के जरिए सेफ करने की स्थिति में हूं? कहीं मेरा आइडिया किसी दूसरे के पेटेंट या कॉपीराइट का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है? क्या इसके लिए कच्चा माल और मैन पावर उपलब्ध है? जिस आइडिया पर हम काम कर रहे हैं उस फील्ड के बारे में कोई एक्सपीरियंस मुझे या मेरे पार्टनर को है कि नहीं?
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बिजनेस डिटेल्स जैसे नाम, लोकेशन, मार्केट और इस फील्ड में पहले से मौजूद कंपनियों से कॉम्पिटिशन जैसी चीजें प्लान करें। बिजनस से आप क्या पाना चाहते हैं और कैसे पाना चाहते हैं इसके बारे में डॉक्युमेंट तैयार करें मिसाल के तौर पर आप 1 या 2 साल बाद खुद को और अपने बिजनेस को किस मुकाम पर देखते हैं। कितने फंड की जरूरत है फंड को इस्तेमाल कैसे करेंगे। अपने प्रॉडक्ट से सर्विस से जुड़ी मार्केट का ब्योरा तैयार करें। इससे जुड़ी इंडस्ट्री के ट्रेंड की जानकारी लें। किस मार्केट को टारगेट करना है इसके बारे में भी डॉक्युमेंट तैयार करें। इसमें एक्सपर्ट की मदद भी ली जा सकती है।
पेटेंट, कॉपीराइट और लीगल मामले कैसे और कौन हैंडल करेगा इसका प्लान बनाएं। प्रॉडक्ट या सर्विस की कीमत और बेचने का ब्लू प्रिंट तैयार करें। किस तरह का ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर अपनाएंगे। यह तय करें। बेहतर होगा कि बिजनेस की शुरुआत में ही महंगे ऑफिस में इन्वेस्टमेंट न करें। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर या ओनरशिप किसके पास होगी, इसके बारे में पहले प्लान कर लेने से बिजनेस के सफल होने के बाद के झगड़ों से बचा जा सकता है। अक्सर बढ़ते बिजनेस में जिम्मेदारी का साफ-साफ बंटवारा न होने से बिजनेस पर ब्रेक लग सकता है।
तय करें कि कौन-सा पार्टनर क्या करेगा। स्टाफ प्लान या कितने कर्मचारी होंगे इसके बारे में भी सोच लें। स्टार्ट-अप्स काफी उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर कर अपने मुकाम पर पहुंचते हैं। ऐसे में जल्दबाजी या बिना प्लानिंग की हायरिंग जहां कंपनी को नुकसान पहुंचा सकती है वहीं काम करने वाले के करियर पर भी इसका बुरा असर होता है। अगले एक या दो साल तक बिजनेस चलाने का ऑपरेशनल प्लान जरूर तैयार करें। इसके लिए फंड के अलावा इस बारे में भी सोचें कि अगर सफलता नहीं मिली तो आपका प्लान 'बी' क्या हो सकता है।
फंडिंग
स्टार्टअप शुरू करने की सबसे चैलेंजिंग स्टेज है फंड जुटाना। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि प्लानिंग के लेवल पर जहां आप काफी कुछ कंट्रोल करने की हालत में होते हैं, वहीं फंडिंग के लेवल पर कुछ भी आपके हाथ में नहीं होता। हो सकता है कि जो प्लानिंग बड़े बिजनेस के सपने दिखा रही हो वह फंड करने वालों को किसी काम का न लगे।
मुख्य रूप से किसी बिजनेस के लिए पैसों का जुगाड़ इन तरीकों से होता है: अपना पैसा बैंक से लोन लेकर किसी पार्टनर को फाइनैंसर बना कर या प्राइवेट इक्विटी (हिस्सेदारी) देकर VC (वेंचर कैपिटलिस्ट) के सहारे
ऐसे मिलेगा लोन
अपना बिजनेस शुरू करने के लिए अगर आपको बैंक लोन लेना है तो कंपनी लॉ के तहत आपकी कंपनी का रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है।
इसके बाद कंपनी को मिनिस्ट्री ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज से अप्रूवल लेना होगा। यह तब ही मिलेगा जब इस मिनिस्ट्री की गाइडलाइन पर आप खरे उतरेंगे। इसकी पूरी जानकारी आप dcmsme.gov.in पर जाकर ले सकते हैं।
एक बार यहां से अप्रूव हो जाने के बाद बैंक 1 करोड़ तक का लोन बिना कुछ गिरवी रखे दे सकता है। - बैंक लोन देते वक्त खाता खुलवाते वक्त की गई तमाम औपचारिकताओं के अलावा बिजनेस की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी मांगता है।
