नई दिल्ली
देखने में भले ही आसान लगे, लेकिन पाइल्स होने पर बड़ा मुश्किल लगता है बैठने का काम। वैसे अगर कब्ज को दूर कर दिया जाए तो पाइल्स की समस्या होगी ही नहीं। पेश है पाइल्स के कारण, बचाव और इलाज पर पूरी जानकारी :
बवासीर या पाइल्स एक ऐसी बीमारी है जिसमें एनस के अंदर और बाहरी हिस्से की शिराओं में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से गुदा के अंदरूनी हिस्से में या बाहर के हिस्से में कुछ मस्से जैसे बन जाते हैं, जिनमें से कई बार खून निकलता है और दर्द भी होता है। कभी-कभी जोर लगाने पर ये मस्से बाहर की ओर आ जाते है। अगर परिवार में किसी को ऐसी समस्या रही है तो आगे की जेनरेशन में इसके पाए जाने की आशंका बनी रहती है।
पाइल्स और फिशर का फर्क जानें कई बार पाइल्स और फिशर में लोग कंफ्यूज हो जाते हैं। फिशर भी गुदा का ही रोग है, लेकिन इसमें गुदा में क्रैक हो जाता है। यह क्रैक छोटा सा भी हो सकता है और इतना बड़ा भी कि इससे खून आने लगता है।
पाइल्स की चार स्टेज ग्रेड 1 : यह शुरुआती स्टेज होती है। इसमें कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते। कई बार मरीज को पता भी नहीं चलता कि उसे पाइल्स हैं। मरीज को कोई खास दर्द महसूस नहीं होता। बस हल्की सी खारिश महसूस होती है और जोर लगाने पर कई बार हल्का खून आ जाता है। इसमें पाइल्स अंदर ही होते हैं। ग्रेड 2: दूसरी स्टेज में मल त्याग के वक्त मस्से बाहर की ओर आने लगते हैं, लेकिन हाथ से भीतर करने पर वे अंदर चले जाते हैं। पहली स्टेज की तुलना में इसमें थोड़ा ज्यादा दर्द महसूस होता है और जोर लगाने पर खून भी आने लगता है। ग्रेड 3 : यह स्थिति थोड़ी गंभीर हो जाती है क्योंकि इसमें मस्से बाहर की ओर ही रहते हैं। हाथ से भी इन्हें अंदर नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में मरीज को तेज दर्द महसूस होता है और मल त्याग के साथ खून भी ज्यादा आता है। ग्रेड 4 : ग्रेड 3 की बिगड़ी हुई स्थिति होती है। इसमें मस्से बाहर की ओर लटके रहते हैं। जबर्दस्त दर्द और खून आने की शिकायत मरीज को होती है। इंफेक्शन के चांस बने रहते हैं।
क्या हैं लक्षण - मल त्याग करते वक्त तेज चमकदार रक्त का आना या म्यूकस का आना। - एनस के आसपास सूजन या गांठ सी महसूस होना। - एनस के आसपास खुजली का होना। - मल त्याग करने के बाद भी ऐसा लगते रहना जैसे पेट साफ न हुआ हो। - पाइल्स के मस्सों में सिर्फ खून आता है, दर्द नहीं होता। अगर दर्द है तो इसकी वजह है इंफेक्शन।
कारण क्या हैं - कब्ज पाइल्स की सबसे बड़ी वजह होती है। कब्ज होने की वजह से कई बार मल त्याग करते समय जोर लगाना पड़ता है और इसकी वजह से पाइल्स की शिकायत हो जाती है। - ऐसे लोग जिनका काम बहुत ज्यादा देर तक खड़े रहने का होता है, उन्हें पाइल्स की समस्या हो सकती है। - गुदा मैथुन करने से भी पाइल्स की समस्या हो सकती है। - मोटापा इसकी एक और अहम वजह है। - कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान भी पाइल्स की समस्या हो सकती है। - नॉर्मल डिलिवरी के बाद भी पाइल्स की समस्या हो सकती है।
