एक्सपर्ट्स पैनल
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सीनियर साइकायट्रिस्ट
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सीनियर साइकायट्रिस्ट
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डॉ. अरुणा ब्रूटा
साइकॉलजिस्ट
कहते हैं अति हर चीज की खराब होती है, फिर चाहे वह कितनी भी जरूरी चीज क्यों न हो। पॉर्न का चस्का भी कुछ ऐसा ही है। पॉर्न देखने की टाइमपास आदत भी अति के बाद लत की शक्ल ले लेती है और जब तक इसके गिरफ्त में होने का अहसास होता है, आसपास काफी कुछ तहस-नहस हो चुका होता है। एक्सपर्ट्स की मदद से पॉर्न एडिक्शन की उलझन और समाधान की गुत्थी सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं अमित मिश्रा:
राहुल (बदला हुआ नाम) एक सरकारी विभाग में सीनियर पोस्ट पर काम करते थे, लेकिन पॉर्न की लत ने उनकी जिंदगी में ऐसा जहर घोला कि सब तहस-नहस होने लगा। कभी-कभी पॉर्न देखने का शौक धीरे-धीरे ऑब्सेशन बनने लगा। घर में हमेशा एकांत ढूंढकर पॉर्न देखने के बाद ऑफिस में भी इसका सिलसिला चलने लगा। ऑफिस में इस हरकत की शिकायत जब बड़े अधिकारियों तक पहुंची तो उन्हें वॉर्निंग दी गई और हरकतों से बाज आने को कहा गया। जब ऑफिस में यह हरकत दोबारा हुई तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। फिलहाल राहुल साइकायट्रिस्ट से इलाज करवा रहे हैं और नॉर्मल जिंदगी की ओर बढ़ रहे हैं।
इसी तरह एक बड़ी कॉरपोरेट फर्म में काम करने वाले रणदीप को पॉर्न की ऐसी आदत पड़ी कि ऑफिस में मीटिंग के दौरान भी वह लैपटॉप पर एक टैब पर हमेशा पॉर्न साइट खोल कर रखने लगे। वह मौका मिलते ही उसे देखते रहते। एक बार गलती से किसी महिला कर्मचारी ने उनकी यह हरकत देख ली और शिकायत कर दी। शर्मशार होकर उन्हें वहां से नौकरी छोड़ कर अपने इलाज के लिए साइकायट्रिस्ट का सहारा लेना पड़ा।
इन दो कहानियों में एक कॉमन बात है कि कैसे पढ़ा-लिखा समझदार और हर तरह से सुविधा संपन्न इंसान भी पॉर्न के चंगुल में आसानी से फंस जाता है और फिर फंसता चला जाता है।
क्या है पॉर्न एडिक्शन
पॉर्न एडिक्शन को समझने से पहले एडिक्शन को समझना जरूरी है। किसी भी चीज की इस हद तक आदत पड़ जाना, जिसकी वजह से सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाए, एडिक्शन की श्रेणी में आता है। हर एडिक्शन की वजह अलग-अलग होती है, किसी को खाने का एडिक्शन है तो किसी को चाय का। पॉर्न देखने की आदत भी जब इस हद तक पहुंच जाए कि पर्सनल और प्रफेशनल लाइफ इससे प्रभावित होने लगे तो समझ जाना चाहिए कि पॉर्न एडिक्शन की शुरुआत हो चुकी है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पॉर्न एडिक्शन का शिकार शख्स हर वक्त पॉर्न देखने की फिराक में रहता है। उसे अकेलापन अच्छा लगता है। वह कहीं भी, कभी भी पॉर्न देखने का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहता। हर वक्त पॉर्न के ख्यालों में खोने की वजह से एडिक्शन का शिकार इंसान न तो कोई नई बात सोच पाता है और न ही कुछ प्लान करके कर पाता है। उसके आसपास के लोग इसे आदत का बदलाव समझ कर इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते और इस एडिक्शन का शिकार इंसान अपने एडिक्शन में डूबता चला जाता है।
पॉर्न एडिक्शन नहीं है सेक्स एडिक्शन