अगर प्रॉडक्शन से जुड़ा बिजनेस शुरू करते हैं तो पॉल्यूशन और लेबर मिनिस्ट्री से मिलने वाली एनओसी भी देनी पड़ती है। - अगर कंपनी सोल प्रोपराइटरशिप (केवल एक इंसान द्वारा चलाई जा रही) वाली है और वह बिजनेस शुरू करने के लिए पैसा चाहती है तो उसे स्टेट लेवल पर चलने वाले डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) से अप्रूवल की जरूरत होती है। हर स्टेट में इनके लिए अलग-अलग मापदंड तय किए गए हैं।
प्राइवेट इक्विटी और एंजल इन्वेस्टर : नए जमाने में जहां बिजनेस के नए आइडिया आए वहीं फंडिंग ने भी नए-नए रास्ते तलाशे हैं। एंजल इन्वेस्टर और वेंचर कैपिटलिस्ट भी फंडिंग के ऐसे ही रास्ते हैं। यह मुख्य रूप से किसी इंसान या फर्म की तरफ से किसी दूसरे के बिजनेस में किया गया स्ट्रैटजिक इन्वेस्टमेंट होता है।
एंजल इन्वेस्टर या वेंचर कैपिटलिस्ट अक्सर बिजनेस की दुनिया के बड़े लोग होते हैं। किसी भी स्टार्टअप को वह अपने अनुभव के हिसाब से आंकते हैं और फिर इन्वेस्टमेंट करते हैं। इस तरह के इन्वेस्टमेंट प्राइवेट इक्विटी के तौर पर भी होते हैं।
प्राइवेट इक्विटी - यह अक्सर पहले से कमाई करने वाली कंपनी पर पैसा लगाना चाहते हैं। यह हर तरह की कंपनियों पर पैसा लगाती हैं और मुनाफा को ही महत्व देते हैं। बिजनेस मॉडल और साइज के हिसाब से इन्वेस्मेंट की रकम तय करते हैं। कम से कम 6 से 10 साल तक में कई स्टेजों में पूरी फंडिंग करती हैं। अक्सर कंपनी पर पूरा कंट्रोल रखते हैं और बड़े शेयर की डिमांड करते हैं।
इन्वेस्टर कंपनी के रोजमर्रा के काम में ज्यादा एक्टिव नहीं रहते जब तक कि कंपनी पॉलिसी के लेवल पर कोई भारी बदलाव न करना चाहे। एंजल इन्वेस्टर या वेंचर कैपिटलिस्ट लोन के जरिए बिजनेस न शुरू करने का सबसे बड़ा कारण यह होता है कि अक्सर लोन लेकर बिजनेस करने में सारा दारोमदार आप पर आ जाता है, जबकि वेंचर कैपिटलिस्ट आइडिएशन से लेकर एक्सपर्ट एडवाइस तक देने के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं। वैसे देखा जाए तो वेंचर कैपिटलिस्ट और प्राइवेट इक्विटी बिजनेस के लिए पैसा जुटाने का मिलता-जुलता ही तरीका है।
इसमें आपके आइडिया के पीछे पैसा लगाने के बदले उसमें प्रॉफिट शेयर करना होता है।
किसी स्टार्ट अप को बड़ा होने के लिए फंड की जरूरत होती है। एक कंपनी जिसमें कुछ लाख लगे होते हैं, कुछ लोग काम कर रहे होते हैं, लेकिन उसके पास ऐसी तकनीक है जो दुनिया बदल सकती है। और उसे ज्यादा पैसों की जरूरत होती है। ये पैसा आता है, वेंचर कैपिटल फर्म से या एंजल इन्वेस्टर से। मिलियन और बिलियन डॉलर में। जैसे फ्लिप कार्ट को मिला, ओला जैसी कंपनियों को मिल रहा है।
किसी आइडिया को बिजनेस की शक्ल देने की शुरुआत में ही वेंचर कैपिटलिस्ट का बड़ा रोल होता है। कम पूंजी से शुरू किए गए बिजनेस को अक्सर इनसे फायदा होता है।
इस तरह की फंडिंग अक्सर हाई ग्रोथ सेक्टर वाले बिजनेस जैसे आईटी, बायोमेडिकल और अल्टरनेटिव एनर्जी आदि सेक्टर में ज्यादा होती है।
एंजल इन्वेस्टर शुरुआत में अक्सर छोटे इन्वेस्टमेंट के लिए ही तैयार होते हैं। अक्सर वेंचर कैपिटलिस्ट 10 लाख रुपये तक की रकम ही फंड करते हैं।
फंडिंग पीरियड 4 से लेकर 7 साल का होता है।
वेंचर कैपिटलिस्ट कंपनी में अक्सर छोटे शेयर ही लेती हैं लेकिन शर्तें आइडिया देने वाले और कंपनी के बीच तय होती हैं।
ये इन्वेस्टर हर मुकाम पर राय देते हैं और अपने कनेक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन सर्कल का भी फायदा देते हैं।