इलाज के तरीके
1. ऐलोपैथी
दवाओं सेः अगर पाइल्स स्टेज 1 या 2 के हैं तो उन्हें दवाओं से ही ठीक किया जा सकता है। सर्जरी की जरूरत नहीं होती। एनोवेट और फकटू पाइल्स पर लगाने की दवाएं हैं। इनमें से कोई एक दवा दिन में तीन बार पाइल्स पर लगाई जा सकती है। इन दवाओं को डॉक्टर से पूछकर ही लगाना चाहिए।
ऑपरेशन रबर बैंड लीगेशन (Rubber Band Ligation) अगर मस्से थोड़े बड़े हैं तो रबर बैंड लीगेशन का प्रयोग किया जाता है। इसमें मस्सों की जड़ पर एक या दो रबर बैंड को बांध दिया जाता है, जिससे उनमें ब्लड का प्रवाह रुक जाता है। इसमें डॉक्टर एनस के भीतर एक डिवाइस डालते हैं और उसकी मदद से रबर बैंड को मस्सों की जड़ में बांध दिया जाता है। इसके बाद एक हफ्ते के समय में ये पाइल्स के मस्से सूखकर खत्म हो जाते हैं। एनैस्थिसिया देने की जरूरत नहीं होती। एक बार में दो-तीन मस्सों को ही ठीक किया जाता है। इसके बाद मरीज को दोबारा बुलाया जाता है। इसमें भी अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। इस प्रॉसेस को करने के 24 से 48 घंटे के भीतर मरीज को दर्द महसूस हो सकता है, जिसके लिए डॉक्टर दवाएं दे देते हैं।
स्कलरोथेरपी (Sclerotherapy) इस तरीके का इस्तेमाल तभी किया जाता है जब मस्से छोटे होते हैं। स्टेज 1 या 2 तक इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें मरीज को एक इंजेक्शन दिया जाता है। इससे मस्से सिकुड़ जाते हैं और उसके बाद धीरे-धीरे शरीर के द्वारा ही अब्जॉर्ब कर लिए जाते हैं। अगर मस्से बाहर आकर लटक गए हैं तो इस तरीके का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। डे केयर प्रॉसेस है यानी अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती।
हेमरॉयरडक्टमी (Haemorrhoidectomy) मस्से अगर बहुत बड़े हैं और दूसरे तरीके फेल हो चुके हैं तो यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह सर्जरी का परंपरागत तरीका है। इसमें अंदर के या बाहर के मस्सों को काटकर निकाल दिया जाता है। इसमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होगी। जनरल या स्पाइन एनैस्थिसिया दिया जाता है। रिकवरी में दो से तीन हफ्ते का समय लग सकता है। सर्जरी के बाद कुछ दर्द महसूस हो सकता है। सर्जरी के बाद पहली बार मल त्याग में कुछ खून आ सकता है। सर्जरी कामयाब है और कोई रिस्क नहीं है, लेकिन सर्जरी के बाद भी यह जरूरी है कि मरीज अपने लाइफस्टाइल में बदलाव करे, कब्ज से बचे और फाइबर डाइट ले। ऐसा न करने पर करीब 5 फीसदी मामलों में सर्जरी के बाद भी पाइल्स दोबारा हो सकते हैं।
स्टेपलर सर्जरी (Stapler Surgery) स्टेज 3 या 4 के पाइल्स के लिए ही इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में भी जनरल, रीजनल और लोकल एनैस्थिसिया दिया जाता है। अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। प्रोलैप्स्ड पाइल्स (बाहर निकले हुए मस्से) को एक सर्जिकल स्टेपल के जरिये वापस अंदर की ओर भेज दिया जाता है और ब्लड सप्लाई को रोक दिया जाता है जिससे टिश्यू सिकुड़ जाते हैं और बॉडी उन्हें अब्जॉर्ब कर लेती है। इस प्रक्रिया में हेमरॉयरडक्टमी के मुकाबले कम दर्द होता है और रिकवरी में वक्त भी कम लगता है।