पॉर्न एडिक्शन और सेक्स एडिक्शन दोनों अलग बातें हैं। जहां सेक्स एडिक्शन का असर सेक्सुअल लाइफ को प्रभावित करता है, वहीं पॉर्न एडिक्शन जिंदगी की कई फील्ड्स को प्रभावित करता है। सेक्स एडिक्शन में इंसान ज्यादा-से-ज्यादा सेक्स की डिमांड करता है लेकिन कभी संतुष्ट नही होता, वहीं पॉर्न एडिक्शन में इंसान हर वक्त पॉर्न विडियो या तस्वीरों को देखता रहता है। जरूरी नहीं है कि जो सेक्स एडिक्ट हो वह पॉर्न एडिक्ट भी होगा। यही बात पॉर्न एडिक्ट पर भी लागू होती है। ऐसे में जरूरी है कि पहले एडिक्शन को पहचानें। फिर उससे बचने या निपटने के लिए कदम आगे बढ़ाएं।
पॉर्न एडिक्शन को पहचानें
- ज्यादा पॉर्न देखना। जब पर्सनल और प्राइवेट लाइफ पॉर्न देखने की वजह से डिस्टर्ब होने लगे तो समझें कि सीमा लांघ रहे हैं। अक्सर पॉर्न देखने वाले रात में देर तक पॉर्न देखते हैं और इस वजह से बाकी दिन सुस्त रहते हैं। न उनके काम का कोई वक्त होता है, न आराम का। जिंदगी का बस एक ही मकसद रह जाता है : ज्यादा-से-ज्यादा पॉर्न देखना।
- किसी वजह से पॉर्न देखना रुक जाने पर उलझन होने लगना और किसी काम में मन न लगना।
- शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान होने के बावजूद पॉर्न देखना जारी रखना।
- ज्यादा-से-ज्यादा बार मैस्टरबेट करना
- अपने पार्टनर के प्रति अरुचि
- सेक्सुअल बिहेवियर में भारी बदलाव जैसे अग्रेसिव हो जाना, पार्टनर की भावनाओं की कद्र न करना
- पॉर्न को दुनिया की हर परेशानी और टेंशन से दूर भागने के टूल की तरह इस्तेमाल करना। मिसाल के तौर पर जरा-सी टेंशन हुई तो पॉर्न देख लिया, मूड अच्छा है तो पॉर्न देखा आदि।
पॉर्न एडिक्शन में खतरे की घंटी
- अगर हफ्ते में 11 घंटे या उससे ज्यादा पॉर्न देखते हैं।
- अगर पॉर्न देखने की इच्छा के चलते घर के लोगों और दोस्तों से मिलने का मन नहीं होता।
- पोर्न देखने के लिए अक्सर बहाना बना लेते हैं।
- जब भी लो फील करते हैं, पॉर्न देख लेते हैं।
ऊपर दिए लक्षणों के साथ अक्सर यह परेशानियां भी देखी जाती हैं।
- सेक्स के वक्त प्राइवेट पार्ट में तनाव आने में अक्सर समस्या होती है या जल्दी ही चरम सुख तक पहुंच जाते हैं।
- अपोजिट सेक्स को देखते ही पॉर्न में देखी चीजों का ख्याल आने लगता है।
- हर बार बदल-बदल कर पॉर्न देखना और इनके नए ठिकाने ढूंढने में खूब वक्त बिताना। सॉफ्ट पॉर्न से हार्ड कोर की तरफ बढ़ते जाना।
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पॉर्न एडिक्शन के कारण
- गहराई से देखने पर पता चलता है कि पॉर्न एडिक्शन एक तरह का मानसिक केमिकल लोचा है। इसका मकैनिजम वैसा ही है, जैसा हर एडिक्शन का होता है लेकिन इसकी तासीर उन सबसे तीखी है।
- एडिक्शन के साइंस को समझने के लिए यह समझना जरूरी है कि एडिक्शन के वक्त दिमाग में क्या चल रहा होता है।
- एडिक्शन वह प्रक्रिया है जिसमें इनाम का एक एलिमेंट छुपा होता है। हम हमेशा वह काम करना चाहते हैं, जिसके लिए हमें कोई इनाम मिलता है जैसे अच्छे काम के लिए तारीफ और ऑफिस में मेहनत करने पर प्रमोशन। धीरे-धीरे यह इनाम हमारे काम का रेग्युलर ड्राइव बन जाता है।
- इससे हमें खुशी मिलती है और दिमाग में एक खास हॉर्मोन डोपामाइन रिलीज होता है। इसे 'हैपिनेस हॉर्मोन' भी कहा जाता है। इस हॉर्मोन की वजह से ही हमें कुछ भी करने में खुशी होती है। अमूमन जब हमें कुछ अच्छा लगता है या खुशी देती है तो 5 से 10 यूनिट तक हॉर्मोन रिलीज होता है।