इनक्यूबेटर और अक्सेलरेटर को भी समझें बिजनेस की शुरुआत करने वालों के लिए इन दो शब्दों के मायने जानना बहुत जरूरी हैं। इन्क्यूबेटर यह आइडिया के शुरुआती दौर में उसे प्रॉडक्ट के लेवल तक ले जाने में मदद करता है। इस दौरान यह एक्सपर्ट सलाह तो देता ही है, पूरे आइडिया को फाइन ट्यून करने का काम भी करता है। उनकी तरफ से इस लेवल पर ऑफिस खोलने की जगह और चंद महीने के टारगेट के हिसाब से फंडिंग दी जाती है। इसका मकसद होता है एक बिजनेस आइडिया को प्लान के लेवल से हकीकत की जमीन पर उतारना। किसी भी बिजनेस का असली टेस्ट इस लेवल के बाद ही शुरू होता है। अक्सर एंजल इन्वेस्टर भी इन्क्यूबेटर की कसौटी पर खरे उतर चुके बिजनेस आइडिया को ही भाव देते हैं। अक्सेलरेटर जैसा कि नाम से ही पता चलता है यह आपके आइडिया को स्पीड देने का काम करता है। इनका रोल तब अधिक होता है जब एक बिजनेस आइडिया इन्क्यूबेटर के लेवल से आगे निकल जाता है लेकिन उसके बड़ा बनने में कुछ कसर बाकी है। यह तय वक्त के लिए आपके बिजनस आइडिया को अपने सहारे ऊंची उड़ान दिलाने में मदद करते हैं।
इन्क्यूबेटर और अक्सेलरेटर अमूमन नए बिजनेस आइडिया को एक ऑफिस स्पेस के साथ ही एक्सपर्ट्स की मदद भी दिलाते हैं। ये दोनों ही बेहतरीन आइडिया को हर मुकाम पर पालने-पोसने की जिम्मेदारी उठाते हैं। मुख्य फंडिंग यह वह दौर है जब कंपनी न सिर्फ आइडिया के लेवल पर खुद को साबित कर देती है, बल्कि बिजनेस के धरातल पर यानी कस्टमर के लेवल पर पहुंच जाती है। यह बड़ा इन्वेस्टमेंट पाने का दौर होता है। अक्सर इस लेवल पर पहुंच चुकी कंपनी करोड़ों के टर्नओवर तक पहुंच चुकी होती है।
कंपनी रजिस्ट्रेशन को भी समझें भारत में किसी भी कंपनी को रजिस्टर्ड करने के लिए बाकायदा मिनीस्ट्री ऑफ कार्पोरेट अफेयर काम करती है। भारत में कंपनियां दो स्वरूपों: सोल प्रोपराइटरशिप और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह रजिस्टर कराया जा सकता है।
कंपनी लॉ के अनुसार, किसी भी रजिस्टर्ड कंपनी के लिए कम से कम 2 पार्टनर और 2 शेयर होल्डर होना जरूरी है।
शेयर होल्डर्स किसी भी हाल में 50 से ज्यादा नहीं हो सकते।
किसी भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में आम पब्लिक शेयर नहीं खरीद सकती है।
करें ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन
इसके लिए www.mca.gov.in/MCA21/RegisterNewComp.html पर जा सकते हैं। सोल प्रोपराइटरशिप बिजनेस के लिए कंपनी लॉ के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराना पड़ता। नई कंपनी खोलने का यह आसान और पुराना तरीका है। ऐसी कंपनी का बैंक अकाउंट तो कंपनी के नाम पर ही होता है लेकिन उसे ऑपरेट कंपनी का फाउंडर अपने सिग्नेचर से ही करता है। इसमें किसी भी तरह के कम से कम या अधिक से अधिक रकम की लिमिट नहीं होती। ऐसी कंपनी की पहचान उसके ओनर से ही होती है और इसके अलावा उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती।
मिले-जुलें और फंडिंग पाएं
जितनी जरूरत बिजनेस शुरू करने वालों के पैसों की है उतनी ही जरूरत पैसे वालों को अच्छे आइडिया की है। ऐसे में देश भर में साल भर में कई तरह की पेड और फ्री स्टार्ट-अप मीट्स साल भर होती रहती हैं। इन मीटिंगों से कई बिजनेस आइडिया परवान चढ़ चुके हैं। ऐसे में यहां से मिल सकती है मदद: Startup Saturday हर हफ्ते वीकेंड पर होने वाली यह इवेंट उन लोगों को लिए काफी फायदेमंद होती हैं जो नौकरी करते हुए अपने बिजनेस का सपना देख रहे हैं। ज्यादा जानकारी के लिए startupsaturday.headstart.in पर जाएं। TiE Events यह देश में इस तरह की मीटिंग के लिए काफी पॉपुलर अड्डा है।
इसके शेड्यूल की पूरी जानकारी www.tiecon.org पर मिल सकती है। Indian Angel Network Events यह दुनियाभर में फैले भारतीय ऑन्ट्रप्रनर्स को एक मंच पर लाने वाला नेटवर्क है। इसकी मीटिंगें टेक बिजनेस शुरू करने वालों के काफी काम आ सकती हैं। पूरी जानकारी indianangelnetwork.com पर मिल सकती है। Startup Jalsa यह जलसा सही मायने में स्टार्ट-अप का जलसा है। यहां पर कई बड़े मेंटर्स और बिजनेस जगत के लोग जुटते हैं। startupjalsa.com पर लॉगइन करके जानकारी मिल सकती है।
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