2. होम्योपैथी स्टेज 1 और स्टेज 2 के पाइल्स के लिए होम्योपैथी में बहुत अच्छा इलाज है और कई मामलों में स्टेज 3 के पाइल्स को भी इसकी मदद से ठीक किया जा सकता है। पाइल्स के बहुत कम मामले ऐसे होते हैं, जिनमें सर्जरी की जरूरत होती है। बाकी पाइल्स दवाओं से ही ठीक हो सकते हैं। साथ ही शुरुआती स्टेज के पाइल्स में एकदम सर्जरी की ओर जाने से बचना चाहिए। इंतजार करें, दवा लें और बचाव के तरीकों पर ज्यादा ध्यान दें। एक से दो महीने तक लगातार इलाज कराने से पाइल्स की समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है। पाइल्स के साथ अक्सर यह समस्या होती है कि एक बार ठीक होने के बाद ये दोबारा हो जाते हैं। इस समस्या के लिए होम्योपैथी में अलग से दवा दी जाती है। अलग-अलग लक्षणों के हिसाब से नीचे दी गई दवाएं दी जा सकती हैं। दवा की चार चार गोली दिन में तीन बार ले सकते हैं : - अगर पाइल्स के साथ कमर दर्द की समस्या भी है तो Aesculous 30 - अगर पाइल्स का साइज बड़ा है मसलन अंगूर के साइज का है तो Aloes 30 ली जा सकती है। - प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले पाइल्स के लिए Collin Sonia 30 ली जा सकती है। यह रामबाण दवा है। - अगर पाइल्स में तेज दर्द है और ब्लीडिंग भी हो रही है तो Hamammelis 30 ले सकते हैं। - अगर बार-बार पाइल्स हो जाते हैं तो Thuja 200 की एक डोज हर हफ्ते ली जा सकती है। सुबह खाली पेट हफ्ते में एक दिन 4-6 गोली ले सकते हैं। पांच हफ्ते तक ले लें। - Sulphur 30 भी क्रॉनिक पाइल्स में काफी यूज की जाती है।
3. आयुर्वेद
दवाओं से नीचे दी गई दवाओं में से कोई एक ली जा सकती है। रोज रात को एक चम्मच त्रिफला गर्म पानी से लें। इसे लेने के बाद कोई और चीज न खाएं। रोज रात को ईसबगोल की भुस्सी एक चम्मच गर्म दूध से लें। पंचसकार चूर्ण एक चम्मच रोज रात को गर्म पानी से लें। अशोर्घनी वटी की दो गोली सुबह शाम खाना खाने के बाद पानी से लें। अभयारिष्ट या कुमारी आसव खाने के बाद चार चम्मच आधा कप सादा पानी में मिलाकर लें। मस्सों पर लगाने के लिए सुश्रुत तेल आता है। इसे मस्सों पर लगा सकते हैं। सूजन और दर्द है तो सिकाई की मदद से सकते हैं। इसके लिए एक टब में गर्म पानी ले लें और उसमें एक चुटकी पौटेशियम परमेंगनेट डाल दें। यह सिकाई हर मल त्याग के बाद करें।
क्षारसूत्र स्टेज 2, 3 या 4 के पाइल्स के लिए आयुर्वेद में क्षारसूत्र चिकित्सा की जाती है। इसका तरीका नीचे दिया गया है। - इसमें एक धागे का प्रयोग किया जाता है। कुछ आयुर्वेदिक दवाओं का यूज करके डॉक्टर इस धागे को बनाते हैं। - इस प्रक्रिया को करने से पहले लोकल एनैस्थिसिया दिया जाता है। डे केयर प्रॉसेस होता है और इसमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। - प्रॉसेस शुरू करने से पहले डॉक्टर एक यंत्र के जरिये पाइल्स को देखते हैं और उसके बाद इस मेडिकेटेड धागे को मस्सों से बांध देते हैं। मस्सों