- पॉर्न के केस में यह रिएक्शन अलग तरह से होता है। पॉर्न देखते ही दिमाग के कुछ ऐसा मिलता है जिसे उसने पहले अनुभव नहीं किया है। ऐसा होने पर कई बार 1000 यूनिट तक डोपामाइन रिलीज होता है। डोपामाइन की यह तगड़ी लहर फील गुड तो लेकर आती है लेकिन ऐसी प्यास भी जगा देती है जिसका कोई अंत नहीं है। यही पॉर्न एडिक्शन का कारण बनता है।
- जहां पहले 5-10 यूनिट डोपामाइन रिलीज पर ही सुख का आभास होता था, वहीं अब 1000 यूनिट की आदत पड़ने लगती है। अब हर सुख छोटा लगने लगता है। ऐसे में पॉर्न के पीछे इंसान वैसे ही चल देता है, जैसे सूखे रेगिस्तान में पानी मिलने की उम्मीद में कोई मीलों चलता रहता है।
- ध्यान देने वाली बात यह है कि हर पॉर्न देखने वाले का ट्रिगर वैसे ही अलग-अलग हो सकता है जैसे नशा करने वालों का होता है। मिसाल के तौर पर शराब के आदी इंसान को कोकीन से कोई लेना देना नहीं होता क्योंकि उसका दिमाग शराब को लेकर ही कंडिशन है। इसी तरह कुछ लोगों को पॉर्न तस्वीरें देखने में मजा का है तो कुछ को फिल्में, कुछ को होमोसेक्सुअल मूवीज देखने से किक मिलता है तो किसी को चाइल्ड पॉर्न। यह एडिक्शन कई बार तगड़े नशे से ज्यादा मारक हो जाता है।
- ऐसे में डोपामाइन दोधारी तलवार का काम करता है। एक तरफ तो यह सुख या फील गुड का लेवल ऊंचा सेट कर देता है, दूसरी तरफ के उस हिस्से को भी एक्टिव कर देता है जिससे इच्छा का जन्म होता है। अब न तो पॉर्न देखने का शौकीन इसके बिना रह सकता है और न ही इसे देखने भर से ही पूरी तरह से संतुष्ट हो पाता है।
क्यों नहीं होते सब एडिक्ट
पॉर्न कॉलेज लाइफ से लेकर जॉब जॉइन करने तक, तकरीबन सब देखते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि सब एडिक्ट ही हो जाएं। यह वैसा ही है जैसे कुछ दिनों तक कॉलेज लाइफ में शराब पीने या सिगरेट पीने वाला हर इंसान इसका एडिक्ट नहीं हो जाता लेकिन उनमें से कुछ लोग इसे छोड़ नहीं पाते और इसके चंगुल में फंस जाते हैं।
- इसके कई कारण हो सकते हैं। कई बार यह माहौल पर निर्भर करता है तो कई बार परवरिश पर। जिस तरह का एक्सपोजर होगा, वैसा ही तेवर होगा।
- एडिक्शन के लिए जिनेटिक कारण भी हो सकते हैं। लेकिन एडिक्शन किस तरह का होगा, इसका फैसला परिस्थितियां ही करेंगी।
कितना खतरनाक हो सकता है पॉर्न एडिक्शन
- पॉर्न एडिक्शन को एक छोटी परेशानी मानकर कई बार अनदेखा कर दिया जाता है। न तो खुद इस एडिक्शन का शिकार और न ही एडिक्ट के आसपास के लोग ही इसकी गंभीरता समझ पाते हैं। इसे मूड स्विंग या आदत समझ कर आई-गई बात बना दिया जाता है।
- पॉर्न एडिक्ट्स का परिवार के प्रति रवैया भी बदल जाता है। वह परिवार में हर तरह के रोल से कटता जाता है।
- अगर बहुत बढ़ जाए तो में इस एडिक्शन के शिकार लोग रेप से लेकर मर्डर तक कर सकते हैं।
- आत्मग्लानि या गिल्ट का शिकार होकर पॉर्न एडिक्शन के शिकार लोग आत्महत्या तक का कदम उठा सकते हैं।
इलाज
इसके इलाज में मूल रूप से दो तरह के तरीके आजमाए जाते हैं: साइकोथेरपी और मेडिसिन
- साइकोथेरपी में पेशंट को 12 काउंसलिंग सेशन दिए जाते हैं।
- हर हफ्ते तकरीबन 2 सेशन दिए जाते हैं।
- मेडिसिन के तौर पर डिप्रेशन कम करने वाली और मानसिक परेशानी में आराम दिलाने वाली दवाएं दी जाती हैं। ऐसा सिर्फ काफी सीरियस मामलों में होता है। अक्सर काउंसलिंग से पेशंट को राहत मिल जाती है।
- अगर घर में कोई एडिक्ट है तो उसे अकेला न छोड़ें। इस तरह से लत का शिकार इंसान पॉर्न नहीं देख पाएगा।