की जड़ में एक ऐसी जगह होती है जहां दर्द नहीं होता। इसी जगह पर इस धागे को बांध दिया जाता है। इसके बाद मस्सों को अंदर कर दिया जाता है और धागा बाहर की ओर ही लटका रहता है। इसके बाद मरीज को घर भेज दिया जाता है। इस तरीके से पाइल्स ठीक होने में दो हफ्तों का वक्त लग जाता है। बाहर की ओर लटके धागे के जरिये दवाओं को इंजेक्ट किया जाता है, जिससे मस्से सूखकर गिर जाते हैं। इन दो हफ्तों के भीतर डॉक्टर एक-दो बार मरीज को देखने के लिए बुलाते हैं और तय करते हैं कि सब ठीक चल रहा है। इन दो हफ्ते के दौरान मरीज को कुछ दवाएं दी जाती हैं और उससे ऐसी डाइट लेने को कहा जाता है, जिससे कब्ज न हो। कुछ एक्सरसाइज भी बताई जाती हैं। - डॉक्टर ऐसा दावा करते हैं कि इस तरीके से इलाज के बाद पाइल्स के दोबारा होने की आशंका खत्म हो जाती है। - अगर दर्द है तो ऐसा इंफेक्शन की वजह से हो सकता है। ऐसे में पहले दवा देकर इंफेक्शन ठीक किया जाता है। उसके बाद ही क्षारसूत्र चिकित्सा की जाती है। - इस क्षेत्र में कई झोलाछाप डॉक्टर भी हैं जो क्षारसूत्र से इलाज करने का दावा करते हैं। इनसे बचें। क्षारसूत्र अगर करा रहे हैं तो उन्हीं डॉक्टरों से कराएं, जिनके पास एमएस आयुर्वेद की डिग्री है।
4. डाइट पाइल्स से बचने और अगर है तो उससे जल्द छुटकारा पाने के लिए यह खाएं : - ज्यादा से ज्यादा सब्जियों का सेवन करें। हरी पत्तेदार सब्जी खाएं। मटर, सभी प्रकार की फलियां, शिमला मिर्च, तोरी, टिंडा, लौकी, गाजर, मेथी, मूली, खीरा, ककड़ी, पालक। कब्ज से राहत देने के लिए बथुआ अच्छा होता है। - पपीता, केला, नाशपाती, अंगूर, सेब खाएं। मौसमी, संतरा, तरबूज, खरबूजा, आड़ू, कीनू, अमरूद बहुत फायदेमंद हैं। - जिस गेहूं के आटे की रोटी खाते हैं, उसमें सोयाबीन, ज्वार, चने आदि का आटा मिक्स कर लें। इससे आपको ज्यादा फाइबर मिलेगा। - टोंड दूध ही पीएं। शर्बत, शिकंजी, नींबू पानी या लस्सी ले सकते हैं। - दिन में कम से कम 8 गिलास पानी जरूर पिएं।
यह न खाएं - फास्ट फूड, जंक फूड और मैदे से बनी खाने की चीजें। - चावल कम खाएं। - सब्जियों में भिंडी, अरबी, बैंगन न खाएं। - राजमा, छोले, उड़द, चने आदि। - मीट, अंडा और मछली। - शराब, सिगरेट और तंबाकू से बचें।
यह भी रहे याद - ढीले अंडरवेयर पहनें। लंगोट आदि पहनना नुकसानदायक हो सकता है। - मल त्याग के दौरान जोर लगाने से बचें। - कोशिश करें कि मल त्याग का काम दो मिनट के भीतर पूरा करके आ जाएं। - टॉयलेट में बैठकर कोई किताब या पेपर पढ़ने की आदत से बचें। - हो सके तो इंडियन स्टाइल वाले टॉयलेट का ही यूज करें क्योंकि इसमें बैठने का तरीका ऐसा होता है कि पेट आसानी से साफ हो जाता है।
एक्सपर्ट्स पैनल डॉ़ सौमित्र रावत (हेड, डिपार्टमेंट ऑफ सर्जिकल गैस्ट्रोइंटेरॉलजी, सर गंगाराम अस्पताल), डॉ. सुशील वत्स (सीनियर होम्योपैथ), डॉ़ एस़ के़ सिंह (आयुर्वेदिक सर्जन)
देखने में भले ही आसान लगे, लेकिन पाइल्स होने पर बड़ा मुश्किल लगता है बैठने का काम। वैसे अगर कब्ज को दूर कर दिया जाए तो पाइल्स की समस्या होगी ही नहीं। पेश है पाइल्स के कारण, बचाव और इलाज पर पूरी जानकारी :
बवासीर या पाइल्स एक ऐसी बीमारी है जिसमें एनस के अंदर और बाहरी हिस्से की शिराओं में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से गुदा के अंदरूनी हिस्से में या बाहर के हिस्से में कुछ मस्से जैसे बन जाते हैं, जिनमें से कई बार खून निकलता है और दर्द भी होता है। कभी-कभी जोर लगाने पर ये मस्से बाहर की ओर आ जाते है। अगर परिवार में किसी को ऐसी समस्या रही है तो आगे की जेनरेशन में इसके पाए जाने की आशंका बनी रहती है।
पाइल्स और फिशर का फर्क जानें कई बार पाइल्स और फिशर में लोग कंफ्यूज हो जाते हैं। फिशर भी गुदा का ही रोग है, लेकिन इसमें गुदा में क्रैक हो जाता है। यह क्रैक छोटा सा भी हो सकता है और इतना बड़ा भी कि इससे खून आने लगता है।
पाइल्स की चार स्टेज ग्रेड 1 : यह शुरुआती स्टेज होती है। इसमें कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते। कई बार मरीज को पता भी नहीं चलता कि उसे पाइल्स हैं। मरीज को कोई खास दर्द महसूस नहीं होता। बस हल्की सी खारिश महसूस होती है और जोर लगाने पर कई बार हल्का खून आ जाता है। इसमें पाइल्स अंदर ही होते हैं। ग्रेड 2: दूसरी स्टेज में मल त्याग के वक्त मस्से बाहर की ओर आने लगते हैं, लेकिन हाथ से भीतर करने पर वे अंदर चले जाते हैं। पहली स्टेज की तुलना में इसमें थोड़ा ज्यादा दर्द महसूस होता है और जोर लगाने पर खून भी आने लगता है। ग्रेड 3 : यह स्थिति थोड़ी गंभीर हो जाती है क्योंकि इसमें मस्से बाहर की ओर ही रहते हैं। हाथ से भी इन्हें अंदर नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में मरीज को तेज दर्द महसूस होता है और मल त्याग के साथ खून भी ज्यादा आता है। ग्रेड 4 : ग्रेड 3 की बिगड़ी हुई स्थिति होती है। इसमें मस्से बाहर की ओर लटके रहते हैं। जबर्दस्त दर्द और खून आने की शिकायत मरीज को होती है। इंफेक्शन के चांस बने रहते हैं।
कारण क्या हैं - कब्ज पाइल्स की सबसे बड़ी वजह होती है। कब्ज होने की वजह से कई बार मल त्याग करते समय जोर लगाना पड़ता है और इसकी वजह से पाइल्स की शिकायत हो जाती है। - ऐसे लोग जिनका काम बहुत ज्यादा देर तक खड़े रहने का होता है, उन्हें पाइल्स की समस्या हो सकती है। - गुदा मैथुन करने से भी पाइल्स की समस्या हो सकती है। - मोटापा इसकी एक और अहम वजह है। - कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान भी पाइल्स की समस्या हो सकती है। - नॉर्मल डिलिवरी के बाद भी पाइल्स की समस्या हो सकती है।
इलाज के तरीके
1. ऐलोपैथी
दवाओं सेः अगर पाइल्स स्टेज 1 या 2 के हैं तो उन्हें दवाओं से ही ठीक किया जा सकता है। सर्जरी की जरूरत नहीं होती। एनोवेट और फकटू पाइल्स पर लगाने की दवाएं हैं। इनमें से कोई एक दवा दिन में तीन बार पाइल्स पर लगाई जा सकती है। इन दवाओं को डॉक्टर से पूछकर ही लगाना चाहिए।