- हो सके तो लत के शिकार इंसान को लॉन्ग वॉक्स पर ले जाएं।
- योग और एक्सरसाइज करवाना शुरू करें। ऐसा करने से मन पॉर्न की तरफ से हटेगा।
- पॉर्न एडिक्ट इंसान को उसके शौक की तरफ ले जाएं। म्यूजिक का शौकीन हो तो म्यूजिक सीडी गिफ्ट करें और अगर पढ़ने का शौकीन है तो किताबें।
बच्चों को बचाकर रखें
ऐसा नहीं है कि पॉर्न की लत सिर्फ उम्रदराज लोगों में ही हो सकती है। इस तरह की परेशानी बच्चों में भी देखी जा रही है। 9 साल से 15 साल तक के बच्चों पर इस तरह का एडिक्शन तेजी से कब्जा करता है। तकरीबन 9 साल की उम्र से ही मर्दानगी लाने वाला हॉर्मोन बनने लगता है और इसी के चलते ऐसी चीजों को लेकर उत्सुकता बढ़ने लगती है।
8 साल के सनी (बदला हुआ नाम) को जब पॉर्न एडिक्शन की वजह से काउंसलिंग के लिए लाया गया तो उसने इसकी शुरुआत की वजह स्कूल में दोस्तों से मिली कुछ तस्वीरों को बताया। उसके ही एक दोस्त ने उसे राय दी कि कहां इन फोटोग्राफ्स में अटके हो, इंटरनेट पर जाओ और जितनी चाहे ऐसी फिल्में देखो और बाद में डिलीट कर दो। यहां से शुरू हुआ सिलसिला तब खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया, जब उसे अपने ही घर में किसी महिला मेंबर के बाथरूम इस्तेमाल करते वक्त झांकते पकड़ा गया। घरवालों ने जब पड़ताल की तो पता चला कि वह पॉर्न एडिक्ट हो गया है। फिलहाल उसकी काउंसलिंग चल रही है और सनी नॉर्मल लाइफ की तरफ बढ़ रहा है।
क्या हैं चाइल्ड पॉर्न एडिक्शन के कारण
- इंटरनेट और मीडिया तक आसान पहुंच के चलते कम उम्र में ही अडल्ट कंटेंट तक बच्चों पहुंच।
- स्कूल में बाकी स्टूडेंट्स के जरिए इस तरह की चीजों तक पहुंच।
- कम उम्र की उत्सुकता
- माता-पिता का चीजों को लेकर खुला नजरिया होना और बच्चों को गैजट्स में अनलिमिटेड एक्सेस देना।
- आउटडोर गेम्स में कम वक्त बिताना। इंडोर गेम्स लूडो और चेस की बजाए आउटडोर गेम्स में बच्चों को भेजें। उन्हें इससे होने वाले फायदों के बारे में बताएं। हो सके तो खुद भी उनके साथ आउटडोर गेम्स जैसे जॉगिंग, फुटबाल या बैडमिंटन खेलें।
- आउटडोर गेम्स न सिर्फ बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अच्छे होते हैं बल्कि बच्चों को बिजी रखते हैं जिससे पॉर्न जैसी चीज के लिए उनके पास न तो वक्त बचता है और न एनर्जी।
क्या करें पैरंट्स
कंट्रोल करें गैजट्स
मोबाइल और कंप्यूटर के इस्तेमाल को बच्चों के सामने कंट्रोल में रखें। उन्हें बचपन से ही इस बात की समझ देनी जरूरी है कि ये गैजेट्स जरूरी काम के लिए हैं, न कि एंटरटेनमेंट के लिए। बच्चे इन गैजट्स का गलत इस्तेमाल घर से ही सीखते हैं। अपने मोबाइल, डेस्कटॉप और लैपटॉप में चाइल्ड लॉक लगा कर रखें। अगर बच्चों को गैजट्स दें भी तो उन्हें कंट्रोल करें। इसके लिए वेबसाइट फिल्टर और पासवर्ड प्रोटेक्शन का सहारा ले सकते हैं।
फैमिली टाइम निकालें
फैमिली टाइम निकालना बहुत जरूरी है। अक्सर वर्किंग कपल एक साथ बच्चों के साथ वक्त नहीं बिताते और उन्हें टाइमपास के लिए टीवी या मोबाइल की तरफ डायवर्ट कर देते हैं।
रोल मॉडल बनें
बच्चों के रोल मॉडल माता-पिता होते हैं। अक्सर देखने में आता है कि बच्चों को नासमझ मानकर माता-पिता किसी भी टॉपिक पर डिस्कशन उनके सामने शुरू कर देते हैं। इस तरह का बर्ताव बच्चों की उत्सुकता बढ़ाता है और वे सुनी-सुनाई बातों की तह में जाने की कोशिश करने लगते हैं।
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