स्कलरोथेरपी (Sclerotherapy) इस तरीके का इस्तेमाल तभी किया जाता है जब मस्से छोटे होते हैं। स्टेज 1 या 2 तक इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें मरीज को एक इंजेक्शन दिया जाता है। इससे मस्से सिकुड़ जाते हैं और उसके बाद धीरे-धीरे शरीर के द्वारा ही अब्जॉर्ब कर लिए जाते हैं। अगर मस्से बाहर आकर लटक गए हैं तो इस तरीके का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। डे केयर प्रॉसेस है यानी अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती।
हेमरॉयरडक्टमी (Haemorrhoidectomy) मस्से अगर बहुत बड़े हैं और दूसरे तरीके फेल हो चुके हैं तो यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह सर्जरी का परंपरागत तरीका है। इसमें अंदर के या बाहर के मस्सों को काटकर निकाल दिया जाता है। इसमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होगी। जनरल या स्पाइन एनैस्थिसिया दिया जाता है। रिकवरी में दो से तीन हफ्ते का समय लग सकता है। सर्जरी के बाद कुछ दर्द महसूस हो सकता है। सर्जरी के बाद पहली बार मल त्याग में कुछ खून आ सकता है। सर्जरी कामयाब है और कोई रिस्क नहीं है, लेकिन सर्जरी के बाद भी यह जरूरी है कि मरीज अपने लाइफस्टाइल में बदलाव करे, कब्ज से बचे और फाइबर डाइट ले। ऐसा न करने पर करीब 5 फीसदी मामलों में सर्जरी के बाद भी पाइल्स दोबारा हो सकते हैं।
स्टेपलर सर्जरी (Stapler Surgery) स्टेज 3 या 4 के पाइल्स के लिए ही इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में भी जनरल, रीजनल और लोकल एनैस्थिसिया दिया जाता है। अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। प्रोलैप्स्ड पाइल्स (बाहर निकले हुए मस्से) को एक सर्जिकल स्टेपल के जरिये वापस अंदर की ओर भेज दिया जाता है और ब्लड सप्लाई को रोक दिया जाता है जिससे टिश्यू सिकुड़ जाते हैं और बॉडी उन्हें अब्जॉर्ब कर लेती है। इस प्रक्रिया में हेमरॉयरडक्टमी के मुकाबले कम दर्द होता है और रिकवरी में वक्त भी कम लगता है।
3. आयुर्वेद
दवाओं से नीचे दी गई दवाओं में से कोई एक ली जा सकती है। रोज रात को एक चम्मच त्रिफला गर्म पानी से लें। इसे लेने के बाद कोई और चीज न खाएं। रोज रात को ईसबगोल की भुस्सी एक चम्मच गर्म दूध से लें। पंचसकार चूर्ण एक चम्मच रोज रात को गर्म पानी से लें। अशोर्घनी वटी की दो गोली सुबह शाम खाना खाने के बाद पानी से लें। अभयारिष्ट या कुमारी आसव खाने के बाद चार चम्मच आधा कप सादा पानी में मिलाकर लें। मस्सों पर लगाने के लिए सुश्रुत तेल आता है। इसे मस्सों पर लगा सकते हैं। सूजन और दर्द है तो सिकाई की मदद से सकते हैं। इसके लिए एक टब में गर्म पानी ले लें और उसमें एक चुटकी पौटेशियम परमेंगनेट डाल दें। यह सिकाई हर मल त्याग के बाद करें।
यह न खाएं - फास्ट फूड, जंक फूड और मैदे से बनी खाने की चीजें। - चावल कम खाएं। - सब्जियों में भिंडी, अरबी, बैंगन न खाएं। - राजमा, छोले, उड़द, चने आदि। - मीट, अंडा और मछली। - शराब, सिगरेट और तंबाकू से बचें।
एक्सपर्ट्स पैनल डॉ़ सौमित्र रावत (हेड, डिपार्टमेंट ऑफ सर्जिकल गैस्ट्रोइंटेरॉलजी, सर गंगाराम अस्पताल), डॉ. सुशील वत्स (सीनियर होम्योपैथ), डॉ़ एस़ के़ सिंह (आयुर्वेदिक सर्जन)
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